MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 2 मित्रता

In this article, we will share MP Board Class 9th Hindi Solutions Chapter 2 मित्रता Pdf, These solutions are solved subject experts from the latest edition books.

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 2 मित्रता (रामचन्द्र शुक्ल)

मित्रता अभ्यास-प्रश्न

मित्रता लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर

Mitrata Chapter By Ramchandra Shukla Question Answer MP Board Class 9th प्रश्न 1.
वर्तमान समय में व्यक्ति के किस व्यवहार को देखकर हम शीघ्र ही अपना मित्र बना लेते हैं?
उत्तर
वर्तमान समय में व्यक्ति का हँसमुख चेहरा, बातचीत के ढंग, थोड़ी चतुराई या साहस ये दो-चार व्यवहार देखकर हम उसे शीघ्र अपना मित्र बना लेते हैं।

मित्रता’ पाठ का प्रश्न उत्तर MP Board Class 9th प्रश्न 2.
लेखक ने कुसंग के ज्वर को सबसे भयानक क्यों कहा है?
उत्तर
लेखक ने कुसंग के ज्वर को सबसे भयानक इसलिए कहा है कि वह नीति, सद्वृत्ति और बुद्धि का नाश करता है।

Mitrata By Ramchandra Shukla In Hindi Question Answer MP Board Class 9th प्रश्न 3.
राजदरबार में जगह न मिलने पर इंग्लैंड का बिद्वान अपने भाग्य को क्यों सराहता रहा?
उत्तर
राजदरबार में जगह न मिलने पर इंग्लैंड का विद्वान अपने भाग्य को इसलिए सराहता रहा कि वह अपनी आध्यात्मिक उन्नति में बाधक बुरे संगति से दूर रहा।

Mitrata Lesson In Hindi MP Board Class 9th प्रश्न 4.
लेखक ने हमें किन बातों से दूर रहने को कहा है?
उत्तर
लेखक ने हमें अश्लील, अपवित्र और फूहड़ बातों से दूर रहने को कहा है।

मित्रता दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

Class 10 Hindi Chapter 2 Mitrata Question Answer MP Board प्रश्न 1.
अच्छे मित्र के गुण लिखिए।
उत्तर
अच्छे मित्र के गुण निम्नलिखित हैं :

  1. वह प्रतिष्ठित हो।
  2. वह दृढ़चित्त और सत्य-संकल्प का हो।
  3. उसमें आत्मविश्वास हो।
  4. वह भरोसमंद हो।

Mitrata Nibandh By Ramchandra Shukla MP Board Class 9th प्रश्न 2.
दृढ़चित्त और सत्य संकल्पित व्यक्ति से मित्रता करने के क्या लाभ हैं?
उत्तर
दृढ़चित्त और सत्य संकल्पित व्यक्ति से मित्रता करने से अनेक लाभ हैं। उससे हमें दृढ़ता प्राप्त होती है। हम दोषों और त्रुटियों से बच जाते हैं। हमारे सत्य, पवित्रता और मर्यादा के प्रेम पुष्ट होते हैं। हम कुमार्ग से सचेत हो जाते हैं। हतोत्साहित होने पर हमें उत्साह मिलता है।

Mitrata By Acharya Ramchandra Shukla Question Answer MP Board Class 9th  प्रश्न 3.
विवेक को कुंठा से बचाने के लिए हमें क्या-क्या करना चाहिए?
उत्तर
विवेक को कुंठा से बचाने के लिए हमें अत्यधिक दृढ़ संकल्प के लोगों के साथ नहीं रहना चाहिए। दूसरी बात यह है कि हमें मनमाने और दबाव डालने वाले लोगों से बचना चाहिए। तीसरी बात यह कि अपनी ही बात को ऊपर रखने वालों से सावधान रहना चाहिए।

Vishwas Patra Mitra MP Board Class 9th प्रश्न 4.
जीवन की अलग-अलग अवस्थाओं में होनी वाली मित्रता की सार्थकता लिखिए।
उत्तर
बचपनावस्था की मित्रता बड़ी आनंदमयी होती है। उसमें हदय को बेधने वाली ईर्ष्या और खिन्नता नहीं होती है। उसमें अत्यधिक मधुरता और प्रेम की ऊँची तरंगें होती हैं। यही नहीं अपार विश्वासमयी कल्पनाएँ होती हैं। उसमें वर्तमान के प्रति आनंदयम दृष्टि और भविष्य के प्रति आकर्षक विचार भरे होते हैं। छात्रावास या सहपाठी की मित्रता में भावों का भारी उथल-पुथल होता है।

मित्रता पाठ के प्रश्न उत्तर MP Board Class 9th प्रश्न 5.
भिन्न प्रकृति और स्वभाव के लोगों में मित्रता कैसे बनी रहती है?
उत्तर
भिन्न प्रकृति और स्वभाव के लोगों में मित्रता परस्पर अत्यधिक प्रगाढ़ प्रेम के कारण बनी रहती है। जो गुण जिसमें नहीं, वह चाहता है कि उसे ऐसा कोई मित्र मिले, जिसमें वे गुण हों। फलस्वरूप चिंतनशील मनुष्य प्रसन्नचित्त का साथ ढूँढ़ता है। निर्बल बली का और धीर उत्साही का।

