MP Board Class 8th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 14 नव संवत्सर
नव संवत्सर बोध प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए
उत्तर
नव संवत्सर = एक वर्ष की अवधि का समय; मत्स्य = मछली; उत्सव = पर्व, त्यौहार; कार्तिकादि = कार्तिक माह से प्रारम्भ होने वाला; अमान्त = अमावस्या को समाप्त होने वाला पक्ष; शृंगार = सजावट, सजना, सजाना; जयन्ती = जन्मदिन पीर=संत, महात्मा; सृष्टि रचना, जन्म देना, बनाना; वध = मार देना, नष्ट कर देना; चैत्रादि चैत्र माह से शुरू होने वाला; पूर्णिमान्त = पूर्णमासी को समाप्त होने वाला पक्ष; ऋतु = मौसम; सम्वर्द्धन = विकास, वृद्धि, बढ़ोतरी; आततायी = कष्ट पहुँचाने वाला, अत्याचारी।
प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर संक्षेप में लिखिए
(क) नव संवत्सर से क्या तात्पर्य है ?
उत्तर
नव संवत्सर से तात्पर्य है-नये वर्ष का प्रारम्भ। यह नव संवत्सर चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है।
(ख) गुड़ी पड़वा नाम का क्या अर्थ है ?
उत्तर
गुड़ी’ का अर्थ है ध्वज या झण्डी। पड़वा का अर्थ है प्रतिपदा। लोक में एक परम्परा व्याप्त है। उसके अनुसार यह माना जाता है कि इसी दिन श्री रामचन्द्रजी ने किष्किधा के राजा बाली का वध किया और उसके स्वेच्छाचारी राज्य का अन्त कर दिया। बाली वध के बाद वहाँ की प्रजा ने पताकाएँ फहराई और उत्सव मनाया। इन पताकाओं को महाराष्ट्र में गुड़ी कहते हैं। आज भी वहाँ इस दिन आँगन में बाँस के सहारे गुड़ी खड़ी की जाती है। इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा कहा जाता है।
(ग) विक्रम संवत् किसने प्रारम्भ किया?
उत्तर
उज्जयिनी के महान् सम्राट् विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रमणकारी शकों पर विजय प्राप्त की। इस विजय की खुशी में उन्होंने विक्रम संवत् आरम्भ किया। यह विक्रम संवत् ईसा के ईसवीय सन् से 57 वर्ष पूर्व प्रारम्भ किया गया।
(घ) बसन्त ऋतु का आगमन किस भारतीय माह में होता है ?
उत्तर
बसन्त ऋतु का आगमन चैत्र माह में होता है।
(ङ) दक्षिण भारत में विक्रम संवत् का प्रारम्भ किस भारतीय मास से होता है ?
उत्तर
दक्षिण भारत में विक्रम संवत् का प्रारम्भ कार्तिक मास से होता है।
प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(क) चैती चाँद पर्व भगवान ……….. की जयन्ती के रूप में मनाते हैं।
(ख) प्रत्येक चार वर्ष बाद अतिरिक्त माह को ……………… माह तथा उसके वर्ष को …………… वर्ष कहते हैं।
(ग) नवरात्रि बासंतीय..”माह में तथा नवरात्रिशारदीय ………… माह में आती है।
उत्तर
(क) झूलेलाल
(ख) अधिक, चन्द्रमास,
(ग) चैत्र, कार्तिक।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर विस्तार से लिखिए
(क) संवत्सरों का नामकरण किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर
संवत्सर का उपयोग समय की गणना के लिए एक वर्ष की अवधि के अर्थ में किया जाता है। ऋग्वेद और अथर्ववेद आदि प्राचीन ग्रन्थों में भी संवत्सर का एक काल चक्र के रूप में उल्लेख है। इस प्रकार समय की गणना करने की विधि अति प्राचीन है। जिस तरह हमारे यहाँ दिनों और महीनों के नाम दिए गए हैं; उसी तरह संवत्सरों का भी नामकरण किया गया है। ये साठ वर्ष बाद पनः एक चक्र के रूप में आते रहते हैं। विक्रम संवत 2063 का नाम विकारी नामक संवत्सर है। इसके पहले के दो संवत्सरों के नाम ‘हेमलम्ब नाम’ और ‘विलम्ब नाम संवत्सर थे।
(ख) भगवान झूलेलाल की पूजा क्यों की जाती है ?
