MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 3 ठेस

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 3 ठेस (कहानी, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’)

ठेस पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

ठेस लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सिरचन कौन-कौन सी वस्तुएँ बनाना जानता था?
उत्तर:
सिरचन मोथी घास और पटेर की रंगीन- शीतलपाटी, बाँस की तीलियों की झिलमिलाती चिक, मोढ़े, पूँज की रस्सी के बड़े-बड़े जाले, ताल के पत्रों की छतरी-टोपी आदि बनाना जानता था।

प्रश्न 2.
बड़ी भाभी ने मानू के संबंध में क्या चेतावनी दी थी?
उत्तर:
बड़ी भाभी ने मानू के संबंध में चेतावनी दी थी कि मानू के साथ मिठाई आए या न आए लेकिन तीन जोड़े फैशनेबिल चिक, पटेर की दो शीतलपाटी अवश्य आनी चाहिए और यदि ये चीजें नहीं आईं तो मानू बैरंग वापस भेज दी जाएगी।

प्रश्न 3.
चाची ने माँ के पास जाकर क्या कहा था?
उत्तर:
चाची ने माँ से पास जाकर कहा कि छोटे आदमी का मुँह भी छोटा होता है। मुँह लगाने से सर पर चढ़ेगा ही। किसी की ससुराल की बात वह क्यों करेगा?

प्रश्न 4.
सिरचन मानू से मिलने रेलवे स्टेशन क्यों गया था? (M.P. 2009)
उत्तर:
सिरचन मानू को बेटी मानता है। वह अपने हाथ से बनी वे चीजें मानू को देने के लिए स्टेशन गया जिन्हें बनाता हुआ आधा-अधूरा छोड़ आया था और मान-मनौती करने पर भी उन्हें पूरा करने नहीं गया था।

ठेस दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
लोगों की सिरचन के प्रति क्या धारणा थी? स्पष्ट कीजिए। (M.P. 2011)
उत्तर:
गाँव के लोगों की सिरचन के प्रति दो तरह की धारणाएँ थीं। पहली-लोग उसे एक कुशल कलाकार मानते हैं जो केवल पारिश्रमिक को ध्यान में रखकर कार्य नहीं करता। उसके जैसा शीतलपाटी, चिक, मोढ़े, जाले और छतरी-टोपी बनाने वाला कारीगर उस गाँव में कोई नहीं है। पहले लोग उसका सम्मान करते हैं। उसे घर बुलाने के लिए खुशामद करते हैं। दूसरी-समय के साथ-साथ सिरचन के प्रति लोगों की धारणा बदल जाती है। अब लोग उसे बेकार ही नहीं, बेगार समझते हैं। उनकी धारणा है कि सिरचन मुफ्तखोर, कामचोर, चटोर होने के साथ-साथ घमंडी और मुँहफट है। लोग उसके काम को बेकार का काम समझते हैं और उसे कोई महत्त्व नहीं देते हैं।

प्रश्न 2.
सिरचन को एक सप्ताह पहले बुलाने का कारण लिखिए।
उत्तर:
मानू पहली बार ससुराल जा रही थी। मानू के पति ने बड़ी भाभी को खत लिखकर चेतावनी दे दी थी कि मानू के साथ मिठाई की पतीली न आये कोई बात नहीं। लेकिन तीन जोड़े फैशनेबिल चिक, पटेर की दो शीतलपाटी अवश्य आनी चाहिए। यदि इनके बिना मानू आई तो बैरंग वापस भेज दी जाएगी। यही कारण था कि सिरचन को एक सप्ताह पहले ही बुलवाकर काम पर लगा दिया गया था।

प्रश्न 3.
मानू ने सिरचन को पान का बीड़ा देते समय क्या सलाह दी थी? (M.P. 2010)
उत्तर:
मानू ने सिरचन को पान का बीड़ा देते समय सलाह दी थी कि सिरचन दादा, कामकाज का घर है। पाँच तरह के लोग पाँच किस्म की बातें करेंगे। तुम किसी की बात पर ध्यान मत दो।

प्रश्न 4.
सिरचन ने मानू को उपहार में क्या दिया था?
उत्तर:
सिरचन ने मानू को उपहार में शीतलपाटी, चिक और कुश की एक जोड़ी आसनी दी थी। इसके साथ उसने मानू को अपने हृदय की ममता का भी उपहार दिया था।

प्रश्न 5.
कहानी का अंत आपको कैसा लगा? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
विद्यार्थी स्वयं करें।

ठेस भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पंक्ति का भाव-विस्तार कीजिए: खाने-पीने में चिकनाई की कमी हुई कि काम की सारी चिकनाई खत्म।
उत्तर:
खाने-पीने के शौकीन व्यक्ति को स्वादिष्ट भोजन चाहिए। उसके भोजन में पर्याप्त मात्रा में घी-तेल होना चाहिए। सिरचन एक ऐसा ही प्रसिद्ध एवं सिद्धहस्त ग्रामीण कलाकार है। उसके मन में धन के प्रति आसक्ति नहीं है, परंतु यदि उसे स्वादिष्ट भोजन उपलब्ध न हो तो वह कार्य नहीं करता। मनोनुकूल भोजन न मिलने पर उसके काम में कला की सारी बारीकियाँ समाप्त हो जाती हैं। ऐसी स्थिति में वह मन लगाकर कार्य नहीं करता अथवा कोई न कोई बहाना बनाकर कार्य को अधूरा छोड़कर चला जाता है।

ठेस भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
दिए गए शब्दों में से तत्सम, तद्भव, देशज, विदेशी (आगत) शब्दों को छाँटकर पृथक-पृथक लिखिए –
इलाका, किसान, फैशनेबिल, प्रबंध, खुशामद, अफ़सर, खेत, पनियाई, जतन।
उत्तर:

  • तत्सम शब्द – प्रबंध
  • तद्भव शब्द – किसान, खेत
  • देशज शब्द – पनियाई, जतन
  • विदेशी शब्द – इलाका, फैशनेबिल, अफसर, खुशामद

प्रश्न 2.
नीचे कुछ शब्द दिए जा रहे हैं, इनका समास-विग्रह करते हुए समास का नाम भी बताइए –
खेत-खलिहान, यथास्थिति, दशानन, राजपुत्र।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 3 ठेस img-1
प्रश्न 3.
दिए गए मुहावरों का अर्थ स्पष्ट करते हुए उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
दुम हिलाना, मुँह लटकाना, कान पकड़ना, फूट-फूटकर रोना।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 3 ठेस img-2

ठेस योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
आप अपने गाँव. या क्षेत्र के किसी निपुण कारीगर के बारे में जानते हो। उसके संबंध में लिखिए।
उत्तर:
हमारे गाँव में प्रभातीलाल कुम्हार एक निपुण कारीगर है। बहे अत्यन्त ही सरल एवं सहज स्वभाव का व्यक्ति है। सभी लोग उसके काम एवं व्यवहार की बड़ी तारीफ करते हैं। वह मिट्टी के ऐसे सुंदर खिलौने बनाता है कि उन्हें देखकर लगता है कि अभी बोल पड़ेंगे। दुर्गा-पूजा और दीपावली पर तो उसकी दुकान पर खरीददारों की भीड़ लगी रहती है। दूर-दूर से लोग दुर्गा-पूजा के लिए माँ दुर्गा की प्रतिमाएँ बनवाने के लिए उसके पास आते हैं।

