MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ (कविता, बालकवि बैरागी’ एवं संकलित)

माँ पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

माँ लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
विश्व की शुभकामना किसे कहा गया है? (M.P. 2010)
उत्तर:
माँ के वात्सल्य भाव को ही विश्व की शुभकामना कहा गया है।

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प्रश्न 2.
माँ किस राग के गीत गाने का निर्देश देती है?
उत्तर:
माँ भैरवी राग के गीत गाने का निर्देश देती है।

प्रश्न 3.
मुसीबत में किसका नाम लेना चाहिए? और क्यों?
उत्तर:
मुसीबत में माँ का नाम लेना चाहिए।

प्रश्न 4.
पथ पर चलने के लिए प्रतिफल कैसा कदम चाहिए?
उत्तर:
पथ पर चलने के लिए गतिशील कदम चाहिए।

प्रश्न 5.
गुरुता का ज्ञान क्यों अपेक्षित है?
उत्तर:
गुरुता का ज्ञान जीवन में प्रेरणा के लिए अपेक्षित है।

माँ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
पंचतत्त्वों के किन गुणों को माँ धारण किए हुए है? (M.P. 2010)
उत्तर:
पृथ्वी, आकाश, अग्नि, जल और वायु पाँच तत्त्व होते हैं। माँ इन सभी गुणों को धारण किए हुए हैं। माँ पृथ्वी का गुण धैर्य, आकाश के गुण चैतन्य अथवा प्रकाश को, अग्नि के गुण तीव्रता, पवन की गतिमयी व्यापकता तथा जल के गुण गंभीरता को धारण किए हुए है।

प्रश्न 2.
माँ किस प्रकार शिक्षा देती है?
उत्तर:
माँ अपनी संतान को जागृत होने की शिक्षा देती है। वह जगाकर संघर्ष का मार्ग दिखताती और जीवन में संघर्ष करने के लिए प्रेरित करती है। इतना ही नहीं वह कर्तव्य निभाने की भी शिक्षा देती है। वह जीवन में होश के साथ कार्य करने की भी शिक्षा देती है।

प्रश्न 3.
कवि माँ से क्या कामना करता है? (M.P.2011)
उत्तर:
कवि माँ से कामना करता है कि वह वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति प्रदान करें कि उसके आधार पर जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सके। वह हार-जीत को समान भाव से ग्रहण कर सके। यही नहीं वह देश की उन्नति-प्रगति के लिए अपने स्वार्थों को त्यागकर समर्पित हो सके।

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प्रश्न 4.
देश की जय के लिए कवि किस भाव का आकांक्षी है?
उत्तर:
देश की जय के लिए कवि अपनी हार, स्वार्थ, त्याग और बलिदान के भाव का आकांक्षी है।

प्रश्न 5.
कवि किस उद्देश्य के लिए जीवन देना चाहता है?
उत्तर:
कवि संसार को खुशहाल जीवन देने के लिए उद्देश्य से अपना जीवन देना चाहता है।

माँ भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
‘मेरी हार देश की जय हो’ का भाव-विस्तार कीजिए।
उत्तर:
कवि चाहता है कि जीवन संघर्ष में बेशक उसकी हार हो जाए, वह जीवन में प्रगति और उन्नति बेशक न कर पाए, किंतु देश सदैव विजयी हो, उसकी संघर्षों में सदैव विजय हो। मेरी व्यक्तिगत समस्याएँ हल हों या न हौं, लेकिन देश अपनी समस्त समस्याओं पर विजय प्राप्त कर, निरंतर उन्नति-प्रगति करता रहे। देश की विजय में ही उसकी स्वतंत्रता, अखंडता और एकता निहित होती है। उसकी विजय से जनता में खुशहाली, सुख और शांति आती है इसलिए व्यक्ति की बेशक हार हो जाए, लेकिन देश की हार नहीं होनी चाहिए।

माँ भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित समोच्चित शब्दों का वाक्य बनाकर अर्थ स्पष्ट कीजिएअनिल-अनल, फाँस-पाश, ह्रास-हास, नीर-नीड़, पवन-पावन।
उत्तर:

  • अनिल – शीतल अनिल शरीर की थकान हर लेता है।
  • अनल – यह तुम्हारी स्वार्थ की अनल तुम्हें जलाकर राख कर देगी।
  • फाँस – मित्र के असत्य वचन मेरे लिए फाँस बन गए हैं।
  • पाश-मोह – माया के पाश में बँधे हो और मुक्ति चाहते हो, कैसे संभव है।
  • हास – जीवन में हास और त्रास मिलते रहते हैं।
  • हास – जीवन में हास (हास्य) को महत्त्व दिया जाना चाहिए।
  • नीर – महादेवी वर्मा ने कहा है, मैं नीर भरी दुख की बदली हूँ।
  • नीड़ – इस वृक्ष पर पक्षी नीड़ों में बैठे विश्राम कर रहे हैं।
  • पवन – प्रातःकाल का शीतल, मंद और सुगंधित पवन स्वान्मावर्धक होता है।
  • पावन – गंगा पावन नदी है।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित सामासिक शब्दों का विग्रह सहित नाम लिखिए –
कंटक पथ, दावानल, टालो-संभालो, गिरें-उठे।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ img-1

प्रश्न 3.
दिए गए मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए –
तिल-तिल कर जलना, गिर-गिर कर उठना, कंटक पथ पर चलना, लोरियाँ गाकर सुनाना, भैरवी गीत गाना।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ img-2

माँ योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
माँ की आराधना विषयक अन्य गीतों को याद कर कक्षा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 2.
‘देश की जय’ के लिए अपने प्राणों की बलि चढ़ाने वाले अमर शहीदों की जानकारी संगृहीत कीजिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 3.
‘माँ’ विषय पर अपने विचार लिखिए तथा उसे कथा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