Mitrata Chapter Class 9 MP Board प्रश्न 6.
निम्नलिखित पंक्तियों का आशय स्पष्ट कीजिए
(अ) ‘लेखक ने विश्वासपात्र मित्र को खजाना, औषधि और माता जैसा कहा है।” स्पष्ट कीजिए।
(ब) “संगति का गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर भारी पड़ता है।”
(स) “ऐसे नवयुवकों से बढ़कर शून्य, निःसार और शोचनीय जीवन और किसका है?”
उत्तर
(अ) “लेखक ने विश्वापात्र मित्र को खजाना, औषधि और माता जैसा कहा है।” लेखक के ऐसा कहने का आशय यह है कि विश्वासपात्र मित्र का महत्त्व असाधारण होता है। जो विश्वासपात्र मित्र होता है, वह हमारे लिए रक्षा-कवच के समान होता है। इसलिए ऐसे मित्र तो बड़े ही भाग्यशाली व्यक्ति को ही प्राप्त होते हैं। वास्तव में ऐसे मित्र एक खजाने की तरह अपने मित्र की प्रत्येक दशा में सहायता करते हैं।

(ब) संगति का गुप्त प्रभाव हमारे आचरण पर भारी पड़ता है। लेखक के इस कथन का आशय यह है कि अगर हम सुसंगति में रहते हैं, हम दिनोंदिन उन्नति के शिखर पर चढ़ते जाते हैं। इसके विपरीत अगर हम कुसंगति में रहते हैं, तो हम दिनोंदिन अवनति के गड्ढे में गिरते जाएँगे।

(स) “ऐसे नवयुवकों से बढ़कर शून्य, निःसार और शोचनीय जीवन और किसका है?” लेखक के इस वाक्य का आशय यह है कि मनचले युवक हर प्रकार से उद्दण्ड और अशिष्ट होते हैं। वे अपने जीवन की सार्थकता केवल ऐशो-आराम करना समझते हैं। फलस्वरूप वे अपने जीवन को नरक बनाकर न केवल स्वयं के लिए दुःखद साबित होते हैं, अपितु अपने संपूर्ण समाज और वातावरण के लिए भी। इसलिए ऐसे शून्य, निःसार और शोचनीय युवकों से सावधान होकर दूर ही रहना चाहिए।

मित्रता भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
(क) उत्साह में ‘इत’ प्रत्यय जोड़ने से ‘उत्साहित’ बना है। इसी प्रकार पाठ से छाँटकर प्रत्यय लगाकर पाँच शब्द बनाइए।
(ख) दिए गए शब्दों की वर्तनी शुद्ध कीजिए।
मीत्रता – मित्रता
अपरीमार्जित – ……………….
आशचर्य – ………………..
चतुरायी – …………………
प्रतीष्टित – ………………..
सहानूभूति – ………………
दरबारीयों – ……………
कठिंत – ……………….

(ग) निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
कोमल, शुद्ध, विश्वास, भारी, सत्य, मर्यादित, लाभ, परिपक्व, असफलता, उपयुक्त, गुप्त, बुरा।

(घ) दिए गए वाक्यांशों के लिए एक-एक शब्द लिखिए
(i) जिस पर विश्वास किया जा सके-विश्वासपात्र
(ii) जो पका हुआ न हो।
(iii) चित्त में दृढ़ता हो।
(iv) जिसका उत्साह नष्ट हो गया हो।
(v) जो पवित्र न हो।
(vi) सत्य में निष्ठा रखने वाला।
उत्तर
Mitrata Chapter By Ramchandra Shukla Question Answer MP Board Class 9th

(ख) शब्द – शुद्ध शब्द
मीत्रता – मित्रता
अपरीमार्जित – अपरिमार्जित
आशचर्य – आश्चर्य
चतुरायी – चतुराई
प्रतीष्ठित – प्रतिष्ठित
दरबारीयों – दरबारियों
कुंठित – कुंठित।

(ग) शब्द – विलोम शब्द
कोमल – कठोर
शुद्ध – अशुद्ध
विश्वास – अविश्वास
भारी – हल्का
सत्य – असत्य
मर्यादित – अमर्यादित
लाभ – हानि
परिपक्व – अपरिपक्व
असफलता – सफलता
उपयुक्त – अनपयुक्त
गुप्त – प्रकट
बुरा- भला।

(घ) वाक्यांश – एक शब्द
(i) जिस पर विश्वास किया जा सके – विश्वासपात्र
(ii) जो पका हुआ न हो – अपरिपक्व
(iii) चित्त में दृढ़ता हो – दृढ़चित्त
(iv) जिसका उत्साह नष्ट हो गया हो – हतोत्साहित
(v) जो पवित्र न हो – अपवित्र
(vi) सत्य में निष्ठा रखने वाला – सत्यनिष्ठ

मित्रता योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
सुसंग और कुसंग संबंधी दोहों को संकलित कर चार्ट बनाकर कक्षा में लगाइए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग।
चंदन विष व्यापत नहीं लिपटे रहत भुजंग॥

रहीम के इस दोहे का आशय यह है कि सज्जन पर बुरी संगति का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। क्या आप इस बात से सहमत हैं? इस तरह के अन्य दोहों का संकलन कर हस्तलिखित पुस्तिका तैयार कीजिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

