Students get through the MP Board Class 12th Physics Important Questions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा which are most likely to be asked in the exam.
MP Board Class 12th Physics Important Questions Chapter 7 प्रत्यावर्ती धारा
अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
दिष्टधारा की आवृत्ति कितनी होती है ?
उत्तर:
शून्य।
प्रश्न 2.
प्रत्यावर्ती धारा कौन-सा प्रभाव प्रदर्शित करता है ?
उत्तर:
उष्मीय प्रभाव।
प्रश्न 3.
दिष्टधारा के लिए प्रेरकीय प्रतिघात कितना होता है ?
उत्तर-
XL = 2πυL, दिष्टधारा के लिए υ = 0 अतः प्रेरकीय प्रतिघात शून्य होगा।
प्रश्न 4. दिष्टधारा के लिए संधारित्रीय प्रतिघात कितना होता है ?
उत्तर:
XC = \(\frac{1}{2 \pi v C}\) , दिष्टधारा के लिए υ = 0, अत: संधारित्रीय प्रतिघात अनंत होगा।
प्रश्न 5.
\(\sqrt{\mathrm{LC}}\) का मात्रक क्या है ?
उत्तर:
सेकण्ड।
प्रश्न 6.
ट्रांसफार्मर किस सिद्धांत पर कार्य करता है ?
उत्तर:
अन्योन्य प्रेरण।
प्रश्न 7.
श्रेणी LCR अनुनादी परिपथ में प्रतिबाधा कितनी होती है ?
उत्तर:
Z = R (ओमीय प्रतिरोध के बराबर)।
प्रश्न 8.
श्रेणी LCR परिपथ में अनुनाद की स्थिति में शक्तिगुणांक कितना होता है ?
उत्तर:
1 (एक)।
प्रश्न 9.
ac स्रोत का शिखरमान E0 है। इसका वर्ग माध्य मूल मान क्या होगा?
उत्तर:
Erms = \(\frac{\mathrm{E}_{0}}{\sqrt{2}}\)
प्रश्न 10.
\(\frac{1}{\omega C}\) एवं ωL का मात्रक बताइए।
उत्तर:
दोनों प्रतिघात को प्रदर्शित करते हैं अत: मात्रक ओम (Ω) होगा।
लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
प्रत्यावर्ती धारा के वर्ग माध्य मूल और शिखर मान की परिभाषा लिखकर उनमें सम्बन्ध बताइये।
उत्तर:
वर्ग मांध्य मूल मान – प्रत्यावर्ती धारा के एक वर्ग पूर्ण चक्र में धारा के तात्क्षणिक मानों के वर्गों के मध्यमान के वर्गमूल को प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान कहते हैं।
इसे प्रत्यावर्ती धारा का आभासी मान भी कहते हैं।
शिखर मान – प्रत्यावर्ती धारा के अधिकतम मान को उसका आयाम या शिखर मान कहते हैं।
प्रत्यावर्ती धारा का शिखर मान = √2 x वर्ग माध्य मूल मान
या I0 = √2Irms
प्रश्न 2.
प्रत्यावर्ती धारा के चुम्बकीय और रासायनिक प्रभाव शून्य क्यों होते हैं?
उत्तर:
आधे चक्र में विद्युत् धारा एक दिशा में तथा आधे चक्र में विपरीत दिशा में प्रवाहित होती है जिससे पूर्ण चक्र में धारा का औसत मान शून्य होता है। अतः प्रत्यावर्ती धारा के चुम्बकीय और रासायनिक प्रभाव शून्य होते हैं।
प्रश्न 3.
प्रत्यावर्ती धारा का मापन चल कुण्डली धारामापी से नहीं किया जा सकता है, क्यों?
उत्तर:
चल कुण्डली धारामापी धारा के चुम्बकीय प्रभाव पर आधारित है। प्रत्यावर्ती धारा का एक पूर्ण चक्र में औसत मान शून्य होता है। अतः प्रत्यावर्ती धारा चुम्बकीय प्रभाव प्रदर्शित नहीं करती। फलस्वरूप चल कुण्डली धारामापी की सहायता से प्रत्यावर्ती धारा का मापन नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 4.
एक बल्ब के साथ श्रेणीक्रम में एक परिनालिका लगी है। बल्ब प्रत्यावर्ती धारा से जल रहा है। यदि परिनालिका के अंदर लोहे का एक क्रोड रख दिया जाये, तो क्या होगा?
उत्तर:
बल्ब का प्रकाश धीमा पड़ जायेगा, क्योंकि परिनालिका के अन्दर लोहे का क्रोड डालने पर उसका प्रेरकत्व L बढ़ जाने से प्रेरण प्रतिघात XL = L का मान बढ़ जायेगा। अतः धारा का मान कम हो जायेगा।
प्रश्न 5.
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में विशुद्ध प्रेरण कुण्डली के प्रतिघात के लिए व्यंजक लिखिए तथा बताइए कि इसका मान धारा की आवृत्ति पर किस प्रकार निर्भर करता है ?
उत्तर:
विशुद्ध प्रेरण कुण्डली का प्रतिघात
XL = ωL = 2πυL
जहाँ υ = धारा की आवृत्ति तथा L = कुण्डली का प्रेरकत्व।
स्पष्ट है कि ΧL ∝ υ
अर्थात् प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में विशुद्ध प्रेरण कुण्डली का प्रतिघात धारा की आवृत्ति के अनुक्रमानुपाती होता है।
प्रश्न 6.
प्रत्यावर्ती धारा का मान घटाने के लिए प्रतिरोध की अपेक्षा प्रेरकत्व अधिक उपयुक्त क्यों है ?
उत्तर:
प्रत्यावर्ती धारा के मान को घटाने के लिए प्रतिरोध का उपयोग करने पर विद्युत् ऊर्जा के कुछ भाग का ऊष्मीय ऊर्जा में अपव्यय हो जाता है जबकि प्रेरकत्व का उपयोग करने पर प्रेरकत्व का शक्ति गुणांक शून्य होने के कारण ऊर्जा का बिल्कुल अपव्यय नहीं होता ।
प्रश्न 7.
संधारित्र दिष्ट धारा को रोकता है तथा उच्च आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा को गुजारता है, क्यों?
उत्तर:
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में संधारित्र का धारितीय प्रतिघात XC = \(\frac{1}{2 \pi f_{\mathrm{C}}}\)
दिष्ट धारा के लिए, f = 0
अतः XC = \(\frac{1}{0}\) = ∞
फलस्वरूप संधारित्र दिष्ट धारा को रोक देता है।
पुन: चूँकि XC ∝ \(\frac{1}{f}\) से आवृत्ति f का मान अधिक होने पर धारितीय प्रतिघात XC का मान कम होता है। अतः संधारित्र उच्च आवृति की प्रत्यावर्ती धारा को गुजरने देता है।
प्रश्न 8.
दिष्ट धारा परिपथ में L प्रेरकत्व वाली कुण्डली का प्रतिरोधी कितना होता है ?
उत्तर:
ए. सी. परिपथ में कुण्डली का प्रतिरोध अर्थात् प्रेरण प्रतिघात
XL = ωL = 2πυL
दिष्ट धारा के लिए υ = 0
अतः दिष्ट धारा परिपथ में कुण्डली का प्रतिरोध
XL = 2π.0.L = 0.
प्रश्न 9.
ए. सी. परिपथ में
(i) प्रेरकत्व कुण्डली,
(ii) संधारित्र में धारा और वोल्टेज में कला सम्बन्ध बताइये।
उत्तर:
(i) केवल प्रेरकत्व कुण्डली वाले प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रत्यावर्ती धारा, वोल्टेज से 90° पश्चगामी होती है।
(ii) केवल संधारित्र वाले प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रत्यावर्ती धारा, वोल्टेज से 90° अग्रगामी होती है।
प्रश्न 10.
एक विद्युत् हीटर को समान विभवान्तर पर दिष्ट धारा एवं प्रत्यावर्ती धारा द्वारा गर्म करते हैं। क्या दोनों ही स्थितियों में हीटर में समान ऊष्मा उत्पन्न होगी?