माँ परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न –

प्रश्न 1.
‘माँ’ कविता के कवि हैं –
(क) मनमोहन मदारिया
(ख) बालकवि वैरागी
(ग) मैथिलीशरण गुप्त
(घ) कवि सुदर्शन
उत्तर:
(ख) बालकवि वैरागी।

प्रश्न 2.
कवि किससे वरदान माँग रहा है –
(क) ईश्वर से
(ख) दुर्गा देवी से
(ग) माँ से
(घ) भगवान शिव से
उत्तर:
(ग) माँ से।

प्रश्न 3.
संसार को सुखद और सरल बनाने वाला भाव है –
(क) वात्सल्य भाव
(ख) भक्तिभाव
(ग) स्वार्थ भाव
(घ) अहिंसा भाव
उत्तर:
(क) वात्सल्य भाव।

प्रश्न 4.
माँ से व्यक्तित्व में पवन से…… का गुण निहित है –
(क) गंभीरता
(ख) व्यापकता
(ग) धैर्य
(घ) तीव्रता
उत्तर:
(ख) व्यापकता।

प्रश्न 5.
कवि को जीवन का अभिमान चाहिए ताकि वह –
(क) जीवन-मार्ग पर बढ़ता रहे
(ख) वह निराश न हो
(ग) जीवन-संघर्षों से घबराए
(घ) वह जीवन के संघर्षों पर विजय प्राप्त करे
उत्तर:
(घ) वह जीवन-संघर्षों में विजय प्राप्त करे।

प्रश्न 6.
मुसीबत के समय किसे याद करना चाहिए –
(क) ईश्वर को
(ख) माँ को
(ग) मित्र को
(घ) पिता को
उत्तर:
(ख) माँ को।

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प्रश्न 7.
कवि को गुरुता का ज्ञान चाहिए; क्योंकि –
(क) वह जीवन की प्रेरणा बने
(ख) वह जीवन की आशा बने
(ग) वह जीवन का त्याग बने
(घ) वह जीवन की कठिनाई बने
उत्तर:
(क) वह जीवन की प्रेरणा बने।

प्रश्न 8.
जीवन के समस्त स्वार्थ त्यागकर…………के लिए समर्पित होना ही हमारा लक्ष्य है।
(क) मातृ-सेवा
(ख) राष्ट्र-सेवा
(ग) समाज-सेवा
(घ) प्रभु-सेवा
उत्तर:
(ख) राष्ट्र-सेवा।

प्रश्न 9.
कवि किससे वरदान की अपेक्षा करता है? (M.P. 2012)
(क) माँ से
(ख) गुरु से
(ग) प्रभु से
(घ) भाई से
उत्तर:
(क) माँ से।

प्रश्न 10.
‘माँ की भावनाओं में है –
(क) पहाड़ जैसी ऊँचाई
(ख) समुद्र जैसी चौड़ाई
(ग) धरती जैसा विस्तार
(घ) धरती जैसा धैर्य
उत्तर:
(घ) धरती जैसा धैर्य।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार पर कीजिए –

  1. तिल-तिलकर ………. जले। (मन/तन)
  2. माँ ………. की रचना है। (मैथिलीशरण गुप्त/वालकवि ‘वैरागी’)
  3. बालकवि ‘वैरागी’ ………. हैं। (आलोचक/कवि)
  4. बाल कवि ‘वैरागी’ का जन्म ………. को हुआ था। (1931/1941)
  5. कवि माँ से ………. की अपेक्षा करता है। (वरदान प्यार)

उत्तर:

  1. तन
  2. बालकवि ‘वैरागी’
  3. कवि
  4. 1931
  5. वरदान।

III. निम्नलिखित कथनों में सत्य असत्य छाँटिए –

  1. ‘माँ’ एक निबन्ध है।
  2. ‘माँ’ संघर्ष का मार्ग दिखाती है।
  3. ‘जल-जलकर जीवन’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. बालकवि वैरागी का वास्तविक नाम नन्दरामदास वैरागी है।
  5. मुसीबत में बस माँ का नाम लेना चाहिए।

उत्तर:

  1. असत्य
  2. सत्य
  3. असत्य
  4. सत्य
  5. सत्य।

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IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 18 माँ img-3
उत्तर:

(i) (ङ)
(ii) (घ)
(iii) (ख)
(iv) (क)
(v) (ग)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

प्रश्न 1.
माँ से कवि क्या चाहता है?
उत्तर:
वरदान।

प्रश्न 2.
माँ क्या गाकर सुलाती है?
उत्तर:
लोरियाँ।

प्रश्न 3
मुसीबत आने पर क्या करना चाहिए?
उत्तर:
माँ का नाम लेना चाहिए।

प्रश्न 4.
जीवन के संघर्षों में क्या होना चाहिए?
उत्तर:
होठों पर मुस्कान होनी चाहिए।

प्रश्न 5.
जीवन में क्या स्वाभाविक है?
उत्तर:
काँटों के रास्ते पर गिरना-बढ़ना और हार-जीत।

माँ लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘माँ’ कविता में किसके व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति दी है?
उत्तर:
‘माँ’ कविता में माँ के विराट व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति दी है।

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प्रश्न 2.
‘माँ’ में पृथ्वी तत्त्व का कौन-सा गुण निहित है? (M.P. 2012)
उत्तर:
‘माँ’ में पृथ्वी तत्त्व का धैर्य गुण निहित है।

प्रश्न 3.
माँ का कौन-सा भाव संसार को सुखद और सरल बनाता है?
उत्तर:
माँ का वात्सल्य-भाव ही संसार को सुखद और सरल बनाता है।