मित्रता परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
युवा पुरुष को मित्र चुनने में कठिनाई कब पड़ती है?
उत्तर
जब कोई युवापुरुष अपने घर से बाहर निकलकर बाहरी संसार में अपनी स्थिति जमाता है, तब पहली कठिनाई उसे मित्र चुनने में होती है।

प्रश्न 2.
विश्वासपात्र मित्र के विषय में एक प्राचीन विद्वान ने क्या कहा है?
उत्तर
विश्वासपात्र मित्र के विषय में एक प्राचीन विद्वान ने कहा है-“विश्वासपात्र मित्र से बड़ी भारी रक्षा रहती है। जिसको ऐसा मित्र मिल जाए, उसे समझना चाहिए कि खजाना मिल गया।”

प्रश्न 3.
मित्र किसे कहते हैं?
उत्तर
मित्र उसे कहते हैं, जो एक सच्चे पथ-प्रदर्शक के समान होता है. जिस पर हम पूरा विश्वास कर सकें।

प्रश्न 4.
सच्चे मित्र की चार विशेषताएँ लिखिए
उत्तर
सच्चे मित्र की चार विशेषताएँ इस प्रकार हैं

  1. वह प्रतिष्ठित हो।
  2. वह दृढ़चित्त और सत्य-संकल्प का हो।
  3. उसमें आत्मविश्वास हो।
  4. वह भरोसेमंद होना चाहिए।

प्रश्न 5.
प्रस्तुत पाठ से अच्छे मित्रों के तीन उदाहरण दीजिए।
उत्तर
प्रस्तुत पाठ से अच्छे मित्रों के तीन उदाहरण इस प्रकार हैं

  1. राम और लक्ष्मण।
  2. चन्द्रगुप्त और चाणक्य।
  3. राम और सुग्रीव।

प्रश्न 6.
मित्र का कर्त्तव्य क्या बतलाया गया है?
उत्तर
मित्र का कर्त्तव्य इस प्रकार बतलाया गया है, “उच्च और महान, कार्यों में इस प्रकार सहायता देना, मन बढ़ाना, और साहस दिलाना कि हम अपनी-अपनी सामर्थ्य के बाहर काम करते जाएं।”

मित्रता दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘मित्रता’ पाठ का भाव उद्देश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
‘मित्रता’ निबंध आचार्य रामचंद्र शक्ल का एक विचारात्मक निबंध है। इस निबंध के द्वारा निबंधकार ने मित्रता के अर्थ, इससे सावधानी, लाभ, आदर्श और आवश्यकता को बतलाने का सफल प्रयास किया है। इस निबंध के द्वारा लेखक ने यह स्पष्ट करना चाहा है कि मित्रता की धुन सभी को होती है और सभी मित्र बनाते हैं लेकिन बहुत कम श्रेष्ठ, लाभकारी और योग्य मित्र सिद्ध होते हैं। अधिकतर तो मित्र ही होते हैं। इसलिए लेखक ने यह सुझाव दिया है कि अच्छी मित्रता करनी चाहिए। सोच-समझकर मित्रता करनी चाहिए। ऐसा इसलिए कि श्रेष्ठ मित्रों के योगदान से जीवन निश्चय ही महान् बनता जाता है।

प्रश्न 2.
‘मित्रता’ निबंध के आधार पर मित्रता से लाभ बतलाइए।
उत्तर
‘मित्रता’ निबंध में आचार्य शुक्ल ने मित्रता से लाभ पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि विश्वासपात्र मित्र जीवन की औषधि और खजाना होता है। मित्र हमारे संकल्पों को दृढ़ और दोषों को दूर, सद्गुणों का विकास करता है। हृदय में सत्य, प्रेम और पवित्रता के भावों को उत्पन्न करता है। वह कुमार्ग से हटाकर सुमार्ग पर ले जाता है। वह निराशा में आशा की ज्योति जलाता है। सच्चे मित्र में एक कशल वैद्य के सभी गुण होते हैं।

प्रश्न 3.
कुसंग का ज्वर भयानक क्यों होता है? सोदाहरण बताइए।
उत्तर
कसंग का ज्वर भयानक इसलिए होता है कि यह केवल नीति और सद्वृत्ति का ही नाश नहीं करता अपितु बुद्धि का भी विनाश करता है। उदाहरण के लिए, किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी जो उसे दिन-रात अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहू के समान होगी जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जाएगी।

प्रश्न 4.
‘विश्वासपात्र मित्र से बड़ी भारी रक्षा रहती है’ इस कथन के आधार पर मित्र की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
व्यक्ति का परिचय एक से अधिक व्यक्ति से संभव है, पर मित्र उनमें कोई बिरला ही होता है और मित्रों में भी विश्वासपात्र मित्र तो बड़ी कठिनाई से प्राप्त होता है। विश्वासपात्र मित्र ही जीवन में उपयोगी सिद्ध होता है। वह प्रत्येक कठिनाई से हमें उबार सकता है। अपने हितकारी तथा उपदेशों से वह अपने मित्र की कुरीतियों को दूर कर सकता है। इस तरह विश्वासपात्र मित्र से जीवन निश्चय ही सफल हो जाता है।

