MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 2 वात्सल्य और स्नेह

MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 2 वात्सल्य और स्नेह

वात्सल्य और स्नेह अभ्यास

वात्सल्य और स्नेह अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कृष्ण ने दही का दोना कहाँ छिपा लिया?
उत्तर:
बालकृष्ण ने दही का दोना अपनी पीठ के पीछे छिपा लिया है।

प्रश्न 2.
दूध पीने से चोटी बढ़ती है, यह सुझाव कृष्ण को किसने दिया था?
उत्तर:
गाय का दूध पीने से चोटी बढ़ती है, यह सुझाव यशोदा माता ने बालकृष्ण को दिया था।

प्रश्न 3.
सूरदास किस भाषा के कवि हैं?
उत्तर:
सूरदास ब्रजभाषा के कवि हैं।

प्रश्न 4.
‘मोसों कहत मोल को लीनो’ यह कथन किसने कहा है? (2016)
उत्तर:
यह कथन बलदाऊ की शिकायत करते हुए कृष्ण यशोदा माता से कहते हैं कि बलदाऊ उन्हें मोल का खरीदा हुआ बताते हैं।

प्रश्न 5.
“घर का पहरे वाला” से कवि का क्या आशय है? (2015)
उत्तर:
“घर का पहरे वाला” से कवि का तात्पर्य घर के रखवाले से है अर्थात् देश की रक्षा करने वाला प्रहरी।

प्रश्न 6.
‘ममता की गोद’ किसे कहा गया है?
उत्तर:
बहन को ‘ममता की गोद’ कहा गया है।

वात्सल्य और स्नेह लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
अपने को निर्दोष सिद्ध करने के लिए कृष्ण ने यशोदा को क्या-क्या तर्क दिए? (2013)
उत्तर:
अपने को निर्दोष सिद्ध करने के लिए कृष्ण ने निम्न तर्क दिए-

  1. मैंने दही नहीं खाया है,बल्कि ग्वालवालों ने मेरे मुँह पर लपेट दिया है।
  2. तेरा दधि का बर्तन इतने ऊँचे छींके पर लटका हुआ है।
  3. मेरे छोटे-छोटे हाथ हैं जो उस छींके तक नहीं पहुँच सकते।

प्रश्न 2.
“गोरे नन्द जसोदा गोरी, तुम कत स्याम सरीर” यह पंक्ति किसने किससे और क्यों कही?
उत्तर:
उक्त पंक्ति बलदाऊ ने कृष्ण से कहीं। उन्होंने यह पंक्ति अपने इस पक्ष को दृढ़ करने के लिए कहीं कि तुझे तो मोल लिया है। यदि तू नन्द और यशोदा माँ का पुत्र होता तो काला क्यों होता ? वे दोनों तो गोरे हैं। यहाँ इस तथ्य को उजागर किया गया है कि गोरे माता-पिता की सन्तान भी गोरी होती है।

प्रश्न 3.
मुँह से मिट्टी निकालने के लिए यशोदा ने कौन-सा उपाय किया?
उत्तर:
कृष्ण के मुँह से मिट्टी निकालने के लिए यशोदा ने कसकर उनकी बाँह पकड़ ली और मारने के लिए एक हाथ में डंडी उठा ली। उनका भाव यह था कि डर के मारे कृष्ण अपने मुख से मिट्टी बाहर निकाल देगा।

प्रश्न 4.
‘मेरा जीवन क्रीड़ा-कौतुक तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी’ से कवि का क्या आशय है?
उत्तर:
कवि कहता है कि भाई का जीवन तो क्रीड़ा-कौतूहल आदि से भरा रहा, लेकिन बहन गम्भीर रहते हुए भी आनन्द देने वाली बनी रही। बहन के होते हुए कभी भी भाई के प्रेम और आनन्द में कमी नहीं आई।.

प्रश्न 5.
बहन को भाई का ध्रुवतारा’ क्यों कहा गया है? (2009, 11, 14, 17)
उत्तर:
भाई तो एक अल्हड़ जीवन या यों कहें कि लापरवाह जीवन बिताता रहा, लेकिन बहन अपने लक्ष्य के लिए ध्रुवतारे की तरह अटल खड़ी हुई दिखाई दी। बहन ने भाई को मुसीबतों के समय उत्साह दिया और उसकी देश-भक्ति को जाग्रत कर देश के प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण करने में सहयोग दिया।

वात्सल्य और स्नेह दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कृष्ण माता यशोदा से बलदाऊ की क्या-क्या शिकायतें करते हैं?
उत्तर:
कृष्ण माता यशोदा से शिकायत करते हैं कि बलदाऊ मुझे बहुत चिढ़ाते हैं। मझसे यह कहते हैं कि तुझे यशोदा माता ने जन्म नहीं दिया है,बल्कि तुझे किसी से मोल लिया है। में इस गुस्से में खेलने भी नहीं जाता हूँ। बार-बार मुझसे पूछते हैं कि तेरे माता-पिता कौन हैं और कहते हैं कि नन्द बाबा और यशोदा तो दोनों गोरे हैं,यदि तू उनका पुत्र है तो साँवला क्यों है? फिर सभी ग्वालों को सिखा देते हैं और मेरी तरफ देखकर ताली मारकर हँसते हैं और मुझे खिझाते हैं और तू मुझे ही मारना जानती है,बलदाऊ को कभी नहीं मारती।

