MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 15 वरदान मागूँगा नहीं

MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 15 वरदान मागूँगा नहीं (शिवमंगल सिंह सुमन)

वरदान मागूँगा नहीं अभ्यास-प्रश्न

वरदान मागूँगा नहीं लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कवि किसी की दया का पात्र क्यों नहीं बनना चाहता है?
उत्तर
कवि किसी की दया का पात्र नहीं बनना चाहता है। यह इसलिए कि ‘वह आत्म-निर्भर है।

प्रश्न 2.
कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ वरदान क्यों नहीं माँगना चाहते हैं?
उत्तर
कवि शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ वरदान नहीं माँगना चाहते हैं। यह इसलिए कि वे पूरी तरह से आत्मनिर्भर हैं। उन्हें अपने आत्मबल पर पूरा भरोसा है।

प्रश्न 3.
किस मार्ग से कवि कभी न हटने का संकल्प लेता है और क्यों?
उत्तर
कवि संघर्ष-पथ से कभी न हटने का संकल्प लेता है। यह इसलिए कि यही उसे स्वीकार है।

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प्रश्न 4.
अभिशाप मिलने के बाद भी कवि किस मार्ग से विचलित नहीं होगा?
उत्तर
अभिशाप मिलने के बाद भी कवि कर्तव्य-पथ से विचलित नहीं होगा?

वरदान मागूँगा नहीं दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जीवन की प्रत्येक स्थिति में कवि ने क्या सन्देश दिया है?
उत्तर
जीवन की प्रत्येक स्थिति में कवि ने यह सन्देश दिया है कि यह जीवन महासंग्राम है। इसमें हुई हार एक विराम है। तिल-तिल मिटते हुए किसी की दया पर निर्भर न होकर अपने ऊपर ही निर्भर रहना चाहिए। जीवन-संघर्ष के दौरान सुख-सुविधाओं को भूल जाना चाहिए। संघर्ष-पथ पर जो कुछ मिले उसे स्वीकार कर लेना चाहिए। कोई क्या कहता है, यह ध्यान नहीं देना चाहिए और अपने कर्तव्य-पथ पर बढ़ते ही जाना चाहिए।

प्रश्न 2.
कवि अपने हृदय की वेदना को क्यों नहीं छोड़ना चाहता है?
उत्तर
कवि अपने हृदय की वेदना को नहीं छोड़ना चाहता है। यह इसलिए कि वह उससे ही संघर्ष-पथ पर आगे बढ़ रहा है। उसके बिना उसके संघर्ष का कोई अर्थ नहीं रह जायेगा। यही कारण है कि वह उसे यों ही त्यागना नहीं चाहता है।

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प्रश्न 3.
जीवन को महासंग्रम कहने के पीछे कवि का क्या आशय है? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
जीवन को महासंग्राम कहने के पीछे कवि का बहत बड़ा आशय है। वह यह कि जीवन में एक-से-एक बढ़कर कठिनाइयाँ आती ही रहती हैं। महासंग्राम में भी एक-से-एक विकट और बढ़कर योद्धा सामने आते रहते हैं। जीवन में वही सफल होता है, जो सामने आने वाली हर कठिनाई का न केवल सामना करता है, अपितु उसे दूर करके आगे बढ़ जाता है। महा संग्राम में भी वही विजयी होता है, जो सामने आने वाले हर योद्धा का न केवल सामना करता है, अपितु उसे परास्त कर आगे निकल जाता है।

प्रश्न 4.
‘तिल-तिल मिटने’ से कवि का क्या अभिप्राय है?
उत्तर
‘तिल-तिल मिटने’ से कवि का अभिप्राय है-निरन्तर अपनी पूरी शक्ति के साथ जीवन-संघर्ष करते रहना चाहिए। ऐसा करते हुए किसी की दया और सहायता पर निर्भर न होकर अपने ऊपर ही निर्भर रहना चाहिए। इस तरह अपने आत्मबल के साथ जीवन की हर कठिनाई का हल करते रहना चाहिए।