प्रश्न 4.
जीवन-पथ कंटकमय होने पर भी कवि किसकी कामना करता है?
उत्तर:
जीवन-पथ कंटकमय होने पर भी कवि जीवन-मार्ग पर निरंतर गतिशील रहने की कामना करता है।

प्रश्न 5.
कवि किस पर विजय प्राप्त करना चाहता है?
उत्तर:
कवि जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करना चाहता है।

प्रश्न 6.
‘माँ’ संसार की क्या है?
उत्तर:
माँ संसार की शुभकामना है।

प्रश्न 7.
कवि की माँ से एक कामना क्या है?
उत्तर:
कवि की माँ से एक कामना यह है कि उसके पैर हर क्षण गतिमान होने चाहिए।

प्रश्न 8.
उठ-उठकर गिरने और फिर उठने पर कवि को माँ से क्या चाहिए?
उत्तर:
उठ-उठकर गिरने और फिर उठने पर कवि को माँ से गुरुता का ज्ञान होने का वरदान चहिए।

माँ दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
माँ के व्यक्तित्व की विशेषताओं का उल्लेख कीजिए।
उत्तर:
माँ का व्यक्तित्व विराट है। उसके व्यक्तित्व में धैर्य, तीव्रता, व्यापकता और गंभीरता के साथ-साथ ममता, वात्सल्य आदि गुण निहित हैं। उसका व्यक्तित्व केवल स्नेहमयी है, अपितु वह अपनी संतान को जगाती है। संघर्ष करने की प्रेरणा देती है। वह कर्तव्य मार्ग पर चलने के प्रेरित करने वाली शक्ति है।

प्रश्न 2.
कवि कैसी माँ को अपनी स्मृतियों में बसाने की प्रेरणा देता है? (M.P. 2012)
उत्तर:
कवि धैर्यशाली, तीव्र प्रकाशयुक्त, गतिमयी व्यापकता और गंभीरता से युक्त स्नेहमयी, वात्सल्यमयी, संघर्ष का मार्ग दिखाने वाली तथा कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली माँ को सदैव अपनी स्मृतियों में बसाने की प्रेरणा देता है।

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प्रश्न 3.
कवि देश और जगत् के लिए क्या-क्या करने के लिए तैयार है?
उत्तर:
कवि देश के लिए अपनी हार स्वीकार करने के लिए तैयार है। वह अपने स्वार्थों को देश-सेवा के लिए त्यागने को तैयार है। जगत् के लिए वह अपना जीवन भी देने के लिए तैयार है।

प्रश्न 4.
कवि को कौन-सा सम्मान चाहिए?
उत्तर:
कवि को अपना स्वार्थ त्यागकर राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित होने का ही सम्मान चाहिए। इस सम्मान के अतिरिक्त उसे कोई अन्य सम्मान नहीं चाहिए। यही सम्मान प्राप्त करना, उसके जीवन का लक्ष्य है। इसी लेंए वह कहता है-‘बस इतना सम्मान चाहिए।’

प्रश्न 5.
माँ का स्वरूप क्या है?
उत्तर:
माँ धरा का धैर्य है। वह आसमान की ज्योति है। वह आग की लपट है। वह हवा तीव्र गति है। वह पानी का गंभीर स्वर है। यही नहीं वह वत्सला है। वह वंदना है, वह जननी है और जन्मदात्री भी है।

प्रश्न 6.
कवि माँ से कब-कब वरदान चास’ है?
उत्तर:
कवि माँ से तब-तब वरदान चाह जब उसका जीवन काँटों से भर जाए, विपदाओं से घिर जाए, उसे हास मिले ना त्रास मिले, विश्वास मिले या फाँस मिले, उसके सामने काल ही आकर क्यों न गरजे, इस प्रकार के संकटमय और दुखमय जीवन में कवि माँ से वरदान चाहता है।

माँ कवि-परिचय

प्रश्न 1.
बालकवि वैरागी का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
श्रीबालकवि वैरागी युगचेतना को ओजस्वी स्वर देने वाले आधुनिक युग के कवियों में सुप्रसिद्ध हैं।
जीवन-परिचय:
बालकवि वैरागी का जन्म मध्य प्रदेश के जिला मंदसोर के नीमच नामक स्थान में 10 फरवरी, सन् 1931 ई० को हुआ था। आपकी प्रारंभिक शिक्षा स्थानीय विद्यालयों में हुई। इसके उपरान्त आपने विक्रम विश्वविद्यालय, उज्जैन से एम.ए. हिंदी की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। इस प्रकार आपने एक मेधावी छात्र होने का परिचय दिया। आपने शिक्षा-समाप्ति के उपरांत साहित्य और राजनीति दोनों में ही दखल देना शुरू कर दिया। आप मध्य प्रदेश के एक सम्मानित विधायक और सांसद होने के साथ साथ आप मध्य प्रदेश सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं किंतु आपने साहित्य-सृजन को नहीं छोड़ा। आपकी कविताएँ राजनीतिक क्षितिज से उठकर जन-सामान्य के दुख-दर्द और आशा-आकांक्षाओं से जड़ी रही हैं।

रचनाएँ:
बालकवि वैरागी की रचनाएँ मुख्य रूप से काव्य ही हैं। अब तक आपके कई काव्य-संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। आपके निम्नलिखित काव्य-संग्रह हैं –

‘दरद दीवानी’, ‘जूझ रहा है हिन्दुस्तान’, ‘गौरव-गीत’, ‘भावी रक्षक देश के’, ‘दो टूक’, ‘दादी का कर्ज’, ‘रेत के रिश्ते’, ‘कोई तो समझें’, ‘शीलवती आग’, ‘गाओ बच्चों’, ‘पुलिवर’ (पद्यानुवाद), ‘वंशज का वक्तव्य’, ‘ओ अमलतास’ आदि। . इनके अतिरिक्त ‘चटक म्हारा चम्पा’ मालवीय काव्य-संग्रह भी बालकवि ‘वैरागी’ का एक जीवंत और सशक्त प्रकाशित काव्य-संग्रह हैं।