प्रश्न 5.
मित्र का चुनाव करने में क्या-क्या सावधानियाँ बरतनी चाहिए?
उत्तर
मित्र बनाते समय सर्वप्रथम उसके आचरण तथा स्वभाव पर ध्यान देना चाहिए। मित्र बनाते समय प्रायः उसकी कुछ अच्छी बातों को देखकर ही, उसे मित्र बना लेते हैं। जबकि हमें जिसे मित्र बनाना हो, उसके सम्बन्ध में पूरी तरह जानकारी प्राप्त कर लेनी चाहिए। इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि जीवन-पथ पर कितने मित्र हमें आगे बढ़ा सकते हैं। अच्छा मित्र जहाँ हमारे जीवन की दिशा ही बदल देता है वहाँ बुरा मित्र हमें गर्त में भी ढकेल सकता है।

प्रश्न 6.
लेखक ने मित्र का क्या कर्त्तव्य बतलाया है?
उत्तर
लेखक ने मित्र के कर्तव्य का उल्लेख करते हुए कहा कि वह अपने मित्र में साहस, बुद्धि और एकता का भाव उत्पन्न करे। वह जीवन और मरण में अपने मित्र का सहारा बने। वह सत्यशील, न्यायी और पराक्रमी बना रहे। वह अपने मित्र का हर कदम पर सहारा बना रहे। जो अपनी सामर्थ्य से बाहर काम कर जाए। मित्र का कर्तव्य है कि वह अपने मित्र पर पूरा विश्वास करे और उसे धोखा न दे।

प्रश्न 7.
अच्छे मित्र में कौन-कौन से गुण होने चाहिए?
उत्तर
अच्छे मित्र में निम्नलिखित गुण होने चाहिए

  1. अच्छे मित्र पथ-प्रदर्शक के समान होना चाहिए।
  2. मित्र पर पूरा विश्वास करे।
  3. सच्चा मित्र भाई के समान होता है।
  4. उसमें सच्ची सहानुभूति होती है।
  5. सच्चा मित्र एक के हानि-लाभ को अपना हानि-लाभ समझता है।
  6. सच्चा मित्र जीवन व मरण में सहायक होता है।

मित्रता लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन-परिचय-आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी के श्रेष्ठ निबंधकार तथा समीक्षक हैं। आपका जन्म बस्ती जिले के अगोना नामक गाँव में सन् 1884 में हुआ था। इनकी आरम्भिक शिक्षा उर्दू तथा अंग्रेजी में हुई। विधिवत् शिक्षा तो वे इंटरमीडिएट तक ही प्राप्त कर सके। शुक्ल जी ने आरंभ में मिर्जापुर के मिशन स्कूल में पढ़ाया। जब काशी में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा ‘हिंदी शब्द सागर’ का सम्पादन आरंभ हुआ, तो शुक्ल जी को वहाँ कार्य करने का मौका मिला। फिर हिंदू विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए तथा विभागाध्यक्ष बने। शुक्ल जी ने अंग्रेजी, बंगला, संस्कृत तथा हिंदी के प्राचीन साहित्य का गंभीर अध्ययन किया।

शुक्ल जी का पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश ‘आनंद-कादम्बिनी’ पत्रिका के संपादन से हुआ। उसका सम्पादन उन्होंने कई वर्षों तक कुशलतापूर्वक किया था। इसके बाद वे नागरी प्रचारिणी सभा में हिंदी शब्द-सागर’ के सहयोगी संपादक नियुक्त हुए थे। इसके बाद आपने ‘नागरी प्रचारिणी’ पत्रिका का कई वर्षों तक कशलता के साथ संपादन किया। साहित्य-सेवा करते हुए शुक्ल जी ने 8 फरवरी 1941 को अंतिम साँस ली।नाएँ-यों तो शुक्ल जी प्रमुख रूप से निबंधकार और समालोचक के रूप में ही सुविख्यात हैं लेकिन इसके साथ ही कवि भी रहे हैं। यह बहुत कम चर्चा में हैं। उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं

1. निबंध-संग्रह-

  • विचार-वीथि
  • चिन्तामणि भाग 1-2
  • त्रिवेणी।

2. समालोचना

  • जायसी, सूर और तुलसी पर श्रेष्ठ आलोचनाएँ।

3. इतिहास-

  • हिंदी-साहित्य का इतिहास
  • काव्य में रहस्यवाद।

4. कविता-संग्रह-

  • वसंत
  • पथिक
  • शिशिर-पथिक
  • हृदय का मधुर भार,
  • अभिमन्यु-वध।

5. संपादन-

  • हिंदी शब्द-सागर
  • नागरी-प्रचारिणी पत्रिका
  • तुलसी
  • जायसी।

6. अनुवाद-

  • शशांक
  • बुद्ध-चरित
  • कल्पना का आनन
  • आदर्श-जीवन,

5. मेगास्थनीज का भारतीयवर्षीय वर्णन,
6. राज्य प्रबंध-शिक्षा,
7. विश्वप्रपंच।

भाषा-शैली-शुक्ल जी की भाषा संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक भाषा है। उसमें कहीं-कहीं तद्भव शब्द भी आए हैं। मुख्य रूप से आपकी भाषा गम्भीर, संयत, भावपूर्ण और सारगर्भित है। आपके शब्द चयन ठोस, संस्कृत और उच्च-स्तरीय हैं। उर्दू, अंग्रेजी और फारसी शब्दों के प्रयोग कहीं-कहीं हुए हैं। अधिकतर संस्कृत और प्रचलित शब्द ही आए हैं। शक्ल जी की शैली गवेषणात्मक, मुहावरेदार और हास्य-व्यंग्यात्मक है। इससे विषय का प्रतिपादन सुंदर ढंग से हुआ है। इस प्रकार हम कह सकते हैं कि शुक्ल जी की भाषा-शैली विषयानुकूल होकर सफल है।

