MP Board Class 12th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 2 गौरा

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MP Board Class 12th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 2 गौरा (रेखाचित्र, महादेवी वर्मा)

गौरा अभ्यास प्रश्न

प्रश्न 1.
प्रस्तुत रेखाचित्र के अनुसार गौरा के शारीरिक सौन्दर्य और मृदुल स्वभाव का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
‘गौरा’ लेखिका के घर पली हुई गाय की बछिया थी। वह अत्यन्त सुन्दर एवं आकर्षक थी। पुष्ट लचीले पैर, भरे पुढे, चिकनी भरी हुई पीठ,लम्बी सुडौल गर्दन, निकलते हुए छोटे-छोटे सींग, भीतर की लालिमा की झलक देते हुए कमल की दो अधखुली पंखुड़ियों जैसे कान, लम्बी और अंतिम छोर पर सघन चामर का बोध कराने वाली पूँछ, सब कुछ साँचे में ढला हुआ-सा था। गाय को मानो इटैलियन मार्बल में तराशकर उस पर ओप दी गई हो। गौरा के गौर-वर्ण को देखकर ऐसा लगता था, मानो उसके रोमों पर अभ्रक का चूर्ण मल दिया गया हो, जिसके कारण जिधर आलोक पड़ता था, उधर विशेष चमक पैदा हो जाती थी। गौरा वास्तव में बहुत प्रियदर्शन थी, विशेषकर उसकी काली बिल्लौरी आँखों का तरल सौन्दर्य तो दृष्टि को बाँधकर स्थिर कर देता था। चौड़े, उज्ज्वल माथे और लम्बे मुख पर आँखें बर्फ में नीले जल के कुण्डों के समान लगती थीं।

अपने आगमन के कुछ ही दिनों में गौरा लेखिका के घर में पल रहे अन्य पशु-पक्षियों से इतनी घुल-मिल गई कि वे सभी अपनी लघुता एवं विशालता का अन्तर भूलकर उसके पेट के नीचे,पैरों के मध्य एवं पीठ और माथे पर बैठकर उसके साथ खेलने लगे। यह उसके मृदुल स्वभाव का ही चमत्कार था कि प्रत्येक जीव उसमें अपना सगा-सहोदर देखने लगता है।

प्रश्न 2.
ग्वाले ने गाय को सुई क्यों और कैसे खिला दी?
उत्तर:
गौरा के लेखिका के घर आने से पूर्व घर के लिए दूध ग्वाले द्वारा ही विक्रय किया जाता था, किन्तु गौरा के दूध देना प्रारम्भ करने से ग्वाले की बिक्री रुक गई। फलस्वरूप उसने द्वेषवश गौरा को भोजन के दौरान गुड़ में लपेटकर सुई खिला दी, जिससे गाय मर जाये और उसके दूध की बिक्री पुनः शुरू हो सके।

प्रश्न 3.
‘दूधों नहाओ’ का आशीर्वाद किस प्रकार फलित हुआ?
उत्तर:
गौरा के माँ बनने पर लेखिका के घर मानो दुग्ध महोत्सव आरम्भ हो गया। गौरा प्रातःसायं मिलाकर बारह सेर के लगभग दूध देती थी। उसके बछड़े लालमणि के लिए कई सेर दूध छोड़ देने पर भी इतना अधिक दूध बच जाता था कि आस-पास के बाल-गोपाल से लेकर पालित कुत्ते-बिल्ली एवं अन्य पशु-पक्षियों तक पर माना ‘दूधों नहाओ’ का आशीर्वाद फलित हो उठा। तात्पर्य यह है कि सभी के लिए प्रचुर मात्रा में दूध उपलब्ध हो गया था।