उत्तर:
हीटर में तार कुण्डलियों के रूप में होता है। अतः उसमें प्रतिरोध के साथ-साथ प्रेरकत्व भी होता है। अतः उसका प्रतिरोध प्रत्यावर्ती धारा के लिए अधिक एवं दिष्ट धारा के लिए कम होगा।
उत्पन्न ऊष्मा के सूत्र H = \(\frac{\mathrm{V}^{2}}{\mathrm{R}}\) के अनुसार प्रत्यावर्ती धारा द्वारा कम ऊष्मा उत्पन्न होगी।
प्रश्न 11.
वाटहीन धारा किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वाटहीन धारा – यदि किसी परिपथ में केवल शुद्ध प्रेरकत्व या शुद्ध धारिता है तथा प्रतिरोध का मान शून्य है, तो वि. वा. बल और धारा में 90° (या π/2 ) का कलान्तर होता है। इस स्थिति में परिपथ की औसत शक्ति
Pav = Vrms x Irms x cos90°
या Pav = 0. [∵ cos 90° = 0]
इस प्रकार, यदि किसी प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल शुद्ध प्रेरकत्व या शुद्ध धारिता है तथा परिपथ का प्रतिरोध शून्य है, तो परिपथ में धारा तो प्रवाहित होती है, किन्तु परिपथ में ऊर्जा का क्षय बिल्कुल नहीं होता। परिपथ की इस धारा को वाटहीन धारा कहते हैं।
प्रश्न 12.
(i) विशुद्ध प्रेरकत्व या विशुद्ध धारितीय प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में शक्ति क्षय का मान कितना होता है ?
(ii) L-C-R श्रेणी A.C. परिपथ में वोल्टेज और धारा कब समान कला में होते हैं ?
उत्तर:
(i) शून्य।
(ii) L-C-R श्रेणी A.C परिपथ में वोल्टेज और धारा समान कला में उस समय होते हैं जब आवृत्ति υ = \(\frac{1}{2 \pi \sqrt{\mathrm{LC}}}\) होती है।
प्रश्न 13.
नागरिक विद्युत वितरण में धारा प्रत्यावर्ती धारा के रूप में दी जाती है, दिष्ट धारा के रूप में नहीं। क्यों?
उत्तर:
इसका कारण यह है कि प्रत्यावर्ती धारा में ट्रान्सफॉर्मर का उपयोग करके इनकी प्रबलता को घटाकर बिना ऊर्जा क्षय के एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँचाया जा सकता है।
प्रश्न 14.
वाटहीन धारा किसे कहते हैं ? क्या हम इसे व्यावहारिक रूप में प्राप्त कर सकते हैं ? लिखिए।
अथवा
प्रत्यावर्ती परिपथ में वाटहीन धारा कैसे प्राप्त कर सकते हैं ?
उत्तर:
वाटहीन धारा – लघु उत्तरीय प्रश्न क्रमांक 11 देखिए।
प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में चोक कुण्डली का उपयोग करके व्यावहारिक रूप में वाटहीन धारा प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न 15.
D.C. वोल्टेज को बढ़ाने में ट्रान्सफॉर्मर का उपयोग नहीं किया जा सकता, क्यों?
उत्तर:
ट्रान्सफॉर्मर अन्योन्य प्रेरण के सिद्धान्त पर आधारित है। अन्योन्य प्रेरण की घटना प्रत्यावर्ती धारा में होती है, स्थिर मान के D.C. धारा में नहीं। अत: D.C. वोल्टेज को बढ़ाने में ट्रान्सफॉर्मर का उपयोग नहीं किया जा सकता।
प्रश्न 16.
A.C. वोल्टेज बढ़ाने के लिए आप किस प्रकार युक्ति को उपयोग में लायेंगे? क्या इस युक्ति की सहायता से D.C. वोल्टेज को बढ़ाया जा सकता है ?
उत्तर:
ट्रान्सफॉर्मर को उपयोग में लायेंगे। इस युक्ति की सहायता से D.C. वोल्टेज को नहीं बढ़ाया जा सकता।
प्रश्न 17.
ट्रान्सफॉर्मर में भंवर धाराओं का प्रभाव किस प्रकार कम किया जाता है ?
अथवा
ट्रान्सफॉर्मर के क्रोड पटलित बनाये जाते हैं। क्यों ?
उत्तर:
ट्रान्सफॉर्मर के क्रोड को पटलित बनाकर भँवर धाराओं के प्रभाव को कम किया जाता है। क्रोड के पटलित होने से उसका प्रतिरोध बहुत अधिक हो जाता है। अतः उत्पन्न भँवर धाराओं की प्रबलता बहुत कम हो जाती है। इस प्रकार विद्युत् ऊर्जा का ऊष्मीय ऊर्जा में अपव्यय नहीं हो पाता।
प्रश्न 18.
प्रतिघात और प्रतिबाधा क्या है ? समझाइए।
उत्तर:
प्रतिघात – प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में केवल प्रेरक कुण्डली अथवा केवल संधारित्र के द्वारा प्रत्यावर्ती धारा के मार्ग में उत्पन्न अवरोध को प्रतिघात कहते हैं।
प्रतिबाधा – प्रत्यावर्ती परिपथ में ओमीय प्रतिरोध, प्रेरक कुण्डली और संधारित्र में से दो या दो से अधिक अवयवों के द्वारा डाले गये अवरोध को प्रतिबाधा कहते हैं।
प्रश्न 19.
प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा में अन्तर-
प्रत्यावर्ती धारा | दिष्ट धारा |
1. दिशा तथा परिमाण परिवर्तित होते रहते हैं। | मान परिवर्तित हो सकता है, किन्तु दिशा निश्चित होती है। |
2. इसमें ट्रान्सफॉर्मर प्रयुक्त किया जा सकता है। | ट्रान्सफॉर्मर प्रयुक्त नहीं कर सकते। |
3. विद्युत् लेपन में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता है। | विद्युत् लेपन में इसका उपयोग किया जाता है। |
4. इसका उपयोग विद्युत् चुम्बक बनाने में सामान्यत: नहीं करते। | विद्युत्-चुम्बक बनाने में उपयोग करते हैं। |
5. मापन यन्त्र इसके ऊष्मीय प्रभाव पर आधारित होते हैं। | मापन यन्त्र इसके चुम्बकीय प्रभाव पर आधारित होते हैं। |
6. खतरनाक है। | अपेक्षाकृत कम खतरनाक है। |
प्रश्न 20.
प्रत्यावर्ती धारा दिष्ट धारा से खतरनाक होती है, क्यों?
अथवा
समान विभव की प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा में कौन-सी धारा अधिक सुरक्षित होती है और क्यों?
उत्तर:
प्रत्यावर्ती विभवान्तर का अधिकतम मान उसके आभासी मान का √2 गुना होता है। इस प्रकार यदि प्रत्यावर्ती विभवान्तर का आभासी मान 220 वोल्ट हो, तो उसका शिखर मान 220√2 = 331.08 वोल्ट होगा अर्थात प्रत्यावर्ती विभवान्तर का मान 331.08 वोल्ट से – 331.08 वोल्ट तक परिवर्तित होगा। किन्तु यदि दिष्ट धारा का विभवान्तर 220 वोल्ट हो, तो वह 220 वोल्ट से अधिक नहीं होगा। अत: प्रत्यावर्ती धारा समान विभव की दिष्ट धारा से खतरनाक होती है।
यह भी स्पष्ट है कि समान विभव की प्रत्यावर्ती धारा और दिष्ट धारा में से दिष्ट धारा अधिक सुरक्षित रहती है।
प्रश्न 21.