वह विभिन्न आकार और रूप-रंग की साकार प्रतीत होने वाली प्रतिमाएँ बनाने की कला में कुशल है। इतना ही नहीं, वह घर की सजावट के लिए आकर्षक फूलदान, फूल, मुखौटे, जालियाँ भी बनाप्ता है। मटके और सुराहियाँ तो इतनी फैशनेबिल और रंगीन होती हैं कि खरीदने को मन ललचा उठता है।

प्रश्न 2.
अपनी रुचि के अनुसार चित्रकला, हस्तकला, मूर्तिकला आदि से संबंधित सामग्री का निर्माण कर प्रदर्शित करें।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 3.
अपने क्षेत्र की लोककला की जानकारी प्राप्त कर कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर:
छात्र अपने माता-पिता अथवा भाषा-अध्यापक से स्वयं जानकारी प्राप्त करें।

ठेस परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
‘ठेस’ कहानी के कहानीकार हैं –
(क) फणीश्वरनाथ ‘रेणु’
(ख) प्रेमचंद
(ग) जयशंकर प्रसाद
(घ) जैनेंद्र कुमार
उत्तर:
(क) फणीश्वरनाथ ‘रेणु’।

प्रश्न 2.
बड़े लोगों की बस…….होती है –
(क) हवेली ही बड़ी
(ख) बात ही बड़ी
(ग) धमकियाँ ही बड़ी
(घ) डींगें ही बड़ी
उत्तर:
(ख) बात ही बड़ी।

प्रश्न 3.
सिरचन के किसी दिन आकर पूरा कर दूंगा में किसी दिन’ का अर्थ है –
(क) दो-चार दिन बाद
(ख) जब मौका मिलेगा
(ग) कभी नहीं
(घ) इनमें से कोई नहीं
उत्तर:
(ग) कभी नहीं।

प्रश्न 4.
‘आज तो अधकपाली दर्द से माथा टनटना रहा है’ में ‘अधकपाली’ का अर्थ है –
(क) आधा सरदर्द
(ख) आधा पैर दर्द
(ग) आधा हाथ दर्द
(घ) अधपका खाने का दर्द
उत्तर:
(क) आधा सरदर्द

प्रश्न 5.
सिरचन जब काम में मगन रहता है तो उसकी………निकल आती है।
(क) लार जरा बाहर
(ख) जीभ जरा बाहर
(ग) आँखें जरा बाहर
(घ) आँखें, जीभ बाहर
उत्तर:
(ख) जीभ जरा बाहर।

प्रश्न 6.
सिरचन जब काम करता था दब –
(क) उसका लार जहर बाहर निकल जाता था।
(ख) उसकी जीभ जरा बाहर निकल जाती थी।
(ग) उसकी आँखें जरा बाहर निकल जाती थीं।
(घ) उसके होठ जरा बाहर निकल जाते थे।
उत्तर:
(ख) उसकी जीभ जरा बाहर निकल जाती थी।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर करें –

  1. ‘ठेस’ कहानी के लेखक हैं ……..। (गुलाबराय फणीश्वरनाथ ‘रेणु’)
  2. फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ ……. उपन्यासकार हैं। (जासूसी आंचलिक)
  3. ‘ठेस’ कहानी ……. पर केन्द्रित है। (स्वाभिमान/अहंकार)
  4. ‘टेस’ कहानी का नायक ………. है। (पंचानंद चौधरी सिरचन)
  5. सिरचन ने ………. को उपहार दिया था। (चाची/मानू)

उत्तर:

  1. फणीश्वरनाथ ‘रेणु’
  2. आंचलिक
  3. स्वाभिमान
  4. सिरचन
  5. मानू।

III. निम्नलिखित कथनों में सत्य/असत्य छाँटिए- (M.P. 2010-2011)

  1. ‘ठेस’ एक निबन्ध है।
  2. ‘ठेस’ कहानी शहरी जीवन की है।
  3. सिरचन ने मानू को उपहार में शीतलपाटी, चिक और कुश की एक जोड़ी आसनी दी थी।
  4. सिरचन एक स्वाभिमान कलाकार है।
  5. मोहर छाप वाली धोती आठ रुपये में आती है।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. सत्य।

IV. निम्नलिखित के सही नोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 3 ठेस img-3
उत्तर:

(i) (घ)
(ii) (ग)
(iii) (क)
(iv) (ङ)
(v) (ख)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

  1. सिरचन मान से मिलने रेलवे स्टेशन क्यों गया था?
  2. सिरचन कौन था?
  3. “ठहरो! मैं माँ से जाकर कहती है। इतनी बड़ी बात।” यहकसने कहा?
  4. “यह तुम्हारी माँ ही कर सकती हबबुनी।” यह कथन किसका है?
  5. सिरचन ने किसको तिरस्कृत किया?

उत्तर:

  1. अपने हाथ से बनी चीजें देने के लिए।
  2. सिरचन एक ग्रामीण कलाकार था।
  3. भज्जू महाजन की बेटी ने।
  4. सिरचन ने।
  5. भज्जू महाजन की पत्नी को।

ठेस लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘ठेस’ कहानी का नायक कौन है?
उत्तर:
‘ठेस’ कहानी का नायक सिरचन है।

प्रश्न 2.
सिरचन का चरित्र कहानी में किस बात को उजागर करता है?
उत्तर:
सिरचन का चरित्र ग्रामीण कलाकार के आत्मसम्मान को उजागर करता है।

प्रश्न 3.
सिरचन गाँववालों से किस व्यवहार की अपेक्षा करता है?
उत्तर:
सिरचन गाँववालों से सहज और आत्मीय व्यवहार की अपेक्षा करता है।

प्रश्न 4.
सिरचन ने गाँव टोली के पंचानंद चौधरी के छोटे लड़के को कैसे बेपानी कर दिया था?
उत्तर:
सिरचन ने लेखक के सामने ही चौधरी के लड़के को यह कहकर बेपानी कर दिया कि तुम्हारी भाभी कंजूसी से तरकारी परोसती है और इमली की कढ़ी तो उसकी (सिरचन की) घरवाली बनाती है।

प्रश्न 5.
लेखक के परिवार के साथ सिरचन का व्यवहार किस प्रकार अलग होता था?
उत्तर:
सिरचन स्वादिष्ट खाने का शौकीन था। वह जहाँ भी काम करने जाता, खाने की लालसा जरूर रखता पर वह लेखक के परिवार में काम करते समय कभी पूजा-भोग की बात नहीं करता था।

प्रश्न 6.
सिरचन क्या-क्या बनाता था? (M.P.2011)
उत्तर:
सिरचन शीतलपाटी, चिक, मोढ़े, जमले, छतरी और टोप बनाता था।

प्रश्न 7.
बड़ी भाभी ने मानू के संबंध में क्या चेतावनी दी धी?
उत्तर:
बड़ी भाभी ने तीन जोड़े फैशनेबल चिक और पटेर की दो शीतलपाटियों को मानू के दूल्हे के लिए भेजे जाने संबंधी चेतावनी दी थी।

ठेस दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सिरचन की तीन चारित्रक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
कुशल कारीगर:
सिरचन अपने इलाके का एक निपुण कारीगर है। उसके जैसी मोथी घास और पटेर की शीतलपाटी, बाँस की तीलियों की झिलमिलाती चिक, सतरंगे डोरे के मोढ़े, मूंज की रस्सी के बड़े-बड़े जाले, ताल के सूखे पत्तों की छतरी-टोपी कोई नहीं बना सकता। वह एक प्रतिभाशाली कलाकार है।

