MP Board Class 6th Hindi Sugam Bharti Solutions Chapter 18 शंकराचार्य मध्यप्रदेश में

MP Board Class 6th Hindi Sugam Bharti Solutions Chapter 18 शंकराचार्य मध्यप्रदेश में

MP Board Class 6th Hindi Sugam Bharti Chapter 18 प्रश्न-अभ्यास

वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1. (क) सही जोड़ी बनाइए
1. उज्जयिनी – (क) कुमारिल भट्ट
2. काशी – (ख) नर्मदा का उद्गम
3. अमरकंटक – (ग) शंकराचार्य का जन्मस्थल
4. कालड़ी – (घ) कापालिकों का केन्द्र
उत्तर
1. (घ), 2. (क), 3. (ख), 4. (ग)

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प्रश्न (ख)
दिए गए शब्दों में से उपयुक्त शब्द चुन कर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
1. शंकराचार्य की शिक्षा-दीक्षा…….में हुई थी। (महिष्मती/ओंकारेश्वर)
2. गुरु की खोज में वह……..चल पड़े। (उत्तर से दक्षिण की ओर/दक्षिण से उत्तर की ओर)
3. उन्होंने शंकर को…….से शस्त्रार्थ करने की सलाह दी। (मंडन मिश्र/कापालिक)
4. मध्यप्रदेश को यह गौरव प्राप्त है कि उसके पुत्र को…….भारतीय एकता का विस्तार करने का अवसर प्राप्त हुआ। (दक्षिण में/उत्तर में)
उत्तर
1. ओंकारेश्वर
2. दक्षिण से उत्तर की ओर
3. मंडन मिश्र
4. दक्षिण में

MP Board Class 6th Hindi Sugam Bharti Chapter 18 अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 2.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक-एक वाक्य में दीजिए

(क) सान्दीपनी आश्रम क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर
सान्दीपनी आश्रम में ही कृष्ण-सुदामा ने शिक्षा प्राप्त की थी, इसलिए यह प्रसिद्ध है।

(ख) नर्मदा का उद्गम स्थल कहाँ है?
उत्तर
अमरकंटक नर्मदा का उद्गम स्थल है।

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(ग) कुमारिल भट्ट की प्रसिद्धि का क्या कारण था?
उत्तर
कुमारिल भट्ट मीमांसा दर्शन के प्रकाण्ड विद्वान थे।

(घ) शंकराचार्य का मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ कहाँ हुआ था?
उत्तर
शंकरा वार्य का मंडन मिश्र से शास्त्रार्थ माहिष्मती में हुआ था।

(ङ) कापालिकों का मुख्य केंद्र कहाँ था?
उत्तर
कापालिकों का मुख्य केंद्र उज्जयिनी था।

MP Board Class 6th Hindi Sugam Bharti Chapter 18 लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 3.
निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर तीन-से-पाँच वाक्यों में दीजिए

(क) शंकराचार्य ने किन चार पीठों की स्थापना की?
उत्तर
शंकराचार्य एक महान संगठन-कर्ता थे। उन्होंने उत्तर में बद्रीनाथ धाम, दक्षिण में रामेश्वरम् पूर्व में जगन्नाथपुरी और पश्चिम में द्वारिका पीठ की स्थापना की। इस तरह उन्होंने भारत को एक सूत्र में बांधा।

(ख) ‘शंकर बाल्यकाल से ही विलक्षण प्रतिभा के धनी थे।’ इस संबंध में शंकर की तीन विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर
शंकर एक वर्ष की उम्र में ही बोलने लगे थे। तीव्र स्मरण शक्ति के कारण तीन वर्ष की उम्र में वे सुनी हुई बात को अक्षरशः दुहरा देते थे। पाँच वर्ष की आयु में वे गुरुकुल गए और सात वर्ष में ही उन्होंने शास्त्रों में प्रवीणता प्राप्त कर ली।

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(ग) ‘नर्मदाष्टक’ की रचना शंकराचार्य ने कब की? उस घटना का उल्लेख करें।
उत्तर
ओंकारेश्वर वास के दौरान नर्मदा में भीषण बाढ़ आई। अनेक गाँव बह गए। लोगों के कष्टों को देखकर शंकराचार्य ने ‘नर्मदाष्टक’ की रचना की और अपनी यौगिक शक्ति से नर्मदा के जल को कमंडल में भर लिया।

(घ) ‘गुरु गोविंदपाद ने प्रसन्न होकर शंकर को क्या आदेश दिया?
उत्तर
‘गुरु गोविंदपाद ने प्रसन्न होकर शंकर को भारत भ्रमण करने और लोक को सही दिशा देने का आदेश दिया। उन्होंने शंकर को वैदिक धर्म के पुनरुत्थान के लिए प्रयत्न करने की आज्ञा दी। शास्त्रों में पारंगत शंकर से उन्होंने काशी जाकर शास्त्रार्थ करने के लिए कहा।

(ङ) शंकर ने माता से सन्यास की आज्ञा किस प्रकार प्राप्त की?
उत्तर
एक दिन शंकर माता के साथ नदी पर स्नान के लिए गए। वहाँ एक मगरमच्छ ने उनके पैर पकड़ लिए। माता आर्याम्बा यह देखकर विचलित हो गईं। संस्कारवश अकस्मात ही शंकर ने उनसे सन्यास की अनुमति माँगी, उन्होंने यह कहा कि शायद इसी से उनका जीवन बच जाए। पुत्र की रक्षा के लिए माता ने अनचाहे ही अनुमति दे दी।

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भाषा की बात

प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों के शुद्ध उच्चारण कीजिए
प्रस्थानत्रय, त्राहि-त्राहि, प्रकांड, ओंकारेश्वर, केन्द्र, दृश्य।
उत्तर
छात्र स्वयं करें। प्रश्न

