MP Board Class 11th Samanya Hindi गद्य खण्ड Important Questions

MP Board Class 11th Samanya Hindi गद्य खण्ड Important Questions

1. शिक्षा

– स्वामी विवेकानंद

ससंदर्भ व्याख्या कीजिए

1. “मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता को अभिव्यक्त करना ही शिक्षा है। ज्ञान मनुष्य में स्वभाव सिद्ध है, कोई भी ज्ञान बाहर से नहीं आता; सब अंदर ही है। हम जो कहते हैं कि मनुष्य जानता’ है, यथार्थ में, मानसशास्त्र – संगत भाषा में, हमें कहना चाहिए कि वह आविष्कार करता है, “अनावृत’ या ‘प्रकट’ करता है।”

शब्दार्थ – अन्तर्निहित = मन में विद्यमान, अभिव्यक्त = प्रकट, अनावृत्त = जो ढंका हुआ न हो। संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश स्वामी विवेकानंद के ‘शिक्षा’ पाठ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – स्वामी विवेकानंद ने ज्ञान को पहले से संचित बताया है।

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व्याख्या – स्वामी विवेकानंद के अनुसार प्रत्येक व्यक्ति अपनी क्षमता के अनुसार ज्ञान से परिपूर्ण रहता है। मन में विद्यमान ज्ञान जब फूटकर बाहर आता है तो उसे शिक्षा कहते हैं। ज्ञान व्यक्तिगत एवं आंतरिक चीज है, वह बाहर से ग्रहण नहीं किया जा सकता। मनुष्य का सब कुछ जानना’ ज्ञान का सार्वजनिक प्रकटीकरण है। अंदर की वस्तु को बाहर ला देने की प्रक्रिया आविष्कार है। ज्ञान अन्तर्निहित है, शिक्षा उसी का प्रकटीकरण है। शिक्षक भी स्वयं के ढंके हुए ज्ञान को खोल देता है।

विशेष – तत्सम भाषा का प्रयोग है। तथ्यात्मक एवं तर्कसंगत शैली का प्रयोग है। निगमन शैली में सूत्र को समझाया गया है।

2. “समस्त ज्ञान, चाहे वह लौकिक हो अथवा अध्यात्मिक, मनुष्य के मन में है। बहुधा वह प्रकाशित न होकर ढंका रहता है और जब आवरण धीरे – धीरे हटता है, तो हम कहते हैं कि ‘हम सीख रहे हैं।’ ज्यों – ज्यों आविष्करण की क्रिया बढ़ती जाती है, त्यों – त्यों हमारे ज्ञान की वृद्धि होती जाती है। जिस मनुष्य पर से यह आवरण उठता जा रहा है, वह अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा अधिक ज्ञानी है, और जिस पर यह आवरण तह पर तह पड़ा हुआ है, वह अज्ञानी है।”

शब्दार्थ – लौकिक = सांसारिक, आवरण = पर्दा, आविष्करण = खोज का प्रकटीकरण। संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश स्वामी विवेकानंद के ‘शिक्षा’ पाठ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में ज्ञानी एवं अज्ञानी के बीच अन्तर स्पष्ट किया गया है।

व्याख्या – स्वामी विवेकानंद का मानना है कि सांसारिक एवं आध्यात्मिक ज्ञान मनुष्य के मन की गहराई में संचित होता है। वह ज्ञान सबके सामने न होकर ढंका रहता है, उस पर एक झीना परदा पड़ा रहता है। परदा का हटना सीखने की प्रक्रिया कही जा सकती है। पर्दा हटने की प्रक्रिया और खोजों के बाहर आने की प्रक्रिया जितनी तेज होती है, ज्ञान का प्रकटीकरण भी उतना ही तेजी से होता है। संचित ज्ञान से पर्दा न उठना अज्ञानता है। परत – दर – परत परदा ढंका रहना घोर अज्ञानता है।

विशेष – तत्सम भाषा का प्रयोग है। ज्ञान एवं ज्ञानी की नई परिभाषा प्रस्तुत की गई है।

3. “शिक्षा विविध जानकारियों का ढेर नहीं है, जो तुम्हारे मस्तिष्क में लूंस दिया गया है और जो आत्मसात हुए बिना वहाँ आजन्म पड़ा रहकर गड़बड़ मचाया करता है। हमें उन विचारों की अनुभूति कर लेने की आवश्यकता है, जो जीवन निर्माण, मनुष्य निर्माण तथा चरित्र – निर्माण में सहायक हों।”

शब्दार्थ – आत्मसात = आत्मा में उतारा हुआ, आजन्म = सम्पूर्ण जीवन। संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश स्वामी विवेकानंद के ‘शिक्षा’ पाठ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – स्वामी विवेकानंद के अनुसार तथ्यात्मक ज्ञान शिक्षा नहीं है।

व्याख्या – स्वामी विवेकानंद के अनुसार किसी भी विषय पर बहुत सारी जानकारी रखना ज्ञान नहीं है। जिस ज्ञान को हम अन्तर्मन में उतार न सकें, वह हमारे किसी काम का नहीं हो सकता। बहुतायत में एकत्र किया तथ्यात्मक ज्ञान मस्तिष्क को कचरे का ढेर बना देता है। जीवन – यापन, मानवता के विकास एवं चरित्र – उत्थान में शिक्षा का योग होना चाहिए। कुछेक विचारों को जीवन में उतारकर भी हम परमज्ञानी बन सकते हैं। तर्क प्रधान शिक्षा से जीवन का कल्याण हो सकता है।

विशेष – तत्सम भाषा की प्रधानता है। ज्ञान की नई परिभाषा प्रस्तुत की गई है। तथ्यात्मक ज्ञान पर बल दिया गया है।

  • वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही जोड़ी बनाइए
1. मनुष्य की अन्तर्निहित पूर्णता की अभिव्यक्ति – (क) जीवाणुकोश में
2. गुरुत्वाकर्षण का आविष्कार किया था (म. प्र. 2013) – (ख) शिक्षा है
3. विशाल बुद्धि सिमटी होती है (म. प्र. 2013) – (ग) चरित्र निर्माण करना
4. शिक्षा का उद्देश्य है (म. प्र. 2013) – (घ) न्यूटन ने।
उत्तर –
1. (ख), 2. (घ), 3. (क), 4. (ग)।

प्रश्न 2.
विवेकानंद का जन्म किस सन् में हुआ था?
उत्तर –
1863 में।

प्रश्न 3.
विवेकानंद का बचपन का नाम क्या था? (म. प्र. 2009, 11, 13)
उत्तर –
नरेन्द्रनाथ।

प्रश्न 4.
‘शिक्षा’ किस विधा की रचना है?(म. प्र. 2009, 12)
उत्तर –
निबंध।

प्रश्न 5.
ज्ञान का मूल उद्गम स्थान ………… है। (मन/ हृदय) (म. प्र. 2010, 11)
उत्तर –
मन।

प्रश्न 6.
जो बीत चुका , ऐसा समय ……. कहलाता है। (आगत/अतीत) (म. प्र. 2010)
उत्तर –
अतीत।

प्रश्न 7.
काँच के समान पारदर्शी किसे कहा गया है? (म. प्र. 2015)
उत्तर –
काँच के समान पारदर्शी स्वामी रामकृष्ण परमहंस को कहा गया है।

  • दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
शिक्षा मनुष्य की अंतर्निहित पूर्णता को किस प्रकार अभिव्यक्त करती है?
उत्तर –
ज्ञान मनुष्य में स्वभावतः निहित होता है। ज्ञान बाहर से नहीं आता, सब अंदर ही होता है। मनुष्य जो कुछ ‘जानता’ है, यथार्थ में वह आविष्कार करता है। अंतर्निहित ज्ञान से वह पर्दा हटाता है। अनन्त ज्ञान स्वरूप आत्मा से पतला झीना परदा हटा लेना ज्ञान का प्रकटीकरण है।

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प्रश्न 2.
सुधार के लिए बलात् उद्योग करने का परिणाम सदैव उल्टा ही क्यों होता है?
उत्तर –
निषेधात्मक विचार लोगों को दुर्बल बना देते हैं। सुधार के लिए बल प्रयोग का उल्टा प्रभाव पड़ता है। हमें यह मानना होगा कि गधे को पीटने से वह घोड़ा तो नहीं बन सकता किन्तु मर अवश्य सकता है। माता पिता के अनुचित दबाव व बल प्रयोग से बालकों के विकास का स्वतंत्र अवसर समाप्त हो जाता है। सुधार के लिए बलात् उद्योग करने का परिणाम सदैव उलटा ही होता है। यदि तुम किसी को सिंह न बनने दोगे तो वह सियार ही बनेगा।

प्रश्न 3.
मनुष्य निर्माण, जीवन निर्माण और चरित्र – निर्माण कैसे किया जा सकता है?
उत्तर –
शिक्षा बहुत – सी जानकारियाँ एकत्रित करना मात्र नहीं है। जानकारियों को आत्मसात कर किसी निष्कर्ष पर पहुँचना आवश्यक है। बिना आत्मसात किया हुआ ज्ञान कभी – भी मनुष्य निर्माण, जीवन निर्माण एवं चरित्र निर्माण में सहायक नहीं हो सकता। जानकारियों के ढेर से अच्छे पाँच सुविचार हैं, जिन्हें हम आत्मसात कर जीवन में उतार सकें। पूरे ग्रंथालय एवं विश्व कोशों को रटने मात्र से मनुष्य निर्माण, जीवन निर्माण और चरित्र – निर्माण कदापि नहीं हो सकता।

प्रश्न 4.
“तुम केवल बाधाओं को हटा सकते हो और ज्ञान अपने स्वाभाविक रूप में प्रकट हो जाएगा” इस उक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
बालक को यदि शिक्षित करना है तो शिक्षा के मार्ग की बाधाओं को दूर करना आवश्यक है। बालक अपने को स्वयं शिक्षित कर लेगा। ज्ञान का यह स्वाभाविक स्वरूप होगा। पौधे के विकास के लिए जमीन को कुछ पोली बनाना होता है। रक्षा के लिए घेरा बनाना होता है। मनुष्य पौधे के लिए मिट्टी, पानी एवं समुचित वायु का प्रबंध करता है। यहीं मनुष्य का कार्य समाप्त हो जाता है। पौधा अपनी प्रकृति के अनुसार जो आवश्यक होगा ले लेगा। ठीक यही बात विद्यार्थी पर लागू होती है। वातावरण एवं संसाधन उपलब्ध कराकर हम ज्ञान के मार्ग की बाधा दूर करते हैं।

प्रश्न 5.
पाठ के आधार पर ज्ञानी और अज्ञानी में अंतर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
मनुष्य के अन्तर्मन में ज्ञान संचित रहता है। सीखने की प्रक्रिया में आविष्करण की क्रिया बढ़ती जाती है। इससे ज्ञान में वृद्धि होती है। अन्तर्मन में संचित ज्ञान से जितना ज्यादा आवरण उठ जाता है, अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा वह व्यक्ति अधिक ज्ञानी है। जिस पर यह आवरण तह – पर – तह पड़ा हुआ है, वह अज्ञानी है।

प्रश्न 6.
व्यक्ति सर्वज्ञ सर्वदर्शी कब बनता है? (म. प्र. 2011)
उत्तर –
व्यक्ति सर्वज्ञ सर्वदर्शी तब बनता है जब उसके मन में मौजूद ज्ञान पर पड़ा हुआ पर्दा पूरी तरह से हट जाता है। जब तक यह पर्दा पड़ा रहता है, तब तक वह अज्ञानी बना रहता है।

2. दो बैलों की कथा

– प्रेमचंद

ससंदर्भ व्याख्या कीजिए
1. “बहुत दिनों साथ रहते – रहते दोनों में भाई – चारा हो गया था। दोनों आमने – सामने या आस – पास बैठे हुए एक – दूसरे से मूक – भाषा में विचार – विनिमय करते थे। एक – दूसरे के मन की बात कैसे समझ जाता था? हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है।”

शब्दार्थ – भाई – चारा = भाई जैसा प्रेम, मूक = चुप, विनिमय = लेन – देन, गुप्त = छिपी, वंचित = न पाना। संदर्भ प्रस्तुत गद्यांश मुंशी प्रेमचंद की कहानी ‘दो बैलों की कथा’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – प्रेमचंद ने यहाँ पर हीरा – मोती नामक बैलों के स्नेह का चित्रांकन किया है।

व्याख्या – प्रेमचंद कहते हैं कि हीरा – मोती की जोड़ी बहुत दिनों से साथ थी जिसके कारण दोनों एक दूसरे को सगे – भाइयों की तरह चाहने लगे थे। उन्हें जब विश्राम के लिए एक साथ बाँध दिया जाता था तो शायद पशुओं की किसी गुप्त भाषा में चुपचाप विचारों का लेन – देन परस्पर किया करते थे। लेखक के अनुसार मनुष्य जीवों मे सर्वश्रेष्ठ है किन्तु ऐसा स्नेह, प्रेम, तालमेल मनुष्यों के समाज में देखने को नहीं मिलता। पशु की तुलना मनुष्यों में ज्यादा मारकाट मची हुई है।

विशेष – प्रेमचन्द की पशुओं के प्रति गहन अन्तर्दृष्टि प्रकट हुई है। प्रेमचन्द ने पशु समाज को मनुष्य समाज से श्रेष्ठ बताया है।

2. “दढ़ियल झल्लाकर बैलों को जबरदस्ती पकड़ ले जाने के लिए बढ़ा। उसी वक्त मोती ने सींग चलाया, दढ़ियल पीछे हटा। मोती ने पीछा किया।दढ़ियल भागा। मोती पीछे दौड़ा। गाँव के बाहर निकल जाने पर वह रुका पर खड़ा दढ़ियल का रास्ता देख रहा था। दढ़ियल दूर खड़ा धमकियाँ दे रहा था, गालियाँ निकाल रहा था, पत्थर फेंक रहा था और मोती विजयी शूर की भाँति उसका रास्ता रोके खड़ा था। गाँव के लोग यह तमाशा देखते थे और हँसते थे।

शब्दार्थ – दढ़ियल = दाढ़ी वाला पुरुष, शूर = वीर। संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश मुंशी प्रेमचन्द की कहानी ‘दो बैलों की कथा’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – दढ़ियल मियाँ द्वारा बैलों को खरीदने की स्थिति में पुराने मालिक झूरी को देखकर हीरा – मोती की प्रतिक्रिया प्रकट की गई है। .

