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MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 4 अध्यक्ष महोदय (व्यंग्य, शरद जोशी)
अध्यक्ष महोदय अभ्यास
अध्यक्ष महोदय अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
पेशेवर अध्यक्ष किस विशेष प्रकार के वस्त्र पहनते हैं?
उत्तर:
पेशेवर अध्यक्ष शेरवानी नाम का विशेष वस्त्र पहनते हैं।
प्रश्न 2.
अध्यक्ष को गम्भीर किस्म का प्राणी क्यों कहा गया है? (2015, 17)
उत्तर:
गम्भीर किस्म का प्राणी ही सभा में मनहूस सूरत बना कर बैठता है और अच्छा अध्यक्ष होने की पहली शर्त है-गम्भीर-मनहूस सूरत।
प्रश्न 3.
रेडीमेड अध्यक्ष किसे कहा जाता है?
उत्तर:
रेडीमेड अध्यक्ष वह है जो सब विषयों पर एक ही अन्दाज से, एक ही बात करता है और उसे सब में एक-सा आनन्द आने लगता है।
प्रश्न 4.
पुराने अध्यक्ष की शेरवानियों में से किस प्रकार की गन्ध आती है?
उत्तर:
पुराने अध्यक्ष की शेरवानियों में से एक विशेष प्रकार की गन्ध आती है और वह है-अध्यक्षता की गन्ध।
प्रश्न 5.
अध्यक्षता करने को मर्ज क्यों कहा है?
उत्तर:
अध्यक्षता करने को मर्ज इसलिए कहा गया है, क्योंकि यह शौक एक बार लग जाने पर हमेशा के लिए लग जाता है।
अध्यक्ष महोदय लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अध्यक्ष के बारे में सामान्य धारणाएँ क्या हैं?
उत्तर:
अध्यक्ष के बारे में सामान्य धारणाएँ हैं कि अध्यक्ष पैदा होता है, गम्भीर व मनहूस किस्म का होता है, उसके अन्दर अध्यक्षता का मर्ज होता है, वह पेट से आता है, रेडीमेड होता है, प्रमुख वक्ता से असहमत होते हुए उसकी प्रशंसा करता है और अन्त में मुस्कराता है और अध्यक्षता करने के बाद सुख की नींद सोता है।
प्रश्न 2.
अध्यक्ष के देर से आने के कारणों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अध्यक्ष की एक विशेषता होती है कि वह देर से आता है,क्योंकि वह एक अत्यन्त व्यस्त प्राणी होता है। वह अपने महत्व को दिखाना चाहता है। वक्ता का भाषण एक खुले माल की बिक्री की दुकान की तरह होता है, जिससे श्रोता रूपी ग्राहक देर से आते हैं तो अध्यक्ष बिना श्रोता के क्या करेगा, अतः वह भी देर से आता है।
प्रश्न 3.
अध्यक्ष बनने वाले कितनी तरह से अध्यक्ष बनते हैं? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अध्यक्ष बनने वाले कई तरह से अध्यक्ष बनते हैं। कुछ चौंककर अध्यक्ष बनते हैं, कुछ सहज अध्यक्ष बन जाते हैं, कुछ दूल्हे की तरह लजाते-मुस्कराते अध्यक्ष बनते हैं। कुछ यों अध्यक्ष बनते हैं, जैसे शहीद होने जा रहे हों। कुछ हेडमास्टर की अदा से अध्यक्ष बनते हैं।
प्रश्न 4.
अध्यक्षीय दायित्व का निर्वहन करने के पश्चात् अध्यक्ष घर जाकर सुख की नींद क्यों सोता है?
उत्तर:
अध्यक्षता करने के बाद अध्यक्ष सुख की नींद सोता है। नये-नये अध्यक्ष को घर जाकर पत्नी को अध्यक्षता काल के विषय में दोहराते हुए सुख प्राप्त होता है। थोड़े समय बाद पत्नी भी सामान्य श्रोताओं के समान चुप रहने लगती है,तो अध्यक्ष देर रात तक अपने भाषण पर खुद मोहित हो सो जाते हैं। उस उम्र तक उसकी बौद्धिक नपुंसकता ‘अहं’ में बदल जाती है। वह सोचता है रात के बाद सुबह होगी फिर कोई बुलाने आयेगा। इसी कल्पना में वह सुख से सो जाता है।
प्रश्न 5.
अच्छे अध्यक्ष के मस्तिष्क की हालत कैसी होती है?
