MP Board Class 6th Special Hindi निबन्ध लेखन

MP Board Class 6th Special Hindi निबन्ध लेखन

विद्यार्थी जीवन

मनुष्य का जीवन चार आश्रमों में बाँटा गया है-पहला ब्रह्मचर्य आश्रम, दूसरा गृहस्थ आश्रम, तीसरा वानप्रस्थ आश्रम और चौथा संन्यास आश्रम। मनुष्य का जो पहला ब्रह्मचर्य आश्रम है, वही उसका विद्यार्थी जीवन है।

मनुष्य के जीवन में उसके विद्यार्थी जीवन का बहुत महत्व है। यही वह समय है जब मनुष्य के पूरे जीवन की रूपरेखा तैयार होती है। इस समय बालक विद्यालय में गुरु के पास शिक्षा ग्रहण करता है। शिक्षा के साथ ही साथ वह अनुशासन, शिष्टाचार और अभिवादन के तौर-तरीके सीखता है। जो कुछ वह विद्यालय में सीखता है, उसी से उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है।

विद्यार्थियों को सदैव प्रातः जल्दी उठना चाहिए। समय पर तैयार होकर विद्यालय पहुँचना चाहिए। उसे अपने माता-पिता, शिक्षक और बड़ों की आज्ञा का सदैव पालन करना चाहिए तथा सदा उनका सम्मान करना चाहिए। उसे नित्य प्रातः दाँत साफ करना, स्नान करना और स्वच्छ कपड़े पहनना चाहिए। शरीर की स्वच्छता के साथ-साथ उसे अपना मन भी साफ-सुथरा और पवित्र रखना चाहिए। छल, कपट, लालच एवं झूठ बोलना ये मन की गन्दगी हैं इनसे दूर रहकर ही मन को साफ-सुथरा रखा जा सकता है।

इस प्रकार विद्यार्थी जीवन मनुष्य के निर्माण का काल है। उसे अपना अमूल्य समय व्यर्थ में बरबाद नहीं करना चाहिए। उसे एक अच्छा विद्यार्थी तथा एक आदर्श नागरिक बनने का प्रयत्न करना चाहिए।

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पुस्तकालय

‘पुस्तकालय’ को ‘पुस्तकघर’ भी कहा जा सकता है। पुस. तकालय शब्द दो शब्दों से मिलकर बना है-पुस्तक + आलय अर्थात् पुस्तक का घर। पुस्तकालय पुस्तकों का घर या वह स्थान है जहाँ अनेक प्रकार की पुस्तकें संग्रह करके रखी जाती हैं और जिसका उपयोग लोग विभिन्न प्रकार के ज्ञानार्जन तथा मनोरंजन के लिए करते हैं।

पुस्तकालय कई प्रकार के होते हैं। पुस्तकालय विश्वविद्यालय, महाविद्यालय एवं विद्यालयों में होते हैं उनका उपयोग शिक्षक तथा छात्र अपनी ज्ञान वृद्धि हेतु करते हैं। कुछ पुस्तकालय अपने निजी होते हैं। इनका उपयोग लोग स्वयं अपने तथा अपने मित्रों आदि के लिये करते हैं। कुछ सार्वजनिक पुस्तकालय होते हैं, जो नगरों अथवा महानगरों में स्थान-स्थान पर बने होते हैं। इनका उपयोग कोई भी मनुष्य सदस्यता शुल्क जमा करके कर सकता है।

ज्ञान-वृद्धि करने हेतु पुस्तकालय का अत्यधिक महत्त्व है। यहाँ हमें विविध प्रकार की पुस्तकें पढ़ने को मिलती हैं। जिसको जिस प्रकार की पुस्तक चाहिए वह स्वरुचि के अनुसार उनका चयन कर लेता है। पुस्तकालय से निर्धन वर्ग को विशेष लाभ होता है। निर्धन धन खर्च कर पुस्तकों को खरीद नहीं सकता, अत: वह अपनी ज्ञान पिपासा यहाँ बैठकर पुस्तकें पढ़कर शान्त कर लेता है। इस तरह निर्धन वर्ग के लिये पुस्तकालय अत्यन्त लाभकारी है।

