MP Board Class 8 Hindi Bhasha Bharti Chapter 13 Na Yeh Samjho Ki Hindustan Ki Talwar Soi Hai Question and Answer

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Class 8 Hindi Bhasha Bharti Chapter 13 Na Yeh Samjho Ki Hindustan Ki Talwar Soi Hai Question Answer MP Board

भाषा भारती कक्षा 8 Solutions Chapter 13 Na Yeh Samjho Ki Hindustan Ki Talwar Soi Hai Question Answers MP Board

भाषा भारती कक्षा 8 पाठ 13 न यह समझो कि हिन्दुस्तान की तलवार सोई है प्रश्न उत्तर

न यह समझो कि हिन्दुस्तान की तलवार सोई है बोध प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए
उत्तर
दहलती = थरांती, डर के मारी काँपती; विसर्जन = त्याग करके, छोड़ करके; संवत्सर = वर्ष, सम्वतः कर हाथ; लहू = खून; नारीत्व – स्त्री की शक्ति, नारीपन; लोलुप = लालची, तेग = बड़ी तलवार, सिहरती = रोमांचित; रण= युद्ध; मुक्ति = आजादी; हुंकार = गर्जना; पुरुषत्व = पुरुष की शक्ति; चरणाघात = पैरों की चोट; क्षार = राख; रण बाँकुरी = युद्ध करने में बहुत ही तेज।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए
(क) किस भारतीय की वीरता को सुनकर सिकन्दर की छाती दहलती थी?
उत्तर
राजा पुरु की वीरता को सुनकर सिकन्दर की छाती दहलती थी।

(ख) नव संवत्सर किस राजा ने प्रारम्भ किया था ?
उत्तर
महाराज विक्रमादित्य ने नव संवत्सर प्रारम्भ किया था।

(ग) शिवाजी ने किसके विरुद्ध तलवार उठाई थी?
उत्तर
शिवाजी ने मुगल शासक औरंगजेब के विरुद्ध अपनी तलवार उठाई थी।

(घ) विश्व को शान्ति का सन्देश देने वाले किन्हीं दो महापुरुषों के नाम बताइए।
उत्तर
विश्व को शान्ति का सन्देश देने वाले दो महापुरुष स्वामी विवेकानन्द और पं. जवाहरलाल नेहरू थे।

(ङ) सिकन्दर कौन था ?
उत्तर
सिकन्दर यूनान के सिकन्दरिया का रहने वाला लुटेरा शासक था।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए
(क) ‘तलवार सोई है’ से क्या आशय है?
उत्तर
‘तलवार सोई है’ इस कविता से यह आशय है कि देश के वीर सैनिकों ने अपनी उस तलवार को उठाकर रख दिया है, जिसे वे हिन्दुस्तान की शान, वान और मान की रक्षा के लिए हर समय उठाये रहते थे। क्या वह तलवार वास्तव में सो गई है? ऐसा नहीं है। भारत के वीर सपूतों की तलवार ने सदा ही शत्रु आक्रमणकर्ताओं का मुकाबला किया है और उन्हें भयभीत करके देश की सीमाओं से बाहर खदेड़ दिया है। सिकन्दर और बाबर दोनों ही हमारे देश पर आक्रमण करने वाले विदेशी लुटेरे थे। वीर हिन्दुस्तानी सैनिकों के रणकौशल से भयभीत होकर वे उल्टे पैर लौट पड़े। भारतीय युद्धवीरों की तलवार की आवाज से-शत्रुओं की फौजें बिखर जाती थी, अर्थात् युद्ध छोड़कर लौट पड़ती थी। वे शत्रु भय से रोमांचित होकर पीठ दिखा जाते थे। – ऐसे उन भारतीय वीरों की तलवार कभी भी सोई हुई नहीं रही है।