उत्तर:
अच्छे अध्यक्ष के मस्तिष्क की हालत उस नौ रतन चटनी की तरह हो जाती है जिसके काजू और किशमिश का स्वाद एक हो जाता है। सब में एक-सा मजा आने लगता है।
अध्यक्ष महोदय दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अध्यक्षता करते समय अध्यक्ष की गतिविधियों पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
अध्यक्षता करते समय अध्यक्ष की गतिविधियाँ बड़ी विचित्र होती हैं। अध्यक्षता करता अध्यक्ष हर पाँचवें मिनट पर मुस्कराता है, जबकि उसके मुस्कराने का कोई कारण नहीं होता। हर ढाई मिनट पर वह जनता की तरफ देखता है। हर एक मिनट बाद सामने की पंक्ति में बैठे लोगों को और हर दो मिनट बाद महिलाओं को और बीच-बीच में छत की तरफ देखता है। ठड्डी पर उँगलियाँ फेर सोचता है कि शेव कैसी बनी है? लगातार बदन खुजलाता है। बार-बार टोपी सिर पर रखता और उतारता है। वक्ताओं को निरन्तर आश्चर्य से देखते हुए दिखावा करता है कि वह ध्यानपूर्वक वक्ता की बातों को सुनकर समझ रहा है। वक्ता तर्क-वितर्क क्यों कर रहा है? गर्दन हिलाकर वक्ता की बात का समर्थन करता भी है और नहीं भी। कभी-कभी अध्यक्ष सम्पूर्ण सभा को देखकर मुस्कराता है कि इस जनसमूह का वह चालक है। अपने पद पर अहम् भी करता है। अधिकतर अध्यक्ष घुमा-फिरा कर बातें कहते हैं और मूल बिन्दु पर कभी नहीं आते। अपनी वक्ता से असहमति प्रकट करने पर भी सहमत हो जाता है। लेखक ने अध्यक्ष की गतिविधियों पर आदि से अन्त तक व्यंग्य किया है।
प्रश्न 2.
अच्छे अध्यक्ष की विशेषताएँ बताइए। (2010)
उत्तर:
व्यंग्यकार शरद जोशी ने अपने निबन्ध अध्यक्ष महोदय’ में अच्छे अध्यक्ष की अनेक विशेषताएँ बताई हैं, जो निम्नलिखित हैं-
- अच्छे अध्यक्ष होने की पहली शर्त है-मनहूस होना। एक अच्छा अध्यक्ष मनहूस होता है बल्कि कहना होगा कि मनहूस ही अच्छा अध्यक्ष होता है।
- अध्यक्ष गम्भीर किस्म का प्राणी होता है या उसमें यह भ्रम बनाये रखने की शक्ति होती है कि वह गम्भीर है।
- अध्यक्ष एक प्रकार का रोगी होता है, उसे रोग होता है। भीड से अलग बैठने अपने को श्रोता दिखाने, तकल्लुफ प्रदर्शन करने और अन्त में माइक के साथ फिट होने का।
- अध्यक्ष पद की घोषणा करने पर कभी चौंकता है,कभी दूल्हे की तरह लजाता है.तो कभी शहीदों की तरह बहादुरी दिखाता है। साथ ही, कभी-कभी हेड-मास्टर की तरह अदा भी दिखाता है।
- अध्यक्ष के स्थान पर बैठकर विभिन्न मुख मुद्राएँ बनाता रहता है।
- अध्यक्ष देर से आता है, क्योंकि वह अति व्यस्त प्राणी है।
- उसका अध्यक्षीय भाषण स्पष्ट न होकर गोल-मोल होता है। विषय से इतर जाने क्या-क्या कहता रहता है।
- अच्छे अध्यक्ष रेडीमेड होते हैं तथा सर्वत्र होने के कारण एक ही अन्दाज में एक ही बात कहते रहते हैं।
- अच्छे अध्यक्ष के मस्तिष्क की हालत नौ रतन चटनी जैसी होती है, जिसमें विभिन्न विचार एक-सा आनन्द देते हैं।
- अच्छा अध्यक्ष प्रमुख वक्ता से असहमत होता है। बाद में वक्ता की अस्पष्ट रूप से प्रशंसा करके उससे सहमत हो जाता है।
- सभा के अन्त में गम्भीरता का नकाब उतार कर मुस्कराते हुए घर जाकर सुख की नींद सो जाता है।
प्रश्न 3.