पुस्तकों के अध्ययन मनन से उसका मानसिक और नैतिक उत्थान होता है। उसकी सोच विशाल होती है। इस प्रकार इनसे अशिक्षा और निरक्षरता और अज्ञान जैसे बड़े सामाजिक अभिशाप से मुक्ति दिलाकर मनुष्य मात्र का कल्याण होता है। पुस्तकालय मनुष्य के लिए वरदान के समान है। यह सरस्वती का अक्षय कोष है जो हमारे लिये खुला रहता है।

पुस्तकालयों के द्वारा हम किसी देश की उन्नति, आध्यात्मिक तथा नैतिक विकास के विषय में जान सकते हैं। हमारे देश में सार्वजनिक पुस्तकालयों हेतु शासन-प्रशासन अधिक गम्भीर नहीं है। देश में अच्छे पुस्तकालयों की संख्या बढ़नी चाहिए और वे सभी को पढ़ने के लिये सुलभ होने चाहिए।

मेरा प्रिय नेता या महापुरुष म
(महात्मा गाँधी)

गाँधीजी युग पुरुष थे। भारत जब विदेशियों की गुलामी में सिसक-सिसक कर दम तोड़ रहा था, तब इस महापुरुष ने भारत की धरती पर अवतार लेकर भारतीयों को जीवन की एक नई आशा -किरण दिखलाई थी। उन्होंने सत्य और अहिंसा के रास्ते पर चलकर अपने देश को स्वतन्त्र कराया था।

गाँधीजी का पूरा नाम मोहनदास करमचन्द गाँधी था। उनका जन्म 2 अक्टूबर, 1869 ई. में काठियावाड़ जिले के पोरबन्दर नामक स्थान पर हुआ था। गाँधीजी की माता का नाम पुतली बाई था। वे बहुत ही धार्मिक विचारों की महिला थीं। गाँधीजी के पिता राजकोट में दीवान के पद पर कार्य करते थे। गाँधीजी का विवाह बचपन में ही कस्तूरबा गाँधी से हो गया था। कस्तूरबा गाँधी अत्यन्त सहज और सरल जीवन गुजारती थीं। गाँधीजी ने अपने बचपन की पढ़ाई भारत में पूरी करने के बाद उच्च शिक्षा लन्दन से प्राप्त की। गाँधीजी के हृदय में देश प्रेम और देश सेवा की भावना कूट-कूट कर भरी हुई थी। वे शान्तिपूर्ण तरीके से भारत को अंग्रेजों के चंगुल से मुक्त कराना चाहते थे। उन्होंने स्वयं को देश-सेवा तथा देश को स्वतन्त्र कराने के लिए समर्पित कर दिया।

अंग्रेजों के विरुद्ध उन्होंने असहयोग आन्दोलन छेड़ा। उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा। उन्होंने डाँडी यात्रा निकाली और नमक-कानून को तोड़ने के लिए आन्दोलन चलाया। गाँधीजी ने देश के सभी नागरिकों को सदैव एकसमान समझा और सबके साथ मिलकर उन्होंने स्वतन्त्रता प्राप्ति के लक्ष्य को पूरा किया।

एक सभा में प्रार्थना करते समय 30 जनवरी, 1948 ई. को नाथूराम गोडसे नामक व्यक्ति द्वारा गोली मार दिये जाने से उन्होंने अपनी सांसारिक यात्रा को विराम दिया और परलोक सिधार गये।

आज गाँधीजी अपने भौतिक शरीर से भले ही हमारे बीच नहीं हैं किन्तु उनका नाम सदैव अमर रहेगा। उनके महान् त्याग और संकल्प को भुलाया नहीं जा सकता। विश्व उन्हें एक युग पुरुष के रूप में युग-युग तक याद करता रहेगा।

विद्यालय का वार्षिकोत्सव

उत्सव मनुष्य के नीरस जीवन को सरस बनाते हैं। यही कारण है कि हम वर्ष भर में अनेक उत्सव मनाते हैं। विद्यालय का वार्षिकोत्सव भी प्रत्येक वर्ष के अन्त में परीक्षाओं से पूर्व आयोजित किया जाता है।

