MP Board Class 6th Sanskrit Solutions Chapter 5 विद्या-महिमा

MP Board Class 6th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 5 विद्या-महिमा

MP Board Class 6th Sanskrit Chapter 5 अभ्यासः

Class 6 Sanskrit Chapter 5 Mp Board  प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत(एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) विद्या कि ददाति? (विद्या क्या देती है?)
उत्तर:
विनयम् (विनम्रता)

(ख) कः सर्वत्र पूज्यते? (किसकी सभी जगह पूजा की जाती है?)
उत्तर:
विद्वान् (विद्यावान्)

(ग) देवैः कः पूज्यते? (देवताओं के द्वारा किसी पूजा की जाती है?)
उत्तर:
विद्यावान् (विद्या से युक्त)

(घ) विदेशेषु विद्या किम् भवति? (विदेशों में विद्या क्या होती है?)
उत्तर:
धनम् (धन)।

विद्या रूपं कुरूपाणां का अर्थ In Hindi MP Board प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत(एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) कस्मात् पात्रतां याति? (किससे पात्रता (योग्यता) आती है?)
उत्तर:
विनयाद् पात्रतां याति। (विनय (नम्रता) से योग्यता आती है।)

(ख) परलोके धनं किम्? (परलोक में धन क्या है?)
उत्तर:
परलोके धनं धर्मः। (परलोक में धर्म ही धन है।)

(ग) स्वदेशे कः पूज्यते? (अपने देश में किसकी पूजा होती है?)
उत्तर:
स्वदेशे राजा पूज्यते। (अपने देश में राजा की पूजा होती है।)

(घ) केषां बलं विद्या? (किसका बल विद्या होती है?)
उत्तर:
निर्बलानां बलं विद्या। (बलहीनों का बल विद्या होती है।)

विद्या रूपं कुरूपाणां निर्धनानां धनं तथा In Hindi MP Board प्रश्न 3.
उचितं योजयत (उचित को जोडिए)
Class 6 Sanskrit Chapter 5 Mp Board
उत्तर:
(क) → 3
(ख) → 5
(ग) → 1
(घ) → 2
(ङ) → 4

Mp Board Class 6 Sanskrit Chapter 5 प्रश्न 4.
रिक्तस्थानानि पूरयत (रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए)
(क) पात्रत्वाद् …………. , आप्नोति ………….. धर्मः।
(ख) पुस्तकस्था तु या ………..।
(ग) स्वदेशे ……… पूज्यते। ……. सर्वत्र पूज्यते।
(घ) …………. सर्वस्य भूषणम्।
उत्तर:
(क) धनम्, धनाद्;
(ख) विद्या परहस्तगतं धनम्
(ग) राजा, विद्वान्;
(घ) विद्याः।

प्रश्न 5.
कोष्ठकात् चित्वा विलोमशब्दैः मेलयत (कोष्ठक से चुनकर विलोम शब्दों से मिलाओ)
(अ) (क) सुखम्
(ख) विदेशेषु
(ग) इहलो के
(घ) महाधनः
(ङ) सुन्दरः
(च) निर्बलः
(छ) विद्वान्
(ज) मित्रम्
(झ) कुलीनः
(ञ) सुशीलः।

(ब) (अकुलीनः, शत्रुः, निर्धनः, दुःखम्, कुरूपः, स्वदेशेषु, दुःशीलः, परलोके, सबलः, मूर्खः।)
उत्तर:
(क) सुखम् – दु:खम्
(ख) विदेशेषु – स्वदेशेषु
(ग) इहलोके – परलोके
(घ) महाधन: – निर्धनः
(ङ) सुन्दरः – कुरूंपः
(च) निर्बल: – सबलः
(छ) विद्वान् – मूर्खः
(ज) मित्रम् – शत्रुः
(झ) कुलीनः – अकुलीनः
(ञ) सुशील: – दुःशीलः।।

प्रश्न 6.
उदाहरणानुगुणं अन्वयपूर्ति कुरुत (उदाहरण के अनुसार अन्वय की पूर्ति करो)
(क) कुरूपाणां …………. विद्या, …………. धनं (विद्या) तथा। निर्बलानां बलं …………. अतः ………… साधनीया।
(ख) विदेशेषु ……… धनं, व्यसनेषु मतिः………। परलोके ………….. धनं, ………… सर्वत्र वै धनम्।
उत्तर:
अन्वय-
(क) कुरूपाणां रूपं विद्या, निर्धनानां धनं (विद्या) तथा। निर्बलानां बलं विद्या अतः प्रयत्नेन साधनीया।
(ख) विदेशेषु विद्या धनं, व्यसनेषु मतिः धनम्। परलोके धर्म: धनं, शीलंः सर्वत्र वै धनम्।

प्रश्न 7.
‘विद्या’ विषये संस्कृते पञ्च वाक्यानि लिखत। (‘विद्या’ विषय पर संस्कृत में पाँच वाक्यों लिखो।)
उत्तर:
‘विद्या’

  1. विद्याधनं सर्वधनं प्रधानमस्ति।
    विद्या धन सभी धनों में प्रधान होता है।
  2. विद्या एव मानवस्य भूषणमस्ति।
    विद्या ही मनुष्य का आभूषण है।
  3. विद्या तु सदा उपार्जनीया अस्ति।
    विद्या तो सदा ही प्राप्त करने योग्य होती है।
  4. विद्याविहीनः जनः पशुः भवति।
    विद्या से रहित मनुष्य पशु होता है।
  5. विद्या विनयम् ददाति।
    विद्या विनय देती है।

