MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 11 संसर्गजाः दोषगुणाः

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 11 संसर्गजाः दोषगुणाः (कथा)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 11 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक पद में उत्तर लिखिये)
(क) ऋषिः किमर्थं भ्रमति स्म? (ऋषि किस कारण भ्रमित हुये?)
उत्तर:
शुकः भिन्न व्यवहारम् दृष्टवा। (तोतों के विभिन्न व्यवहारों को देखकर)

(ख) प्रथमः शुकः किं वदति स्म? (पहला तोता क्या बोलता था?)
उत्तर:
मारयतु कुट्टयतु। (मारो-कूटो)

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(ग) अपरः शुकः किं वदति स्म? (दूसरा तोता क्या बोलता था?)
उत्तर:
सीतारामः सीतारामः। (सीताराम-सीताराम)।

(घ) महर्षिः वाल्मीकिः किं रचितवान्? (महर्षि वाल्मीकि ने किसकी रचना की?)
उत्तर:
रामायणम्। (रामायण की)।

(ङ) केषां सङ्गात् पिपीलिका चन्द्रबिम्बं चुम्बति? (किसके सत्संग से चीटी शंकरजी के चन्द्र बिम्ब का चुम्बन करती है?)
उत्तर:
सुमनः। (फूलों के या पुष्पों के)।

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखिये)
(क) ऋषिः आश्चर्यसागरे किमर्थं निमग्नोऽभवत्? (ऋषि आश्चर्य में क्यों डूब गया?)
उत्तर:
शुकौ समानजातीयौ तथापि आचरणं पृथक-पृथक दृश्यते ऋषिः आश्चर्य सागरे निमग्नोऽभवत्। (तोतों की समान जाति होने पर भी उनके भिन्न-भिन्न व्यवहार को देखकर ऋषि आश्चर्य में डूब गया।)

(ख) महर्षिः वाल्मीकिः कथं तपस्वी जातः? (महर्षि वाल्मीकि कैसे तपस्वी हुये?)
उत्तर:
महर्षिः वाल्मीकिः सप्तर्षाणां सत्सङ्ग प्रभावात् तपस्वी जातः। (महर्षि वाल्मीकि ने सप्तर्षियों के सत्सङ्ग के प्रभाव से तपस्वी हुये।)

(ग) अश्मा कथं देवत्वं प्राप्नोति? (पत्थर कैसे देवत्व को प्राप्त करता है?)
उत्तर:
अश्मा महद्भिः सुप्रतिष्ठितः देवत्वं प्राप्नोति। (पत्थर महान लोगों के सम्पर्क से देवत्व को प्राप्त करता है।)

(घ) केषां सङ्गः करणीयः? (किनका साथ करना चाहिये?)
उत्तर:
सज्जनानां सङ्ग करणीयः। (सज्जनों का संग या साथ करना चाहिये।)

प्रश्न 3.
अधोलिखितप्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत (नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर लिखिये)
(क) द्वितीयः शुकः ऋषि किम् उक्तवान्? (दूसरे तोता ने ऋषि से क्या कहा?)
उत्तर:
द्वितीयः शुकः ऋषिं उक्तवान् अहं मुनीनां वचनं शृणोमि सः गवाशनानाम् वाक्यम् शृणोति। (दूसरे तोता ने ऋषि से कहा कि मैं ऋषियों के वचनों को सुनता हूँ और वह गो-वध करने वालों के वचनों को सुनता है।)

(ख) किमर्थं सत्सङ्गः करणीयः? (किसलिये सत्सङ्ग करना चाहिये?)
उत्तर:
महनीय सुप्रतिष्ठताय सत्सङ्ग करणीयः। (महानता को प्राप्त करने के लिये सत्संग करना चाहिये।)

(ग) दोषाः गुणाश्च कथम् उत्पद्यन्ते? (गुण और दोष कैसे उत्पन्न होते हैं?)
उत्तर:
दोषाः गुणाश्च संसर्गात् उत्पद्यन्ते। (गुण और दोष सत्संग से उत्पन्न होते हैं।)

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प्रश्न 4.
यथायोग्यं योजयेत
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प्रश्न 5.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् “आम्” अशुद्धवाक्यानां समक्षं “न” इति लिखत
यथा- संसर्गात् स्वभावपरिर्वनं भवति – आम्
दुर्जनानां सङ्गः करणीयः – न
(क) द्वितीयः शुकः “सीताराम” इति वदति स्म।
(ख) ऋषिः लोककल्याणार्थं न भ्रमति स्म।
(ग) दुर्जनानां सङ्गात् लाभः भवति।
(घ) सज्जनानां सङ्गतिः करणीया।
(ङ) पिपीलिका सत्सङ्गात् भगवतः शिवस्य शीर्षस्थितं चन्द्रबिम्ब न चुम्बति।
उत्तर:
(क) आम्
(ख) न
(ग) न
(घ) आम्
(ङ) न

