MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 8 देवताओं के अंचल में

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 8 देवताओं के अंचल में (अज्ञेय)

देवताओं के अंचल में अभ्यास-प्रश्न

देवताओं के अंचल में लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कुलू में भारी मेला कब लगता है? वहाँ कौन-कौन-सी चीजें विकने आती
उत्तर
कुलू में दशहरे के अवसर पर बड़ा भारी मेला लगता है। रंग-बिरंगे कम्बल, पटू-पट्टियाँ, पश्मीना, ‘चरू’ और अन्य प्रकार की खालें-रीछ की, मग की, बाघ की, कभी-कभी बर्फ के बाघ (स्नो-लेपड) की तरह-तरह के जूते, मोजे, सिली-सिलाई पोशाकें, टोपियाँ, बाँसुरी, बर्तन, पीतल और चाँदी के आभूषण, लकड़ी, हड़ी और सींग की कंधियाँ, देशी और विदेशी काँच, बिल्लौर और पत्थर के मनकों के हार-न जाने क्या-क्या चीजें वहाँ बिकने आती हैं।

प्रश्न 2.
‘हिमालयन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ किसके द्वारा स्थापित किया गया और यह संस्था किस संबंध में कार्य करती है?
उत्तर
रूसी कलाकार रोयरिक द्वारा स्थापित हिमालयन रिसर्च इंस्टीट्यूट है। यह संस्था रोयरिक के भाई डॉक्टर जॉर्ज रोयरिक की देखरेख में हिमालय की भाषाओं, जातियों, लोक-साहित्य और वनस्पतियों के संबंध में अनुसंधान करती है। स्वयं रोयरिक भी अक्सर यहीं रहते हैं।

प्रश्न 3.
लेखक ने ऊनी कपड़ों के लिए बढ़िया लांड्री किसे कहा है?
उत्तर
कट्राई से आगे कलाथ है। उसमें गर्म पानी का कुंड है। उसमें गंधक और अन्य रसायन काफी मात्रा में होते हैं। इसे ही लेखक ने ऊनी कपड़ों के लिए बढ़िया लाँड्री कहा है।

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प्रश्न 4.
कुलू प्रदेश को ‘देवताओं का अंचल’ कहा है, क्यों? अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
कुलू प्रदेश को ‘देवताओं का अंचल’ कहा है। यह इसलिए कि यहाँ सैकड़ों देवी-देवताओं और उनके मंदिर हैं। और साल में एक बार वे अपने-अपने रथों में बैठकर कुलू के रघुनाथ मंदिर में प्रतिष्ठित राम की उपासना के लिए जाते हैं। इस विराट देव सम्मेलन के कारण भी लेखक ने कुल प्रदेश को देवताओं का अंचल कहा

प्रश्न 5.
लेखक ने ‘मनाली’ के नामकरण के पीछे क्या कारण बताया है?
उत्तर
लेखक ने ‘मनाली’ का नाम यहाँ अधिक संख्या में पाया जाने वाला मुनाल नामक पक्षी से सम्बन्धित बताया है। लेखक ने यह भी कहा है कि कुछ लोग मनाली को वहाँ के सेबों और नाशपाती के कारण ही जानते हैं।

देवताओं के अंचल में दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पाठ के आधार पर ‘कुलू’ व ‘मनाली’ के प्राकृतिक सौंदर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर
कुलू को प्राचीन हिंदू-सभ्यता का हिण्डोला (झूला) कहा जा सकता है। यहाँ के हरेक कस्बे और गाँव के अपने-अपने देवता हैं। उनके अपने-अपने मंदिर और भक्त हैं। साल में एक बार वे सभी अपने-अपने रथों में बैठकर कुलू के रखनाथ मंदिर में प्रतिष्ठित राम की उपासना के लिए जाते हैं। इसलिए कल प्रदेश को ‘देवताओं का अंचल’ (बली ऑफ दि गॉङ्स) कहते हैं। दशहरे के अवसर पर यहाँ बहुत बड़ा मेला लगता है। उसमें अनेक प्रकार की जीवनोपयोगी वस्तुएँ बेची जाती हैं। कुलू-प्रांत में व्यास कुंड तथा व्यास मुनि, बशिष्ठ आदि ऋषि-मुनियों के स्थान हैं, पांडवों के मंदिर हैं. भीम की पत्नी हिडिंबा देवी भी पूजा पाती है, और सबसे बढ़कर महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वहाँ पर ‘मनु रिखि’ या मन भगवान का भी एक मंदिर है। शायद भारत में एकमात्र स्थान है, जहाँ मानवता का यह स्वयंभू आदिम प्रवर्तक मंदिर में प्रतिष्ठित हो और पूजा पाता हो।