योग्यताविस्तारः
पाठस्थ श्लोकान् कण्ठस्थीकुरुत।
(पाठ में आये श्लोकों को कण्ठाग्र करो।)

‘विद्या’ इति शब्दमधिकृत्य अन्यश्लोकानाम् सङ्ग्रहणं शिक्षकस्य साहाय्येन कुरुत।
(‘विद्या’ शब्द पर आधारित अन्य श्लोकों का संग्रह शिक्षक की सहायता से करो।)
उत्तर:
(1) नक्षत्रभूषणो चन्द्रो, नारीणाम् भूषणं पतिः।
पृथिवीभूषणं राजा, विद्या सर्वस्य भूषणम्॥

(2) अपूर्वः कोऽपि कोशोऽयं विद्यते तव भारति।
व्ययतो वृद्धिमायाति क्षयमायाति संचयात्।।

(3) विद्या नाम नरस्य रूपमधिक,प्रच्छन्न गुप्तं धनम्।
विद्या भोगकरी यशः सुखकरी, विद्या गुरुणां गुरुः॥

विद्या-महिमा हिन्दी अनुवाद

(1) विद्या ददाति विनयं, विनयाद् याति पात्रताम्।
पात्रत्वाद् धनमाप्नोति, धनाद् धर्मः ततः सुखम्॥

अनुवाद :
विद्या नम्रता देती है। नम्रता से पात्रता (योग्यता) आती है। पात्रता से धन प्राप्त होता है। धन से धर्म और धर्म से सुख प्राप्त होता है।

(2) विदेशेषु धनं विद्या, व्यसनेषु धनं मति।
परलोके धनं धर्मः, शीलं सर्वत्र वै धनम्॥

अनुवाद :
विदेश में विद्या ही धन है। विकारों में बुद्धि ही धन है। परलोक में धर्म ही धन है और शील तो सभी स्थानों पर धन है।

(3) सुन्दरोऽपि सुशीलोऽपि कुलीनोऽपि महाधनः।
शोभते न बिना विद्या, विद्या सर्वस्य भूषणम्॥

अनुवाद :
बिना विद्या के मनुष्य शोभायमान नहीं लगता, चाहे वह सुन्दर, सुशील, अच्छे कुल का एवं बहुत धनवान भी हो। अतः विद्या सबका भूषण है।

(4) विद्या रूपं कुरूपाणाम्, निर्धनानां धनं तथा।
निर्बलानां बलं विद्या, साधनीया प्रयत्नतः॥

अनुवाद :
कुरूपों का रूप विद्या होती है तथा निर्धनों का धन (विद्या) होती है। बलहीनों का बल विद्या ही होती है जो प्रयत्नपूर्वक प्राप्त की जा सकती है।

(5) विद्वत्वं च नृपत्वं च, नैव तुल्यं कदाचन।
स्वदेशे पूज्यते राजा, विद्वान् सर्वत्र पूज्यते॥

अनुवाद :
विद्वान और राजा की कभी तुलना नहीं की जा सकती है। (क्योंकि) राजा की पूजा अपने देश में होती है (किन्तु) विद्वान सर्वत्र पूजा जाता है।

(6) अलसस्य कुतो विद्या, अविद्यस्य कुतो धनम्।
अधनस्य कुतो मित्रम्, अमित्रस्य कुतो सुखम्॥

अनुवाद :
आलसी को विद्या कहाँ? विद्याहीन के पास धन कहाँ? धनहीन के मित्र कहाँ और बिना मित्र वाले पुरुष को सुख कहाँ?

(7) पुस्तकस्था तु या विद्या, परहस्तगतम् धनम्।
कार्यकाले समुत्पन्ने न सा विद्या न तद् धनम्॥

अनुवाद :
पुस्तक में स्थित विद्या (अर्थात् बिना याद की हुई विद्या) और दूसरे के हाथ में गया हुआ धन। कार्य पड़ने पर (आवश्यकता होने पर) न तो वह विद्या काम आती है और न ही वह धन।

(8) किं कुलेन विशालेन, विद्याहीनस्य देहिनः।
अकुलीनोऽपि विद्यावान, देवैरपि सः पूज्यते॥

अनुवाद :
विशाल कुल में उत्पन्न होने से क्या, यदि मनुष्य विद्याहीन है (और) निम्न कुल में उत्पन्न होने पर भी जो विद्यावान है, देवता भी उसकी पूजा करते हैं।

विद्या-महिमा शब्दार्थाः

पुस्तकस्था = पुस्तक में लिखी हुई। परहस्तगतं = दूसरे के हाथ में गया हुआ। अकुलीनोऽपि = अच्छे कुल में जन्म लेने पर भी। देहिनः = शरीर में। ददाति = देती है। साधनीया = अर्जित करनी चाहिए। कदाचन = कभी भी। विद्याहीनस्य = विद्या से रहित। या = जो। पात्रत्वात् = योग्यता से। नैव = नहीं। कुरूपाणाम् = कुरूपों का। प्रयत्नतः = प्रयत्नपूर्वक। अविद्यस्य = विद्या रहित का। अमित्रस्य = मित्र रहित का। व्यसनेषु = विकारों में। शीलं = चरित्र। निर्बलानां = शक्तिहीनों का। महाधनः = बहुत धनी। अलसस्य = आलसी का। कुतो = कैसे। शोभते = सुशोभित होता है। विद्वत्वं = विद्वान। नृपत्व = राजा।

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