MP Board Class 6th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 2 कटुक वचन मत बोल

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MP Board Class 6th Hindi Bhasha Bharti Solutions Chapter 2 कटुक वचन मत बोल

MP Board Class 6th Hindi Bhasha Bharti Chapter 2  पाठ का अभ्यास

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए

(क) दाँत जल्दी टूट जाते हैं क्योंकि वे होते हैं
(i) छोटे,
(ii) संख्या में अधिक,
(iii) कठोर,
(iv) कमजोर।
उत्तर
(iii) कठोर

(ख) मधुर वचन है
(i) तीर,
(ii) औषधि
(iii) नीर
(iv) क्षार।
उत्तर
(ii) औषधि।

प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए

(क) शरीर में ……..” अच्छी नहीं है तो सब बुरा-बुरा है।
(ख) वाणी का वरदान मात्र ……. को मिला है।
(ग) वाक्चातुर्य से कटु सत्य को प्रिय और “…” बनाया जा सकता है।
(घ) वाणी के दुरुपयोग से स्वर्ग भी ……. में परिणत हो सकता है।
उत्तर
(क) अगर जीभ
(ख) मानव
(ग) मधुर
(घ) नर्क।

प्रश्न 3.
एक या दो वाक्यों में उत्तर दीजिए

(क) मालिक ने लुकमान की बुद्धिमानी की परीक्षा किस प्रकार ली?
उत्तर
मालिक ने लुकमान की बुद्धिमानी की परीक्षा यह प्रश्न पूछकर ली कि शरीर का कौन-सा हिस्सा सबसे अच्छा और सबसे बुरा होता है।

(ख) जिज्ञासु ने कन्फ्यूशस से क्या प्रश्न किया?
उत्तर
जिज्ञासु ने कन्फ्यूशस से प्रश्न किया कि सबसे दीर्घजीवी कौन होता है।

(ग) श्रीमती शास्त्री नौकर पर क्रोधित क्यों हुई?
उत्तर
श्रीमती शास्त्री नौकर पर क्रोधित इसलिए हुई क्योंकि उससे कोई काम बिगड़ गया था।

(घ) राजा ने स्वप्न में क्या देखा?
उत्तर
राजा ने स्वप्न में देखा कि उसके सारे दाँत टूट गए हैं।

(ङ) बुलबुल और फूल का संवाद लिखिए।
उत्तर
बुलबुल ने सुबह-सुबह ताजे खिले फूल से कहा-“अभिमानी फूल! इतराओ मत ! इस बाग में तुम्हारे जैसे बहुत फूल खिल चुके हैं।” (इस पर) फूल ने हँसकर कहा, “मैं सच्ची बात पर नाराज नहीं होता, पर एक बात है कि कोई भी अपने प्रिय से कड़वी बात नहीं कहता।”

प्रश्न 4. तीन से पाँच वाक्यों में उत्तर लिखिए

(क) लुकमान ने अपने मालिक के दोनों प्रश्नों के उत्तर में जीभ’ ही क्यों कहा?
उत्तर
लुकमान ने अपने मालिक के दोनों प्रश्नों के उत्तर में ‘जीभ’ ही कहा क्योंकि जीभ अच्छी है, तो सब अच्छा ही अच्छा है और अगर शरीर में जीभ अच्छी नहीं है तो सब बुरा ही बुरा है। जीभ के कारण ही सारी बुराई और भलाई है।

(ख) ‘जो नम्र होता है, वही अधिक समय तक जीता है’, एक उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर
जो नम्र होता है, वही अधिक समय तक जीता है; इस बात को इस उदाहरण से समझा जा सकता है। जीभ दाँतों से पहले पैदा होती है और दाँत बाद में। परन्तु दाँत अपनी कठोरता के कारण पहले टूट जाते हैं (पहले चले जाते हैं) परन्तु जीभ कोमल होती है, लचीली होती है, नम्र होती है। इसलिए वह दीर्घजीवी है अधिक समय तक जीती है।

(ग) ‘जीभ ने दुनिया में बड़े-बड़े कहर ढाए हैं’, उदाहरण देकर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
जीभ के दुरुपयोग से समाज में नर्क तुल्य कष्टमय वातावरण पैदा हो जाता है। वाणी के प्रयोग से ही समाज में खुशहाली छा सकती है परन्तु जब उसका सही उपयोग नहीं होता तो पूरा संसार संकट में पड़ जाता है। महाभारत युद्ध भी जीभ के दुरुपयोग के कारण ही हुआ।