प्रश्न 2.
‘सूर वात्सल्य के चितेरे हैं’ इस कथन पर अपने विचार व्यक्त कीजिए।
उत्तर:
‘सूर वात्सल्य के चितेरे हैं’ यह कथन अक्षरशः सत्य है। इनका वात्सल्य वर्णन अद्वितीय है। कृष्ण के बाल रूप और उनकी बाल-सुलभ क्रीड़ाओं का जैसे विशद वर्णन सूरदास ने किया है, वैसा सम्पूर्ण विश्व साहित्य में कहीं नहीं मिलता। कृष्ण का घुटनों चलना,मणियों के खम्भ में अपने प्रतिबिम्ब को माखन खिलाना, माँ से जिद करना,खेलते समय खिसिया जाना आदि विविध बाल क्रीड़ाओं का वर्णन सूरसागर में चित्रित है। उदाहरण देखिए-
“मैया मैं तो चंद खिलौना लैहों।
जैहों लोटि धरनि पै अब ही तेरी गोद न ऐहौं।”

बच्चों की पारस्परिक होड़ का चित्रण भी सूरदास ने अनूठे रूप में किया है। माता यशोदा उनसे कहती है कि दूध पीने से चोटी बढ़ती है तो वह इस लालच में रोज दूध पी लेते हैं। जब उन्हें चोटी बढ़ती हुई दिखाई नहीं देती तो वह कहते हैं-
“मैया कबहि बढ़ेगी चोटी।
काचो दूध पियाबति पचि-पचि देत न माखन रोटी ॥
कितनी बार मोहि दूध पिबत भई यह अजहूँ है छोटी॥”

प्रश्न 3.
बहन को ‘चिनगारी’ तथा भाई को ‘ज्वाला’ बताने के पीछे कवि का क्या आशय (2009)
उत्तर:
गोपाल सिंह नेपाली राष्ट्रीय चेतना जाग्रत करने वाले कवि हैं। उन्होंने भाई-बहन के प्रेम को राष्ट्रीय प्रेम के रूप में अभिव्यक्त किया है। अपनी मातृभूमि की रक्षार्थ बहन चिनगारी के रूप में कार्य करेगी तो भाई ज्वाला बन कर देश की रक्षार्थ तत्पर रहेगा। बहन की क्रोध रूपी चिनगारी जलकर भयानक ज्वाला का रूप ले लेगी और मातृभूमि के दुश्मन को जलाकर राख कर देगी। दूसरी ओर भाई का क्रोध तो स्वयं ज्वाला बनकर देश की रक्षा करेगा। भाई बहन को कहता है कि देश की रक्षा के लिए हम दोनों को सजग और सक्रिय रहना है। कवि आश्वस्त है कि भाई और बहन दोनों मिलकर अपने देश की रक्षा के लिए सतर्क रहेंगे और देश के दुश्मन के लिए ज्वाला बनकर उसका सर्वनाश करने में सक्षम होंगे।

प्रश्न 4.
कवि ने भाई-बहन के स्नेह को किन-किन प्रतीकों के माध्यम से अभिव्यक्त किया है?
उत्तर:
कवि ने भाई-बहन के स्नेह को देश-प्रेम में परिवर्तित कर नये-नये प्रतीकों का सहारा लिया है। बहन के प्रेम के प्रतीक हैं-चिनगारी,हहराती गंगा,बसन्ती चोला,कराल क्रान्ति, राधारानी, आँगन की ज्योति,ममता की गोद, बहन की बुद्धि, नदी की धारा, ध्रुवतारा के रूप में बताया है। दूसरी तरफ भाई के प्रेम को ज्वाला, बेहाल झेलम, सजा हुआ लाल, विकराल, वंशीवाला, घर का पहरेदार,प्रेम का पुतला, जीवन का क्रीड़ा कौतुक, क्रियाशीलता, एक लहर बताया है। इन प्रतीकों के माध्यम से कवि ने राष्ट्रीय चेतना के साथ-साथ मानवीय जीवन की ऊष्मापूर्ण अनुभूतियों का प्रभावशाली वर्णन किया है। इस कविता में कवि ने देश-प्रेम का उच्च आदर्श उद्घाटित किया है।

प्रश्न 5.
भाई-बहन’ कविता के माध्यम से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
भाई-बहन’ कविता के माध्यम से कवि ने नये-नये प्रतीकों के द्वारा भाई बहन के प्रेम को राष्ट्रीय प्रेम के परिवेश में व्यक्त किया है। भाई अपनी बहन को सम्बोधित कर कहता है कि हम दोनों को देश की रक्षा के लिए सजग और सक्रिय होना है। बहन की बुद्धि और भाई की क्रियाशीलता मिलकर जीवन और राष्ट्र को आनन्दमय बना देगी। भाई-बहन दोनों मिलकर आजादी के गीत गाकर लोगों में देश की रक्षा के प्रति जागति पैदा कर देश के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा कर सकते हैं। भाई-बहन के प्रेम को राष्ट्रीय प्रेम से जोड़कर उदात्त बना दिया गया है। कवि संदेश दे रहा है कि हम अपने आनन्द में ही मस्त होकर देश की रक्षा के अपने कर्त्तव्य को कहीं भूल न जाएँ। यहाँ सभी को सजग रहकर एक सच्चे देशभक्त प्रहरी की तरह अपने देश की रक्षा करनी है।