प्रश्न 5.
‘वरदान माँगूगा नहीं’ पाठ से क्या शिक्षा मिलती है?
उत्तर
श्री शिव मंगल सिंह ‘सुमन’-विरचित कविता वरदान माँगूगा नहीं। एक न केवल प्रेरणादायक कविता है, अपितु शिक्षाप्रद भी है। इस कविता के माध्यम से कवि ने हमें यह शिक्षा देने का प्रयास किया है कि स्वाभिमानपूर्वक जीवन जीना चाहिए। चूँकि जीवन महायुद्ध के समान है इसलिए उसमें विजयी होने के लिए हममें आत्मनिर्भरता और आत्मबल पूरी तरह से होना चाहिए। किसी की दया-सहायता की अपेक्षा-आशा न करके अपने-आप पर पूरा भरोसा रखते हुए हरेक परिस्थिति का डटकर सामना करते रहना चाहिए।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित काव्य-पंक्तियों की सन्दर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए।

क. यह हार एक विराम है
जीवन महा संग्राम है ।
तिल-तिल मिलूंगा, पर दया की भीख मैं
लूँगा नहीं, वरदान माँगूंगा नहीं

ख. क्या हार में
क्या जीत में
किंचित नहीं भयभीत में
संघर्ष पद पर जो मिले
यह भी सही वह भी सही
वरदान माँगूंगा नहीं।
उत्तर
(क) यह जीवन महायुद्ध है, अर्थात् यह जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। इसमें हार जाना एक बड़ी रुकावट है। अर्थात संघर्ष करते हुए हिम्मत छोड़ देना बहुत बड़ी हानि है। इसलिए मैं इस जीवन रूपी महायुद्ध में भले ही एक-एक करके मिट जाऊँगा, लेकिन किसी के सामने अपना हाथ फैलाकर दया अर्थात् सहायता की कोई भीख नहीं माँगूंगा। यह मेरा दृढ़ सकंल्प है कि मैं किसी से कछ भी नहीं प्राप्त करने की भावना से यह जीवन का महायुद्ध लगा।

(ख) जीवन रूपी महायुद्ध में भाग लेना ही वह अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य समझता और मानता है। उसमें होने वाली हार या जीत को नहीं। दूसरे शब्दों में वह जीवन-रूपी महायुद्ध में होने वाली हार या जीत उसकी वीरता को प्रभावित नहीं कर सकती है। इस प्रकार वह जीवन रूपी महायुद्ध के और किसी परिणाम या प्रभाव से कुछ भयभीत नहीं है। वह तो उसे ही सब कुछ सही, अच्छा मानता और समझता
है जो उसे अपने संघर्ष के रास्ते पर बढ़ते हुए प्राप्त हो जाता है। इसलिए वह किसी पर निर्भर होकर अपने जीवन-पथ पर बढ़ना नहीं चाहता है, अपितु अपने आत्मबल से दृढ़ संकल्पों से आगे बढ़ना चाहता है।

वरदान मागूँगा नहीं भाषा-अध्ययन/काव्य-सौन्दर्य

प्रश्न 1.
तिल-तिल कर मिटना अर्वत थोड़ा-थोड़ा करके नष्ट होना। यह एक मुहावरा है पाँच मुहावरे खोजें और वाक्य में प्रयोग करें।
उत्तर
MP Board Class 9th Hindi Vasanti Solutions Chapter 15 वरदान मागूँगा नहीं img 1

प्रश्न 2.
संघर्ष-पथ तथा कर्त्तव्य-पच में योजक चिह (-) का प्रयोग हुआ है ऐसे अन्य शब्द भी लिखिये।
उत्तर
महा-संग्राम, तिल-तिल

प्रश्न 3.
तिल-तिल तथा स्मृति-सुखद में अनुप्रास अलंकार है, ऐसे अन्य शब्द भी खोजें।
उत्तर
महा-संग्राम, दया की भीख, तिल-तिल, संघर्ष-पथ और कर्तव्य-पथ ।

