MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 11 वात्सल्य के पद

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MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 11 वात्सल्य के पद

MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Chapter 11 पाठ का अभ्यास

बोध प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

(क) कृष्ण, माँ यशोदा से किसकी शिकायत कर रहे हैं?
उत्तर
कृष्ण, माँ यशोदा से बलदाऊ या बलराम की शिकायत कर रहे हैं।

(ख) बलराम कृष्ण को क्या कहकर चिढ़ाते हैं?
उत्तर
बलराम कृष्ण को मोल देकर खरीदा हुआ बताते हैं। ‘यशोदा ने उसे जन्म नहीं दिया है। उसके (कृष्ण के) माता-पिता कौन हैं ? नन्द और यशोदा दोनों ही गोरे रंग के हैं, उसका शरीर साँवला क्यों है?’ इस तरह की अनेक बातें कहकर बलराम कृष्ण को चिढ़ाते रहते हैं।

(ग) यशोदा कृष्ण पर क्यों रीझ रही हैं ?
उत्तर
यशोदा ने बालक कृष्ण के मुख से क्रोध भरी बातें सुर्नी, तो यशोदा कृष्ण पर रीझने लग गई।

(घ) यशोदा ने गोधन की कसम खाकर क्या कहा ?
उत्तर
यशोदा ने गोधन की कसम खाकर कहा कि वह उसकी (कृष्ण की) माता है और वह (कृष्ण) उसका पुत्र है।

(ङ) कृष्ण को किन चीजों के प्रति अरुचि है?
उत्तर
कृष्ण को पकवान और मेवाओं के प्रति अरुचि है।

(च) ब्रज-युवती के मन में क्या इच्छा है ?
उत्तर
ब्रज-युवती के मन में इच्छा है कि वह (बालक कृष्ण) उस युवती के घर में चोरी-चारी मक्खन खाने जायें और जब कृष्ण मक्खन की मटकी से मक्खन खाते हुए बैठे हों, तो वह (ब्रज युवती) उन्हें छिपकर देखे। यही उस ब्रज-युवती की कामना है।

(छ) गोपी प्रातः कहाँ गई थी?
उत्तर
गोपी प्रातः नन्द बाबा के भवन (घर) गई थी।

(ज) यशोदा कृष्ण का किस तरह शृंगार कर रही है ?
उत्तर
यशोदा ने कृष्ण के शरीर पर तेल लगा दिया है, आँखों में काजल लगाकर भौहें बना दी हैं। उनके माथे पर काला टीका लगा दिया है।

प्रश्न 2.
दिये गये चार उत्तरों में से सही उत्तर छाँटकर लिखो

(क) कृष्ण को कौन चिढ़ा रहा है?
(1) सुदामा
(2) नन्द बाबा
(3) ग्वाल बाल
(4) बलराम।
उत्तर
(4) बलराम।

(ख) कृष्ण को क्या अच्छा लगता है ?
(1) दूध
(2) दही
(3) मक्खन
(4) छाछ (मट्ठा)
उत्तर
(3) मक्खन

(ग) यशोदा किसका श्रृंगार कर रही है ?
(1) बलदाऊ
(2) कृष्ण
(3) उद्धव
(4) मनसुखा
उत्तर
(2) कृष्ण।

प्रश्न 3.
रिक्त स्थान भरिए”

(क) कहा कहो एहि रिसके मारे ………… हौं नहिं जात।
(ख) तारी दै-दै हँसत ग्वाल सब सिखै देत ………..
(ग) सूर ………. मोहि गोधन की सौं हौं माता तू पूत।
(घ) सूरदास प्रभु अन्तरजामी……… मन की जानी।
(ङ) तेल लगाई, लगाई के अंजन ……… बनाई, बनाई डिठौनहि।
उत्तर
(क) खेलन
(ख) बलवीर
(ग) श्याम
(घ) ग्वालिनि
(ङ) भौंह

प्रश्न 4.
इन पंक्तियों का अर्थ के साथ मिलान कीजिए
MP Board Class 7th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 11 वात्सल्य के पद 1
उत्तर
1. →(घ), 2.→(ङ), 3.→(क), 4.→(ख), 5.→(ग)

भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों में स्थानीय बोली (ब्रज) और मानक भाषा के शब्द दिए गये हैं। उनके सही जोड़े मिलाइए
तारी, माखन, मक्खन, ठाढ़ी, भवन, भौन, जुग, करोड़, ताली, युग, करोर, युवती, खड़ी, जुवती, पूत, पुत्र।
उत्तर

  1. तारी-ताली
  2. माखन-मक्खन
  3. ठाढ़ीखड़ी
  4. भौन-भवन
  5. जुग-युग
  6. जुवती-युवती
  7. पूत-पुत्र
  8. करोर-करोड़।

प्रश्न 2.
इस पाठ में से अनुप्रास अलंकार के कुछ उदाहरण छाँटकर लिखिए।
उत्तर
कहा कहाँ, कहत कौन, मोही को मारन, मोहन मुख, जसुमति सुन सुन,
माता तू पूत, लगाई-लगाई, बनाई-बनाई, निहारत, बारत, चुचकारत।

प्रश्न 3.
विभिन्न प्रकार के शब्द-युग्म लिखिए।
उत्तर

  1. पुनि-पुनि
  2. दै-दै
  3. सुन-सुन
  4. मन-मन

प्रश्न 4.
(क) निम्नलिखित शब्दों के समानार्थी शब्द लिखिए
भैया, शरीर, मुख, पूत ,भौन, भोर।
उत्तर
भैया = भाई
शरीर = तन (देह)
मुख = मुँह
पूत = पुत्र
भौन – सवेरा

(ख) मैया मोहि दाऊ बहुत खिझायो।
मौसों कहत मोल को लीन्हों,
तोहि जसुमति कब जायो।।

(1) यहाँ कौन किससे कह रहा है ?
उत्तर
यहाँ बालक कृष्ण अपनी माता यशोदा से कह रहा है।

(2) इसमें माता और पुत्र के बीच कौन-सा भाव प्रतीत या जागृत हो रहा है?
उत्तर
इसमें माता और पुत्र के बीच वात्सल्य भाव प्रतीत या जागृत हो रहा है।

प्रश्न 5.
इस पाठ के अतिरिक्त आपकी पाठ्य पुस्तक में से वात्सल्य रस का एक उदाहरण लिखिए।
उत्तर
मइया हौं न चरैहाँ गाई।।
सिगरे ग्वाल घिरावत माँसों मेरे पाईं पिराई।।
जौ न पत्यहि, पूछि बलदाऊहि अपनी सौह दिवाइ।
यह सुनि-सुनि जसुमति ग्वालिनि को, गारी देत रिसाइ।।
मैं पठवति अपने लरिका कौं, आपै मन बहराइ।
‘सूर’ स्याम मेरो अति बालक, मारत ताहि रिंगाई।।

वात्सल्य के पद सम्पूर्ण पद्यांशों की व्याख्या

सूरदास

1. मैया, मोहि दाऊ बहुत खिजायो।
मोसों कहत मोल को लीन्हों, तोहि जसुमति कब जायो।
का कहों एहि रिस के मारे, खेलन हौं नहिं जात।
पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तुम्हरो तात।
गोरे नन्द, यशोदा गोरी, तुमकत श्याम शरीर।
तारी दै-दै हँसत ग्वाल सब, सिखै देत बलवीर।
तू मोही को मारन सीखी, दाउहि कबहुँन खीझे।
मोहन-मुख रिस की ये बातें जसुमति सुन-सुन रीझै॥
सुनहुँ श्याम बलीभद्र चबाई जनमत ही को धूत।
सूर-श्याम मोहि गोधन की सौँ हौँ माता तू पूत॥

