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Class 8 Hindi Bhasha Bharti Chapter 23 Mahan Vibhuti Danvir Doctor Sir Hari Singh gor Question Answer MP Board
भाषा भारती कक्षा 8 Solutions Chapter 23 Mahan Vibhuti Danvir Doctor Sir Hari Singh gor Question Answers MP Board
भाषा भारती कक्षा 8 पाठ 23 महान विभूति: दानवीर डॉ. सर हरिसिंह गौर प्रश्न उत्तर
महान विभूति: दानवीर डॉ. सर हरिसिंह गौर बोध प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए
उत्तर
अभाव = कमी, अलंकार में स्थायी भावों से रहित; अक्षय = अनश्वर, अपरिवर्तनशील; अद्वितीय = अतुल्य, अकेला; अर्जित = कमाया हुआ; विभूति = शक्ति, धन, सम्पन्नता; विदुषी = शिक्षित स्त्री, विद्वान स्त्री, विधिवेत्ता = विधि विशेषज्ञ, कानून के जानकार; रूढ़िग्रस्त = परम्परावादी।
प्रश्न 2.
पाठ के आधार पर सही जोड़ी बनाइए-.
उत्तर
(क) → (2), (ख) → (3), (ग) → (4), (घ)→ (1)
प्रश्न 3.
(क) निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए(क) डॉ. हरिसिंह गौर का जन्म कब और कहाँ हुआ ?
उत्तर
डॉ. हरिसिंह गौर का जन्म 26 जनवरी, सन् 1870 ई. में शनीचरी टौरी, सागर (म. प्र.) में हुआ था।
(ख) डॉ. गौर कौन-कौन से विश्वविद्यालयों में उपकुलपति रहे?
उत्तर
सन् 1921 ई. से सन् 1936 ई. तक वे दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्थापक उपकुलपति रहे। इसके बाद दो वर्ष तक वे नागपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति रहे।
(ग) डॉ. गौर को ‘सर’ की उपाधि से किसने विभूषित किया है ?
उत्तर
जनवरी, सन् 1925 में अंग्रेज सरकार ने डॉ. गौर को शिक्षा के क्षेत्र में ‘सर’ की उपाधि प्रदान की।
(घ) उन्होंने किस प्रशासकीय पद से त्याग-पत्र दिया था ?
उत्तर
उन्होंने सेण्ट्रल प्रॉविंस कमीशन में अतिरिक्त सहायक आयुक्त के पद से त्यागपत्र दिया।
(ङ) सागर विश्वविद्यालय की स्थापना कब, क्यों और और किसने की थी ?
उत्तर
18 जुलाई, सन् 1946 को सागर नगर के निकट मकरोनिया की पथरिया पहाड़ी पर डॉ. हरिसिंह गौर ने हजारों व्यक्तियों की उपस्थिति में सागर विश्वविद्यालय की विधिवत् स्थापना की और उन्होंने इस विश्वविद्यालय में प्रथम कुलपति का पद थी सुशोभित किया।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए
(क) डॉ. गौर के विद्यार्थी जीवन पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
उनका बाल्यकाल अभावों में बीता। माँ ने बड़े संघर्ष के साथ उनका पालन-पोषण किया था। उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा सागर में और इण्टरमीडिएट तक की शिक्षा पहले जबलपुर, बाद में नागपुर में पूरी की। आगे की शिक्षा के लिए उन्होंने नागपुर के हिसलप कॉलेज में प्रवेश लिया। उस समय वे अंग्रेजी और अर्थशास्त्र में ऑनर्स करने वाले पहले छात्र थे। अठारह वर्ष की आयु में वे इंग्लैण्ड चले गए, जहाँ उन्होंने डाउनिंग कॉलेज और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में एम. ए. और कानून की उपाधि प्राप्त की।
(ख) डॉ. गौर को कुशल और सफल अधिवक्ता के रूप में क्यों जाना जाता है ?