स्वाभिमानी;
सिरचन एक स्वाभिमानी कलाकार है। वह गरीब भले ही हो, लेकिन किसी का तिरस्कार सहन नहीं कर सकता। अपमानित होने की अपेक्षा वह भूखा रहना पसंद करता है। वह लेखक की मँझली भाभी और मानू की चाची के द्वारा तिरस्कृत होने पर काम अधूरा छोड़कर चला जाता है।

स्वादिष्ट भोजन का शौकीन:
सिरचन स्वादिष्ट भोजन का शौकीन है। यदि उसे स्वादिष्ट भोजन न मिले तो वह काम नहीं करता। उसे तली, बघारी तरकारी, दही की कढ़ी, मलाई वाला दूध पसंद है। मनोनकूल भोजन न मिलने पर वह कोई न कोई बहाना बनाकर खिसक जाता है। इसीलिए लोग उसे चटोर भी कहते हैं।

प्रश्न 2.
सिरचन मानू के घर से काम छोड़कर क्यों चला जाता है?
उत्तर:
सिरचन जिसके घर काम करता है, उनसे सहज और आत्मीय व्यवहार की अपेक्षा करता है। जब सिरचन मानू के घर में काम कर रहा है तो उसकी मँझली भाभी तथा उसकी चाची उसे तिरस्कृत और अपमानित करती हैं। वह मानू के घर से काम छोड़कर चला जाता है। दूसरे वह स्वयं को मानू की हवेली में सर्वाधिक सम्मानित अनुभव करता था क्योंकि वहाँ उसकी कारीगरी का सम्मान होता था, परंतु अब उसे वहाँ भी तिरस्कृत और अपमानित किया गया है इस कारण उसके हृदय को ठेस पहुँचती है और वह काम अधूरा छोड़कर चला जाता है।

प्रश्न 3.
‘ठेस’ कहानी का उद्देश्य संक्षेप में स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘ठेस’ कहानी का उद्देश्य एक ग्रामीण कलाकार के स्वाभिमान और आत्मगौरव को प्रकट करना है। कलाकार दूसरों से सम्मान प्राप्त करने का आकांक्षी होता है। उसे जब सम्मान की जगह तिरस्कार और अपमान प्राप्त होता है तो उसके संवेदनशील कोमल हृदय को ठेस पहुंचती है। यही ठेस उसे भविष्य में काम न करने का कठोर निर्णय लेने पर विवश करती है।

प्रश्न 4.
सिरचन को गाँववाले चटोरा क्यों समझते थे?
उत्तर:
सिरचन को गाँववाले चटोरा समझते थे। ऐसा इसलिए कि उसे खाने को दही की कढ़ी, मलाई वाला दूध जरूर चाहिए, इसके बिना उसका मन काम में नहीं लगता था।

प्रश्न 5.
सिरचन को लोग बेकार ही नहीं, अपितु बेगार क्यों समझते थे?
उत्तर:
जब दूसरे मजदूर खेत पर पहुँचकर एक तिहाई काम कर चुके होते थे, तब वह हाथ में खुरपी डुलाता हुआ दिखाई देता। फिर पगडंडी पर तौल-तौलकर कदम रखता हुआ धीरे-धीरे काम पर आता था। इसीलिए सिरचन को लोग बेकार ही नहीं अपितु बेगार भी समझते थे।

ठेस लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय:
आंचलिक कथाकार फणीश्वरनाथ रेणु का जन्म बिहार के पूर्णियाँ जिले के औराही हिंगना गाँव में 4 मार्च, 1921 ई० को हुआ था। इनकी विद्यालयी शिक्षा इंटरमीडिएट तक ही हो पाई। आपने उच्च शिक्षा के लिए विश्वविद्यालय में प्रवेश तो लिया, लेकिन महात्मा गाँधी के आह्वान पर पढ़ाई छोड़कर स्वतंत्रता आंदोलन में कूद पड़े। आपने सन् 1942 ई० के भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय भाग लिया लेकिन 1952 में राजनीति को छोड़कर पूरी तर पे साहित्य-सेवा में जुट गए। सन् 1970 ई० में आपको ‘पद्मश्री’ से सम्मानित किया गया। रेणुजी जीवन के अंतिम समय तक साहित्य सेवा करते रहे। 11 अप्रैल, 1977 ई० को इनका देहांत हो गया।

साहित्यिक विशेषताएँ:
हिंदी साहित्य जगत् में ‘रेणुजी’ आंचलिक उपन्यास के जनक माने जाते हैं। उन्होंने कथाकार के साथ-साथ रिपोर्ताज लेखक के रूप में भी ख्याति प्राप्त की। उनका जीवन उतार-चढ़ाव व संघर्ष से भरा था। उनके रचनात्मक साहित्य ने देश की राजनीति को भी प्रभावित किया। सन् 1954 में इनका बहुचर्चित आंचलिक उपन्यास मैला आँचल प्रकाशित हुआ जिसने हिंदी उपन्यास को एक नई दिशा दी। हिंदी जगत् में आंचलिक उपन्यासों का प्रारंभ मैला आँचल से ही हुआ। आंचलिकता की इस अवधारणा ने उपन्यासों और कथा-साहित्य में गाँव की भाषा-संस्कृति और वहाँ के लोकजीवन को केंद्र में ला खड़ा किया।

लोकगीत, लोकसंस्कृति, लोकभाषा लोकनायक की इस अवधारणा ने भारी-भरकम चीज़ एवं नायक की जगह अंचल को ही नायक बना डाला। उनकी रचनाओं में अंचल कच्चे और अनगढ़ रूप में ही आता है इसलिए उनका यह अंचल एक त शस्य-श्यामल है तो दूसरी तरफ धूलभरा और मैला भी।.स्वातंत्र्योत्तर भारत में जब सारा चिकास शहर केंद्रित होता जा रहा था, ऐसे में रेणुजी ने अपनी रचनाओं से अंचल की समस्याओं की ओर भी लोगों का ध्यान खींचा। उनकी रचनाएँ इस अवधारणा को भी पुष्ट करती हैं कि भाषा की सार्थकता वोली के साहचर्य में ही है।

रचनाएँ:
फणीश्वरनाथ ‘रेणु जी’ की लेखनी उपन्यास, कहानी, संस्मरण और रिपोर्ताज आदि निकले हैं। उन्होंने अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य को नई दिशा दी है।

  • उपन्यास – मैला आँचल, परती परिकथा, दीर्घतपा, कितने चौराहे।
  • कहानी-संग्रह – ठुमरी, अग्निखोर, आदिम रात्रि की महक, एक श्रावणी दोपहरीकी धूप।
  • संस्मरण – ऋणजल धनजल, वन तुलसी की गंध, श्रुत अश्रुत पूर्व।
  • रिपोर्ताज – नेपाली क्रांति कथा।

इनके नाम से ‘रेणु रचनावली’ भी पाँच भागों में प्रकाशित हो चुकी है जिसमें इनका सारा साहित्य समाहित किया गया है।

भाषा-शैली:
रेणुजी की भाषा आंचलिक है। उनकी भाषा में आंचलिक शब्दों के साथ अंग्रेजी, अरबी, फारसी आदि शब्दों का प्रयोग हुआ है। भाषा में मुहावरों, लोकोक्तियों और सूक्तियों का पर्याप्त मात्रा में प्रयोग हुआ है। भाषा में सर्वत्र प्रवाह है। इनके साहित्य में मानव जीवन की स्थानीय वैयक्तिकता विशिष्ट रूप से उभरी है।

