MP Board Class 9th Sanskrit व्याकरण कृदन्त, तद्धित और स्त्री प्रत्यय

MP Board Class 9th Sanskrit व्याकरण कृदन्त, तद्धित और स्त्री प्रत्यय

जिस अक्षर या अक्षर समूह को शब्द के अंत में जोड़ते हैं, उसे प्रत्यय कहते हैं। जिन प्रत्ययों को धातुओं में जोड़कर उनसे विशेषण अथवा अव्यय बनाए जाते हैं, उन्हें कृत-प्रत्यय कहते हैं, तथा इस प्रकार कृत्-प्रत्ययों से बनने वाले विशेषण या अव्यय कृदन्त कहलाते हैं। कृदन्तों के द्वारा अपूर्ण वर्तमान काल, पूर्वकालिक क्रिया, कर्म वाच्य (Passive Voice) आदि प्रकार के वाक्य बनाए जाते हैं।

कृदन्त के प्रमुख प्रकार निम्न हैं-

  • पूर्वकालिक कृन्दत
  • वर्तमानकालिक कृदन्त
  • भूतकालिक कृदन्त
  • हेतुवाचक कृदन्त
  • विधिवाचक कृदन्त

पूर्वकालिक कृदन्त

जब काई क्रिया पहले हो चुकी हो और उसके बाद दूसरी क्रिया हो, तब पहिले होने वाली क्रिया को पूर्वाकालिक क्रिया कहते हैं। पूर्वकालिक क्रिया को बतलाने के लिए पूर्वकालिक कृदन्त का प्रयोग करते हैं। इसका प्रयोग अव्यय की तरह होता है। अतः इसके रूप में कोई परिवर्तन नहीं होता है। क्त्वा और ल्यप् पूर्वकालिक कृदन्त के उदाहरण है। ये ‘करके’ के अर्थ में प्रयुक्त होते हैं।

अनबंध-‘अनुबंध’ उन वर्गों को कहते हैं, जो ‘प्रत्यय’ में उच्चारण आदि के लिए लगे रहते हैं, पर बाद में लुप्त हो जाया करते हैं। अनुबंध को ‘इत’ या ‘अलग हो जानेवाला’ भी कहते हैं। अतः ‘इत्’ वर्गों को लोप हो जाता है।

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जैसे-

  • ज्ञान + क्तवा ज्ञात्वा

इसमें ‘क’ अनुबंध है, इसलिए जुड़ते समय इसका लोप हो गया। क्त्वा प्रत्यय-‘क्त्वा’ प्रत्यय जोड़ते समय धातु में केवल ‘त्वा’ जुड़ता है।

जैसे-
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त्वा जोड़ते समय कुछ धातुओं में ‘इकार’ (इ या ई की मात्रा) भी जुड़ता है।
जैसे-
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ल्यप् प्रत्यय-यदि धातु के पूर्व उपसर्ग जुड़ा हो, तो धातु में ‘क्त्वा’ के बदले ल्यप् प्रत्यय जोड़ा जाता है। धातु में जोड़ते समय केवल ‘य’ जुड़ता है।
जैसे-
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यदि धातु के पूर्व उपसर्ग जुड़ा हो और यदि ह्रस्व स्वरांत धातु है, तो धातु में ल्यप् प्रत्यय जोड़ते समय केवल ‘त्य’ जुड़ता है।

जैसे-
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हेतुवाचक कृदन्त

‘के लिए’ या ‘ने को’ के अर्थ में ‘तुमुन्’ प्रत्यय जोड़ते हैं। ‘तुमुन्’ जोड़ते समय प्रायः ‘तुम’ ही धातुओं में जुड़ता है। ये शब्द अव्यय होते हैं। इनके अंत में ‘म्’ रहता है।

जैसे-
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‘तुमुन्’ प्रत्यय को ऐसे शब्दों के पूर्व भी जोड़ते हैं, जिनका अर्थ ‘चाहना’ या ‘सकना’ होता है।

जैसे-

  • सः खेलितुं इच्छति। = वह खेलना चाहता है।
  • सः खेलितुं शक्नोति। = वह खेल सकता है।

विधिवाचक कृदन्त

‘चाहिए’ अथवा ‘योग्य’ के अर्थ को प्रकट करने के लिए धातु में अनीयर, या तव्यत् या यत् प्रत्यय लगाकर विधिवाचक कृदन्त बनाते हैं। यह विशेषण होता है। अतः इसका लिंग, वचन और कारक विशेष के अनुसार रहता है। पुल्लिंग में इसकी कारक रचना देव के समान, स्त्रीलिंग में नदी के समान तथा नपुंसकलिंग में फलम् के समान होती है।