उत्तर
डॉ. हरिसिंह गौर ने चालीस वर्ष से अधिक समय तक अखिल भारतीय स्तर पर वकालत की। उन्होंने प्रिवी कौंसिल में भी कई मुकद्दमे लड़े और वहाँ भी अपनी सफलता के झण्डे गाड़े। वे हाईकोर्ट बार एसोसिएशन के सभापति और हाईकोर्ट बार कौंसिल के सदस्य भी रहे। अत: डॉ. गौर विधिवेत्ता, प्रसिद्ध अधिवक्ता और दानवीर के रूप में अविस्मरणीय विभूति हैं। वे आज भी हम सबके लिए प्रेरणा पुंज हैं।
(ग) डॉ. गौर भामाशाह क्यों कहलाए?
उत्तर
राष्ट्रहित के लिए जिस प्रकार भामाशाह ने अपना संचित धन महाराणा प्रताप को सहर्ष सौंप दिया था, उसी प्रकार भारत माँ के लाड़ले सपूत डॉ. हरिसिंह गौर ने परिश्रमपूर्वक अर्जित धन विश्वविद्यालय स्थापना के लिए दान कर दिया। इस कार्य के लिए उन्होंने आरम्भ में बीस लाख रुपये दिए। 18 जुलाई, सन् 1946 ई. को सागर नगर के निकट मकरोनिया की पथरिया पहाड़ी पर हजारों व्यक्तियों की उपस्थिति में सागर विश्वविद्यालय की विधिवत स्थापना हुई। डॉ. गौर ने इस विश्वविद्यालय में प्रथम कुलपति का पद भी सुशोभित किया।। उन्होंने अपनी अन्तिम साँस लेने से पूर्व अपनी जीवन भर की गाढ़ी कमाई में से लगभग दो करोड़ रुपये की धन-सम्पत्ति सागर विश्वविद्यालय को अर्पित कर दी। सम्पूर्ण एशिया में किसी एक व्यक्ति मात्र के दान से स्थापित यह विश्वविद्यालय मध्य प्रदेश . का सबसे पुराना विश्वविद्यालय है। अतः राष्ट्रहित के लिए किये गये इस पुण्य कार्य के लिए डॉ. गौर भामाशाह कहलाए।
(घ) डॉ. गौर ने शिक्षा जगत में बहुत सेवाएँ की हैं, इस कथन को उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
सन् 1921 ई. से सन् 1936 ई. तक डॉ. गौर दिल्ली विश्वविद्यालय के संस्थापक उपकुपति रहे। इसके बाद दो वर्ष तक उन्होंने नागपुर विश्वविद्यालय के उपकुलपति का दायित्व संभाला। दिल्ली एवं नागपुर विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डी. लिट. की मानद् उपाधि से सम्मानित किया गया। डॉ. गौर ने 18 जुलाई, सन् 1946 ई. को सागर नगर के निकट मकरोनिया की पथरिया पहाड़ी पर हजारों व्यक्तियों की उपस्थिति में सागर विश्वविद्यालय की विधिवत् स्थापना की। डॉ. गौर ने इस विश्वविद्यालय में प्रथम कुलपति का पद भी सुशोभित किया।
वह अपूर्व बुद्धि और अद्भुत वाशक्ति वाले अधिवक्ता के रूप में प्रसिद्ध थे। उनकी अद्वितीय प्रतिभा, मौलिक सूझबूझ, तीव्र स्मरणशक्ति उनके प्रत्येक शब्द में आत्मविश्वास के साथ झलकती थी। न्यायालय में उनका परिवाद प्रस्तुत करने का ढंग ओजस्वी, अनोखा एवं रोचक होता था। डॉ. हरिसिंह गौर का गहन विश्वकोषीय ज्ञान, अनुभव और दूरदर्शिता अपूर्व थी। उनका अंग्रेजी भाषा पर पूर्ण अधिकार था। लेखन प्रतिभा से युक्त उनकी ख्याति में उस समय और भी वृद्धि हुई जब वे कानून की पुस्तकों के लेखक के रूप में सामने आए। मात्र बत्तीस साल की आयु में ही उनकी ‘लॉ ऑफ ट्रांसफर ऑफ प्रापर्टी एक्ट’ पुस्तक प्रकाशित हुई। इसके बाद उन्होंने ‘भारतीय दण्ड संहिता की तुलनात्मक विवेचना’ और ‘हिन्दू लॉ’ पर पुस्तकें लिखी जो आज भी विधि की महत्त्वपूर्ण पुस्तकों में गिनी जाती हैं। उनके विधि क्षेत्र में अर्जित व्यापक अनुभव को देखते हुए उन्हें भारतीय संविधान सभा का उप सभापति भी चुना गया। डॉ. हरिसिंह गौर ने कानून शिक्षा, साहित्य, समाज सुधार, संस्कृति, राष्ट्रीय आन्दोलन, संविधान निर्माण आदि में स्मरणीय योगदान दिया।
प्रश्न 5.