महत्त्व:
हिंदी साहित्य में ‘रेणुजी’ को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। उन्हें हिंदी साहित्य में आंचलिक उपन्यास व कहानियों का जनक माना जाता है। वे एक सशक्त और परिपक्व गद्यकार के साथ-साथ आंचलिक कथाकार और रिपोर्ताज लेखक के रूप में भी जाने जाते हैं।

ठेस का पाठ सारांश

प्रश्न 2.
फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ की कहानी का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
फणीश्वरनाथ रेणु’ द्वारा लिखित कहानी ‘ठेस’ गाँव के एक कलाकार के स्वाभिमान पर केंद्रित है। गाँव में सिरचन (श्री चंद्र) को सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता। वह बहुत आलसी है इसलिए कोई किसान उसे अपने खेत में मजदूरी के लिए नहीं बुलाना चाहता है। सिरचन को गाँव में ‘कामचोर’ और ‘चटोर’ दोनों कहा जाता है। कुछ समय पहले उसकी ऐसी स्थिति न थी। गाँव में उसे सम्मान की दृष्टि से देखा जाता था।

बाबू लोग सिरचन की खुशामद किया करते थे। सिरचन उच्च कोटि का कारीगर था। वह मनोनुकूल भोजन पाकर लोगों को विभिन्न प्रकार की चीजें बनाकर दिया करता था। उसमें स्वाभिमान भी कूट-कूटकर भरा था। एक बार पंचानन चौधरी के लड़के को अपमानित करते हुए उसने कहा था- ‘तुम्हारी भाभी नाखून से खाँटकर तरकारी परोसती है और इमली का रस डालकर कढ़ी तो हम कहार-कुम्हारों की घरवाली बनाती हैं, तुम्हारी भाभी ने कहाँ सीखा?’

सिरचन अपनी कला में अत्यंत निपुण है। वह धीरे-धीरे कार्य करता परंतु कार्य करते समय वह अत्यंत तन्मय हो जाता है। वह एक-एक मोथी और पटरे को हाथ में लेकर बड़े जतन से उसकी कुच्ची बनाता। फिर कुच्चियों को रंगने से लेकर सुतली सुलझाने में पूरा दिन लगाता है। काम करते समय उसकी तन्मयता में जरा भी बाधा पड़ी तो वह गेहुँअन साँप की तरह फुफकार उठता है।

सिरचन को गाँव में ‘चटोर माना जाता है। यदि व्यक्ति उसे काम पर बुलाना चाहता है तो उसे तली हुई तरकारी, दही की कढ़ी, मलाई वाला दूध आदि का प्रबंध पहले करना पड़ता है। सिरदन को यदि मनोनुकूल भोजन नहीं मिलता तो वह कोई-न-कोई बहाना बनाकर कार्य को अधूरा छोड़ देता है। सिरचन ‘मोथी घास और पटरे की रंगीन शीतलपाटी, बाँस की तीलियों की झिलमिलाती चिक, सतरंग डोर के मोढ़े’ आदि बनाने में अत्यंत कुशल है। मानू की माँ ने सिरचन को चिक और शीतलपाटी बनाने के लिए कहा। सिरचन ने चिक बनाने का कार्य प्रारंभ किया। ‘रंगीन सुतलियों में झब्बे डालकर वह चिक बनने बैठा। डेढ के हाथ की बिनाई देखकर ही लोग समझ गए कि इस बार एकदम नए फैशन की चीज बन रही है, जो पहले कभी नहीं बनी।

सिरचन में मानू के प्रति ममत्व की भावना है। सिरचन चिक बुनने में अपनी संपूर्ण क्षमता का प्रयोग कर रहा था। वह जब काम में लीन होता तो इसे खाने-पीने की सुधि नहीं रहती। वह चिक में सुतली के फंदे डाल रहा था कि उसकी दृष्टि पास पड़े सूप की ओर गई। सूप में चिउरा और गुड़ का एक सूखा ढेला पड़ा था। मानू की माँ को पता लगा तो उसने अपनी मँझली बहू को कहा कि उसने सिरचन को ‘बँदिया’ क्यों नहीं दी? मँझली बह ने क्रोध में मुट्ठी-भर ‘बुंदिया’ सूप में फेंकी और चली गई। सिरचन मँझली बहू के इस व्यवहार से. अपने को अपमानित महसूस किया। उसके लिए यह अपमान हो गया।

उसने कहा- “मँझली बहूरानी अपने मैके से आई हुई मिठाई भी इसी तरह हाथ खोलकर बाँटती हैं क्या?” मँझली भाभी सिरचन की बात सुनकर रोने लगी। मानू की माँ ने सिरचन से कहा कि उसे बहुओं का अपमान करने का अधिकार नहीं है। सिरचन को बुरा लगा। मानू पान सजाकर बैठकखाने में भेज रही थी। उसने पान का एक बीड़ा सिरचन को देते हुए कहा कि उसे छोटी बातों पर नाराज नहीं होना चाहिए। सिरचन को मानू की चाची ने पान खाते देखा तो विस्मित हो गई। सिरचन चाची को अपनी ओर अचरज से घूरते देखकर कहा- ‘छोटी चाची, जरा अपनी डिबिया, का गमकौआ जर्दा तो खिलाना।’ छोटी चाची, जरा भड़क उठी। उसने सिरका को बुरी तरह से अपमानित किया।

सिरचन कुछ क्षणों तक चुपचाप बैठा रहा फिर वह कार्य को अधूरा छोड़कर चला गया। मानू का मन व्यथा से भर उठा। अधूरी चिक के सातों तारे फीके पड़ गए। माँ ने उसे धैर्य बँधाते हुए कहा कि वह उसे मेले से चिक खरीदकर भेज देगी। मानू का भाई सिरचन को मनाने उसके घर गया तो वह एक फटी हुई शीतलपाटी पर लेटकर कुछ सोच रहा था। उसने काम करने के लिए इनकार करते हुए कहा-“बबुआ जी! अब नहीं। कान पकड़ता हूँ, अब नहीं। मोहर छाप वाली धोती लेकर क्या करूँगा? कौन पहनेगा? ससुरी खुद मेरे, बेटे-बेटियों को ले गई अपने साथ बबुआ जी, मेरी घरवाली जिन्दा रहती तो मैं ऐसी दुर्दशा भोगता? यह शीतलपाटी उसी की बुनी हुई है।

इस शीतलपाटी को छूकर कहता हूँ, अब यह काम नहीं करूँगा।” गाँव-भर में केवल मानू की माँ का घर ही तो बचा था जहाँ उसे सम्मान मिलता था। लेकिन अब वहाँ भी उसका अपमान हो गया। अपमानित सिरचन ने चिक और शीतलपाटी बुनना स्वीकार नहीं किया। मानू का भाई जब उसे ससुराल पहुँचाने जा रहा था तो स्टेशन पर उसकी दृष्टि प्लेटफार्म पर दौड़ते सिरचन पर पड़ी। उसकी पीठ पर बोझ लदा था। उसने हकलाते हुए कहा कि वह मानू दीदी के लिए चिक, शीतलपाटी और एक जोड़ी कुश की आसनी लेकर आया है। मानू उसे दाम निकालकर देने लगी तो उसने इनकार कर दिया। मानू फूट-फूटकर रोने लगी। सिरचन ने चिक और शीतलपाटी को बुनने में अपनी कला का अद्भुत चमत्कार . प्रदर्शित किया था।