“अच्छे अध्यक्ष प्रमुख वक्ता से असहमत होते हैं” कारण सहित स ए कीजिए।
उत्तर:
अच्छा अध्यक्ष प्रमुख वक्ता से असहमत होता है। जैसे वक्ता कहता है कि इस समय रात है तो अध्यक्ष महोदय गोल-मोल बातों से सिद्ध करना चाहता है कि इस समय रात नहीं है। यह सच है कि सूर्य डूब गया है और अन्धकार है, पर यही पर्याप्त आधार नहीं कि हम कह दें कि यह रात है। अध्यक्ष तुरन्त विषय को बदल कर देश की स्थिति से जोड़ देता है। वक्ता के भाषण को ओजस्वी बताकर सामाजिक समस्याओं से जोड़ देता है। अन्त में वक्ता को धन्यवाद देता है। उसके भाषण की प्रशंसा करता है। अपने को अध्यक्ष बनाने के लिए कृतज्ञता प्रकट करता है। अब रात काफी हो गई है,कह कर भाषण समाप्त कर देता है।
एक ओर तो वक्ता के कथन ‘इस समय रात है’ को काट रहा है दूसरी ओर स्वयं स्वीकार कर रहा कि ‘अब रात काफी हो गई है।’ इस प्रकार, अध्यक्ष प्रमुख वक्ता की बात से असहमत होने पर भी पूर्ण सहमत है। महज वक्ता का विरोध करना या उससे असहमत होना उसकी आदत होती है। उसके लिए एक ख्याति की बात बन जाती है। अन्त में स्वयं उसे मान लेता है। इस प्रकार,अध्यक्ष असहमत होने और सहमत होने में भेद नहीं कर पाता है। यह उसकी बौद्धिक अक्षमता का प्रतीक तथा विसंगतियों का प्रतीक है। यह विरोध वह अपनी प्रतिष्ठा को बढ़ाने के लिए करता है,जबकि यह विरोध केवल शाब्दिक छल मात्र रहता है। अध्यक्ष की वक्तव्य क्षमता की कलई खोल देता है।
प्रश्न 4.
भाव स्पष्ट कीजिए
(1) “नरगिस जब बेनूरी पर काफी रो लेती है, तब आप शहर में जन्म लेते हैं।”
(2) “पचास-सौ वर्षों बाद तो अध्यक्षता इतनी विकसित हो जाएगी कि खुद माइक वाला अपने साथ अध्यक्ष लाएगा और मंच पर फिट कर देगा।”
(3) “लोग मरते जाते हैं और अध्यक्ष जीवित रह शोक-सभाओं में बोलता रहता है।”
उत्तर:
उपरोक्त गद्यांशों की व्याख्या पाठ के ‘व्याख्या हेतु गद्यांश’ भाग में देखिए।
प्रश्न 5.
‘अध्यक्ष महोदय’ शरद जोशी का राजनीतिक और सामाजिक व्यंग्य है इस विषय पर अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
आधुनिक युग के प्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य लेखक श्री शरद जोशी ने ‘अध्यक्ष महोदय’ व्यंग्य निबन्ध में राजनैतिक और सामाजिक विसंगतियों पर चुटीला व्यंग्य किया है। दोनों प्रकार की सभाओं व गोष्ठियों में अध्यक्ष का होना एक अनिवार्य औपचारिकता है। सभा में अध्यक्ष अवश्य होगा, उसका विशेष पहनावा व मुख मुद्रा होगी। वह गंभीर व मनहूस होगा। वह सर्वज्ञ होगा, व्यर्थ के अहम् को पालने वाला होगा। राजनैतिक नेता भी अध्यक्ष की तरह गम्भीर,मनहूस, विरोध व सहमति में अन्तर करने में असमर्थ,गोल-मोल बात कहने वाले, जनता के साथ छल करने वाले होते हैं। जनता के सामने स्वयं को श्रेष्ठ प्रदर्शित करना उनका प्रमुख कर्त्तव्य होता है। नेता अपने व्यर्थ के अहम् को पाते रहते हैं। सभाओं में देर से आना, अन्त में सबको धन्यवाद देना। इन सब घटनाओं पर आद्योपांत व्यंग्य समाहित है। अतः यह निबन्ध राजनीतिक और सामाजिक व्यंग्य है,जो पाठक को कुछ सोचने के लिए मजबूर करता है।
अध्यक्ष महोदय भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
नीचे दिए शब्दों में से मूल शब्द, उपसर्ग और प्रत्यय अलग कीजिए
अध्यक्षता, अनुकरण, सम्माननीय, गम्भीरता, असामान्य, विदेशी।
उत्तर:
प्रश्न 2.