‘सरस्वती लक्ष्मी दोनों ने दिया तुम्हें सादर जयपत्र’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
डॉ. गौर का बाल्यकाल अभावों में बीता था परन्तु फिर भी उन्होंने 18 वर्ष की आयु में इंग्लैण्ड के डाउनिंग कॉलेज
और कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से दर्शनशास्त्र तथा अर्थशास्त्र में एम. ए. और कानून की उपाधि प्राप्त की। उन्होंने सन् 1905 ई. में डी. लिट. की पहली उपाधि लंदन विश्वविद्यालय और फिर ‘ट्रिनिटी’ कॉलेज, डब्लिन से प्राप्त की। इस प्रकार माँ सरस्वती’ की महान अनुकम्पा से शिक्षा जगत में महान ख्याति अर्जित हुई। परिणामस्वरूप उन्हें परिश्रमपूर्वक धन भी अर्जित हुआ जिसको उन्होंने राष्ट्रहित में सागर विश्वविद्यालय की स्थापना में दान किया। तब राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने उनकी दानवृत्ति को देखकर बहुत ही सटीक कहा
“सरस्वती-लक्ष्मी दोनों ने दिया, तुम्हें सादर जय-पत्र।
साक्षी है हरिसिंह तुम्हारा, ज्ञान-दान का अक्षय सत्र”।
महान विभूति: दानवीर डॉ. सर हरिसिंह गौर भाषा-अध्ययन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए
शिक्षाविद्, विभूति, अधिवक्ता, औपचारिक।
उत्तर
शिक्षाविद्-डॉ. हरिसिंह गौर महान शिक्षाविद् थे। . विभूति-डॉ. ए. पी. जे. अब्दुल कलाम भारत की महान । विभूति हैं। – अधिवक्ता-भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद पेशे से अधिवक्ता थे। औपचारिक-आज हमारे विद्यालय में क्रिकेट मैदान की औपचारिक घोषणा की गई।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का समास विग्रह करते हुए उनके समासों के नाम लिखिए
लालन-पालन, कानून-शिक्षा, सरस्वती-लक्ष्मी, सांध्यवेला, देश-विदेश।
उत्तर
प्रश्न 3.
निम्नलिखित में प्रयुक्त उपसर्ग और प्रत्यय पहचान करके अलग लिखिए-
अक्षय, उपकुलपति, सपूत, सहर्ष, सफलता, दूरदर्शिता, ऐतिहासिक, कार्यक्षमता।
उत्तर
प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों के लिए एक-एक शब्द लिखिए।
उत्तर
वाक्य – एक शब्द
वकालत – करने वाला वकील
जो थोड़ा जानता हो – अल्पज्ञ
जो कभी न हो सके – असम्भव
जिसके आर-पार देखा – पारदर्शी या
जा सके – पादर्शक
विद्या अध्ययन करने वाला – विद्यार्थी
प्रश्न 5.
निम्नलिखित मुहावरों का अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए
झण्डा गाड़ देना, लोहा मानना, घी के दीये जलाना, आँख का तारा होना। ….
उत्तर
झण्डा गाड़ देना-अधिकार जमा लेना।
प्रयोग-भारतीय क्रिकेट टीम ने विश्वकप के फाइनल मैच में भारत का झण्डा गाड़ दिया।
लोहा मानना-प्रभुत्व स्वीकार करना। .