ठेस संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
खेती-बारी के समय गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते। लोग उसे बेकार ही नहीं, ‘बेगार’ समझते हैं। इसलिए खेत-खलिहान की मजदूरी के लिए कोई नहीं बुलाने जाता है सिरचन को। क्या होगा उसको बुलाकर । दूसरे मजदूर खेत पर पहुंचकर एक तिहाई काम कर चुकेंगे, तब कहीं सिरचनराय हाथ में खुरपी डुलाता हुआ दिखाई पड़ेगा-पगडंगी पर तौल-तौलकर पाँव रखता हुआ, धीरे-धीरे। मुफ्त में मजदूरी देनी हो तो और बात है।

आज सिरचन को मुफ्तखोर, कामचोर या चटोर कह ले कोई एक समय था, जब उसकी मडैया के पास बड़े-बड़े लोगों की सवारियाँ बँधी रहती थीं। उसे लोग पूछते ही नहीं थे, उसकी खुशामद भी करते थे-अरे, सिरचन भाई! अब तो तुम्हारे ही हाथ में यह कारीगरी रह गई है सारे इलाके में। एक दिन भी समय निकालकर चलो। कल बड़े भैया की चिट्ठी आई है शहर से-सिरचन से एक जोड़ा चिक बनवाकर भेज दो। (Page 10)

शब्दार्थ:

  • बेकार – बेरोज़गार, व्यर्थ।
  • बेगार – बिना मजदूरी के परिश्रम कराना।
  • मुफ्तखोर – मुफ्त में खाने वाला।
  • कामचोर – काम से मन चुराने वाला।
  • चटोर – चाटने वाला, स्वादी।
  • खुशामद – चापलूसी।
  • चिक – बाँस की तीलियों से बना पर्दा।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश आंचलिक कथाकार फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा लिखित कहानी ‘ठेस’ से लिया गया है। सिरचन एक ग्रामीण कलाकार हैं परंतु समय परिवर्तन . के साथ उसके जीवन में बदलाव आता है। पहले उसे सम्मान की दृष्टि से देखा जाता है लेकिन अब उसे कोई पूछता तक नहीं है। लेखक सिरचन के जीवने में आए बदलाव पर प्रकाश डालते हुए कहता है..व्याख्या-खेत जोतने-बोने के काम के समय गाँव के किसान सिरचन की गिनती नहीं करते हैं अर्थात् उसे कृषि-कर्म के समय कोई नहीं पूछता। वह बेकार ही नहीं, बेगार भी समझा जाता है। खेत-खलिहान में मजदूरी करने के लिए कोई बुलाने नहीं जाता।

लेखक सिरचन को, मजदूरी के लिए न बुलाने के कारणों को स्पष्ट करता हुआ कहता है कि लोग समझते हैं कि उसे मजदूरी करने के लिए बुलाकर क्या होगा? अर्थात् उसे बुला भी लिया तो वह कुछ नहीं करेगा। जब तक दूसरे कृषि श्रमिक खेत पर पहुंचकर एक-तिहाई काम समाप्त कर चुके होंगे, तब कहीं सिरचन हाथ में खुरपी इधर-उधर हिलाता पगडंडी पर धीरे-धीरे जमा-जमा कर पैर रखते हुए आता दिखाई देगा। अर्थात् सिरचन खेत पर देर से पहुँचेगा और इसलिए ज्यादा काम नहीं कर पाएगा। यदि बिना काम करवाए ही मजदूरी देनी हो तो अलग बात है।

दूसरे शब्दों में, सिरचन को खेती के काम के लिए बुलाना बेकार में मजदूरी देने के समान आज गाँव के लोग सिरचन को मुफ्त में खाने वाला, काम से जी चुराने वाला या चटोर भले ही कह लें, परंतु उसके जीवन में एक समय ऐसा भी था, जब उसकी झोंपड़ी के पास गाँव के बड़े-बड़े सेठ-साहूकार, जमींदार आदि लोगों की सवारियाँ बँधी रहती थीं। उसे लोग पूछते ही नहीं थे, अपितु उसकी चापलूसी भी करते थे और कहते थे कि अरे, सिरचन भाई! अब तो इस क्षेत्र में केवल तुम्हारे हाथों में ही यह हुनर रह गया है। एक दिन समय निकालकर हमारे साथ भी घर चलो। कल बड़े भाई साहब का शहर से पत्र आया है कि सिरचन से एक जोड़ा बाँस की तीलियों से बना पर्दा भिजवा दो।

विशेष:

  1. लेखक ने एक ग्रामीण कलाकार के जीवन में आए उतार-चढ़ाव का वर्णन किया गया है। पहले सिरवन की गाँव में पूछ थी और आज उसे कोई मजदूरी तक के लिए नहीं बुलाता है।
  2. भाषा अरबी, फारसी और आंचलिक शब्दों से युक्त है।
  3. शैली वर्णनात्मक है।
  4. मुहावरों के प्रयोग से कथन ज्यादा सटीक लगने लगे हैं।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
गाँव के लोग सिरचन के संबंध में क्या सोचते हैं?
उत्तर:
गाँव के लोग सिरचन को कामचोर समझते हैं।

प्रश्न (ii)
सिरचन और दूसरे मजदूरों में क्या अंतर है?
उत्तर:
दूसरे मजदूर सिरचन से पहले काम पर पहुँचकर अपना एक तिहाई काम समाप्त कर लेते थे जबकि सिरचन अपना काम शुरू भी नहीं किया होता।

प्रश्न (iii)
पहले लोग सिरचन की खुशामद कैसे करते थे?
उत्तर:
सिरचन भाई! इस इलाके में अब तो तुम्हारे ही हाथ में कारीगरी रह गई है। एक दिन समय निकालकर चलो।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
किसकी मडैया के पास बड़े-बड़े लोगों की सवारियाँ बँधी रहती थीं और क्यों?
उत्तर:
सिरचन की मडैया के पास बड़े-बड़े लोगों की सवारियाँ बँधी रहती थीं . क्योंकि वह चिक बनाने का कुशल कारीगर था।

प्रश्न (ii)
‘मुफ्त में मजदूरी देनी हो तो और बात है।’ इससे सिरचन के चरित्र की कौन-सी विशेषता उजागर होती है?
उत्तर:
इससे सिरचन के चरित्र की काम से जी चुराने वाली विशेषता उजागर होती है।

प्रश्न (iii)
पहले लोग सिरचन को क्यों पूछते थे?
उत्तर:
सिरचन गाँव का एक कुशल कारीगर था। वह बाँस की तीलियों से बड़े सुंदर पर्दे बनाता था इसलिए लोग उसे पूछते थे।

प्रश्न 2.
सिरचन को लोग चटोर भी समझते हैं…..तली-बघारी हुई तरकारी, दही की कढ़ी, मलाई वाला दूध, इन सबका प्रबंध पहले कर लो, तब सिरचन को बुलाओ, दुम हिलाता हुआ हाजिर हो जाएगा। खाने-पीने में चिकनाई की कमी हुई कि काम की सारी चिकनाई खत्म? काम अधूरा रखकर उठ खड़ा होगा-आज तो अब अधकपाली दर्द से माथा टनटना रहा है। थोड़ा-सा रह गया है, किसी दिन आकर पूरा कर दूंगा।