वरदान मागूँगा नहीं योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1. सुमन जी अपने गीतों के लिए भी साहित्य जगत में चर्चित रहे हैं। पुस्तकालय की सहायता से उनके गीतों को संकलित करें।
प्रश्न 2. मध्यप्रदेश के ऐसे कवियों की सूची तैयार कीजिए जिन्होंने जीवन में स्वाभिमान एवं संघर्ष के साथ जीवन को जीने की प्रेरणा दी।
प्रश्न 3. डॉ. शिवमंगल सिंह सुमनजी के जीवन पर आधारित घटनाओं पर जानकारी एकत्रित कीजिए।
उत्तर
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

वरदान मागूँगा नहीं परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

लघूत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘हार’ को कवि ने विराम क्यों कहा है?
उत्तर
‘हार’ को कवि ने विराम कहा है। यह इसलिए कि हार से जीवन-संग्राम में विजय प्राप्त करने में रुकावट और कठिनाई आ जाती है।

प्रश्न 2.
कवि क्या नहीं चाहता है?
उत्तर
कवि स्मृति-सुखद प्रहरों के लिए संसार की सम्पत्ति नहीं चाहता है।

प्रश्न 3.
‘यह भी सही, वह भी सही’ कहने से कवि का किस ओर संकेत है?
उत्तर
‘यह भी सही वह भी सही’ कहने से कवि का सुख-दुख की ओर संकेत है।

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प्रश्न 4.
कर्त्तव्य-पथ पर डटे रहने के लिए कवि को क्या-क्या स्वीकार है?
उत्तर
कर्त्तव्य-पथ पर डटे रहने के लिए कवि को किसी के द्वारा दिये जाने वाले कष्ट, अभिशाप और सब कुछ स्वीकार है।

प्रश्न 5.
कवि किस-किस पथ पर चलकर जीवन का महासंग्राम जीतना चाहता है?
उत्तर
कवि संघर्ष-पथ और कर्तव्य-पथ पर चलकर जीवन का महासंग्राम जीतना चाहता है।

वरदान मागूँगा नहीं दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविवर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ने ‘वरदान माँगूंगा नहीं’ कविता में किन-किन भावों को व्यक्त किया है?
उत्तर
कविवर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ ने ‘वरदान माँगँगा नहीं’ कविता में अपने जीवन-संघर्ष पर चलने के लिए अनेक प्रकार के भावों को व्यक्त किया है। उनके द्वारा व्यक्त भाव उनके स्वाभिमान को प्रमाणित करते हैं। वे दृढ़ निश्चय, आत्मनिर्भर, आत्मबल, आत्मत्याग, व्यर्थ की बातों को भूलकर आत्मनिष्ठा, निश्चिन्त और अटूट विश्वास जैसे भावों को व्यक्त किए हैं।

प्रश्न 2.
कवि किससे थोड़ा भी भयभीत नहीं है और क्यों?
उत्तर
कवि जीवन के महासंग्राम में मिलने वाली हार से तनिक भी भयभीत नहीं है। इसके दो कारण हैं-पहला यह कि उसे यह अच्छी तरह ज्ञात है कि जीवन के महासंग्राम में भी और महासंग्रामों की तरह जीत मिल सकती है, तो हार भी। जब हार निश्चित नहीं है, तो फिर भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है। दूसरा यह कि वह जीवन के महासंग्राम में अपनी भागीदारी अपना कर्तव्य समझकर करने जा रहा है। इससे वह अपने कर्तव्य-पथ पर बढ़ना ही अपना एकमात्र लक्ष्य समझ रहा है न कि उसके अच्छे-बुरे परिणामों को। इस दृष्टि से भी भयभीत होने की कोई आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न 3.
‘वरदान माँगूंगा नहीं’ कविता का मुख्य भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
वरदान मॉगूंगा नहीं कविता कविवर शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ की एक प्रेरणादायक कविता है। इस कविता में कवि ने स्वाभिमान-पूर्वक जीवन जीने का संदेश दिया है। इसी के साथ ही कवि ने जीवन संग्राम का सामना करने की प्रेरणा दी है। इस विषय में किसी की दया पर निर्भर होने के स्थान पर अपने आत्मबल से जीवन-पथ पर बढ़ने के दृढ़ संकल्प को इस कविता में देने का सराहनीय प्रयास है। कवि का यह मानना है कि व्यक्ति को प्रत्येक परिस्थिति में कठिनाइयों से विचलित हुए बिना जीवन-पथ पर चलते जाना चाहिए।