प्रश्न 6.
निम्नलिखित क्रियापदानां भूतकालिकक्रियापदानि लिखत
उदहारणम्
वदति – अवदत्।
भ्रमति – अभ्रमत।
शृणोति – अशृणोत।
गच्छति – अगच्छत।
चिन्तयति – अचिन्तयत
भवति – अभवत।
करोति – अकरोत्।

प्रश्न 7.
निम्नलिखितानां मूलशब्दं विभक्तिं वचनं च लिखत
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प्रश्न 8.
निम्नलिखितानां क्रियापदानां द्विवचन बहुवचनं लिखत
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प्रश्न 9.
निम्नलिखिततानां धातुम् प्रत्ययं च पृथक् कृत्वा लिखत-
यथादृष्ट्वा – दृश् + क्त्वा।
श्रुत्वा – श्रु + क्त्वा।
पठित्वा – पठ् + क्त्वा।
पालितः – पाल + क्तः।
करणीयम् – कृ + अनीयर।
विरचितवान् – विरचित + वान्
उक्तवान् – उक्त + वान्

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प्रश्न 10.
निम्नलिखितानां अव्ययानां वाक्यप्रयोगं कुरुत
उदाहरणम्एकदा-
एकदा – सः ग्रामम् अगच्छत्।
सुरेशः – मोहनः च पठति। तत्र
तत्र – वायुः प्रवहति।
अपि – त्वम् अपि गच्छतु।
उच्चैः – सः उच्चैः वदति।
इति – वाल्मीकिः रामायणम् इति महाकाव्यम् अलिखत्।
तदा – तदा आचार्यः पाठं पाठितवान्।

संसर्गजाः दोषगुणाः पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

संस्कृत साहित्य में कथा साहित्य का विपुल भंडार है। उसमें पंचतंत्र, कथा सरित्सागर, बैताल पचीसी, विक्रमादित्य कथा, वृहत् मंजरी, हितोपदेश आदि प्रसिद्ध कथा-ग्रन्थ हैं। सत्संगति से किस प्रकार व्यवहार में परिवर्तन होता है, इस कथा के माध्यम से यहाँ प्रग्तुत किया जा रहा है।

संसर्गजाः दोषगुणाः पाठ का हिन्दी अर्थ

1. कश्चित् एकः महान् तपस्वी ऋषिः आसीत्। सः लोककल्याणार्थम् अहर्निशं भूतले भ्रमति स्म। एकदा सः परिभ्रमन् एक ग्रामम् अगच्छत्। ग्रामस्य एकस्मिन् गृहे एकः शुकः पालितः आसीत्। सः शुकः ऋषिं दृष्ट्वा “मारयतु कट्टयतु” इति वारं वारम् उच्चैः उक्तवान्। अनन्तरं सः ऋषिः अपरं स्थानम् अगच्छत् तत्रापि एकस्मिन् गृहे शुकः पालितः आसीत्। सः ऋषि दृष्ट्वा “सीताराम-सीताराम” इति उक्तवान्। एवं शुकयोः भिन्नव्यवहारं दृष्ट्वा ऋषिः आश्चर्यसागरे निमग्न अभवत्। सः चिन्तयति यद्यपि शुकौ समानजातीयौ तथापि आचरणं पृथक्-पृथक् दृश्यते, किं कारणम्? तत्र पार्श्वस्थं शुकं ऋषिः कारणं पृष्टवान्। तदा शुकः उत्तरति यत् ऋषिवर्य! शृणोतु-

अहं मुनीनां वचनं शृणोमि
गवाशनानां स शृणोति वाक्यम्।
न चास्य दोषो न च मद्गुणो वा
संसर्गजाः दोषणुणाः भवन्ति।

शब्दार्थ :
लोककल्याणार्थम्-जनता के कल्याण के लिए-For welfare of people; अहर्निशं-निरन्तर-Continue; अगच्छत्-गया-Went; ग्रामस्य-गाँव का-Of village; पालितः-पाला हुआ-Getting brought up; मारयतु कट्टयतु-मारो कूटो-Kill beat; तत्रापि-वहाँ भी-There also; चिन्तयति-सोचता है-Thinks; पृष्टवान्-देखा-Looked; शृणोतु-सुनिये-Listen; शृणोमि-सुनता हूँ-Listen; संसर्गजाः-संग रहने से उत्पन्न होने वाले-The fault with company; गवाशनानाम्-गोभक्षियों के–Eating the flash of cow.