(ख) हर्ष इतिहास में क्यों प्रसिद्ध है ?
उत्तर
हर्षवर्द्धन ने हिन्दुस्तान की सीमाओं को सुरक्षित किया। विदेशी आक्रमणकर्ताओं-हूण, शक आदि आक्रान्ताओं को वहाँ से खदेड़ दिया। देश की प्रतिरक्षा शक्ति को बढ़ाया और मजबूत सैनिक बल के हौसले बुलन्द किए। प्रजा पर विश्वास जमाया। देश के अन्दर शिक्षा, उद्योगों और कृषि को उन्नत बनाया। शिक्षा केन्द्रों को सहायता दी। देश में आम लोगों के सुख-समृद्धि की ओर ध्यान दिया। वे प्रति पाँचवें वर्ष प्रयोग में गंगा संगम पर अपना सर्वस्व (पूरा खजाना) विद्वानों, भिक्षुकों, गुरु-आश्रमों को दान कर जाते थे। वे बौद्ध मत में दीक्षा प्राप्त करके अहिंसा का पालन करते थे। प्रजा से कर के रूप में बहुत कम धन लेकर, उसकी कई गुना वृद्धि करके राज्य के कल्याण में सारा धन लगा देते थे। अपने महान् कार्यों के लिए हर्ष प्रसिद्ध थे।

(ग) यदि किसी ने हमारी स्वतन्त्रता छीनने का प्रयास किया, तो हम क्या करेंगे?
उत्तर
भारतवर्ष एक महान् और विस्तृत गणतन्त्र राष्ट्र है। प्रभुसत्ता सम्पन्न देश अपनी चारों ओर की सीमाओं की रक्षा बड़ी तत्परता से कर रहा है। सीमा सुरक्षा बलों की अकुत शक्ति पर देश के प्रत्येक नागरिक को पूर्ण भरोसा है। वे किसी भी दशा में विदेशी शत्रुओं के द्वारा किए आक्रमण को असफल करने में पूर्णत: सक्षम हैं।

वैसे हम शान्ति के दूत और अहिंसा के पुजारी हैं। हम दूसरे देश की मान-मर्यादा पर आक्रमण करने वाले नहीं रहे हैं, परन्तु यदि किसी ने भी (किसी भी शत्रु ने देश ने) हमारी आजादी को ललकारा अथवा हमारे राष्ट्र की सीमाओं को तोड़ा अथवा अपनी कुदृष्टि से देश को आघात पहुँचाया तो हमारे रणबांकुरे वीर सैनिक हुँकार भर उठेंगे। उस आक्रमणकारी शत्रु को सब प्रकार से नष्ट करके खदेड़ देंगे, देश के सम्मान की रक्षा के लिए भयंकर युद्ध करेंगे। देश की स्वतन्त्रता की रक्षा के लिए हम प्रलय ढा देंगे।

(घ) ‘चित्तौड़ का जौहर’ क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर
चित्तौड़ का जौहर इस बात के लिए प्रसिद्ध है कि युद्ध में वीर भारतीय रणबांकुरों ने देश की रक्षा में अपने प्राणों की आहुति दे दी। जब वे शत्रु का मुकाबला अपने प्राणों की आहुति देकर भी किया करते थे, तब उनके इस महान् बलिदान की खबर पाकर राजपूत स्त्रियाँ भी शत्रुओं से अपनी लाज बचाने के लिए जलती हुई आग में सामूहिक रूप से कूदकर स्वयं को जला देती थीं। यह एक ऐतिहासिक सच्चाई है। उन राजपूत वीर क्षत्राणियों के लोमहर्षक इस महाबलिदान की परम्परा कई वर्षों तक जीवित रही।