‘किसी दिन’ माने कभी नहीं? मोथी घास और पटेर की रंगीन शीतलपाटी, बाँस की तीलियों की झिलमिलाती चिक, सतरंगे डोरे के मोढ़े, भूसी-चुन्नी रखने के लिए मूंज की रस्सी के बड़े-बड़े जाले, हलवाहों के लिए ताल के सूखे पत्रों की छतरी-टोपी तथा इसी तरह के बहुत काम हैं, जिन्हें सिरचन के सिवा गाँव में और कोई नहीं जानता। यह दूसरी बात है कि अब गाँव में ऐसे कामों को बेकाम का काम समझते हैं लोग-बेकाम का काम, किसकी मजदूरी में अनाज यो पैसा देने की कोई ज़रूरत नहीं। पेट-भर खिला दो, काम पूरा होने पर एकाध पुराना-धुराना कपड़ा देकर बिदा करो। (Page 11)

शब्दार्थ:

  • चटोर – चटपटा खाने का शौकीन।
  • बधारी – छौंक लगाई हुई।
  • तरकारी – सब्जी।
  • दुम हिलाना – दीन बनकर प्रसन्न करने का यत्न करना।
  • हाजिर – उपस्थित।
  • अधकपाली – आधा सरदर्द।
  • माथा टनटनाना – सरदर्द होना।
  • बेकाम – बेकार का काम।
  • पटेर – सरकंडे की जाति की एक पानी की घास।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा लिखित कहानी ‘ठेस’ से लिया गया है। लेखक कथानक सिरचन की आदतों और उसकी कारीगरी पर प्रकाश डालते हुए कहता है –

व्याख्या:
गाँव के लोग सिरचन को चटोस समझते हैं। उसे खाने में स्वादिष्ट वस्तुएँ चाहिए। घर में सिरचन को काम पर बुलाने से पहले घी में तली हुई और छौंकी हुई सब्जी, दही से बनी कढ़ी, मलाईवाले दूध आदि का इंतजाम कर लो, तब सिरचन को घर में काम के लिए बुलवाओ। सिरचन को ये सब वस्तुएँ पसंद हैं। इन वस्तुओं के प्रबंध का हवाला देकर, उसे बुलाओ तो वह खुशी-खुशी काम परु उपस्थित हो जाएगा।

यदि उसके खाने-पीने की चीज़ों में घी कम हुआ तो उसके काम में जो बारीकियाँ और सुंदरता होती हैं, वह सब समाप्त हो जाएँगी। अर्थात् वह मन लगाकर अच्छा काम नहीं करेगा। काम अपूर्ण छोड़कर उठ जाएगा और कहेगा, आज सरदर्द हो रहा है और दर्द के मारे माथा फटा जा रहा है। थोड़ा-सा काम अधूरा रह गया है। किसी दिन आकर पूरा कर दूंगा। उसके ‘किसी दिन’ कहने का अर्थ होता है, वह काम कभी पूरा नहीं होगा। उसका ‘किसी.दिन’ कभी नहीं आता। अधूरा काम, अधूरा ही पड़ा रहेगा।

सिरचन गाँव का एक कुशल कारीगर हैरिसे मोथी घास पर पटेर की रंगीन शीतलपाटी, बाँस की बारीक तीलियों का रंगीन झिलमिलाता पर्दा, सात रंग के डोरे (मोटे धागे) से मोढ़े बनाना, भूसी और चुन्नी रखने के लिए मूंज की रस्सी के बड़े-बड़े जाल, हल चलाने वालों के लिए ताल के सूखे पत्तों से छतरी-टोपी बनाना आदि इस प्रकार के बहुत-से काम आते हैं। इन कामों को सिरचन के अतिरिक्त पूरे गाँव में कोई नहीं जानता। यह अलग बात है कि अब इन कामों को गाँव के लोगों का मानना है कि इस प्रकार के काम करवाने के लिए पेट भर खिला दो और काम पूरा होने पर फटे-पुराने कपड़े देकर बिदा कर दो, इतना ही पर्याप्त है।

विशेष:

  1. लेखक ने ग्रामीण कलाकार के प्रति गाँव के लोगों की दृष्टि में आए – बदलाव और कलाकार की आदतों पर प्रकाश डाला है।
  2. भाषा सरल और सुबोध है। उसमें अरबी-फारसी शब्दों के साथ आंचलिक शब्दों का भी प्रयोग हुआ है।
  3. शैली वर्णनात्मक है।
  4. मुहावरों का सटीक प्रयोग हुआ है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ ग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
सिरचन को गाँव के लोगों द्वारा चटोरा समझने के क्या कारण हैं?
उत्तर:
सिरचन को खाने में स्वादिष्ट वस्तु, चाहिए। उसे खाने में घी में तली हुई और छौंकी हुई सब्जी, दही की कढ़ी, मलाई वाला दूध अच्छा लगता है। यदि उसके खाने की चीजों में घी कम हुआ तो वह काम मन से नहीं करता। इन्हीं कारणों से लोग उसे चटोरा कहते हैं।

प्रश्न (ii)
सिरचन की कला की बारीकियाँ और सुंदरता कब समाप्त हो जाती है?
उत्तर:
जब सिरचन के खाने में घी कम हो जाता है तो वह मन से काम नहीं करता। और जब मन से काम नहीं करता तो उसकी कला की बारीकियाँ और सुंदरता गायब हो जातीं।

प्रश्न (iii)
‘थोड़ा-सा रह गया है, किसी दिन आकर पूरा कर दूंगा।’ सिरचन के इस कथन का अर्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सिरचन एक कलाकार है। उसे चिकनाईयुक्त वस्तुएँ खाने का शौक है और जब उसके खाने में चिकनाई कम हो जाती है तो वह कोई न कोई बहाना बनाकर काम अधूरा छोड़कर उपर्युक्त वाक्य कहता हुआ चला जाता है। इसका अर्थ होता है कि अब वह कार्य अधूरा ही पड़ा रहेगा। कभी पूरा नहीं होगा।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
गाँव में सिरचन के अतिरिक्त कौन-सा काम कोई नहीं जानता?
उत्तर:
गाँव में मोथी घास और पटेर की ‘रंगीन शीतलपाटी, बाँस की तीलियों की झिलमिलाती चिक, सतरंगे डोरे के मोढ़े, भूसी-चुन्नी रखने के बड़े-बड़े जाले, ताल के सूखे पत्तों की छतरी-टोपी आदि जैसे काम सिरचन के अतिरिक्त कोई नहीं जानता।

प्रश्न (ii)
अब सिरचन के काम के संबंध में लोगों की सोच में क्या परिर्वतन आ गया है?
उत्तर:
अब गाँव के लोग उसके काम के लिए अनाज या पैसा देने की आवश्यकता नहीं समझते। उसे पेट भर स्वादिष्ट भोजन करा देना और एकाध पुराना कपड़ा दे देना काफी समझते हैं।

प्रश्न 3.
बड़ी बात ही है, बिटिया। बड़े लोगों की बस बात ही बड़ी होती है। नहीं तो दो-दो पटेर की पाटियों का काम सिर्फ खंसारी का सत्तू खिलाकर कोई करवाए भला? यह तुम्हारी मा ही कर सकती है, बबुनी। (Page 11)