(घ) ‘वाणी तो सभी को मिली हुई है परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है’, भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
सभी लोगों को ‘जीभ’ (वाणी) मिली हुई है। वे इसके उपयोग को ठीक तरह नहीं जानते। वे बोलने की कला के जानकार नहीं हैं। कोई बात प्रेम की वर्षा करती है, तो किसी के द्वारा बोले गए शब्द कई झगड़ों को पैदा कर देते हैं। यहाँ तक कि इस जीभ का सही उपयोग सुख-शान्ति देने वाला है तो कहीं इसके विपरीत दुःख और कलह पैदा करने वाला भी होता है। अत: वाणी के सदुपयोग की कला किसी-किसी को ही प्राप्त है।

(ङ) ‘कटुक वचन मत बोल’, पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर
‘कटुक वचन मत बोल’ पाठ से हमें शिक्षा मिलती है कि मनुष्यों को हमेशा विनम्र और मधुरभाषी होना चाहिए। विनम्रता और प्रेमपूर्ण भाषा के प्रयोग से मनुष्य दीर्घजीवी होता है। कड़वी बात से झगड़े-झंझट पैदा होते हैं। अतः हमें सदैव मृदुभाषी होना चाहिए।

प्रश्न 5.
सोचिए और बताइए

(क) ‘तीन इंच की जीभ, छः फुट के आदमी को मार सकती है’, कैसे?
उत्तर
मनुष्य की जीभ मात्र तीन इंच लम्बी होती है। परन्तु इससे कहे गए कटुवचन छ: फुट लम्बे आदमी के तन-मन को वेध देते हैं। वह मरा हुआ सा हो सकता है। इस वाणी के दुरुपयोग से संसार में अनेक झगड़े पैदा हो जाते हैं।

(ख) ‘किसी का हृदय कटु वाणी से दुःखी नहीं करना चाहिए’, क्यों?
उत्तर
कटु वाणी से किसी भी मनुष्य को दुखी नहीं करना चाहिए, क्योंकि कटु वचन (तेज) वाण (तीर) के समान होता है। वह कानों के मार्ग से प्रवेश करके सारे शरीर को वेध डालता है। कटु वचन से सारा शरीर जलकर राख हो जाता है।

(ग) ‘बातन हाथी पाइए, बातन हाथी पाँव, का क्या आशय है?
उत्तर
बातों के द्वारा ही मनुष्य असम्भव को भी सम्भव बना सकता है, यदि वह अपनी जीभ का सदुपयोग करता है। मृदु वचन और नम्रतापूर्ण आचरण से मनुष्य महत्त्वपूर्ण बन सकता है और इसके विरुद्ध आचरण से अर्थात् कटु वचन से वह अपने महत्त्व को खो देता है। बात के बोलने का ढंग उसे समाज में आदरणीय और निरादरणीय बना सकता है।

प्रश्न 6.
अनुमान और कल्पना के आधार पर उत्तर दीजिए

(क) यदि लुकमान की जगह आप होते तो मालिक के प्रश्नों का क्या उत्तर देते?
उत्तर
लुकमान की जगह यदि मैं होता तो उसके प्रश्नों का उत्तर यही देता कि जीभ के कारण ही संसार में सारी भलाई और बुराई है। जीभ से मृदु वचन बोलने पर सर्वत्र सुख ही सुख होगा परन्तु कटु वचन बोलने पर सर्वत्र कलह और कटुताएँ ही होंगी।

(ख) हमें वाणी का वरदान न मिला होता तो क्या होता?
उत्तर
मनुष्य को ईश्वर ने वाणी का वरदान दिया है, जिससे वह अपने दुःख-सुख के भावों को अपने दूसरे साथियों से कह लेता है। दूसरों के भावों को सुनकर उनकी सहायता कर लेता है। वाणी के वरदान के न मिलने की दशा में यह सारा जगत मूक बना होता।