(ङ) इस कविता से हमें क्या सन्देश मिलता है?
उत्तर
इस कविता से यह सन्देश मिलता है कि भारतीय – वीर सैनिक प्रतिपल देश की सीमाओं, आजादी तथा उसके
सम्मान की रक्षा के लिए तैयार हैं। हर्षवर्द्धन का त्याग और वीरता, विक्रमादित्य का शिक्षा-प्रेम और भारतीय संस्कृति के विकास की स्मृति हमें सन्देश देती है कि हमें सदैव ही अपनी सांस्कृतिक विरासत को सम्पन्न बनाकर उसकी रक्षा करनी है। देश के ऊपर विदेशी आक्रान्ताओं से अन्तिम श्वास तक लड़ते – हुए अपनी आजादी की रक्षा का सन्देश प्राप्त होता है। स्त्री और पुरुष दोनों ने ही देश के लिए अपने प्राणों का त्याग किया है। हम युद्ध प्रिय नहीं हैं लेकिन प्रिय राष्ट्र की रक्षा के लिए महान् से महान् त्याग करने से पीछे नहीं हटते। हम भारतीयों ने कभी भी विस्तारवादी नीति नहीं अपनाई है। दूसरे देशों पर आक्रमण नहीं किया है लेकिन जिस किसी ने भी देश की आजादी, उसकी सीमाओं को कुचला तो हम उसको मुँहतोड़ उत्तर देंगे।

प्रश्न 4. निम्नलिखित पंक्तियों का सन्दर्भ सहित अर्थ लिखिए
(क) लहू देंगे मगर इस देश की माटी नहीं देंगे।
किसी लोलुप नजर ने यदि हमारी मुक्ति को देखा,
उठेगी तब प्रलय की आग जिस पर क्षार सोई है।

(ख) किया संग्राम अन्तिम श्वास तक राणा प्रतापी ने,
किया था नाम पर जिसके कभी चित्तौड़ ने जौहर,
न यह समझो कि धमनी में लहू की धार सोई है।
उत्तर
भारत देश के हम नागरिकों ने अपने देश की – सीमा को विस्तृत करना कभी नहीं चाहा है। साथ ही, हमने किसी अन्य देश की धन सम्पत्ति पर भी अपना कब्जा जमाने की इच्छा नहीं की है, लेकिन बिना किसी चूक के यह बात करने से नहीं रुकेंगे तथा कभी रुके भी नहीं हैं कि हम खून दे सकते हैं. लेकिन अपने प्रिय राष्ट्र (भारत) की जमीन का एक टुकड़ा भी नहीं देंगे। यदि किसी लालच भरी दृष्टि वाले देश ने इस पर आक्रमण करने की अथवा हमारे देश की आजादी को कुचलने , की कोशिश की भी तो तत्काल ही विनाश की आग फूट पड़ेगी ‘यद्यपि युद्ध की आग राख के अन्दर छिपी हो सकती है। कहने ‘ का तात्पर्य यह है कि हमारे अपने प्रिय देश पर किसी लालची दृष्टि वाले शत्रु-देश ने आक्रमण करने की कुचेष्टा की तो उस समय विनाश लीला की अग चारों ओर फैल जायेगी यद्यपि हम युद्ध नहीं चाहते। हम तो सदैव से शान्ति दूत रहे हैं।

यह हिन्दुस्तान वह देश है जिसके अंश से ही महाराज हर्षवर्द्धन और विक्रमादित्य ने जन्म लिया था। आज तक बीते हुए वर्षों से क्रमश: इसकी प्रशंसा के गीत गाये जाते रहे हैं। हिन्दुस्तान के नाम पर ही अर्थात् हिन्दुस्तान की लज्जा बचाने के लिए ही महाराज शिवाजी ने अपनी तलवार खींच ली थी अर्थात् युद्ध करके हिन्दुस्तान के गौरव की रक्षा की थी। इसके लिए ही मेवाड़ के राणा प्रताप ने भी अन्तिम श्वास तक (मृत्यु पर्यन्त) भीषण युद्ध किया था तथा चित्तौड़ ने भी हिन्दुस्तान के नाम पर जौहर की परम्परा चलाई थी। हे शत्रुओ ! तुम्हें भी यह नहीं समझ लेना चाहिए कि भारतवर्ष के वीरों की धमनियों के अन्दर बहने वाली रक्त (लहू) की धारा सो गई है।