हमारे विद्यालय का वार्षिकोत्सव इस साल हमारी वार्षिक परीक्षाएँ सम्पन्न होवे के उपरान्त हुआ। विद्यालय को साफ-सुथरा करके खूब सजाया और सँवारा गया। पूरे विद्यालय को लाल-हरी झण्डियों से सजा दिया गया। हमारे विद्यालय का मंच काफी बड़ा है उस पर हमारे कार्यक्रम आदि होने थे। हम सबने नृत्य, गायन, नाटक, व्यंग्य, कविताओं आदि की खूब अच्छी तरह तैयारी कर ली थी। दो दिन पहले विद्यालय में उसका पूर्वाभ्यास भी करा दिया गया था। . अगले दिन अपरान्ह 2 बजे से कार्यक्रम प्रारम्भ होना था। हमारे नगर प्रमुख मुख्य अतिथि थे। अभिभावक कुर्सियों पर आकर बैठ चुके थे। हम सब कार्यक्रम के लिये तैयार थे। सही 2 बजे मुख्य अतिथि मंच पर आये। उन्होंने दीप प्रज्वलित करके कार्यक्रम का उद्घाटन किया। तदुपरान्त सरस्वती वन्दना के बाद हमने एक-एक कर अपने कार्यक्रम प्रस्तुत किये। प्रत्येक कार्यक्रम की समाप्ति पर हॉल तालियों से गूंज उठता था। हमारे कार्यक्रम को अभिभावकों तथा अन्य अतिथियों ने खूब सराहा । उन्होंने हमारे प्रधानाचार्य व अध्यापक वर्ग को बधाई दी। अन्त में प्राचार्य महोदय ने विद्यालय की वार्षिक रिपोर्ट पढ़ी।

अन्त में पुरस्कार वितरण हुआ। राष्ट्रीय-गान के साथ कार्यक्रम का समापन हुआ। अगले दिन से हमारी ग्रीष्मकालीन छुट्टियाँ थीं। हम आनन्द से भरे हुए अपने-अपने घर लौटे।

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कोई त्यौहार (होली)

हिन्दुओं द्वारा अनेक त्यौहार मनाए जाते हैं। ‘होली’ का त्यौहार उनमें महत्वपूर्ण है। यह त्यौहार मार्च महीने में मनाया जाता है। यह त्यौहार हिन्दी महीना फाल्गुन की पूर्णमासी को मनाया जाता है।

यह कहा जाता है कि प्रहलाद ईश्वर का बड़ा भक्त था। उसके पिता हिरण्यकश्यप थे। वे घमण्डी और स्वयं को ही ईश्वर मानते थे। वह चाहता था कि प्रहलाद उसी की पूजा किया करे। जब प्रहलाद सहमत नहीं हुए, तो हिरण्यकश्यप ने उसे मारना चाहा, लेकिन प्रहलाद किसी भी तरह नहीं मर सका। अन्त में उसने अपनी बहन ‘होलिका’ की सहायता ली। वह अग्नि में नहीं जल सकती थी। वह प्रहलाद को अपनी गोद में लेकर अग्नि में बैठ गई। वह जल गई। लेकिन प्रहलाद सुरक्षित बाहर निकल आया। इसी घटना की स्मृति में ‘होली’ मनाई जाती है।

हर मुहल्ले या गाँव में लड़के बहुत-सी लकड़ी और गोबर के कंडे एकत्र करते हैं और उसमें आग लगा देते हैं। लोग इसकी परिक्रमा करते हैं और होली के गीत गाते हैं। दूसरे दिन होली का वास्तविक उत्सव शुरू होता है। प्रत्येक व्यक्ति अपने पुराने कपड़े पहन लेता है। लोग अपने मित्रों और रिश्तेदारों के घर जाते हैं। वे आपस में गले मिलते हैं और चेहरे पर गुलाल लगाते हैं। रंगीन पानी उन पर फेंकते हैं। उन्हें मिठाई देते हैं और पान भी खिलाते हैं। वे फिर होली के गीत भी गाते हैं। यह सब दोपहर तक होता रहता है।