वरदान मागूँगा नहीं कवि-परिचय

प्रश्न
श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य के महत्त्व पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
जीवन परिचय-शिव मंगल सिंह ‘सुमन’ का जन्म 1916 में उत्तर प्रदेश राज्य के उन्नाव जिले के झगरपुर गाँव में हुआ था। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के स्कूल में ही सम्पन्न हुई। इसके पश्चात् आपने ग्वालियर के विक्टोरिया कॉलेज में प्रवेश लिया और बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की। तत्पश्चात् काशी विश्वविद्यालय से हिन्दी में एम.ए. किया और बाद में यहीं से पी-एच.डी. और डी. लिट की उपाधि प्राप्त की। आपने ग्वालियर और होल्कर कॉलेज, इन्दौर में अध्यापन-कार्य भी किया। इसी बीच आपकी नियुक्ति नेपाल स्थित भारतीय दूतावास में सांस्कृतिक सहायक के रूप में हो गई। 1961 ई. में माधव कॉलेज, उज्जैन के प्राचार्य पद पर नियुक्त हुए तथा कुछ वर्षों बाद विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन के कुलपति का कार्यभार ग्रहण किया।

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साहित्यिक परिचय-समन जी ने छात्र जीवन से ही कविता लिखना प्रारम्भ कर दिया था और छात्रों में लोकप्रियता प्राप्त की। वे मूल रूप से प्रगतिशील कवि हैं और वर्गहीन समाज की कामना करते हैं। पूँजीवाद के प्रति उनमें तीव्र आक्रोश और शोषित वर्ग के प्रति गम्भीर संवेदना है। उनकी कविताओं में एक ओर राष्ट्रीयता और नवजागरण के स्वर हैं तो दूसरी ओर इनके गीतों में प्रेम और प्रकृति की सरस व्यंजना है। इनकी छोटी कविताओं में और गीतों में अधिक व्यंग्यात्मकता, सरसता और चित्रात्मकता है और लम्बी कविताएँ वर्णनात्मक हैं।

रचनाएँ-हिल्लोल, जीवन के गान, प्रलय सृजन, मिट्टी की बारात, विंध्य हिमालय, पर आँखें नहीं भरी तथा विश्वास बढ़ता ही गया समन जी की प्रसिद्ध काव्य रचनाएँ हैं।

भाषा-सुमन जी की भाषा ओजपूर्ण, प्रवाहमयी और स्वाभाविक है। आपकी भाषा ने उनके काव्य को संगीतमय बनाया है। मुख्य रूप से उन्होंने गीत शैली को अपनाया है। प्रायः उनकी कविताएँ ध्वनि-माधुर्य से ओत-प्रोत हैं। सुमन जी ने कुछ छन्दमुक्त कविताओं की भी रचना की है।