शब्दार्थ-मोहि = मुझको; खिजायो = चिढ़ाता है; मोसों = मुझे या मुझको; मोल को लीन्हो मूल्य देकर लिया है; तोहि = तझको: जसमति = यशोदा ने जायो = जन्म देना; एहि = इस रिस के मारे = क्रोध या नाराजगी के कारण हौँ = मैं; नहिं जात = नहीं जाता हूँ; पुनि-पुनि = बार-बार; कहत = कहता है; को है = कौन है ?; तात = पिता; कत = क्यों; तारी दै-दै = ताली बजा-बजाकर; सिखै देत = सिखा देता है; बलवीर = बलदाऊ; मोही को = मुझको; खीझै = क्रोध करना; रिस = क्रोध; सुन-सुन-सुनते हुए; रीझै- प्रसन्न होती है; चबाई = चुगलखोर या इंधर-उधर की बातें जोड़-तोड़ कर बताने वाला; धूत = धूर्त; गोधन = गाय रूपी धन; सौं = शपथ लेकर (कहती हूँ); पूत = पुत्र।

सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘वात्सल्य के पद’ शीर्षक से अवतरित है। इसके रचयिता वात्सल्य सम्राट सूरदास हैं।

प्रसंग-कवि ने बालक कृष्ण द्वारा अपनी माता यशोदा से 1 बलदाऊ के विरुद्ध शिकायत करने के दंग का वात्सल्य प्रधान वर्णन किया है।

व्याख्या-है मेरी माँ ! मुझे बलदाऊ ने बहुत अधिक । चिढ़ाया है। वह मुझसे कहता है कि तूने कुछ मूल्य देकर मुझे खरीदा है। तुझे (मुझको) यशोदा माँ ने जन्म कब दिया है। इसी के कारण मुझे क्रोध आ गया है। अत: मैं क्या कहूँ? मैं खेलने के लिए नहीं जाता। वह (बलदाऊ) मझ से बार-बार पूछता है कि तुम्हारी माता कौन है तुम्हारा पिता कौन है ? देखो तो; बाबा नन्द और माता यशोदा दोनों ही गोरे रंग के हैं तो फिर तुम साँवले । क्यों हो? इस प्रकार सभी ग्वाले तालियाँ बजा-बजाकर मेरी हँसी उड़ाते हैं।

इस तरह बलदाऊ उन सबको सिखा देते हैं। तू मुझे ही मारना सीखी है, बलदाऊ पर कभी भी क्रोध नहीं करती। इस तरह, बालक कृष्ण के मुख से क्रोध की बातें सुन-सुनकर माता यशोदा बहुत अधिक प्रसन्न होती हैं और कहने लगी कि हे श्याम। यह बलदाऊ तो अपने जन्म से चुगलखोर है, धूर्त है। सूरदास वर्णन करते हैं कि माता यशोदा कहने लगी कि हे श्याम ! मैं अपने गाय-धन (सभी गौओं) की शपथ लेकर कहती हूँ कि मैं तेरी माँ हूँ और तू मेरा पुत्र है।

2. मैया री, मोहि माखन भावै।
जो मेवा पकवान कहति तू, मोहि नहीं रुचि आवै॥
ब्रज जुवती इक पाॐ ठाढ़ी, सुनत श्याम की बात।
मन-मन कहति कबहुँ अपनै घर देखों माखन खात॥
बैठे जाई मथनियाँ के ढिंग मैं तब रहों छपानी।
सूरदास प्रभु अन्तरजामी ग्वालिनि मन की जानी॥

शब्दार्थ-मोहि = मुझको; माखन = मक्खन; भावै = अच्छा लगता है; कहति तू = तू जो कहती है;
रुचि आवै = अच्छे लगते हैं; जुवती-युवती; इक-एक; पाएँ- पीछे; ठाढ़ी = खड़े होकर सुनत = सुनती है; मन-मन कहति = अपने मन में सोचती है अथवा कामना करती है; कबहुँ = कभी तो; देखों = देखें माखन खात = मक्खन खाते हुए; जाई = जाकर के; मथनियाँ = मटकी; ढिंग = पास; तब = उस समय; रही छपानी -छिपकर रहूँ: अन्तरयामी- हृदय की बात को जानने वाले; ग्वालिनि मन = गोपी के मन की जानी = (बात-कामना) को जान लिया।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-बालक कृष्ण माता यशोदा को स्पष्ट रूप से यह बता देते हैं कि उन्हें (बालक कृष्ण को) तो मक्खन ही अच्छा लगता है।