भाषा की बात

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों का शुद्ध उच्चारण कीजिए और लिखिए
व्यक्तित्व, विदीर्ण, प्रशंसा, वाणी, बुद्धिमान।
उत्तर
कक्षा में अपने अध्यापक की सहायता से शुद्ध उच्चारण करके अभ्यास करें और लिखें।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों की शुद्ध वर्तनी लिखिए
जिग्यासु, दाशनिक, हिरदय, प्रसनशा, हंसकर।
उत्तर
जिज्ञासु, दार्शनिक, हृदय, प्रशंसा, हँसकर।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए
स्वप्न, लोकप्रिय, ऐश्वर्य, कारावास, अभिमानी।
उत्तर
स्वप्न-युवकों को स्वप्न देखने के साथ ही कर्मशील भी होना चाहिए।
लोकप्रिय-मृदुभाषी और नम्र व्यक्ति लोकप्रिय होता है। ऐश्वर्य-शुद्ध आचरण से व्यक्ति ऐश्वर्य प्राप्त करता है।
कारावास-आजादी के लिए आन्दोलन करने वाले देशभक्तों को कारावास दिया गया।
अभिमानी-अभिमानी व्यक्ति कभी भी आदर नहीं पाता है।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों में से विकारी और अविकारी शब्द छाँटकर लिखिए
लड़की, तालाब, गाँव, ही, भी, नगर, तथा, इधर ।
उत्तर
(क) विकारी शब्द-लड़की, तालाब, गाँव, नगर।
(ख) अविकारी शब्द-ही, भी, तथा, इधर ।

कटुक वचन मत बोल परीक्षोपयोगी गद्यांशों की व्याख्या

(1) वाणी तो सभी को मिली हुई है परन्तु बोलना किसी-किसी को ही आता है। बोलते तो सभी हैं किन्तु क्या बोलें, कैसे शब्द बोलें, कब बोलें-इस कला को बहुत कम लोग जानते हैं। एक बात से प्रेम झरता है, दूसरी बात से झगड़ा होता है। कड़वी बात ने संसार में न जाने कितने झगड़े पैदा किए हैं। जीभ ने दुनिया में बड़े-बड़े कहर बाए हैं। जीभ होती तो तीन इंच की ही है, पर वह पूरे छह फुट के आदमी को मार सकती है।

सन्दर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक भाषा-भारती’ के ‘कटुक वचन मत बोल’ नामक पाठ से लिया गया है। इसके लेखक रामेश्वर दयाल दुबे हैं।

प्रसंग-इस गद्यांश में बताया गया है कि वाणी से ही प्रेम और कटुता (दुश्मनी) पैदा होती है।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि वाणी (जीभ) सभी को प्राप्त है परन्तु उससे बोलना तो किसी-किसी को ही आता है। बहुत कम लोग बोलना जानते हैं। वाणी का प्रयोग हर कोई ठीक से नहीं कर पाता। ऐसा देखा जाता है कि कुछ लोगों की वाणी से प्रेम झलकता है, तो किसी की बात इतनी चुभने वाली होती है कि झगड़ा हो जाता है। कड़वी बात संसार में कितने ही झगड़े पैदा कर देती है और उसका प्रभाव बहुत ही कष्टकारक होता है। बोलने में मात्र तीन इंच की छोटी जीभ का प्रयोग करते हैं परन्तु उसका प्रभाव इतना विनाशकारी होता है कि उससे छः फीट का लम्बा मनुष्य मर जाता है।

(2) संसार के सभी प्राणियों में वाणी का वरदान मात्र मानव को मिला है। उसके सदुपयोग से स्वर्ग पृथ्वी पर उतर सकता है और उसके दुरुपयोग से स्वर्ग भी नर्क में परिणत हो सकता है। महाभारत युद्ध वाणी के प्रयोग का ही परिणाम था।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-इस गद्यांश में बताया गया है कि संसार में मनुष्य को वाणी (बोलने की शक्ति) प्राप्त है। इसके ही प्रयोग से इस संसार को स्वर्ग अथवा नर्क बनाया जा सकता है।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि संसार में अनेक प्राणी हैं। उनमें से मनुष्य ही ऐसा प्राणी है जिसे बोलने की शक्ति दी गई है। यह वास्तव में ईश्वर का ही श्रेष्ठ वरदान है। ईश्वर के इस वरदान का उचित और अनुचित प्रयोग ही इस संसार को स्वर्ग (सुखमय) और नर्क (दुःखमय) बना सकता है। वाणी के अनुचित प्रयोग से ही कौरव और पाण्डवों के मध्य ‘महाभारत’ युद्ध हुआ। कटु वाणी के प्रयोग का प्रतिफल विनाशकारी युद्ध हुआ। इस वरदान का उचित और अनुचित प्रयोग ही इस संसार को स्वर्ग (सुखमय) और नर्क (दुःखमय) बना सकता है। वाणी के अनुचित प्रयोग से ही कौरव और पाण्डवों के मध्य ‘महाभारत’ युद्ध हुआ। कटु वाणी के प्रयोग का प्रतिफल विनाशकारी युद्ध हुआ।

