MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 6 शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम्

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 6 शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् (पद्यम्)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 6 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) ध्यानं कथम्, आचरेत? (ध्यान का पालन कैसे करना चाहिए?)
उत्तर:
ध्यानं बकवत् आचरेत। (बगुले के समान एकाग्र मन से ध्यान करना चाहिए।)

(ख) दीपः किं प्रसूयते? (दीपक क्या उत्पन्न करता है?)
उत्तर:
दीपः कञ्जलम् प्रसूयते। (दीपक काजल पैदा करता है।)

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(ग) आहारसमं किं नास्ति? (भोजन के समान क्या नहीं है?)
उत्तर:
आहारसमं सौख्यम् नास्ति। (भोजन के समान सुख नहीं है।)

(घ) सर्व परित्यज्य कम् अनुपालयेत्? (सबको छोड़कर किसका पालन करना चाहिए?)
उत्तर:
सर्व परित्यज्य शरीर अनुपालयेत। (सबको छोड़कर शरीर का पालन करना चाहिए।)

(ङ) चर्वणं कथं कुर्यात? (किस तरह चबाना चाहिए?)
उत्तर:
चर्वणं अजवत् कुर्यात्। (बकरे की तरह चबाना चाहिए।)

प्रश्न 2.
एक वाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) के सुखदुःखयोःकतारं मन्येत्? (किसे सुख-दुख का कर्ता माना जाता है?)
उत्तर:
आत्मानम् सुखदुःखयो कर्तारं मन्यते (सबको सुख दुःख का कर्ता माना जाता है।)

(ख) अन्यैधृत किं-किं न धारयेत्? (दूसरों के द्वारा धारण की गयी, किन-किन वस्तु को धारण नहीं करना चाहिए?)
उत्तर:
अन्यैः धृतम् उपानहौ, वासः च, उपवीतम्, अलङ्कारं स्रजं च न एव धारयेत्। (दूसरों का धारण किया हुआ कपड़ा, जूता, जनेऊ, आभूषण, माला आदि ग्रहण नहीं करना चाहिए)

(ग) जठराग्नि विवर्धनाय किं करणीयम्? (जठराग्नि को बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए?)
उत्तर:
महुः-महुः-अभूरि वारि पिवेत्। (बार-बार थोड़ा-थोड़ा जल पीना चाहिए।

(घ) युक्तेन प्राणायामेव किं भवति? (उचित प्राणायाम से क्या होता है?)
उत्तर:
सर्वरोगक्षय। (सभी रोग दूर होते हैं)

(ङ) कार्य विशुद्धयर्थम् आदौ किं विधीयते? (कार्य की शुद्धता के पहले क्या करना चाहिए?)
उत्तर:
(कार्य विशुद्धयर्थम् आदौ स्नानादौ विधीयते।) (कार्य की शुद्धता के लिए सबसे पहले स्नान करना चाहिए।)

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प्रश्न 3.
अधोलिखित प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) आदौ स्नानं किमर्थं विधीयते? (प्रारम्भ में स्नान क्यों करना चाहिए?)
उत्तर:
आदौ स्नानं कार्य विशुद्धयर्थम् विधीयते। (कार्य के प्रारम्भ में शुद्धता के लिए स्नान करना चाहिए।)

(ख) आचार्याणां मते अन्यत् कर्म किमर्थं न सम्मतम्? (शिक्षकों के मत के अनुसार अन्य कोई कार्य किस तरह सम्मत् नहीं है?)
उत्तर:
आचार्याणां मते सर्वे मलाः प्राणायमैः एव प्रशुष्यन्ति। (सभी विकार प्राणायाम से शुद्ध होते हैं।)

(ग) शरीर किमर्थम् अनुपालयेत्? (शरीर की किस तरह रक्षा करना चाहिए?)
उत्तर:
शरीरस्य प्रणष्टस्य सर्वमेव विनश्यति।।
सर्व परित्यज्य शरीरम् एव अनुपालयेत्।
(सभी का परित्याग कर शरीर की रक्षा करनी चाहिए।)

(घ) नरेण वह्नि विवर्धनाय किं करणीयम्? (व्यक्ति के द्वारा जठराग्नि को बढ़ाने के लिए क्या करना चाहिए?)
उत्तर:
मुहुर्महुर्वारि पिवेद। (बार-बार जल पीना चाहिए।)

प्रश्न 4.
रिक्त स्थानानि पूरयत :
(क) जायते तादृशी प्रजा।
(ख) गजवत् स्नानम् आचरेत्।
(ग) आत्मानमेव मन्येत कर्तारं सुखदुःखयोः।
(घ) शरीरस्य प्रणष्टष्य सर्वमेव विनश्यति।
(ङ) अत्यम्बुपानान्न विपष्यायते अन्नम्।

प्रश्न 5.
युग्ममेलनं कुरुत
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उत्तर:
(क) 4
(ख) 1
(ग) 5
(घ) 3
(ङ) 2