व्यक्तित्व-शक्ल जी का व्यक्तित्व सर्वप्रथम कविमय व्यक्तित्व था। वह धीरे-धीरे समीक्षक और निबंधकार सहित इतिहासकार के रूप में बदलता गया। इस आधार पर हम कह सकते हैं कि शुक्ल जी का व्यक्तित्व विविध है। इसीलिए वे एक साथ कई रूपों में देखे जाते हैं। अगर हम संक्षेप में उनके व्यक्तित्व का मूल्यांकन करना चाहें तो कह सकते हैं कि शुक्ल जी युग-प्रवर्तक प्रधान व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार हैं।

प्रश्न 2.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल-लिखित निबंध ‘मित्रता’ का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
यह निबंध आचार्य रामचंद्र शुक्ल का विवरण प्रधान निबंध है। इसमें मित्र के विषय में अच्छा उल्लेख हुआ है। मित्र-कुमित्र का परिचय देते हुए लेखक ने मित्रता की परिभाषा और महत्त्व को बतलाया है। लेखक के अनुसार जब कोई युवक बाहरी संसार में प्रवेश करता है तो उसे सबसे पहले अपना मित्र चुनने में कठिनाई होती है। जरा-सी असावधानी के कारण कुछ लोगों से उसकी मित्रता हो जाती है। इसकी सफलता उसकी जीवन की सफलता पर निर्भर होती है। ऐसा इसलिए कि जब हम समाज में प्रवेश करते हैं तब हमारा चित्त बहुत ही कच्चा होता है। इसलिए ऐसे लोगों का साथ एकदम बुरा होता है जो हमें नियंत्रित रखते हैं। विवेक के कारण इस बात का डर नहीं रहता लेकिन युवा मन में विवेक बहुत कम होता है।

यह आश्चर्य की बात है कि घोड़े के गुण-दोष को तो लोग परखते हैं, लेकिन मित्र के नहीं। ऐसे लोग मित्रता के उद्देश्य को भूल जाते हैं। एक प्राचीन विद्वान के अनुसार-“विश्वासपात्र मित्र से बड़ी भारी रक्षा होती है। जिसे ऐसा मित्र मिल गया हो, मानो उसे खजाना मिल गया हो। इसलिए हमें अपने मित्रों से यही आशा रखनी चाहिए कि वे हमारे उत्तम संकल्पों को दृढ़ करेंगे। दोषों और त्रुटियों से बचाएँगे और हममें सत्य, पवित्रता और मर्यादा को पुष्ट करेंगे। हमें कुमार्ग से बचाएँगे-यही नहीं हमें हतोत्साह से उत्साह की ओर ले जाएंगे।छात्रावस्था में मित्रता की धुन इतनी सवार रहती है कि मित्र बनाने में आनंद का ओर-छोर नहीं होता है। उस समय मित्रता के आदर्शों को भूल जाते हैं। थोड़ी-सी बातें देखकर झट मित्र बना लेते हैं। ऐसे मित्र जीवन-संग्राम में साथ नहीं देते। वास्तव में मित्र तो एक विश्वासपात्र पथ-प्रदर्शक होता है।

दो मित्रों के बीच में परस्पर सहानुभूति होनी आवश्यक है न कि प्रकृति और आचरण आवश्यक है। इसीलिए राम और लक्ष्मण के परस्पर स्वभाव भिन्न तो रहे लेकिन मित्रता खूब निभी थी। हमें ऐसे मित्रों की खोज करनी चाहिए जिनमें हमसे कहीं अधिक आत्मबल हो। हमें उनका पल्ला उसी प्रकार पकड़ना चाहिए जैसे सुग्रीव ने राम का पकड़ा था। शिष्ट और सत्यनिष्ठ, मृदुल, पुरुषार्थी और शुद्ध बुद्धि वाले ही मित्र भरोसेमंद होते हैं। यही बातें जान-पहचान वालों के भी संबंध में लागू हैं। ऐसे लोगों से ही हम अपने जीवन को आनंदमय और उत्तम बना सकते हैं। जान-पहचान बढ़ा लेना कोई बड़ी बात नहीं है लेकिन जीवन-पथ पर सच्चे प्रेम का सुख और शान्ति प्रदान करने वालों का साथ मिलना निश्चय ही कठिन है।

कुसंग का असर सबसे बढ़कर भयानक होता है, क्योंकि इससे न केवल नीति और सद्वृत्ति का ही अपितु सद्बुद्धि का भी नाश होता है। इसलिए कुसंगति तो पैरों में बँधी हुई चक्की और सुसंगति सहारा देने वाली भुजा के समान होती है। यही कारण है कि कुछ ऐसी ही न पड़ने वाली बुरी बातें कुसंगति से कानों में कुछ ही समय में पड़ जाती हैं जिनसे पवित्रता नष्ट हो जाती है। इतनी जल्दी तो कोई भी अच्छी बात प्रभावित नहीं करती है। इसीलिए हमें ऐसी पूरी कोशिश करनी चाहिए कि हम किसी प्रकार की कुसंगति न करें। यह ध्यान देना चाहिए कि हम किसी प्रकार की बुरी बातों के अभ्यस्त न होवें। शुरू-शुरू में ही आने वाली हर बुरी बातों की छूत से हम बच जावें, एक पुरानी कहावत है