प्रश्न 5.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय समझाइए
(अ) हुई नीली कि जिसकी चोट से आकाश की छाती।
(आ) रहे इंसान चुप कैसे कि चरणाघात सहकर जब ।
(इ) न सीमा का हमारे देश ने विस्तार चाहा है।
(ई) न यह समझो कि हिन्दुस्तान की तलवार सोई है।
उत्तर
कवि कहता है कि हिन्दुस्तान की तेज तलवार सो गई है। ऐसा किसी भी शत्रु को नहीं समझ लेना चाहिए। तलवार से युद्ध करने में चतुर योद्धाओं की कहानी सुनकर सिकन्दर की छाती (दिल) भी डर से काँप उठती थी। उस तलवार से किए जाने वाले युद्ध की भयंकरता के विषय में सुनते ही बाबर के हाथों से उसकी तलवार छूट कर गिर पड़ती थी। भारतीय योद्धाओं की तलवार के कठोर प्रहारों के विषय में सुनकर शत्रुओं की सेना भी तितर-बितर हो जाती थी और भय से रोमांचित हो उठती थी। त्याग की शरण लेने वाली डूबती नौकाएँ भी उद्धार प्राप्त कर लेती थीं। अर्थात् युद्ध करना छोड़ करके शरण में आए हुए शत्रु की डूबती नैया उद्धार प्राप्त कर लेती थी। हिन्दुस्तानी वीर रण-बांकुरों की तेज तलवार की चोटों से आकाश की छाती भी नीली पड़ी हुई है। किसी को भी यह न समझ लेना चाहिए कि युद्ध में हिन्दुस्तानी वीर सैनिकों की हुँकार (गर्जना) सो चुकी है।

कवि यह बताते चलते हैं कि हम हिन्दुस्तानियों ने ही सदैव संसार को शान्ति का सन्देश दिया है तथा अहिंसा का उपदेश देकर मन, कर्म और वचन से सत्य का आचरण करने के लिए पूरे संसार को सलाह दी है। इसका यह अर्थ नहीं लगा लेना चाहिए कि हम अहिंसा का आचरण अपनाकर वीरता का त्याग कर देंगे और कायर बन जायेंगे और इसका यह अर्थ भी नहीं लगा लेना चाहिए कि हम नारीपन (स्त्रीत्व) के लिए किए गये अपमान को सह लेंगे। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि धरती पर पैरों के नीचे दबी कुचली धूल भी पैरों की ठोकर खाने पर आकाश में उमड़कर चारों ओर छा जाती है। वह (स्त्री रूपी धूल) किसी वजह से अपनी लाचारी की दशा में अपनी शक्ति को पहचानती नहीं रही है। यह उसकी सुप्त अवस्था थी, अज्ञानता थी, उसकी अशिक्षा थी।

भारत देश के हम नागरिकों ने अपने देश की – सीमा को विस्तृत करना कभी नहीं चाहा है। साथ ही, हमने किसी अन्य देश की धन सम्पत्ति पर भी अपना कब्जा जमाने की इच्छा नहीं की है, लेकिन बिना किसी चूक के यह बात करने से नहीं रुकेंगे तथा कभी रुके भी नहीं हैं कि हम खून दे सकते हैं. लेकिन अपने प्रिय राष्ट्र (भारत) की जमीन का एक टुकड़ा भी नहीं देंगे। यदि किसी लालच भरी दृष्टि वाले देश ने इस पर आक्रमण करने की अथवा हमारे देश की आजादी को कुचलने , की कोशिश की भी तो तत्काल ही विनाश की आग फूट पड़ेगी ‘यद्यपि युद्ध की आग राख के अन्दर छिपी हो सकती है। कहने ‘ का तात्पर्य यह है कि हमारे अपने प्रिय देश पर किसी लालची दृष्टि वाले शत्रु-देश ने आक्रमण करने की कुचेष्टा की तो उस समय विनाश लीला की अग चारों ओर फैल जायेगी यद्यपि हम युद्ध नहीं चाहते। हम तो सदैव से शान्ति दूत रहे हैं।