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा लिखित कहानी ‘ठेस’ से लिया गया है। इन पंक्तियों में कथानायक सिरचन के आत्मसम्मान की भावना उजागर हुई है। महाजन टोले के भज्जू महाजन की वेटी को सिरचन ने तिरस्कृत करते हुए यह शब्द कहे थे।

व्याख्या:
सिरचन महाजन की बेटी से कहता है कि ‘बड़े लोग’ अर्थात् समाज के सम्मानित और पूँजीपति लोग केवल बड़ी-बड़ी बातें ही करना जानते हैं। तथाकथित बड़े लोगों का बड़प्पन केवल शब्दों की सीमा तक ही सीमित है। तुम्हारी माँ खंसारी का सत्तू खिलाकर ही मुझसे कितना कार्य करा लेती है। तुम्हारी माँ काम के बदले केवल मधुर शब्दों की ही मजदूरी देती है। इस प्रकार समाज के धनी और प्रतिष्ठित कहलाने वाले लोग मजदूरों का इसी तरह से शोषण करते हैं। इस वर्ग के लोगों का हृदय अत्यंत संकुचित होता है वे काम करवाना तो जानते हैं लेकिन उचित मजदूरी देना नहीं जानते। वे मजदूरों से अधिक-से-अधिक काम लेकर कम-से-कम मजदूरी देते हैं।

विशेष:

  1. सिरचन के माध्यम से कथाकार ने समाज के कटु सत्य को उजागर किया है।
  2. भाषा सरल और सुबोध है।
  3. आंचलिक शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
‘बड़े लोगों की बस बात ही बड़ी होती है’। इस कथन से सिरचन का क्या आशय है?
उत्तर:
इंस कथन से सिरचन का आशय है कि समाज के तथाकथित सम्मानित और पूँजीपति लोग केवल बड़ी-बड़ी बातें ही करना जानते हैं। उनका बड़प्पन केवल शब्दों तक सीमित रहता है। उनके काम से उनका बड़प्पन बिलकुल नहीं झलकता है। बड़ों जैसी बातें जरूर कर लेते हैं किन्तु बड़ों जैसा काम नहीं करते।

प्रश्न (ii)
सिरचन किसको तिरस्कृत कर रहा है? ।
उत्तर:
सिरचन महाजन टोले के भज्जू महाजन की बेटी को तिरस्कृत कर रहा है।

प्रश्न (iii)
सिरचन ने महाजन टोले की भज्जू महाजन की बेटी को किस प्रकार तिरस्कृत किया?
उत्तर:
सिरचन ने महाजन टोले की भज्जू महाजन की बेटी को तथाकथित बड़े, लोगों की असलियत बताकर व्यंग्य करते हुए तिरस्कृत किया। उसने कहा, “बड़े लोगों की बस बात ही बड़ी होती है। नहीं तो दो-दो पटेर के पाटियों का काम सिर्फ खंसारी का सत्तू खिलाकर कोई करवाये भला? यह तुम्हारी माँ ही कर सकती है।”

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
‘यह तुम्हारी माँ ही कर सकती है, बबुनी’ यह कथन किसका है और किससे कहा गया है?
उत्तर:
यह कथन सिरचन का है और महाजन टोले के भज्जू महाजन की बेटी से कहा गया है।

प्रश्न (ii)
सिरचन को केवल खंसारी का सत्तू खिलाकर कौन काम करवाती थी?
उत्तर:
महाजन टोले के भज्जू महाजन की पत्नी यह काम करवाती थी।

प्रश्न (iii)
इस गद्यांश में छिपा व्यंग्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस गद्यांश में समाज में सम्मानित, प्रतिष्ठित समझे जाने वाले लोगों पर व्यंग्य किया गया है कि उनकी कथनी और करनी में अंतर होता है। बातें बड़ी-बड़ी करते हैं, काम नहीं। मजदूरों का शोषण करते हैं। उन्हें पूरी मजदूरी भी नहीं देते।

प्रश्न 4.
अरे बाप रे बाप! इतनी तेजी? कोई मुफ्त में तो काम नहीं करता। आठ रुपये में मोहर छाप वाली धोती आती है। … इस मुँहझोले के न मुँह में लगा है, न आँख में शील। पैसा खर्च करने पर सैकड़ों चिकें मिलेंगी। चिक बनाने वाली टोली की औरतें सर पर गट्ठर लेकर गली-गली मारी फिरती हैं। (Page 13)

शब्दार्थ:

  • बाप रे बाप! – दुख या आश्चर्य सूचित करने वाला उद्गार।
  • तेजी – गुस्सा, क्रोध।
  • मुँहझोले – मुँहफट, जो मुँह में आए कह देना।
  • मुँह में लगाम – समझकर बोलना।
  • आँख में शील न होना – निर्लज्ज होना।
  • गली-गली फिरना – दुर्दशा में इधर-उधर घूमना।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ द्वारा लिखित कहानी ‘ठेस’ से लिया गया है। मानू की चाची और सिरचन में नहीं बनती थी। सिरचन मानू के घर में काम कर रहा था। वह मानू के द्वारा दिया गया पान चबाते हुए काम में लगा था कि चाची आ गई। सिरचन ने चाची से गमकौओ जर्दा माँग लिया। इस पर चाची ने उसे डाँटते हुए चटोर कह दिया। चाची की बात से सिरचन काफी दुःखी हो गया। वह चुपचाप अपना सारा सामान इकट्ठा कर चला गया। उसे जाते देखकर चाची मन-ही-मन बड़बड़ा उठी। लेखक उसी का वर्णन करते हुए कह रहा है।

व्याख्या:
चाची आश्चर्य भाव से बकबक करती हुई बोली-“इतना गुस्सा करता है। कोई मुफ़्त में तो काम करता नहीं है। उसे मजदूरी देते हैं। खाना खिलाते हैं। मोहर छाप वाली नई धोती बाज़ार से आठ रुपये में आती है। उसे मोहरे छाप वाली धोती देने का वादा किया है। सिरचन मुँहफट है, बिना सोचे-समझे जो कुछ मुँह में आता है, बोलता है। उसमें न शर्म-लिहाज है, न ही सहनशक्ति है, उसका स्वभाव बड़ा उग्र है। काम छोड़कर जाता है तो जाए पैसा खर्च करने पर बाज़ार में सैकड़ों चिकें मिल जाएँगी। चिक बनाने वालों की औरतें सर पर पोटली बाँधे चिक बेचने के लिए गली-गली घूमती फिरती हैं।”

विशेष:

  1. लेखक ने सिरचन और मानू की चाची के संबंधों के साथ-साथ दोनों के स्वभाव पर प्रकाश डाला है।
  2. भाषा पात्रानुकूल है।
  3. मुहावरों का भरपूर प्रयोग हुआ है।
  4. वर्णनात्मक शैली के साथ-साथ संवादात्मक शैली का भी प्रयोग है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
‘अरे बाप रे बाप! इनकी तेजी’ का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस कथन में आश्चर्य व्यक्त किया है कि इस मज़दूर सिरचन में इतना गुस्सा भरा है। एक मजदूर के लिए इतना क्रोध करना अच्छा नहीं है।

प्रश्न (ii)
इस गद्यांश के आधार पर सिरचन की दो चारित्रिक विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:

  1. सिरचन स्वभाव से अत्यंत क्रोधी प्रवृत्ति वाला व्यक्ति है।
  2. वह मुँहफट है पर हृदय का साफ है। वह अपने में कुछ भी दबाकर नहीं रखता। जो कुछ उसे उचित लगता है, वेझिझक बोल देता है।