उत्तर
भगवान झूलेलाल की पूजा इसलिए की जाती है कि वे साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता के प्रतीक हैं। उन्होंने सम्पूर्ण मानव जाति के कल्याण के लिए समानता के आधार पर स्थापित धर्म की सराहना की। उन्होंने धर्म के सच्चे स्वरूप का विवेचन कर लोगों को सही आचरण करने की सलाह दी। उन्होंने तत्कालीन मुस्लिम शासकों को कट्टरपंथी रुख न अपनाने के लिए विनती की। उन्होंने साम्प्रदायिक सद्भाव और एकता कायम रखने के लिए लोगों को बताया कि सत्य एक है, ईश्वर एक है, अल्लाह एक है। उसके नाम व रूप अनेक हैं। भगवान झूलेलाल ने सभी लोगों को विनम्रता और अपने कर्त्तव्य धर्म का पालन करने का उपदेश दिया। उन्होंने लोगों में सद्बुद्धि बनी रहे, इसके लिए समय-समय पर सभाएँ की। इनका जन्म संवत् 1007 वि. में नसरपुर में सूर्यवंशी क्षत्रियकुल में हुआ। इनके पिता का नाम रतन राय और माता का नाम देवकी था। कहते हैं कि इनके जन्म के समय से ही प्रत्येक हिन्दू घर में कलश पूजन (वरुण की पूजा) होने लगी। भगवान झूलेलाल की पूजा-अर्चना करने से मन की अभिलाषाएँ पूर्ण हो जाती हैं। ऐसा माना जाता है।
(ग) सौरवर्ष और चन्द्रवर्ष में क्या अन्तर है?
उत्तर
यह पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा लगभग 365 दिन में करती है। यह अवधि एक नक्षत्र सौरवर्ष कहलाती है जबकि चन्द्रवर्ष लगभग 354 दिन का होता है। इसे 360 तिथियों में बाँटते हैं। सौरवर्ष और चन्द्रवर्ष में सामंजस्य बनाने के लिए प्रत्येक 32 या 33 चन्द्रमासों के बाद एक अतिरिक्त चन्द्रमास जोड़ दिया जाता है। इस अतिरिक्त मास को अधिक मास या मलमास या लौंद का महीना कहते हैं। जिस वर्ष लौद का महीना होता है, उस वर्ष चन्द्र वर्ष 13 महीने का होता है।
(घ) सौरवर्ष और चन्द्रवर्ष के सामंजस्य के लिए क्या विधि अपनाते हैं?
उत्तर
चन्द्रवर्ष में लगभग 354 दिन होते हैं। इसे 360 तिथियों में बाँटते हैं। सौरवर्ष और चन्द्रवर्ष में सामंजस्य बनाने के लिए प्रत्येक 32 या 33 चन्द्रमासों के बाद एक अतिरिक्त चन्द्रमास जोड़ दिया जाता है। सौरवर्ष में 365 दिन होते हैं। इस सौर वर्ष के ही कारण ऋतुओं में परिवर्तन होता है। सौरवर्ष में बारह महीने होते हैं जबकि चन्द्रवर्ष में तेरह महीने होते है।
(ङ) विक्रम संवत् के अनुसार वर्ष के महीनों के नाम लिखिए।
उत्तर
विक्रम संवत् के अनुसार वर्ष के महीनों के नाम निम्न प्रकार हैं
- चैत्र
- बैसाख
- ज्येष्ठ
- आषाढ़
- श्रावण
- भाद्रपद
- आश्विन (क्वार)
- कार्तिक
- मार्गशीर्ष
- पौष
- माघ
- फाल्गुन।
(च) विक्रम संवत् की प्रथम तिथि में कौन-कौन से प्रसंग जुड़े हैं ? लिखिए।
उत्तर