5. निम्नलिखित शब्दों की शुद्ध वर्तनी लिखिए
सिरोधार्य, पुर्नजागरन, भारतिय, अचल
उत्तर
शिरोधार्य, पुनर्जागरण, भारतीय, अंचल

प्रश्न 6.
उदाहरण के अनुसार निम्नलिखित शब्दों की संधि कीजिए
शंकर+आचार्य, देह+अन्त, शास्त्र+अर्थ, सर्व+अधिक, दिक्+विजय, पुनः + जागरण, महा+ईश्वर
उत्तर
शंकर आचार्य = शंकराचार्य
देह+अन्त = देहान्त शास्त्र
अर्थ = शास्त्रार्थ
सर्व+अधिक = सर्वाधिक
दिक्+विजय = दिगविजय
पुनः+जागरण = पुनर्जागरण
महा+ईश्वर = महेश्वर प्रश्न

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7. उदाहरण के अनुसार ‘त्व’ प्रत्यय लगाकर शब्द बनाइए
उत्तर
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प्रश्न 8.
निम्नलिखित गयांशों को पढ़िए तथा संयुक्त क्रियाओं को छाँटकर लिखिए
“अपनी माता से आज्ञा लेकर बालक शंकर ने घर छोड़ दिया और गुरु की तलाश में निकल पड़े। वह उत्तर भारत की ओर चल पड़े। यात्रा में उन्हें अनेक आश्रम मिले। वातापि आश्रम से निकल कर उन्होंने गोदावरी पार की और दंडकारण्य में प्रवेश किया।”
उत्तर
छोड़ दिया, निकल पड़े, चल पड़े, पार की, प्रवेश किया।

शंकराचार्य मध्यप्रदेश में प्रसंग सहित व्याख्या

1. गुरु को यह ……………………. काशी जाओ।”
शब्दार्च-महारत = प्रवीणता । विचरण=भ्रमण । प्रयास = कोशिश। समरसता = समानता का भाव। विलासिता = भौतिक सुख । पुनरुत्थान=फिर से उन्नति करना । प्रयत्न = कोशिश । पारंगत= दक्ष, प्रवीण । शास्त्रार्थ=शास्त्रों के ज्ञान के आधार पर वाद-विवाद।

प्रसंग-प्रस्तुर रक्तियाँ हमारी पाठ्य-पुस्तक सुगम भारती-6 में संकलित जीवनी ‘शंकराचार्य-मध्यप्रदेश में’ से उद्धृत है। इनमें गुरु द्वारा शंकराचार्य को उनका कर्तव्य बताया गया है।

व्याख्या-शंकर की शिक्षा पूर्ण हो चुकी थी और उन्होंने योग में भी महारत हासिल कर ली थी। गुरु उनसेप्रसन्न थे। वे उनसे कहते हैं कि बादल एक जगह नहीं रहते। वे घूम-घूमकर संसार में वनस्पतियों पर बरसते हैं और पूरी धरती को हरा-भरा कर देते हैं। वैसे ही तुम भी घूम-घूम कर लोक कल्याण के लिए कार्य करो। भारत में घूम-घूमकर महान धर्म कार्य करो। सामाजिक कुरीतियों को दूर कर समरसता का भाव जगाओ। परंत उससे पहले काशी जाकर शास्त्रार्थ करने की आज्ञा गुरु शंकराचार्य । को देते हैं।

विशेष

  • उस काल की सामाजिक एवं धार्मिक स्थिति दर्शायी गयी है।
  • एक विद्वान के क्या कर्त्तव्य होने चाहिए, यह बताया गया है।

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2. आचार्य शंकर महान् संगठन-कर्ता भी थे। उन्होंने भटक से कटक तथा कन्याकुमारी से कश्मीर तक की पैदल यात्रा की। उन्होंने चार पीठों की स्थापना की थी। ये चारों पीठ क्रमशः उत्तर में बद्रीनाथ धाम, दक्षिण में रामेश्वरम्, पूर्व में जगन्नाथ पुरी और पश्चिम में द्वारिका के नाम से विख्यात है। इस तरह उन्होंने पोखरों में बंटे हुए देश को सागर का आभास कराया, और देश को एक सूत्र में बांधा।

शब्दार्व-विख्यात=प्रसिद्ध । पोखर=छोटे-छोटे जलाशय। सूत्र=धागा।

प्रसंग-पूर्ववत्

व्याख्या-शंकराचार्य में संगठन करने की विशेषता थी। उन्होंने संपूर्ण भारत का पैदल भ्रमण किया। पूरब, पश्चिम, उत्तर तथा दक्षिण में चार पीठों की स्थापना कर उन्होंने पूरे भारत को एक दूसरे से जोड़ दिया। आज भी उत्तर भारतीय तीर्थयात्री की यात्रा दक्षिण स्थित रामेश्वरम् के दर्शन के बिना संपन्न नहीं होती और वैसे ही दक्षिण से उत्तर स्थित बद्रीनाथ की यात्रा पर लोग आया करते हैं। पूरबवासी द्वारिका की यात्रा पर पश्चिम जाते हैं और पश्चिमवासी जगन्नाथपुरी के दर्शनों हेतु पूरब आते हैं। इस प्रकार शंकराचार्य ने अपने प्रयासों से छोटे-छोटे जलाशयों में बंट चुकी भारतीय संस्कृति को सागर होने का आभास कराया और पूरे देश को आपस में बाँध दिया।

विशेष

  • शंकराचार्य की संगठन शक्ति एवं दूरदृष्टि का परिचय मिलता है।
  • राष्ट्र-निर्माण में उनकी भूमिका का पता चलता है।

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