बालकवि वैरागी की कार्यशैली ‘गद्य’ विधा में भी है। कुछ प्रकाशित गद्य रचनाओं के उल्लेख इस प्रकार किए जा सकते हैं-गद्य सरपंच (सहयोगी उपन्यास), ‘कच्छ का पदयात्री’ (यात्रा-संस्मरण), ‘बर्लिन से बच्चू को’ (विदेशी यात्रा के पत्र) आदि।’

भाषा-शैली:
बालकवि वैरागी की भाषा-शैली में एकरूपता है। दूसरे शब्दों में, हम यह कह सकते हैं कि कविवर बालकवि की भाषा और शैली में काव्यात्मकता है। दूसरे शब्दों में, बालकवि वैरागी जी मूलतः कवि हैं, अतएव उनकी भाषा-शैली का काव्यमयी होना स्वाभाविक है। आपकी भाषा-शैली संबंधित निम्नलिखित विशेषताएँ हैं –

1. भाषा:
बालकवि वैरागी की भाषा मध्यस्तरीय काव्यमयी भाषा है। उसमें मुहावरों, कहावतों के प्रयोग आवश्यकतानुसार हुए हैं। इस प्रकार की भाषा में आए शब्द प्रायः तद्भव श्रेणी के हैं। इस प्रकार से यह कहा जा सकता है कि तत्सम शब्द और विदेशी शब्दों की तुलना में प्रयुक्त देशज शब्द बहुत अधिक हैं। इनके बाद ही उर्दू के प्रचलित शब्द प्रयुक्त हुए। इस प्रकार से बने हुए शब्दों से वाच्यार्थ और विषय के प्रतिपादन बहुत अच्छी तरह से हुए हैं।

2. शैली:
बालकवि वैरागी की शैली मुख्य रूप से काव्यमयी है। अतः उसमें अलंकारिता, चमत्कारिता और रसात्मकता जैसे स्वाभाविक और आवश्यक गुण सर्वत्र दिखाई देते हैं। इस प्रकार की शैली में प्रयुक्त हुए अलंकारों में मुख्य रूप से अनुप्रास, रूपक, स्वभावोक्ति और दृष्टांत अलंकार हैं। आपकी रचनाधारा को प्रवाहित करने वाले रस मुख्य रूप से वीररस, करुणरत, रौद्ररस आदि हैं। आपकी कविताओं में संगीतात्मकता और लयात्मकता ये दोनों ही गुण सर्वत्र दिखाई देते हैं।

महत्त्व:
बालकवि वैरागी का आधुनिक हिंदी कविता धारा का राष्ट्रीय तरंगित भावोत्थान में एक विशिष्ट और सुपरिचित स्थान है। राष्ट्र-प्रेम के भावों से भीग-भीगकर राष्ट्र के प्रति अपार प्रेम दिखलाने वाले आप बहुत ऊँचे कवि हैं। कविताओं के अतिरिक्त गद्य-रचना के क्षेत्र में भी आपकी बड़ी शान और मान है। इस प्रकार बालकवि वैरागी आधुनिक हिंदी काव्य-जगत के एक उज्ज्वल और प्रकाशवान रचनाकार हैं। आपका साहित्यिक महत्त्वांकन करके ही आपको राजसभा के मनोनीत सदस्य के रूप में चुना गया। अभी आपसे अनेक साहित्यिक उपलब्धियों की अपेक्षाएँ हैं।

‘माँ’ पाठ का सारांश

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प्रश्न 1.
‘माँ’ कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘माँ’ कविता बालकवि वैरागी द्वारा रचित है। इस कविता में कवि ने माँ के विराट व्यक्तित्व को अनुभूति के स्तर पर अभिव्यक्ति दी है। माँ में धरती के जैसा धैर्य, उसमें आकाश ज्योति की तीव्रता है, पवन की गतिमयी व्यापकता है और जल जैसी गंभीरता है। वह वात्सल्य भाव से भरी हुई पूजनीय है। माँ जन्म देने वाली है और वह संसार को सुखद और सरल बनाने वाली है।

कवि कहता है कि माँ का व्यक्तित्व केवल स्नेह का पर्याय नहीं है। वह लोरियाँ गाकर सुलाती है तो वह जगाती भी है और संघर्ष का मार्ग भी दिखलाती है। माँ पालन-पोषण करने वाली शक्ति भी है तो वह कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली शक्ति भी है। माँ कहती है कि मुझे बहाने बनाकर टालने का प्रयास मत करो, होश से काम लो और जब कभी मुसीबत आए तो तुम केवल माँ को याद करो। तुम ऐसी माँ को सदैव स्मृतियों में बसाकर रखो।

दूसरी कविता ‘माँ बस यह वरदान चाहिए’ है। इस कविता में कवि माँ से वरदान स्वरूप वह शक्ति माँगता है, जिसके आधार पर जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की जा सके। कवि चाहता है कि उसकी यही इच्छा है कि उसका प्रत्येक पग गतिशील रहे। उसे जीवन में हास मिले या त्रास मिले, विश्वास प्राप्त हो या विश्वासघात प्राप्त हो और चाहे उसके सामने मृत्यु ही क्यों न आ जाए, लेकिन जीवन के इन विरोधों के बीच भी स्वाभिमान जागृत रहे।