व्याख्या – मुंशी प्रेमचंद के अनुसार झूरी ने दाढ़ी वाले पुरुष के हाथों में अपने प्यारे बैलों को देखा। उसने हीरा – मोती पर अधिकार जताया किन्तु, दढियल मियाँ बैल वापस करने से इंकार कर देता है तथा उन्हें नीलामी में खरीदने की बात बताता है। कोई चारा न देखकर हीरा एवं मोती दुःखित होते हैं। अन्ततः मोती का सब्र टूट जाता है। वह दढ़ियल को मारने के लिए दौड़ाता है। मोती के आक्रमक रूप को देखकर दढ़ियल भागता है किन्तु मोती उसका पीछा नहीं छोड़ता व उसे गाँव के बाहर खदेड़ कर ही दम लेता है। दढ़ियल का मोती पर कोई वश नहीं चलता। वह मोती पर पत्थर इत्यादि फेंककर थक जाता है। दढियल एवं मोती के युद्ध में मोती विजयी होता है। गाँव के लोग इस अद्भुत तमाशे का खूब मजा लेते हैं।

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विशेष – वर्णनात्मक शैली में चित्रण किया गया है। भाषा सरल एवं प्रसंगानुकूल है।

  • लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
झूरी के बैल किस नस्ल के थे?
उत्तर –
पछाई नस्ल।

प्रश्न 2.
गोंई को झूरी ने कहाँ भेज दिया?
उत्तर –
ससुराल।

प्रश्न 3.
मुंशी प्रेमचंद की कहानियों के संग्रह का क्या नाम है?
उत्तर –
मानसरोवर।

प्रश्न 4.
‘दो बैलों की कथा’ में बैलों का क्या नाम था? (म. प्र. 2013)
उत्तर –
हीरा – मोती।

प्रश्न 5.
गया के घर में हीरा – मोती को सर्वाधिक प्रेम कौन करता था?
उत्तर –
लड़की।

प्रश्न 6.
कहानी सम्राट किसे कहा जाता है?
उत्तर –
मुंशी प्रमेचंद को।

प्रश्न 7.
उपन्यास सम्राट के नाम से विख्यात कौन है?
उत्तर –
मुंशी प्रेमचंद।

प्रश्न 8.
झूरी के बैल ………….जाति के थे। (जर्सी/पछाई) (म. प्र. 2010, 15)
उत्तर –
पछाई

प्रश्न 9.
सही जोड़ी बनाइए
1. झूरी – (क) कैसे नमक – हराम बैल हैं
2. बालिका – (ख) चारा मिलता तो क्या भागते
3. मजूर – (ग) दोनों फूफा वाले बैल भागे जा रहे हैं
4. झूरी की पत्नी – (घ) मालकिन मुझे मार ही डालेगी।
उत्तर –
1. (ख), 2. (ग), 3. (घ), 4. (क)।

प्रश्न 10.
गया के घर जाकर दोनों बैलों ने नाँद में मुँह क्यों नहीं डाला? (म. प्र. 2015)
उत्तर –
गया के घर जाकर दोनों बैलों ने नाँद में मुँह नहीं डाला। यह इसलिए कि उनका अपना घर छूट गया था। यह तो पराया घर था। वहाँ के लोग उन्हें बेगाने लग रहे थे। उन्हें वहाँ का खाना, पीना और रहना तनिक भी रास नहीं आया।

  • दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
झरी के घर प्रातः काल लौटे बैलों का किसने स्वागत किया?
अथवा
कैसे प्रातःकाल झूरी के घर वापस आने पर बैलों का स्वागत किस प्रकार किया गया?
उत्तर –
झूरी प्रात:काल बैलों को देखकर स्नेह से गदगद हो गया। दौड़कर उन्हें गले लगा लिया। प्रेमालिंगन और चुम्बन का वह दृश्य अत्यंत मनोहारी था। घर और गाँव के लड़कों ने तालियाँ बजा – बजाकर उनका स्वागत किया। दोनों पशु वीरों को अभिनन्दन स्वरूप कोई अपने घर से रोटियाँ लाया, कोई गुड़, कोई चोकर और कोई भूसी लाकर खिलाया।

प्रश्न 2.
गया के घर से भाग आने पर बैलों के साथ कैसा व्यवहार किया गया?
उत्तर –
गया के घर से भाग आने पर बैलों के लिए झूरी की पत्नी ने कहा – “कैसे नमक हराम बैल हैं कि एक दिन वहाँ काम न किया, भाग खड़े हुए।” झूरी की पत्नी ने बैलों को काम चोर’ कहा और उन्हें खली, चोकर देना बंद कर दिया। सूखे भूसे के सिवा उन्हें कुछ नहीं दिया गया। रसहीन भूसा में हीरा – मोती ने मुँह तक नहीं डाला।

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प्रश्न 3.
दोनों बैलों ने आजादी के लिए क्या – क्या प्रयास किए?
उत्तर –
दोनों बैलों ने गया को इधर – उधर दौड़ाकर थका डाला। उसके घर जाने पर उन्होंने कामचोरी का व्रत धारण कर लिया। अन्ततः अपनी उपेक्षा से आहत होकर पगहा तुड़ाकर दोनों झूरी के घर भाग गए। दोनों के मन में गया या बालिका को चोट पहुँचाने का भी विचार आया किन्तु हीरा की समझाइश पर मोती ने यह विचार त्याग दिया। दूसरी बार जब गया उन्हें फिर अपने यहाँ लेकर आता है तो रस्सियाँ चबाकर उसे तोड़ना चाहते हैं किन्तु रस्सी मोटी होने के कारण उनके मुँह में नहीं आती। दढ़ियल मियाँ को भी मोती मारने का भय पैदा कर स्वतंत्र हो जाता है।

प्रश्न 4.
हीरा – मोती के पारस्परिक प्रेम का वर्णन कीजिए। (Imp.)
उत्तर –
हीरा – मोती में परस्पर भाईचारा था। एक – दूसरे से दोनों भूक भाषा में विचार – विनिमय किया करते थे। दोनों एक – दूसरे को सूंघकर एवं चाटकर अपना प्रेम प्रकट किया करते थे। कभी – कभी स्नेहवश दोनों सींग भी मिला लिया करते थे। दोनों में विनोदप्रियता, आत्मीयता एवं गजब का सामंजस्य था। हीरा मोती को अनुचित काम करने से रोकता भी था।

प्रश्न 5.
भैरों की लड़की की बैलों से आत्मीयता क्यों हो गई थी? (म. प्र. 2011)
उत्तर –
भैरों की लड़की दोनों बैलों को दो रोटियाँ चोरी से खिलाती थी। दोनों बैलों को इससे बहुत संतोष प्राप्त होता था। उन्हें लगता था कि ‘यहाँ भी किसी सज्जन का वास है।’ भैरों के लड़की की माँ मर चुकी थी। सौतेली माँ उसे मारती रहती थी, इसलिए इन बैलों से उसे एक प्रकार की आत्मीयता स्थापित हो गई थ बालिका के प्रेम के प्रसाद से दोनों अथक परिश्रम के बाद भी दुर्बल नहीं हुई।

प्रश्न 6.
दोनों बैल दढ़ियल व्यक्ति को देखकर क्यों काँप उठे?
उत्तर –
हीरा – मोती को दढ़ियल व्यक्ति अत्यंत क्रूर दिखाई पड़ा। उसकी आँखें लाल तथा मुद्रा अत्यन्त कठोर थी। उसने हीरा – मोती के कूल्हों में उँगलियाँ गोदकर उनके शरीर में मांस का अनुमान लगाया। उसका चेहरा देखकर अन्तर्ज्ञान से दोनों मित्र के दिल काँप उठे। उन्हें मन ही मन पक्का विश्वास हो गया कि उनका अन्त अत्यंत निकट है।

प्रश्न 7.
सिद्ध कीजिए कि कहानी अपने उद्देश्य में सफल रही है? (म. प्र. 2009)
उत्तर –
‘दो बैलों की कथा’ में कथाकार ने मानवीय आचरण और अनुभूति को केवल मनुष्य केन्द्रित नहीं माना है। वे मानते हैं कि ये विशेषताएँ पशुओं में भी होती हैं। सामान्य मनुष्य की तरह पशुओं में भी हर्ष, उल्लास, सुख – दुःख और अपने – पराए का बोध होता है। मनुष्य एवं पशु के बीच के संवेदनात्मक संबंध को भी कहानी में उजागर करने का प्रयास है। पशुओं के साथ मनुष्य द्वारा किया जाने वाला आत्मीय व्यवहार जहाँ इस कहानी में भारतीय व्यक्ति की करुणा के विस्तार को व्यक्त करता है, वहीं उनके साथ किया जाने वाला क्रूरता एवं दुर्व्यवहार, मनुष्य के व्यवसायगत उपयोगितावादी दृष्टिकोण को भी प्रकट करता है। कहानी अपने उद्देश्य में अत्यंत सफल रही है।

3. मिठाई वाला

– भगवती प्रसाद वाजपेयी

ससंदर्भ व्याख्या कीजिए
1. “मेरा वह सोने का संसार था। बाहर संपत्ति का वैभव था, भीतर सांसारिक सुख था। स्त्री सुंदर थी, मेरी प्राण थी, बच्चे ऐसे सुन्दर थे, जैसे सोने के सजीव खिलौने। उनकी अठखेलियों के मारे घर में कोलाहल मचा रहता था। समय की गति। विधाता की लीला अब कोई नहीं है।”

शब्दार्थ – वैभव = सम्पन्नता, सांसारिक = संसार संबंधी, सजीव = जीव युक्त, अठखेलियाँ = चंचलता, कोलाहल = शोर, विधाता = ईश्वर। संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश भगवती प्रसाद वाजपेयी की कहानी ‘मिठाई वाला’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – मिठाई वाला दादी को अपने जीवन की दारुण घटना से अवगत करा रहा है।

व्याख्या – मिठाई वाला अपने अतीत को याद कर रहा है। वह दादी को बताता है कि वह भी एक नगर का सम्मानित व्यक्ति था। उसके भी स्त्री व बच्चे थे। उसका जीवन सुखमय एवं स्वर्णिम था। जीवन में धन सम्पत्ति की कोई कमी नहीं थी। सांसारिकता में जकड़ा हुआ वह भी सुख महसूस करता था। सुन्दर स्त्री व सुन्दर बच्चे उसके प्राण थे। कुंदन के समान रूपवान थे। बच्चों की चंचलता से घर में दिन भर कोहराम मचा रहता था किन्तु ईश्वर को शायद यह मंजूर नहीं था। सब दिवंगत हो गए। उसके जीवन में अब कोई नहीं है। अपने दिवंगत बच्चों की छबि वह मिठाई खरीदने वाले बच्चों में महसूस किया करता है।

विशेष – संस्मरणात्मक कथन है। अतीत की स्मृतियों एवं दुःख का चित्रांकन है। भाग्यवाद एवं ईश्वरीय सत्ता पर विश्वास व्यक्त किया गया है।

2. “प्राण निकाले नहीं निकले, इसीलिए अपने बच्चों की खोज में निकला हूँ। वे सब अंत में होंगे तो यही कहीं। आखिर, कहीं – न – कहीं जन्में ही होंगे। उस तरह रहता तो घुल – घुल कर मरता। इस तरह सुख – संतोष के साथ मरूँगा। इस तरह के जीवन में कभी – कभी अपने उन बच्चों की एक झलक – सी मिल जाती है।”

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश भगवती चरण वर्मा की कहानी ‘मिठाई वाला’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – मिठाई वाला द्वारा अपने जीवन जीने का स्पष्टीकरण प्रस्तुत किया गया है।

व्याख्या – मिठाई वाला दादी को बताता है कि जीवन बोझ अवश्य है, किन्तु चाहकर भी मृत्यु नहीं आती। अपने दिवंगत बच्चों की खोज में गली – गली भटकता रहता हूँ। मेरे बच्चे कहीं – न – कहीं जन्म अवश्य लिए होंगे। बच्चों की याद में यदि मैं खोया रहता तो तड़प – तड़प कर मरना होता! मिठाई बेचकर बच्चों का सामीप्य प्राप्त कर जब भी मरूँगा तो सुख एवं संतोष के साथ मर सकूँगा। मिठाई वाला के रूप में गली – गली घूमते हुए विभिन्न बच्चों से हँसी – मजाक करते हुए मुझे महसूस नहीं हो पाता कि मेरे अपने बच्चे दिवंगत हो चुके हैं। मैं इन्हीं बच्चों में अपने बच्चों का प्रतिरूप पाता हूँ।

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विशेष – करुणाजनक स्थिति का चित्रांकन है। पुनर्जन्म के प्रति आस्था प्रकट की गई है। अतीत की स्मृतियों का चित्रांकन प्रभावी ढंग से है।

  • वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथनों का पात्रों से संबंध स्थापित कीजिए
कथन – पात्र
1. अब इस बार ये पैसे न लूँगा। – (क) विजय बाबू
2. तुम लोगों को झूठ बोलने की – (ख) दादी माँ आदत ही होती है।
3. ऐ मिठाई वाले, इधर आना। – (ग) रोहिणी
4. इन व्यवसायों में भला तुम्हें क्या मिलता होगा – (घ) मिठाईवाला।
उत्तर –
1. (घ), 2. (क), 3. (ख), 4. (ग)।

प्रश्न 2.
भगवती प्रसाद वाजपेयी के एक कहानी संग्रह का नाम लिखिए।
उत्तर –
स्नेह।

प्रश्न 3.
‘मिठाईवाला’ किस विधा की रचना है? (म. प्र. 2009, 12)
उत्तर –
कहानी।

प्रश्न 4.
भगवती प्रसाद वाजपेयी ने कौन – सी सरकारी नौकरी की थी?
उत्तर –
अध्यापन।

प्रश्न 5.
खिलौने वाले की आवाज ……… थी। (मादक – मधुर/कठोर – कर्कश) (म. प्र. 2009)
उत्तर –
मादक – मधुर।

प्रश्न 6.
मुरली वाले का व्यक्तित्व कैसा था? (म. प्र. 2015)
उत्तर –
मुरली वाले का व्यक्तित्व बड़ा सरल और रोचक था।

प्रश्न 7.
निम्न कथन सत्य है अथवा असत्य
1. मिठाई वाला, मुरली वाला, खिलौने वाला, अलग – अलग व्यक्ति हैं। (म. प्र. 2013)
2. मिठाई वाला धनी व्यक्ति था, इसलिए उसने मुफ्त में दादी को मिठाई दी।
3. जयशंकर प्रसाद को कहानी सम्राट कहा जाता है।
उत्तर –
1. असत्य, 2. असत्य, 3. असत्य।

  • दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मुरली वाले के भाव सुनकर विजय बाबू ने क्या प्रतिक्रिया व्यक्त की?
उत्तर –
मुरली वाला विजय बाबू को कहता है कि सबको तीन – तीन पैसे के हिसाब से मुरली दी है, किन्तु आपको दो – दो पैसे में ही दे दूँगा। विजय बाबू मुस्कुरा उठते हैं। सोचते हैं कि मुरली वाला ठग है। दो पैसे का एहसान लादना चाहता है। स्वयं का भाव कम करके एक पैसे का एहसान लादना चाहता है। उन्होंने प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहा – “तुम लोगों को झूठ बोलने की आदत ही होती है। देते होंगे सभी को दो – दो पैसे में पर एहसान का बोझा मेरे ही ऊपर लाद रहे हो।”

प्रश्न 2.
मुरली वाले के अनुसार ग्राहकों के क्या दस्तूर हैं?
उत्तर –
मुरली वाले के अनुसार – “ग्राहकों का दस्तूर होता है कि दुकानदार चाहे हानि ही उठाकर चीज क्यों न बेचें, पर ग्राहक यही समझते हैं – दुकानदार मुझे लूट रहा है।” अविश्वास की गहरी छाया क्रेता एवं विक्रेता के बीच पाई जाती है।

प्रश्न 3.
“तुम्हारी माँ के पास पैसे नहीं है अच्छा, तुम भी यह लो।” इस कथन से मुरली वाले की किस स्वभावगत विशेषता का पता चलता है?
उत्तर –
इस कथन में बच्चों के प्रति स्नेह, ममत्व एवं उदारता की भावना प्रकट हुई है। मुरली वाला प्रत्येक बच्चे को अपना समझता है एवं उनसे स्नेहभाव रखता है। कुछ बच्चे ऐसे भी होते हैं जिनके पास पैसे नहीं होते। उन्हें पहले तो वह घर से पैसे लाने को कहता है किन्तु जब वह पैसे नहीं ला पाते तो उन्हें वह मुफ्त में मुरली देकर चला जाता है। इससे पता चलता है कि उस मुरली वाले पर व्यावसायिकता हावी नहीं है।

प्रश्न 4.
मिठाई वाला दादी को अपनी मिठाइयों की क्या – क्या विशेषताएँ बताता है? (म. प्र. 2011, 12)
उत्तर –
दादी को मिठाई वाला इन शब्दों में अपने मिठाइयों की विशेषताएँ बताता है—“रंग – बिरंगी, कुछ खट्टी, कुछ – कुछ मीठी, जायकेदार, बड़ी देर तक मुँह में टिकती है। जल्दी नहीं घुलती। बच्चे इन्हें बड़े चाव से चूसते हैं। इन गुणों के सिवा ये खाँसी भी दूर करती हैं। कितनी दूँ? चपटी, गोल, पहलदार गोलियाँ हैं।”

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प्रश्न 5.
कहानी के आधार पर मिठाई वाला की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए। (म. प्र. 2010)
उत्तर –
मिठाई वाला वात्सल्य भाव से ओत – प्रोत समर्पणशील व्यक्ति है। विविध व्यवसायों का उद्देश्य बच्चों का सामीप्य प्राप्त करना है। अपने दिवंगत बच्चों की छवि नगर के बच्चों में महसूस किया करता है। उन्हें सस्ती चीजें उपलब्ध कराता है। किसी – किसी बच्चे को मुफ्त में भी सामग्रियाँ दिया करता है। वस्तुतः उसमें व्यावसायिकता हावी नहीं है। धन – प्राप्ति उसके व्यवसाय का उद्देश्य नहीं। दु:ख एवं करुणा से ओतप्रोत मिठाई वाले के हृदय में बच्चों के प्रति अपार स्नेह, ममत्व एवं उदारता समाहित है।

प्रश्न 6.
अन्य दुकानदारों और मिठाई वाले में क्या अन्तर है?
उत्तर –
अन्य दुकानदरों पर व्यावसायिकता हावी रहती है। अधिक धन अर्जन करना उनका मुख्य उद्देश्य होता है। बच्चों की सुकोमल भावनाओं का परितोष इनके पास नहीं हो सकता। जबकि मिठाई वाला शुद्ध व्यावसायिक व्यक्ति नहीं है। धनार्जन भी उसका उद्देश्य नहीं है। वात्सल्य, स्नेह, ममत्व से परिपूरित इस व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य बच्चों का सामीप्य सुख है।