विक्रम संवत् को प्रथम तिथि को गुड़ी पड़वा कहते हैं। इस दिन से भारतीय नववर्ष या संवत्सर का प्रारम्भ होता है। इसे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा भी कहते हैं। प्रजापति ब्रह्मा ने इसी तिथि को सृष्टि का सृजन किया। भगवान विष्णु ने भी इसी तिथि को मत्स्यावतार के रूप में अवतार लिया था। साथ ही यह भी कहा जाता है कि सतयुग का भी प्रारम्भ इसी तिथि को हुआ था। इसी प्रतिपदा के (पड़वा के) दिन भगवान श्री रामचन्द्रजी ने किष्किन्धा के राजा बाली का वध किया और उसके स्वेच्छाचारी राज्य का अन्त किया था। बाली वध के बाद प्रजा ने पताकाएँ बनाई, उन्हें फहराया गया और उत्सव मनाया गया, झण्डियों को गुड़ी कहते हैं। इसलिए इस तिथि को गुड़ी पड़वा कहते हैं। इस तरह इस तिथि से अनेक प्रसंग जुड़े हुए हैं।
नव संवत्सर भाषा-अध्ययन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का उच्चारण कीजिए और अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
चैत्र, पौराणिक, किष्किंधा, ऋग्वेद, अथर्ववेद, पूर्णिमा, विक्रमादित्य, स्वेच्छाचारी।
उत्तर
विद्यार्थी उपर्युक्त शब्दों को ठीक-ठीक पढ़कर उनका शुद्ध उच्चारण करने का अभ्यास करें।
वाक्य प्रयोग-
- चैत्र-चैत्र मास में बसन्ती हवाएँ चलती हैं।
- पौराणिक-भारतवर्ष में अनेक पौराणिक कथाएँ प्रचलित हैं।
- किष्किधा-किष्किधा में बाली का शासन था।
- ऋग्वेद-ऋग्वेद सबसे प्राचीन ग्रन्थ है।
- अथर्ववेद-अथर्ववेद पर अभी तक अधिक शोध नहीं
- पूर्णिमा-पूर्णिमा के दिन हम सभी उपवास करते हैं।
- विक्रमादित्य-विक्रमादित्य ने विक्रमी संवत् चलाया।
- स्वेच्छाचारी-किष्किंधा राज्य का शासक स्वेच्छाचारी
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में ‘इक’ प्रत्यय का प्रयोग करके नए शब्द बनाइए
प्रसंग, समाज, परिवार, नीति, साहित्य, मूल।
उत्तर
- प्रसंग + इक = प्रासंगिक
- समाज + इक = सामाजिक
- परिवार + इक = पारिवारिक
- नीति + इक = नैतिक
- साहित्य + इक = साहित्यिक
- मूल + इक = मौलिक।
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों की संधि विच्छेद कीजिए
स्वेच्छाचारी, विक्रमादित्य, सूर्योदय, पुस्तकालय, नरेन्द्र नीरोग, निष्कपट, प्रात:काल।
उत्तर
प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों के अर्थ शब्दकोश से खोजकर लिखिए और अपने वाक्य में प्रयोग कीजिए
पर्व, गणना, मलमास, उपलक्ष्य, प्रस्थान, सम्वर्द्धन।
उत्तर
प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों को वर्णक्रम के अनुसार लिखिए
शेखर, नव, पता, अखिल, चैत्र, उपयोग, ग्रंथों, ऋग्वेद, संवत्, विक्रम, बाद, रोचक, दक्षिण, और, तेरह, माह, कहा, आगमन।
उत्तर
अखिल, आगमन, उपयोग, और, ऋग्वेद, कहा, ग्रन्थों, चैत्र, तेरह, दक्षिण, नव, पता, बाद, माह, रोचक, विक्रम, शेखर, संवत्।
प्रश्न 6.