प्रश्न 6.
शुद्धवाक्यानां समक्षम ‘आम्’ अशुद्धवाक्यानां समक्षं न इति लिखत-
यथा :
भावशुद्धि-स्नानं बिना युज्यते। – (न)
वह्नि विवर्धनाय मुहुर्मुह वारि पिवेत् – (आम)
(क) उपानहौ अन्यधृतं धारयेत्।
(ख) श्रेयस्करम् मार्ग प्रतिपद्येत।
(ग) अपरीक्ष्य अश्नीयात्।
(घ) अत्यम्बुपानात् अन्नं न विपच्यते।
(ङ) शरीरम् अनुपालयेत्।
उत्तर:
(क) (न)
(ख) (आम)
(ग) (न)
(घ) (आम)
(ङ) (आम)

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प्रश्न 7.
श्लोकपूर्ति कुरुत :
(क) दीपो भक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते।
यदन्नं भक्षयेन्नित्यं जायते तादृशी प्रजा॥

(ख) शुकवदं भाषणं कुर्याद् बकवद ध्यानमाचरेत।
अजवच्चतत्व कुर्यात् गजवत् स्नानमाचारेत॥

प्रश्न 8.
निम्नलिखित शब्दागं सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेः नाम लिखत
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प्रश्न 9.
उदाहरणानुसारं शब्दानां विभक्ति वचनं च लिखत
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प्रश्न 10.
उदाहरणानुसारं क्रियापदानां धातु, लकार, पुरुष च लिखत
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प्रश्न 11.
अव्यवैः वाक्य निर्मार्णं कुरुत-
यथा सः तत्र व गमिष्यति।
(क) बिना
(ख) च
(ग) एव
(घ) अपि
(ङ) अति
उत्तर:
(क) रामः बिना दशरथः न जीयेत।
(ख) दीपकः पंकजः च लिखतिः।
(ग) सः एव पठति।
(घ) अहं अपि गच्छामि।
(ङ) अति सर्वत्र वर्जयेत।

शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

जीवन की सभी क्रियाओं के विधिवत् सम्पादन के लिए स्वस्थ शरीर की आवश्यकता होती है क्योंकि स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मन बसता है। यहाँ स्वास्थ्य रक्षण से सम्बन्धित वैद्यकीय सुभाषित श्लोक संकलित किए गए हैं।

शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् पाठ का हिन्दी अर्थ

1. नैर्मल्यं भावशुद्धिश्च विना स्नानं न युज्यते।
तस्मात् कार्यविशुद्धयर्थं स्नानमादौ विधीयते॥

शब्दार्थ :
नैर्मल्यं-निर्मलता, स्वच्छता-Fine.clean; कार्य विशुद्धयर्थं कार्य की शुद्धता-For purity of work; के लिए आदौ-सबसे पहले-first. .
हिन्दी अर्थ-बिना स्नान किए भाव की शुद्धि एवं निर्मलता ठीक प्रकार से नहीं होती अतः कार्य के अच्छी तरह पूर्ण होने के लिए सबसे पहले स्नान करना चाहिए।

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2. शुकवद् भाषणं कुर्याद्, बकवद् ध्यानमाचरेत्।
अजवच्चर्वणं कुर्याद्, गजवत्स्नानमाचरेत्॥

शब्दार्थ :
भाषणम्-बोलना-Speech; चर्वणम्-चबाना-Chem कुर्यात्-करना चाहिए-Should do; आचरेत्-आचरण करना चाहिए-Should do good behave;

हिन्दी अर्थ :
तोते के समान मीठा बोलना चाहिए, बगुले के समान ध्यान लगाना चाहिए; बकरी के समान (भोजनादि का) चर्वण करना चाहिए एवं हाथी के समान स्नान करना चाहिए।

3. प्राणायामैरेव सर्वे प्रशुष्यन्ति मला इति।
आचार्याणां तु केषाञ्चिदन्यत्कर्म न सम्मतम्॥

शब्दार्थ :
प्रशुष्यन्ति-पूरी तरह सूख जाते हैं-full dries ; नष्ट हो जाते हैं-Wastes : मला-शरीर अथवा मन को मलिन करने वाले अप-तत्त्व-Wastage of Body; element; प्राणायामैरेव-प्राणायाम से-with yoga; आचार्याणां-शिक्षकों के मतों में-According to teachers; सम्मतम्-मतानुसार-According to.

हिन्दी अर्थ :
प्राणायाम करने से शरीर व मन को दूषित करने वाले अपतत्त्व नष्ट हो जाते हैं। आचार्यों के मतानुसार कोई दूसरा कार्य मन और शरीर की मलिनता को दूर करने के लिए उपयुक्त नहीं है।

4. प्राणायामेन युक्तेन सर्वरोगक्षयो भवेत्।
अयुक्ताभ्यासयोगेन सर्वरोगस्य सम्भवः॥

शब्दार्थ :
युक्तेन-उचित रीति से किए गए-with systemetic; अयुक्त-अनुचित fira À force 75-without systemetic.