प्रयोग-महाराणा प्रताप की वीरता का मुगल लोहा मानते
घी के दीये जलाना-खुशियाँ मनाना।
प्रयोग-हाईस्कूल की परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त करने पर गोपाल के घर में घी के दीये जल रहे थे।
आँख का तारा होना-बहुत प्रिय होना।
प्रयोग-रमेश अपने माता-पिता की आँख का तारा है।
प्रश्न 6.
नीचे लिखे गद्यांश को पढ़कर उसके नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिए
इस संसार में सबसे अमूल्य वस्तु है ‘समय’। इस संसार में सभी वस्तुओं को घटाया-बढ़ाया जा सकता है। पर समय नहीं। समय किसी के अधीन नहीं रहता। न रह सकता है और न किसी की प्रतीक्षा करता है। विद्यार्थी जीवन में समय का अपना महत्व है। समय का सदुपयोग करने वाला व्यक्ति सदैव सफल होकर एक श्रेष्ठ नागरिक बनता है। समय का सदुपयोग तो केवल उद्यमी और कर्मठ व्यक्ति कर सकता है। आलस्य समय का सबसे बड़ा शत्रु है। विद्यार्थियों को इस शत्रु से सावधान रहना चाहिए।
(क) उपर्युक्त गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
(ख) समय का सबसे बड़ा शत्रु कौन है ?
(ग) कौन-सा व्यक्ति श्रेष्ठ नागरिक बन सकता है ?
(घ) समय का सदुपयोग कौन-सा व्यक्ति कर सकता
उत्तर
(क) उपयुक्त शीर्षक है ‘समय का महत्व’।
(ख) आलस्य समय का सबसे बड़ा शत्रु है।
(ग) समय का सदुपयोग करने वाला व्यक्ति श्रेष्ठ नागरिक बन सकता है।
(घ) समय का सदुपयोग उद्यमी और कर्मठ व्यक्ति कर सकता है।
महान विभूति: दानवीर डॉ. सर हरिसिंह गौर परीक्षोपयोगी गद्यांशों की व्याख्या
(1) वह अपूर्व बुद्धि और अद्भुत वाकशक्ति वाले अधिवक्ता के रूप में प्रसिद्ध थे। उनकी अद्वितीय प्रतिभा, मौलिक सूझबूझ, तीव्र स्मरणशक्ति उनके प्रत्येक शब्द में आत्मविश्वास के साथ झलकती थी। न्यायालय में उनका परिवाद प्रस्तुत करने का ढंग ओजस्वी, अनोखा एवं रोचक होता था। डॉ. हरिसिंह गौर का गहन विश्वकोषीय ज्ञान, अनुवभव और दूरदर्शिता अपूर्व थी।
शब्दार्थ-अद्वितीय = अतुल्य, अकेला; अपूर्व = अनुपम, अनोखा; परिवाद = दावा; शिकायत; ओजस्वी = प्रभावशाली, शक्तिमान।
सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘भाषा-भारती’ के पाठ ‘महान विभूति : दानवीर डॉ. सर हरिसिंह गौर’ से अवतरित है।
प्रसंग-इस गद्यांश में डॉ. हरिसिंह गौर के प्रतिभाशाली व्यक्तित्व को समझाया गया है।
व्याख्या-डॉ. हरिसिंह गौर एक विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। उनमें तार्किक बुद्धि, सोचने की अद्भुत शक्ति, वाक्पटुता, समरण रखने की असीम क्षमता और आत्मविश्वास कूट-कूट कर भरे हुए थे। अत: कानून के क्षेत्र को उन्होंने अपना व्यवसाय चुना। न्यायालय में अपने पक्ष को सरल एवं रोचक तरीके से प्रस्तुत करते थे। इसीलिए डॉ. गौर प्रसिद्ध अधिवक्ता और विधिवेत्ता के रूप में अविस्मरणीय विभूति हैं। शिक्षा के क्षेत्र में डॉ. गौर को विश्वकोश का ज्ञान, कार्य करने का अनुभव और उसके परिणाम को जानने की अनोखी दूरदर्शिता थी।
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