प्रश्न 4.
दूध दुहने की समस्या का स्थायी समाधान किस प्रकार निकाला गया?
उत्तर:
गौरा के माँ बनने पर सव प्रसन्न तो थे, किन्तु दूध दुहने की एक बड़ी समस्या उठ खड़ी हुई थी। प्रारम्भ में तो इधर-उधर से किसी तरह कुछ प्रबन्ध किया गया, किन्तु अब दुग्ध दोहन की समस्या स्थायी समाधान चाहती थी। नौकरों में,नागरिकों में तो कोई दूध दुहना जानते ही नहीं थे और जो गाँव से आए थे, वे अनाभ्यास के कारण यह कार्य इतना भूल चुके थे कि काफी समय लगा देते थे। इस समस्या के स्थायी समाधान के लिए उस ग्वाल को बुलाया गया जो गौरा के लेखिका के घर आने से पूर्व दूध दिया करता था। उसकी इस कार्य हेतु नियुक्ति होते ही लेखिका को दूध दुहने की समस्या का समाधान प्राप्त हो गया।

प्रश्न 5.
‘आह मेरा गोपालक देश’ महादेवी ने नि:श्वास छोड़ते हुए ऐसा क्यों कहा? (2009, 11, 16, 17)
उत्तर:
इस सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एकमात्र ऐसा देश है, जहाँ पशु-पक्षी से लेकर पत्थर तक पूजे जाते हैं। आज भी हम खाना खाने से पूर्व चिड़ियों के लिए दाना डालने एवं खाना पकाते समय ‘गाय की रोटी’ निकालना नहीं भूलते। सदैव से ही गाय हमारी संस्कृति की परिचायक एवं आराध्य रही है। उसमें हम भारतवासियों ने अपनी माँ की छवि देखी है और उसे ‘गाय माता’ की संज्ञा दी है। हमारे देश में गाय को न सिर्फ पूजा जाता है, बल्कि उसे बड़ी श्रद्धा और आदर के साथ पाला जाता है। यहाँ तक कि हमारे आराध्य भगवान श्रीकृष्ण को भी गायें अत्यन्त प्रिय थीं। हमारे शास्त्रों में भी गाय को अत्यन्त उच्च स्थान प्रदान किया गया है।

प्रस्तुत रेखाचित्र में लेखिका अपनी पालतू गाय के यूँ अचानक बिछोह की असहनीय पीड़ा को सहन करने के प्रयास में जब गहरी साँस लेती है तो सहसा उसके मुख से निकल पड़ता है, ‘आह मेरा गोपालक देश’ अर्थात् लेखिका को गाय पालने वालों के निर्मम स्वभाव पर अत्यधिक वेदना होती है।

प्रश्न 6.
‘गौरा’ रेखाचित्र के किस अंश ने आपको सर्वाधिक प्रभावित किया? लिखिए।
उत्तर:
वैसे तो प्रस्तुत रेखाचित्र ‘गौरा’ की एक-एक पंक्ति का शिल्प पाठक को बाँधकर रखने में पूर्णतः सक्षम है,परन्तु फिर भी याद इनमें से सर्वाधिक रोचक एवं पसन्द के अंश की बात की जाये तो हमें इस रेखाचित्र का वह अंश अत्यन्त पसन्द है,जबकि गौरा मृत्यु से संघर्ष करते हुए किस प्रकार यातनाप्रद दिन व्यतीत करती है। गौरा को यूँ मौत के मुख में जाते देख सभी उदास हैं,फिर वह चाहे लेखिका हों, नौकर-चाकर हों,चिकित्सक हों अथवा उसके साथ दिन-रात खेल-करतब करने वाले अन्य पालित पशु-पक्षी। सब-के-सब इसी आशा-अपेक्षा से प्रयत्नरत हैं, जिससे गौरा को असमय मृत्यु से बचाया जा सके। वास्तव में, इस मार्मिक अंश का इतना संवेदनशील एवं संजीदा चित्रण किया गया है कि आँखों के समक्ष एक दृश्य-सा उत्पन्न हो जाता है और पाठक बिना एक भी साँस लिये अथवा बिना कहीं भी रुके, सम्पूर्ण अंश को करुण-भाव के साथ पढ़ता चला जाता है। इस अंश का इतना सजीव चित्रण निश्चित रूप से महादेवी वर्मा की प्रबल लेखनी द्वारा ही सम्भव है।