देश के लिए बसन्ती चोला धारण करना पड़े तो करें और विकराल स्वरूप धारण करना पड़े तो करें तथा अपनी बुद्धि और बल के सहारे देश के लिए अपना बलिदान कर दें। जब देश की आजादी का प्रश्न हो, तो अपनी क्रोध रूपी ज्वाला को जलाकर सामने आये अरि (दुश्मन) को नष्ट कर दें। किसी भी कीमत पर देश की आजादी को बचाना है। यदि मातृभूमि तुम्हें अपनी रक्षा के लिए आवाज दे, तो सभी सुख-सम्पत्ति को भूल कर एक सच्चे देश-भक्त की तरह आगे आयें और अपना सर्वस्व अर्पण करके भी अपनी मातृभूमि की रक्षा करें। कवि देश में एकता बनाये रखने का भी संदेश देता है।

प्रश्न 6.
सन्दर्भ सहित व्याख्या कीजिये
(अ) मैया मैं नाही……. शिव विरंचि बौरायो।
(ब) मैया कबहिं बढ़ेगी……. हरि हलधर की जोटी।
(स) भाई एक लहर ……. भाई का ध्रुवतारा है।
उत्तर:
(अ) सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद ‘वात्सल्य और स्नेह’ से सूरदास द्वारा रचित ‘सूर के बालकृष्ण’ नामक शीर्षक से उद्धृत किया गया है।

सन्दर्भ :
इसमें बालकृष्ण अपनी माता यशोदा से अपने प्रति की गई दही खाने की शिकायत को नकारते हुए बड़े ही बुद्धिकौशल से बाल सुलभ उत्तर देते हैं।

व्याख्या :
श्रीकृष्ण माता यशोदा से कहते हैं कि, हे माता! मैंने दही नहीं खाया है। मुझे याद आ रहा है कि इन सभी सखाओं ने मिलकर मेरे मुख पर दही लपेट दिया था। तू जानती है कि इतने ऊँचे टँगे हुए छींके पर दही का बर्तन रखा हुआ है। तू देख सकती है कि मेरे छोटे-छोटे हाथ हैं। इन छोटे हाथों से मैं कैसे उस दही के बर्तन को प्राप्त कर सकता हूँ। फिर नन्दकुमार बालकृष्ण ने दोने को पीठ के पीछे छिपाते हुए और मुख पर लगे हुए दही को पोंछते हुए उपर्युक्त बातें कहीं। यहाँ उनकी बाल सुलभ चतुरता का प्रदर्शन किया गया है। उन्हें भान है कि मुख पर लगे हुए दही से और हाथ में लगे दोने से उनकी चोरी पकड़ी जाएगी, अतः मुख को साफ कर लिया और दोने को पीठ के पीछे छुपा लिया।

यशोदा जी सब समझ गईं, लेकिन पीटने वाली लकड़ी को फेंक कर मुस्कराने लगी और मनमोहन बालकृष्ण को अपने गले से लगा लिया। श्रीकृष्ण के बाल विनोद के आनन्द ने माता यशोदा के मन को मोहित कर लिया। यहाँ श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति का प्रताप दर्शाया गया है। सूरदास कहते हैं कि यशोदा जी और बालकृष्ण के सख को देखकर शिव और ब्रह्मा भी विवेक रहित होकर मोहित हो गए। अर्थात् श्रीकृष्ण यशोदा जी को अपनी बाल लीलाओं का जो सुख दे रहे हैं उससे किसी को भी ईर्ष्या हो सकती है और वह भ्रमित हो सकता है। निरंजन निराकार परब्रह्म साकार रूप में आकर यशोदा जी के आँगन में उनके प्रमोद के लिए जो क्रीड़ाएँ कर रहे हैं, ऐसा सुख शिव-विरंचि को भी दुर्लभ है।

(ब) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियों में बालकृष्ण अपनी माता यशोदा से यह शिकायत कर रहे हैं कि उनको कितने ही दिन दूध पीते हो गए, लेकिन उनकी चोटी बड़ी नहीं हुई है।

व्याख्या :
बालकृष्ण यह जानने को उत्सुक हैं कि उनकी चोटी कब बढ़ेगी। उनकी माता उन्हें यह भरोसा दिलाकर दूध पिलाती थीं कि दूध पीने से उनकी चोटी बढ़ जाएगी। वह माता से पूछते हैं कि हे माता मुझे कितनी ही बार (बहुत समय) दूध पीते हुए हो गईं, लेकिन यह चोटी अभी तक छोटी है। तेरे कथनानुसार मेरी चोटी बलदाऊ की चोटी के समान लम्बी और मोटी हो जाएगी, काढ़ते में, गुहते में,नहाते समय और सुखाते समय नागिन के समान लोट जाया करेगी। तू मुझे कच्चा दूध अधिक मात्रा में पिलाती है तथा माखन और रोटी नहीं देती है। माखन और रोटी बालकृष्ण को प्रिय हैं, लेकिन वे नहीं मिलते और चोटी बढ़ने की लालसा से उन्हें गाय का कच्चा दूध पीना पड़ता है। सूरदास कहते हैं कि माता बलाएँ लेने लगी और कहने लगी कि हरि हलधर दोनों भाइयों की जोड़ी चिरंजीव हो।

