MP Board Class 6th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 6 विजय गान

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MP Board Class 6th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 6 विजय गान

MP Board Class 6th Hindi Bhasha Bharti Chapter 6 पाठ का अभ्यास

भाषा भारती कक्षा 6 Solutions MP Board प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए

(क) पथ में बरस रही हैं
(i) चिंगारियाँ
(ii) बाधाएँ,
(iii) शक्तियाँ
(iv) बिजलियाँ।
उत्तर
(ii) बाधाएँ

(ख) धरा संतप्त हो रही है
(i) पुण्य से
(i) दया से,
(iii) दान से
(iv) पाप से।
उत्तर
(iv) पाप से

Bhasha Bharti Class 6 MP Board प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

(क) वीरों को ………… की धारों पर चलना पड़ता है।
(ख) नभ मण्डल को नित ………………. उगलने दो।
(ग) दृढ़ निश्चय से ………………. डर जाता है।
(घ) दुर्गम सागर सुखाने के लिए तुम ………… हो।
उत्तर
(क) तलवारों
(ख) अंगार
(ग) काल स्वयं
(घ) अगस्त्य।

Bhasha Bharti Class 6 Solutions MP Board प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-दो वाक्यों में लिखिए

(क) वीरों के पथ में क्या बरस रही हैं ?
उत्तर
वीरों के पथ में बाधाएँ बरस रही हैं।

(ख) अंगार उगलने के लिए किससे कहा गया है?
उत्तर
अंगार उगलने के लिए नभ मण्डल से कहा गया है।

(ग) कवि किससे, किसको टकरा देना चाहता है ?
उत्तर
कवि समुद्र को हिमालय से, सूर्य को चन्द्रमा से, धरती को आकाश से टकरा देना चाहता है।

(घ) कवि तपस्वी बनने के लिए क्यों कह रहा है ?
उत्तर
कवि कह रहा है कि तुम (वीर पुरुष) तपस्वी बन जाओ जिससे तुम्हारे ऊपर माया-मोह का प्रभाव न पड़ सके।

(ङ)’प्राणों की पतवार से कवि का क्या आशय है?
उत्तर
प्राणों की पतवार से कवि का आशय है कि हे वीरो! तुम अपने अन्दर प्राण शक्ति (ऊर्जा) इतनी पैदा कर लो कि तुम्हें बाधाओं के सागर को पार करने में किसी तरह का डर न लगे।

(च) वीरों से काल कब डरने लगता है ?
उत्तर
पक्के इरादे वाले वीरों से काल डरने लगता है।

(छ) ‘विजय गान’ कविता का सार लिखिए।
उत्तर
कवि का आशय है कि श्रेष्ठ वीरों को विजय के मार्ग पर बाधाओं की चुनौती को स्वीकार करते हुए आगे बढ़ते जाना चाहिए। मनुष्य जीवन एक महासंग्राम है। इसमें अनेक तरह की रुकावटें आती हैं। जीवन की इन रुकावटों पर जीत पाने के लिए साहसपूर्वक सावधानी से आगे ही आगे बढ़ते जाना चाहिए।

तलवार की धार पर चलने के समान दुर्गम जीवन पथ पर चलने के लिए त्याग, तपस्या और पक्के संकल्प की जरूरत होती है। प्राण-शक्ति के सहारे मनुष्य को जीवन के समुद्र को पार करने में सफलता प्राप्त हो सकती है।

Bhasha Bharti Hindi Book Class 6 MP Board प्रश्न 4.
निम्नलिखित पद्यांशों का भाव स्पष्ट कीजिए

(क) बरस रही बाधाएँ पथ में उमड़-उमड़ कर धारों से। वीर, सिन्धु के पार उतरते, प्राणों की पतवारों से।
(ख) छूने पाए मोह न तुमको, बनो तपस्वी ! लौह हृदय !
काल स्वयंडर जाये देखकर, ध्रुव से भी ध्रुवतर निश्चय।
उत्तर
खण्ड ‘क’: सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या के अन्तर्गत पद्यांश संख्या 1 व 3 की व्याख्या देखिए।