गौरा अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गौरा के घर आने पर उसका स्वागत किस प्रकार किया गया?
उत्तर:
गाय जब लेखिका के घर पहुंची तब लेखिका के परिचितों और परिचायकों में श्रद्धा का ज्वार-सा उमड़ गया । उसे लाल-सफेद गुलाबों की माला पहनाई गई,केशर-रोली का बड़ा सा टीका लगाया गया,घी का चौमुखा दिया जलाकर आरती उतारी गई और उसे दही-पेड़ा खिलाया गया।

प्रश्न 2.
डॉक्टरों ने गौरा को सेब का रस पिलाने का सुझाव क्यों दिया?
उत्तर:
डॉक्टरों ने गौरा को सेब का रस पिलाने का सुझाव इसलिए दिया कि जिससे सुई पर कैल्शियम की परत जम जाने से उसके बचने की सम्भावना बनी रहे।

गौरा पाठ का सारांश

सुप्रसिद्ध कवयित्री एवं लेखिका ‘महादेवी वर्मा’ की प्रबल लेखनी द्वारा लिखित प्रस्तुत रेखाचित्र ‘गौरा में लेखिका ने एक गाय के साथ बिताये अपने अविस्मरणीय समय का मार्मिक वर्णन किया है।

लेखिका के अनुसार ‘गौरा’ एक अति सुन्दर बछिया थी। उसका शरीर अत्यन्त सुडौल एवं आकर्षक था। उसके सुन्दर तन एवं तीखे नयन-नक्श को देखकर ही लेखिका ने उसे अपने घर पर पालने का निर्णय लिया था। प्रथम दिवस घर आगमन पर गौरा का लेखिका एवं उनके परिचितों ने आत्मिक एवं भव्य स्वागत किया तथा प्रेम से उसका नामकरण हुआ ‘गौरांगिनी’ अथवा ‘गौरा’।

कुछ ही दिनों में गौरा अपने स्वभाव एवं व्यवहार के चलते घर में पल रहे अन्य पशु-पक्षियों से इतनी घुल-मिल गई कि उनके मध्य छोटे-बड़े का कोई अन्तर ही नहीं रह गया। वह लेखिका को उसकी आवाज से ही नहीं अपितु उनके पैरों की आहट-मात्र से ही पहचानने लगी थी। एक वर्ष पश्चात् गौरा ने एक सुन्दर एवं हृष्ट-पुष्ट पुत्र को जन्म दिया। बछड़े का नाम रखा गया ‘लालमणि’ लालमणि भी अपनी माँ के समान सुन्दर काया वाला प्रसन्न पशु था। गौरा के दूध से न सिर्फ लालमणि वरन् अन्य सभी पालतू पशु-पक्षी अपनी उदराग्नि को खुशी-खुशी शांत करते थे।

कुछ माह बाद अचानक गौरा ने दाना-चारा खाना बहुत कम कर दिया और वह लगातार कमजोर और निष्क्रिय होती चली गई। आस-पास एवं दूर-दराज के कई पशु-चिकित्सकों को बुलवाया गया। विभिन्न जाँचों के पश्चात् यह निष्कर्ष निकाला गया कि गाय को किसी ने द्वेषवश गुड़ में लपेटकर सुई खिला दी है,जो रक्त-संचार के साथ हृदय में पहुँचकर उसके पार हो जायेगी और इस प्रकार, कुछ ही समय में गौरा की मृत्यु निश्चित होगी।

अब गौरा का मृत्यु से संघर्ष प्रारम्भ हुआ। चिकित्सकों के परामर्श पर उसे सेब का रस पिलाया जाने लगा ताकि सुई पर कैल्शियम’ की परत जम जाने से उसके बचने की सम्भावना बन सके, किन्तु विधाता को कुछ और ही स्वीकार था। एक लम्बे यातनामय संघर्ष-पथ पर विचरण करने के पश्चात् एक दिन गौरा लेखिका, अपने पुत्र एवं अन्य पशु-पक्षियों को बिलखता छोड़कर हमेशा के लिए उनसे दूर चली गई। लेखिका ने उसके पार्थिव अवशेष को पूर्ण श्रद्धा से गंगा में प्रवाहित कर दिया।