एक प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में विशुद्ध प्रतिरोध लगा है। परिपथ में धारा के लिए व्यंजक ज्ञात कीजिए। इस परिपथ में धारा और वोल्टेज के मध्य कितना कलान्तर होता है ? धारा व वोल्टेज का समय के साथ परिवर्तन आरेख द्वारा प्रदर्शित कीजिए।
उत्तर:
मानलो किसी क्षण पर प्रत्यावर्ती वि. वा. बल को निम्न समीकरण द्वारा प्रदर्शित किया जाता है- V = V0 sinωt
………….(1)
यदि उसी क्षण पर प्रतिरोध R में बहने वाली धारा का मान I हो, तो ।
I = \(\frac{V}{R}=\frac{V_{0} \sin \omega t}{R}\)
या I = I0sinωt ………(2)
जहाँ I0 = \(\frac{\mathrm{V}_{0}}{\mathrm{R}}\)
समी. (1) और (2) से स्पष्ट है कि ओमीय प्रतिरोध चाल परिपथ में प्रत्यावर्ती वि. वा. बल और प्रत्यावर्ती धारा समान कला में होते हैं।
धारा और वोल्टेज का समय के साथ परिवर्तन चित्र में प्रदर्शित किया गया है।
प्रश्न 22.
एक प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में वि. वा. बल E = E0sinωt विशुद्ध प्रेरकत्व पर लगाया जाता है। उसमें बहने वाली धारा के लिए व्यंजक ज्ञात कीजिए।
प्रेरण प्रतिघात का मान ज्ञात कीजिए तथा सिद्ध कीजिए कि दिष्ट धारा के लिए प्रेरण प्रतिघात शून्य होता है।
उत्तर:
मानलो चित्र में दर्शाइए अनुसार एक प्रेरक कुण्डली, जिसका स्व-प्रेरकत्व L है, के सिरों के बीच प्रत्यावर्ती वि. वा. बल
V = V0sinωt ………..(1)
लगाया गया है।
यदि परिपथ में किसी क्षण धारा I प्रवाहित होती हो,
तो किसी क्षण t पर प्रेरित वि. वा. बल = -L\(\frac{d \mathbf{I}}{d t}\)
अतः किरचॉफ के द्वितीय नियम से,
V – L = \(\frac{d \mathbf{I}}{d t}\) = RI
∵ परिपथ का प्रतिरोध शून्य है, अर्थात् R = 0
जहाँ I0 = \(\frac{\mathrm{V}_{0}}{\omega \mathrm{L}}\) (धारा का शिखर मान) …………….(3)
समी. (3) से, \(\frac{\mathrm{V}_{0}}{\mathrm{I}_{0}}\) = ωL
ωL को परिपथ का प्रेरण प्रतिघात कहते हैं । इसे XL से प्रदर्शित करते हैं।
इस प्रकार,
प्रेरण प्रतिघात XL = ωL = 2πυL
जहाँ υ = धारा की प्रवृत्ति
दिष्ट धारा के लिए υ = 0
अतः दिष्ट धारा के लिए प्रेरण प्रतिघात
XL = 2π.0.L = 0
अर्थात् दिष्ट धारा के लिए प्रेरण प्रतिघात शून्य होता है।
प्रश्न 23.
एक प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में शुद्ध प्रेरकत्व पर प्रत्यावर्ती वि. वा. बल E = E0 sinωt लगाया जाता है
(i) प्रत्यावर्ती धारा का मान लिखिए।
(ii) प्रेरण प्रतिघात कितना होगा?
(ii) प्रत्यावर्ती धारा और प्रत्यावर्ती वि. वा. बल के मध्य कलान्तर बताइये।
(iv) समय के साथ प्रत्यावर्ती वि. वा. बल और प्रत्यावर्ती धारा में होने वाले परिवर्तन के लिए आरेख बनाइये।
उत्तर:
(i) I = I0 sin(ωt – π/2)
(ii) प्रेरण प्रतिघात XL = ωL, जहाँ L = प्रेरण कुण्डली का प्रेरकत्व।
(iii) प्रत्यावर्ती धारा प्रत्यावर्ती वि. वा. बल से 90° पश्चगामी होती है।
(iv) परिवर्तन आरेख-
प्रश्न 24.
एक प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रत्यावर्ती वि. वा. बल V = V0sinωL एक संधारित्र पर लगाया गया है। परिपथ में बहने वाली धारा और प्रतिघात के लिए व्यंजक ज्ञात कीजिए। सिद्ध कीजिए कि दिष्ट धारा के लिए धारितीय प्रतिघात अनन्त होता है।
उत्तर:
मानलो चित्र में दर्शाये अनुसार एक संघारित्र C के दोनों सिरों के मध्य प्रत्यावर्ती वि. वा. बल स्रोत A.C. जोड़ा गया है।
मानलो किसी क्षण t पर प्रत्यावर्ती वि. वा. बल को निम्न समीकरण द्वारा व्यक्त किया जाता है-
V = V0sinωt …………..(1)
यदि उस क्षण पर संधारित्र की प्लेट को प्राप्त आवेश का मान Q हो, तो धारिता की परिभाषा से,
C = \(\frac{\mathrm{Q}}{\mathrm{V}}\)
या Q = VC
Q = CV0 sinωt
परन्तु किसी क्षण पर धारा I = \(\frac{d \mathrm{Q}}{d t}=\frac{d}{d t}\) (CV0 sinωt )
I = CV0ω cos ωt
या I = ωCV0 sin\(\left(\omega t+\frac{\pi}{2}\right)\)
या I = I0 sin\(\left(\omega t+\frac{\pi}{2}\right)\) ………..(2)
जहाँ I0 = ωCV0 = धारा का शिखर मान …………..(3)
समी. (3) से,
\(\frac{\mathrm{V}_{0}}{\mathrm{I}_{0}}=\frac{\mathrm{I}}{\omega \mathrm{C}}\)
\(\frac{1}{\omega C}\) को परिपथ का धारितीय प्रतिघात कहते हैं । इसे x से प्रदर्शित करते हैं । इस प्रकार धारितीय XC प्रतिघात
XC = \(\frac{1}{\omega \mathrm{C}}=\frac{1}{2 \pi v \mathrm{C}}\)
दिष्ट धारा के लिए υ = 0
∴ दिष्ट धारा के लिए धारितीय प्रतिघात XC = \(\frac{1}{2 \pi \cdot 0 . \mathrm{C}}\) = ∞.
प्रश्न 25.
एक प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रत्यावर्ती वि. वा. बल V = V0 sinωt एक संधारित्र पर लगाया गया है-
(i) परिपथ में बहने वाली धारा के लिए व्यंजक लिखिए।
(ii) धारितीय प्रतिघात के लिए व्यंजक लिखिए।
(ii) प्रत्यावर्ती धारा और प्रत्यावर्ती वि. वा. बल के मध्य कलान्तर बताइये।
(iv) समय के साथ प्रत्यावर्ती धारा और प्रत्यावर्ती वि. वा. बल में होने वाले परिवर्तन के लिए आरेख बनाइये।
उत्तर:
(i) I = I0sin \(\left(\omega t+\frac{\pi}{2}\right)\)
(i) XC = \(\frac{1}{\omega \mathrm{C}}\)
(iii) प्रत्यावर्ती धारा, प्रत्यावर्ती वि. वा. बल से 90° अग्रगामी होती है।
(iv) परिवर्तन आरेख-
प्रश्न 26.
एक प्रत्यावर्ती धारा परिपथ के लिए सिद्ध कीजिए कि
Pav = Vrms × Irms × COSΦ
जहाँ संकेतों के सामान्य अर्थ हैं।
उत्तर:
मानलो किसी प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में प्रत्यावर्ती विभवान्तर
V = V0 sinωt ………..(1)
लगाया गया है जिससे उस परिपथ में प्रत्यावर्ती धारा =
I = I0 sin(ωt – Φ) ………….(2)
प्रवाहित होने लगती है। जहाँ Φ वि. वा. बल और धारा के बीच कलान्तर है।
अतः परिपथ की तात्क्षणिक शक्ति
P = V.I.
= V0 sinωt. I0 sin(ωt – Φ), (समी. (1) और (2) से]
= V0 I0 sin ωt sin(ωt – Φ)
एक पूर्ण चक्र में cos (2ωt – Φ) का औसत मान शून्य होता है । अत: एक पूर्ण चक्र में परिपथ की औसत शक्ति
जहाँ Vrms और Irms क्रमशः प्रत्यावर्ती वि. वा. बल और प्रत्यावर्ती धारा के औसत मान हैं। cosΦ को परिपथ का शक्ति गुणांक कहते हैं। इसका मान परिपथ की प्रकृति पर निर्भर करता है।
प्रश्न 27.