हिन्दी अर्थ :
युक्ति युक्त विधि से प्राणायाम करने वाले व्यक्ति के सभी रोग नष्ट हो जाते हैं। अनुचित तरीके से प्राणायाम करने से अनेक रोगों की उत्पति संभव है।

5. अत्यम्बुपानान्न विपच्यतेऽन्न, निरम्बुपानाच्च स एव दोषः।
तस्मान्नरो वह्निविवर्धनाय, मुहुर्मुहुर्वारि पिवेद् भूरि॥

शब्दार्थ :
अम्बु-जल, पानी-Water; पानात-पीने से-by drinking; न विपच्यते-ठीक से पचता नहीं है-Undigest; बहिन विवर्धनाय Digetion; -जठराग्नि (भूख) को बढ़ाने के Farç-hungry to increase.

हिन्दी अर्थ :
अत्यधिक जल पीने से अन्न (भोजन) नहीं पचता। एकदम जल न पीने से भी वही दोष होता है। अतः जठराग्नि (पाचनशक्ति) को बढ़ाने के लिए थोड़ा-थोड़ा जल बार-बार पीना चाहिए।

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6. न रागान्नाप्यविज्ञानात् आहाराकुपयोजयेत्।
परीक्ष्यहितमश्नीयात् देहो ह्याहारसम्भवः॥

शब्दार्थ :
रागात्-जीभ के लालच के वशीभूत होकर-influence of; tongue; अविज्ञानात्-बिना ठीक से जाने-without knowledge; हितम्-हित को-to kind; आहारसम्भवः-सम्भावित आहार-will food.

हिन्दी अर्थ :
पथ्य-अपथ्य का विचार किए बिना जीभ (स्वाद) के वशीभूत होकर , भोजन नहीं करना चाहिए। शरीर का हित देखते हुए ही भोजन करना चाहिए क्योंकि शरीर भोजन पर ही निर्भर होता है।

7. दीपोभक्षयते ध्वान्तं कज्जलं च प्रसूयते।
यदन्नं भद्रयेन्नित्यं जायते तादृशी प्रजा॥

शब्दार्थ :
कज्जलम्-काजल को- to blackness; तादृशी-वैसी ही-like that; भक्षयते-भक्षण करता है-to eat; नित्यम-हमेशा-Always.

हिन्दी अर्थ :
दीपक अंधकार को दूर करता है किन्तु काजल उत्पन्न करता है, (वैसे ही) भक्षण किए गए अन्न की ही प्रकृति के अनुसार संतानें होती हैं।

8. नास्ति क्षुधासमं दुःखं, नास्ति रोगः, क्षुधासमः।
नास्त्याहारसमं सौख्यं, नास्ति क्रोधसमो रिपुः॥

शब्दार्थ :
क्षुधासमम्-भूख के समान like hunger, like appetite; सौख्यम्-सुख-happy; रिपु-शत्रु-enemy.

हिन्दी अर्थ :
भूख के समान कोई दुःख नहीं है और न भूख के समान कोई रोग। भोजन के समान कोई मित्र नहीं है और क्रोध के समान कोई शत्रु नहीं है।.

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9. उपानहौ च वासश्च धृतमन्त्यैर्नधारयेत्।
उपवीतमलङ्कारं स्रजं करकमेव च।।

शब्दार्थ :
उपानहौ-जूते-Shoes; वासश्च -और कपड़े-And Colthes,धृतमन्यै-दूसरी के द्वारा पहने हुए-Put on by another; करकम्-लोटा, कुल्हड़-Bowel; धारयेत्-धारण करना चाहिए-Pun on also.

हिन्दी अनुवाद :
दूसरे का धारण किया हुआ जूता, वस्त्र, जनेऊ, आभूषण, माला और मिट्टी का बना जल पीने का पात्र (कुल्हण) आदि नहीं प्रयोग में लाना चाहिए।

10. आत्मानमेव मन्येत कर्तारं सुखदुःखयोः।
तस्माच्छ्रेयस्करं मागं प्रतिपद्येत नो सेत्।।

शब्दार्थ :
श्रेयस्करम-हितकारी-Profitable; न त्रसेते-नहीं डरना चाहिए-Should not affraid of;सुखदुःखयो-सुख दुख को-to happy sad;मन्यते-मानना चाहिए-Should obey; तस्माद्-उससे-so that.

हिन्दी अनुवाद :
सुख-दुःख का कारक स्वयं को मानना चाहिए। कल्याणकारी मार्ग पर निडर होकर चलना चाहिए।

11. सर्वमेव परित्यज्य शरीरमनपालयेत.
शरीरस्य प्रणष्टस्य सर्वमेव विनश्यति।।

शब्दार्थ :
परित्यज्य-छोड़ कर-except; प्रणष्टस्य-नष्ट हुए का-distroy; अनुपालयत्-पालन करना चाहिए-Should obey.

हिन्दी अनुवाद :
सब कुछ का परित्याग कर शरीर की रक्षा करनी चाहिए क्योंकि यदि शरीर नष्ट हो गया तो सब कुछ नष्ट हो जाएगा।

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