‘काजल की कोठरी में कैसो ही सयानो जाय,
एक लीक काजल की लागि है पै लागि है।”

मित्रता संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

गयांशों की सप्रसंग व्याख्या, अर्वग्रहण संबंधी एवं विषय-वस्त पर आधारित प्रश्नोत्तर

1. हम लोग ऐसे समय में समाज में प्रवेश करके अपना कार्य आरंभ करते हैं, जब कि हमारा चित्त कोमल और हर तरह का संस्कार ग्रहण करने योग्य रहता है। हमारे भाव अपरिमार्जित और हमारी प्रवृत्ति अपरिपक्व रहती हैं। हम लोग कच्ची मिट्टी की मूर्ति के समान रहते हैं, जिसे जो जिस रूप में चाहे, उस रूप में ढाले-चाहे राक्षस बनाए, चाहे देवता।

शब्दार्थ-चित्त-हदय। संस्कार-आदत, स्वभाव। अपरिमार्जित-मलीन। अपरिपक्व-कच्चा।

प्रसंग-यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘बाल-भारती’ में संकलित और आचार्य श्री रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित ‘मित्रता’ निबंध से है। इसमें लेखक ने नए-नए

व्यक्ति के अनुभवहीनता के स्वरूप को प्रकाश में लाते हुए कहा है कि

व्याख्या-समाज में प्रवेश करने वाले व्यक्ति लगभग जीवन-क्षेत्र के अनुभव से कोसों दूर रहते हैं। इस प्रकार के व्यक्ति अपनी अनुभवहीनता को लेकर अपना कार्य आरंभ करते हैं। उस समय ऐसे व्यक्ति अपने हृदय के बहुत ही कोमल, सरस और सरल होते हैं। यही कारण है कि उनकी योग्यता सभी प्रकार की आदतों और प्रभावों को अपनाने में सफल दिखाई पड़ती है। इस प्रकार के व्यक्ति अपने स्वभाव और स्वरूप से मलिन और असुन्दर दिखाई देते हैं। उनकी सभी प्रकार की आदतें भी पूरी कच्ची-ही-कच्ची होती हैं। इसे यों समझा जा सकता है जिस प्रकार कच्ची मिट्टी मूर्ति के समान चुपचाप और सरल होती है और जिसे चाहे जो चाहे वह बना ले। ठीक उसी प्रकार समाज में नया-नया प्रवेश करने वाला व्यक्ति भी स्वयं पर निर्भर न होकर समाज के दूसरे अनुभवी और पुराने लोगों पर ही निर्भर होता है। ऐसे लोगों के हाथ में उस नए व्यक्ति का भाग्य होता है। इसे वे देवता, राक्षस आदि जिसमें चाहें उसे बदल दें।

विशेष-

  1. भाषा में प्रवाह है।
  2. शैली बोधगम्य है।
  3. सभी तथ्य सुझावपूर्ण है।
  4. इस अंश से प्रेरणा मिलती है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i) कार्य आरंभ करने के लिए लेखक ने क्या आवश्यक बतलाया है?
(ii) कार्य आरंभ करते समय हमारी प्रवृत्ति कैसी रहती है?
उत्तर
(i) कार्य आरंभ करने के लिए लेखक ने चित्त को अत्यधिक सरस, सरल और कोमल होना आवश्यक बतलाया है। इसके साथ ही उसे यह भी होना आवश्यक बतलाया है कि वह हर प्रकार के संस्कारों को ग्रहण करने योग्य हो।
(ii) कार्य आरंभ करते समय हमारी प्रवृत्ति बहुत ही कच्ची रहती है। उसे किसी प्रकार का अनुभव प्राप्त नहीं हुआ होता है। इस प्रकार वह किसी प्रकार के संस्कारों को तुरंत ही ग्रहण करने लगती है।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i) कच्ची मिट्टी की मूर्ति की क्या विशेषता होती है?
(ii) ‘चाहे राक्षस बनाए, चाहे देवता’ का आशय क्या है?
उत्तर
(i) कच्ची मिट्टी की मूर्ति की यह विशेषता होती है कि वह दूसरे के अधीन होती है। वह इतनी सरल, सीधी और शान्त होती है कि उसे कोई कुछ भी रूप या आकार दे दे, वह उसका तनिक भी विरोध न करके उसे चुपचाप स्वीकार कर लेती है।
(ii) ‘चाहे राक्षस बनाए, चाहे देवता’ का आशय यह है कि समाज में प्रवेश करनेवाला हर प्रकार से अनुभवरहित होता है। वह इसीलिए आत्मनिर्भर होकर कोई काम करने में असमर्थ होता है। वह तो अनुभवी लोगों पर पूरी तरह से निर्भर होता है। वह अपने को उन्हीं लोगों को सौंप देता है। अब उनके ऊपर निर्भर होता है कि वे उसे बुरा बनाते हैं या अच्छा।