मनाली का नामकरण यहाँ अधिक संख्या में पाया जानेवाला मुनाल नामक पक्षी के नाम पर हुआ है। कुछ लोग यहाँ के सेब और नाशपाती की श्रेष्ठता के कारण इसे जानते हैं। मनाली की दो बस्तियाँ हैं-एक तो बाहर से आकर बसे हुए लोगों द्वारा बनाए हए बंगलों और बाजार वाली चस्ती, जो दाना कहलाती है, और दूसरी उससे करीब मील भर ऊपर चलकर खास मनाली गाँव की। मोटर दाना तक जाती है। दाना से सड़क फिर व्यास नदी पार करके रोहतंग की जोत से होकर लाहौर को चली जाती है। इसी मार्ग पर मनाली से दो मील की दूरी पर वशिष्ठ नाम का गाँव है, जहाँ गरम पानी के कंड है। और वशिष्ठ मंदिर भी हैं। कहते हैं कि वशिष्ठ ऋषि यहीं तपस्या करते-करते पाषाण हो गए थे, पाषाण-मूर्ति वहाँ पूजी भी जाती हैं। यहाँ पानी में गंधक की मात्रा काफी है, और यह स्वास्थ्य के लिए बहुत अच्छा है।

प्रश्न 2.
‘कुलू’ प्राचीन हिंदू सभ्यता का गहबारा है।’ लेखक के इस कवन का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘कुलू’ प्राचीन हिंदू सभ्यता का गहवारा है। लेखक के इस कथन का आशय यह है कि यहाँ के हरेक कस्बे और गाँव के अपने-अपने देवताओं के मंदिर हैं। वे साल में एक बार अपने रथ में बैठकर कुलू के रघुनाथ मंदिर में प्रतिष्ठित राम की उपासना के लिए जाते हैं। इससे हिन्दू सभ्यता की अच्छी झलक मिलती है।

प्रश्न 3.
कोकसर के मार्ग में बर्फानी सौंदर्य का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर
कोकसर के मार्ग में पड़ने वाले बर्फीले सौंदर्य अद्भुत और बेजोड़ हैं। कुछ मीलों के क्षेत्रफल एक प्याला के समान बना हुआ दृश्य है। उसके चारों ओर बर्फ की ऊँची-ऊँची चोटियाँ हैं। उनके नीचे पहाड़ के खुले रूप हैं, जो काले दिखाई देते हैं। उस प्याले के बीच में बर्फ से ढका हुआ बहुत बड़ा मैदान है। उसे देखकर ऐसा लगता है, मानो अभिमान में आकर पहाड़ की इन ऊँची-ऊँची चोटियों ने अपने सिर और कटि-प्रदेश को ढक लिया है।

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प्रश्न 4.
कुलू और मनाली में कौन-कौन से दर्शनीय स्थल हैं तथा उनका क्या महत्त्व है?
उत्तर
कुलू में प्राकृतिक सौंदर्य अद्भुत रूप में दिखाई देता है। यहाँ अनेक देवी-देवताओं के मंदिर हैं। वे बड़े ही मनोरम हैं। यहाँ कट्राई सबसे सुंदर स्थान है। फैले हए धान के खेतों के बीच-बीच में सेब, नाशपाती, खुबानी, आड़ और आलचे के पेड़ मन को मोह लेते हैं। यहाँ के पुराने राजाओं के महल आदि अनेक दर्शनीय इमारतें और कुछ प्राचीन मंदिर हैं। मनाली का मुनाली पक्षी बहुत ही सुंदर होता है। मनाली से दो मील की दूरी पर वशिष्ठ गाँव में गरम पानी के कुंड हैं और वशिष्ठ मंदिर भी है। यहाँ के पानी में गंधक की मात्रा अधिक है, जो स्वास्थ्य के लिए बहुत ही लाभदायक है।