कष्टों में भी जीवन की प्रसन्नता बनी रहे। काँटोंभरे रास्तों पर गिरना, चढ़ना और हार-जीत स्वाभाविक हैं, किंतु फिर भी जीवन में बड़प्पन, गंभीरता का भाव बना रहे। हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने का ज्ञान हमारे जीवन की प्रेरणा बने। हम सदा देश की उन्नति के लिए क्रियाशील रहें। इस हेतु जीवन से समस्त स्वार्थ त्यागकर राष्ट्र-सेवा के लिए. समर्पित होना ही हमारा लक्ष्य रहे। यही जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है। कवि माँ से ऐसे ही वरदान की अपेक्षा करता है।

माँ संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

प्रश्न 1.
मैं धरा का धैर्य हूँ
ज्योति हूँ मैं ही गगन की
अग्नि की मैं ही लपट हूँ
तीव्र गति हूँ मैं पवन की
नीर का गंभीर स्वर हूँ,
वत्सला हूँ-वंदना हूँ ,
मैं जननि हूँ-जन्मदात्री
विश्व की शुभकामना हूँ। (Page 86) (M.P. 2011)

शब्दार्थ:

  • धरा – पृथ्वी, जमीन, धरती।
  • ज्योति – प्रकाश।
  • गगन – आकाश।
  • अग्नि – आग।
  • तीव्र – तेज।
  • गति – चाल।
  • पवन – वायु।
  • नीर – पानी, जल।
  • वत्सला – ममतामयी, स्नेहमयी।
  • वंदना – प्रार्थना, पूजन।
  • जननि – जन्म देने वाली।
  • विश्व – संसार।
  • शुभकामना – अच्छी इच्छा।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश बालकवि वैरागी द्वारा रचित कविता ‘माँ’ से उद्धृत है। कवि माँ के विराट व्यक्तित्व को अनुभूति के स्तर पर अभिव्यक्त करते हुए कहता है कि-माँ की भावनाओं में धैर्य, तीव्र गति और गंभीरता है। इन्हीं भावों को इस काव्यांश में व्यक्त किया गया है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि माँ के लिए विराट व्यक्तित्व में अनेक भावनाएँ निहित हैं। माँ कहती है कि मेरी भावनाओं में धरती के जैसा धैर्य है; अर्थात् मेरे व्यक्तित्व पृथ्वी के समान धैर्य हैं। मैं अत्यंत धैर्यवान हूँ। मैं ही आकाश की ज्योति हूँ। मैं ही आग की लपट हूँ और मुझ में ही वायु की गति व्यापक है। मुझ में ही जल की गंभीरता है। मैं ममतामयी, स्नेहमयी और पूजनीय हूँ। मैं जन्म देने वाली माता हूँ। मेरा वात्सल्य भाव से ही संसार को सुखद और सरल बनाने वाली हूँ। कहने का भाव यह है कि माँ का व्यक्तित्व विराट है। उसके व्यक्तित्व में धरती के समान धैर्य, तीव्रता, पवन की गतिमयी व्यापकता और गंभीरता है। वह स्नेहमयी, पूजनीय और जन्म देने वाली माँ हैं। वह पूजनीय है। उसमें विश्व का कल्याण को चाहने की कामना है।

विशेष:

  1. माँ के विराट व्यक्तित्व का चित्रण किया गया है।
  2. माँ के व्यक्तित्व में अनेक गुणों का समावेश है।
  3. तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
  4. तुकांतात्मकता और लयात्मकता है।
  5. ‘मैं धरा का धैर्य हूँ’ में उदाहरण अलंकार है।
  6. ‘वत्सला हूँ-वंदना हूँ’ में अनुप्रास अलंकार है।
  7. रूपक अलंकार है।
  8. विशेषणों का सार्थक प्रयोग किया गया है।

पद्य पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
कवि-बालकवि वैरागी, कविता-‘माँ’।

प्रश्न (ii)
कविता में किसके व्यक्तित्व का अभिव्यक्ति हुई है?
उत्तर:
कविता में माँ के विराट व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति हुई है।

प्रश्न (iii)
माँ के व्यक्तित्व में क्या निहित है?
उत्तर:
माँ के व्यक्तित्व में पृथ्वी जैसा धैर्य, आकाश की तीव्रता, पवन की गतिमयी व्यापकता और जल जैसी गंभीरता और वात्सल्य भाव निहित हैं।

पद्य पर आधारित सौंदर्य संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत पद्य के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
कवि ने इस पद्य में माँ के विराट व्यक्तित्व को अनुभूति के स्तर पर अभिव्यक्ति दी है। उसके व्यक्तित्व में धैर्य, तेजी, व्यापकता, गंभीरता और वात्सल्य भावना निहित है। वह पूजनीय है।

प्रश्न (ii)
प्रस्तुत पद्य के काव्य-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
काव्य-सौंदर्य:
पद्य की भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है। ‘धरा का धैर्य हूँ’ में उदाहरण अलंकार है। ‘वत्सला हूँ-वंदना हूँ’ में अनुप्रास अलंकार है। छंदबद्ध रचना में तुकांतात्मकता और लयात्मकता है। शांतरस है। पद्य में माँ का विराट रूप साकार हो उठा है। शब्द चयन सटीक और भावानुकूल है। विशेषणों का सार्थक प्रयोग हुआ है।

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प्रश्न 2.
लोरियाँ गाकर सुलाया
अब जगाती हूँ तुम्हें,
भैरवी गाओ-उठो!
रस्ता दिखाती हूँ तुम्हें
मत मुझे टालो-सम्हालो,
होश से कुछ काम लो,
जब कभी आए मुसीबत
सिर्फ माँ का नाम लो। (Page 86)

शब्दार्थ:

  • लोरियाँ – बच्चों को सुलाने के समय गाया जाने वाला गीत।
  • भैरवी – एक राग।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश बालकवि ‘वैरागी’ द्वारा रचित कविता ‘माँ’ से उद्धृत है। कवि माँ के विराट स्वरूप को व्यक्त करते हुए कहता है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि माँ का व्यक्तित्व केवल स्नेहमयी, ममतामयी ही नहीं है अपितु माँ अपने बच्चों को गीत गाकर सुलाती है, तो वह जगाती भी है। वह भैरवी राग गाकर, दुर्गा की भाँति उठाती भी है और जीवन में संघर्ष का मार्ग भी दिखाती है। वह कहती है कि तुम मुझे विभिन्न प्रकार बहाने करके टालने का प्रयास मत करो। उठो, और संघर्ष करो। कुछ होश से कार्य करो अर्थात् माँ पालित-पोषित करने वाली ममता है, तो वह कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली शक्ति भी है। कवि कहता है कि जब भी तुम पर कोई मुसीबत आए, तो तुम केवल माँ को याद करो। उसका नाम लो, तुम्हें संकट से छुटकारा मिलेगा। ऐसी माँ को सदा अपनी स्मृतियों में बसाए रखो।

विशेष:

  1. कवि ने माँ व्यक्तित्व की विशेषताओं का वर्णन किया है।
  2. तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।
  3. तुकांतात्मकता और लयात्मकता है।
  4. ‘कुछ काम’ में अनुप्रास अलंकार है।
  5. ‘टालो-सम्हालो’ में पद-मैत्री है।
  6. माँ को शक्ति के रूप में चित्रण किया गया है।

पद्य पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
कवि-बालकवि ‘वैरागी’। कविता-‘माँ’

प्रश्न (ii)
‘माँ’ को किस रूप में चित्रित किया गया है?
उत्तर:
माँ को अपनी संतान का पालन-पोषण करने वाली ममतामयी माता के रूप में तथा कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली शक्ति के रूप में चित्रित किया है।

प्रश्न (iii)
इस पद्य में कवि ने क्या प्रेरणा दी है?
उत्तर:
इस पद्य में कवि ने माँ को सदा अपनी स्मृतियों में वसाने की प्रेरणा दी है।

पद्यांश पर आधारित काव्य-सौंदर्य संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य लिखिए।
उत्तर:
प्रस्तुत काव्यांश में कवि ने माँ के विराट व्यक्तित्व को अभिव्यक्ति दी है। माँ एक ओर अपनी संतान का स्नेहपूर्वक पालन-पोषण करती है। अपनी संतान को लोरी गाकर सुलाती है, तो दूसरी ओर वह उसे जगाती है और संघर्ष का मार्ग भी दिखलाती है। वह ममतामयी भी है तो कर्तव्य के लिए प्रेरित करने वाली शक्ति भी है। हमें ऐसी माँ को सदैव स्मृतियों में बसाए रखना चाहिए।

प्रश्न (ii)
प्रस्तुत काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस पद्यांश की भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त खड़ी बोली हैं। छंदबद्ध रचना है। तुकांतात्मकता और लयात्मकता है। ‘मत मुझे’ ‘कुछ काम’ में अनुप्रास अलंकार है। शब्द-चयन में मितव्ययता और सटीकता है। ‘टालो-सम्हालो’ में पद-मैत्री है।

प्रश्न 3.
माँ बस यह वरदान चाहिए!
जीवन-पथ जो कंटकमय हो,
विपदाओं का घोर वलय हो,
किंतु कामना एक यही बस,
प्रतिपल पग गतिमान चाहिए। (M.P. 2010)

ह्रास मिले या त्रास मिले,
विश्वास मिले या फाँस मिले,
गरजे क्यों न काल ही सम्मुख
जीवन का अभिमान चाहिए। (Page 86)

शब्दार्थ:

  • वरदान – किसी को इष्ट वस्तु देना।
  • जीवन-पथ – जीवन रूपी रास्ता।
  • कंटकमय – काँटों से भरा।
  • विपदाओं – संकटों।
  • वलय – घेरा।
  • कामना – इच्छा, अभिलाषा।
  • हास – हानि।
  • त्रास – कष्ट।
  • विपत्ति – फाँस।
  • काल – मृत्यु।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश बालकवि वैरागी द्वारा रचित ‘संकलित’ कविता से उद्धृत है। इस कविता में कवि द्वारा माँ से वरदानस्वरूप वह शक्ति माँगी गई है, जिसके आधार पर जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त की जा सके।

व्याख्या:
कवि माँ से कहता है कि हे माँ! मुझे केवल आपसे यही वरदान चाहिए कि चाहे जीवन रूपी मार्ग काँटों से भरा हो और मेरा जीवन विभिन्न प्रकार के कष्टों और संकटों में क्यों न घिरा हो, फिर भी मेरी यही अभिलाषा है कि मैं समस्त, दुखों, कष्टों और संकटों से संघर्ष करता हुआ हर क्षण नितर आगे बढ़ता रहूँ।

मुझे जीवन रूप मार्ग आगे बढ़ते हुए चाहे हानि प्राप्त हो अथवा कष्टों विपत्तियों का सामना करना पड़े, जीवन में विश्वास प्राप्त हो अथवा मेरी अपघात (विश्वासघात) हो, चाहे मेरे सामने साक्षात् मृत्यु ही क्यों न आ जाए, किंतु ‘सी स्थिति में भी मेरा स्वाभिामान बना रहना चाहिए। कहने का भाव यह कि कवि माँ से ऐसा वरदान चाहता है कि जीवन-मार्ग में आगे बढ़ते हुए आने वाली कठिनाइयों ५ विजय प्राप्त कर ..सके। जीवन के समस्त विरोधों के बावजूद स्वाभिमान जागृत र।

विशेष:

  1. कवि ने माँ से ऐसा वरदान देने की कामना की है जिससे जीवन के कष्टों के बीच भी उसका स्वाभिमान बना रहे।
  2. ‘जीवन-पथ’ में रूपक अलंकार है।
  3. ‘किंतु कामना और प्रतिफल पग’ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. ह्रास मिले…या फाँस मिले, में संदेह अलंकार है।
  5. ह्रास और त्रास क्रमशः हानि और कष्ट के प्रतीक हैं।
  6. भाषा तत्सम शब्दावलीयुक्त परिमार्जित खड़ी बोली है।
  7. तुकांतात्मकता और लयात्मकता है।
  8. विशेषणों का सार्थक प्रयोग किया गया है।

काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
कविता-‘माँ बस यह वरदान चाहिए’।

प्रश्न (ii)
कवि माँ से क्या चाहता है और क्यों?
उत्तर:
कवि माँ से ऐसा वरदान चाहता है, जिसके द्वारा जीवन में आने वाली समस्त कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सके।

प्रश्न (iii)
कवि ने माँ से क्या वरदान देने की कामना की है?
उत्तर:
कवि ने माँ से बस ऐसा वरदान देने की कामना की है कि उसे जीवन में चाहे हानि प्राप्त हो या कष्ट, विपत्ति मिले, या फिर विश्वास प्राप्त हो या विश्वासघात प्राप्त हो किंतु जीवन के इन कष्टों के मध्य भी जीवन में स्वाभिमान सदा बना रहे।

काव्यांश पर आधारित सौंदर्य-बोध संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए?
उत्तर:
भाव-सौंदर्य-इस कविता में कवि माँ से वरदान प्राप्त करना चाहता है कि जिसके द्वारा वह जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त करने में सफल हो। वह यह भी चाहता है कि उसे जीवन के सभी लाभ-हानि, विश्वासघातों, कष्टों, विपत्तियों और विरोधों के बीच स्वाभिमान बना रहे।

प्रश्न (ii)
काव्य-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
काव्य-सौंदर्य:
‘जीवन-पथ’ में रूपक अलंकार है। किंतु कामना, प्रतिपल पग में अनुप्रास अलंकार है। ह्रास मिले…फाँस मिले में संदेह अलंकार है। ह्रास और त्रास क्रमशः हानि और कष्ट के प्रतीक हैं। तुकांतात्मकता और लयात्मकता है। विशेषणों का सार्थक प्रयोग है। भाषा तत्सम शब्दावली युक्त परिमार्जित खड़ी बोली है।

प्रश्न (iii)
कवि किससे और क्या माँग रहा है?
उत्तर:
कवि माँ से वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति माँग रहा है जिसके बल पर वह जीवन में आने वाली कठिनाइयों पर विजय प्राप्त कर सके।

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प्रश्न 4.
जीवन के इन संघर्षों में
दुःख कष्ट के दावानल में
तिल तिलकर तन जले न क्यों पर,
होठों पर मुस्कान चाहिए।

कंटक पथ पर गिरना, चढ़ना,
स्वाभाविक है हार जीतना,
उठ-उठ कर हम गिरें, उठे फिर
पर गुरुता का ज्ञान चाहिए। (Page 87)

शब्दार्थ:

  • दावानल – जंगल की आग।
  • तन – शरीर।
  • मुस्कान – हँसी, प्रसन्नता।
  • गुरुता – बड़प्पन, गंभीरता।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश बालकवि वैरागी द्वारा रचित ‘संकलित कविता’ से उद्धृत है। इस काव्यांश में कवि माँ से वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति की कामना करता है कि कष्टों में भी जीवन का प्रसन्नता बनी रहे, यह स्पष्ट किया है।

व्याख्या:
कवि माँ से कामना करता है कि वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति प्रदान करे कि जीवन मार्ग पर बढ़ते हुए जीवन के संघर्षों में दुख और कष्टों की जंगल की आग में यह शरीर थोड़ा-थोड़ा जलकर क्यों न जले किंतु इन समस्त कष्टों-दुखों में भी जीवन की प्रसन्नता समाप्त न हो। अर्थात् कवि चाहता है कि जीवन में कष्टों और दुखों के कारण यह शरीर धीरे-धीरे नष्ट क्यों न हो जाए किंतु होंठों पर सदा मुस्कान बनी रहनी चाहिए।

मुख पर निराशा या पीड़ा के भाव नहीं आने चाहिए। काँटों और दुखों, विपत्तियों से भरे जीवन मार्ग पर बढ़ते हुए अवनति की ओर जाना और फिर उठकर चढ़ना तथा जीवन में हार-जीत आना तो स्वाभाविक प्रक्रिया है। जीवन-मार्ग पर चलते हुए हम गिरें, उठें और फिर उठें और गिरें। ऐसी स्थिति में भी मन में सदैव गंभीरता बनी रहे। जीवन में हार-जीत तो होती रहती है। किंतु हमें हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने की शक्ति प्रदान करें। हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने का ज्ञान हमारे जीवन की प्रेरणा बने।

विशेष:

  1. कवि चाहता है कि माँ वरदान स्वरूप ऐसी शक्ति प्रदान करें कि कष्टमय जीवन व्यतीत करते हुए भी प्रसन्नता का भाव बना रहे।
  2. कवि हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने की क्षमता चाहता है।
  3. तिल-तिलकर तन में अनुप्रास अलंकार है।
  4. ‘तिल-तिलकर जलना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग किया है।
  5. ‘दुख कष्ट के साथ दावानल’ में रूपक अलंकार है।
  6. ‘गिरना’ अवनति का और ‘चढ़ना’ प्रगति, उन्नति का प्रतीक है।
  7. ‘उठ-उठ’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  8. भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
संकलित कविता।