वरदान मागूँगा नहीं कविता का सारांश

प्रश्न
श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन’-विरचित कविता ‘वरदान माँगूंगा नहीं’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर
श्री शिवमंगल सिंह ‘सुमन’-विरचित कविता ‘वरदान माँगूंगा नहीं’ एक स्वाभिमानपूर्ण कविता है। इस कविता का सारांश इस प्रकार है
कवि का यह मानना है जीवन एक युद्ध है और इसमें हुई हार एक ठहराव है। इसलिए मैं यह संकल्प कर रहा हूँ कि मैं मिट-मिट कर भी किसी के सामने दया के लिए हाथ नहीं फैलाऊँगा और न लूँगा। चाहे मैं जीवन-युद्ध जीत जाऊँ, या हार जाऊँ, संघर्ष करते हुए तनिक भयभीत नहीं होऊँगा। इस दौरान मुझे जो कुछ भी मिलेगा, उसे सही मानकर स्वीकार कर लूँगा। मुझे कोई भले ही छोटा समझे, समझोता रहे, मैं अपने हदय की पीड़ा को यों ही नहीं त्यागूंगा! कोई महान बनने की बात करता है, तो करता रहे, मुझे उसकी कुछ भी परवाह नहीं। चाहे मुझे कोई कुछ भी समझे, मैं अपने कर्त्तव्य-पथ से कभी-पीछे नहीं हटूंगा। इस तरह मैं किसी की दया पर नहीं निर्भर रहूँगा।

वरदान मागूँगा नहीं संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

‘पद्यांश की सप्रंसग व्याख्या, काव्य-सौन्दर्य व विषय-वस्त से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर

1. यह हार एक विराम है,
जीवन महा-संग्राम है,
तिल-तिल मिलूंगा, पर दया की भीख मैं लूँगा नहीं,
वरदान माँगूंगा नहीं।

शब्दार्थ-विराम-रुकावट, ठहराव । महा-संग्राम-बहुत बड़ा युद्ध (संघर्ष)। तिल-तिल मिटूंगा-एक-एक कर समाप्त हो जाऊँगा। दया की भीख-सहायता, सहारा। वरदान

माँगूंगा नहीं-किसी की दया पर निर्भर नहीं रहूँगा।

प्रसंग-यह पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘वासंती हिन्दी सामान्य’ में संकलित व श्री शिव मंगल सिंह ‘सुमन’-विरचित कविता ‘वरदान माँगूंगा नहीं’ से है। इसमें कवि ने अपनी दृढ़ता को बतलाते हुए कहा है कि

व्याख्या-यह जीवन महायुद्ध है, अर्थात् यह जीवन संघर्षों से भरा हुआ है। इसमें हार जाना एक बड़ी रुकावट है। अर्थात संघर्ष करते हुए हिम्मत छोड़ देना बहुत बड़ी हानि है। इसलिए मैं इस जीवन रूपी महायुद्ध में भले ही एक-एक करके मिट जाऊँगा, लेकिन किसी के सामने अपना हाथ फैलाकर दया अर्थात् सहायता की कोई भीख नहीं माँगूंगा। यह मेरा दृढ़ सकंल्प है कि मैं किसी से कछ भी नहीं प्राप्त करने की भावना से यह जीवन का महायुद्ध लगा।

विशेष-

  1.  कवि का कथन दृढभावों से लबालब है।
  2. शैली भावात्मक है।
  3. जीवन को महासंग्राम के रूप में चित्रित करने के कारण इसमें रूपक अलंकार है।
  4. वीर रस का प्रवाह है।

1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पयांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य स्वरूप ओजपूर्ण है। भावों को काव्य के स्वरूपों में मुख्य रूप से रस, छन्द, अलंकार और प्रतीक से सँवारने का प्रयास किया गया है। इसमें रूपक अलंकार और मुक्त छन्द लाए गए हैं, जिन्हें वीर रस से प्रवाहित करने का आकर्षक प्रयास किया गया है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौन्दर्य ओजस्वी शब्दों से बनकर प्रस्तुत हुआ है। जीवन महायुद्ध में विजय श्री हासिल करने की आत्मनिर्भरता का दृढ़ संकल्प काबिलेतारीफ है। इससे यह पद्यांश भावों को प्रेरित करता हुआ हदयस्पर्शी बन गया है।

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2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
(ii) कवि किस प्रकार का जीवन जीना चाहता है?
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव है आत्मनिर्भर होकर कठिनाइयों का दृढ़तापूर्वक सामना करते हुए जीवन जीना चाहिए।
(ii) कवि स्वाभिमानपूर्वक जीवन जीना चाहता है।