सिद्ध कीजिए कि एक आदर्श प्रेरकत्व अथवा एक आदर्श धारिता वाले प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में औसत शक्ति का मान शून्य होता है ?
उत्तर:
औसत शक्ति Pav= Vrms × Irms cosΦ
को परिपथ का शक्ति गुणांक कहते हैं । इसका मान परिपथ की प्रकृति पर निर्भर करता है।
आदर्श प्रेरकत्व और आदर्श धारिता वाले परिपथ में, Φ = \(\frac{\pi}{2}\) होता है।
Pav= Vrms × Irmscos\(\frac{\pi}{2}\)
= Vrms × Irms × 0 = 0.
प्रश्न 28.
सिद्ध कीजिए कि ए. सी. परिपथ में औसत शक्ति
Pav= Vrms × Irms × \(\frac{\mathbf{R}}{\mathbf{Z}}\)
से दी जाती है, जहाँ R परिपथ का प्रतिरोध तथा Z प्रतिबाधा है।
उत्तर:
लघु उत्तरीय प्रश्न क्रमांक 26 की भाँति सिद्ध कीजिए कि
Pav= Vrms × IrmscosΦ
जहाँ Φ प्रत्यावर्ती धारा और प्रत्यावर्ती वि. वा. बल के मध्य कलान्तर है।
किन्तु L-C-R श्रेणी परिपथ के लिए,
जहाँ R प्रतिरोध तथा Z प्रतिबाधा है।
Pav= Vrms × Irms × \(\frac{\mathbf{R}}{\mathbf{Z}}\)
प्रश्न 29.
Qगुणक क्या है ? इसके लिए व्यंजक लिखिए तथा इसके मान को अधिक होने के लिए शर्ते लिखिए।
उत्तर:
L-C-R परिपथ में अनुनाद तीक्ष्ण उस समय होता है जब अनुनादी आवृत्ति के प्रत्येक ओर आवृत्ति में थोड़ा-सा परिवर्तन करने पर धारा के मान में अत्यधिक कमी हो जाती है । अनुनाद की तीक्ष्णता का निर्धारण एक विमाहीन राशि से किया जाता है जिसे Q गुणक कहते हैं।
L-C-R परिपथ की अनुनादी आवृत्ति और उसके दोनों ओर की आवृत्तियाँ, जिनमें से प्रत्येक के संगत धारा का आयाम अनुनादी धारा के आयाम का \(\frac{1}{\sqrt{2}}\) गुना होता है के अन्तर के अनुपात को उस परिपथ का Q गुणक कहते हैं।
यदि L-C-R परिपथ की अनुनादी आवृत्ति ω तथा ω + Δω या ω – Δω के संगत धारा का आयाम अनुनादी धारा के आयाम का \(\frac{1}{\sqrt{2}}\) गुना हो, तो
Q गुणक = \(\frac{\omega}{2 \Delta \omega}\)
व्यंजक-Q गुणक = \(\frac{1}{R} \sqrt{\frac{L}{C}}\)
उपर्युक्त व्यंजक से स्पष्ट है कि Q गुणक के मान को अधिक होने के लिए
(i) R के मान को कम होना चाहिए।
(ii) \(\frac{\mathrm{L}}{\mathrm{C}}\) के मान को अधिक होना चाहिए।
प्रश्न 30.
ट्रान्सफॉर्मर किस सिद्धान्त पर कार्य करता है ? दूर स्थानों तक ऊर्जा पहुँचाने में इसका उपयोग किस प्रकार किया जाता है ?
उत्तर:
ट्रान्सफॉर्मर अन्योन्य प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है। इसके प्राथमिक कुण्डली में प्रत्यावर्ती वि. वा. बल लगाने पर द्वितीयक कुण्डली में उसी आवृत्ति का बढ़ा हुआ या घटा हुआ प्रत्यावर्ती वि. वा. बल प्रेरित हो जाता है।
पॉवर हाउस में उत्पन्न विद्युत् धारा की प्रबलता अधिक होती है। इस धारा को इसी रूप में एक स्थान से दूसरे स्थान तक नहीं पहुँचाया जा सकता, क्योंकि ऐसा करने से विद्युत् ऊर्जा का ऊष्मीय ऊर्जा में अपव्यय होने लगता है। अत: सर्वप्रथम उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर का उपयोग करके विद्युत् धारा का विभवान्तर बढ़ा दिया जाता है, जिससे धारा की प्रबलता कम हो जाती है। इस धारा को कम खर्चे में एक स्थान से दूसरे स्थान तक पहुँचाया जा सकता है। घरों में विद्युत् धारा देने के पहले अपचायी ट्रान्सफॉर्मर की सहायता से विभवान्तर को साधारण मान पर लाया जाता है।
प्रश्न 31.
उच्चायी तथा अपचायी ट्रान्सफॉर्मर में अन्तर लिखिए।
उत्तर:
उच्चायी और अपचायी ट्रान्सफॉर्मर में अन्तर-
उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर | अपचायी ट्रान्सफॉर्मर |
1. यह ट्रान्सफॉर्मर प्रत्यावर्ती विभवान्तर को बढ़ा देता है। | यह ट्रान्सफॉर्मर विभवान्तर को कम कर देता है। |
2. यह धारा की प्रबलता को घटा देता है। | यह धारा की प्रबलता को बढ़ा देता है। |
3. इसकी द्वितीयक कुण्डली में फेरों की संख्या प्राथमिक कुण्डली से अधिक होती है। | इसकी द्वितीयक कुण्डली में फेरों की संख्या प्राथ मिक कुण्डली से कम होती है। |
4. इसका परिणमन अनुपात 1 से अधिक होता है। | इसका परिणमन अनुपात 1 से कम होता है। |
प्रश्न 32.
ट्रान्सफॉर्मर में किन-किन कारणों से ऊर्जा क्षय होता है तथा इन्हें किस प्रकार कम किया जा सकता है ?
उत्तर:
ट्रान्सफॉर्मर में निम्नानुसार ऊर्जा क्षय होता है-
(i) ताम्र ह्रास – ट्रान्सफॉर्मर की प्राथमिक एवं द्वितीयक कुण्डलियों में विद्युत् धारा प्रवाहित करने पर जूल प्रभाव के कारण उनमें ऊष्मा उत्पन्न होती है। इस ऊष्मा का मान I2R होता है, जहाँ I प्रवाहित होने वाली धारा की प्रबलता तथाR प्रतिरोध है। ऊष्मा के रूप में ऊर्जा के इस हस को ताम्र ह्रास कहते हैं। इसे दूर नहीं किया जा सकता।
(ii) लौह हास-क्रोड में भँवर धाराएँ उत्पन्न होने के कारण होने वाली ऊर्जा ह्रास को लौह ह्रास कहते हैं। इस हास के मान को कम करने के लिए क्रोड को पटलित बनाया जाता है।
(iii) चुम्बकीय फ्लक्स क्षरण-प्राथमिक कुण्डली में विद्युत् धारा प्रवाहित करने पर उत्पन्न समस्त चुम्बकीय फ्लक्स द्वितीयक कुण्डली से बद्ध नहीं हो पाता । अत: कुछ ऊर्जा का ह्रास हो जाता है। ऊर्जा के इस ह्रास को चुम्बकीय फ्लक्स क्षरण कहते हैं। इसे कम करने के लिए नर्म लोहे का क्रोड उपयोग में लाया जाता है।
(iv) शैथिल्य ह्रास-प्राथमिक कुण्डली में प्रत्यावर्ती धारा प्रवाहित करने पर क्रोड बार-बार चुम्बकित और विचुम्बकित होता रहता है, जिससे कुछ ऊर्जा का ह्रास होता रहता है। इस हास को शैथिल्य ह्रास कहते हैं। शैथिल्य ह्रास को कम करने के लिए नर्म लोहे का क्रोड प्रयुक्त किया जाता है।
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
L-C-R परिपथ में प्रतिबाधा के लिए सूत्र ज्ञात कीजिए। किस स्थिति में बहने वाली धारा अधिकतम होगी?