(3) सदा से यह कहा जाता रहा है कि किसी का हृदय अपनी कटु वाणी से दुखी मत करो।
‘मधुर वचन है औषधि, कटुक वचन है तीर।
श्रवण मार्ग होइ संचरै, वेधै सकल शरीर॥
कटुक वचन सबसे बुरा, जारि करै तन छार।
साधु वचन जल रूप है, बरसै अमृत धार॥
कुदरत को नापसन्द है सख्ती जबान में।
इसलिए तो दी नहीं हड्डी जबान में॥
जो बात कहो, साफ हो, सुथरी हो, भली हो।
कड़वी न हो, खट्टी न हो, मिश्री की डली हो॥

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-इन पंक्तियों में लेखक ने किसी कवि की उक्तियों को उदाहरण रूप में प्रस्तुत करके कहा है कि कड़वी बात कहकर किसी को भी दुःख नहीं पहुँचाना चाहिए।

व्याख्या-लेखक का कथन है कि अपने कटु वचनों से किसी को भी कष्ट नहीं पहुँचाना चाहिए ; क्योंकि मीठी वाणी एक औषधि है जिससे मनुष्य अपने तन और मन से स्वस्थ रहता है, जबकि कड़वा वचन तीर (वाण) के समान है जो कानों के मार्ग से प्रवेश पाकर सारे शरीर को वेध देता है। कटु वचन सबसे बुरा है जिससे सारा शरीर जलकर (राख) हो जाता है जबकि सज्जन की मधुर वाणी शीतल जल के समान है जो बरसकर (कहे जाने पर) सुनने वाले व्यक्ति पर अमृतधारा जैसा  प्रभाव डालती है (जिससे शारीरिक और मानसिक ताप (कष्ट) समाप्त हो जाते हैं।

लालबहादुर शास्त्री की शेर के माध्यम से मधुर वाणी की विशेषता बताते हुए लेखक कहता है कि वाणी की कटुता प्रकृति को भी पसन्द नहीं है, तभी तो जीभ में कठोर हड्डी नहीं दी है। इसलिए सदैव साफ सुथरी और मीठी बात बोलनी चाहिए। बात में कटुता, खटास न हो, वह तो मिश्री की डेली के समान मिठास युक्त हो।

(4) सत्य कभी-कभी कड़वा भी होता है। कुछ अप्रिय बातें कहनी ही पड़ती हैं किन्तु ऐसे अवसर पर होना यह चाहिए कि बात भी कह दी जाए और उसमें वह कड़वाहट भी न आने पाए जो दूसरे के हृदय को विदीर्ण कर दे। जरूरी नहीं है कि जीभ की कमान से सदा वचनों के बाण ही छोड़े जाएँ। वाक्- चातुरी से कटु
सत्य को प्रिय और मधुर बनाया जा सकता है।

सन्दर्भ-पूर्व की तरह।

प्रसंग-इन पंक्तियों में बताया गया है कि कटु-सत्य को अपनी वाणी की चतुराई से प्रिय और मीठा बनाया जा सकता है।

व्याख्या-लेखक कहता है कि सत्य के कथन में कभी-कभी कटुता भी आ जाती है। देखा जाता है कि कुछ ऐसी बातें होती हैं कि वे सुनने में अप्रिय और कटु हों, परन्तु उनका कथन अति आवश्यक होता है। ऐसी दशा में हमें चाहिए कि उस अप्रिय (सत्य) बात को कहते हुए कड़वाहट भी पैदा न हो तथा सुनने वाले के हृदय पर भी कोई चोट न पहुँचे। यह देखना चाहिए कि अपनी वाणी से ऐसे वचन कभी न कहें कि जिससे दूसरे का मन आहत हो। अपनी वाणी से चतुराई पूर्वक ऐसे वचन बोलने चाहिए जिसके द्वारा कड़वा सत्य भी मीठा और प्रिय लगे।