MP Board Class 12th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 4 मेरे जीवन के कुछ चित्र (आत्मकथा, डॉ. रामकुमार वर्मा)
मेरे जीवन के कुछ चित्र अभ्यास प्रश्न
प्रश्न 1.
डॉ. रामकुमार वर्मा सबसे पहले अपनी माता का स्मरण क्यों करते हैं? उनकी माता की दिनचर्या लिखिए।
उत्तर:
अपने अतीत के झरोखों में झाँकते समय डॉ.रामकुमार वर्मा के मन-मस्तिष्क में जो सबसे पहली तस्वीर उभरती है वह है उनकी पूज्यनीय एवं प्रातः स्मरणीय माताजी राजरानी देवी की डॉ. वर्मा अपनी माताजी का बहुत आदर और सम्मान करते थे। उनकी माँ एक उच्च कोटि की संगीतज्ञ एवं काव्य-ज्ञान से परिपूर्ण थीं। उन्हीं की प्रेरणा,स्नेह,मार्गदर्शन और आशीर्वाद से वे कविता-लेखन के क्षेत्र में कदम रख सके थे, अत: डॉ.वर्मा अपनी माँ में न सिर्फ करुणामयी माँ का रूप देखते थे, अपितु एक गुरु का बिम्ब भी उन्हें अपनी माँ में दिखाई देता था। अत: डॉ. रामकुमार वर्मा सवसे पहले अपनी माता का स्मरण किया करते थे।
डॉ.रामकुमार वर्मा की माँ एक कुशल संगीतज्ञ एवं कला प्रेमी महिला थीं। उनके कण्ठ में अद्भुत मिठास थी। वे सुबह-सवेरे जल्दी उठकर शौच इत्यादि से निवृत्त हो राग विभास के स्वरों ‘भोर भयो जागह रघुनन्दन’ का तन्मयता से गान करती थीं। परिवार के अन्य सभी लोग उनके कोकिल कण्ठ को सुनने के लिए उनके पास एकत्रित हो जाते थे। ये नियम उनका प्रतिदिन का था। प्रातःकाल गान के पश्चात् ही वे अन्य आवश्यक कार्यों को सम्पादित किया करती थीं।”
प्रश्न 2.
बचपन में लेखक किस पात्र के अभिनय के विशेषज्ञ थे? इस अभिनय का प्रभाव उन पर कितने समय तक बना रहा?
उत्तर:
बचपन से ही लेखक को कुश्ती लड़ने,नाटक करने, अभिनय करने और पढ़ने का बहुत शौक था। वैसे तो लेखक ने नाटकों में कई पात्रों का अभिनय किया था, किन्तु ‘श्रीकृष्ण’ का अभिनय करने में उन्हें दक्षता प्राप्त थी और वे उसके विशेषज्ञ माने जाते थे। ‘श्रीकृष्ण’ का अभिनय करने के लिए उनके गुरुजन उन्हें शहर के बाहर भी लेकर जाते थे। कई लोग तो उन्हें ‘श्रीकृष्ण’ कहकर ही पुकारने लगे थे।
श्रीकृष्ण’ के अभिनय का लेखक पर प्रभाव पूरे बचपन भर बना रहा। इस पात्र के अतिरिक्त उन्हें किसी अन्य चरित्र का अभिनय करने में आनन्द प्राप्त नहीं होता था। जैसे-जैसे लेखक ने बाल्यावस्था से किशोरावस्था में प्रवेश किया ‘श्रीकृष्ण’ का अभिनय छूटता गया, क्योंकि अब वे बड़े हो गये थे।
प्रश्न 3.
नागपंचमी के दिन घटित अखाड़े की घटना का वर्णन अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
बचपन से ही लेखक को कुश्ती लड़ने, नाटक करने, अभिनय करने और पढ़ने इत्यादि का बहुत शौक था। साथ ही,लेखक इनकी प्रतियोगिताओं में भी भाग लेने के लिए सदैव ही उत्सुक रहते थे। एक बार बचपन में लेखक अपने पिताजी के साथ तमाशा देखने के लिए गये। वह नागपंचमी का दिन था। अखाड़े में कुश्ती की प्रतियोगिता चल रही थी। दूर-दूर से कई पहलवान कुश्ती के मैदान में अपना-अपना भाग्य परखने के लिए डटे थे। प्रतियोगिता के दौरान एक पहलवान सबको ‘चित्त’ करता गया और ‘फुल्लम’ (सर्व विजयी) घोषित हुआ। दम्भ के मारे वह पहलवान अखाड़े की मिट्टी को शरीर पर मलते हुए ताल ठोंककर किसी को भी उसका मुकाबला करने के लिए खुली चुनौती देने लगा। लेखक अपने पिताजी के साथ ये सब देख रहे थे।
उनसे यूँ चुनौती से दूर भाग जाना गवारा न हुआ। उन्होंने आव देखा न ताव और उस ‘फुल्लम’ की चुनौती को स्वीकार करते हुए कुश्ती के लिए ललकार दिया। दोनों पहलवानों ने अखाड़े की मिट्टी में अपने-अपने हाथ मले और बोल बजरंग’ के उद्घोष के साथ भिड़ गये। मात्र 5 मिनट से भी कम समय में वह ‘फुल्लम’ पहलवान ‘फुस्स’ हो धरती की धूल चाट रहा था और लेखक के चेहरे पर विजयी आभा तैर रही थी। तालियों की करतल ध्वनि के मध्य लेखक को शेरवानी और नकद पुरस्कार उपहारस्वरूप दिये गये जो लेखक ने प्राप्त करके उदारता के साथ उसी ‘फुल्लम’ पहलवान को प्रदान कर दिये।
प्रश्न 4.