न यह समझो कि हिन्दुस्तान की तलवार सोई है भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
इस कविता से पाँच आगत शब्द छाँटकर उनके हिन्दी शब्द लिखिए।
उत्तर
आगत शब्द-फौजें, लहू, इंसान, लाचार, मगर। हिन्दी शब्द-सेनाएँ, रुधिर, मनुष्य, असहाय, यद्यपि।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित (पाठ्यपुस्तक में दी गई) वर्ग पहेली से आकाश, रण और लहू के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
उत्तर

  1. आकाश-नभ, व्योम।
  2. रण-संग्राम, युद्ध।
  3. लहू-रुधिर, रक्त।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के वाक्य प्रयोग, उनके विलोम शब्दों के साथ लिखिए
अहिंसा, अर्थ, शान्ति, आग।
उत्तर

  1. अहिंसा का भाव हिंसा से स्पष्ट हो जाता है।
  2. अर्थ और अनर्थ दो विरोधी शब्द हैं।
  3. शान्ति की स्थापना अशान्ति के बाद होती है।
  4. आग को पानी से बुझा दिया जाता है।

प्रश्न 4.
नारी में ‘त्व’ प्रत्यय जोड़कर नारीत्व तथा पुरुष में ‘त्व’ प्रत्यय जोड़कर पुरुषत्व बना है। इसी प्रकार तीन और शब्द बनाइए।
उत्तर

  1. सती + त्व = सतीत्व
  2. मनुष्य + त्व = मनुष्यत्व
  3. देव + त्व = देवत्व।

प्रश्न 5.
इस पाठ में तुकान्त स्थिति समझकर तुक मिलाने वाले शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर

  1. छाती सिकन्दर की, तेग बाबर की
  2. सिहरती थी, उभरती थी।
  3. हर्ष और विक्रम, संवत्सरों का क्रम।
  4. शिवाजी ने, राणा प्रतापी ने।
  5. जग को, जग को, विस्तार चाहा है, अधिकार चाहा है।
  6. न चूकेंगे, नहीं देंगे।

प्रश्न 6.
“न यह समझो कि हिन्दुस्तान की तलवार सोई है” कविता में कौन-सा रस है ? नाम लिखकर स्थायी भाव भी लिखिए।
उत्तर
“न यह समझो कि हिन्दुस्तान की तलवार सोई है”, = इस कविता में वीर रस है। वीर रस का स्थायी भाव ‘उत्साह’ होता है।

न यह समझो कि हिन्दुस्तान की तलवार सोई है सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या

(1) न यह समझो कि हिन्दुस्तान की तलवार सोई है।
जिसे सुनकर दहलती थी कभी छाती सिकंदर की,
जिसे सुनकर कि कर से छूटती थी तेग बाबर की,
जिसे सुन शत्रु की फौजें बिखरती थीं, सिहरती थीं,
विसर्जन का शरण ले डूबती नावें उभरती थीं।
हुई नीली कि उसकी चोट से आकाश की छाती,
न यह समझो कि अब रण बाँकुरी हुँकार सोई है।
न यह …………… “

शब्दार्थ-सोई है नींद में है; दहलती- थर्राती, डर के मारे काँपती; कर से = हानि से; तेग बड़ी तलवार; बिखरती थीं = तितर-बितर हो जाते थे, सिहरती थीं = भय से रोम खड़े हो जाते थे, रोमांचित होती; विसर्जन = त्याग देना, छेड़ देना; उभरती = जल से ऊपर आकर दीखती हुई, रणबाँकुरी = युद्ध करने में बहुत ही तेज; हुँकार = वीरता की ऊँची आवाज, गर्जना।

सन्दर्भ-प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘ भाषा-भारती के पाठ ‘न यह समझो कि हिन्दुस्तान की तलवार सोई हैं से अवतरित है। इसके रचयिता रामकुमार चतुर्वेदी ‘चंचल हैं।

प्रसंग-इस पद्यांश में कवि ने भारतीय सैनिकों की वीरता और युद्ध करने की कला का वर्णन किया है।