अथवा
अनुनादी विद्युत् परिपथ किसे कहते हैं ? श्रेणी L-C-R अनुनादी परिपथ के लिए अनुनादी आवृत्ति का व्यंजक ज्ञात कीजिए।
अथवा
L-C-R परिपथ की अनुनादी आवृत्ति के लिए व्यंजक स्थापित कीजिए। इस परिपथ का उपयोग कहाँ किया जाता है।
उत्तर:
अनुनादी विद्युत् परिपथ-जब L-C परिपथ या L-C-R परिपथ में प्रतिबाधा का मान न्यूनतम होता है, तो परिपथ में बहने वाली धारा का मान अधिकतम होता है । इस घटना को अनुनाद कहते हैं । इस स्थिति में प्रत्यावर्ती वि. वा. बल की आवृत्ति को अनुनादी आवृत्ति कहते हैं। यह परिपथ अनुनादी विद्युत् परिपथ कहलाता है।
प्रतिबाधा के लिए व्यंजक-मानलो चित्र (a) में दर्शाये अनुसार एक प्रेरकत्व L, धारिता C तथा प्रतिरोध R एक प्रत्यावर्ती वि. वा. बल के साथ श्रेणीक्रम में जुड़े हुए है।
यदि किसी क्षण परिपथ में बहने वाली धारा I हो, तो प्रेरकत्व L के सिरों के बीच विभवान्तर,
VL = IX ………..(1)
धारिता C के सिरों के बीच विभवान्तर,
VC = I.XC ………..(2)
प्रतिरोध R के सिरों के बीच विभवान्तर,
VR = I.R ………..(3)
VR और I समान कला में होते हैं, VL धारा I से 90° अग्रगामी तथा VC धारा I से 90° पश्चगामी होता है। अत: VL और VC के बीच 180° का कलान्तर होगा।
VL और VC का परिणामी VL – VC होगा।
स्पष्ट है कि VL – VC और VR के बीच 90° कलान्तर VL – VC होगा।
यदि परिणामी विभवान्तर V हो, तो
V2 = VR2 + (VL – VC) 2
या \(\sqrt{\mathrm{V}_{\mathrm{R}}^{2}+\left(\mathrm{V}_{\mathrm{L}}-\mathrm{V}_{\mathrm{C}}\right)^{2}}\)
समी. (1), (2) और (3) से मान रखने पर,
V2 = I2R2 + I2 (XL – XC)2
या \(\frac{\mathrm{V}^{2}}{\mathrm{I}^{2}}\) = R2 + (XL – XC)2
या \(\frac{\mathrm{V}}{\mathrm{I}}\) = \(\sqrt{R^{2}+\left(X_{L}-X_{C}\right)^{2}}\) ………..(4)
यदि समी. (4) की ओम के नियम से तुलना करें, तो \(\sqrt{\mathrm{R}^{2}+\left(\mathrm{X}_{\mathrm{L}}-\mathrm{X}_{\mathrm{C}}\right)^{2}}\) परिपथ का परिणामी प्रतिरोध होगा। इसे इस परिपथ की प्रतिबाधा कहते हैं।
इस प्रकार परिपथ की प्रतिबाधा
Z = \(\sqrt{\mathrm{R}^{2}+\left(\mathrm{X}_{\mathrm{L}}-\mathrm{X}_{\mathrm{C}}\right)^{2}}\)
या प्रतिबाधा Z = \(\sqrt{\mathrm{R}^{2}+\left(\omega \mathrm{L}-\frac{1}{\omega \mathrm{C}}\right)^{2}}\) ………….(5)
यही L-C-R श्रेणी परिपथ में प्रतिबाधा के लिए व्यंजक है।
अधिकतम धारा के लिए शर्त एवं अनुनादी आवृत्ति के लिए व्यंजक – यदि विभवान्तर V और धारा I के बीच कलान्तर Φ हो, तो चित्र (b) से,
अत: परिपथ में बहने वाली धारा निम्नलिखित समीकरण द्वारा व्यक्त की जायेगी-
यदि ωL = \(\frac{1}{\omega \mathrm{C}}\) हो, तो समी. (5) से,
Z = R (न्यूनतम) तथा I0 = \(\frac{\mathrm{V}_{0}}{\mathrm{R}}\) (अधिकतम)।
इस प्रकार इस स्थिति में परिपथ की प्रतिबाधा न्यूनतम तथा धारा अधिकतम होती है।
पुनः अनुनाद की स्थिति में,
ωL = \(\frac{1}{\omega \mathrm{C}}\)
∴ ω2 = \(\frac{1}{L C}\)
या ω = \(\frac{1}{\sqrt{\mathrm{LC}}}\)
या 2πf = \(\frac{1}{\sqrt{\mathrm{LC}}}\) (जहाँ f= आवृत्ति)
∴ f = \(\frac{1}{2 \pi \sqrt{L C}}\)
यही L-C-R परिपथ की अनुनादी आवृत्ति के लिए व्यंजक है।
इस परिपथ का उपयोग रेडियोग्राही को ट्यूनिंग करने में किया जाता है।
प्रश्न 2.
प्रत्यावर्ती L-C-R परिपथ में ज्ञात कीजिए
(i) परिणामी वोल्टेज,
(ii) परिपथ की प्रतिबाधा,
(iii) परिणामी वोल्टेज और धारा के मध्य कलान्तर,
(iv) औसत शक्ति व्यय।
उत्तर:
दीर्घ उत्तरीय प्रश्न क्रमांक 1 के अनुसार सिद्ध कीजिए-
(i) परिणामी वोल्टेज V= \(\sqrt{V_{R}^{2}+\left(V_{L}-V_{C}\right)^{2}}\)
(ii) परिपथ की प्रतिबाधा Z = \(\sqrt{R^{2}+\left(\omega L-\frac{1}{\omega C}\right)^{2}}\)
(iii) परिणामी वोल्टेज और धारा के मध्य कलान्तर Φ = tan-1\(\left(\frac{\omega L-\frac{1}{\omega C}}{R}\right)\)
(iv) औसत शक्ति व्यय-
प्रश्न 3.
ट्रान्सफॉर्मर की कार्यविधि एवं सिद्धान्त को नामांकित चित्र सहित समझाइए।
उत्तर:
नामांकित रेखाचित्र-
सिद्धान्त एवं कार्य-विधि – ट्रान्सफॉर्मर अन्योन्य प्रेरण के सिद्धान्त पर कार्य करता है। जब इसकी प्राथमिक कुण्डली के सिरों के मध्य प्रत्यावर्ती विभवान्तर लगाया जाता है, तो क्रोड में परिवर्ती चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है। अत: प्रेरण की क्रिया से द्वितीयक कुण्डली में उसी आवृत्ति की प्रत्यावर्ती धारा उत्पन्न हो जाती है।
यदि ट्रान्सफॉर्मर की दक्षता 100% हो, तो प्राथमिक कुण्डली को दी गई सम्पूर्ण ऊर्जा द्वितीयक कुण्डली को प्राप्त हो जाती है।
EP × IP = ES × IS
या \(\frac{E_{S}}{E_{P}}=\frac{I_{P}}{I_{S}}\) ……………(1)
जहाँ EP = प्राथमिक कुण्डली के सिरों के मध्य विभवान्तर, ES = द्वितीयक कुण्डली के सिरों के मध्य विभवान्तर, IP = प्राथमिक कुण्डली में बहने वाली धारा, IS = द्वितीयक कुण्डली में बहने वाली धारा।
यदि प्राथमिक कुण्डली में NP चक्कर तथा द्वितीयक कुण्डली में NS चक्कर (फेरे) हों, तो
\(\frac{\mathrm{E}_{\mathrm{S}}}{\mathrm{E}_{\mathrm{P}}}=\frac{\mathrm{N}_{\mathrm{S}}}{\mathrm{N}_{\mathrm{P}}}\) ………………(2)
समी: (1) और (2) से स्पष्ट है कि यदि ES <EP,
तो NS< NP तथा IP < IS.