माँ ने रामकुमार वर्मा को पढ़ाई के सम्बन्ध में क्या निर्देश दिए थे? (2010)
उत्तर:
डॉ. रामकुमार वर्मा की माँ एक सुशिक्षित एवं सुसंस्कृत महिला थीं। वे अपने बच्चों में भी शिक्षा के उच्च संस्कार प्रदान करना चाहती थीं। यह उन्हीं के मार्गदर्शन और सीख का फल था कि डॉ.रामकुमार वर्मा कभी अनुत्तीर्ण नहीं हुए, बल्कि वे सदैव ‘डिवीजन’ से उत्तीर्ण होते रहे। पढ़ाई के सम्बन्ध में निर्देशित करते हुए उनकी माँ ने उनसे कहा था कि पढ़ाई में उन्हें पहले दर्जे का ध्यान रखना चाहिए। अपने लक्ष्य के प्रति उसी एकाग्रता एवं समर्पण के साथ प्रयत्नशील रहना चाहिए जिस प्रकार महाभारत काल में अर्जुन ने चिड़िया की केवल आँख पर अपना ध्यान रखा था।
प्रश्न 5.
लेखक ने स्कूल जाना क्यों छोड़ा?
उत्तर:
लेखक जब अपनी किशोरावस्था से युवावस्था में प्रवेश कर रहे थे तब देश में स्वतन्त्रता के लिए संघर्ष अपने चरम पर था। महात्मा गाँधीजी के आह्वान पर देशभर में असहयोग आन्दोलन चलाया जा रहा था। लेखक ने भी इस असहयोग आन्दोलन में भाग लिया। सन् 1921 में जब नागपुर में आयोजित कांग्रेस के सम्मेलन में असहयोग-आन्दोलन का प्रस्ताव पारित हुआ तो लेखक ने मन-ही-मन स्कूल छोड़ने का प्रण कर लिया। लेखक नरसिंहपुर में रहते थे और उनके पिताजी मंडला (सी.पी) में ‘ऐक्स्ट्रा असिस्टेंट कमिश्नर’ थे। उस समय लेखक कक्षा 10 में पढ़ते थे और उन्हें 6 रुपये का वजीफा भी मिलता था। अपने प्रण को पूरा करते हुए लेखक ने स्कूल छोड़ दिया। यह समाचार सुनकर उनके पिताजी ने उन्हें भविष्य के स्वप्न दिखाते हुए पुनः स्कूल जाने के लिए कहा,किन्तु लेखक नहीं माने। पिताजी उनसे रुष्ट हो गये और बेंत से उन्हें दण्ड भी दिया। लेखक ने 72 घण्टे तक उपवास रखा और अपने स्कूल न जाने के निर्णय पर अडिग रहे।
प्रश्न 6.