प्रश्न 5.
कट्राई के सौंदर्य को अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
कट्राई के सौंदर्य उसकी सड़क के हर मोड़ पर दिखाई देते हैं। एक ओर ऊँचे-ऊँचे चीड़ के जंगल हैं, तो दूसरी ओर फैली तराई में धान के खेत लहराते हुए दिखाई देते हैं। वे मानों मखमली आँगन हैं। इसी सड़क पर जगत सुख एक ऐसा गाँव है, जहाँ अनेक दर्शनीय पुराने मंदिर हैं।

देवताओं के अंचल में भाषा-अध्ययन

1. पाठ में कई ऐसे शब्द भी आए हैं जिनके एक से अधिक अर्थ मिल जाते हैं। जैसे-सोते (स्रोत, झरना) सोना (क्रिया) हार (पराजय, माला)।
निम्नलिखित शब्दों के एक से अधिक अर्थ बताइए
सोना, तीर, मत, अंबर, श्री, हरि।
उत्तर
शब्द – एक से अधिक अर्व
सोना – नींद में होना, स्वर्ण (एक बहुमूल्य धातु)
तीर – बाण, किनारा
मत – विचार, नहीं
अंबर – वस्त्र, आकाश
श्री. – शोभा, यश
हरि – विष्णु, सिंह।

2. वर्तनी शुद्ध कीजिए
स्रष्टि – सृष्टि
अनूमति – ………….
प्रवतर्क – …………..
प्रतीष्ठीत – ………….
दरशनीय – …………….
अभीमानी – …………..
पोषाक – ………….
सैलानि – …………….
उत्तर
अशुद्ध शब्द – शुद्ध शब्द
स्रष्टि – सृष्टि
अनुमति – अनुमति
प्रर्वतक – प्रवर्तक
प्रतीष्ठीत – प्रतिष्ठित
दरशनीय – दर्शनीय
अभीमानी – अभिमानी
पोषाक – पोशाक
सैलानि – सैलानी।

3. नीचे लिखे शब्दों में से मूल शब्द और प्रत्यय छाँटकर अलग-अलग कीजिए।
साहसिक, दर्शनीय, लड़कपन, सुंदरता, अभिमानी, दुकानदार, प्रतिष्ठित ।
उत्तर
मूल शब्द – प्रत्यय
साहस – ईक
दर्शन – ईय
लड़का – पन
सुन्दर – ता
अभिमान – ई
दुकान – दार
प्रतिष्ठा – इत

4. दिए हुए वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए :
1. जिसके बराबर कोई दूसरा न हो-अद्वितीय ……………….
2. जिसका वर्णन न किया जा सके………..
3. आकाश को छूने वाला………….
4. जिसका कोई आकार न हो….
5. दूसरों पर आश्रित रहने वाला…………
उत्तर

  1. जिसके बराबर कोई दूसरा न हो – अद्वितीय
  2. जिसका वर्णन न किया जा सके – अवर्णनीय
  3. आकाश को छूने वाला – गगनचुम्बी
  4. जिसका कोई आकार न हो – निराकार
  5. दूसरों पर आश्रित रहने वाला – पराश्रित

देवताओं के अंचल में योग्यता-विस्तार

1. इस लेखक के अतिरिक्त किसी अन्य हिन्दी के साहित्यकार द्वारा लिखे गए यात्रा-वृत्तांतों की सूची बनाइए।
2. आप भी किसी स्थान को देखने गए होंगे, उसका यात्रा-वृत्तांत अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

देवताओं के अंचल में परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कहाँ से देवताओं का अंचल आरंभ होता है?
उत्तर
मंडी से कुलू-प्रदेश तक देवताओं का अँचल आरंभ होता है।

प्रश्न 2.
मणिकर्ण क्या है?
उत्तर
मणिकर्ण तीर्थ-स्थान है। यहाँ गरम पानी के कई सोते हैं। उसकी उष्णता अलग-अलग है। कोई नहाने के लिए ठीक है, तो किसी में चावल उबाले जा सकते हैं।

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प्रश्न 3.
कुलू-प्रांत की सबसे बढ़कर महत्त्वपूर्ण बात क्या है?
उत्तर
कुलू-प्रांत की सबसे बढ़कर महत्त्वपूर्ण बात यह है कि वहाँ पर ‘मनु रिखि’ या मनु भगवान का भी एक मंदिर है। यह शायद भारत में एकमात्र ऐसा स्थान है, जहाँ मानवता यह स्वयंभू आदिम प्रवर्तक मंदिर में प्रतिष्ठित होकर पूजा पाता है।