वाक्य शुद्ध कीजिए
- ग्राहक लापरवाह हो जाती है।
- केवल मात्र अध्यक्षता के लिए शेरवानी सिलवाते हैं।
- वह सप्रमाण सहित पत्र लेकर उपस्थित हो गया।
- गांधीजी का देश सदा आभारी रहेगा। (2010)
- आपका भवदीय। (2010)
उत्तर:
- ग्राहक लापरवाह हो जाता है।
- मात्र अध्यक्षता के लिए शेरवानी सिलवाते हैं।
- वह प्रमाण सहित पत्र लेकर उपस्थित हो गया।
- देश गाँधीजी का सदा आभारी रहेगा।
- भवदीय।
प्रश्न 3.
निम्नांकित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए-
लाभ, विकसित,उपाय, मर्यादित, समस्या, पर्याप्त।
उत्तर:
हानि, अविकसित, निरुपाय, अमर्यादित, समाधान, अपर्याप्त।
प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों को पढ़कर अर्थ के आधार पर वाक्य भेद लिखिए
- शायद आप परेशान हो जाएँ।
- क्या यही रात है?
- अध्यक्ष गम्भीर किस्म का प्राणी होता है।
- आप इस पर विचार करें।
- आएगा नहीं तो जाएगा कहाँ।
- वे अध्यक्षता करने नहीं जाते हैं।
- यदि सूर्य हमारे देश में पहले उगता है तो रात भी पहले यहाँ होती है।
- ईश्वर आपका भला करे।
उत्तर:
- संदेहवाचक वाक्य
- प्रश्नवाचक वाक्य
- विधानवाचक वाक्य
- आज्ञावाचक वाक्य
- संकेत वाचक वाक्य
- निषेधवाचक वाक्य
- संकेतवाचक वाक्य
- इच्छावाचक वाक्य।
प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों को निर्देशानुसार बदलिए-
(1) अध्यक्ष महोदय मुस्कराने लगे। (प्रश्नवाचक में)
(2) अध्यक्ष सुख की नींद सोता है। (निषेधात्मक में)
(3) आप परेशान हो जाएँगे। (सन्देहवाचक में)
(4) अच्छे अध्यक्ष प्रमुख वक्ता से असहमत होते हैं। (संकेतवाचक में)
(5) कितना अद्भुत दृश्य है। (विस्मयवाचक में)
उत्तर:
(1) अध्यक्ष महोदय क्यों मुस्कराने लगे?
(2) अध्यक्ष सुख की नींद नहीं सोता है।
(3) शायद आप परेशान हो जायेंगे।
अध्यक्ष महोदय पाठ का सारांश
सुप्रसिद्ध हास्य-व्यंग्य लेखक ‘शरद जोशी’ द्वारा लिखित प्रस्तुत निबन्ध ‘अध्यक्ष महोदय में लेखक ने आधुनिक युग में आयोजित कार्यक्रमों में अध्यक्ष पद के ऊपर करारा व्यंग्य किया है।
प्रत्येक सभा या गोष्ठी में एक अध्यक्ष होता है। अध्यक्ष वह होता है, जिसके पास शेरवानी होती है. जिसमें अध्यक्षता की गन्ध आती है। अध्यक्ष पैदा होता है। वह लम्बे समय तक चलता है। वह गम्भीर होने का नाटक करता है। अच्छे अध्यक्ष की पहचान होती है कि वह मनहूस होता है। अध्यक्षता एक प्रकार का रोग है, जो लग जाये तो जीवन-भर चलता रहता है। सभा में माइक के समान अध्यक्ष भी फिट किये जाते हैं। अध्यक्ष अनेक प्रकार के बनते हैं, जैसे-चौंककर,दूल्हे की तरह लजाकर, शहीद की तरह शहीद होकर या हैडमास्टर की सी अदाएँ दिखाकर। गोष्ठी के सम्पूर्ण काल में वे ऐसा प्रदर्शन करते हैं जैसे वह गोष्ठी व उपस्थित जनता के ध्यान देने की वस्तु हैं।