व्याख्या-हे माता, मुझे तो मक्खन खाना अच्छा लगता है। जिन मेवाओं और पकवान के विषय में, तुम मुझसे कहती हो, वे मुझे अच्छे नहीं लगते। ब्रज की एक युवती श्याम की इन सभी बातों को पीछे खड़ी होकर सुनती है। वह अपने मन में कामना करती है कि मैं श्याम को अपने घर में मक्खन खाते हुए (कभी तो) देखें। जैसे ही वे मक्खन की मटकी के पास जाकर बैठे, तब (तैसे ही) मैं (वहाँ) छिप जाऊँ। सूरदास कहते हैं कि प्रभु (बालकृष्ण) अन्तरयामी हैं, उन्होंने उस गोपी के मन की बात को जान लिया।

रसखान

3. आज गई हुती भोरहि हौं,
रसखानि रई कहि नन्द के भौनहि।
बाको जियो जुग लाख करोर,
जसोमति को सुख जात कहो नहिं।
तेल लगाई, लगाई के अंजन,
भौंह बनाई, बनाई डिठीनहि।
डालि हमेलानि हार निहारत,
बारत ज्यों पुचकारत छौनहिं॥

शब्दार्थ-गई हुती = गई हुई थी; हौं = मैं; रई कहि- रई माँगने के लिए (लकड़ी की बनी हुई रई (मथानी) से दही को बिलोया (मथा) जाता है); भौनहि- भवन को, घर को; बाकी = उसका; जियो – जीवित रहे; जुग लाख करोर – (युगों तक, लाख वर्ष तक, करोड़ वर्ष तक) अर्थात् दीर्घायु हो जात कहो नहिं = वर्णन नहीं किया जा सकता; अंजन = काजल; डिठौनहि = काला टीका (किसी की नजर लगने से बचाने के लिए मस्तिष्क के एक ओर काला टीका लगा दिया जाता है); हमेलानि – गले में धारण किये जाने वाला स्वर्ण अथवा चाँदी का आभूषण; निहारत = देखते हुए; बारत = न्योछावर करते हैं; ज्यों में जैसे ही; पुचकारत = पुचकारते हुए; छौनहिं = बालक को; भोरहि = प्रातः काल ही।

सन्दर्भ-प्रस्तुत पंक्तियाँ रसखान द्वारा रचित ‘सवैया’ की

प्रसंग-इस सवैया छन्द में रसखान किसी गोपिका के वात्सल्य का वर्णन करते हैं।

व्याख्या-एक गोपिका अन्य गोपी से कहती है कि मैं आज प्रातः ही अपने घर के लिए बाबा नन्द के घर से ‘रई’ माँगने के लिए गई हुई थी। (तो मैंने यशोदा के बालक को देखा) वह दीर्घायु हो। उस यशोदा के सुख का वर्णन नहीं किया जा सकता अर्थात् उसका सुख अपार है। उसने अपने बालक को तेल लगाया हुआ था, उसकी आँखों में काजल लगाकर उसकी भौहें बना दी थी और उसके माथे पर काला टीका लगा दिया था (जिससे उस सुन्दर बालक को किसी की नजर न लग सके।) मैंने जैसे ही उस कोमलाङ्ग बालक (पुत्र) को पुचकारा तो उस पुचकार के लिए उसके ऊपर मैं अनेक हार और हमेलों को न्यौछावर कर सकती हूँ।

वात्सल्य के पद शब्दकोश

जायो = जन्म देना; दाऊ = बलदाऊ; जुवती – युवती; रई = मथानी-दही बिलोने के काम में आने वाला लकड़ी का औजार; अन्जन = काजल; रिस- क्रोध, गुस्सा; एहि = इसके; ढिंग = समीप, पास; कहि- कहकर; डिठौनहि = काला टीका जो मस्तक के एक ओर लगाया जाता है, किसी की नजर लगने के प्रभाव से बचने के लिए; पुनि-पुनि = बार-बार; हौँ = मैं; छपानी-छिपकर; भौनहि- घर को; हमेलानि गले में धारण किये जाने वाला स्वर्ण अथवा चाँदी का आभूषण; सौं- शपथ लेकर; भावै = अच्छा लगता है; हुती – हुई थी; वाकी = उसका; पुचकारत – पुचकारते हुए।