देवताओं के अंचल में दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मंडी से कुलू-प्रदेश में कैसे जाना पड़ता है?
उत्तर
मंडी से कुलू-प्रदेश में जाने के लिए व्यास नदी को पार करना पड़ता है। व्यास नदी पर रस्सी के झूलना पुल है। उस पर लारी से जाना पड़ता है जो बहुत खतरनाक है। कोई अप्रिय घटना न घटे, इसके लिए यह प्रबंध किया गया है कि पुल का चौकीदार अपनी पीठ पर बड़े-बड़े अक्षरों में यह लिखी हई एक तख्ती टाँगे रहता है-‘चार मील रफ्तार। उसके पीछे-पीछे लारी चलती है। पुल के दोनों ओर चौकीदार पहरा देता रहता है। उसकी अनुमति के बिना कोई आर-पार नहीं जा सकता है।

प्रश्न 2.
रोहतंग मार्ग की क्या विशेषता है?
उत्तर
रोहतंग की जोत पर ही व्यास-कंड है। यहाँ से कुछ मील हटकर व्यास मुनि का स्थान है, जहाँ से व्यास नदी का उद्गम है। रोहतंग का मार्ग बहुत रमणीक है। व्यास नदी के वेग से किस तरह पहाड़ के पहाड़ कट गए हैं, वे भी देखने की चीज है। कहीं-कहीं तो नदी आठ-दस फुट चौड़ी दरार में चार-पाँच सौ फुट नीचे जाकर अदृश्य हो गई है, केवल स्वर सुनाई पड़ता है। इसका कारण यह है कि व्यास नदी तीव्र गति से नीचे उतरती है-अपने मार्ग के पहले पाँच मील में जितना नीचे उतर आती है, वह उतना अगले पचास मील में नहीं, और उसके बाद में पाँच सौ मील में नहीं।

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प्रश्न 3.
मनाली लौटकर आने पर लेखक ने क्या सोचा?
उत्तर
मनाली लौटकर आने पर लेखक ने एकांत में रहकर एक बड़ा-सा उपन्यास लिखने को सोचा। इससे पहले उसने अंग्रेजी में एक पूरा उपन्यास लिख भी डाला था, लेकिन जेल के चार वर्षों के अनुभवों ने उसे यह बता दिया था कि उसमें अभी लड़कपन है। अब उसने अपने नए अनुभवों के आधार पर परिवर्तन और परिष्कार कर उसे हिन्दी में लिखने को सोचा।

प्रश्न 4.
देवताओं के अंचल में’ यात्रा-वृत्तांत के मुख्य भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ द्वारा लिखित यात्रा-वृत्तांत प्रेरक और ज्ञानवर्द्धक है। यह भारत के प्रमुख पर्यटन क्षेत्र ‘कुलू’ व मनाली की रचना ‘अरे यायावर रहेगा याद’ से उधत है। इसमें लेखक ने शहरी कोलाहल से दूर प्रकृति की गोद में बैठकर स्वास्थ्य लाभ लिया है। इसके साथ-साथ उपन्यास लेखन की इच्छा से वह देवभूमि ‘कुलू’ आता है। इस लेख में कुलू-मनाली के निवासियों की सहज धार्मिक आस्थाओं, रीति-रिवाजों और विभिन्न मनमोहक स्थलों के सौंदर्य एवं महत्त्व को लेखक ने चित्रित किया है। प्राकृतिक संपदा तथा स्थानीय उत्पादों का सजीव चित्रण इस यात्रा-वृत्तांत में अलौकिक अनुभूति कराता है। फलस्वरूप यह यात्रा-वृत्तांत न केवल हृदयस्पर्शी बन गया है, अपितु भाववर्द्धक भी। .