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जैसे-
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भूतकालिक कृदन्त

क्त और क्त्वतु प्रत्यय भूतकालिक कृदन्त हैं।

‘क्त’ प्रत्यय-धातुओं के साथ कर्तवाच्य (Active Voice) में भूतकालिक कृदन्त का प्रयोग भूतकाल की क्रिया के स्थान किया जा सकता है। इसका लिंग, कारक और वचन कर्ता के समान होता है। धातु में ‘क्त’ प्रत्यय जोड़ते समय प्रायः केवल ‘त’ जुड़ता है।

जैसे-
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‘क्त’ प्रत्यय से युक्त शब्द के रूप पुल्लिंग में ‘देव’ शब्द के समान, स्त्रीलिंग में ‘माला’ शब्द के समान और नपुंसकलिंग में ‘जल’ शब्द के समान होते हैं। इनका वाक्यों में प्रयोग निम्नानुसार होता है

रामः गतः। = राम गया।
सीता गता। = सीमा गई।
बालकौ गतौ। = दो बालक गये।
बालिकाः गताः। = लड़कियाँ गईं।

यहाँ गतः, गता, गतौ, गताः शब्द विशेषण हैं। इसीलिए इनके लिंग, वचन नहीं हैं, जो वाक्यों में कर्ता के हैं। संस्कृत में भूतकाल के ये वाक्य बिना क्रिया शब्दों के ही पूरे हो जाते हैं।

‘क्तवतु’ प्रत्यय-धातु में ‘क्तवतु’ प्रत्यय जोड़ते समय प्रातः केवल ‘तवत्’ जुड़ता है। कर्तवाच्य (Active Voice) में इसका प्रयोग होता है। इसका लिंग, वचन और कारक कर्ता के अनुसार होता है।

जैसे-
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‘क्तवतु’ प्रत्यय से युक्त शब्द के रूप पुल्लिंग में ‘भगवत्’ शब्द के समान, स्त्रीलिंग में ‘नदी’ शब्द की भाँति और नपुंसकलिंग में ‘जगत्’ की भाँति होते हैं।

इनका वाक्यों में प्रयोग निम्नानुसार होता है-

  • सुरेशः ग्रामात् आगतवान्। = सुरेश गाँव से आया।
  • मारिः मूषक हतवान्। = बिल्ले ने चूहे को मार डाला।

वर्तमानकालिक कृदन्त

‘ता हुभा, ते हुए’ आदि अर्थ के लिए धातु में शतृ या शानच् प्रत्यय लगाए जाते हैं।

शतृ प्रत्यय-शतृ प्रत्यय का परस्मैपदी धातुओं में प्रयोग होता है। धातु के साथ जुड़ते समय केवल ‘अत्’ जुड़ता है। इनके रूप अत् अंत वाले शब्दों के समान चलते हैं।

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जैसे-
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शानच् प्रत्यय- शानच् प्रत्यय आत्मनेदी धातुओं में जोड़े जाते हैं। धातु के साथ जुड़ते समय शानच् का केवल ‘आन्’ या ‘मान’ बचता है।

जैसे-
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शतृ के समान यह भी विशेषण होता है। अतः इसका लिंग, वचन और कारक विशेष के अनुसार रहता है। पुल्लिंग में इसकी कारक रचना देव के समान, स्त्रीलिंग में लता के समान तथा नपुंसकलिंग में फल के समान होती है।

क्तिन् प्रत्यय-इससे भाववाचक संज्ञा पद बनाए जाते हैं। ये पद स्त्रीलिंगी होते हैं। धातु के साथ जुड़ते समय क्तिन् का केवल ‘ति’ बचता है।

जैसे-
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तद्वित प्रत्यय

संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण और अव्यय-पदों में जिन प्रत्ययों के योग से नवीन शब्द बनाए जाते हैं, उन्हें तद्धित प्रत्यय कहते हैं। प्रत्यय के साथ कोष्टक में दिए गए शब्द ही प्रायः शब्दों के साथ जुड़ते हैं।

जैसे-
1. अण् (कारः) प्रत्यय-कुंभ + कारः = कुंभकारः
(इसी प्रकार भाष्यकारः ग्रन्थकारः)
2. तत् (ता) प्रत्यय-भाव के अर्थ में
सुन्दर + तल् = सुन्दरता – गुरु + तल् = गुरुता
3. तरप् (तर) प्रत्यय-जब दो में से एक को गुण में दूसरे से अधिक या कम बतलाना हो, तो ‘तरप्’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। यह विशेष की उत्तरावस्था है। इसमें धातु में जोड़ते समय केवल ‘तर’ जुड़ता है।