2. मित्र भाई के समान होना चाहिए जिसे हम अपना प्रीतिपात्र बना सकें। हमारे और हमारे मित्र के बीच सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए। ऐसी सहानुभूति जिससे एक के हानि-लाभ समझे। मित्रता के लिए यह आवश्यक नहीं कि दो मित्र एक ही प्रकार के कार्य करते हों या एक ही रुचि के हों। दो भिन्न प्रकृति के मनुष्यों में बराबर प्रीति और मित्रता रही है।

शब्दार्थ-प्रीति-प्रेम। सहानुभूति-दुःख-सुख समझने का अनुभव। रुचि-इच्छा।

प्रसंग-यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘बाल-भारती’ में संकलित आचार्य श्री रामचन्द्र शुक्ल-लिखित ‘मित्रता’ निबंध से है। इसमें लेखक ने मित्र के अच्छे स्वरूप पर प्रकाश डालते हुए कहा है कि

व्याख्या-मित्र कल्याणकारी और उपकारी होना चाहिए। उसका किया हुआ कल्याण और उपकार निश्चित रूप से सगे भाई के समान होना चाहिए। ऐसा इसलिए कि सगे भाई का कल्याण और उपकार हर प्रकार से प्रीतिकारक सिद्ध होता है। इससे – हमारे और हमारे बने हुए मित्र के बीच परस्पर सही और वास्तविक सहानुभूति का होना परम आवश्यक होता है। इस प्रकार की सहानुभूति के द्वारा ही एक दूसरा अपनी-अपनी हानि-लाभ के विषय में सोच-समझ सकता है अन्यथा नहीं। मित्रता के विषय में यह निश्चित रूप से समझ लेना चाहिए कि परस्पर दोनों एक ही प्रकार के कार्य-व्यापार करते हों। यह भी आवश्यक नहीं कि परस्पर दोनों एक ही विचारधारा के हों। मित्र तो एक-दूसरे के विपरीत विचारधारा के होकर भी परस्पर अधिक प्रीतिकारक और कल्याणकारक सिद्ध होते हैं।

विशेष-

  1. भाव सरल और स्पष्ट है।
  2. मित्र के सच्चे स्वरूप का उल्लेख हुआ है।
  3. मित्रता के लिए आवश्यक गुणों का वर्णन हुआ है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i) मित्र को भाई के समान क्यों होना चाहिए?
(ii) मित्र के बीच कैसी सहानुभूति होनी चाहिए?
उत्तर
(i) मित्र को भाई के समान होना चाहिए। यह इसलिए कि उससे हम अपना दुःख-सुख कहकर उसमें उसे भागीदार बना सकें।
(ii) मित्र के बीच वह सच्ची सहानुभूति होनी चाहिए, जो हानि-लाभ का पूरा-पूरा ध्यान रखे।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त गद्यांश में किसका उल्लेख हुआ है?
(ii) मित्रता के लिए मुख्य रूप से क्या आवश्यक है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त गद्यांश में सच्चे मित्र के स्वरूप का उल्लेख हुआ है।
(ii) मित्रता के लिए मुख्य रूप से प्रीतिकारक और कल्याणकारक होना आवश्यक है।

3. कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। यह केवल नीति और सद्वृत्ति का ही नाश नहीं करता, बल्कि युद्ध का भी क्षय करता है। किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैरों में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-रात अवनति के गहे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाह के समान होगी, जो उसे निरंतर उन्नति की ओर उठाती जाएगी।

शब्दार्थ-कुसंग-बुरा संग। सद्वृत्ति-अच्छाई। क्षय-नाश। अवनति-अविकास। बाहु-भुजा। निरन्तर-हमेशा।

प्रसंग-यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘बाल-भारती’ में संकलित लेखक आचार्य श्री रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित ‘मित्रता’ निबंध से है। इसमें लेखक ने कुसंगति के भयानक फल को बतलाते हुए कहा है कि
व्याख्या-जो भी व्यक्ति एक बार भी कुसंगति में पड़ जाता है उसके भयानक फलों को भोगने के लिए मजबूर हो जाता है। ऐसा इसलिए कि कुसंगति सभी प्रकार की अच्छाइयों को ही नष्ट करने में लग जाती है। इसलिए इससे, अच्छे-अच्छे सिद्धांतों-संस्कारों और अच्छे उद्देश्यों का विनाश तो होता ही है, इसके साथ-ही-साथ सद्बुद्धि का भी पूरा विनाश होने में तनिक भी देर नहीं लगती है। इसलिए यह कहना बहुत ही उचित है कि किसी भी बुरी संगति वाले अनुभव से ही युवक की कुसंगति बहुत ही दुःखद होती है। यह तो ठीक उसी प्रकार की होती है जिस प्रकार से किसी के पैरों में बंधी हुई चक्की होती है। और वह उसे विकास और सुख की ओर न ले जाकर बार-बार दुःख के गड्ढे में ही गिराती जाती है। लेखक का पुनः कहना है कि यदि किसी व्यक्ति को अच्छी संगति मिल गई है तो इससे उसको निरंतर भला और सुख ही मिलता जाएगा। इस प्रकार की संगति तो उस भुजा के समान ही होती है जो उसे हर प्रकार से सुख और कल्याण के शिखर पर बैठाने में सहायक होगी।