अत : अपचायी ट्रान्सफॉर्मर (ES < EP) की द्वितीयक कुण्डली में प्राथमिक कुण्डली की तुलना में चक्करों की संख्या कम होती है। अत: ट्रान्सफॉर्मर धारा की प्रबलता को बढ़ा देता है।
पुन: यदि ES > EP,
तो NS > NP तथा IP> IS.
अर्थात् उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर की द्वितीयक कुण्डली में प्राथमिक कुण्डली की तुलना में चक्करों की संख्या अधिक होती है। अतः उच्चायी ट्रान्सफॉर्मर धारा की प्रबलता को बढ़ा देता है।
प्रश्न 4.
L-C परिपथ में विद्युत्-चुम्बकीय दोलनों की उत्पत्ति की व्याख्या परिपथ बनाकर कीजिए।
उत्तर:
चित्र में B एक बैटरी, C एक संधारित्र तथा L एक प्रेरकत्व कुण्डली है। K1 और K2 दाब कुंजियाँ हैं।
जब दाब कुंजी K1 को दबाया जाता है तो संधारित्र C आवेशित होने लगता है और उसमें विद्युत्-ऊर्जा संचित होने लगती है [चित्र (a)] । जब संधारित्र पूर्णतः आवेशित हो जाता है तो दाब कुंजी K1 को छोड़कर दाब कुंजी K2 को दबाते हैं जिससे प्रेरकत्व कुण्डली L में से संधारित्र C विसर्जित होने लगता है।
जब C विसर्जित होता है, तो कुण्डली L में धारा बहने लगती है। अतः उसके चारों ओर चुम्बकीय क्षेत्र उत्पन्न हो जाता है जिसके कारण कुण्डली में प्रेरित वि. वा. बल उत्पन्न हो जाता है जो धारा में वृद्धि का विरोध करता है। अतः संधारित्र को विसर्जित होने में कुछ समय लग जाता है। संधारित्र के विसर्जित होते समय उसमें संचित ऊर्जा क्रमशः कुण्डली में चुम्बकीय ऊर्जा के रूप में परिवर्तित होने लगती है और जब संधारित्र पूर्णतः विसर्जित हो जाता है तो विद्युत् ऊर्जा शून्य तथा चुम्बकीय ऊर्जा अधिकतम हो जाती है। [चित्र (b)]
ज्यों ही विसर्जन पूर्ण होता है, धारा का प्रवाह बन्द हो जाता है जिससे कुण्डली से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स कम होने लगता है। फलस्वरूप कुण्डली में वि. वा. बल प्रेरित हो जाता है। इस प्रेरित वि. वा. बल के कारण संधारित्र अब विपरीत दिशा में आवेशित होने लगता है। इस प्रक्रिया में कुण्डली में संचित चुम्बकीय ऊर्जा क्रमशः संधारित्र में विद्युत् ऊर्जा के रूप में परिवर्तित होने लगती है। यदि परिपथ का ओमीय प्रतिरोध शून्य हो, तो संधारित्र प्रारम्भिक मान तक पुनः आवेशित हो जाता है और कुण्डली में संचित सम्पूर्ण ऊर्जा, विद्युत् ऊर्जा के रूप में संधारित्र में संचित हो जाती है [चित्र (c)]।
‘अब संधारित्र विपरीत दिशा में विसर्जित होता है तथा परिपथ में धारा भी विपरीत दिशा में शून्य से बढ़ने लगती है। जिसके कारण विद्युत् ऊर्जा, चुम्बकीय ऊर्जा के रूप में परिवर्तित होने लगती है। जब संधारित्र पूर्णतः विसर्जित हो जाता है, तो विद्युत् ऊर्जा शून्य तथा चुम्बकीय ऊर्जा अधिकतम हो जाती है [चित्र (d)] ।
संधारित्र के पूर्णतः विसर्जित हो जाने पर कुण्डली से बद्ध चुम्बकीय फ्लक्स घटने लगता है जिससे अब संधारित्र पूर्व से विपरीत दिशा में आवेशित होने लगता है और चुम्बकीय ऊर्जा का विद्युत् ऊर्जा में रूपान्तरण होने लगता है [चित्र (e)] ।
इस प्रकार इस परिपथ में संधारित्र की विद्युत्-ऊर्जा कुण्डली की चुम्बकीय ऊर्जा में, तत्पश्चात् कुण्डली की चुम्बकीय ऊर्जा संधारित्र की विद्युत् ऊर्जा में परिवर्तित होने लगती है और आगे यही क्रिया जारी रहती है। जिससे L-C परिपथ में विद्युत् दोलन होने लगते हैं।
विद्युत्-चुम्बकीय दोलनों की आवृत्ति संधारित्र की धारिता C और कुण्डली के प्रेरकत्व L पर निर्भर करती है। यदि परिपथ का ओमीय प्रतिरोध नगण्य हो, तो परिपथ में विद्युत्-चुम्बकीय दोलनों की आवृत्ति υ निम्न समीकरण द्वारा दी जाती है-
υ = \(\frac{1}{2 \pi \sqrt{L C}}\)
यदि परिपथ का ओमीय प्रतिरोध शून्य है, तो ये विद्युत्-चुम्बकीय दोलन अनन्त काल तक चलते रहते हैं किन्तु परिपथ का प्रतिरोध कभी भी शून्य नहीं हो सकता। परिपथ का कुछ न कुछ प्रतिरोध अवश्य होता है, जिसके कारण परिपथ की ऊर्जा का ऊष्मा ऊर्जा के रूप में क्षय होने लगता है। फलस्वरूप दोलनों का आयाम क्रमशः घटता जाता है और अन्त में शून्य हो जाता है। इस प्रकार के दोलनों को अवमन्दित दोलन कहते हैं।
यदि परिपथ को प्रति चक्र बाहर से उतनी ऊर्जा मिलती रहे जितनी कि क्षति होती है, तो दोलन का आयाम नियत रहता है।
मूल्य आधारित प्रश्न
प्रश्न 1.
विद्यार्थियों के एक समूह ने विद्यालय से आते वक्त देखा कि मुख्य गली में उप-स्टेशन पर एक बॉक्स में ‘Danger HT 2200V’ अंकित था। वे ऐसी उच्च वोल्टता के उपयोग से अनभिज्ञ थे। उन्होंने तर्क लगाया कि आपूर्ति (Supply) केवल 220V थी। उन्होंने दूसरे दिन अपने शिक्षक से यह प्रश्न किया। शिक्षक ने सोचा कि यह एक महत्वपूर्ण प्रश्न है। उसने पूरी कक्षा में इसकी व्याख्या की।
निम्न प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
(i) प्रत्यावर्ती धारा की उच्च वोल्टता को निम्न वोल्टता में लाने के लिए किस युक्ति का उपयोग किया जाता है ? इसके कार्य का सिद्धांत क्या है ?
(ii) क्या यह संभव है कि दिष्टधारा की उच्च वोल्टता को निम्न वोल्टता में लाने के लिए इस युक्ति का उपयोग किया जा सकता है ? व्याख्या कीजिए।
(ii) विद्यार्थियों और शिक्षक के द्वारा प्रदर्शित मूल्यों को लिखिए।
उत्तर:
(i) ट्रांसफॉर्मर । यह अन्योन्य प्रेरण के सिद्धांत पर कार्य करता है। इस सिद्धांत के अनुसार जब किसी कुंडली में बहने वाली धारा के मान में परिवर्तन किया जाता है, तो पास स्थित दूसरी कुंडली में बद्ध चुंबकीय फ्लक्स में परिवर्तन होता है। फलस्वरूप उस कुंडली में प्रेरित विद्युत वाहक बल उत्पन्न हो जाता है।
(ii) इस युक्ति की सहायता से दिष्टधारा की उच्च वोल्टता को निम्न वोल्टता में परिवर्तित नहीं किया जा सकता क्योंकि दिष्टधारा से अन्योन्य प्रेरण की क्रिया नहीं होती।
(iii) विद्यार्थियों में सजगता, नई वस्तुओं को जानने एवं ज्ञान प्राप्त करने की उत्कंठा थी। शिक्षक में अपने विद्यार्थियों की शंकाओं का समाधान करने एवं उन्हें अच्छी शिक्षा देने की ललक थी।
आंकिक प्रश्न
प्रश्न 1.