(स) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
भाई और बहन एक-दूसरे के सहायक हैं। हर उन्माद में बहन को भाई का ही सहारा है। दोनों मिलकर आजादी के गीत गाकर मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण कर सकते हैं।

व्याख्या :
कवि गोपाल सिंह नेपाली कहते हैं कि यहाँ पर भाई एक लहर के रूप में है, तो बहन नदी की एक धारा है। दोनों साथ-साथ रहकर कल्याण के मार्ग पर चलकर सभी का सहारा बनेंगे। गंगा-यमुना के संगम में पानी की अधिकता होने से कभी बाढ़ जैसी स्थिति हो जाती है और किनारे डूबने लगते हैं। ऐसे पागलपन भरे अवसर पर बहन को भाई का ही एकमात्र सहारा है। बेफिक्री के समय में भी भाई अपनी बहन के लिए ध्रुवतारे की तरह अडिग है। कुछ समय ऐसे आते हैं जब हमें अपने संयम को दृढ़ रखना है। भाई और बहन दोनों मिलकर आजादी के गीत गाकर ही मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा कर सकते हैं। अपनी मुसीबतों को झेलकर और बलिदानों के माध्यम से पत्थर-हृदय देश के दुश्मनों को चेतावनी देते हैं कि हम हर हाल में देश की रक्षा के लिए तत्पर हैं।

वात्सल्य और स्नेह काव्य सौन्दर्य

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के मानक रूप लिखिए
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 2 वात्सल्य और स्नेह img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित पंक्तियों में अलंकार पहचान कर लिखिए
(अ) काढ़त गुहत न्हवावत ओछत, नागिन सी भुई लोटी।
(ब) मेरा जीवन क्रीड़ा-कौतुक तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी।
(स) काचो दूध पिआवत पचि-पचि, देत न माखन रोटी।
उत्तर:
(अ) उपमा अलंकार
(ब) अनुप्रास अलंकार
(स) पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों में से तत्सम और तद्भव शब्द छाँटकर लिखिए
ज्योति, उन्माद, बहन, कलंक, जननी,माटी,मैया, पूत,तात, पत्थर।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Swati Solutions पद्य Chapter 2 वात्सल्य और स्नेह img-2

प्रश्न 4.
गोद राखि चचुकारि दुलारति पुन पालति हलरावति।
आँचर ढाँकि बदन विधु सुंदर थन पय पान करावति॥
उपर्युक्त पंक्तियों में प्रयुक्त रस बताइये।
उत्तर:
वात्सल्य रस।

प्रश्न 5.
इस पाठ में से पुनरुक्ति प्रकाश और अनुप्रास अलंकार के उदाहरण छाँट कर लिखिए।
उत्तर:
(i) पुनरुक्तिप्रकाश-तू चिनगारी बनकर उड़ री,जाग-जाग मैं ज्वाल बनूँ।
(ii) अनुप्रास अलंकार-तू भगिनी बन क्रान्ति कराली,मैं भाई विकराल बनूँ।

सूर के बालकृष्ण भाव सारांश

‘सूर के बालकृष्ण’ नामक पदों के रचयिता भक्त कवि ‘सूरदास’ हैं। सूरदास ने शिशु सुलभ मुद्राओं, क्रीड़ाओं और शिशु के स्वभावगत सौन्दर्य को भी अपनी उदात्त और आकर्षक छवियों में प्रकट किया है।

वात्सल्य प्रेम में प्रेम का निश्छल,उदार और शिशु सुलभ स्वभाव प्राप्त होता है। शिशु के सुन्दर स्वरूप, आकर्षक मुद्राओं और उसके अबोध व्यवहारों के प्रदर्शन से यह वात्सल्य भाव दर्शक के हृदय में संचरित होता है। हिन्दी साहित्य में वात्सल्य भाव की रचनाओं की कमी है, किन्तु जितनी भी रचनाएँ प्राप्त होती हैं, वे वत्सलता के प्रभावी स्वरूप को प्रकट करती हैं। सूरदास ने शिशु सुलभ भुद्राओं,क्रीड़ाओं को तो अपने काव्य में स्थान दिया ही है साथ ही शिश के स्वभावगत सौन्दर्य को भी अपनी आकर्षक छवियों में प्रस्तुत किया है। शिशु कृष्ण अपने वाक्यचातुर्य से अपने दही खाने वाली बात को काट देते हैं। शिशु सहज विश्वासी होता है। शिशु कृष्ण से यदि माँ ने कह दिया कि गाय का दूध पीने से चोटी बढ़ती है तो कृष्ण खूब दूध पीते हैं और रोज-रोज माँ से पूछते हैं कि चोटी क्यों नहीं बढ़ रही? यहाँ शिशु की अधीरता दिखाई देती है। बच्चों में पारस्परिक चिढ़ाने का भाव है। कृष्ण अपनी माँ से बलराम के चिढ़ाने की शिकायत करते हैं। बाल सुलभ चेष्टाओं में मिट्टी खाने की प्रवृत्ति भी समाहित है। सूरदास ने इस तथ्य का आकर्षक वर्णन अपने पदों में किया है। सूरदास की भाषा में चमत्कृत कर देने वाला प्रवाह इन पदों में उपलब्ध है।