अध्यक्ष की सबसे बड़ी विशेषता होती है, देर से आना तथा अपनी व्यस्तता का प्रदर्शन करना। अच्छे अध्यक्ष रेडीमेड होते हैं,जो सब विषय पर खूब बोल सकते हैं। चाहे उनके भाषण में दो शब्द भी सारगर्भित न हों। अच्छे अध्यक्ष की एक और विशेषता होती है कि वह प्रमुख वक्ता से असहमत ही रहता है। असहमत होने के अनर्गल तर्क देकर अन्त में वक्ता से पूर्ण सहमत हो जाता है। उसे धन्यवाद देता है और सभा की कार्यवाही को समाप्त कर देता है। तत्पश्चात् गम्भीर मुस्कान के साथ अपने घर चला जाता है। वहाँ सुख की नींद सोता है। नया अध्यक्ष घर आकर अपनी पत्नी को सब बता देता है। कालान्तर में पत्नी इस सब की अभ्यस्त हो जाती है। तब अध्यक्ष महोदय अपने भाषण पर खुद मोहित होकर सो जाते हैं। अध्यक्ष एक व्यर्थ के ‘अहं’ को पाले रहता है।
इन सब घटनाओं में आरम्भ से लेकर अन्त तक व्यंग्य छिपा हुआ है। अध्यक्ष, वक्ता, आयोजनकर्ता और कार्यक्रम सब पर व्यंग्य है। इसी कारण सम्पूर्ण निबन्ध में रोचकता व उत्सुकता बनी रहती है। भाषा उर्दू शब्दावली व उदाहरणों से भरपूर है।
अध्यक्ष महोदय कठिन शब्दार्थ
साइज = आकार। पेशेवर = व्यवसायी। बेनूरी = बदसूरती। मनहूस = अशुभ। मर्ज = रोग। महज = केवल। श्रोता = सुनने वाला। तकल्लुफ = परहेज। प्रदर्शन = दिखावा। वजह = कारण। निरन्तर = लगातार। तय = निश्चय। कंट्रोल = नियंत्रण। शख्स = व्यक्ति। अन्दाज = अनुमान। मजा = आनन्द। किस्म = प्रकार। परखा = जाँचा। सदैव = हमेशा। पर्याप्त = काफी। ओजस्वी = जोश से भरा। सारगर्भित = सारयुक्त।
अध्यक्ष महोदय संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या
(1) नरगिस जब बेनूरी पर काफी रो लेती है तब आप शहर में जन्म लेते हैं।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत पंक्ति हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘अध्यक्ष महोदय’ नामक पाठ से अवतरित है। इसके लेखक ‘शरद जोशी’ हैं।
प्रसंग :
लेखक का कथन है कि अध्यक्ष न बनाया जाता है और न चुना जाता है। वह तो दुःखों का अन्त होने पर जन्म लेता है।
व्याख्या :
दुःख रूपी रात का अन्त होने पर ही सुख रूपी सूर्य का जन्म होता है। नरगिस का पौधा देखने में खूबसूरत नहीं होता तथा लम्बे समय तक फूल रहित रहता है। बरसात के आने पर ही सुन्दर रंगों के फूल खिलते हैं। इसी प्रकार, जब माँ कष्ट सहती है और बदसूरत हो जाती है तब ही सन्तान रूपी पुष्प को जन्म देती है। इसी प्रकार, कष्ट व बदसूरती के परिणामस्वरूप अध्यक्ष का जन्म होता है।
विशेष :
- प्रयुक्त युक्ति में जीवन का कटु सत्य है।
- भाषा सरल उर्दू के शब्दों से भरपूर है।
- सूत्रात्मक शैली का प्रयोग है।
(2) लोग मरते जाते हैं और अध्यक्ष जीवित रह शोक-सभाओं में बोलता रहता है।
संदर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
अध्यक्ष कोई व्यक्ति विशेष न होकर एक पद है जो सदैव जीवित रहेगा।
व्याख्या :
इस एक ही वाक्य में जोशी जी ने बताया है कि पीढ़ियाँ बदलती जाती हैं, लेकिन अध्यक्ष पद तो सभा व गोष्ठी को सजाता ही रहेगा। उस सुशोभित स्थान पर बैठकर भाषण देने वाला। इस प्रकार, एक खुशी की गोष्ठी भी शोक सभा में परिवर्तित हो जायेगी। जनता इस नीरसता का सामना करती रहेगी। अध्यक्ष पद की कुर्सी सदैव जीवित रहेगी।
विशेष :
- अध्यक्ष पद की निस्सारता का चित्र है।
- भाषा सरल,खड़ी बोली है।
- वाक्य रचना भावानुकूल है।