प्रश्न 7.
मिठाई वाले ने रोहिणी से पैसे क्यों नहीं लिए?
उत्तर –
मिठाई वाले के दु:ख एवं करुणा को पहली बार रोहिणी ने स्पर्श किया था। इससे मिठाई वाले को अद्भुत संतोष एवं धीरज प्राप्त हुआ। रोहिणी के घर में अपने अतीत को बताकर भी उसके हृदय का बोझ कम हुआ। अन्ध व्यावसायिकता की होड़ में भी संवेदनशील इंसानों का अभाव नहीं है। रोहिणी को एक नेक दिल एवं संवेदनशील महिला समझकर उसने पैसे नहीं लिए।

4. प्रताप प्रतिज्ञा

– जगन्नाथ प्रसाद मिलिन्द’

ससंदर्भ व्याख्या कीजिए

1. “आ! काँटों के ताज! संकट के स्नेही! मेवाड़ के राजमुकुट! आ! तुझे आज एक तुच्छ सैनिक धारण कर रहा है। इसलिए नहीं कि तू वैभव का राजमार्ग है बल्कि इसलिए कि आज तू देश पर मर मिटने वालों का मुक्तिद्वार है। आ! मेरी साधना के अन्तिम साधन! इस अवनत मस्तक को माँ के लिए कट – मरने का गौरव प्रदान कर।”

शब्दार्थ – तुच्छ = छोटा, वैभव = धन, राजमार्ग = राजमहल की ओर जाने वाली सड़क, अवनत = झुका हुआ, गौरव = महत्ता।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश जगन्नाथ प्रसाद मिलिन्द’ की एकांकी ‘प्रताप प्रतिज्ञा’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में चन्द्रावत द्वारा राजमुकुट धारण करने का चित्रांकन किया गया है।

व्याख्या – ‘मिलिन्द’ जी लिखते हैं कि चन्द्रावत राजमुकुट को धारण करना आसान नहीं समझता। वह प्रलाप करता हुआ कहता है कि इस राजमुकुट के भार को एक छोटा सैनिक किस प्रकार सँभाल सकेगा। यह वैभव भोग का राजमुकुट नहीं है, अपितु काँटों मय ताज है। चन्द्रावत यह भी कहता है कि मैं जानता हूँ जो भी इस राजमुकुट को धारण करेगा उसे देश के लिए शहीद होने का अवसर अवश्य मिलेगा। शहीद होने से बड़ी मुक्ति मनुष्य की नहीं है। चन्द्रावत देश की तस्वीर राजमुकुट धारण करने के लिए अपना सिर झुका देता है।

विशेष – भाषा तत्सम प्रधान है। मातृभूमि एवं देश के प्रति उदात्त भावना प्रकट हुई है। वर्णनात्मक शैली है।

2. “आँखें खोलकर मेवाड़ी वीरों का बलिदान देखने से इस युद्ध ने कान मलकर मुझे बता दिया कि मेरा अहंकार व्यर्थ है। मुझसे कई गुनी वीरता, कई गुनी देश – भक्ति और कई गुना त्याग मेवाड़ के एक – एक सैनिक हृदय में हिलोरें ले रहा है।”

शब्दार्थ – बलिदान = त्याग, कान मलकर बताना = साफ – साफ कहना, व्यर्थ = वेकार, हिलोर = लहर।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश जगन्नाथ प्रसाद मिलिन्द की एकांकी ‘प्रताप प्रतिज्ञा’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – शक्ति सिंह का देश – भक्त सैनिकों के प्रति सम्मान व्यक्त हुआ है।

व्याख्या – ‘मिलिन्द’ जी कहते हैं कि शक्तिसिंह आत्मालाप कर रहा है। वह कहता है कि मुझे इस हल्दीघाटी के युद्ध से बिल्कुल साफ – साफ पता चल गया है कि मेरा घमण्ड वेकार ही था। मैं भ्रम एवं भूलवश स्वयं को बहुत कुछ समझ बैठा था, वस्तुत: मेवाड़ का प्रत्येक सैनिक देश के लिए कुर्बान होने को तत्पर है। मेवाड़ी सैनिकों की देश के प्रति वफादारी एवं त्याग की तुलना हो ही नहीं सकती। देश – भक्ति की अजस्त्र धारा उन सैनिकों के हृदय में तरंग पैदा कर रही है।

विशेष – तत्सम भाषा एवं भाव प्रबलता है। देश – भक्ति की अजस्र सरिता प्रवाहमान दिखाई दे रही है।

  • वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराणा प्रताप और अकबर के बीच निम्न में से कौन – सा युद्ध हुआ था – (म. प्र. 2015)
(क) हल्दी घाटी का युद्ध (ख) पानीपत का युद्ध (ग) बक्सर का युद्ध (घ) प्लासी का युद्ध।
उत्तर –
(क) हल्दी घाटी का युद्ध।

प्रश्न 2.
महाराणा प्रताप निम्न में से कहाँ के शासक थे (म. प्र. 2013)
(क) दौलताबाद के (ख) मेवाड़ के (ग) ग्वालियर के (घ) दिल्ली के।
उत्तर –
(ख) मेवाड़ के।

प्रश्न 3.
महाराणा प्रताप के घोड़े का क्या नाम था
(क) ऐरावत (ख) रफ्तार (ग) चेतक (घ) शेरा।
उत्तर –
(ग) चेतक।

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प्रश्न 4.
जगन्नाथ प्रसाद ‘मिलिन्द’ का जन्म किस स्थान पर हुआ था
(क) मेरठ (ख) कलकत्ता (ग) सागर (घ) ग्वालियर।
उत्तर –
(घ) ग्वालियर।

प्रश्न 5.
………… को अधिक होता है। (शक्तिहीन/शक्तिवान) (म. प्र. 2009)
उत्तर –
शक्तिवान।

प्रश्न 6.
प्रताप प्रतिज्ञा किस विधा की रचना है? (म. प्र. 2009)
उत्तर –
एकांकी।

प्रश्न 7.
अपनी पाठ्य – पुस्तक के किसी एक एकांकी का नाम लिखिए। (म. प्र. 2011)
उत्तर –
प्रताप – प्रतिज्ञा।

  • दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
महाराणा प्रताप की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर –
महाराणा प्रताप मेवाड़ की अस्मिता की रक्षा के लिए संघर्ष करने वाले असाधारण योद्धा हैं। वीरता, देश – भक्ति एवं त्याग की अजस्र सरिता उनके हृदय में प्रवाहमान है। मेवाड़ वासियों को उनके नेतृत्व पर दृढ़ विश्वास है। उनकी नेतृत्व क्षमता एवं वीरता के प्रदर्शन से मेवाड़ के सैनिकों को प्रेरणा मिलती है। जनता के सुयोग्य प्रतिनिधि, चित्तौड़ के उद्धारक, संजीवनी शक्ति दाता, देश की आशा एवं स्वाभिमानी व्यक्तित्व के धनी महाराणा प्रताप हैं।

प्रश्न 2.
शक्तिसिंह स्वयं को क्यों धिक्कारता है?
उत्तर –
शक्तिसिंह स्वयं को इसलिए धिक्कारता है कि महाराणा प्रताप जैसे असाधारण योद्धा, देश – भक्त, मानी और कर्तव्यनिष्ठ का भाई होकर भी देश के प्रति वफादार नहीं हैं। स्वयं के स्वार्थ एवं पदलोलुपता पर भी उसे पश्चाताप होता है।

प्रश्न 3.
महाराणा प्रताप ने चेतक के प्रति अपनी संवेदना किस प्रकार व्यक्त की? (म. प्र. 2010,11)
उत्तर –
महाराणा प्रताप ने चेतक के प्रति संवेदना इन शब्दों में व्यक्त की – “चेतक! प्यारे चेतक! तुम राह ही में चल बसे। तुम्हारी अकाल मृत्यु देखने के पहले ही ये आँखें क्यों न सदा को मुंद गई। मेरे प्यारे सुख – दु:ख के साथी, तुम्हें छोड़कर मेवाड़ में पैर रखने को जी नहीं करता शरीर का रोम – रोम घायल हो गया है, प्राण कंठ में आ रहे हैं, एक कदम चलना भी दूभर है, फिर भी इच्छा होती है कि तुम्हारें शव के पास दौड़ता हुआ लौट आऊँ, तुमसे लिपटकर जी भरकर रो लूँ और वहीं चट्टानों से सिर टकराकर प्राण दे दूँ। अपने प्राण देकर प्रताप के प्राण बचाने वाले मूक प्राणी! तुम अपना कर्तव्य पूरा कर गए पर मैं संसार से मुंह दिखाने योग्य न रहा। हाय, मेरे पापी प्राणों से तुमने किस दुर्दिन में प्रेम करना सीखा था। चेतक, चेतक प्यारे चेतक!

प्रश्न 4.
शक्तिसिंह के स्वभाव में परिवर्तन क्यों आया? (म. प्र. 2009, 12)
उत्तर –
शक्ति सिंह ने मेवाड़ के सैनिकों का बलिदान देखा तो उसके स्वभाव में परिवर्तन आया। उसे अपना अहंकार निरर्थक लगने लगा। मेवाड़ के सैनिकों की तुलना में उसे अपनी वीरता, देश – भक्ति, त्याग तुच्छ प्रतीत होने लगा।

प्रश्न 5.
एकांकी के आधार पर सच्चे सैनिक किसे कहेंगे?
उत्तर –
‘प्रताप प्रतिज्ञा’ एकांकी में सच्चा सैनिक चन्द्रावत है। उसने मातृभूमि की रक्षा एवं कर्त्तव्य निर्वाह के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी। चन्द्रावत की वीरता, त्याग एवं देश – भक्ति की भावना समाज के लिए अनुकरणीय है।

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प्रश्न 6.
प्रताप की बातें शक्तिसिंह को हृदय बेधक क्यों लगी? (म. प्र. 2015)
उत्तर –
शक्तिसिंह प्रताप को हृदय – बेधक बातें कहने के लिए उत्प्रेरित करता है। शक्तिसिंह के शब्दों में—“मेरे पापों का कड़वा फल है। मैं मेवाड़ को भूल गया था। भारतीयता को खो बैठा था। देश – भक्ति को ठुकरा चुका था। उसी का यह दण्ड है। कहो, हाँ, खूब कहो, ऐसी हृदय बेधक बातें कहो, भाई, अपराधी को खूब दण्ड मिलने दो। बिना प्रायश्चित पूरा हुए पापी की आत्मा को शान्ति नहीं मिली।।

प्रश्न 7.
युद्ध – भूमि में महाराणा प्रताप को किस विकट स्थिति का सामना करना पड़ा? (Imp.)
उत्तर –
युद्ध – भूमि में महाराणा प्रताप मुगल सेना से चारों ओर से घिर गए। उनके वार से वे घायल हो गए। उनके शरीर से खून की धारा बहने लगी। तलवार चलाते – चलाते उनके दोनों हाथ थक गए। चेतक घोड़ा मृतप्राय हो गया, फिर भी उन्हें पागलों की तरह लड़ना पड़ा था।

5. देश – प्रेम

– आचार्य रामचन्द्र शुक्ल

ससंदर्भ व्याख्या कीजिए

1. “भाइयों! बिना रूप – परिचय का यह प्रेम कैसा? जिनके सुख – दुःख के तुम कभी साथी नहीं हुए, उन्हें तुम सुखी देखना चाहते हो, यह कैसे समझे? उनसे कोसों दूर बैठे – बैठे, पड़े – पड़े या खड़े – खड़े तुम विलायती बोली में ‘अर्थशास्त्र’ की दुहाई दिया करो, पर प्रेम का नाम उसके साथ न घसीटो। प्रेम हिसाब – किताब नहीं है। हिसाब – किताब करने वाले भाड़े पर भी मिल सकते हैं, पर प्रेम करने वाले नहीं।”

शब्दार्थ – रूप – परिचय = प्रत्यक्ष देखना, विलायती बोली = विदेशी भाषा, भाड़े = किराया।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश आचार्य रामचन्द्र शुक्ल निबंध के ‘देश – प्रेम’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – प्रस्तुत गद्यांश में आचार्य शुक्ल ने प्रेम करने के लिए रूप – परिचय को आवश्यक बताया है।

व्याख्या – देशभक्तों! बिना प्रत्यक्ष, साकार दर्शन के प्रेम उत्पन्न नहीं हो सकता। देश के प्रति प्रेम होने का दावा करने के पहले देश जिन चीजों से बनता है, उनके दर्शन करना आवश्यक है। देश के लोगों से प्रेम का दावा भी नहीं किया जा सकता क्योंकि ऐसा दावा करने से पहले देशवासियों के सुख – द:ख में शामिल होना अ है। विदेशी भाषा, में अर्थशास्त्र के फार्मूले के आधार पर सुखी एवं दु:खी के वर्ग में विभाजित करने वाले देश – प्रेमी नहीं हो सकते। झूठे प्रेम की दुहाई भले ही दो किन्तु बिना सुख – दुःख में शामिल हुए ‘देश – प्रेम’ मात्र ढोंग है। अर्थशास्त्रीय फार्मूले के आधार पर अमीर – गरीब, सुखी – दुःखी बताने वाले तो किराये पर भी उपलब्ध हो जाते हैं, किन्तु क्या उन्हें देश की वास्तविक दशा का ज्ञान कभी हो सकता है न ही वे सच्चे देश – प्रेमी हो सकते हैं।

विशेष – सच्चे देश प्रेमियों की पहचान बताई गई है। व्यंग्यात्मक भाषा – शैली है।

2. “रसखान तो किसी की ‘लकुटी अरु कामरिया पर तीनों पुरों का राजसिंहासन तक त्यागने को तैयार थे, पर देश – प्रेम की दुहाई देने वालों में से कितने अपने किसी थके – माँदे भाई के फटे – पुराने कपड़ों पर रीझकर या कम से कम न खीझकर बिना मन मैला किए कमरे का फर्श भी मैला होने देंगे? मोटे आदमियों! तुम जरा – सा दुबले हो जाते, अपने अंदेशे से ही सही, तो न जाने कितनी ठठरियों पर मांस चढ़ जाता है।”

शब्दार्थ – लकुटी = लकड़ी, कामरिया = कमली या काँवर, अंदेशे = आशंका, ठठरियों = हड्डी।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश आचार्य रामचन्द्र शुक्ल के निबंध ‘देश – प्रेम’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – आचार्य शुक्ल ने दीनों – हीनों एवं गरीबों के लिए त्याग करने को कह रहे हैं। व्याख्या – आचार्य शुक्ल लिखते हैं कि भक्तिकालीन कृष्णभक्त कवि रसखान ने अपने एक पद में कृष्ण के सामीप्य के लिए, लकड़ी एवं काँवर के लिए, तीनों लोकों का राजसिंहासन छोड़ने को तत्पर दिखाई देते हैं। आचार्य शुक्ल व्यंग्य करते हुए कथित देशप्रेमियों से कहते हैं कि अरे अमीरों ! फटे – पुराने चिथड़ों में लिपटे अपने भाइयों की दुर्दशा पर भी कभी ध्यान दिया है। उन्हें कभी अपने ऊँचे प्रसादों में स्थान दिया है। या फिर फर्श गंदा होने के भय से उनकी ओर कभी हाथ बढ़ाया अरे धनिकों! तुम्हारी थोड़ी – सी चर्बी आशंका के कारण ही सही कुछ कम होती तो गरीबों की सूखी हड्डियों पर मांस की पतली परत चढ़ जाती।

विशेष – व्यंग्यात्मक भाषा का प्रयोग है। तीक्ष्ण एवं मारक शैली है।

  • वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
साँची क्यों प्रसिद्ध है?
उत्तर –
स्तूप के कारण।

प्रश्न 2.
लेखक ने किस मौसम में साँची की यात्रा की थी?
उत्तर –
बसंत ऋतु।

प्रश्न 3.
रामचन्द्र शुक्ल के निबंध संग्रह का क्या नाम है?
उत्तर –
चिन्तामणि।

प्रश्न 4.
दिए गए शब्दों से वाक्य पूरा कीजिए (रूप परिचय, देहाती, परिचय, आम)