सूर के बालकृष्ण संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

(1) मैया मैं नाहीं दधि खायो।
ख्याल परे ये सखा सबै मिलि, मेरे मुख लपटायो।
देखि तही सीके पर भाजन, ऊँचे धर लटकायो।
तुही निरखि नान्हे कर अपने, मैं कैसे करि पायो।
मुख दधि पोंछि कहत नंदनंदन, दोना पीठि दुरायो।
डारि सॉट मुसुकाई तबहि, गहि सुत को कंठ लगायो।
बाल विनोद मोद मन मोह्यो, भक्ति प्रताप दिखायो।
सूरदास प्रभु जसुमति के सुख, शिव विरंचि बौरायो।

शब्दार्थ :
ख्याल परे = याद आया; लपटायो = लपेट दिया है; भाजन = बर्तन; निरखि = देख; नान्हे = छोटे,कर = हाथ; दोना = पत्तों का बना पात्र; साँटि = पीटने की डंडी; सुत = पुत्र; कंठ = गला; मोद = प्रसन्नता; मोह्यो = मोहित हो गया; विरंचि = ब्रह्माजी।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पद ‘वात्सल्य और स्नेह’ से सूरदास द्वारा रचित ‘सूर के बालकृष्ण’ नामक शीर्षक से उद्धृत किया गया है।

सन्दर्भ :
इसमें बालकृष्ण अपनी माता यशोदा से अपने प्रति की गई दही खाने की शिकायत को नकारते हुए बड़े ही बुद्धिकौशल से बाल सुलभ उत्तर देते हैं।

व्याख्या :
श्रीकृष्ण माता यशोदा से कहते हैं कि, हे माता! मैंने दही नहीं खाया है। मुझे याद आ रहा है कि इन सभी सखाओं ने मिलकर मेरे मुख पर दही लपेट दिया था। तू जानती है कि इतने ऊँचे टँगे हुए छींके पर दही का बर्तन रखा हुआ है। तू देख सकती है कि मेरे छोटे-छोटे हाथ हैं। इन छोटे हाथों से मैं कैसे उस दही के बर्तन को प्राप्त कर सकता हूँ। फिर नन्दकुमार बालकृष्ण ने दोने को पीठ के पीछे छिपाते हुए और मुख पर लगे हुए दही को पोंछते हुए उपर्युक्त बातें कहीं। यहाँ उनकी बाल सुलभ चतुरता का प्रदर्शन किया गया है। उन्हें भान है कि मुख पर लगे हुए दही से और हाथ में लगे दोने से उनकी चोरी पकड़ी जाएगी, अतः मुख को साफ कर लिया और दोने को पीठ के पीछे छुपा लिया।

यशोदा जी सब समझ गईं, लेकिन पीटने वाली लकड़ी को फेंक कर मुस्कराने लगी और मनमोहन बालकृष्ण को अपने गले से लगा लिया। श्रीकृष्ण के बाल विनोद के आनन्द ने माता यशोदा के मन को मोहित कर लिया। यहाँ श्रीकृष्ण के प्रति उनकी भक्ति का प्रताप दर्शाया गया है। सूरदास कहते हैं कि यशोदा जी और बालकृष्ण के सख को देखकर शिव और ब्रह्मा भी विवेक रहित होकर मोहित हो गए। अर्थात् श्रीकृष्ण यशोदा जी को अपनी बाल लीलाओं का जो सुख दे रहे हैं उससे किसी को भी ईर्ष्या हो सकती है और वह भ्रमित हो सकता है। निरंजन निराकार परब्रह्म साकार रूप में आकर यशोदा जी के आँगन में उनके प्रमोद के लिए जो क्रीड़ाएँ कर रहे हैं, ऐसा सुख शिव-विरंचि को भी दुर्लभ है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. बालकृष्ण की बाल सुलभ चतुरता दर्शनीय है।
  2. ब्रजभाषा का प्रयोग।
  3. अनुप्रास अलंकार का प्रयोग।
  4. वात्सल्य रस है।

(2) मैया कबहिं बढ़ेगी चोटी।
किती बार मोहि दूध पिअत भई, यह अजहूँ है छोटी।
तू जो कहति बल की बेनी, ज्यौं, है है लॉबी मोटी।
काढ़त गुहत न्हवावत ओछत, नागिन सी भुइँ लोटी।
काचो दूध पिआवत पचि-पचि देत न माखन रोटी।
सूर श्याम चिरजीवौ दोऊ भैया, हरि हलधर की जोटी।। (2010, 15)

शब्दार्थ :
किती बार = कितनी बार; बल = बलदाऊ; बेनी = चोटी; काढ़त गुहत = काढ़ते में और गुहते में; न्हवावत = नहाने में; ओछत = सुखाने में; पचि-पचि = खूब; हरि हलधर = कृष्ण बलराम; जोटी = जोड़ी।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत पंक्तियों में बालकृष्ण अपनी माता यशोदा से यह शिकायत कर रहे हैं कि उनको कितने ही दिन दूध पीते हो गए, लेकिन उनकी चोटी बड़ी नहीं हुई है।