नीचे लिखे वाक्यों में विशेषण और विशेष्य छाँटकर तालिका में लिखिए
(क) नववर्ष बीते तो कितने दिन हो गए।
(ख) प्राचीन ग्रन्थों में भी संवत्सर का एक काल चक्र के रूप में उल्लेख है।
(ग) प्रत्येक माह के दो पक्ष होते हैं।
(घ) यह तो तुमने बड़ी रोचक बात बताई।
उत्तर
नव संवत्सर परीक्षोपयोगी गद्यांशों की व्याख्या
(1) पौराणिक कथाओं के अनुसार प्रजापति ब्रह्मा ने इसी तिथि को सृष्टि का सृजन किया था, भगवान विष्णु भी मत्स्यावतार के रूप में इसी तिथि को प्रकट हुए थे और सतयुग के प्रारम्भ होने की भी यही तिथि है।’
शब्दार्थ-पौराणिक = पुराण सम्बन्धी; सृष्टि = सभी प्राणियों का; सृजन = निर्माण; मत्स्यावतार = मछली के अवतार; प्रकट = अवतरित; प्रारम्भ होने की = शुरू होने की।
सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक भाषा-भारती के पाठ ‘ नव संवत्सर’ से अवतरित है।
प्रसंग-इसमें लेखकगण नव संवत्सर के शुरू होने और उसके महत्त्व को बताते हैं।
व्याख्या-पुराण की अनेक कथाओं में बताया गया है कि विश्व के सभी प्राणियों के स्वामी ब्रह्मा ने इसी तिथि को उनकी रचना की थी। भगवान विष्णु ने भी इसी तिथि (दिनांक) को मत्स्यावतार (मछली के रूप में जन्म लेना) के रूप में अवतरित हुए थे। साथ ही, इसी तिथि को सतयुग का प्रारम्भ हुआ था। यह तिथि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा ही है जिस दिन से संवत्सर का प्रारम्भ होता है।
(2) गुडी का अर्थ है ‘ध्वज या झण्डी’ और पड़वा कहते हैं प्रतिपदा को। लोक परम्परा के अनुसार माना जाता है कि इसी दिन श्री रामचन्द्रजी ने किष्किंधा के राजा बाली का वध कर उसके स्वेच्छाचारो राज का अन्त किया था। बाली वध के पश्चात् वहाँ की प्रजा ने पताकाएँ, जिन्हें महाराष्ट्र में गुड़ी कहते हैं, फहराकर उत्सव मनाया था। आज वहाँ आँगन में बांस के सहारे गुड़ी खड़ी की जाती है। इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी प्रतिपदा कहते
शब्दार्थ-गुड़ी = झण्डी; परम्परा = रीति; वधकर = बाण से मारकर; स्वेच्छाचारी = अपनी इच्छा के अनुसार अन्त किया समाप्त किया; पताकाएँ = झण्डियाँ; उत्सव = त्योहार; पड़वा = प्रतिपदा
सन्दर्भ-पूर्व की तरह। प्रसंग-इसमें चैत्र प्रतिपदा से जुड़ी बातें बताई गई हैं।
व्याख्या-गुड़ी का अर्थ झण्डी अथवा ध्वज होता है। प्रतिपदा को पड़वा कहते हैं। लोक में प्रचलित एक परम्परा के अनुसार यह बात मानी जाती है कि किष्किन्धा का राजा बाली था। बाली का वध श्री रामचन्द्रजी ने इसी दिन (चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को) किया था और इस प्रकार उसके राज्य का अन्त कर दिया था। वह अपने राज्य का संचालन अपनी इच्छा से करता था। जैसे ही राजा बाली का वध कर दिया गया, वैसे ही वहाँ की प्रजा ने खुशी मनाई और घर-घर पताकाएँ फहराई गई। इसी पड़वा या प्रतिपदा के दिन वहाँ उत्सव मनाया गया। महाराष्ट्र में पताकाओं को गुड़ी कहते हैं। वहीं इस प्रतिपदा के दिन आँगन में एक बाँस गाड़ दिया जाता है। उसके सहारे गुड़ी खड़ी की जाती है। इस कारण चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को गुड़ी पड़वा कहते हैं।
(3) विक्रम संवत् का प्रचलन उज्जयिनी के महान् सम्राट विक्रमादित्य ने विदेशी आक्रमणकारी शक राजाओं पर अपनी विजय के उपलक्ष्य में ईसा पूर्व सन् 57 में किया
शब्दार्थ-प्रचलन = प्रारम्भ; उज्जयिनी = उज्जैन; आक्रमणकारी = आक्रमण करने वाले या आक्रान्ता; शक = शक जाति जो विदेशों के आक्रमण करने वाले थे; उपलक्ष्य में = सन्दर्भ में, विषय में; विजय = जीत।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-इन पंक्तियों में विक्रम संवत् के प्रारम्भ होने के विषय में बताया जा रहा है।