हिन्दी अर्थ :
कहीं एक महान तपस्वी ऋषि थे। वे लोक कल्याण के निमित्त सदैव पृथ्वी पर विचरण किया करते थे। एक बार परिभ्रमण करते हुए एक ग्राम में पहुंचे। गाँव में किसी घर में एक तोता पल रहा था। वह तोता ऋषि को देखकर ‘मारो-काटो’ ऐसा तीव्र शब्दों में बार-बार बोलने लगा। थोड़ी देर में ऋषि दूसरे स्थान पर गए। वहाँ एक घर में तोता पाला गया था। वहाँ ऋषि को देख तोते ने ‘सीताराम-सीताराम’ बोलने लगा। इस प्रकार दोनों तोतों के भिन्न व्यवहार देख ऋषि आश्चर्य के सागर में डूब गए।

वे सोचने लगे-यद्यपि दोनों शुक एक ही जाति के हैं तो भी उनके आचरण भिन्न-भिन्न होने का क्या कारण है? तब समीप स्थित उस तोते से ऋषि ने इसका कारण पूछा। तब तोते ने उत्तर दिया-ऋषिवर! सुनिए मैं मुनियों के वचन सुनता हूँ, अच्छी-अच्छी नीतिप्रद बातें सुनता हूँ। वह तोता हरदम नीति विरुद्ध बातें सुनता है। इसमें उसका कोई दोष नहीं और न ही यह मेरा महान गुण है। साथ रहने से गुण-दोष पैदा होते हैं।

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2. महात्मन्! तत्र व्याधानां ग्रामः अस्ति। सः शुकः व्याधस्य गृहे निवसति। व्याधाः अहर्निशं मारणं कर्तनं हिंसात्मिकां वार्तां च कुर्वन्ति, सोऽपि तानि कार्याणि पश्यति तेषां वार्तालापं च शृणोति। अतः “मारयतु कुट्टयतु” इति वदति। अहं तु मुनेः आश्रमे निवसामि। तत्र मुनयः भगवन्नामसङ्कीर्तनं पूजां च कुर्वन्ति। अहं सर्वं खलु पश्यामि आचरामि च। अतः अहं “सीताराम-सीताराम” इति वदामि। अतः तस्य शुकस्य न कोऽपि दोषः न मम गुणश्च यतोहि दोषाः गुणाः च संसर्ग-प्रभावात् उत्पन्नाः भवन्ति।

पूर्वं महर्षिः वाल्मीकिः सप्तर्षीणां सत्सङ्गप्रभावात् महान् तपस्वी जातः अनन्तरं रामायणमहाकाव्यं विरचितवान्। महद्भिः जनैः प्रतिष्ठितो भूत्वा अश्मा, अपि देवत्वं प्राप्नोति। पुष्पाणां संसर्गात् पिपीलिका अपि भगवतः शिवस्य शीर्षस्थितं चन्द्रबिम्ब चुम्बति। अतः सज्जनानां सङ्गः करणीयः दुर्जनानां सङ्गः परिहर्तव्यश्च। कथितमपि-

कीटोऽपि सुमनः सङ्गादारोहति सतां शिरः।
अश्मापि याति देवत्वं महद्भिः सुप्रतिष्ठितः॥

शब्दार्थ :
तत्र-वहां-There; व्याधस्य-बहेलिया के-Hunter; निवसति-रहता है-Lives; अहर्निशं-दिन-रात-Day-night; हिसात्मिकां-हिसात्मक-Violent; मारयतु-कुट्टयतु-मारो कूटो-Kill beat; निवसामि-रहता हूँ-Live; खलु-निश्चित ही-Definite also; शुकस्य-तोते का-Parrot; गुणश्च-और गुण-And quality; उत्पन्नाः -उत्पन्न-Born; कीटोऽपि-कीड़ा भी-Play also; अश्मापि-पत्थर भी-Stone also.

हिन्दी अर्थ :
हे महात्मन! यहाँ शिकारियों का ग्राम है। वह तोता शिकारी के घर में निवास करता है। शिकारी रात-दिन मारने-काटने की हिंसात्मक बात करता रहता है। वह तोता भी उनके कार्य को देखता है और उनके वार्तालाप को सुनता है अतः मारो-कूटो बोलता रहता है। मैं मुनि के आश्रम में रहता हूँ। वहाँ मुनिगण ईश्वर की पूजा-आराधना-कीर्तन करते रहते हैं। मैं सभी कार्यों को देखता हूँ और उसी अनुरूप आचरण करता हूँ। इसलिए मैं ‘सीताराम’ शब्द का उच्चारण करता हूँ। इसलिए हे मुनिवर! इसमें उसका कोई दोष नहीं और मेरा कोई गुण नहीं है क्योंकि दोष और गुण संगति में उत्पन्न होते हैं।

पहले महर्षि वाल्मीकि सप्तर्षियों के सत्संग के प्रभाव से महान तपस्वी हुए। उसके बाद उन्होंने रामायण महाकाव्य की रचना की। महान लोगों के संसर्ग में पत्थर भी देवत्व को प्राप्त होता है। पुरुषों के संसर्ग से चींटी भी भगवान शिव के शीर्ष पर चढ़कर चन्द्र बिम्ब का चुम्बन करती है। अतः सज्जन पुरुषों की संगति करना चाहिए, दुजों की संगति छोड़नी चाहिए। कहा भी है-

कीड़ा भी फूलों के साथ रहकर सज्जनों के सिर पर धारण कर लिया जाता है, पत्थर भी देवत्व को प्राप्त हो जाता है और पूज्य होकर प्रतिष्ठित होता है।

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