1. यहाँ महुए – सहुए का नाम न लीजिए, लोग ………… समझेंगे। (म. प्र. 2013)
2. बिना ………… का यह प्रेम कैसा?
3. गेहूँ का पेड़ ………… के पेड़ से बड़ा होता है।
4. यह परचना ही ………… है।
5. साँची की प्रसिद्धि का कारण यहाँ के ………… हैं। (म. प्र. 2011)
उत्तर –
1. देहाती, 2. रूप परिचय, 3. आम, 4. परिचय, 5. स्तूप।

प्रश्न 5.
देश प्रेम रचना गद्य की इस विद्या में है (म. प्र. 2011)
(क) निबंध (ख) संस्मरण (ग) कहानी (घ) एकांकी।
उत्तर –
(क) निबंध।

  • लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने किस मौसम में साँची की यात्रा की थी?
उत्तर –
लेखक ने बसन्तु ऋतु में साँची की यात्रा की थी।

  • दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
ला.देश – प्रेम को साहचर्य प्रेम क्यों कहा गया है? (म. प्र. 2011)
उत्तर –
जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें बराबर आँखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते रहते हैं, जिनका हमारा हर घड़ी का साथ रहता है। जिनके सान्निध्य का हमें अभ्यास पड़ जाता है। उनके प्रति लोभ या राग ही हो सकता है। इसे ही साहचर्य से उपजा देश – प्रेम कह सकते हैं।

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प्रश्न 2.
रसखान ने ब्रज भूमि के प्रेम के संबंध में क्या कहा है? (म. प्र. 2012)
उत्तर –
रसखान ने ब्रजभूमि के संबंध में प्रेम व्यक्त करते हुए लिखा है

“नैनन सों, ‘रसखान’ जबै ब्रज के वन, बाग, तड़ाग, निहारौं,
केतिक वे कल धौत के धाम करील, के कुंजन ऊपर वारौं।’

प्रश्न 3.
देश के स्वरूप से परिचित होने के लिए लेखक ने किन – किन बातों पर बल दिया है? (म. प्र. 2009)
उत्तर –
देश के स्वरूप से परिचित होने के लिए खेतों की हरियाली, नालों के कलकल प्रवाह, पलाश के लाल – लाल फूलों, कछार में पशुओं के चरते हुए झुण्डों के बीच चरवाहों की तानें, आम के बगीचों से झाँकते ग्रामों, आम के पेड़ के नीचे की बैठकों का स्वरूप दर्शन करना होगा।

प्रश्न 4.
गेहूँ का पेड़ आम के पेड़ से छोटा होता है या बड़ा। यह कथन किस संदर्भ में कहा गया है?
उत्तर –
लखनऊ के नवाब जमीनी नहीं थे। कोई आश्चर्य नहीं कि कोई पूछ लें कि “गेहूँ का पेड़ आम के पेड़ से छोटा होता है या बड़ा।” हिन्दुस्तान में भी देशीपन एवं ग्राम्यता को लोग अपनी तौहीन समझते हैं। बाबूपन में बट्टा यहाँ कोई नहीं लगाना चाहता।

प्रश्न 5.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य के इतिहास को कितने भागों में बाँटा है?
उत्तर –
शुक्लजी ने हिन्दी साहित्य के इतिहास को चार भागों में बाँटा है

  1. आदिकाल,
  2. भक्तिकाल,
  3. रीतिकाल,
  4. आधुनिक काल।

प्रश्न 6.
अपने स्वरूप को भूलने पर हमारी कैसी दशा होगी?
उत्तर –
अपने स्वरूप को भूलने पर हमारी दशा अपनी परम्परा से संबंध तोड़कर नई उभरी हुई इतिहास शून्य जातियों के समान होगी।

6. राजेन्द्र बाबू

– महादेवी वर्मा

ससंदर्भ व्याख्या कीजिए

1. “राजेन्द्र बाबू की मुखाकृति ही नहीं, उनके शरीर के सम्पूर्ण गठन में एक सामान्य भारतीय जन की आकृति और गठन की छाया थी, अतः उन्हें देखने वाले को कोई – न – कोई आकृति या व्यक्ति स्मरण हो जाता था और वह अनुभव करने लगता था कि इस प्रकार के व्यक्ति पहले भी कहीं देखा है। आकृति तथा वेशभूषा के समान ही वे अपने स्वभाव और रहन – सहन में सामान्य भारतीय या भारतीय कृषक का ही प्रतिनिधित्व करते थे। प्रतिभा और बुद्धि की विशिष्टता के साथ – साथ उन्हें जो गम्भीर संवेदना प्राप्त हुई थी, वही उनकी सामान्यता को गरिमा प्रदान करती थीं।”

शब्दार्थ – मुखाकृत्ति = मुँह की बनावट, स्मरण = याद, वेशभूषा = पहनावा, प्रतिभा = बुद्धि की प्रखरता, विशिष्टता = विशेषता, संवेदना = दु:ख में भागीदार, गरिमा = गौरव।

संदर्भ प्रस्तुत गद्यांश महादेवी वर्मा के संस्मरण ‘राजेन्द्र बाबू’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – महादेवी वर्मा ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के सम्पूर्ण व्यक्तित्व पर प्रकाश डाला है।

व्याख्या – डॉ. राजेन्द्र प्रसाद का चेहरा – मोहरा, शरीर की बनावट आम भारतीय नागरिक के समान थी। आमतौर पर समाज में हर दूसरा – तीसरा व्यक्ति राजेन्द्र बाबू जैसा ठेठ होता है। उन्हें देखकर इसीलिए भ्रम हो जाता था कि कहीं पहले देखा है। आम भारतीय किसान के समान उनका रहन – सहन एवं स्वभाव था। कृषक वर्ग के वे प्रतिनिधि लगते थे। ज्ञान की आभा एवं बुद्धि की तीक्ष्णता का प्रभाव उनके चेहरे पर विद्यमान रहता था। वे एक संवेदनशील इंसान थे। सभी व्यक्तियों में ऐसी संवेदनशीलता नहीं पाई जाती। इन्हीं गुणों के कारण वे सामान्य होते हुए विशिष्ट थे।

विशेष – चित्रात्मक शैली। तत्सम भाषा। भावात्मकता के साथ व्यक्तित्व का विश्लेषण है।

2. “जीवन मूल्यों की परख करने वाली दृष्टि के कारण उन्हें देश रत्न’ की उपाधि मिली और मन की सरल स्वच्छता ने उन्हें अजात शत्रु बना दिया। अनेक बार प्रश्न उठता है, क्या वह साँचा टूट गया जिसमें ऐसे कठिन कोमल चरित्र ढलते थे।”

शब्दार्थ – परख = पहचान, उपाधि = सम्मान, अजात शत्रु = शत्रु विहीन, साँचा = प्रतिरूप तैयार करने हेतु पूर्व निर्मित आकार।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश महादेवी वर्मा के संस्मरण ‘राजेन्द्र बाबू’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – इसमें लेखिका ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की महानता का उल्लेख किया है।

व्याख्या – लेखिका महादेवी वर्मा ने लिखा है कि दया, प्रेम, सहयोग, करुणा इत्यादि मानवीय मूल्य राजेन्द्र बाबू के व्यक्त्वि में निहित थे। इन्हीं सद्गुणों के कारण उन्हें ‘देश रत्न’ की पदवी प्रदान की गई थी। राजेन्द्र बाबू अत्यंत सरल, स्वच्छ एवं निष्कपट व्यक्ति थे, इसी कारण उनका कोई भी शत्रु नहीं था। आज समाज एवं राजनीति के क्षेत्र में इस प्रकार के मानवीय मूल्यों को धारण करे वाले सरल एवं स्वच्छ राजनेताओं का अभाव हो गया है। राजेन्द्र बाबू का प्रतिरूपी तैयार करने वाला साँचा शायद नष्ट हो चुका है। तभी तो वैसे इंसान अब नहीं हुआ करते।

विशेष – तत्सम शब्दावली का प्रयोग है। राजेन्द्र बाबू की महानता के कारणों को उद्धृत किया गया है। वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है।

  • वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू को निम्न में से कौन – सी उपाधि प्राप्त हुई थी (म. प्र. 2011)
(क) पद्म भूषण (ख) भारत रत्न (ग) देश रत्न (घ) भारत पुरुष।
उत्तर –
(ग) देश रत्न।

प्रश्न 2.
राजेन्द्र बाबू देश के किस सर्वोच्च पद पर कार्यरत हुए
(क) प्रधानमंत्री (ख) मुख्य न्यायाधीश (ग) मुख्यमंत्री (घ) राष्ट्रपति।
उत्तर –
(घ) राष्ट्रपति।

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प्रश्न 3.
राजेन्द्र बाबू के प्रथम दर्शन लेखिका ने कहाँ किए (म. प्र. 2015)
(क) राष्ट्रपति भवन (ख) पटना के रेल्वे स्टेशन (ग) बनारस (घ) भोपाल।
उत्तर –
(ख) पटना के रेल्वे स्टेशन।

प्रश्न 4.
‘राजेन्द्र बाबू’ महादेवी वर्मा की किस विधा की रचना है (म. प्र. 2009, 13)
(क) संस्मरण (ख) रेखाचित्र (ग) आत्मकथा (घ) रिपोर्ताज।
उत्तर –
(क) संस्मरण।

  • दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राजेन्द्र बाबू के व्यक्तित्व के उन कतिपय पहचान चिन्हों का उल्लेख कीजिए जो भारतीय जन की आकृति को व्यक्त करते हैं?
उत्तर –
राजेन्द्र बाबू की मुखाकृति, शारीरिक गठन साधारण भारतीय जन की मुखाकृति एवं शारीरिक गठन से मेल खाती थी। उन्हें देखने वाले को कोई – न – कोई आकृति या व्यक्ति स्मरण हो आता था। उन्हें अनुभूत होता था कि इन्हें कहीं देखा है। आकृति एवं वेशभूषा के समान ही वे अपने स्वभाव और रहन – सहन में भी साधारण भारतीय या भारतीय किसान का प्रतिनीधित्व करते थे। उनकी संवेदनशीलता उनकी सामान्यता को गरिमा प्रदान करती थी।।

प्रश्न 2.
राजेन्द्र बाबू की सहधर्मिणी के गुणों का उल्लेख कीजिए। (Imp.)
उत्तर –
राजेन्द्र बाबू की सहधर्मिणी जमींदार परिवार से थी। राजेन्द्र बाबू की पत्नी होने का घमण्ड उन्हें कभी नहीं रहा। उनके मन में कोई मानसिक दंभ नहीं था। सबके प्रति वे समान ध्यान रखती थी। राष्ट्रपति भवन में भोजन बनाना, आम भारतीय गृहिणी की तरह परिजनों को भोजन कराना उनकी दिनचर्या में शामिल था। सप्ताह में एक दिन वे उपवास अवश्य रखती थीं।

प्रश्न 3.
पाठ के आधार पर राजेन्द्र बाबू की चारित्रिक विशेषताएँ लिखिए। (म. प्र. 2015)
उत्तर –
डॉ. राजेन्द्र प्रसाद की शारीरिक बनावट तथा मुखाकृति आम भारतीय जन या कृषक की थी। ग्राम्यता से उन्हें विशेष रुचि थी। भारतीयता की झलक उनके व्यक्तित्व में दिखाई देती थी। सरलता, स्वच्छता, जीवन मूल्यों के प्रति सजगता, प्रतिभा, बुद्धि में विशिष्टता तथा संवेदनशीलता उनके चरित्र की प्रमुख विशेषताएँ थीं।

प्रश्न 4.
राजेन्द्र बाबू को अजातशत्रु किस संदर्भ में कहा जाता है? (म. प्र. 2009, 13)
उत्तर –
राजेन्द्र बाबू का मन अत्यंत सरल एवं स्वच्छ था। इन्हीं गुणों के कारण इन्हें लोग पसंद करते थे। उनका सामान्य एवं राजनैतिक जीवन में कोई दुश्मन नहीं था। इसीलिए उन्हें अजातशत्रु कहते थे।

प्रश्न 5.
सामान्यतः हमारा उपवास कैसा होता है?
उत्तर –
सामान्यत: उपवास में हम आम दिनों की अपेक्षा कुछ अधिक स्वादिष्ट सामग्री ग्रहण कर लेते हैं।
फल – फूल, दूध – दही, तली – भुनी सामग्रियों से उपवास का जायका कुछ ज्यादा हो जाता है, जबकि उपवास में काम चलाऊ, साधारण अल्पाहार करना चाहिए।

7. हिम प्रलय

– डॉ. जयन्त नार्लीकर

ससंदर्भ व्याख्या कीजिए

1. “उनकी एकता और अनुशासन यदि मानव जाति में होती तो विभिन्न देशों में भारी भगदड़ न मची होती। तकनीकी लिहाज से जापान, यूरोप, रूस, कनाडा जैसे प्रगत राष्ट्र भी इस हिमपात का मुकाबला नहीं कर सके। अनेक शहरों में पाँच से छः मीटर तक बर्फ गिरी थी। इतने भीषण हिमपात ने चारों तरफ तबाही मचा दी।”

शब्दार्थ – भगदड़ = अस्थिरता, लिहाज = दृष्टि से, प्रगत = विकसित, हिमपात = बर्फ का गिरना, तबाही = बर्बादी।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश डॉ. जयन्त नार्लीकर की विज्ञान कथा ‘हिम प्रलय’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – डॉ. जयन्त नार्लीकर ने मानव समुदाय के मदभेद को पतन का कारण बताया है।

व्याख्या – पशु – पक्षी परस्पर एकता एवं अनुशासन में बँधे होते हैं। प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ मनुष्य इन पशु पक्षियों से सीख क्यों नहीं लेता? पशु – पक्षी खतरे का अनुमान कर सांकेतिक भाषा में सबको एकत्र कर सुरक्षित स्थानों पर चले जाते हैं। मनुष्य में भी अनुकरण, एकता एवं अनुशासन की भावना होती तो वे भी प्राकृतिक कोपों से बच सकते थे। जापान, यूरोप, रूस, कनाडा इत्यादि देशों को विकसित माना जाता है किन्तु इन देशों ने भी भारी बर्फ गिरने का अनुमान नहीं किया। असाधारण बर्फबारी के बाद सड़कों पर पाँच – छ: मीटर मोटी बर्फ की परत चढ़ गई। सर्वत्र खूब तबाही हुई। बच गए तो सिर्फ पशु – पक्षी।

विशेष – भाषा तत्सम एवं शैली वर्णनात्मक है। हिमपात को रुचिवर्द्धक एवं ज्ञानवर्द्धक तरीके से समझाया गया है। मनुष्य को पशु – पक्षियों से एकता एवं अनुशासन की सीख लेने को कहा गया है।

2. “प्रकृति और इंसान के बीच छिड़े युद्ध में इंसान की जीत तो हुई थी, लेकिन अब उसे अनेक समस्याओं का सामाना करना था। बर्फ पिघलने से ‘न भूतो न भविष्यति’ बाढ़ आने वाली थी। पृथ्वी की जनसंख्या आधी हो चुकी थी। अनेक बहुमूल्य चीजें इसी आक्रमण में नष्ट हो गई थी। जिस एकता का परिचय इंसान ने इन्द्र पर आक्रमण के दौरान दिया था, क्या ……?”

शब्दार्थ – ‘भूतो न भविष्यति’ = न हुआ है और न होगा, बहुमूल्य = कीमती, आक्रमण = हमला।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश डॉ. जयंत नार्लीकर की विज्ञान – कथा हिम – प्रलय से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – हिमपात पर मानव मस्तिष्क के विजय का वर्णन किया गया है।

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व्याख्या – प्रकृति ने भारी तबाही मचाई। हिमपात से धरती ढंक गई तब डॉ. चिटणीस के लेख – ‘अभियानः इन्द्र पर आक्रमण के आधार पर अग्निबाणों, उपग्रहों से हमला किया। मनुष्य ने प्रकृति पर जीत हासिल की। बर्फबारी रुक गई। प्रकृति ने मानव सभ्यता के लिए अनेक समस्याएँ पैदा कर दी। हिमपात से गिरी बर्फ पिघलकर पानी बनने लगी और भयंकर बाढ़ का सामना करना पड़ा। धरती पर मनुष्य काल – कवलित होने लगे। आबादी घटकर आधी रह गई। मानव सभ्यता की कीमती चीजें बर्फ बारी की भेंट चढ़ गई। इन्द्र पर आक्रमण करने की बात पर जिस प्रकार सब एकमत हुए, उसी प्रकार डॉ. चिटणीस की चेतावनियों पर किसी ने भी यदि ध्यान दिया होता तो यह ध्वंस ही क्यों होता?