व्याख्या-कवि कहता है कि हिन्दुस्तान की तेज तलवार सो गई है। ऐसा किसी भी शत्रु को नहीं समझ लेना चाहिए। तलवार से युद्ध करने में चतुर योद्धाओं की कहानी सुनकर सिकन्दर की छाती (दिल) भी डर से काँप उठती थी। उस तलवार से किए जाने वाले युद्ध की भयंकरता के विषय में सुनते ही बाबर के हाथों से उसकी तलवार छूट कर गिर पड़ती थी। भारतीय योद्धाओं की तलवार के कठोर प्रहारों के विषय में सुनकर शत्रुओं की सेना भी तितर-बितर हो जाती थी और भय से रोमांचित हो उठती थी। त्याग की शरण लेने वाली डूबती नौकाएँ भी उद्धार प्राप्त कर लेती थीं। अर्थात् युद्ध करना छोड़ करके शरण में आए हुए शत्रु की डूबती नैया उद्धार प्राप्त कर लेती थी। हिन्दुस्तानी वीर रण-बांकुरों की तेज तलवार की चोटों से आकाश की छाती भी नीली पड़ी हुई है। किसी को भी यह न समझ लेना चाहिए कि युद्ध में हिन्दुस्तानी वीर सैनिकों की हुँकार (गर्जना) सो चुकी है।

(2) कि जिसके अंश से पैदा हुए थे हर्ष और विक्रम,
कि जिसके गीत गाता आ रहा संवत्सरों का क्रम,
कि जिसके नाम पर तलवार खींची थी शिवाजी ने,
किया संग्राम अन्तिम श्वास तक राणा प्रतापी ने,
किया था नाम पर जिसके कभी चित्तौड़ ने जौहर,
च यह समझो कि धमनी में लहू की धार सोई है।
ने यह……”

शब्दार्थ-हर्ष = राजा हर्षवर्द्धन; विक्रम = विक्रमादित्य; संवत्सरों का क्रम = अनेक संवतों से (वर्षों से) लगातार; संग्राम = युद्ध; अन्तिम श्वास तक मरने तक राणा प्रतापीमहाराणा प्रताप; जौहर = आत्म सम्मान की रक्षा हेतु स्त्रियों द्वारा किया गया सामूहिक आत्मदाह (यह राजपूतों की एक परम्परा रही है); लहू = खून, रक्त।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग-पूर्व की तरह।

व्याख्या-यह हिन्दुस्तान वह देश है जिसके अंश से ही महाराज हर्षवर्द्धन और विक्रमादित्य ने जन्म लिया था। आज तक बीते हुए वर्षों से क्रमश: इसकी प्रशंसा के गीत गाये जाते रहे हैं। हिन्दुस्तान के नाम पर ही अर्थात् हिन्दुस्तान की लज्जा बचाने के लिए ही महाराज शिवाजी ने अपनी तलवार खींच ली थी अर्थात् युद्ध करके हिन्दुस्तान के गौरव की रक्षा की थी। इसके लिए ही मेवाड़ के राणा प्रताप ने भी अन्तिम श्वास तक (मृत्यु पर्यन्त) भीषण युद्ध किया था तथा चित्तौड़ ने भी हिन्दुस्तान के नाम पर जौहर की परम्परा चलाई थी। हे शत्रुओ ! तुम्हें भी यह नहीं समझ लेना चाहिए कि भारतवर्ष के वीरों की धमनियों के अन्दर बहने वाली रक्त (लहू) की धारा सो गई है।

(3) दिया है शान्ति का सन्देश ही हमने सदा जग को,
अहिंसा का दिया उपदेश भी हमने सदा जग को,
न इसका अर्थ हम पुरुषत्व का बलिदान कर देंगे।
न इसका अर्थ हम नारीत्व का अपमान सह लेंगे।
रहे इंसान चुप कैसे कि चरणाघात सहकर जब,
उमड़ उठती धरा पर धूल, जो लाचार सोई है।
न यह ……………..”