2. स्मृति सुखद प्रहरों के लिए
यह जान लो में विश्व की सम्पत्ति चाहूँगा नहीं,
बरदान माँगूंगा नहीं।

शब्दार्थ-स्मृति-बीते हुए। सुखद-सुख देने वाले । प्रहरों-क्षणों, समय । विश्व-संसार। सम्पत्ति-सुख-सुविधा।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने अपने जीवन महायुद्ध में विजय श्री प्राप्त करने से पहले दृढ़ संकल्प करते हुए कह रहा है कि

व्याख्या-यह सभी को अच्छी तरह से ज्ञात होना चाहिए कि जीवन एक महायुद्ध ही है। सभी वीर पुरुष इसमें अपने-अपने ढंग से भाग लेते हैं। मैं भी इसमें अपने ही ढंग से भाग लेने जा रहा हूँ। मेरा ढंग यह है कि मैं इसमें भाग लेने से पहले अपने बीती हुई सभी सुख-सुविधाओं को भूल जाऊँगा। यह भी कि मैं यह महायुद्ध किसी सुखद स्वरूप को मन में रखकर नहीं करूंगा। यह भी मैं स्पष्ट कर देना समुचित समझ रहा हूँ कि मैं संसार की कोई भी सुविधा नहीं चाहूँगा। इस प्रकार निःस्वार्थ भाव से होकर किसी की सहायता नहीं चाहूँगा। किसी के ऊपर निर्भर नहीं रहूँगा, अपितु आत्मनिर्भर होकर ही मैं इस महायुद्ध में भाग लूँगा।

विशेष-

  1. भाषा की शब्दावली सरल है।
  2. तत्सम शब्दों की प्रधानता है।
  3. वीर रस का संचार है।
  4. यह पद्यांश प्रेरक रूप में है।

1. पयांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-
(i)उपर्युक्त पयांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य वीर रस से प्रवाहित अनुप्रास अलंकार (स्मृति सुखद) से मण्डित है। मुक्त छन्द से प्रस्तुत हुए भावों की स्वच्छन्दता सराहनीय है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश के भाव-सौन्दर्य में दृढ़ता, स्पष्टता, सहजता, प्रवाहमयता और रोचकता जैसी असाधारण विशेषताएँ हैं। इससे इस पद्यांश का भाव-सौन्दर्य प्रभावशाली रूप में है, ऐसा निश्चयपूर्वक कहा जा सकता है।

2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) ‘सुखद प्रहर’ से क्या तात्पर्य है?
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में कवि का कौन-सा भाव व्यक्त हो रहा है?
उत्तर
(i) ‘सुखद प्रहर’ से तात्पर्य है-संघर्षों और कठिनाइयों का पलायन कर सुविधाओं को अपनाना।
(i) उपर्युक्त पद्यांश में कवि का निःस्वार्थ भाव व्यक्त हुआ है।

3. क्या हार में क्या जीत में,
किंचित नहीं भयभीत में,
संघर्ष-पथ पर जो मिले,
यह भी सही, वह भी सही,
वरदान माँगूगा नहीं।

शब्दार्थ-किंचित-कुछ। भयभीत-डरा हुआ। संघर्ष-पथ पर-कठिनाइयों का सामना करते हुए बढ़ते जाने पर।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने जीवन रूपी महायुद्ध में भाग लेने को ही मुख्य जीबनोद्देश्य मानते हुए कहा है कि

व्याख्या-जीवन रूपी महायुद्ध में भाग लेना ही वह अपने जीवन का मुख्य उद्देश्य समझता और मानता है। उसमें होने वाली हार या जीत को नहीं। दूसरे शब्दों में वह जीवन-रूपी महायुद्ध में होने वाली हार या जीत उसकी वीरता को प्रभावित नहीं कर सकती है। इस प्रकार वह जीवन रूपी महायुद्ध के और किसी परिणाम या प्रभाव से कुछ भयभीत नहीं है। वह तो उसे ही सब कुछ सही, अच्छा मानता और समझता
है जो उसे अपने संघर्ष के रास्ते पर बढ़ते हुए प्राप्त हो जाता है। इसलिए वह किसी पर निर्भर होकर अपने जीवन-पथ पर बढ़ना नहीं चाहता है, अपितु अपने आत्मबल से दृढ़ संकल्पों से आगे बढ़ना चाहता है।