विशेष – संस्कृतनिष्ठ, तत्सम भाषा की प्रधानता है। वर्णनात्मक शैली का प्रयोग है। वैज्ञानिक चेतावनियों के उल्लंघन की समस्या का अंकन है।

  • वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
डॉ. जयंत नार्लीकर मुख्य रूप से क्या थे
(क) साहित्यकार (ख) समाजसेवी (ग) वैज्ञानिक (घ) संस्कृति कर्मी।
उत्तर –
(ग) वैज्ञानिक।

प्रश्न 2.
‘अभियानः इन्द्र पर आक्रमण’ किसका लेख था
(क) डॉ. चिटणीस (ख) न्यूटन (ग) सी.बी.रमन (घ) डॉ. अरविंद।
उत्तर –
(क) डॉ. चिटणीस।

प्रश्न 3.
‘हिम प्रलय’ को निम्न में से किस विधा में रखा जा सकता है (म. प्र. 2012)
(क) खोज (ख) वैज्ञानिक कथा (ग) मिथ्या कल्पना (घ) अनुमान।
उत्तर –
(ख) वैज्ञानिक कथा।

प्रश्न 4.
डॉ. चिटणीस का पूरा नाम क्या था?
उत्तर –
डॉ. बसंत चिटणीस।।

प्रश्न 5.
डॉ. जयंत नार्लीकर को भारत सरकार ने कौन – सा सम्मान दिया था?
उत्तर –
‘पद्म विभूषण’।

  • दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
हिमपात से बचने की डॉ. चिटणीस की क्या योजना थी? (म. प्र. 2010, 12)
उत्तर –
“हिम प्रलय प्रतिबंधक उपाय है, वह मँहगा है लेकिन फिर भी उस पर अभी से अमल कीजिए। डॉ. चिटणीस की इसी सलाह को बाद में मानना पड़ा। अग्निबाणों, प्रक्षेपास्त्रों के हमले कर हिमपात रोकने की डॉ. चिटणीस की योजना थी।

प्रश्न 2.
डॉ. बसंत चिटणीस ने क्या चेतावनी दी थी? (म. प्र. 2011)
उत्तर –
“अब की गर्मियों में इस बर्फ को भूलिए नहीं क्योंकि अगली सर्दियाँ इतनी भयंकर होंगी कि बर्फ पिघलने का नाम ही नहीं लेगी। हिम प्रलय प्रति बंधक उपाय है, वह मँहगा है, लेकिन फिर भी उस पर अभी से अमल कीजिए।”

प्रश्न 3.
अन्य वैज्ञानिकों ने डॉ. बसंत की बात पर ध्यान क्यों नहीं दिया?
उत्तर –
अन्य वैज्ञानिकों को डॉ. बसंत चिटणीस का सिद्धान्त मान्य नहीं था। वे मानते थे कि शीत लहर प्राकृतिक है। जैसे आई है वैसे ही चली जाएगी। तापमान सामान्य करने हेतु अग्निबाण या प्रक्षेपास्त्र दागने की कोई जरूरत नहीं है किन्तु हिमपात प्रभावित देशों ने डॉ. चिटणीस की बात को माना और उन्हें शीतलहर से मुक्ति मिली।

प्रश्न 4.
डॉ. बसंत को टैलेक्स से क्या संदेश मिला?
उत्तर –
डॉ. बसंत चिटणीस को टैलेक्स से संदेश मिला कि – “आपके कथनानुसार अंटार्कटिक में बर्फ के फैलाव में वृद्धि हुई है और वहाँ के पानी की परत का तापमान भी दो अंश कम पाया गया है। अपने सर्वेक्षण के आधार पर मैं यह कह सकता हूँ कि यह परिवर्तन पिछले दो वर्षों में हुआ है।”

प्रश्न 5.
डॉ. बसंत ने राजीव शाह को कहाँ और क्यों जाने की सलाह दी?
उत्तर –
डॉ. बसंत ने राजीव शाह को अगले साल इंडोनेशिया चले जाने की सलाह दी। यह इसलिए की भूमध्य रेखा के पास ही बचने की कुछ गुंजाइश है।।

प्रश्न 6.
हिमपात का मुकाबला कौन – कौन से देश नहीं कर सके थे? (म. प्र. 2015)
उत्तर –
हिमपात का मुकाबला जापान, यूरोप, रूस, कनाडा जैसे प्रगत राष्ट्र नहीं कर सके एवं हिमपात की चपेट में आये तथा काफी नुकसान हुआ।

8. धर्म की झाँकी

– महात्मा गाँधी

ससंदर्भ व्याख्या कीजिए

1. “धर्म का उदार अर्थ करना चाहिए। धर्म अर्थात् आत्मबोध, आत्मज्ञान। मैं वैष्णव सम्प्रदाय में जन्मा था, इसलिए हवेली में जाने के प्रसंग बार – बार आते थे, पर उसके प्रति श्रद्धा उत्पन्न नहीं हुई। हवेली का वैभव मुझे अच्छा नहीं लगा। हवेली में चलने वाली अनीति की बातें सुनकर मन उसके प्रति उदासीन बन गया। वहाँ से मुझे कुछ भी न मिला।”

शब्दार्थ – उदार = सख्ती विहीन, आत्मबोध = स्वयं ज्ञान, अनीति = अन्याय, वैभव = सम्पत्ति।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश महात्मा गाँधी की आत्मकथा ‘धर्म की झाँकी’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – लेखन ने धर्म के वास्तविक स्वरूप पर प्रकाश डाला है।

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व्याख्या – मनुष्यों में धार्मिक कट्टरता के गाँधी जी सख्त विरोधी थे। वे धर्म के उदार, परोपकारी, दयालु, परदुःख – कातर स्वरूप को स्वीकार करते थे। धर्म वह जो मनुष्य के मन में स्वतः ज्ञान पैदा कर दे। उचित अनुचित का बोध उसे स्वतः होने लगे। वैष्णव धर्मी गाँधी जी हवेली में जाते थे किन्तु उन्होंने वहाँ धर्म एवं धन का जो घाल – मेल देखा वह उन्हें स्वीकार्य नहीं था। एक ओर धर्म की बातें की जाएँ व दूसरी ओर अन्याय का प्रसार किया जाए, यह कहाँ तक उचित है? अन्याय से पोषित धर्म के गाँधी जी विरूद्ध थे। ऐसे धर्म को उन्होंने कभी प्रश्रय नहीं दिया। हवेली में गाँधी जी को कुछ भी नहीं मिला बल्कि वहाँ उन्होंने धर्म का विकृत स्वरूप देखा।

विशेष – भाषा सरल एवं सुबोध है। धर्म एवं धन के समन्वय का विरोध किया गया है। शैली वर्णनात्मक है।

2. “भागवत एक ऐसा ग्रंथ है जिसके पाठ से धर्म – रस उत्पन्न किया जा सकता है। मैंने तो उसे गुजराती में बड़े चाव से पढ़ा है। लेकिन इक्कीस दिन के अपने उपवास काल में भारत – भूषण मदनमोहन मालवीय जी के शुभ मुख से मूल संस्कृत के कुछ अंश जब सुने तो ख्याल हुआ कि बचपन में उनके समान भगवद् – भक्त के मुँह से भागवत सुनी होती, तो उस पर उसी उमर में मेरा प्रगाढ़ प्रेम हो जाता। बचपन में पड़े हुए शुभ – अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़े जमाते हैं, इसे मैं खूब अनुभव करता हूँ और इस कारण उस उमर में मुझे कई उत्तम ग्रंथ सुनने का लाभ नहीं मिला, सो अब अखरता है।”

शब्दार्थ – चाव = रुचि, प्रगाढ़ = गहरा, अखरता = अफसोस होना।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश महात्मा गाँधी की आत्मकथा ‘धर्म की झाँकी’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – यहाँ गाँधी जी ने भागवत की महत्ता प्रतिपादित की है।

व्याख्या – गाँधी जी का विचार है कि भागवत एक महान ग्रंथ है। नियमित अध्ययन से व्यक्ति में धार्मिक भाव उत्पन्न किए जा सकते हैं। गाँधी जी ने स्वयं गुजराती में लिखित भागवत् का अध्ययन बचपन में किया था। गाँधी जी ने जब इक्कीस दिन का उपवास रखा तब मालवीय जी ने उन्हें मूल संस्कृत भागवत् सुनाई तो उन्हें भागवत् ग्रंथ की महत्ता समझ में आई। उन्हें पछतावा हुआ कि अगर वे इसे अपने बचपन में इस तरह सुने होते तो उसी समय इससे लगाव हो जाता। जीवन का काफी लम्बा समय व्यर्थ ही बर्बाद हुआ। बचपन की अच्छी या बुरी आदत व्यक्तित्व में गहरे तक जड़ जमाती है। गाँधी जी को भी बचपन में अच्छे – अच्छे ग्रंथों के अध्ययन का विशेष अवसर नहीं मिल पाया, इस पर उन्हें अफसोस तो है ही साथ ही समाज के लिए प्रेरणा है कि बचपन से ही बच्चों को सद्ग्रंथ पढ़ाए जाएँ।

विशेष – भाषा सरल एवं आत्म कथात्मक शैली का प्रयोग है। श्री मद्भागवत् की महत्ता का प्रतिपादन है। शैशवावस्था से ही संस्कार विकसित करने के लिए श्रेष्ठ ग्रंथों का अध्ययन आवश्यक है।

  • वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही तिथियाँ चुनकर रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए (2 अक्टूबर, 1869, 15 अगस्त, 1947, 30 जनवरी, 1948)
1. भारत को आजादी ………. को मिली।
2. गाँधी जी का जन्म ………. को हुआ। (म. प्र. 2013)
3. गाँधी जी की हत्या ………… को हुई।
उत्तर –
1. 15 अगस्त, 1947,
2. 2 अक्टूबर, 1969
3. 30 जनवरी, 1948।

प्रश्न 2.
गाँधी जी के मन पर किस चीज का गहरा असर पड़ा?
उत्तर –
रामायाण पाठ का।

प्रश्न 3.
गाँधी जी ने इक्कीस दिन के उपवास काल में किन महोदय से भागवत कथा सुनी?
उत्तर –
पं. मदन मोहन मालवीय।

प्रश्न 4.
भूत – प्रेत के भय को दूर करने के लिए गाँधी जी ने किसका सहारा लिया? (म. प्र. 2011)
उत्तर –
राम नाम।

  • दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
गाँधी जी के अनुसार धर्म का अर्थ क्या है? (म. प्र. 2010, 13)
उत्तर –
गाँधी जी ने धर्म का उदार अर्थ प्रस्तुत किया है। गाँधी जी ने लिखा है –
“धर्म अर्थात् आत्मबोध, आत्म ज्ञान” अर्थात् धर्म की उपयोगिता तभी है जब वह व्यक्ति में स्वयं ज्ञान उत्पन्न कर दे।

प्रश्न 2.
गाँधी जी के भीतर रामायण – श्रवण और रामायण के प्रति प्रेम की बुनियाद किस घटना ने रखी थी?
उत्तर –
गाँधी जी पोरबन्दर में अपने पिताजी के साथ राम मन्दिर में रात को बीलेश्वर लाघा महाराज से रामायण कथा सुनते थे। राम के परम भक्त लाघा महाराज को कोढ़ की बीमारी हुई। इलाज के बदले उन्होंने बीलेश्वर महादेव पर चढ़े हुए बेल पत्र कोढ़ वाले अंग पर बाँधे और केवल राम नाम का जप शुरू किया। उनका कोढ़ समाप्त हो गया। लाघा महाराज सुमधुर कण्ठ में रामायण का पाठ करते थे। बचपन में कोढ़ वाली घटना एवं लाघा महाराज के मधुर कंठ ने गाँधी जी को आकृष्ट किया। यहीं से रामायण प्रेम की बुनियाद पड़ी।

प्रश्न 3.
गाँधीजी की दृष्टि में सर्वधर्म समभाव का उदय किन प्रसंगों की प्रेरणा से हुआ था? (म. प्र. 2011)
उत्तर –
गाँधीजी के पिताजी के पास जैन धर्माचार्य आते – जाते रहते थे। दान के अतिरिक्त वे उनसे धर्म चर्चा भी किया करते थे। गाँधी जी के पिता जी के कई मुसलमान और पारसी मित्र थे जिनसे वे धर्म चर्चाएँ किया करते थे। गाँधी जी को पिता जी के सान्निध्य में ही विविध धर्मों के संबंध में जानकारी हुई। विविध धर्मों के प्रति पिता जी के आदर को देखते हुए उनके मन में भी सर्वधर्म समभाव की भावना विकसित हुई।

  • भाव विस्तार कीजिए

प्रश्न 1.
“बचपन में जो बीज बोया गया, वह नष्ट नहीं हुआ।” विचार का विस्तार कीजिए।
उत्तर –
गाँधी जी ने ‘धर्म की झाँकी’ नामक आत्मकथा में लिखा है कि बचपन के संस्कार अत्यंत महत्वपूर्ण होते हैं। उनके प्रभाव परवर्ती जीवन पर पड़ता है। इस कथन में उपदेशात्मक तथ्य भी छिपे हुए हैं। गाँधीजी यह कहना चाहते हैं कि हमें बच्चों को अच्छे संस्कार देने चाहिए ताकि नई पीढ़ी अच्छी तैयार हो सके। गाँधी जी को सर्वधर्म समभाव का संस्कार बचपन में अपने पिता से प्राप्त हुआ था। भागवत एवं रामायण के प्रति रूझान भी उन्हें बचपन से ही हो गया था।

प्रश्न 2.
“बचपन में पड़े हुए शुभ – अशुभ संस्कार बहुत गहरी जड़ें जमाते हैं।” समझाइये। (Imp.)
उत्तर –
महात्मा गाँधी जी ने ‘धर्म का झाँकी’ नामक आत्मकथा में लिखा है कि बचपन की आदतें व्यक्ति में स्थाई निवास बना लेती हैं। युवावस्था तक बचपन की अच्छी या बुरी आदत साथ नहीं छोड़ती। हमें चाहिए कि श्रेष्ठ एवं अच्छे संस्कार बच्चों को प्रदान करें। शुभ संस्कारों के कारण आगामी जीवन जगमगा उठता है। अशुभ संस्कारों से जीवन का उपकार होता है एवं सर्वत्र अंधेरा छा जाता है।

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9. रुपया तुम्हें खा गया

– भगवती चरण वर्मा

ससंदर्भ व्याख्या कीजिए

1. “बीमारी का अन्त होता है, बीमारी में सुधार नहीं हुआ करता। जितने दिन तक बीमारी चलती है, वह बीमारी की अवधि कहलाती है। उस अवधि में उतार – चढ़ाव होते रहते हैं, अगर सुधार हो तब तो बीमारी अच्छी ही हो गई।”

शब्दार्थ – अवधि = समय, उतार – चढ़ाव = कम – अधिक।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश भगवती चरण वर्मा की एकांकी ‘रुपया तुम्हें खा गया’ से उधत किया गया है।

प्रसंग – डॉ. जयलाल के द्वारा बीमारी को समझाया जा रहा।

व्याख्या – लेखक के अनुसार डॉ. जयलाल का विचार है कि बीमारी कम या ज्यादा नहीं हुआ करती। बीमारी इलाज के बाद खत्म हो जाती है, कम नहीं होती। किसी भी बीमारी की एक निश्चित समयावधि हुआ करती है। इलाज के कराने पर, समुचित दवा करने पर वह जड़ से समाप्त हो जाती है। इलाज की समयावधि में जरूर बीमारी में कमी आती है। बीमारी में कमी आना सुधार होने का उपक्रम है। समझ लीजिए कि रोग समाप्ति की ओर है।

विशेष – भाषा सरल एवं प्रवाहमय है। बीमारी ठीक होने की प्रक्रिया को समझाया जा सकता है।

2. “धोखा मैं तुम्हें नहीं दे रहा हूँ, धोखा तुम अपने को दे रहे हो। तुम्हारी सुख – शान्ति अर्थ के पिशाच ने तुमसे छीन ली, तुम्हारा संतोष उसने नष्ट कर दिया। उस दिन जब तुम दस हजार रुपया चुराकर लाए थे। तब तुमने समझा था कि तुम रुपया खा गए ……. लेकिन तुमने गलत समझा था।”

शब्दार्थ – पिशाच = भूत – प्रेत, अर्थ = धन। संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश भगवती चरण वर्मा की एकांकी ‘रुपया तुम्हें खा गया’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – यहाँ मानिकचंद की अज्ञानता को स्पष्ट किया गया है।।