- चुटीला व्यंग्य है।
(3) हर सभा में जब तक माइक और अध्यक्ष फिट नहीं होते, सभा ठिठकी रहती है। माइक के सामने तक अध्यक्ष फिट किया जाना जरूरी है। पचास-सौ वर्षों बाद तो अध्यक्षता इतनी विकसित हो जायेगी कि खुद माइक वाला अपने साथ अध्यक्ष लायेगा और मंच पर फिट कर देगा।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
हर सभा में जैसे प्रत्येक श्रोता तक वक्ता की आवाज को पहुँचाने के लिए माइक आवश्यक होता है, उसी प्रकार सभा के कार्यक्रम को आगे बढ़ाने के लिए अध्यक्ष अनिवार्य है। इन दोनों,माइक और अध्यक्ष के मंच पर आने पर ही सभा की पूर्णता मानी जाती है।
व्याख्या :
शरद जी सभा की कार्यविधि पर जायकेदार व्यंग्य करते हए कहते हैं कि हर सभा के दो अनिवार्य तत्व हैं,माइक व अध्यक्ष। दोनों के फिट होने पर सभा की गरिमा है। इनके बिना सभा झिझकी-झिझकी, रुकी-रुकी तथा गतिहीन प्रतीत होती है। जब अध्यक्ष के स्थान पर बैठे व्यक्ति के मुँह के सामने माइक रखा होता है तब ही लगता है कि गोष्ठी चल रही है। आज यह दोनों अलग-अलग हैं, परन्तु आने वाली अर्द्ध-शताब्दी के बाद जैसे निर्जीव माइक को बिजली वाला लाता है, उसी प्रकार, निर्जीव अध्यक्ष को भी माइक वाला लायेगा। जैसे माइक में से वही प्रतिध्वनि आती है, जो माइक के पीछे बैठा व्यक्ति बोलता है, ऐसे ही अध्यक्ष बोलेगा जैसा नेपथ्य में से उसे बताया जायेगा। दोनों के मंच पर आसीन होते ही सभा का संचालक मात्र ही वास्तविकता होगा।
विशेष :
- अध्यक्ष पद पर व्यंग्य है।
- भाषा सरल है,जिसमें अंग्रेजी शब्दों, जैसे-माइक व फिट का उपयोग किया गया है।
- देशज शब्द-ठिठकी तथा उर्दू शब्दों का प्रयोग है।
(4) उनके दिमाग की हालत उस नौ रतन चटनी की तरह हो जाती है जिसके काजू और किशमिश का स्वाद एक हो जाता है। सब में एक-सा मजा आने लगता है।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
अच्छा अध्यक्ष वह है जो विषय की गहराई व उसके मूल भाव को समझे विना हर विषय पर एक ही प्रकार की गोल-गोल बात कहकर अपनी जिम्मेदारी की इतिश्री मान लेता है।
व्याख्या :
जोशी जी ने अध्यक्ष के ज्ञान भंडार व भाषण योग्यता पर व्यंग्य करते हुए कहा है कि जो अध्यक्ष सर्वज्ञ ईश्वर के समान ज्ञानवान बन कर हर विषय पर अपने भाषण को एक ही ईश्वर का रूप प्रदान कर देता है। जैसे ईश्वर एक है-उसका भाषण विषय अलग होने पर भी एक है। उस बात को स्पष्ट करने के लिये लेखक ने नौ रतन चटनी का उदाहरण दिया कि चटनी के पिस जाने पर उसमें पड़े सब मसालों का स्वाद अलग-अलग न आकर एक साथ विशिष्ट स्वाद आता है। अध्यक्ष का मस्तिष्क भी उस पिसी नौ रतन चटनी की तरह ही है, जिसमें कोई बात स्पष्ट नहीं है। हर बात का उत्तर एक है। चौराहे पर एक दाम पर मिलने वाले माल की तरह उसका भाषण होगा। हर भाषण का आनन्द भी एक-सा होगा। भगवान की एकरूपता का कितना सुन्दर उदाहरण होगा, उस अध्यक्ष का भाषण?
विशेष :
- अध्यक्ष के ज्ञान पर तीखा कटाक्ष।
- उदाहरण शैली के द्वारा भाषा को सरल बनाया गया है।
- उर्दू शब्दों का बाहुल्य तथा भाषा की बोधगम्यता है।