शब्दार्थ-जग को = संसार को; अहिंसा = मन, वचन और कर्म से किसी को भी चोट न पहुँचाना; नारीत्व = स्त्रीत्व; अपमान = बेइज्जती; इंसान- मनुष्य; चरणाघात = पैरों से पहुँचाई गई चोट को; लाचार = उपाय रहित, असहाय।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-कवि बताता है कि पद-दलित धूल भी अपनी लाचार दशा में आहत होकर भी जमीन से ऊपर उठती है।

व्याख्या-कवि यह बताते चलते हैं कि हम हिन्दुस्तानियों ने ही सदैव संसार को शान्ति का सन्देश दिया है तथा अहिंसा का उपदेश देकर मन, कर्म और वचन से सत्य का आचरण करने के लिए पूरे संसार को सलाह दी है। इसका यह अर्थ नहीं लगा लेना चाहिए कि हम अहिंसा का आचरण अपनाकर वीरता का त्याग कर देंगे और कायर बन जायेंगे और इसका यह अर्थ भी नहीं लगा लेना चाहिए कि हम नारीपन (स्त्रीत्व) के लिए किए गये अपमान को सह लेंगे। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि धरती पर पैरों के नीचे दबी कुचली धूल भी पैरों की ठोकर खाने पर आकाश में उमड़कर चारों ओर छा जाती है। वह (स्त्री रूपी धूल) किसी वजह से अपनी लाचारी की दशा में अपनी शक्ति को पहचानती नहीं रही है। यह उसकी सुप्त अवस्था थी, अज्ञानता थी, उसकी अशिक्षा थी।

(4) न सीमा का हमारे देश ने विस्तार चाहा है,
किसी के स्वर्ण पर हमने नहीं अधिकार चाहा है;
मगर यह बात कहने में न चूके हैं न चूकेंगे।
लहू देंगे मगर इस देश की माटी नहीं देंगे।
किसी लोलुप नजर ने यदि हमारी मुक्ति को देखा
उठेगी तब प्रलय की आग जिस पर क्षार सोई है।
न यह………..”

शब्दार्थ-विस्तार = बढ़ावा देना, विस्तृत करना; चाहा है = इच्छा की है; स्वर्ण = धन-दौलत; माटी = मिट्टी, जमीन ! का छोटा सा टुकड़ा भी; लोलुप – लोभी; नजर = दृष्टि; मुक्ति आजादी: प्रलय = नाश; क्षार = राख; सोई है छिपी हुई

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-कवि ने बताया है कि हम जो भारत राष्ट्र के वासी हैं, उन्होंने कभी भी विस्तारवादी नीति को नहीं अपनाया है।

व्याख्या-भारत देश के हम नागरिकों ने अपने देश की – सीमा को विस्तृत करना कभी नहीं चाहा है। साथ ही, हमने किसी अन्य देश की धन सम्पत्ति पर भी अपना कब्जा जमाने की इच्छा नहीं की है, लेकिन बिना किसी चूक के यह बात करने से नहीं रुकेंगे तथा कभी रुके भी नहीं हैं कि हम खून दे सकते हैं. लेकिन अपने प्रिय राष्ट्र (भारत) की जमीन का एक टुकड़ा भी नहीं देंगे। यदि किसी लालच भरी दृष्टि वाले देश ने इस पर आक्रमण करने की अथवा हमारे देश की आजादी को कुचलने , की कोशिश की भी तो तत्काल ही विनाश की आग फूट पड़ेगी ‘यद्यपि युद्ध की आग राख के अन्दर छिपी हो सकती है। कहने ‘ का तात्पर्य यह है कि हमारे अपने प्रिय देश पर किसी लालची दृष्टि वाले शत्रु-देश ने आक्रमण करने की कुचेष्टा की तो उस समय विनाश लीला की अग चारों ओर फैल जायेगी यद्यपि हम युद्ध नहीं चाहते। हम तो सदैव से शान्ति दूत रहे हैं।

MP Board Class 8 Hindi Question Answer