व्याख्या :
बालकृष्ण यह जानने को उत्सुक हैं कि उनकी चोटी कब बढ़ेगी। उनकी माता उन्हें यह भरोसा दिलाकर दूध पिलाती थीं कि दूध पीने से उनकी चोटी बढ़ जाएगी। वह माता से पूछते हैं कि हे माता मुझे कितनी ही बार (बहुत समय) दूध पीते हुए हो गईं, लेकिन यह चोटी अभी तक छोटी है। तेरे कथनानुसार मेरी चोटी बलदाऊ की चोटी के समान लम्बी और मोटी हो जाएगी, काढ़ते में, गुहते में,नहाते समय और सुखाते समय नागिन के समान लोट जाया करेगी। तू मुझे कच्चा दूध अधिक मात्रा में पिलाती है तथा माखन और रोटी नहीं देती है। माखन और रोटी बालकृष्ण को प्रिय हैं, लेकिन वे नहीं मिलते और चोटी बढ़ने की लालसा से उन्हें गाय का कच्चा दूध पीना पड़ता है। सूरदास कहते हैं कि माता बलाएँ लेने लगी और कहने लगी कि हरि हलधर दोनों भाइयों की जोड़ी चिरंजीव हो।

काव्य सौन्दर्य :

  1. बच्चों को बहाने से दूध पिलाने के तथ्य को उजागर किया गया है।
  2. ब्रजभाषा का सुन्दर प्रयोग हुआ है।
  3. पुनरुक्तिप्रकाश,उपमा अलंकार का प्रयोग।

(3) मैया, मोहिं दाऊ बहुत खिझायो।
मोसों कहत मोल को लीनो, तोहि जसुमति कब जायो।
कहा कहौं यहि रिस के मारे, खेलन हौं नहिं जात।
पुनि-पुनि कहत कौन है माता, को है तुमरो तात।।
गोरे नन्द जसोदा गोरी, तुम कत स्याम सरीर।
चुटकी दै दै हँसत ग्वाल सब, सिखे देत बलवीर।।
तू मोही को मारन सीखी, दाऊ कबहुँ न खीझै।
मोहन को मुख रिस समेत लखि, जसुमति सुनि-सुनि रीझै।।
सुनहु कान्ह बलभद्र चबाई, जनमत ही को धूत।
सुर-श्याम मो गोधन की सौं, हों माता तू पूत।।

शब्दार्थ :
खिझायो = चिढ़ाना; जायो = पैदा किया; लखि = देखकर, रिसके = गुस्से में; तात = पिता; चबाई = चुगलखोर; धूत = धूर्त; सौं = सौगन्ध।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
बलदाऊ और कृष्ण अन्य ग्वाल-बालों के साथ बाहर खेलने जाते हैं तो बलदाऊ भिन्न-भिन्न प्रकार से उन्हें चिढ़ाते हैं। यहाँ यही शिकायत कृष्ण माता यशोदा जी से कर रहे हैं।

व्याख्या:
श्रीकृष्ण अपने बड़े भाई बलभद्र की शिकायत करते हुए अपनी माता से कहते हैं कि हे माता बलभद्र भाई मुझे बहुत चिढ़ाते हैं। मुझसे कहते हैं कि तुझे यशोदा जी ने जन्म नहीं दिया है, तुझे तो किसी से मोल लिया है। मैं क्या बताऊँ इस गुस्से के कारण मैं खेलने भी नहीं जाता। मुझसे बार-बार पूछते हैं कि तेरे माता-पिता कौन हैं। तू नन्द-यशोदा का पुत्र तो हो नहीं सकता क्योंकि तू साँवले रंग का है जबकि नन्द और यशोदा दोनों गोरे हैं। ऐसी मान्यता है कि गोरे माता-पिता की सन्तान भी गोरी होती है। यह तर्क बलदाऊ ने इसलिए दिया ताकि कृष्ण इसको काट न सके। इस बात पर सभी ग्वाल-बाल ताली दे-देकर हँसते हैं।

सभी ग्वाल-बालों को बलदेव सिखा देते हैं और सभी हँसते हैं, तब मैं खीझ कर रह जाता हूँ। तू सिर्फ मुझे ही मारना सीखी है दाऊ से कभी कुछ भी नहीं कहती कृष्ण के गुस्से से भरे मुख को बार-बार देखकर उनकी रिस भरी बातें सुन-सुनकर यशोदा जी अत्यन्त प्रसन्न होती हैं। मोद भरे मुख से यशोदा जी बोलीं, हे कृष्ण! बलदाऊ तो चुगलखोर है और जनम से ही धूर्त है। सूरदास जी कहते हैं, यशोदाजी कहने लगीं-मुझे गोधन (अपनी गायों) की सौगन्ध है,मैं माता हूँ और तू मेरा पुत्र है। इस कथन ने कृष्ण के गुस्से को दूर कर दिया।

काव्य सौन्दर्य :

  1. ब्रजभाषा में अनूठा माधुर्य भर दिया है।
  2. माता और पुत्र के प्रश्नोत्तर तार्किक दृष्टि से उत्तम हैं।
  3. अनुप्रास व पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार का प्रयोग है।

4. मो देखत, जसुमति तेरे ढोटा, अबहिं माटी खाई।
यह सुनिकै रिसि करि उठि धाई, बांह पकरि लै आई।।
इन कर सों भज गहि गाढ़े, करि इक कर लीने सांटी।
मारति हौ तोहिं अबहिं कन्हैया, वेग न उगिलौ माटी॥
ब्रज लरिका सब तेरे आगे, झूठी कहत बनाई।
मेरे कहे नहीं तू मानति, दिखरावौं मुख बाई॥ (2016)