देवताओं के अंचल में लेखक-परिचय

प्रश्न
श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन ‘अज्ञेय’ का जन्म 7 मार्च 1911 को उत्तर-प्रदेश के देवरिया जिले के कसिया नामक गाँव में हुआ था। उनके पिता पंडित हीरानंद शास्त्री पुरातत्त्व विभाग में थे। उनका तबादला एक स्थान से दूसरे स्थान पर होता रहा। उससे अज्ञेय की शिक्षा भी एक स्थान से दूसरे पर होती रही। आरंभिक शिक्षा समाप्त करके उन्होंने लाहौर के फॉरसन कॉलेज से बी-एस.सी की उपाधि प्राप्त की। उसके बाद अंग्रेजी विषय लेकर एम.ए. में प्रवेश लिया, लेकिन उसी समय क्रांतिकारियों के संपर्क में आने के कारण उनकी पढ़ाई बीच में ही लटककर रह गई। क्रांतिकारियों के संपर्क में आने के कारण वे कई बार गिरफ्तार होकर जेल गए और रिहा हुए। वे 1936 में ‘सैनिक’ के संपादक मंडल में काम करने लगे। इसके बाद ‘विशाल भारत’ के संपादक मंडल में कलकत्ता रहे। 1943 से 1946 तक वे सेना में रहे। 1947 में ‘प्रतीक’ नामक पत्र निकाला। 1950 में आकाशवाणी दिल्ली में नौकरी की। 1955 से 1960 तक अनेक देशों की यात्रा की। 1987 में उनका निधन हो गया।

रचनाएँ-‘अज्ञेय’ की निम्नलिखित रचनाएँ हैंकाव्य-संग्रह-‘आँगन के पार द्वार’,’कितनी नावों में कितनी बार’, ‘सागर-मुद्रा’ आदि।

उपन्यास-‘शेखर एक जीवनी’, ‘नदी के द्वीप’ और ‘अपने-अपने अजनबी।’ कहानी-संग्रह-‘शरणार्थी’, ‘कोठरी की बात’ आदि।

निबंध-डायरी और यात्रा-‘एक बूँद सहसा उछली’, ‘अरे यायावर रहेगा याद’, ‘लिखी कागज कोरे’, ‘भवन्ती’ आदि।

महत्त्व-चूँकि ‘अज्ञेय’ बहुमुखी प्रतिभासंपन्न रचनाकार रहे। इसलिए उनका रचना-संसार भी विविध है। वे गद्य और काव्य दोनों ही क्षेत्र में युग-प्रवर्तक के रूप में याद किए जाते रहेंगे। ‘तार-सप्तक’ कविता संकलनों के संपादक के रूप में वे युग-युग तक अविस्मरणीय रहेंगे।

देवताओं के अंचल में यात्रा-वृत्तांत का सारांश

प्रश्न
‘अज्ञेय’ द्वारा लिखित यात्रा-वृत्तांत ‘देवताओं के आँचल में’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
‘अज्ञेय’ द्वारा लिखित यात्रा-वृत्तांत ‘देवताओं के आँचल में एक रोचक यात्रा-वृत्तांत है। इसमें कुलू से मनाली तक की यात्रा का उल्लेख किया गया है। इस यात्रा-वृत्तांत का सारांश इस प्रकार है मंडी से कुलू में प्रवेश को देवताओं का आँचल कहा जाता है। इसमें जाने के लिए व्यास नदी को रस्सी के झूलन पुल से पार करने के लिए लारी से जाना वास्तव में बहत खतरनाक होता है। इसलिए चार मील की ही रफ्तार से लारी को चलाने के लिए, का संकेत लिखा हुआ एक आदमी लारी से आगे-आगे चलता है। पुल के चौकीदार की अनुमति से कोई आर-पार आ-जा सकता है।

अपने लोगों के साथ लेखक दस बजे के आस-पास लोट पहुँचकर मोटर में बैठकर शिमला के लिए रवाना हो जाता है। वह व्यास नदी के किनारे-किनारे होते हुए कुलू बारह बजे पहुँच गया। कुलू में अनेक प्राचीन हिन्द-सभ्यता का झला है। यहाँ के हरेक कस्बे और गाँव के अपने-अपने देवता हैं। इस प्रकार के सैकड़ों देवी-देवताओं के मंदिरों और इस विराट देव-सम्मेलन के कारण ही कुलू प्रदेश का नाम ‘देवताओं का अंचल’ (वैली ऑफ दि गाइस) पड़ा है। दशहरे के दिन आस-पास के लगभग हजारों देवी-देवताओं को रथ में बैठाकर यहाँ लाया जाता है। उस दिन विजयी राम का उत्सव होता है। कुलू प्रदेश में व्यास-कुंड, व्यास मुनि, वशिष्ठ आदि ऋषि-मुनियों के स्थान और पाण्डवों के मंदिर हैं। यहाँ भीम की पत्नी हिडिंबा देवी की भी पूजा होती है। सबसे रोचक बात यह है कि यहाँ मानवता का आदिम प्रवर्तक स्वयंभ (मन) की भी पूजा की जाती है।