भाषा की बात

Bhasha Bharti Kaksha 6 MP Board प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए
प्राण, संतप्त, ध्रुव, अगस्त्य।
उत्तर
कक्षा में अपने अध्यापक महोदय की सहायता से उच्चारण करना सीखिए और लगातार अभ्यास कीजिए।

Bhasha Bharti Class 6 Hindi Solution MP Board प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों की सही वर्तनी कीजिए
बीरबर, निशचय, तलवर, अगार।
उत्तर
वीरवर, निश्चय, तलवार, अंगार।

भाषा भारती कक्षा 6 हिंदी MP Board प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए. हिमाचल, मंडल, अम्बर, हृदय।
उत्तर

  • हिमाचल-जाड़े के दिनों में हिमाचल बर्फ से ढक जाता है।
  • मंडल-आकाश मंडल से भीषण आग बरस रही है।
  • अम्बर-अम्बर में काले बादल छाए हुए हैं।
  • हृदय-उदार हृदय व्यक्ति आदरणीय होते हैं।

Mp Board Solution Class 6 Hindi प्रश्न 4.
कविता की पहली पंक्ति में ‘सम्हल-सम्हल’ का प्रयोग हुआ है। ऐसे अन्य पदों को छाँटिए जिनमें एक ही शब्द का दो बार प्रयोग हुआ हो।
उत्तर
सम्हल-सम्हल, उमड़-उमड़, घुमड़-घुमड़।

Class 6 Bhasha Bharti MP Board प्रश्न 5.
इस कविता की जिन पंक्तियों में वर्गों की आवृत्ति हुई है, उन्हें छाँटकर लिखिए।
उत्तर
‘अवनी-अम्बर’ में : ‘अ’ वर्ण की।
‘पाप-ताप’ में ‘प’ वर्ण की। ध्रुव से ध्रुवतर, में ‘ध्रु’ एवं व वर्ण की।

Class 6th Hindi Bhasha Bharti MP Board प्रश्न 6.
निम्नलिखित शब्दों में उचित उपसर्ग व प्रत्यय लगाकर नए शब्द बनाइए ज्ञान, सफल।
उत्तर
अज्ञानता और असफलता।

प्रश्न 7.
पर्यायवाची शब्द लिखिएसूर्य, चन्द्रमा, सिन्धु, अग्नि, अम्बर।
उत्तर

  • सूर्य = भानु, भास्कर, सूरज, दिवाकर, दिनकर, आदित्य।
  • चन्द्रमा = चन्द्र, शशि, रजनीकर, शीतकर, सुधांशु, सुधाकर, राकापति।
  • सिन्धु = समुद्र, सागर, वारिधि, पयोधि, नीरधि।
  • अग्नि =आग, वैश्वानर, अनल, पावक, हुताशन।
  • अम्बर = आकाश, क्षितिज, अन्तरिक्ष, नभ, गगन, व्योम।

विजय गान सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या 

(1) सम्हल-सम्हल कर चलो वीरवर,
तलवारों की धारों पर!
इधर-उधर हैं खाई-कुएँ, ऊपर है सूना अम्बर
बरस रहीं बाधाएँ पथ में,
उमड़-उमड़ कर धारों से।
वीर, सिन्धु के पार उतरते,
प्राणों की पतवारों से।
टकराने दो सिन्धु-हिमाचल,
सूर्य-चन्द्र अवनी-अम्बर।
सम्हल-सम्हल कर चलो वीरवर,
तलवारों की धारों पर।

शब्दार्थ-सम्हल=सम्हल कर सावधानीपूर्वक। वीरवर = श्रेष्ठवीर। अम्बर = आकाश। बाधाएँ = रुकावटें। पथ = मार्ग। सिन्धु = समुद्र। अवनी = धरती।

सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ हमारी पाठ्य पुस्तक भाषा-भारती’ की ‘विजय गान’ नामक कविता से ली गई हैं। इस कविता के रचयिता नटवरलाल ‘स्नेही’ हैं।

प्रसंग-कवि ने कठिनाइयों में भी सावधानीपूर्वक अपने जीवन रूपी मार्ग पर लगातार चलते रहने का आह्वान किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि हे श्रेष्ठ वीरो ! तुम्हें चुनौतियों भरे अति कठिनाइयों वाले जीवन पथ पर सावधानीपूर्वक चलते जाना चाहिए। जीवन का मार्ग कठिनाइयों की, खाइयों और कुओं (रुकावटों) से बाधित है। ऊपर आकाश सूना है। तुम्हारे मार्ग में रुकावटों की वर्षा हो रही हैं।