शब्दार्थ :
ढोटा = पुत्र; भुइँ = भूमि; मुख बाई = मुख फैलाकर; गहि गाढ़े = जोर से पकड़कर।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
ग्वाल-बालों ने यशोदा माँ से यह शिकायत की है कि कान्हा ने मिट्टी खाई है। उनका विश्वास कर माँ उसे पकड़ लेती है।

व्याख्या :
कृष्ण के साथ खेलने वाले बालकों ने माता यशोदा से शिकायत की कि कान्हा ने मिट्टी खाई है। यह सुनकर माता को बड़ा क्रोध आया और कृष्ण को बाँह से पकड़ लिया। उनके हाथ से कहीं छूट कर भाग न जाय इसलिए कसकर बाँह पकड़ ली और एक हाथ में मारने के लिए एक डंडी ले ली। माता यशोदा ने कृष्ण से कहा हे कृष्ण ! मैं तुझे अभी मारूँगी नहीं तो जल्दी से मुँह से मिट्टी उगल दो। यह सुनकर बालकृष्ण ने डरते हुए अपनी माँ से कहा-ये सब ब्रज के ग्वाल-वाल तेरे पास आकर मेरी झूठी शिकायत लगाते हैं। मैं जानता हूँ कि तू मेरा कहना तो मानेगी नहीं इसलिए में अपना मुंह खोलकर दिखाता हूँ कि मुँह में माटी कहाँ है।

काव्य सौन्दर्य :

  1. बाल सुलभ चेष्टाओं का सुन्दर वर्णन है।
  2. ब्रजभाषा का सुन्दर प्रयोग किया है।
  3. बच्चों के माटी खाने के तथ्य को उजागर किया गया है।
  4. अनुप्रास अलंकार प्रयुक्त हुआ है।

भाई-बहन भाव सारांश

प्रस्तुत कविता ‘भाई-बहन’ सुप्रसिद्ध कवि ‘गोपाल सिंह नेपाली’ द्वारा रचित है। इसमें कवि ने भाई बहन के प्रेम को राष्ट्रीय प्रेम के परिवेश में व्यक्त किया है।

गोपाल सिंह नेपाली ने राष्ट्रीय चेतना के साथ-साथ जीवन की अनुभूतियों का वर्णन अपनी कविताओं में किया है। प्रस्तुत कविता में भाई-बहिन के प्रेम को राष्ट्र-प्रेम के रूप में व्यक्त किया है। यहाँ भाई अपनी बहन को सम्बोधित कर राष्ट्र की रक्षा हेतु समर्पित होने का आग्रह कर रहा है। इस कविता में अनेक प्रतीकों के माध्यम से राष्ट्र-प्रेम को उजागर किया गया है। बहन की बुद्धि और भाई की क्रियाशीलता मिलकर ही जीवन और राष्ट्र को आनन्दमय बना सकेगी। दोनों मिलकर आजादी के गीत गाकर अपने राष्ट्र के प्रति अपने प्रेम को प्रकट कर सकते हैं। कविता में दिए गए प्रतीक और बिम्ब मौलिक हैं।

भाई-बहन संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

1. तू चिनगारी बनकर उड़ री, जाग-जाग मैं ज्वाल बनें,
तू बन जा हहराती गंगा, मैं झेलम बेहाल बून,
आज बसन्ती चोला तेरा, मैं भी सज लूं लाल बनूँ
तू भगिनी बन क्रान्ति कराली, मैं भाई विकराल बनूँ
यहाँ न कोई राधारानी, वृन्दावन, वंशीवाला;
तू आँगन की ज्योति बहन री, मैं घर का पहरेवाला।

शब्दार्थ :
हहराती गंगा = कलकल ध्वनि करती गंगा; चोला = वेश; भगिनी = बहन; विकराल = भयानक।

सन्दर्भ :
प्रस्तुत पंक्तियाँ ‘वात्सल्य और स्नेह’ पाठ के ‘भाई-बहन’ शीर्षक कविता से ली गई हैं। इसके रचयिता गोपाल सिंह नेपाली हैं।

प्रसंग :
यहाँ पर भाई अपनी बहन से अपने देश की रक्षा के लिए बसन्ती चोला पहनने और अपने हृदय के अन्दर की ज्वाला को जलाए रखने को प्रेरित कर रहा है।

व्याख्या :
कविवर गोपाल सिंह नेपाली कहते हैं कि एक भाई अपनी बहन से देश की रक्षा के लिए जाग्रत रहने का आह्वान कर रहा है। भाई कहता है कि हे बहन! तू चिनगारी बनकर आकाश में उड़ और मैं ज्वाला बनकर देश-रक्षा के लिए जाग्रत रहूँ। तू कल-कल ध्वनि करती हुई गंगा बनकर बह और मैं बेहाल की तरह चलने वाली झेलम नदी बन कर बहूँ तू देश की रक्षा के लिए बसन्ती रंग के वस्त्र पहन ले और मैं भी देश के वीरों के रूप में सज जाऊँ। तू दुश्मन के लिए भयंकर क्रान्ति बन जा और मैं भयानक वीर बन जाऊँ ताकि उसकी दृष्टि हमारे देश पर न पड़े। यहाँ सिर्फ देश की रक्षा का सवाल है, सभी की एकता का प्रश्न है। यहाँ न तो वृन्दावन अलग है,न राधारानी अलग है और न नन्दलाल अलग है। सभी देश की रक्षा के लिए उद्यत हैं। भाई अपनी बहन से कहता है कि वह आँगन की ज्योति बनकर प्रकाश करे और वह घर का पहरेदार बनेगा। हम दोनों अपने प्रेम को देश-प्रेम पर न्यौछावर करते हैं।