व्याख्या – किशोरीलाल मानिकचंद से कहता है कि मैंने तुम्हारे साथ कोई छल – कपट नहीं किया है। धन के अधीन होकर तुमने जीवन के मर्म को समझने में चूक की है। धन मनुष्य के जीवन की सुख – शान्ति छीनने की क्षमता रखता है। धन से मनुष्य को कभी संतोष प्राप्त नहीं होता। दस हजार रुपए चुराकर तुम स्वयं की बुद्धि को शाबासी दे रहे थे, आत्म – प्रसंशा की स्थिति में थे। तुमने यहीं भूल की, तुमने रुपया नहीं खाया बल्कि रुपया तुम्हारे सम्पूर्ण चरित्र को कलंकित कर गया।

विशेष – अर्थलिप्सा की निन्दा की गई है। भाषा सरल एवं प्रवाहमय है। शैली में व्यंग्य छुपा हुआ है।

  • वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘रुपया तुम्हें खा गया’ निम्न में से किस विधा की रचना है
(क) नाटक (ख) उपन्यास (ग) एकांकी (घ) कहानी।
उत्तर –
(ग) एकांकी।

प्रश्न 2.
जयलाल के पिता का क्या नाम था?
उत्तर –
किशोरी लाल।

प्रश्न 3.
रुपया चुराने के जुल्म में किसे सजा हुई थी?
उत्तर –
किशोरी लाल को।

प्रश्न 4.
जयलाल का क्या पेशा था? (म. प्र. 2012)
उत्तर –
डॉक्टरी।

प्रश्न 5.
‘रुपया तुम्हें खा गया’ यह किसका कथन है
(क) जयलाल (ख) मानिकचंद (ग) रानी (घ) मदन।
उत्तर –
(ख) मानिकचंद।

प्रश्न 6.
निम्नलिखित कथनों में से सत्य/ असत्य कथन छाँटिए (म. प्र. 2010)
1. जयलाल वकील था।
2. ‘आँख का तारा’ मुहावरे का अर्थ है। बहुत प्रिय।
3. ‘देश में सर्वत्र शांती है’ यह वाक्य शुद्ध है?
4. ‘सम्मान’ शब्द का विलोम शब्द ‘अपयश’ है।
उत्तर –
1. असत्य,
2. सत्य,
3. असत्य,
4. असत्य।

  • दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
किशोरीलाल के जेल जाने पर परिवार ने अपना जीवन निर्वाह किस प्रकार किया?
उत्तर –
किशोरीलाल के जेल जाने पर जीवन निर्वाह के चक्कर में उसकी पत्नी के जेवर बिक गए। किशोरीलाल की लड़की ने चक्की चलाई तथा पड़ोस के कपड़े सिलकर धनार्जन किया। कमाया हुआ सारा धन बेटे की पढ़ाई पर खर्च हुआ।

प्रश्न 2.
मानिकचंद अपनी सेफ (तिजोरी)की चाबी अपने पुत्र मदन को क्यों नहीं देना चाहता है?
उत्तर –
मानिकचंद अपने जीते – जी अपनी सम्पत्ति का मालिक अपने पुत्र मदन को नहीं बनाना चाहता था। अपनी सेफ की चाबी देकर वह अपनी पत्नी और बेटे के अधीन होकर नहीं जीना चाहता था।

प्रश्न 3.
मानिकचंद को अपनी भूल का अहसास कैसे होता है? (म. प्र. 2010, 13)
उत्तर –
जब किशोरीलाल मानिकचंद को यह कहता है कि ‘रुपया तुम्हें खा गया’। तब मानिकचंद को अपनी भूल का अहसास होता है। मानिकचंद अर्थ – पिशाच, से पीड़ित व्यक्ति है। जीवन के उच्चतर मूल्य दया, प्रेम, ममता एवं मानवता का उसके जीवन में कोई स्थान नहीं है।

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प्रश्न 4.
‘रुपया तुम्हें खा गया’ एकांकी का उद्देश्य क्या है? (म. प्र. 2011)
उत्तर –
इस एकांकी में व्यक्ति की अर्थ – लालसा को प्रकट किया गया है। धन के चक्कर में मनुष्य सामाजिक एवं पारिवारिक रिश्तों को भी भुला बैठता है। जबकि धन मनुष्य के जीवन की सुख – शान्ति एवं संतोष का हरण करता है। जीवन में उच्च मानवीय मूल्यों का महत्व है, धन उसके समक्ष तुच्छ है। मानवीय मूल्यों की स्थापना से जीवन में सुकून का वास होता है।

प्रश्न 5.
एकांकी के आधार पर मानिकचंद का चरित्र चित्रण कीजिए।
उत्तर –
रुपया तुम्हें खा गया’ के मानिकचंद में निम्नलिखित गुण – अवगुण विद्यमान हैं

  1. धन – लिप्सा।
  2. अनैतिक विचारों का पोषक।
  3. पारिवारिक एवं सामाजिक संबंधों को धन के समक्ष हे य मानना।
  4. उच्चतर मानवीय मूल्यों की उपेक्षा।
  5. अविश्वास की भावना।
  6. समय बीतने पर पछताना।

प्रश्न 6.
मदन को संपत्ति का मालिक बनाने की बात पर मानिकचंद ने क्या कहा?
उत्तर –
मदन को संपत्ति का मालिक बनाने की बात पर मानिकचंद ने यह कहा – “मेरे मरने के बाद ही उसके पहले नहीं। और मेरे मरने के लिए तुम दोनों माला फेरो, पूजा – पाठ कराओ ……… यहाँ से …….. जाओ तुम दोनों।”

प्रश्न 7.
सजा काटने के पश्चात् किशोरी लाल की मनोदशा का वर्णन कीजिए। (म. प्र. 2015)
उत्तर –
सजा काटने के पश्चात् किशोरी लाल की मनोदशा काफी बिगड़ चुकी थी। वह अपने उजड़े हुए घर परिवार को देखकर अशांत हो गया था। उसने अपनी बीवी अपने बच्चों के कुपोषण को देखा। इससे वह एकदम घबरा गया। उसने लोगों से होने वाले अनादर और उपेक्षा को देखा। घर के घोर अभाव को देखा। इन सब दुखों को देखकर वह काँप गया। उसके बाप – दादा का पुराना मकान कर्ज से दब चुका था। उसे बेचकर वह वहाँ से भाग खड़ा हुआ और दूसरे शहर को चला गया।

10. अंतिम संदेश

– राम प्रसाद ‘बिस्मिल’

ससंदर्भ व्याख्या कीजिए

1. “हमारी मृत्यु से किसी को क्षति और उत्तेजना हुई हो, तो उसको सहसा उतावलेपन से कोई ऐसा कार्य न कर डालना चाहिए कि जिससे मेरी आत्मा को कष्ट पहुँचे। यह समझकर कि अमुक ने मुखबरी कर दी अथवा अमुक पुलिस से मिल गया या गवाही दी, इसलिए किसी की हत्या कर दी जाए या किसी को कोई आघात पहुँचाया जाए , मेरे विचार में ऐसा करना सर्वथा अनुचित तथा मेरे प्रति अन्याय होगा। क्योंकि जिस किसी ने भी मेरे प्रति शत्रुता का व्यवहार किया है और यदि क्षमा कोई वस्तु है तो मैंने उन सबको अपनी ओर से क्षमा किया।”

शब्दार्थ – क्षति = नुकसान, उत्तेजना = जोश, सहसा = एकाएक, अमुक = पहचान सूचक शब्द, मुखबरी = भेदिया, आघात = चोट, सर्वथा = हर प्रकार से।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश शहीद राम प्रसाद बिस्मिल लिखित ‘अंतिम संदेश’ शीर्षक से उद्धृत किया गया

प्रसंग – प्रस्तुत प्रकरण माँ के लिए लिखे पत्रों का अंश है। नवयुवकों को होश में रहकर काम करने का संदेश दिया गया है।

व्याख्या – ‘बिस्मिल’ लिखते हैं कि मुझे फाँसी दिया जाना तय है। मेरी फाँसी से किसी को अतिरिक्त जोश में आने की आवश्यकता नहीं है। यदि देश का कोई भी नागरिक मेरी फाँसी से उद्वेलित होकर विध्वंसक कार्य करता है, तो मेरी मृतात्मा को शान्ति नहीं मिलेगी। किसी को भी भेदिया मानकर उस पर जुल्म नहीं किया जाना चाहिए। मेरी फाँसी के मुद्दे पर देश के किसी भी नागरिक को जिम्मेदार न ठहराया जाए या उसकी हत्या न की जाए। यदि ऐसा किया जाता है तो यह सही एवं नीति संगत नहीं होगा। इस मानवीय समाज में क्षमा सबसे बड़ी चीज है। मैंने अपने दुश्मन को, जिसके कारण मैं फाँसी के फंदे तक पहुँचा हूँ , क्षमा करता हूँ। देश के दुश्मनों की सजा ईश्वर ही निर्धारित कर सकता है।

विशेष – देश भक्ति का जज्बा प्रकट हुआ है। क्षमा को उच्चतर मानवीय मूल्य बताया गया है। तत्सम एवं संस्कृतनिष्ठ भाषा है।

  • वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
राम प्रसाद बिस्मिल’ ने अंतिम संदेश पत्र किसे लिखा? (म. प्र. 2009)
उत्तर –
माता को।

प्रश्न 2.
‘सरफरोशी की तमन्ना’ किसका लिखा हुआ गीत है? (म. प्र. 2011)
उत्तर –
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’।

प्रश्न 3.
अंतिम संदेश’ किस विधा की रचना है?
उत्तर –
पत्र।

प्रश्न 4.
फाँसी के पूर्व राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ किस जेल में कैद थे? (म. प्र. 2013)
उत्तर –
गोरखपुर।

प्रश्न 5.
राम प्रसाद बिस्मिल अनुयायी थे (म. प्र. 2010)
(क) महर्षि दयानंद के (ख) स्वामी विवेकानंद के (ग) स्वामी विद्यानंद के (घ) स्वामी रामानंद के।
उत्तर –
(क) महर्षि दयानंद के।

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  • दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ ने अपने पत्र में अपने शत्रु को क्षमा करने के कौन से दो कारण बताए (म. प्र. 2010)
उत्तर –
(1) भारत का वायुमण्डल एवं परिस्थितियाँ इस प्रकार की हैं कि इसमें अभी दृढ प्रतिज्ञ व्यक्ति बहुत कम उत्पन्न होते हैं।
(2) महर्षि दयानन्द सरस्वती ने स्वयं को जहर देने वाले को रुपये देकर भाग जाने को कहा था, तो मैं अपने शत्रु को क्यों नहीं क्षमा कर सकता हूँ।

प्रश्न 2.
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के अनुसार नवयुवकों को क्या करना चाहिए? (म. प्र. 2009, 13, 15)
उत्तर –
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ के अनुसार नवयुवकों को गाँव – गाँव में जाकर ग्रामीणों एवं कृषकों की दशा सुधारने हेतु काम करने को कहा। मजदूरों एवं रोजमर्रा की जिन्दगी जीने वालों की जीवन दशा सुखद बनाने का प्रयास करना चाहिए। सामान्यजन को शिक्षित करने , दलितों का उद्धार करने, सुख – शान्ति एवं भाई – चारे के वातावरण का निर्माण करने एवं प्रेम और सहानुभूति पूर्ण व्यवहार करने के लिए उन्होंने नवयुवकों से कहा।

प्रश्न 3.
वे क्रान्तिकारियों के विरुद्ध गवाही देने वालों के साथ कैसा व्यवहार करने को कहते हैं?
उत्तर –
राम प्रसाद ‘बिस्मिल’ क्रान्तिकारियों के विरुद्ध गवाही देने वालों को क्षमा करने की बात कहते हैं। उनके प्रति दया की भावना भी होनी चाहिए। उन्होंने अपने पत्र में लिखा है कि यदि “हमारी मृत्यु से किसी को क्षति और उत्तेजना हुई हो, तो उसको सहसा उतावलेपन से कोई ऐसा कार्य न कर डालना चाहिए कि जिससे मेरी आत्मा को कष्ट पहुँचे।”

11. भगत जी

– रामकुमार ‘भ्रमर’

ससंदर्भ व्याख्या कीजिए

1. “उन्हें चुनाव लड़ने की इच्छा नहीं, अभिनय की उत्कंठा नहीं, पर उन्हें चाह है खिले गुलाब की नाजुक पंखुड़ियों जैसे हँसते – खेलते बच्चों की और उन्हें उत्कंठा है हरी – भरी लहलहाती धरती की शान्ति की।”

शब्दार्थ – अभिनय – रंगमंच पर पात्र की भूमिका, उत्कंठा = इच्छा।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश रामकुमार ‘भ्रमर’ की कहानी भगत जी से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – यहाँ भगत जी के निर्मल हृदय की चर्चा की गई है।

व्याख्या – ‘भ्रमर’ जी लिखते हैं कि भगत जी निर्मल हृदय के व्यक्ति हैं। कोई भी काम निर्विकार हृदय से करते हैं। वे नेता भी नहीं हैं, न ही भविष्य में कोई चुनाव लड़ने की योजना है। समाजसेवा एवं सादगी उनके सरल व्यवहार का अंग है। वे दिखावे या अभिनय के लिए भी कोई काम नहीं करते। यश प्राप्ति की कामना भी के हृदय में नहीं है। वे संसार के नन्हें – मन्हें बच्चों को प्रसन्नचित एवं खिला हआ देखना – चाहते हैं। किसानों की फसल को लहलहाते देखकर, धरती पर सर्वत्र सुख – शान्ति देखकर, वे खुश हो जाते हैं।

विशेष – तत्सम प्रधान शब्दों का प्रयोग है। गुमनाम समाज सेवकों पर प्रकाश डाला गया है। उच्चतम मानवीय मूल्यों के विकास पर बल दिया गया है।

2. “कुंभाराम का सिर शर्म से झुक गया। उसे लगा कि वह मंदिर में पहुँच गया है और ईश्वर की मूरत की जगह भगतजी को देख रहा है। पश्चाताप और ग्लानि से उसका कंठ अवरुद्ध हो गया। भगतजी कहे जा रहे थे, “तुम मेरे मंदिर न जाने पर नाराज हो गए? चलो, मैं अभी मन्दिर चलता हूँ। चलो न!” उन्होंने कुंभाराम का हाथ पकड़कर खींचा, पर कुंभाराम बुत की तरह मौन था।”

शब्दार्थ – मूरत = मूर्ति, पश्चाताप = पछतावा, ग्लानि = दु:ख, अवरुद्ध = रुक जाना, बुत = पुतला।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश रामकुमार ‘भ्रमर’ की कहानी ‘भगत जी’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – कुंभाराम की आत्मग्लानि का चित्रांकन किया गया है।

व्याख्या – भगतजी जब कुंभाराम को बताते हैं कि दीना की दवा देने ठण्ड में इक्कीस मील दूर जाना था इसलिए वे मंदिर नहीं जा सके तो कुंभाराम शर्म से पानी – पानी हो जाता है। उसे लगता है कि वह व्यर्थ ही मन्दिर में भगवान के दर्शन के लिए जाता है, जीता – जागता भगतजी तो स्वयं भगवान के प्रतिरूप हैं। कुंभाराम को अपने पूर्व व्यवहार पर पछतावा एवं दुःख होता है। दूसरी ओर भगतजी सरलता एवं सादगी से उस दिन मन्दिर न जा पाने की प्रतिपूर्ति आज मंदिर जाकर देना चाहता है। कुंभाराम लज्जित होता है। वह ‘काटों तो खून नहीं’ की स्थिति में पहुँच जाता है।

विशेष – भावात्मक एवं चित्रात्मक शैली का प्रयोग है। मर्मस्पर्शी, भावपूर्ण चित्रण है। मन्दिर की निःसारता एवं उच्च मानवीय मूल्यों के सत्कार की बात कही गई है।

  • वस्तुनष्ठि प्रश्न

प्रश्न 1.
भगत जी की उपेक्षा मन्दिर के नाम पर किसने की? (म. प्र. 2013)
उत्तर –
कुंभाराम ने।

प्रश्न 2.
भगत जी को किसकी दवा पहुँचानी थी?
उत्तर –
दीना।

प्रश्न 3.
क्या भगत जी नास्तिक थे? (म. प्र. 2009)
उत्तर –
नहीं।

प्रश्न 4.
किसने किससे कहा
(क) “तुम नास्तिक जो हो।”
(ख) “दीना मर जाता है तो उसके बाल – बच्चों का क्या होता?”
(ग) “क्यों भगत जी, मन्दिर चल रहे हो दर्शन करने।”
उत्तर –
(क) कुंभाराम ने भगत जी से कहा।
(ख) कुंभाराम से भगत जी ने कहा।
(ग) कुंभाराम ने भगत जी से कहा।