प्रश्न (iii)
‘चिक बनाने वाली औरतें गट्ठर लेकर मारी-मारी फिरती हैं, इससे कलाकारों की किस दशा का परिचय मिलता है?
उत्तर:
इससे कलाकारों की दुर्दशा का परिचय मिलता है। उन्हें अपनी कलाकृतियों को सर पर उठाकर गाँव-गाँव, गली-गली घूमना पड़ता है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
यह कथन किसका है और इससे वक्ता के चरित्र का कौनसा पक्ष उजागर होता है?
उत्तर:
यह कथन मानू की चाची का है। इससे मानू की चाची के चरित्र का यह पक्ष उजागर होता है कि उसकी दृष्टि में ग्रामीण कलाकारों के प्रति सम्मान का अभाव है। वह अपने कथन एवं भाव-भंगिमा से कलाकार के मन को ठेस पहुँचाती है।

प्रश्न (ii)
‘पैसा खर्च करने पर सैकड़ों चितें मिलेंगी।’ यह ग्रामीण लोगों की सोच में आए किस परिवर्तन का सूचक है?
उत्तर:
यह पंक्ति इस बात का सूचक है कि गाँव के लोगों में अब ग्रमीण कलाकारों के प्रति सम्मान की भावना समाप्त हो गई है। वे केवल पारिश्रमिक देकर ही काम कराना चाहते हैं।

प्रश्न (iii)
मोहर छाप वाली धोती कितने में आती है?
उत्तर:
मोहर छापवाली धोती आठ रुपये में आती है।

प्रश्न 5.
बबुआजी! अब नहीं। कान पकड़ता हूँ, अब नहीं। मोहर छाप वाली धोती लेकर क्या करूँगा? कौन पहनेगा? ससुरी खुद मरी, बेटे-बेटियों को ले गई अपने साथ। बबुआजी, मेरी घरवाली जिंदा रहती तो मैं ऐसी दुर्दशा भोगता? यह शीतलपाटी उसी की बनी हुई है। इस शीतलपाटी को छूकर कहता हूँ, अब यह काम नहीं करूँगा।… गाँव भर में तुम्हारी हवेली में मेरी कदर होती थी। अब क्या? (Page 13)

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश फणीश्वरनाथ रेणु द्वारा लिखित कहानी ‘ठेस’ से लिया गया है। इस गद्यांश में कथानायक के संवेदनशील व्यक्तित्व का परिचय मिलता है। कलाकार छोटा हो या बड़ा, अपमान सहन नहीं कर सकता। मानू की चाची के कटु शब्दों से सिरचन के हृदय को ठेस पहुँचती है और वह अधूरा कार्य छोड़कर होली से चला जाता है। मानू का भाई जब उसे मनाने के लिए उसके पास जाता है तो वह अपनी व्यथा व्यक्त करते हुए कहता है –

व्याख्या:
बाबूजी, मुझसे अब चिक और शीतलपाटी नहीं बुनी जाएगी। मैं कान पकड़ता हूँ, अब आगे यह काम नहीं करूँगा। मुझे मोहर छाप वाली धोती नहीं चाहिए। उसे पहनने के लिए कौन-सी मेरी पत्नी बैठी है। वह तो कब का स्वर्ग सिधार गई। खुद भी गई और अपने साथ अपनी संतानों को भी ले गई। यदि आज मेरी पत्नी जीवित होती तो मुझे ऐसी अपमानजनक स्थिति में नहीं रहना पड़ता। यह शीतलपाटी मेरी पत्नी की बुनी हुई है।

यह शीलतपाटी उसके प्रेम की अंतिम निशानी है। मैं इसी शीतलपाटी की शपथ लेकर कहता हूँ कि मुझसे अब लोगों की गुलामी नहीं की जाएगी। अब भविष्य में ये सब बुनने का काम नहीं करूँगा। तुम्हारी हवेली में ही मेरी कारीगरी का सम्मान होता था। मैं तुम्हारी हवेली में ही स्वयं को सम्मानित समझता था। परंतु अब उसी हवेली में अपमानित हुआ हूँ। अब तुम्हारा यहाँ आना . व्यर्थ है क्योंकि अब मैं यह काम नहीं करूंगा।

विशेष:

  1. कलाकार के कोमल हृदय पर लगी ठेस की प्रतिक्रिया अभिव्यक्त हुई है। सिरचन अपमानित होकर आगे कार्य न करने का कठोर निर्णय लेता है।
  2. सिरचन के हृदय की भावनाएँ व्यक्त हुई हैं।
  3. भाषा पात्रानुकूल है।
  4. आंचलिक शब्दों के प्रयोग से भाषा प्रभावपूर्ण एवं सजीव हो उठी है।

गद्यांश पर आधारित अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
सिरचन ने यह क्यों कहा कि कान पकड़ता हूँ, अब नहीं।
उत्तर:
सिरचन एक स्वाभिमानी ग्रामीण कलाकार है। लेखक की चाची अपने कटु शब्दों से उसके हृदय को ठेस पहुँचाती है। लेखक उसे मनाने उसके घर पहुँचता है। इसलिए वह आगे काम न करने का निर्णय लेता हुआ कहता है।

प्रश्न (ii)
‘मोहर छाप वाली धोती लेकर क्या करूँगा? कौन पहनेगा’ में छिपी वेदना को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
लेखक की माँ ने मानू के पहली बार ससुराल जाने के अवसर पर सिरचन को एक सप्ताह पहले काम पर बैठाते हुए उसे मोहर छाप धोती देने का वादा किया था। लेकिन मानू की चाची की बातों से उसे ठेस पहुँचती है। वह चिक एवं शीतलपाटी बनाने का काम बीच में ही छोड़कर चला जाता है। लेखक उसे मनाने जाता है तो सिरचन हृदय की वेदना फूट पड़ती है। उसकी पत्नी, बेटे-बेटियों की मृत्यु हो चुकी है। वह दुनिया में अकेला है। उसके लिए मोहर वाली धोती कोई अर्थ नहीं रखती। वह उसे लेकर क्या करेगा। उसके हृदय में दुनिया में अकेले रहकर अपमानित जीवन व्यतीत करने की पीड़ा है।

प्रश्न (iii)
सिरचन किस शीतलपाटी की शपथ लेता है और क्यों?
उत्तर:
सिरचन अपनी पत्नी की बुनी हुई शीतलपाटी की शपथ लेता है क्योंकि वह अपनी पत्नी से अत्यधिक प्रेम करता है और अब उसी की कसम खाकर भविष्य में काम न करने की शपथ लेता है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
सिरचन ने भविष्य में काम न करने का निर्णय को लिया?
उत्तर:
सिरचन ने भविष्य में काम न करने का निर्णय इसलिए लिया क्योंकि गाँव के जिस घर में उसे सबसे अधिक सम्मान मिलता था, जहाँ उसकी कला की कदर होती थी, उसी हवेली में भी कटु शब्दों के द्वारा उसके हृदय को ठेस पहुंचाई गई थी।

प्रश्न (ii)
सिरचन ने मोहर छाप वाली धोती लेने से इनकार क्यों कर दिया?
उत्तर:
सिरचन के घर मोहर छाप वाली धोती पहनने वाला कोई नहीं था। उसकी पत्नी और बेटे-बेटियों की मृत्यु हो चुकी थी। इसलिए उसने मोहर छाप वाली धोती लेने से इनकार कर दिया।

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