किसी तार में √2 ऐम्पियर की वर्ग माध्य मूल मान प्रत्यावर्ती धारा बह रही है। इसका अधिकतम (शिखर) मान कितना होगा?
उत्तर:
प्रत्यावर्ती धारा का अधिकतम (शिखर) मान
I0 = √2 × वर्ग माध्य मूल मान (Irms)
= √2 × √2 ऐम्पियर
= 2 ऐम्पियर।
प्रश्न 2.
घरेलू प्रत्यावर्ती विभव का मान 220 वोल्ट होता है। इसका अधिकतम मान क्या होगा?
उत्तर:
सूत्र : प्रत्यावर्ती विभव का वर्ग माध्य मूल मान
Vrms = \(\frac{\mathrm{V}_{0}}{\sqrt{2}}\)
यहाँ Vrms = 220 वोल्ट
अतः Vrms = 220 × √2 = 220 × 1.414 = 311.08 वोल्ट।
प्रश्न 3.
एक कुण्डली का प्रेरकत्व 0.25 हेनरी है। 50 Hz आवृत्ति वाली प्रत्यावर्ती धारा के लिए प्रेरण प्रतिघात की गणना कीजिए।
उत्तर:
प्रेरण प्रतिघात XL = ωL = 2πυL
⇒ XL = 2π × 50 × 0.25 = 78.57Ω.
प्रश्न 4.
किसी प्रत्यावर्ती धारा को I = 20 sin ωt से व्यक्त किया जाता है। यदि I ऐम्पियर में है तो प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
प्रेरण प्रतिघात I = 20 sin ωt
प्रत्यावर्ती धारा I = I0 sin ωt से तुलना करने पर, I0 = 20 ऐम्पियर
A. C. का वर्ग माध्य मूल Irms = \(\frac{\mathrm{I}_{0}}{\sqrt{2}}=\frac{20}{\sqrt{2}}\) = 14.142 ऐम्पियर।
प्रश्न 5.
प्रत्यावर्ती वोल्टेज का समीकरण V = 220sin 100πt है। वोल्टेज का वर्ग माध्य मूल ज्ञात कीजिए।
उत्तर:
V = 220sin 100πt
प्रत्यावर्ती वोल्टेज V = V0 sin ωt से तुलना करने पर, V0 = 220 वोल्ट
∴ Vrms = \(\frac{220}{\sqrt{2}}\) = 155.50 ऐम्पियर।
प्रश्न 6.
एक उच्चायी ट्रांसफॉर्मर में प्राथमिक एवं द्वितीयक कुंडलियों में फेरों की संख्या का अनुपात 1: 10 है। यह 220 V के एक प्रत्यावर्ती स्रोत से जुड़ा है तथा इसमें प्रवाहित होने वाली धारा 5 ऐम्पियर है। द्वितीयक कुण्डली में प्रेरित वि. वा. बल तथा प्रेरित धारा की गणना कीजिए।
उत्तर:
⇒ Is = 0.5 ऐम्पियर।
प्रश्न 7.
15.0μF का एक संधारित्र 220V, 50Hz स्रोत से जोड़ा गया है। परिपथ का संधारित्रीय प्रतिघात तथा उसमें बहने वाली धारा (rms एवं शिखर) के मान बताइए। यदि आवृत्ति को दोगुना कर दिया जाए तो संधारित्रीय प्रतिघात और धारा के मान पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
(NCERT Solved Example)
उत्तर:
दिया है- C = 15.0μF = 15.0 × 10-6F; Vrms = 220V; υ =50 Hz
= 1.47 A.
XC ∝ \(\frac{1}{v}\) अतः आवृत्ति दोगुनी करने पर प्रतिघात आधा हो जाएगा।
Irms ∝ – \(\frac{1}{X_{C}}\) अतः XC के आधा हो जाने पर धारा का मान दोगुना हो जाएगा। ..
प्रश्न 8.
एक 100Ω का प्रतिरोधक 220V, 50Hz आपूर्ति से संयोजित है-
(a) परिपथ में धारा का rms मान कितना है ?
(b) एक पूरे चक्र में कितनी नेट शक्ति व्यय होती है ? (NCERT)
उत्तर:
दिया है-R = 100Ω;Vrms = 220V;υ = 50Hz
(a) Irms =\(\frac{V_{r m s}}{R}=\frac{220}{100}\) = 2.2A.
(b) Pav = Irms2R = (2.2)2 × 100 = 484w.
प्रश्न 9.
एक 44mH का प्रेरित्र 220V, 50Hz आपूर्ति से जोड़ा गया है। परिपथ में धारा के rms मान को ज्ञात कीजिए।
(NCERT)
उत्तर:
दिया है- L= 44mH = 44 × 10-3H; Vrms = 220V;υ = 50Hz
XL = ωL = 2πυL = 2 × 3.14 × 50 × 44 × 10-3
=13816 × 10-3 = 13.816 = 13.82Ω
∴ Irms = \(\frac{V_{\text {rms }}}{X_{L}}=\frac{220}{13.82}\) = 15.92A ≈ 15.9A.
प्रश्न 10.
एक LCR परिपथ की, जिसमें L = 2.0H, C = 32μF तथा R = 10Ω अनुनादआवृत्ति, परिकलित कीजिए। इस परिपथ के लिए ए का क्या मान है ? (NCERT)
उत्तर:
दिया है- L= 2.0H; C = 32μF = 32 × 10-6F; R = 10Ω
प्रश्न 11.
30μF का एक आवेशित संधारित्र 27mH के प्रेरित्र से जोड़ा गया है। परिपथ के मुक्त दोलनों की कोणीय आवृत्ति कितनी है ?
(NCERT)
उत्तर:
दिया है- C = 30μF = 30 × 10-6F; L = 27mH = 27 × 10-3 H
प्रश्न 12.
एक श्रेणीबद्ध LCR परिपथ को, जिसमें R = 20Ω, L = 1.5H तथा C = 35μF, एक परिवर्ती आवृत्ति की 200V ac आपूर्ति से जोड़ा गया है। जब आपूर्ति की आवृत्ति परिपथ की मूल आवृत्ति के बराबर होती है, तो एक पूरे चक्र में परिपथ को स्थानांतरित की गई माध्य शक्ति कितनी होगी?
उत्तर:
दिया है- R= 20Ω; L = 1.5H; C = 35μF = 35 × 10-6F;Vrms = 200V
दिया है- आपूर्ति की आवृत्ति = परिपथ की मूल आवृत्ति
यह अनुनादी की स्थिति है। इस स्थिति में Z = R.
प्रश्न 13.
एक अपचायी ट्रांसफॉर्मर लाइन वोल्टता को 2200 वोल्ट से 220 वोल्ट करता है। प्राथमिक कुंडली में 5000 फेरे हैं। ट्रांसफॉर्मर की दक्षता 90% एवं निर्गत शक्ति 8 किलोवॉट है। निम्न की गणना कीजिए-
(i) द्वितीयक कुंडली में फेरों की संख्या,
(ii) निवेशी शक्ति।
उत्तर
दिया है – VP, = 2200 वोल्ट, VS = 220 वोल्ट, NP = 5000;η = 90% = \(\frac{90}{100}\) निर्गत शक्ति = 8 किलोवॉट = 8 × 103 वॉट
= 8.89 किलोवॉट।
वस्तुनिष्ठ प्रश्न
1. सही विकल्प चुनकर लिखिए
प्रश्न 1.
एक प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में धारा का शिखर मान 50/2 ऐम्पियर है, धारा का वर्ग माध्य मूल मान होगा-
(a) 100 ऐम्पियर
(b) 25 ऐम्पियर
(c) 50 ऐम्पियर
(d) 10 ऐम्पियर।
उत्तर:
(c) 50 ऐम्पियर
प्रश्न 2.