काव्य सौन्दर्य :

  1. भाषा साहित्यिक होने के साथ-साथ व्यावहारिक है।
  2. देश-भक्ति का अनूठा समर्पण है।
  3. अनुप्रास अलंकार है।
  4. कविता में मधुरता है।

(2) बहन प्रेम का पुतला हूँ मैं, तू ममता की गोद बनी;
मेरा जीवन क्रीड़ा-कौतुक तू प्रत्यक्ष प्रमोद भरी;
मैं भाई फूलों में भूला, मेरी बहन विनोद बनी;
भाई की गति, मति भगिनी की दोनों मंगल-मोद बनी
यह अपराध कलंक सुशीले, सारे फूल जला देना।
जननी की जंजीर बज रही, चल तबियत बहला देना।

शब्दार्थ :
पुतला = मूर्ति; विनोद = मनोरंजन; प्रमोद = आनन्द; भगिनी = बहन।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
यहाँ पर भाई अपनी बहन को इस बात के लिए प्रेरित करता है कि यदि अपने देश की परतन्त्रता पुकार रही हो तो अपने सारे सुख भुलाकर उसकी रक्षा के लिए तैयार हो जाना।

व्याख्या :
भाई कहता है कि मैं तो प्रेम की मूर्ति बनकर रहा हूँ और तू ममता की गोद बनकर रही है। अर्थात् तूने हर किसी को अपनी ममता की छाँव में बैठाया है। मेरा जीवन क्रीड़ा और कौतूहल बनकर रहा है और तू साक्षात् आनन्दमयी बन कर रही है। मैं अपने जीवन के सुखों में खोया रहा और मेरी बहन मनोरंजन में डूबी रही। भाई की क्रियाशीलता और बहन की बुद्धि दोनों मिलकर आनन्द का साधन बनीं। भाई अपनी बहन को चेतावनी देते हुए कहता है कि हे बहन! हमारे सुख और आनन्द कहीं अपराध और कलंक न बन जायँ, इसलिए सभी सुखों को तिलांजलि देकर भारतमाता की परतन्त्रता की बेड़ियों की आवाज को सुन और चलकर उसे धैर्य दिला कि हम सब मिलकर उसे स्वतन्त्र करेंगे। हम सभी सुखों को अपने देश की रक्षा के लिए अर्पण कर देंगे।

काव्य सौन्दर्य :

  1. अनेक प्रतीकों के माध्यम से कवि ने इस कथ्य को प्रकट किया है।
  2. अनुप्रास अलंकार की छटा दृष्टव्य है।
  3. वीर रस का पुट दिया गया है।

(3) भाई एक लहर बन आया, बहन नदी की धारा है।
संगम है, गंगा उमड़ी है, डूबा कूल-किनारा है;
यह उन्माद बहन को अपना, भाई एक सहारा है;
यह अलमस्ती, एक बहन ही भाई का ध्रुवतारा हैं;
पागल घड़ी, बहन-भाई है, वह आजाद तराना है।
मुसीबतों से बलिदानों से पत्थर को समझाना है। (2009)

शब्दार्थ :
तराना = ताल स्वर; अलमस्त = मतवाला, बेफ्रिक; उन्माद = पागलपन।

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
भाई और बहन एक-दूसरे के सहायक हैं। हर उन्माद में बहन को भाई का ही सहारा है। दोनों मिलकर आजादी के गीत गाकर मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को पूर्ण कर सकते हैं।

व्याख्या :
कवि गोपाल सिंह नेपाली कहते हैं कि यहाँ पर भाई एक लहर के रूप में है, तो बहन नदी की एक धारा है। दोनों साथ-साथ रहकर कल्याण के मार्ग पर चलकर सभी का सहारा बनेंगे। गंगा-यमुना के संगम में पानी की अधिकता होने से कभी बाढ़ जैसी स्थिति हो जाती है और किनारे डूबने लगते हैं। ऐसे पागलपन भरे अवसर पर बहन को भाई का ही एकमात्र सहारा है। बेफिक्री के समय में भी भाई अपनी बहन के लिए ध्रुवतारे की तरह अडिग है। कुछ समय ऐसे आते हैं जब हमें अपने संयम को दृढ़ रखना है। भाई और बहन दोनों मिलकर आजादी के गीत गाकर ही मातृभूमि के प्रति अपने कर्तव्य को पूरा कर सकते हैं। अपनी मुसीबतों को झेलकर और बलिदानों के माध्यम से पत्थर-हृदय देश के दुश्मनों को चेतावनी देते हैं कि हम हर हाल में देश की रक्षा के लिए तत्पर हैं।

काव्य सौन्दर्य :

  1. भाषा सरल और मधुर है।
  2. भाई-बहन का स्नेह देश-प्रेम से मिलकर उदात्त बन गया है।
  3. बिम्ब और प्रतीक नवीन रूप में दर्शाए गए हैं।

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