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  • दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
भगत जी का गाँव वालों के साथ किस तरह का व्यवहार था?
उत्तर –
भगत जी का गाँव वालों के साथ अत्यंत आत्मीय, भाई – चारा, स्नेह, सहानुभूति सहृदयता, मानवीयता एवं सहयोगी का संबंध था।

प्रश्न 2.
भगत जी का नाम भगत जी क्यों पड़ा? (म. प्र. 2009)
उत्तर –
भगत जी सच्चे अर्थों में भगत थे। भले ही वे मन्दिरों में ज्यादा समय व्यतीत नहीं करते थे, किन्तु मानव – मात्र की सेवा में उनकी गहरी रुचि थी।

प्रश्न 3.
“मानव सेवा ही सच्ची ईश्वर सेवा है।” कथा वस्तु के आधार पर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर –
भ्रमर जी का मत है कि इस विशाल संसार में अनेक प्राणी दु:खी हैं। उनके साथ हमें आत्मीयता के साथ मानवतापूर्ण व्यवहार करना चाहिए। परस्पर एक – दूसरे के सहयोग से मानवता एवं सहानुभूति का विकास होता है। ईश्वर की मंशा भी संसार में सुख – शान्ति की स्थापना है। जब हम मानव मात्र के सुख – दुःख में शामिल होंगे तो वह सच्ची ईश्वर सेवा होगी। ईश्वर की सेवा मन्दिर में जाने से नहीं होगी। मानव के प्रति आदर की भावना ही सच्ची ईश्वर सेवा है।

प्रश्न 4.
भगत जी के चरित्र की कौन – कौन सी विशेषताएँ थीं? (म. प्र. 2013)
उत्तर –
सहानुभूति, परदुःख कातरता, परोपकार, करुणा, सदाशयता, सहजता, सरलता, निष्कपटता, कर्त्तव्यपरायणता, सहनशीलता, निरभिमानी एवं मनुष्य मात्र का आदर करने की प्रवृत्तियाँ भगत जी के चरित्र में विद्यमान थीं।

प्रश्न 5.
कुंभाराम स्वयं को आस्तिक क्यों मानता था? (म. प्र. 2010, 15)
उत्तर –
कुंभाराम प्रतिदिन मन्दिर जाता था। उसने मन्दिर का निर्माण कराया था। प्रतिदिन स्नान करने के बाद वह श्लोक पाठ करता था। तुलसी, रुद्राक्ष आदि की मालाएँ धारण करता था। त्रिपुंड लगाता था अत: वह अपने को धर्म का ठेकेदार व आस्तिकं समझता था।

प्रश्न 6.
कुंभाराम स्वयं को नास्तिक मानता था यह कथन सत्य है, या असत्य बताइये। (म. प्र. 2011)
उत्तर –
असत्य।

प्रश्न 7.
‘भगत जी’ कहानी के माध्यम से लेखक क्या कहना चाहते हैं? (म. प्र. 2013)
उत्तर –
‘भगत जी’ कहानी के माध्यम से लेखक यह कहना चाहते हैं कि आज समाज में ‘भगत जी’ की तरह लोगों की आवश्यकता है साथ ही कहानी के माध्यम से लेखक मानवीय मूल्यों को स्थापित करना चाहते हैं। भगत जी का चरित्र साधारणता में असाधारणता का बोध कराता है जिसमें आत्मीयता के साथ मानवीयता जीवित है।

लेखक ने स्पष्ट शब्दों में भगत जी के व्यक्तित्व, कार्य व्यवहार एवं सदाशयता की चर्चा की है। भगत जी इंसानियत की कीमत पर मान मर्यादा की चिंता नहीं करते उन्हें ज्ञानी होने का दर्प नहीं, सबके दुख को अपना दुख मानकर पीड़ा का अनुभव करना वह अपना कर्तव्य समझते थे। वे दीन, दुखी की दवा लेने इक्कीस मील चलकर शहर जाते थे। कहानी में वे नाम के भगत जी नहीं वरन् इंसानियत के भगत दिखाई देते हैं आज हमें भगत जी’ के चरित्र एवं आदर्शों को अपने जीवन में अपनाना एवं अनुकरण करना ही हमारा दायित्व है।

12. अथ काटना कुत्ते का भइया जी को

– डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त ‘बरसैंया’

ससंदर्भ व्याख्या कीजिए

1. “सुख – दुःख के प्रसंगही आत्मीयता प्रमाणित करने के सबसे अनुकूल सार्वजनिक अवसर होते हैं। वह जमाना गया जब भीतर – ही – भीतर आत्मीयता, स्नेह और श्रद्धा की भावना रखी जाती थी।अब तो बाहर का महत्व है। भीतर का क्या भरोसा? भीतर कुछ, बाहर कुछ।”

शब्दार्थ – आत्मीयता = अपनापन, स्नेह = प्रेम।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त ‘बरसैंया’ के व्यंग्य “अथ काटना कुत्ते का भईया जी को” से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – लेखक ने औपचारिकता वश दुःख प्रकट करने वालों पर व्यंग्य किया है।

व्याख्या – समाज में जब किसी मनुष्य पर सुख या दुःख पड़ता है, तब करीबी शुभचिंतक अपनापन प्रकट करने के लिए इकट्ठा हो जाते हैं। संवेदना प्रकट करने का ऐसा सार्वजनिक मौका मौकापरस्त समाज का कोई भी व्यक्ति छोड़ना नहीं चाहता। वस्तुत: आत्मीयता, प्रेम एवं श्रद्धा किसी के प्रति किसी के हृदय में रह ही नहीं गई है। व्यक्ति अवसर की ताक में रहता है कि कब उसे अपनापन, प्रेम एवं श्रद्धा प्रकट करने का मौका मिले। व्यक्ति को किसी के सुख – दुःख से कोई सरोकार नहीं रह गया है। आत्मीयता, स्नेह एवं श्रद्धा व्यक्ति के अन्तर्मन में रहने वाली चीज है, किन्तु इस कृत्रिम समाज में इसके बहिरंग स्वरूप का महत्व रह गया है। व्यक्ति दोमुँहा हो गया है। उसके मन में कुछ, बाहर कुछ होता है।

विशेष – कृत्रिम संवेदना पर तीक्ष्ण व्यंग्य है। भाषा सहज एवं सरल है। भाव रोचक एवं सरस है।

2. “आजकल साहित्यकार सत्ता और समर्थकों का गायक बनकर सम्मान और पैसे के पीछे भाग रहा है। दीन – हीन शोषितों की बिरादरी का यह रचनाकार सुखभोगी बनकर भ्रष्ट हो रहा है। अतः इसे सचेत कर सही मार्ग पर लाना जरूरी है। मुझे भईया जी को कुत्ते द्वारा काटे जाने का कारण और समाधान मिल गया। मैं कुत्तों की ओर से अपने साहित्यकार बंधुओं को आगाह करता हूँ कि वे पद, पुरस्कार और सम्मान की ओर भागकर अपने को पथभ्रष्ट न करें। सत्यमार्ग पर चलें। जरूरतमंदों और शोषितों के साथी बनकर समाज की विसंगतियों पर प्रहार करें। अन्यथा उन्हें कुत्तों के प्रहार से नहीं बचाया जा सकता। झाड़ – फूंक और इंजेक्शन भी उनकी रक्षा नहीं कर सकेंगे।”

शब्दार्थ – सत्ता = सरकार, गायक = गाने वाला, समाधान = निराकरण, पथभ्रष्ट = राह से भटका हुआ, विसंगतियों = विषमताओं, प्रहार = चोट।

संदर्भ – प्रस्तुत गद्यांश डॉ. गंगाप्रसाद गुप्त ‘बरसैंया’ के व्यंग्य ‘अथ काटना कुत्ते का भईया जी को’ से उद्धृत किया गया है।

प्रसंग – साहित्यकारों की पदलोलुपता एवं मौकापरस्ती पर प्रहार किया गया है।

व्याख्या – वर्तमान समय में साहित्यकार राजनेताओं की चाटुकारिता कर पैसा कमाने के चक्कर में लगा हुआ है। दुःखी, शोषित जनता की मूक पीड़ा को वाणी देने वाला साहित्यकार रास्ते से भटक गया है। उसे अपने दायित्व का आभास नहीं है। जरूरत है साहित्यकार को सही रास्ता दिखाने की। साहित्यकार पथभ्रष्ट रहेगा, तो उसे कुत्ते काटते ही रहेंगे। ‘बरसैंया जी’ साहित्यिक बिरादरी के लोगों को सचेत करते हुए कहते हैं कि पद के प्रति लगाव, पुरस्कार के प्राप्त करने का मोह और सम्मान की लालसा के कारण साहित्यकार अपने उद्देश्य से भटक गया है। उसे सत्य का मार्ग अपनाना चाहिए। समाज के शोषित, उपेक्षित एवं दीन – हीनों की आवाज को साहित्य के माध्यम से स्वर देना चाहिए। यदि वे ऐसा नहीं करेंगे। तो पागल कुत्तों का शिकार होने से उन्हें कोई नहीं बचा सकता। कुत्तों का काटना उनका दण्ड कहलायेगा। कुत्ते के काटने का इलाज तो झाँड़ – फूंक एवं इंजेक्शन से हो जाता है किन्तु इन परिस्थितियों में किसी प्रकार का इलाज सम्भव नहीं है।

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विशेष – शैली व्यंगात्मक है। पद लोलुप, सुविधाभोगी, पथ भ्रष्ट साहित्य पर करारा व्यंग्य है। व्यंजना शब्द शक्ति के माध्यम से बात कही गई है।

  • वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
“अथ काटना कुत्ते का भइया जी को” निम्न में से किस विधा की रचना है
(क) व्यंग्य (ख) कहानी (ग) एकांकी (घ) रिपोर्ताज।
उत्तर –
(क) व्यंग्य।

प्रश्न 2.
भइया जी को काटा था (म. प्र. 2010)
(क) साँप ने (ख) बिच्छु ने (ग) कुत्ते ने (घ) नेवले ने।
उत्तर –
(ग) कुत्ते ने।

प्रश्न 3.
“घर में इन्हीं की झंझट क्या कम है कि एक और मुसीबत मोल ले ली जाए।” किसके द्वारा कहा गया वाक्य है?
उत्तर –
धर्मपत्नी के।

प्रश्न 4.
(अ) सही जोड़ी बनाइये (म. प्र. 2010)
1. धर्म की झाँकी – (क) एकांकी
2. रुपया तुम्हें खा गया – (ख) कविता
3. भगत जी – (ग) निबंध
4. विप्लव गान – (घ) आत्मकथा
5. देश प्रेम – (ङ) कहानी।
उत्तर –
1. (घ), 2. (क), 3. (ङ), 4. (ख), 5. (ग)।

प्रश्न (ब) सही जोड़ी बनाइये
1. राजेन्द्र बाबू – (क) डॉ. जयन्त नार्लीकर
2. भू का त्रास हरो – (ख) मुंशी प्रेमचंद
3. नई इबारत – (ग) श्रीमती महादेवी वर्मा
4. हिम – प्रलय – (घ) श्री रामधारी सिंह ‘दिनकर’
5. दो बैलों की कथा – (ङ) भवानी प्रसाद मिश्र।
उत्तर –
1. (ग), 2. (घ), 3. (ङ), 4. (क), 5. (ख)।

  • दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कुत्ता काटने की घटना का वर्णन श्रोतागण भइया जी से किस – किस प्रकार सुनते हैं?
उत्तर –
भईया जी ने श्रोताओं को बताया कि – “भइया जी ने खचाखच भरे दरबार में अपना फटा कुरता और पाजामा तथा मलहम पट्टी लगे हाथ – पाँव और कंधों को प्रदर्शित करते हुए सबकी जिज्ञासा शान्ति के लिये बताया कि रात के अंधेरे में वह जब टॉर्च लेकर एक सामाजिक कार्यक्रम की शोभा बढ़ाने जा रहे थे, तभी निर्धन . परिवार के एक कुत्ते ने उन्हें काट लिया। वह कुत्ता कैसे पीछे से उन पर झपटा, कैसे उन्होंने दुतकारा, कैसे वे भागे, कैसे गिरे, फिर उठकर कुत्ते का मुकाबला कैसे किया और कहाँ – कहाँ कुत्ते ने काटा इस सवका पूरे अभिनय के साथ सविस्तार वर्णन जब भइया जी ने किया तो स्वाभाविक है कि सहानुभूति प्रदर्शकों ने भरे गले में अपनी आत्मीय वेदना व्यक्त की।

‘प्रश्न 2.
कुत्ते के काटने पर भइया जी को उनके शुभचिन्तकों ने किस तरह के सुझाव दिए? (म. प्र. 2011, 12, 15)
उत्तर –
भइया जी को शुभचिन्तकों ने सुझाव दिया कि कुत्ते के मालिक के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट दर्ज कराना चाहिए। अन्धविश्वासी व्यक्तियों ने कुत्ते को दस दिन बाँधकर रखने एवं निगरानी करने का सुझाव दिया। दस कुँए झकवाने, झाँड़ – फूंक करवाने एवं तीन हजार रुपए का एक इंजेक्शन लगवाने के सुझाव भी लोगों ने दिए।

प्रश्न 3.
कुत्ते की उस मानसिक स्थिति का वर्णन कीजिए, जिससे उत्तेजित होकर उसने भइया जी को काटने का निश्चय किया।
उत्तर –
भइया जी सफेद कपड़ों में थे, कुत्ते पर टॉर्च की रोशनी डाली। कुत्ते को लगा कि मुझ निर्धन बस्ती के कुत्ते को यह सम्पन्न व्यक्ति अपनी चमक और रोशनी से चकाचौंध करना चाहता है। मेरा मालिक दिनभर परिश्रम कर पसीने से लथपथ फटे, मैले, कुचैले कपड़ों पर आता है और इनके कपड़ों पर एक दाग भी नहीं? हम दर – दर की ठोकरें खाएँ और ये तथा इनके कुत्ते मालपुएँ खाएँ। गाड़ियों में घूमें। झकाझक कपड़ों की शान बघारें। आदमी – आदमी तथा कुत्ते – कुत्ते में भेद पैदा करें। अपमान की इन्हीं व्यथाओं से पीड़ित होकर कुत्ते ने भइया जी को काटने का निश्चय किया।

प्रश्न 4.
प्रस्तुत व्यंग्य के माध्यम से लेखक साहित्यकारों को क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर –
‘बरसैंया जी’ साहित्यकारों को प्रस्तुत व्यंग्य के माध्यम से संदेश देना चाहते हैं कि वे सत्ता और समर्थकों के गायक न बनें। धन कमाना उनका उद्देश्य नहीं होना चाहिए। शोषितों की आवाज को साहित्य में स्वर प्रदान करें। पद, पुरस्कार एवं सम्मान साहित्यकार का उद्देश्य नहीं होना चाहिए। वे सत्यमार्ग पर चलकर जरूरतमंदों और शोषितों का साथ समाज की विसंगितयों पर प्रहार करें।

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प्रश्न 5.
कुत्ते का मालिक तो कुत्ते से भी ज्यादा खतरनाक है। आशय स्पष्ट कीजिए। (म. प्र. 2009, 13)
उत्तर –
किसी सहृदय ने भइया जी को सुझाव दिया कि कुत्ते के मालिक के विरुद्ध पुलिस में रिपोर्ट लिखाई जाना चाहिए। तब किसी ने बताया कि कुत्ते का मालिक रसूखदार व्यक्ति है। कुत्ते ने तो सिर्फ काटा है, उसका मालिक तो भइया जी की कौन – कौन सी दुर्गत कर देगा क्या मालूम?