व्याख्या-उज्जयिनी के एक महान् सम्राट थे। उनका नाम विक्रमादित्य था। शक राजाओं ने विक्रमादित्य के राज्य पर आक्रमण कर दिया था। इन विदेशी आक्रमण करने वाले शक राजाओं को विक्रमादित्य ने परास्त कर दिया। उन पर जीत प्राप्त की। अपनी जीत के सन्दर्भ की खुशी में यह संवत् चलाया। यह संवत् ईसा सन् से सत्तावन बर्ष पूर्व प्रारम्भ किया गया। इस संवत् का नाम उनके नाम के आधार पर विक्रम संवत् किया गया।
(4) उत्तर भारत में विक्रम संवत् का प्रारम्भ चैत्र प्रतिपदा से होता है, इसे चैत्रादि कहते हैं जबकि दक्षिण भारत में संवत्सर का आरम्भ कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से माना जाता है, इसे कार्तिकादि कहते हैं। व्यापारी लोग भी कार्तिकादि नववर्ष मनाते हैं, इसलिए वे दीवाली पर नया बहीखाता प्रारम्भ करते हैं।
शब्दार्थ-प्रारम्भ = प्रचलन, शुरुआत; प्रतिपदा = पड़वा; चैत्रादि- चैत्र (चैत महीने) का प्रारम्भ; कार्तिकादि = कार्तिक महीने का प्रारम्भ; नववर्ष = नया साल; प्रारम्भ = शुरू।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-नव संवत्सर के प्रचलन के दो रूप बताये गये हैं।
व्याख्या-उत्तरी भारत में नव संवत्सर का प्रारम्भ चैत्र के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा (पड़वा) से माना जाता है। इसे | चैत्रादि कहते हैं। जबकि दक्षिण भारत में नव संवत्सर का प्रचलन कार्तिक महीने की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होना माना गया है। इसको कार्तिकादि कहते हैं। व्यापारी वर्ग कार्तिकादि नववर्ष का उत्सव मनाते हैं। यही कारण है कि वे दीपावली पर नया बहीखाता बनाते हैं और उसे प्रारम्भ करते हैं।
(5) चैत्र माह में बसन्त ऋतु का आगमन होता है। बसन्त . ऋतु में प्रकृति भी अपना नव श्रृंगार करती है। पेड़ अपने पुराने पत्ते गिराकर नए पत्ते धारण करते हैं। ऋतु परिवर्तन के अवसर पर हमारे यहाँ नवरात्रि पर्व मनाने की परम्परा है। चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से प्रारम्भ होने वाली नवरात्रि वासन्तीय नवरात्रि एवं पितृमोक्ष अमावस्था के पश्चात् प्रारम्भ होने वाली नवरात्रि शारदीय कहलाती हैं। ‘वासन्तीय नवरात्रि’ का समापन रामनवमी और ‘शारदीय नवरात्रि’ का समापन दशहरा पर्व पर होता है।
शब्दार्थ-आगमन = आना या शुरू होना; नव श्रृंगार = नई सजावट, सजधज; धारण करते हैं = निकल आते हैं; परिवर्तन = बदलाव; परम्परा = रीति या रिवाज, प्रथा, प्रारम्भ = शुरू होना; वासन्तीय = वसन्त ऋतु की; समापन = समाप्ति, अन्त; शारदीय = शरद ऋतु की; पर्व = त्यौहार।
सन्दर्भ-पूर्व की तरह।
प्रसंग-शारदीय नवरात्रि और वासन्तीय नवरात्रि के प्रारम्भ होने की तिथि तथा उनके समापन की तिथि के विषय में बताया जा रहा है।
व्याख्या-चैत्र महीने में बसन्त ऋतु प्रारम्भ हो जाती है। बसन्त ऋतु के आने के साथ ही प्रकृति अपना नया शृंगार करती है। अपनी सजावट करती है। प्रकृति अपने स्वरूप को सजाती है। पेड़ों के पुराने पत्ते झड़ जाते हैं। उन पर नये पत्ते निकल आते हैं। प्रकृति में ऋतु सम्बन्धी परिवर्तन आ जाता है। ऋतु परिवर्तन के साथ ही हमारे यहाँ नवरात्रि का त्यौहार मनाये जाने की यह रीति है, परम्परा है। चैत्र मास की शुक्ल पक्षीय प्रतिपदा के दिन आरम्भ होने वाली नवरात्रि को वासन्तीय नवरात्रि कहा जाता है तथा पितृ पक्ष की समाप्ति पर अमावस्या के अगले – दिन से आरम्भ होने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि कहते हैं। वासन्तीय नवरात्रि की समाप्ति रामनवमी को होती है तथा शारदीय नवरात्रि का समापन दशहरा के त्यौहार पर होता है।