दशहरे के अवसर पर यहाँ बहुत बड़ा मेले का आयोजन किया जाता है। फलस्वरूप तरह-तरह की दुकानें और खरीददार यहाँ आते हैं। इस तरह यहाँ एक से एक महँगी वस्तुओं की खरीद-बिक्री होती है। इसके साथ ही यहाँ अनेक प्रकार के खेल-तमाशे, गाने-बजाने और सजावट होती है। लेखक यहाँ अपने साथियों के साथ दो घंटे ठहरकर और भोजन करके लारी में बैठकर आगे चला गया। व्यास नदी के कटाव से कट्राई सबसे सुन्दर स्थान है। यहाँ की घाटी अधिक चौड़ी है। ऊपर चढ़कर देखने से धान के खेतों के बीच-बीच में सेब, नाशपाती, खूबानी, आड़ और आलूचे के पेड़ मन को मोह लेते हैं। यहाँ मछली का शिकार बहुत अच्छा होता है। कट्राई से दो मील की ऊँचाई पर कुलू राज्य की पुरानी राजधानी है।

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यहाँ अनेक दर्शनीय इमारतें-मंदिर हैं। यहाँ रूसी कलाकार रोपरिक द्वारा स्थापित ‘हिमालयन रिसर्च इंस्टीट्यूट’ है, जहाँ पर हिमालय की भाषाओं. जातियों. लोक-साहित्य और वनस्पतियों से संबंधित रिसर्च होते हैं। कट्राई से मनाली तक का पुराना रास्ता नगर और जगत सुख होकर जाता था लेकिन अब नगर उससे अलग हो गया है। मनाली से नगर वाली सड़क कच्ची है, लेकिन लम्बी है। इस पर फैला प्राकृतिक दृश्य मन को मोह लेता है। इसी सड़क पर जगत सुख गाँव में अनेक दर्शनीय हिन्दू युग के कलाकारों से निर्मित प्राचीन मंदिर हैं। कटाई से आगे कलाथ में गर्म पानी का एक ऐसा कुंड है, जिसमें गंधक और अन्य रसायन की अधिक मात्रा होती है। यहाँ पर पहाड़ी औरतें खासतौर पर अपने कपड़े धोती हैं।

ऊनी कपड़ों के लिए यहाँ बहुत अच्छी लांडी है। मनाली या मुनाली का नाम यहाँ पर अधिक संख्या में पाया जाने वाला ‘मुनाल’ नामक अधिक सुन्दर पक्षी के नाम पर रखा गया है। यहाँ के कुछ सेबों और नाशपाती के अधिकता के कारण मनाली को जानते हैं। मनाली की दो बस्तियाँ हैं-एक बाहर से आकर बसे हुए लोगों के बंगलों और बाजारवाली बस्ती और दूसरी-उससे मील भर ऊपर बसी खास मनाली गौण की बस्ती जो मोटर दाना तक जाती है। फिर वहाँ से व्यास नदी को पार करके रोहतंग की जोत से लाहौर को चली जाती है। इसी मार्ग पर मनाली से दो मील दूर वसिष्ठ नामक गाँव और मंदिर है। रोहतंग की जोत पर व्यास कुंड है। यहीं से व्यास नदी निकलती है। रोहतंग की जोत के दूसरी पार कोकसर नामक बर्फ की सुन्दरता में बेजोड़ है। मनाली से आकर लेखक की स्वास्थ्य-लाभ करने के बाद सबसे बड़ी आकांक्षा एक बड़ा-सा उपन्यास लिखने की थी। दूसरे दिन सुबह उसने स्वयं को पाया कि वह भी देवताओं का समकक्षी होकर स्रष्टा हो गया है। वह लिखने लगा।

देवताओं के अंचल में संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या, अर्थग्रहण व विषय-वस्त से संबंधी प्रश्नोत्तर

1. सुभीते के लिहाज से चाहे जैसा हो, सौंदर्य-रक्षा के लिए एक बहुत अच्छा हुआ है। मनाली से नगरवाली कच्ची सड़क उस तरफ की सबसे लंबी सैर है। ऊँच-नीच भी बहुत अधिक नहीं है और दृश्य तो हर एक मोड़ पर ऐसा सुंदर दिखता है कि कहा नहीं जा सकता। एक ओर उठते हुए चीड़ के जंगल की गजियाँ, दूसरी ओर खुली हुई तराई में लहराते हुए धन-खेतों के मखमली आँगन-न जाने किस रहस्यमय की नीरव पद-चाप हर समय उसमें एक हिलोस्-सी उठाती रहती हैं।