विशेष-

  1. भाव हृदयस्पर्शी है।
  2. उपदेशात्मक शैली है।
  3. तत्सम शब्दावली की प्रधानता है।
  4. संपूर्ण अंश प्रेरणादायक है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) कुसंगति का असर कैसा होता है?
(ii) कुसंगति का असर सबसे अधिक किस पर होता है और क्यों?
उत्तर
(i) कुसंगति का असर बहुत ही भयानक होने के कारण दुखद होता है। जिस पर कुसंगति का असर पड़ जाता है, उसके नियम-सिद्धान्त समाप्त हो जाते हैं। इससे उसकी सद्वृत्तियाँ विनष्ट हो जाती हैं। इस तरह कुसंगति से बुद्धि-विवेक देखते-देखते समाप्त हो जाते हैं।
(ii) कुसंगति का असर युवा-पीढ़ी पर सबसे अधिक पड़ता है। ऐसा इसलिए कि उसकी समझ बहुत कम होती है। उसका चित्त बिल्कुल अविकसित होता है। उसका अनुभव बिल्कुल न के बराबर होता है।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i) कुसंग क्या होता है?
(ii) कुसंग का क्या फल होता है?
उत्तर-
(i) कुसंग एक भयंकर ज्वर के समान होता है, जिसकी चपेट में आने वालों को केवल हानि उठानी पड़ती है।
(ii) कुसंग का फल बड़ा ही भयानक होता है। इसकी चपेट में प्रायः युवावर्ग आता है। वह कुसंग में पड़कर हानि ही उठाता रहता है। उससे उसका बाहर निकलना असंभव-सा हो जाता है।

4. बहुत से लोग ऐसे होते हैं जिनके घड़ी भर के साथ से भी बुद्धि भ्रष्ट हो जाती है क्योंकि उतने ही बीच में ऐसी-ऐसी बातें कही जाती हैं जो कानों में न पड़नी चाहिए। चित्त पर ऐसे प्रभाव पड़ते हैं जिनसे उसकी पवित्रता का नाश होता है। बुराई अटल भाव से धारण करके बैठती है। बुरी बातें हमारी धारणा में बहुत दिनों तक टिकती हैं। इस बात को प्रायः सभी लोग जानते हैं कि भद्दे-फूहड़ गीत जितनी जल्दी ध्यान पर चढ़ते हैं उतनी जल्दी कोई गंभीर या अच्छी बात नहीं।

शब्दार्थ-भ्रष्ट-नष्ट। चित्त-हदय। पवित्रता-सच्चाई। अटल-स्थिर। धारणा-विचार। गंभीर-ठोस।

प्रसंग-यह गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘बाल-भारती’ में संकलित लेखक आचार्य श्री रामचंद्र शुक्ल-लिखित ‘मित्रता’ निबंध से है। इसमें लेखक ने अच्छी-बुरी बातों के प्रभाव के विषय में बतलाते हुए कहा है कि

व्याख्या-संसार में अधिकांश लोग ऐसे अवश्य ही मिल जाएँगे जिनका थोड़ा-सा भी साथ अनेक प्रकार के विनाश का कारण बन जाता है। ऐसे लोगों का साथ निश्चय ही सद्बुद्धि को विनष्ट करने में देर नहीं लगाता है। ऐसा इसलिए कि इस थोड़े से ही समय में कुछ ऐसी उलजलूल बातें अवश्य हो जाती हैं जो हर प्रकार से अनुचित और अहितकर ही होती हैं। इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि बुराई का प्रभाव हृदय-स्थल पर इस तरह से पड़ता है कि इससे कहीं कुछ भी सच्चाई-अच्छाई का नामोनिशान नहीं रह जाता है। यह सब कुछ इसलिए होता है कि जो एक बार भी बुरी बातें हमारे हृदय में प्रवेश कर जाती हैं वे स्थिर और अटल भाव से होती हैं। वे बहुत दिनों तक ज्यों-की-त्यों पड़ी रहती हैं। इसलिए इस बात को सभी मानते और समझते हैं कि भद्दे और गन्दे गीतों के असर इतनी जल्दी और देर तक होते हैं कि ऐसे असर सुंदर और अच्छे गीतों के भी नहीं होते हैं।

विशेष-

  1. अच्छी और बुरी बातों के प्रभाव का आकर्षक उल्लेख है।
  2. तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  3. शैली बोधगम्य है।
  4. सारा अंश उपदेशात्मक है।
  5. उपमा अलंकार है।

1. गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i)कुसंग का असर किस प्रकार होता है?
(ii) बुराई और अच्छाई में क्या अंतर है?
उत्तर
(i) कुसंग का असर तुरंत पड़ने लगता है। यहाँ तक कि घड़ी भर में ही कुसंग अपना दुष्प्रभाव दिखाने लगता है।
(ii) बुराई और अच्छाई में बहुत बड़ा अंतर है। बुराई में अटलता होती है, जबकि अच्छाई में नहीं। बुराई तुरंत अपना प्रभाव डालती है, जबकि अच्छाई धीरे-धीरे।

2. गद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) बुराई से सबसे पहले क्या हानि होती है?
(ii) उपर्युक्त गांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर
(i) बुराई से सबसे पहले बुद्धि की हानि होती है। इससे अच्छाई की पवित्रता विनष्ट हो जाती है। इससे हमारा सोच-समझ मलिन हो जाती है।
(ii) उपर्युक्त गद्यांश का मुख्य भाव है-कुसंगति और सत्संगति क्या होती है। इसे समझाते हुए सत्संगति का महत्त्व बतलाना।