प्रश्न 6.
“आजकल साहित्यकार सत्ता और समर्थों का गायक बनकर सम्मान और पैसे के पीछे भाग रहा है” इन पंक्तियों में निहित व्यंग्य को स्पष्ट कीजिए (म. प्र. 2010)
उत्तर –
“आजकल साहित्यकार सत्ता और समर्थों का गायक बनाकर सम्मान और पैसे के पीछे भाग रहा उपर्युक्त पंक्तियों में निहित व्यंग्य यह है कि आज का साहित्यकार साहित्य रचना के सत्य मार्ग को छोड़ चुका है। वह सुख – सुविधाओं के पीछे भाग रहा है। राजनेताओं अधिकारियों और धनपतियों को देवता भागवत के रूप में देख समझ रहा है। फिर उनकी प्रशंसा में वह रात – दिन लगा रहता है। यह इसलिए ऐसा करके ही वह सुख – सुविधामय जीवन बीता सकता है। वह यह अच्छी तरह से जानता है कि सत् साहित्य की रचना करके उसे कुछ भी सुख सुविधाओं का नसीब नहीं हो सकता है, बल्कि उसे तो शोषण, उपेक्षा और अभावों का शिकार होना पड़ेगा। इस प्रकार आजकल का साहित्यकार, साहित्यकार न होकर सत्ता और अधिकारियों का चापलूस, पिछलग्गू और उपासक पुजारी बनकर रह गया है जो हर प्रकार निंदनीय और हेय है।

13. कर्म कौशल

– डॉ. रघुवीर प्रसाद गोस्वामी

  • अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नैसर्गिक नियमों को क्या कहा जाता है?
उत्तर –
प्रत्येक के जीवन – संचालन हेतु जो नैसर्गिक नियम बने उन्हें प्राकृतिक नियम कहा गया।

प्रश्न 2.
किस ग्रन्थ में विवेचित कर्म सिद्धांत की विशिष्ट पहचान है?
उत्तर –
श्रीमद्भगवद्गीता में विवेचित कर्म – सिद्धांत की आज विश्व में विशिष्ट पहचान है।

प्रश्न 3.
कर्ता को किस प्रकार का कार्य करना चाहिए?
उत्तर –
कर्म की आचरण प्रक्रिया पर विचार करते समय स्वाभाविक रूप से कर्म, संकल्प एवं कर्ता के स्वरूप निर्धारण पर विचार करना चाहिए।

प्रश्न 4.
किस कारण से मनुष्य स्वयं को कर्ता मानने लगता है?
उत्तर –
अज्ञान एवं मिथ्या अभिमान से ही मनुष्य स्वयं को कर्ता मानने लगता है।

  • लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
जीव समुदाय से क्या तात्पर्य है?
उत्तर –
प्रत्येक अनेकानेक जीव समुदाय से परिपूर्ण है। जीव समुदाय का तात्पर्य है – वृक्ष, वनस्पति, जीव – जन्तु और मानव संतति।

प्रश्न 2. कर्म के पाँच कारण कौन – कौन से होते हैं?
उत्तर –
गीता में कहा गया है कि संपन्न किये जाने वाले किसी भी कर्म के पाँच कारण होते हैं – – अधिष्ठान, कर्ता, कारण (इन्द्रियाँ) चेष्टाएँ तथा दैव शक्ति (सर्वोपरि शक्ति)।

प्रश्न 3.
युद्ध के लिये प्रेरित करते हुए योगेश्वर ने अर्जुन से क्या कहा?
उत्तर –
योगेश्वर कृष्ण ने अर्जुन से यह स्पष्ट कहा था कि परिणाम पर दृष्टि न रखते हुए मनुष्यों को अपना कर्म अत्यन्त श्रद्धा एवं पूर्ण समर्पण भाव से करना चाहिए।

प्रश्न 4.
किस कारण से कर्ता का समय व्यर्थ नष्ट हो जाता है?
उत्तर –
केवल फल प्राप्ति का चिन्तन करने से कर्ता का समय व्यर्थ नष्ट हो जाता है और फलप्राप्ति होने पर वह उसी फल भोग में उलझ कर रह जाता है।

प्रश्न 5.
श्रेष्ठ व्यक्ति का चरित्र कैसा होता है?
उत्तर –
श्रेष्ठ व्यक्ति का चरित्र अन्य व्यक्तियों के लिये अनुकरणीय होता है और वही लोक में प्रमाण बन जाता है।

  • दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सबसे प्रमुख सावधानी की ओर अर्जुन का ध्यान आकृष्ट करते हुए श्रीकृष्ण ने क्या कहा?
उत्तर –
गीताकार ने स्पष्ट किया है कि कर्म करते समय निम्नलिखित सावधानियाँ बरतनी चाहिए। सबसे पहले सावधानी की ओर उन्होंने अर्जुन का ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा है कि किसी सिद्धि और असिद्धि तथा अनुकूलता और प्रतिकूलता में समान भाव रखकर मन, वाणी और क्रिया के पूर्ण भाव से युक्त होकर कर्म करें साथ ही जीवन संग्राम में जय है और पराजय भी, लाभ है और हानि भी, सुख है और दुख भी तुम इन द्वन्द्वों से अनासक्त भावपूर्वक ऊपर उठो।

प्रश्न 2.
फल प्राप्ति में संदेह का प्रश्न किस स्थिति में नहीं रहता है?
उत्तर –
किये गये कर्म में यदि पूर्ण शुद्ध दृष्टि या भाव है तो उसके फल – प्राप्ति में संदेह का प्रश्न ही नहीं रहता। किन्तु इसके लिये वृद्धि की पूर्णता का समावेश भी नितान्त आवश्यक है।

प्रश्न 3.
अपने संकल्प से विपरीत होने पर भी मनुष्य को कर्म करना पड़ता है?
उत्तर –
मनुष्य अपने स्वभावजन्य कर्म से बँधा हुआ होने के कारण पराधीन है। अपने संकल्प से विपरीत होने पर भी उसे कर्म करना पड़ता है, और प्रकृति अथवा पूर्वोक्त पाँच तत्वों का सूमह उसे कर्म में प्रवृत्त करता है। इस कारण कोई भी व्यक्ति यथा निर्धारित कर्म त्याग नहीं कर सकता। यदि कर्म त्याग असंभव है एवं मनुष्य को कर्म करना ही पड़ता है तो उचित यही है कि मनुष्य अपने स्वधर्म अर्थात् सत्कर्म का पालन करें।

कवियों एवं लेखकों का संक्षिप्त जीवन – परिचय

(1) तुलसीदास – जन्म – सं. 1589 में बाँदा जिले के राजापुर ग्राम में।
मृत्यु – सं. 1680 में काशी में।
रचनाएँ – रामचरित मानस, विनय पत्रिका, कवितावली, गीतावली, दोहावली, जानकी मंगल, पार्वती मंगल, रामलला नहहू, रामाज्ञा प्रश्न, बरवै रामायण।
भाव – पक्ष – प्रमुख रामभक्त कवि एवं समन्वयवादी कवि के रूप में विख्यात।

(2) स्वामी विवेकानन्द – जन्म – 12 जनवरी, 1863 को कलकत्ता में।
मृत्यु – सन् 1902 में।
भाव – पक्ष – पाश्चात्य देशों में सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति का जोरदार प्रचार – प्रसार।

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(3) प्रेमचंद – जन्म – 31 जुलाई, 1880 को वाराणसी जिले के लमही ग्राम में।
मृत्यु – 8 अक्टूबर, 1936 को।
रचनाएँ – गोदान, गबन, कर्मभूमि, रंगभूमि, निर्मला, कायाकल्प, प्रेमाश्रम, वरदान, मंगलसूत्र, मानसरोवर 8 भाग में, कर्बला, संग्राम, प्रेम की वेदी इत्यादि।
भाव – पक्ष – आदर्शोन्मुखी यथार्थवाद के प्रणेता। ग्राम्य जीवन के प्रमुख कथाकार।

(4) सुमित्रानन्दन पंत – जन्म – 20 मई, 1900 को उ.प्र. के कुमायूँ अंचल के कौसानी गाँव में।
मृत्यु – 28 दिसम्बर, 1977 में।
रचनाएँ – ग्राम्या, युगान्त, वीणा, पल्लव, गुंजन, स्वर्णकिरण, स्वर्णधूलि, चिदम्बरा, लोकायतन इत्यादि।
भाव – पक्ष – प्रकृति के सुकुमार कल्पनाओं के कवि।

(5) भगवती प्रसाद वाजपेयी – जन्म – 1899 में कानपुर (उ.प्र.) के मंगलपुर ग्राम में।
रचनाएँ – प्रेमपथ, त्यागमयी, मनुष्य और देवता, विश्वास का बल, मधुपर्क, हिलोर, दीपमलिका, मेरे सपने, बाती और लौ, उपहार आदि।
भाव – पक्ष – सामाजिक, मनोवैज्ञानिक एवं बालोपयोगी साहित्य का सृजन।

(6) श्रीकृष्ण सरल – जन्म – 1 जनवरी, 1919 को म. प्र. के गुना जिले के अशोकनगर में।
रचनाएँ – भगतसिंह, चन्द्रशेखर आजाद, सुभाषचन्द्र बोस, मुक्तिगान, स्मृति पूजा, बच्चों की फुलवारी, संसार की प्राचीन समस्याएँ, सुभाष – दर्शन आदि।
भाव – पक्ष – राष्ट्रीय विचार – प्रधान रचनाकार। भारतीय संस्कृति के अमर गायक।

(7) जगन्नाथ प्रसाद मिलिन्द’ – जन्म – 1907 में मुरार ग्वालियर (म. प्र.) में।
रचनाएँ – जीवन संगीत, नवयुग के गान, बलिपथ के गीत, भूमि की अनुभूति, मुक्तिका, चिन्तनकण, सांस्कृतिक प्रश्न, विनोद कथा, बिल्लों का नकछेदन आदि।
भाव – पक्ष – देश – भक्ति एवं देश – प्रेम के अतिरिक्त बहुमुखी प्रतिभा सम्पन्न साहित्यकार।

(8) आचार्य रामचन्द्र शुक्ल – जन्म – (उ.प्र.) बस्ती के अगोना ग्राम में 1884 में।
मृत्यु – 8 फरवरी, 1941 में।
रचनाएँ – चिन्तामणि, हिन्दी शब्द सागर, त्रिवेणी,
विचार – वीथी, जायसी, सूर और तुलसी पर श्रेष्ठ आलोचनाएँ, हिन्दी साहित्य का इतिहास इत्यादि।
भाव – पक्ष – मुख्यतः भाव एवं विचार प्रधान निबंधकार। युगप्रवर्तक समीक्षक के रूप में विख्यात।

(9) भवानी प्रसाद मिश्र – जन्म – 28 मार्च, 1914 को म. प्र. होशंगाबाद के टिगरिया गाँव में।
मृत्यु – 20 फरवरी, 1985 में।
रचनाएँ – गीतफरोश, खुशबू के शिलालेख, बुनी हुई रस्सी, शतदल गाँधी पंचदशी, त्रिकाल संध्या आदि।
भाव – पक्ष – सहजता, सरलता और ताजगी। तरक्की की बातें करना। प्रमुख गाँधीवादी कवि।

(10) महादेवी वर्मा – जन्म – 26 मार्च, 1907 को उ. प्र. के फारुखाबाद जिले में।
मृत्यु – 11 सितम्बर, 1987 को।
रचनाएँ – नीहार, नीरजा, दीपाशीखा, यामा।
भाव – पक्ष – वेदना एवं करुणा की कवयित्री। प्रमुख रेखाचित्रकार।

(11) डॉ. जयन्त नार्लीकर – जन्म – 1938 में कोल्हापुर (महाराष्ट्र)।
रचनाएँ – आगन्तुक, धूमकेतु, विज्ञान, मानव, ब्रम्हाण्ड।
उपलब्धियाँ – वैज्ञानिक खोजों के लिए अनेक पुरस्कार। पद्म विभूषः। सम्मानित वैज्ञानिक।

(12) बिहारी – जन्म – 1595 में ग्वालियर के पास बसुआ, गोविन्दपुर गाँव में!
मृत्यु – 1663 ई. में।
रचनाएँ – बिहारी सतसई।
भाव – पक्ष – श्रृंगार, नीति एवं भक्ति के दोहे लिखने में प्रवीणता।
नारी – सौन्दर्य एवं नख – शिख चित्रण में महारथ।

(13) महात्मा गाँधी – जन्म – 2 अक्टूबर, 1869 को गुजरात के पोरबन्दर में।
मृत्यु – 30 जनवरी, 1948 को गोली मारकर हत्या।
रचनाएँ – हिन्द स्वराज्य, हरी पुस्तक, यंग इंडिया एवं हरिजन नामक पत्र, सत्य के प्रयोग।
महत्व – सत्य, अहिंसा एवं समाज सेवा की प्रतिमूर्ति। राष्ट्रीय आन्दोलन के नायक व भारत के राष्ट्रपिता।

(14) भगवतीचरण वर्मा – जन्म – सन् 1903 में उ. प्र. के उन्नाव जिले के शफीपुर ग्राम में।
रचनाएँ – इंस्टालमेंट, दो बाँके, राख, चिनगारी, मधुकण, प्रेमसंगीत, मानव, टेढ़े – मेढ़े रास्ते, चित्रलेखा, भूले – बिसरे चित्र।
भाव – पक्ष – भारतीय गाँव और शहर के परिवेश एवं समस्याओं के कुशल चितेरे।
सहज – सरल साहित्यकार।

(15) माखनलाल चतुर्वेदी – जन्म – 4 अप्रैल, 1889 को म. प्र. के होशंगाबाद के बाबई में।
मृत्यु – 30 जनवरी, 1968 को।।
रचनाएँ – हिमकिरीटनी, हिमतरंगिनी, माता, युगचरण, समर्पण, वेणु , लो गूंजे धरा, साहित्य देवता, वनवासी और कला का अनुवाद, कृष्णार्जुन युद्ध।
भाव – पक्ष – राष्ट्रीय चेतना के ओजस्वी कवि एवं एक भारतीय आत्मा के नाम से विख्यात।

(16) रामप्रसाद ‘बिस्मिल’ – जन्म – 4 जून, 1887 को उ. प्र. के मैनपुरी जिले में।
मृत्यु – 19 दिसम्बर , 1927 को गोरखपुर जेल में फाँसी।
रचनाएँ – सरफरोशी की तमन्ना …….। एवं बलिदानी गीत व संस्मरण।
महत्व – स्वतंत्रता आन्दोलन के शहीद सिपाही।

(17) रामकुमार ‘भ्रमर’ – जन्म – 2 फरवरी, 1938 को म. प्र. के ग्वालियर जिले में।
रचनाएँ – कच्ची – पक्की दीवारें, सेतुकथा, फौलाद और आदमी, महाभारत तथा श्रीकृष्ण के जीवन पर 12 तथा 10 खण्डीय उपन्यास।
भाव – पक्ष – अतीतकालीन मूल्यों को व्याख्यायित किया। राष्ट्रीय, सांस्कृतिक, सामाजिक एवं मानवता के साहित्यकार।

(18) बालकृष्ण शर्मा ‘नवीन’—जन्म – 8 दिसम्बर, 1987 म. प्र. के शाजापुर के भयाना गाँव में।
मृत्यु – 29 अप्रैल, 1960।
रचनाएँ – कुंकुम, रश्मिरेखा, अपलक, क्वासि, विनोवा, स्तवन, प्राणार्पण।
भाव – पक्ष – उदार, फक्कड़, आवेशी तथा मस्त भाव के कवि। सम्पूर्ण क्रान्ति, राष्ट्रीय चेतना, शोषणयुक्त समाज के कवि।

(19) डॉ. गंगा प्रसाद गुप्त ‘बरसैंया’
जन्म – 6 फरवरी, 1937 को उ. प्र. बाँदा के भौंरी ग्राम में।
रचनाएँ – हिन्दी साहित्य में निबंध और निबन्धकार, हिन्दी के प्रमुख एकांकी और एकांकीकार, छत्तीसगढ़ का साहित्य और साहित्यकार, आधुनिक काव्य, संदर्भ और प्रकृति, रस विलास, वीर विलास, सुदामा चरित, चिन्तन – अनुचिन्तन, बुन्देलखण्ड के अज्ञात रचनाकार, अरमान वर पाने का, निंदक नियरे राखिए।
महत्व – समीक्षा, व्यंग्य, काव्य लेखन में पारंगत। लोक बोलियों को महत्व प्रदान किया।

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(20) रामधारी सिंह ‘दिनकर’.
जन्म – 30 सितम्बर, 1908 को बिहार के सेमरिया ग्राम में।
मृत्यु – 24 अप्रैल, 1974 को।
रचनाएँ – कुरुक्षेत्र, उर्वशी, प्राणभंग, रश्मिरथी, वारदोली विजय, द्वन्द्वगीत, रसवंती, रेणुका, हुंकार, दिल्ली, नीलकुसुम, इतिहास के आँसू, नीम के पत्ते, सीपी और शंख, परशुराम की प्रतिज्ञा, सामधेनी, कलिंग विजय, मिट्टी की ओर, संस्कृति के चार अध्याय, पंत प्रसाद, गुप्त हिन्दी साहित्य की भूमिका , अर्द्धनारीश्वर, शुद्ध कविता की खोज में।
भाव – पक्ष – वीर एवं ओज की प्रधानता। राष्ट्रीय चेतना एवं प्रगतिवादी कवि।

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