वास्तव में यह त्यौहार बसन्त ऋतु का उत्सव है। किसानों की फसल पक जाती है, उसकी खुशी में वे इस त्यौहार को मनाते हैं।

इस दिन लोग अपनी पुरानी दुश्मनी भूल जाते हैं और फिर से मित्र बन जाते हैं। कुछ लोग गन्दा पानी और कीचड़ फेंकते हैं। कुछ लोग इस दिन शराब पीते हैं।

होली का त्यौहार बहुत अच्छा होता है यदि इसे ठीक तरह से मनाया जाये।

मेरा प्रिय खेल (क्रिकेट)

हमारे जीवन में पढ़ाई के साथ-साथ खेल भी अति आवश्यक हैं। समय पर पढ़ना और समय पर खेलना दोनों ही हमारे लिये लाभदायक हैं। शिक्षा हमारा मानसिक विकास करती है तो खेल शारीरिक।

मैं अपनी पढ़ाई समाप्त करने के बाद नित्य शाम को क्रिकेट खेलता हूँ। क्रिकेट मेरा प्रिय खेल है। इससे हमारी माँस-पेशियाँ मजबूत रहती हैं। मैं क्रिकेट अपने विद्यालय के मैदान में खेलता हूँ।

क्रिकेट के खेल में दो पक्ष होते हैं। दोनों टीमों में 11-11 सदस्य होते हैं। इस खेल में 22 गज के अन्तर से तीन-तीन डण्डे गाड़े जाते हैं। इन्हें विकेट कहा जाता है। चार फुट की दूरी से दो रेखाएँ खींची जाती हैं जिसके इधर-उधर दोनों टीम के सदस्य होते हैं। एक टीम फील्डिंग करती है और दूसरी बैटिंग। इस प्रकार खेल प्रारम्भ हो जाता है। दो खिलाड़ी बैट लेकर आते हैं। एक पक्ष का सदस्य गेंद फेंकता है। दूसरे पक्ष का खिलाड़ी उसे रोकने की कोशिश करता है। रन संख्या शॉटकर मार कर बनाई जाती है।

खेल में एक टीम जीतती है, दूसरी हारती है। खेल की हार-जीत की भावना एक-दूसरे को प्रोत्साहित करती है। इसलिए खेल सदैव खेल की भावना से ही खेला जाना चाहिए।

आधुनिक युग में क्रिकेट एक अत्यन्त महत्वपूर्ण खेल बन चुका है। हमारे देश के अनेक खिलाड़ियों, जैसे-सुनील गावस्कर, कपिलदेव, अजहरुद्दीन, सचिन तेंदुलकर आदि ने हमारे देश का नाम विश्व में विख्यात किया है। खेल लोगों के मानसिक और शारीरिक विकास का द्योतक है।

विज्ञान वरदान या अभिशाप

आधुनिक युग विज्ञान का युग है। नित्य नये आविष्कार हो रहे हैं, नये-नये उपकरण बनाये जा रहे हैं। यह सब विज्ञान के द्वारा ही हो रहा है। विज्ञान का अर्थ है विशेष ज्ञान या सूक्ष्म ज्ञान। वह ज्ञान जो किसी वस्तु की गहराई तक जाता है और उसकी बारीक से बारीक बात की जानकारी कराता है, विज्ञान कहलाता है। विज्ञान केवल जानकारी ही नहीं देता है अपितु नित्य नये-नये आविष्कार भी करता है। नये-नये प्रयोग करता है और फिर उन्हें मनुष्य की सुख-सुविधा के लिए प्रस्तुत करता है। विज्ञान मनुष्य के लिये चमत्कार बनकर आया है।