विशेष-

  1.  तत्सम शब्दों की अधिकता है।
  2. शैली भावात्मक है।
  3. सम्पूर्ण कथन सुस्पष्ट है।
  4. संघर्ष-पथ में रूपक अलंकार है।
  5. वीर रस का प्रवाह है।

1. पयांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पयांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पयांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य अधिक उत्साहवर्द्धक है। इसके लिए किया गया वीर रस का प्रयोग आकर्षक रूप में है। भावात्मक शैली-विधान और मुक्तक छन्द के द्वारा बिम्बों और प्रतीकों की योजना इस पद्यांश को और सुन्दर बना रही है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश की भाव-योजना ओजस्वी और प्रभावशाली कही जा सकती है। जीवन-संघर्ष करने की दृढ़ आत्म-निर्भरता की भावाधारा देखते ही बनती है।

2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) ‘किंचित भयभीत नहीं मैं’ का क्या तात्पर्य है?
(ii) कवि के संघर्ष-पथ की क्या विशेषता है?
उत्तर
(i) किंचित भयभीत नहीं ‘मैं’ का तात्पर्य है-कवि अपने संघर्ष के दौरान आने वाली कठिनाइयों के प्रभाव को बिल्कुल ही नहीं मानता है। वह उससे न तो शंकित है और न भयभीत ही।
(ii) कवि के संघर्ष-पथ की यह विशेषता है कि उस दौरान उसको हार मिले या जीत, सुख मिले या दुख वह इन सबको एक समान मानता है। वह इन सभी को गलत नहीं, अपितु ठीक ही मानता है।

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4. लपुता न अब मेरी छुओ,
तुम हो महान बने रहो,
अपने हृदय की वेदना मैं व्यर्व त्यागूंगा नहीं,
वरदान माँगूगा नहीं।

शब्दार्थ-लपुता-छोटापन। छुआ-स्पर्श करो। वेदना-पीड़ा।

प्रसंग-पूर्ववत् । इसमें कवि ने स्वतन्त्र व आत्मनिर्भर होकर जीवन-संघर्ष करने का दृढ़ संकल्प व्यक्त करते हुए कहा है कि

व्याख्या-वह जीवन संघर्ष-पथ पर आगे बढ़ते हुए किसी की तनिक भी परवाह नहीं करेगा। अगर कोई उसकी कमियों और दोषों को उछालना चाहेगा तब भी वह उसकी ओर ध्यान नहीं देगा। अगर उससे कोई महान बनने की बात कहेगा तब भी वह उसकी ओर ध्यान नहीं देगा। उसकी वह यह कहकर उपेक्षा कर देगा कि वह महान है तो महान बना रहे। उसको कोई फर्क नहीं पड़ेगा। वह तो अपने जीवन के संघर्ष-पथ पर बढ़ता चला जायेगा। उसके हृदय में दुख-पीड़ा भरी हुई है, उसे वह यों ही नहीं त्याग देगा। वह उन्हें किसी-न-किसी प्रकार सार्थक करके ही त्यागेगा। इस प्रकार वह अपने जीवन-संघर्ष पथ की कठिनाइयों से डरकर-घबड़ाकर किसी की कोई भी सहायता की अपेक्षा-आशा नहीं करेगा। वह तो आत्म-निर्भर होकर ही आगे बढ़ता चला जायेगा।

विशेष-

  1. भाषा ठोस है।
  2. शैली भावात्मक है।
  3. वीर रस का प्रवाह है।
  4. यह अंश प्रेरक रूप में है।