लेखक ने ‘देश-सेवा’ कविता किन परिस्थितियों में लिखी और उसका क्या परिणाम हुआ? (2016)
उत्तर:
उन दिनों देश-भर में असहयोग आन्दोलन की गूंज थी। बच्चे, बड़े, स्त्री-पुरुष सभी बढ़-चढ़कर उस आन्दोलन में भाग ले रहे थे। गाँधीजी के नेतृत्व में समूचा राष्ट्र मानो एक साथ उठ खड़ा हुआ था। उन दिनों जुलूस राष्ट्रीय झण्डे को लेकर निकलते थे और गाने के लिए नए-नए गीतों की आवश्यकता पड़ती थी। उसी समय देश-सेवा’ कविता के लिए कानपुर के श्री बेनीमाधव खन्ना की 51 रुपये के नकद पुरस्कार वाली घोषणा निकली। लेखक के पिताजी ने लेखक से कहलवाया; “छोटे गाँधीजी से कहो देश-सेवा पर कविता लिखें।” लेखक ने पिताजी की आज्ञा को चुनौती के रूप में स्वीकार करते हुए कविता लिखने की ठान ली। उन्होंने बिना किसी को बतलाए कविता लिखकर भेज दी। तीन माह बाद सूचना मिली कि लेखक की भेजी गई कविता को सर्वोत्तम आँका गया है और उन्हें 51 रुपये का पुरस्कार प्रेषित किया जा रहा है। यूँ कविता चयन की बात सुनकर प्रसन्न माताजी ने लेखक पर अभिमान जताते हुए कहा था, “मुझे गर्व है कि मेरा एक बेटा देश-सेवा में तन-मन से काम कर रहा है” और लेखक के पिताजी ने प्रसन्न होकर लेखक के लिए एक कोट बनवाया था।
मेरे जीवन के कुछ चित्र अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक डॉ. रामकुमार वर्मा के लिए ‘देव पुरस्कार’ से भी अधिक मूल्यवान क्या था?
उत्तर:
लेखक की माताजी संगीतज्ञ एवं काव्य-ज्ञान से पूर्ण थीं। वे उषा-काल में उठकर ‘भोर भयो जागहु रघुनन्दन’ गातीं और लेखक से भी गाने के लिए कहतीं। ठीक गाने पर लेखक को एक जलेबी अधिक का पुरस्कार मिलता था जो लेखक के लिए किसी ‘देव पुरस्कार’ से भी अधिक मूल्यवान था।
प्रश्न 2.
बचपन में लेखक डॉ. रामकुमार वर्मा की विशेष रुचि क्या थीं?
उत्तर:
लेखक को बचपन से ही ‘प्रतियोगिता’ विशेष प्रिय रही। कुश्ती लड़ने, नाटक करने, अभिनय करने और पढ़ने में लेखक की विशेष रुचि रही।
मेरे जीवन के कुछ चित्र पाठ का सारांश
सुप्रसिद्ध कहानीकार ‘डॉ. रामकुमार वर्मा द्वारा लिखित प्रस्तुत आत्मकथा ‘मेरे जीवन के कुछ चित्र’ में लेखक ने अपने बचपन एवं प्रियजनों से सम्बन्धित अतीत की कुछ घटनाओं का सुन्दर एवं सजीव वर्णन किया है।
लेखक के अनुसार उनके जीवन में उनकी माँ का स्थान सर्वोपरि है। उनकी माता का नाम राजरानी देवी था। वे एक उच्च कोटि की संगीतज्ञ थीं और उन्हें काव्य-ज्ञान भी खूब था। वे प्रात:काल जल्दी उठकर राग विभास में गान करतीं और परिवार के सभी लोग सुध-बुध खोकर तन्मयता से उनके गान को सुना करते थे। उन्हीं की प्रेरणा एवं प्रभाव से लेखक कविता-लेखन के क्षेत्र में प्रविष्ट हुए। बचपन से ही लेखक को कुश्ती लड़ने, नाटक खेलने, अभिनय करने और पढ़ने इत्यादि में गहन रुचि थी। किशोरावस्था में एक बार लेखक ने अपने से कहीं अधिक बलशाली प्रतिद्वन्द्वी को कुश्ती में हराकर पुरस्कार जीता था। अभिनय की यदि बात की जाये तो लेखक श्रीकृष्ण’ के अभिनय के विशेषज्ञ थे। श्रीकृष्ण के अभिनय में उन्होंने बहुत-से पुरस्कार अर्जित किये थे।
लेखक पढ़ने में भी काफी होशियार थे। वे सदैव ‘डिवीजन’ में ही उत्तीर्ण हुआ करते थे। माँ की प्रेरणा पर वे सदैव लक्ष्य पर ही अपना ध्यान केन्द्रित करते और उसे पाकर ही साँस लेते थे। लेखक ने अपने जीवन की प्रथम कविता स्वयं-प्रेरणा से एक छोटी-सी तुकबन्दी के रूप में लिखी थी। युवावस्था में लेखक ने असहयोग आन्दोलन में भाग लिया और विरोधस्वरूप स्कूल छोड़ दिया। एक बार पिताजी के कहने पर लेखक ने देश-सेवा पर एक कविता लिखी और 51 रुपये का नकद पुरस्कार अर्जित कर अपने माता-पिता को गौरवान्वित किया। समाचार के साथ-साथ अपने बचपन की यादों से जुड़ी ये कहानियाँ अब लेखक के मस्तिष्क से निकलती जा रही हैं।