जैसे-
अल्प + तरप् = अल्पतरः (से थोड़ा)
लघु + तरप् = लघुतरः (से छोटा)
स्थूल + तरप् = स्थूलतरः (से मोटा)
कृश + तरप् = कृशतरः (से दुबला)
दूर + तरप् = दूरतरः (से दूर)

4. तमप् (तम) प्रत्यय-जब अनेक में से एक के गुण को सबसे अधिक या कम बतलाना हो, तो ‘तमप्’ प्रत्यय जोड़ा जाता है। यह विशेषण की उत्तमावस्था है। इसमें धातु में जोड़ते समय केवल ‘तुम’ जुड़ता है।

जैसे-
अल्प + तमप् = अल्पतमः (सबसे थोड़ा)
लघु + तमप् = लघुतमः (सबसे छोटा)
स्थूल + तमप = स्थूलतमः (सबसे मोटा)
कृश + तमप् = कृशतमः (सबसे दुबला)
दूर + तमप् = दूरतमः (सबसे दूर)

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5. मतुप् (मत्, वत्) प्रत्यय-वह इसमें है या वह इसका है-इस अर्थ में मतुप का प्रयोग होता है। मतुप् के पहले ‘अ’ स्वर रहने पर ‘म’ का ‘व’ हो जाता है। इसमें धातु में जोड़ते समय केवल ‘मान्’ जुड़ता है।

जैसे-
अंशु + मतुप् = अंशुमान् (किरणों वाला)
बुद्धि + मतुप् = बुद्धिमान् (बुद्धि वाला)
बल + मतुप् = बलवान् (बल वाला)
गुण + मतुप् = गुणवान् (गुण वाला)

6. इनि (इन) प्रत्यय-वह इसमें है या वह इसका है-इस अर्थ में इनि का प्रयोग नाम हेतु होता है। इसमें धातु में जोड़ते समय ‘ई’ जुड़ता है।

जैसे-
बल + इनि = बली (बलवान)
गुण + इनि = गुणी (गुणवान)

स्त्री प्रत्यय
टाप् (आ) और ङीप् (ई), इका, ई ङीष् (ई), डीन् (ई) प्रत्यय लगाकर रत्रीलिंग शब्द बनाए जाते हैं।
1. अकारान्त पुल्लिंग शब्दों में टाप् (आ) प्रत्यय लगाकर
पंडित + टाप् (आ) = पंडिता
अज + टाप् (आ) = अजा

2. पुल्लिंग शब्दों के अंत में अंक हो, तो इका हो जाता है।
जैसे-
बालक = बालिका, गायक = गायिका

3. ऋकारान्त पुल्लिंग शब्दों में ङीप् (ई) प्रत्यय लगाकर
अभिनेतृ + ङीप् (ई) = अभिनेत्री
कर्तृ + ङीप् (ई) = की

4. व्यंजनांत पुल्लिंग शब्दों के अंत में ङीप् (ई) प्रत्यय लगाकर
तपस्विन् = तपस्विनी,
श्रीमत् = श्रीमती
स्वामिन् = स्वामिनी

5. उकारांत गुणवाचक पुल्लिंक शब्दों और षित् आदि वाले शब्दों के अंत में ङीप् (ई) प्रत्यय लगाकर
नर्तकः = नर्तकी,
रजकः = रजकी

6. नु, नर आदि पुल्लिंग शब्दों के अंत में छीन् (ई) प्रत्यय लगाकर
नृ (ना) + ङीन् = नारी,
नर (नरः) + ङीन् = नारी
ब्राह्मण + ङीन् = ब्राह्मणी

अभ्यास

1. निम्नलिखित में कृत प्रत्यय पहचानिए-
गत्वा, कृत्वा, दृष्टवा, पठितम्, पुष्टवा, कोपितुम्, नत्वा, नेतुम्, याचितुम्।
2. निम्नलिखित में धातु और प्रत्यय अलग-अलग कीजिए-
पठितुम्, करणीयम्, दृष्टवा, पठित्वा, त्यक्तवा, जितुम्, विस्मृत्य, उपकृत्य।
3. निम्नलिखित उपसर्गयुक्त धातुओं में ल्यप् प्रत्यय जोड़िए-

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  • प्र + पा,
  • वि + जि,
  • प्र + नृत्,
  • सम् + भाष,
  • प्र + भाष,
  • प्र + नश्,
  • प्र + स्था,
  • प्र + नम्,
  • वि + स्मृ,
  • सम् + कृत,
  • सम् + भू,
  • प्र + हस्,
  • सम् + भ्रम्,
  • वि + हृ,
  • वि + लिख,

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