रेल, बस, हवाई जहाज, रेडियो, ट्रांजिस्टर तो आज पुरानी बातें हो गई हैं। यद्यपि ये हैं सब विज्ञान के ही. आविष्कार। किन्तु आज के समय पर विज्ञान अपनी चरम उन्नति पर है। कम्प्यूटर, दूरदर्शन, दूरभाष आदि सैकड़ों हजारों मील दूर की जानकारी पल भर में दे देते हैं। इन्टरनेट विश्व के बड़े से बड़े बाजार, पुस्तकालय आदि का घर बैठे दर्शन करा देता है। विज्ञान ने इतनी बड़ी दुनिया को एक दायरे में समेट दिया है। इसलिये सात समुन्दर पार की घटनाएँ अनजानी नहीं रह गई हैं। रॉकेट आदि उपग्रहों ने चन्द्रमा और मंगल आदि ग्रहों को भी मनुष्य की सीमा में पहुँचा दिया है। बड़ी-बड़ी समस्याएँ, आवश्यकताएँ, व्यापार, नौकरी आदि सब कम्प्यूटर, इन्टरनेट की सहायता से पल भर में ही हल हो जाती हैं।

इस प्रकार जहाँ विज्ञान ने हमें बिजली, मशीनें, वाहन, आदि अनेक प्रकार के सुख साधन दिये हैं वहीं उसने अणुबम, मिसाइलें आदि बनाकर देश को शत्रुओं से सुरक्षित कर दिया है।

विज्ञान का सबसे बड़ा दुष्परिणाम आज परमाणु बम के रूप में निर्मित हो चुका है। द्वितीय महायुद्ध में यह परमाणु बम जापान के हिरोशिमा और नागासाकी शहरों को पूरा का पूरा निगल चुका है। भविष्य में भी यदि इसका उपयोग किया गया तो यह सम्पूर्ण मानवता के लिये अत्यन्त खतरनाक सिद्ध होगा।

इस प्रकार विज्ञान ने हमें बहुत सुख-सुविधा प्रदान की है। हमारा प्रयास होना चाहिए कि विज्ञान का उपयोग मानवता के कल्याण के लिये ही हो, विनाश के लिये नहीं। तभी विज्ञान हमारे लिये सदा सर्वदा खुशी के फूल खिलाता रहेगा।

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गणतन्त्र दिवस (26 जनवरी)

गणतन्त्र दिवस का उत्सव प्रति वर्ष 26 जनवरी को मनाया जाता है। यह उत्सव 26 जनवरी को इसलिए मनाया जाता है कि इस दिन भारत ने अपना नया संविधान लागू किया और देश को 26 जनवरी, 1950 ई. को गणतन्त्र घोषित किया। इस वर्ष इस उत्सव को बड़े जोश और खुशी से अपने विद्यालय में मनाया। विद्यालय के सभी छात्र-छात्राएँ विद्यालय के प्रार्थना स्थल पर प्रातः साढ़े आठ बजे एकत्र हो गए। सबसे पहले विद्यालय की प्रार्थना हुई। इसके बाद सभी छात्र/छात्राएँ सावधान मुद्रा में खड़े हो गए। विद्यालय के प्रधान अध्यापक महोदय ने राष्ट्रीय ध्वज फहराया। एन. सी. सी. के कैडेट्स ने झण्डे को सलामी दी। राष्ट्रगान हुआ। प्रधान अध्यापक महोदय ने शिक्षा विभाग से प्राप्त पत्र को पढ़कर सुनाया। पत्र के माध्यम से हमें बताया कि हम कठिन परिश्रम करें, समय पर कार्य करें, जिससे हमारे देश की प्रगति हो सके। इसके बाद हम मैदान में चले गए।

क्रीड़ा स्थल पर बॉलीबाल का मैच हुआ। मैच रुचिकर था। दोनों ही टीमें बहुत अच्छी तरह खेली। इसके बाद सभी छात्र हॉल में गए। वहाँ पर प्रधान अध्यापक के आदेश पर कुछ छात्रों ने देशभक्ति के गीत प्रस्तुत किये। अच्छा प्रदर्शन करने वाले छात्रों को इनाम की घोषणा हुई। बाद में प्रधान अध्यापक महोदय ने अपना संक्षिप्त भाषण दिया जिसमें उन्होंने गणतन्त्र का अर्थ बताया।

बॉलीबाल की दोनों टीमों को तथा गीत प्रस्तुत करने में अच्छे विद्यार्थियों को प्रधान अध्यापक ने इनाम बाँटे और अन्त में सभी छात्रों को अपने घर जाते समय मिष्ठान वितरित किया गया।