शब्दार्थ-सुभीते-सुविधा। लिहाज-दृष्टिकोण। सैर-दूरी, भ्रमण। नीरव-शान्त। पद-चाप-पैर की ध्वनि। हिलोर-उमंग।

प्रसंग-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वासंती-हिंदी सामान्य’ में संकलित तथा सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यावन’ ‘अज्ञेय’ लिखित यात्रा-वृत्तांत ‘देवताओं के आँचल में से है। इसमें लेखक ने कट्राई से मनाली तक की सुंदरता का उल्लेख करते हुए कहा है कि

व्याख्या-कट्राई से मनाली तक का प्राकृतिक सौंदर्य मन को मोह लेता है। यहाँ तक आने के लिए पूर्वापेक्षा यातायात की बहुत बड़ी सुविधा हो गई है। जो कुछ सुविधा इस समय है, और जैसे भी हो, कोई यहाँ पहुँचता है, तो वह यही पाता है कि इस सुविधा से प्राकृतिक सुंदरता की बहुत बड़ी रक्षा हुई है। इस दृष्टि से यह प्रशंसनीय कदम कहा जा सकता है। यहाँ तक आने का यह पता लग जाता है। कट्राई से मनाली और फिर मनाली से नगर जानेवाली सड़क पक्की नहीं है, अपितु वह कच्ची है। उस ओर जानेवाली वही सबसे लंबी सड़क है। अधिकतर वह समतल है। कहीं-कहीं वह ऊँची-नीची अवश्य है। उसका हरेक मोड़ अपनी सुंदरता से आने-जानेवालों को अपनी ओर आकर्षित कर लेता है। सचमुच उसका वर्णन करना असंभव-सा लगता है। उस पर एक ओर ऊँचे-ऊँचे चीड़ के जंगल हैं तो दूसरी ओर तराई है। उसमें धान के खेत ऐसे दिखाई देते हैं, मानो वे मखमल के आँगन की तरह फैले हुए हैं। उन पर फैली हुई शांति एक रहस्यमयी-लगती है। उस पर पैरों की ध्वनि मानों रह-रहकर लहरों से उठ रहो है और गिर रही है।

विशेष-

  1. प्राकृतिक सौंदर्य का आकर्षक चित्र है।
  2. शैली चित्रमयी है।
  3. भाषा काव्यात्मक है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) सौंदर्य-रक्षा के लिए क्या बहुत अच्छा हुआ है?
(ii) मनाली से नगरवाली सड़क कैसी है?
उत्तर
(i) सौंदर्य-रक्षा के लिए कटाई से मनाली तक का पुराना रास्ता नया हो गया है। अब इस पर मोटर चलने लगी है।
(ii) मनाली से नगरवाली सड़क कच्ची है। उस ओर की वह सबसे लंबी सड़क है। वह बहुत ऊँची नहीं है और बहुत नीची भी नहीं है।

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2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) किसके मोड़ पर सुंदर-सुंदर द्रश्य दिखाई देते हैं?
(ii) धान के खेत कैसे लगते हैं?
उत्तर
(i) मनाली से नगरवाली सड़क के हर मोड़ पर सुंदर-सुंदर दृश्य दिखाई देते हैं।
(ii) धान के खेत मखमली आँगन की तरह एक रहस्यमयी ऐसी शांति जैसे दिखाई देते हैं। उनसे होने वाली धीमी ध्वनि लहरों के उठने-गिरने की तरह सुनाई देती

2. रोहतंग की जोत के दूसरी पार कोकसर पड़ाव है। यहाँ जाते हुए बर्फ के सौंदर्य का जो दृश्य दिखता है, मैंने दूसरा नहीं देखा। उसका न वर्णन हो सकता है, न चित्र खिंच सकता है। कुछ मीलों के दायरे का एक प्याला-सा बना हुआ है, जिसके सब ओर ऊँची-ऊँची हिमावृत्त चोटियाँ, उससे कुछ नीचे पहाड़ों के नंगे काले अंग, और प्याले के बीच में फिर बर्फ से छाया हुआ मैदान मानो अभिमानी पर्वत सरदारों ने. अपना शीश और कटि प्रदेश को ढक लिया है, लेकिन छाती दर्प से खोल रखी है… इस स्थान से तीन नदियों का उद्गम है, ऊपर से व्यास, मध्य से चन्द्रा और भागा, जो आगे चलकर मिल जाती हैं। लेकिन रोहतंग की यात्रा का और कुलू प्रदेश के अपने दूसरे विचित्र अनुभवों का वर्णन अलग लेख माँगता है।