1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिए।
(ii) उपर्युक्त पयांश के भाव-सौन्दर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
(i) उपर्युक्त पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य आकर्षक रूप में है। वीर रस के संचार-प्रवाह से मुक्तक छन्द की पुष्टि हुई है। इसके लिए आए हुए बिम्ब-प्रतीक की सहजता सराहनीय है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-सौन्दर्य सरल और सुस्पष्ट भावों का है। आत्म-संघर्षों के लिए प्रस्तुत की गई आत्म-निर्भरता की भाव-योजना न केवल आकर्षक है, अपितु प्रेरक भी है।

2. पयांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) प्रस्तुत पयांश का मुख्य भाव लिखिए।
(11) प्रस्तुत पयांश में कवि का कौन-सा भाव व्यक्त हुआ है?
उत्तर
(i) प्रस्तुत पद्यांश का मुख्य भाव है-संघर्ष के पथ पर बिना किसी की परवाह करते हुए बढ़ते जाना।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश में कवि का आत्म-निर्भरता के साथ अपने लक्ष्य की प्राप्ति की दिशा में आत्मबल को लेकर बढ़ते जाने का भाव व्यक्त हुआ है।

5. चाहे हृदय का ताप दो,
चाहे मुझे अभिशाप दो,
कुछ भी करो कर्तव्य पथ से किन्तु भागूंगा नहीं,
वरदान माँगूंगा नहीं।

शब्दार्च-ताप-दुख। अभिशाप-श्राप, शाप।

प्रसंग-पूर्ववत्। इसमें कवि ने किसी प्रकार के दख-दर्द की परवाह किए बिना जीवन रूपी महायुद्ध में आत्मनिर्भर होने के दृढ़-संकल्प को व्यक्त किया है। इस विषय में कवि का कहना है कि.

व्याख्या-उसका यह दृढ़ संकल्प है कि उसे जीवन-पथ पर संघर्ष करते समय चाहे उसे कोई हृदय को चोट पहुँचाने वाला कष्ट दे अथवा उसे कोई शाप दे या उसे कोई और ही तरह का दुख पहुँचाये, वह तनिक भी अपने दृढ-संकल्प स्वरूप कर्तव्य-पथ से पीछे नहीं हटेगा, अपितु उस पर आगे ही बढ़ता जायेगा। इसके लिए वह अपनी आत्मनिर्भरता का परित्याग नहीं करेगा। वह अपने आत्मबल का एकमात्र आधार लेकर बढ़ता चला जायेगा। इस प्रकार किसी की दया-सहायता की तनिक भी आशा-इच्छा नहीं करेगा।

विशेष-

  1. भाषा ओजस्वी और प्रवाहमयी है।
  2. शैली भावात्मक है।
  3. कर्त्तव्य-पथ में रूपक अलंकार है।
  4. तुकान्त शब्दावली है।
  5. वीर रस का प्रवाह.है।

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1. पद्यांश पर आधारित काव्य-सौन्दर्य सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i) उपर्युक्त पयांश के काव्य-सौन्दर्य को लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पयांश के भाव-सौन्दर्य का उल्लेख कीजिए।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश की भाषा-शैली भावानुसार है। वीर रस के संचार से तुकान्त शब्दावली को पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार (चाहे-चाहे) और रूपक अलंकार (कर्त्तव्य-पथ) से चमकाने का प्रयास मन को छू लेता है।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश का भाव-विधान गतिशील भावों से पुष्ट है। कुछ कर गुजरने के लिए स्वाभिमानपूर्वक किसी की परवाह न करने की भाव-योजना सचमुच में अद्भुत है।

2. पद्यांश पर आधारित विषय-वस्त से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर

प्रश्न
(i) उपर्युक्त पयांश का मुख्य भाव क्या है?
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में कवि की कौन-सी विशेषता प्रकट हुई है? ।
उत्तर
(i) उपर्युक्त पद्यांश का मुख्य भाव है-कठिन और विपरीत परिस्थिति में भी लक्ष्य-पथ पद दृढ़तापूर्वक बढ़ते जाना।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में कवि की दृढ़ता और आत्मनिर्भरता की विशेषता प्रकट

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