कम्प्यूटर

गत वर्षों से तकनीक के क्षेत्र में लगातार नये कीर्तिमान स्थापित हो रहे हैं। इस सन्दर्भ में कम्प्यूटर का योगदान सराहनीय है। कम्प्यूटर एक ऐसी वैज्ञानिक युक्ति है, जिसकी मदद से कई दुष्कर एवं जटिल कार्य बड़ी सरलता एवं अत्यन्त कम समय में सम्पन्न किये जा सकते हैं।

कम्प्यूटर के कई प्रकार होते हैं, जैसे-आधुनिक कम्प्यूटर, मिनी सुपर कम्प्यूटर एवं सुपर कम्प्यूटर। ये बहुत ही थोड़े समय में बड़ी संख्या में कठिन कार्यों को करने में सक्षम हैं।

आज कम्प्यूटर का उपयोग जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में बहुतायत में हो रहा है। सुरक्षा विषयक क्षेत्रों के अलावा उद्योग, व्यापार, वितरण एवं परिवहन, लगभग सभी क्षेत्रों में इनका व्यापक पैमाने पर प्रयोग किया जाता है। यातायात विशेष रूप से वायु यातायात, रेल यातायात में कम्प्यूटर का सफल प्रयोग हो रहा है। उत्पादन तथा वितरण में भी कम्प्यूटर का योगदान प्रशंसनीय है।

अच्छी किस्म के तथा बड़े आकार के कम्प्यूटर आयात करने पड़ते हैं जिसमें भारी व्यय करना पड़ता है।

अब यह बात सर्वदा सत्य है कि बिना कम्प्यूटर के आज जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। भारत जैसे विकासशील देश के लिए तो इसका प्रयोग और भी आवश्यक है। निश्चित रूप से इसका व्यापक उपयोग भारत की उन्नति में सहायक सिद्ध होगा।

ऋतुराज बसन्त

एक तरफ बरसात जहाँ ऋतुओं की रानी है तो दूसरी ओर बसन्त ऋतुओं का राजा है। इस ऋतु में वृक्ष बड़ी तेजी से अपने पुराने पत्तों को त्यागकर नवीन परिधान धारण करने की तैयारी – में जुट जाते हैं। बसन्त ऋतु आने पर कोयल, भ्रमर एवं तितली अपनी महफिल लगाते हैं।

वृक्ष सिर हिला-हिलाकर बसन्त का अभिनन्दन करते हैं। कोयल पंचम स्वर में गाने लगती है। पक्षी चहचहाने लगते हैं। जानवर उल्लसित होकर इधर-उधर घूमने लगते हैं। इस ऋतु में प्रकृति अपने अनुपम सौन्दर्य से सबका मन मोह लेती है। मानव का मन-मयूर प्रकृति की इस मनमोहक छटा को देखकर प्रफुल्लित हो उठता है। कुल मिलाकर बसन्त ऋतु में सम्पूर्ण सृष्टि अत्यन्त सम्मोहक हो जाती है।

ऋतुराज बसन्त एक रंगीन ऋतु है। इसकी सुन्दरता ने देवताओं तक को प्रभावित किया है। हमारे देश के अनेक कवियों ने इसकी अनोखी सुन्दरता का वर्णन अपने काव्य में किया है।

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मेरा प्रिय कवि (तुलसीदास)

रामचरित मानस की महिमा से मानव के हृदय को पवित्र करने वाले तुलसीदासजी का जन्म संवत् 1554 ई. में बाँदा जिले के राजापुर नामक ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम आत्माराम तथा माता का नाम हुलसी था। बचपन में ही इनकी माँ की मृत्यु हो गई। स्वामी नरहरिदास ने इनका लालन-पालन किया। उन्होंने तुलसीदास को रामकथा अमृत का पान कराया। इन्होंने काशी में निवास करके शास्त्रों का पठन-पाठन किया। दीनबन्धु पाठक की बेटी रत्नावली से तुलसी का विवाह हुआ। उसी की प्रताड़ना से ये एक महान् सन्त बन गये। सम्वत् 1680 में तुलसी मृत्यु की गोद में समा गये।