किसी प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में धारा का शिखर मान I0 व आभासी मान Irms है तो संबंध
होगा
(a) I0 = \(\frac{1}{\sqrt{2}}\) Irms
(b) Irms = √3 I0
(c) I0 = Irms
(d) I0 = √2 Irms.
उत्तर:
(d) I0 = √2 Irms.
प्रश्न 3.
किसी प्रत्यावर्ती धारा परिपथ में वोल्टेज का शिखर मान V0 व आभासी मान Vrms है तो संबंध
होगा
(a) V0 = \(\frac { 1 }{ 2 }\)Vrms
(b) V0 = √2Vrms
(c) V0 = √3 Vrms
(d) V0 = Vrms.
उत्तर:
(b) V0 = √2Vrms
प्रश्न 4.
प्रत्यावर्ती धारा के मापन हेतु अमीटर एवं वोल्टमीटर आधारित होते हैं-
(a) धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर
(b) धारा के रासायनिक प्रभाव पर
(c) धारा के चुम्बकीय प्रभाव पर
(d) उपर्युक्त सभी पर।
उत्तर:
(a) धारा के ऊष्मीय प्रभाव पर
प्रश्न 5.
किसी प्रत्यावर्ती धारा के लिए V0, I0 एवं cosΦ क्रमशः वोल्टेज का शिखर मान, धारा का
शिखर मान एवं शक्ति गुणांक हैं। परिपथ में व्यय शक्ति का व्यंजक होगा-
(a) \(\frac{\mathrm{V}_{0} \mathrm{I}_{0}}{\sqrt{2}}\) cosΦ
(b) \(\frac{\mathrm{V}_{0} \mathrm{I}_{0}}{\sqrt{2}}\)sinΦ
(c) Vrms Irms cosΦ
(d) उपर्युक्त में से कोई नहीं।
उत्तर:
(c) Vrms Irms cosΦ
प्रश्न 6.
L-C-R परिपथ की प्रतिबाधा होती है-
(a) C
(b) \(\sqrt{\mathrm{R}^{2}+(\omega \mathrm{L})^{2}}\)
(c) \(\sqrt{\mathrm{R}^{2}+\left(\omega \mathrm{L}+\frac{1}{\omega \mathrm{C}}\right)^{2}}\)
(d) \(\sqrt{\mathrm{R}^{2}+\left(\omega \mathrm{L}-\frac{1}{\omega \mathrm{C}}\right)^{2}}\)
उत्तर:
(d) \(\sqrt{\mathrm{R}^{2}+\left(\omega \mathrm{L}-\frac{1}{\omega \mathrm{C}}\right)^{2}}\)
प्रश्न 7.
एक प्रेरकत्व
(a) प्रत्यावर्ती धारा को गुजरने देता है किन्तु दिष्ट धारा को रोकता है
(b) प्रत्यावर्ती धारा को रोकता है किन्तु दिष्ट धारा को गुजरने देता है
(c) ए. सी. व डी. सी. दोनों को गुज़रने देता है
(d) ए. सी. व डी. सी. दोनों को रोकता है।
उत्तर:
(c) ए. सी. व डी. सी. दोनों को गुज़रने देता है
प्रश्न 8.
एक संधारित्र
(a) ए. सी. को गुजरने देता है किन्तु डी. सी. को रोकता है
(b) डी. सी. को गुजरने देता है किन्तु ए. सी. को रोकता है
(c) दोनों को गुजरने देता है
(d) दोनों को रोकता है।
उत्तर:
(a) ए. सी. को गुजरने देता है किन्तु डी. सी. को रोकता है
प्रश्न 9.
भारत में प्रत्यावर्ती धारा की आवृत्ति है
(a) 50 हर्ट्ज
(b) 60 हर्ट्स
(c) 40 हर्ट्ज
(d) 70 हर्ट्ज
उत्तर:
(a) 50 हर्ट्ज
प्रश्न 10.
प्रत्यावर्ती धारा प्रयुक्त नहीं की जा सकती-
(a) ऊष्मीय प्रभाव के लिए
(b) प्रकाश उत्पन्न करने के लिए
(c) विद्युत् अपघटन के लिए
(d) यांत्रिक ऊर्जा उत्पन्न करने के लिए।
उत्तर:
(c) विद्युत् अपघटन के लिए
प्रश्न 11.
ट्रांसफॉर्मर की क्रोड बनायी जाती है-
(a) स्टील की
(b) नर्म लोहे की
(c) ताँबे की
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) नर्म लोहे की
प्रश्न 12.
अपचायी (स्टेप डाउन) ट्रांसफॉर्मर में क्या कम होता है-
(a) धारा
(b) वोल्टेज
(c) वॉटेज
(d) धारा घनत्व।
उत्तर:
(b) वोल्टेज
प्रश्न 13.
श्रेणी अनुनादी परिपथ कहलाता है-
(a) ग्राही परिपथ
(b) अस्वीकारी परिपथ
(c) दोनों
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) ग्राही परिपथ
प्रश्न 14.
एक L-C-R( श्रेणी) परिपथ में यदि ωL = \(\frac{1}{\omega C}\) हो, तो-
(a) धारा अधिकतम होगी
(b) धारा न्यूनतम होगी
(c) परिपथ की प्रतिबाधा अधिकतम होगी
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(a) धारा अधिकतम होगी
2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. एक शुद्ध धारितीय परिपथ में धारा, विद्युत् वाहक बल से कलान्तर में ………. आगे होती है।
उत्तर:
90° या π/2 रेडियन
2. प्रत्यावर्ती धारा मापने के उपकरण धारा के ……………. प्रभाव पर आधारित होते हैं।
उत्तर:
ऊष्मीय
3. टैंक परिपथ का मुख्य कार्य ……………. उत्पन्न करना है।
उत्तर:
विद्युत् चुम्बकीय दोलन
4. शुद्ध प्रेरकत्व या शुद्ध धारिता द्वारा धारा प्रवाह में रुकावट डालना उस परिपथ का ……….. कहलाता है।
उत्तर:
प्रतिघात
5. विद्युत् लेपन के लिए ……….. धारा प्रयुक्त की जाती है।
उत्तर:
दिष्ट
6. एक शुद्ध प्रेरकत्व वाले परिपथ में धारा, विद्युत् वाहक बल से π/2 कला से ………… होती है।
उत्तर:
पीछे
7. आवृत्ति के साथ धारितीय प्रतिघात ……………. होता है।
उत्तर:
कम
8. Q-गुणक को …………. प्रवर्धन भी कहते हैं।
उत्तर:
वोल्टेज
9. किसी ए. सी. परिपथ में प्रतिबाधा न्यूनतम है तथा धारा अधिकतम है। यह स्थिति ………………. की स्थिति कहलाती है।
उत्तर:
अनुनाद
10. प्रत्यावर्ती धारा का वर्ग माध्य मूल मान उसके शिखर मान का ……………… गुना होता है।
उत्तर:
0.707
11. ट्रांसफॉर्मर में ………… नियत होती है।
उत्तर:
आवृत्ति
12. एक संधारित्र दिष्ट धारा को रोकता है, क्योंकि दिष्टधारा के लिए इसका प्रतिघात …………… होता है।
उत्तर:
अनंत
13. अनुनाद की तीक्ष्णता ……………. के मान पर निर्भर करती है।
उत्तर:
प्रतिरोध
3. उचित संबंध जोडिए
खण्ड ‘अ’ | खण्ड ‘ब’ |
1. धारितीय प्रतिघात | (a) धारा का ऊष्मीय प्रभाव |
2. प्रेरकत्व प्रतिघात | (b) अनुनाद की तीक्ष्णता का मापन |
3. अनुनादी आवृत्ति | (c) ωL |
4. प्रत्यावर्ती धारा अमीटर | (d) \(\frac{1}{\omega \mathrm{C}}\) |
5. Q-गुणक | (e) \(\frac{1}{2 \pi \sqrt{L C}}\) |
उत्तर:
1. (d) \(\frac{1}{\omega \mathrm{C}}\)
2. (c) ωL
3. (e) \(\frac{1}{2 \pi \sqrt{L C}}\)
4. (a) धारा का ऊष्मीय प्रभाव
5. (b) अनुनाद की तीक्ष्णता का मापन