प्रश्न (ii)
कंटक पथ पर गिरना, चढ़ना का प्रतिकार्थ स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘कंटक पथ’ दुखों और कष्टों से भरे जीवन पथ का प्रतीक है, तो ‘गिरना’.. अवनति का और ‘चढ़ना’ उन्नति प्रगति का प्रतीक। कवि कहना चाहता है कि हम दुखों और कष्टों से भरे जीवन मार्ग पर बढ़ते हुए संघर्ष द्वारा जीवन में उन्नति-प्रगति करें, किंतु हम इन्हें समान भाव से ग्रहण करें और हमारे मुख पर कभी निराशा का भाव न आने पाए।

प्रश्न (iii)
कवि को गुरुता का ज्ञान क्यों चाहिए?
उत्तर:
कवि को गुरुता का ज्ञान इसलिए चाहिए, ताकि वह हार-जीत को समान भाव से ग्रहण कर सके और उसमें जीवन की प्रेरणा बनी रहे।

काव्यांश पर आधारित काव्य-सौंदर्य से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
काव्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
इस काव्यांश में कवि ने जीवन कष्टों में भी प्रसन्नता बनी रहने की कामना व्यक्त की है। इसके साथ ही जीवन में हार-जीत को समान भाव से ग्रहण करने का वरदान माँ से प्राप्त करना चाहता है। उसकी इच्छा है कि उसमें जीवन की प्रेरणा सदैव बनी रहे।

प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
‘तिल-तिलकर तन’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘तिल-तिलकर जलना’ मुहावरे का सटीक प्रयोग किया गया है। ‘दुख-कष्ट के दावानल’ में रूपक अलंकार है। गिरना और चढ़ना क्रमश जीवन में अवनति का और उन्नति प्रगति का प्रतीक है। ‘उठ-उठ’ में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

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प्रश्न 5.
मेरी हार देश की जय हो,
स्वार्थ-भाव का क्षण-क्षण क्षय हो,
जल-जल कर जीवन दूं जग को,
बस इतना सम्मान चाहिए।
माँ बस यह वरदान चाहिए
माँ बस यह वरदान चाहिए! (Page 87)

शब्दार्थ:

  • हार – पराजय।
  • जय – विजय।
  • क्षय – कम होना, नष्ट होना।
  • जग – संसार।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश बालकवि वैरागी द्वारा रचित ‘संकलित कविता’ से उद्धृत है। कवि इस काव्यांश में माँ से वरदानस्वरूप ऐसी शक्ति की कामना करता है जिसके द्वारा वह अपने समस्त स्वार्थ त्याग कर राष्ट्र-सेवा के लिए समर्पित हो सके।

व्याख्या:
कवि कहता है कि हे माँ! तुम हमें वरदानस्वरूप वह शक्ति प्रदान करो, जिससे हम सदैव देश की उन्नति और प्रगति के लिए क्रियाशील रहें। इसमें हमारी बेशक पराजय हो लेकिन देश की विजय हो। अर्थात् हम अपने जीवन में उन्नति और प्रगति करें या न करें लेकिन देश की उन्नति और प्रगति हो। हमारे स्वार्थ मानों का हर क्षण क्षय हो भाव यह कि हम अपने समस्त स्वार्थ त्यागकर राष्ट्र सेवा में लगे रहें। हम जल-जल कर जीवन को जग के लिए समर्पित कर दें। हमारा लक्ष्य यही रहे, यही जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है। माँ, हमें वरदान स्वरूप यही शक्ति प्रदान करो। इसके अतिरिक्त हमें और कुछ नहीं चाहिए।

विशेष:

  1. देश-सेवा के लिए समर्पित होने का वरदान कवि माँ से चाहता है।
  2. कवि अपनी हार में देश की विजय चाहता है।
  3. ‘स्वार्थ-भाव’ में रूपक अलंकार है।
  4. क्षण-क्षण क्षय, जल-जल में अनुप्रास अलंकार है।
  5. क्षण-क्षण, जल-जल में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  6. भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

काव्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
इस काव्यांश में कवि माँ से क्या वरदान चाहता है?
उत्तर:
इस काव्यांश में कवि सदैव देश की उन्नति और विकास के लिए क्रियाशील रहने का वरदान चाहता है।

प्रश्न (ii)
कवि ने अपना जीवन-लक्ष्य क्या बताया है?
उत्तर:
कवि ने देश की उन्नति और प्रगति हेतु जीवन के समस्त स्वार्थ त्यागकर राष्ट्र-सेवा के लिए समर्पित होना ही अपने जीवन का लक्ष्य बताया है।

प्रश्न (iii)
जीवन का सबसे बड़ा सम्मान क्या है?
उत्तर:
अपने जीवन से समस्त स्वार्थ त्यागकर देश की उन्नति-प्रगति के समर्पित हो जाना ही जीवन का सबसे बड़ा सम्मान है।

काव्यांश पर आधारित काव्य-सौंदर्य से संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
इस काव्यांश में कवि अपनी जीत की अपेक्षा देश की जीत चाहता है। वह चाहता है कि उसका देश उन्नति और प्रगति करे। इसके लिए वह अपने स्वार्थ त्याग कर राष्ट्र सेवा में जुट जाने का भाव व्यक्त कर रहा है। राष्ट्र सेवा में समर्पित होना ही उसके जीवन का लक्ष्य और सबसे बड़ा सम्मान है। कवि माँ से ऐसे ही वरदान की अपेक्षा करता है।

प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
कवि की राष्ट्र-सेवा की भावना को अभिव्यक्ति मिली है। ‘स्वार्थ-भाव’ में रूपक अलंकार है। ‘क्षण-क्षण-क्षय’, ‘जल-जल’ में अनुप्रास अलंकार है। ‘क्षण-क्षण, जल-जल’ में पुनरुक्तिप्रकाश है। ‘माँ बस यह वरदान’ पंक्ति की पुनरावृत्ति है। काव्यांश की भाषा तत्सम शब्दावली युक्त खड़ी बोली है।

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