तुलसीदास जी ने रामचरितमानस जैसे महाग्रन्थ की रचना की। इसके अतिरिक्त इन्होंने गीतावली, दोहावली, कवितावली, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, हनुमान वाहक, कृष्ण-गीतावली इत्यादि प्रसिद्ध रचनाओं का भी सृजन किया।

तुलसी एक समाज सुधारक एवं उपदेशक के रूप में ही विख्यात नहीं हैं, अपितु एक प्रसिद्ध कवि के रूप में भी उनका स्थान काफी ऊँचा है। वास्तव में वे एक महान् कवि सन्त तथा लोकनायक थे।

मेला

हमारे शहर ग्वालियर में प्रतिवर्ष उद्योग सम्बन्धी मेला लगता है, जिसमें पूरे देश से लोग आते हैं। मैं पिछले सोमवार को मेला देखने गया। मेला स्थल बहुत ही आकर्षक था। सभी जगह लोगों के आने-जाने से भीड़ उमड़ रही थी। सभी के चेहरों पर खुशी थी, उल्लास था। उनके साथ बच्चे भी थे। मेरे साथ मेरे माता-पिता और बड़े भाई भी थे। मेले में प्रवेश करने से पहले मेरे माता-पिता ने वहाँ स्थित शिव मन्दिर में भगवान शंकर के दर्शन किए और हम लोगों को भी दर्शन कराये और प्रसाद प्राप्त किया। वहाँ मैंने देखा लोग कारों, स्कूटरों से चले आ रहे थे। हम ही थे जो पैदल चल रहे थे।

स्थानीय मेलों का बड़ा महत्व है। इन मेलों में तरह-तरह के सामान बेचने के लिए लाए जाते हैं। साथ ही उद्योगों के विषय में भी जानकारी मिलती है। खादी वस्त्र उद्योग, कालीन और दरी उद्योगों का उत्पादन मुझे अच्छा लगा। वहाँ कारों, टैक्ट्ररों आदि की बिक्री के केन्द्र भी थे। वहाँ पर खरीदने के लिए रजिस्ट्रेशन किए जा रहे थे। कारों और कृषि यन्त्रों की कीमतों में भारी छूट थी। बिक्री विभाग ने भी कर में छूट देने के लिए वहाँ घोषणा की हुई थी।

इस मेले में खिलौने, अच्छे साहित्य की पुस्तकों के स्टॉल भी लगे थे। पुस्तकें भारत सरकार से अनुमोदित प्रकाशक ही बेच रहे थे। इनके अलावा खाने-पीने की चीजें भी बेची जा रही थीं। पुलिस और स्वास्थ्य सेवा की एजेन्सियाँ अपने काम में मुस्तेद थीं।

अन्त में मेरा सुझाव है कि इन मेलों में विज्ञान सम्बन्धी जानकारियाँ भी दी जाएँ जिससे विद्यार्थियों में विज्ञान के प्रति रुचि पैदा हो। इन मेलों से अपनी राष्ट्रीय एकता, सामाजिकता और सांस्कृतिक एकीकरण की बात को बल मिलता है। इन मेलों के द्वारा ‘आओ भारत को जानें ऐसे कार्यक्रम तैयार कराए जाएँ और युवकों तथा युवतियों को इन कार्यक्रमों में भाग लेने को प्रोत्साहित किया जाये।

पर्यावरण रक्षा

पर्यावरण की सुरक्षा करना अब सम्पूर्ण विश्व के लोगों के लिए एक गम्भीर समस्या है। इसका कारण यह है कि पर्यावरणीय प्रदूषण मानव समाज के जीवन और मृत्यु से जुड़ी एक महत्वपूर्ण चुनौती है। इसलिए पर्यावरण की सुरक्षा के लिए यदि उपाय नहीं किए गए, तो कुछ वर्षों में ही वातावरण इतना प्रदूषित हो जाएगा कि मानव जाति उसके प्रभाव से सदैव के लिए नष्ट हो जाएगी। यह सब लोगों की भौतिकवादी सोच के कारण ही हो रहा है। प्राकृतिक सम्पदाओं का अविवेकपूर्ण दोहन ही इस प्रदूषण की समस्या का कारण है। प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से-जल, वायु, भूमि के भौतिक, रासायनिक या जैविक गुणों में होने वाला कोई भी अवांछनीय परिवर्तन प्रदूषण है।