शब्दार्च-हिमावृत्त-बर्फ से ढकी हुई। कटि-प्रदेश-नीचे का भाग। दर्प-गर्व, अहंकार । उद्गम-उत्पत्ति स्थान ।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें लेखक ने कोकसर पड़ाव से आगे बर्फीले सौंदर्य का चित्रण करते हुए कहा है कि

व्याख्या-रोहतंग की जोत के दूसरी तरफ कोकसर का पड़ाव पड़ता है, जो अपनी खास विशेषता रखता है। यहाँ से आगे बढ़ने पर बर्फ का फैला हुआ रूप अपनी सुंदरता से आने-जाने वालों के मन को मोह लेता है। लेखक का यह मानना उसने ऐसा कोई और मोहक दृश्य और कहीं नहीं देखा है। यही नहीं वह उसका वर्णन भी नहीं कर सकता है। शायद वह उसका पूरा-पूरा चित्र भी नहीं खींच सकता है। उसने बड़े ध्यान से देखा कि एक प्याले की कोई आकृति लगभग कुछ मीलों का विस्तार लिए हुए है। उसके चारों ओर केवल बर्फ से ढकी हुई चोटियाँ हैं। उन चोटियों के नीचे काले रंग का फैले हुए पहाड़ के छोटे-बड़े रूप हैं। मीलों तक फैले हुएय उस प्याले-सी आकृति के बीच में और कुछ नहीं है। केवल बर्फ-ही-बर्फ है। वह बहुत बड़ा विस्तार लिए हुए है। उसे देखने से ऐसा लगता है मानो अपने बड़प्पन और उच्चता के अभिमान को लिए हुए पर्वतों का एक एक ऊँचे-ऊँचे भाग स्वयं को छिपा लिये हैं। फिर भी वे अपने विस्तार रूपी छाती को दर्पपूर्वक फैला रखने में अपने-आपको बडा दिखाने का प्रदर्शन कर रहे हैं। इस स्थान के बारे में यह कहा जाता है कि इससे व्यास, चन्द्रा और भागा ये तीन नदियाँ निकलती हैं। वे इसके क्रमशः ऊपर और मध्य भाग से निकलती तो हैं, लेकिन आगे चलकर परस्पर मिल भी जाती हैं। लेखक के अनुसार यहाँ यह ध्यान देने की बात है कि अगर रोहतंग और कुलू प्रदेश की यात्रा के अनुभवों का उल्लेख अपेक्षित और समुचित रूप में करना है, तो उसके लिए अलग से लेख लिखना पड़ेगा।

विशेष

  1. लेखक की कोकसर पड़ाव से आगे के प्राकृतिक सुन्दरता के प्रति दृष्टि आकर्षक है।
  2. संपूर्ण उल्लेख रोचक और ज्ञानवर्द्धक है।
  3. तत्सम शब्दों की प्रधानता है।
  4. शैली चित्रमयी है।

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1. गद्यांश पर आधारित अर्यग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) कोकसर पड़ाव से आगे कौन-सा अद्भुत दृश्य दिखाई देता है?
(ii) प्याला-सा बने दृश्य की क्या विशेषता है?
उत्तर
(i) कोकसर पड़ाव से आगे बर्फ का अत्यधिक आकर्षक दृश्य दिखाई देता
(ii) प्याला-सा बने दृश्य की विशेषता है कि वह कुछ मीलों के दायरे में फैला हुआ है। उसके चारों ओर ऊँची-ऊँची बर्फीली चोटियाँ हैं।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) बर्फ के मैदान से कौन-कौन नदियाँ निकलती हैं?
(ii) लेखक ने किसके लिए अलग लेख लिखने का सुझाव दिया है?
उत्तर
(i) बर्फ के मैदान से व्यास, चन्द्रा, और भागा नदियाँ निकलती हैं।
(ii) लेखक ने रोहतंग और कुलू प्रदेश की यात्रा के विचित्र अनुभवों के लिए अलग लेख लिखने का सुझाव दिया है।

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