ये बाधाएँ वर्षा की जलधारा के समान झड़ी लगाए उमड़ रही हैं। (परन्तु तुम्हें घबराना नहीं चाहिए क्योंकि तुम वीर हो और) वीर तो अपने प्राणों की पतवार से (प्राणों की बाजी लगा करके) विपत्तियों के सागर को पार कर जाते हैं। चाहे, समुद्र और हिमालय, सूर्य और चन्द्रमा तथा धरती और आकाश आपस में क्यों न टकरा जाएँ, तुम्हें तो हे श्रेष्ठ वीरो! सावधानी से तलवारों की धार पर भी अपने मार्ग पर आगे ही आगे बढ़ते जाना है।

(2) पापों से संतप्त धरा का
पाप, ताप में जलने दो।
घुमड़-घुमड़ कर नभ मंडल को
नित अंगार उगलने दो।
जल जाएगा पाश पुराना, परवशता अंचल जर्जर।
सम्हल-सम्हल कर चलो वीरवर तलवारों की धारों पर।

शब्दार्थ-संतप्त =कष्ट पाती हुई। ताप = ऊष्मा, गर्मी। पाश = जाल। परवशता = गुलामी। अंचल= आंचल जर्जर = जीर्ण क्षीर्ण, पुराना और फटा हुआ।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-इस पद्यांश में सारी धरती से पुरानापन तथा गुलामी के पुराने अंचल को जलाकर भस्म कर देने के लिए आह्वान किया गया है।
व्याख्या-कवि कहता है कि यह धरती अनेक तरह से किए गए पापों से संताप के कष्ट पा रही है। इसे पाप की ताप (आग) से जलने दो। सारा आकाश मण्डल भी बार-बार उमड़-घुमड़ कर अंगारे उगलने लग जाय जिससे पुरानी गुलामी का झीना सा जर्जर जाल जलकर समाप्त हो जाए। इसलिए, हे श्रेष्ठ वीरो ! तुम सावधानीपूर्वक तलवारों की धार पर चलते चलो (जीवन की अनेक बाधाओं को दूर करते हुए आगे बढ़ते चलो।)।

(3) छूने पाए मोह न तुमको,
बनो तपस्वी! लौह हृदय। काल स्वयं डर जाय देखकर,
ध्रुव से भी ध्रुवतर निश्चय। हो अगस्त्य,
क्या कठिन सुखाना बाधा का दुर्दम सागर।
सम्हल-सम्हल कर चलो वीरवर तलवारों की धारों पर।

शब्दार्थ-लौह हृदय = लोहे से बने पक्के हृदय वाले। ध्रुव = अटल। निश्चय = इरादा। अगस्त्य = एक ऋषि का नाम जिन्होंने अपनी अंजलि से सारे समुद्र को पीकर सुखा दिया था। बाधा – रुकावट। दुर्दम = जिसे वश में करना बहुत ही कठिन होता है। सागर = समुद्र।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-कवि भारत के वीरों को पक्के इरादे से भयभीत न होकर बाधाओं पर विजय प्राप्त करने का आह्वान करता है।

व्याख्या-हे वीरो! तुम्हें किसी भी तरह का मोह भी छू न सके, इसके लिए तुम्हें एक तपस्वी बन जाना चाहिए। तुम्हें लोहे के हृदय वाला हो जाना चाहिए जिससे काल भी भयभीत हो उठे। तुम्हें अत्यन्त पक्के इरादों वाला हो जाना चाहिए। हे वीरवरो! तुम्हें अगस्त्य ऋषि के समान बन जाना चाहिए जिससे बाधाओं के दुर्दमनीय (कठिनाई से वश में किए जाने वाला) सागर को भी वश में करना तुम्हारे लिए बिल्कुल भी कठिन नहीं होगा। अतः हे श्रेष्ठ वीरो! तुम्हें सम्हल कर तलवार की धार पर चलना है (चुनौतीपूर्ण कार्य करना है।)