बढ़ती जनसंख्या, औद्योगिक विकास, विषैला धुआँ, कारखानों का प्रदूषित अपशिष्ट आदि हमारे पर्यावरण को प्रदूषित कर रहा है।

प्रदूषण के मुख्य रूप हैं-

  1. वायु प्रदूषण,
  2. जल प्रदूषण,
  3. रासायनिक प्रदूषण एवं
  4. ध्वनि प्रदूषण।

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वायु प्रदूषण तो कल-कारखानों की चिमनियों का धुआँ, वाहनों से निकलता धुआँ, ईंधनों से निकलती गैसें, परमाणु बमों के विस्फोटों और परीक्षणों से फैलती रेडियोएक्टिवता आदि से फैल रहा है।

जल प्रदूषण भी उद्योगों के कचरे से फैल रहा है। प्रदूषित जल मनुष्यों, पशुओं और पक्षियों, वनस्पतियों के लिए हानिकारक है।

रासायनिक प्रदूषण खाद, कीटनाशक दवाओं का प्रयोग भूमि की उपजाऊ शक्ति को कम कर रहा है। ध्वनि प्रदूषण कल-कारखानों की मशीनों की तेज ध्वनि, वाहनों की ध्वनि स्नायु मण्डल के सन्तुलन को बिगाड़ देती है, जिससे तनाव रोग, अनिद्रा रोग पैदा हो जाते हैं।

वायु और जल, प्रदूषण को रोकने के लिए फिल्टर आदि ऐसे उपकरण लगाए जाएँ जिनसे वायु और जल को गंदा होने से बचाया जा सके। पर्यावरण रक्षा के लिए वनों की वृद्धि, वृक्षों का लगाया जाना सर्वश्रेष्ठ उपाय है। वृक्ष ही हमें प्रदूषण मुक्त पर्यावरण दे सकते हैं।

अन्त में यह कहना ही महत्वपूर्ण होगा कि पर्यावरणीय सुरक्षा पर थोड़ी सावधानीपूर्वक ध्यान दे दिया जाए, तो मानव अस्तित्व के लिए बने संकट से बचा जा सकता है।

अनुशासन

दिन-रात का होना, ऋतु परिवर्तन होना, प्रकृति के प्रत्येक कार्य में स्वतन्त्रता के साथ अनुशासन का बने रहना, उसके महत्व को बताता है। अनुशासन में रहना पराधीनता नहीं है। अनुशासन निश्चित ही मनुष्य का आभूषण है। इसके बिना जीवन स्वच्छन्दता भरा होगा, सब काम बेतरतीब होंगे। अत: जीवन के विकास के लिए अनुशासन एक सुनियोजित व्यवस्था होती है।

व्यक्तिगत और सामाजिक जीवन में अनुशासन से ही व्यक्ति में आदर्शवादिता और चरित्र निर्माण के आधार निर्मित होते हैं। स्व-अनुशासन से सहयोग, कर्त्तव्यपरायणता एवं सु-नागरिकता के गुण विकसित होते हैं। विद्यार्थी के लिए उक्त सभी बातें बहुत आवश्यक हैं।

अनुशासन से व्यक्ति देश, समाज सभी विकास के पथ पर चल पड़ते हैं, तो निश्चित ही वह व्यक्ति, वह देश, वह समाज सभी का उपदेष्टा बन जाता है। एक आदर्श बनकर अन्य देशों, अन्य विद्यार्थियों, दूसरे समाजों के लिए पथ प्रदर्शक बनकर उन्हें उन्नति के मार्ग पर चलाने वाला गुरु बन जाता है। अनुशासन से धरती स्वर्ग बन जाती है।

अनुशासन से ही पशुत्व और मनुष्यत्व का भेद समझा जा सकता है। मानवता को जीवित रखना है, तो अनुशासित रहिए। अनुशासन ही देश, समाज एवं मानवता को विकास के चरम शिखर तक पहुँचाता है।

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