MP Board Class 11th Samanya Hindi Important Questions हिन्दी साहित्य का इतिहास

MP Board Class 11th Samanya Hindi Important Questions हिन्दी साहित्य का इतिहास

प्रश्न 1.
कहानी की परिभाषाएँ लिखिए एवं दो प्रसिद्ध कहानीकारों के नाम लिखिए। (म. प्र. 2011, 12)
उत्तर–
कहानी की परिभाषा – कहानी गद्य की कथात्मक विधा है। एलेन पो ने कहानी की परिभाषा इस प्रकार दी है – “कहानी एक ऐसा आख्यान है जो इतना छोटा है कि एक बैठक में पढ़ा जा सके और जो पाठक पर एक ही प्रभाव उत्पन्न करने के लिए लिखा गया हो।”

“कहानी वास्तविक जीवन की ऐसी काल्पनिक कथा है जो छोटी होते हुए भी स्वतः पूर्ण एवं सुसंगठित होती है।”

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“कहानी में मानव जीवन की किसी एक घटना अथवा व्यक्तित्व के किसी एक पक्ष का मनोरम चित्रण रहता है। उसका उद्देश्य केवल एक – ही प्रभाव को उत्पन्न करना होता है।”

वस्तुतः कहानी एक कथात्मक गद्य विधा है, जिसमें किसी एक घटना या जीवन के मार्मिक अंश का वर्णन पूर्ण अन्विति के साथ होता है।

चन्द्रगुप्त विद्यालंकार के अनुसार – “घटनात्मक इकहरे चित्रण का नाम कहानी है। साहित्य के सभी अंगों के समान रस उसका आवश्यक गुण है।”

हड्सन (पाश्चात्य समीक्षक) के अनुसार – “कहानी में चरित्र व्यक्त होता है।”

प्रेमचन्द के अनुसार – “कहानी में बहुत विस्तृत विश्लेषण की गुंजाइश नहीं होती। यहाँ हमारा उद्देश्य सम्पूर्ण मनुष्य को चित्रित करना नहीं वरन् उसके चरित्र का एक अंग दिखाना है।”

कहानीकारों के नाम –
(1) मुंशी प्रेमचंद
(2) जयशंकर प्रसाद।

प्रश्न 2.
हिन्दी कहानी के प्रमुख तत्वों का वर्णन कीजिए। (म. प्र. 2009,10, 15)
उत्तर–
कहानी के तत्व – कहानी के निम्नलिखित छः तत्व माने गये हैं

  • कथावस्तु,
  • चरित्र – चित्रण या पात्र,
  • संवाद योजना या कथोपकथन,
  • वातावरण,
  • भाषा शैली,
  • उद्देश्य।

1. कथावस्तु – कथावस्तु के आधार पर ही कहानी का ढाँचा खड़ा होता है। कथा में प्रायः तीन मोड़ होते हैं – आरम्भ, चरम स्थिति तथा समापन या अन्त। इसका आरम्भ कौतूहलपूर्ण होता है। इसकी चरम स्थिति वह बिन्दु है जहाँ पहुँचकर कहानी द्वन्द्व, घटनाक्रम, उद्देश्य आदि अपनी चरमता पर पहुँच जाते हैं और कहानी के अन्त का पाठक या तो पूर्वानुमान कर लेता है या बड़ी उत्सुकता से प्रतीक्षा करने लगता है।

कहानी का अंत भाग उद्देश्य की स्पष्टता तथा कथावस्तु की अन्तिम परिणति है। इस तरह कहानी की कथावस्तु संक्षिप्त, सजीव, उत्सुकता बढ़ाने वाली तथा स्वाभाविकता एवं द्वन्द से पूर्ण होती है।

2. चरित्र – चित्रण – कहानी में पात्रों की संख्या कम होती है। इन पात्रों का चरित्र – चित्रण विविध कार्य व्यापारों द्वारा तथा पात्रों के कथोपकथन के माध्यम से किया जाता है। पात्रों के व्यक्तित्व का सहज विकास तथा विश्वसनीयता बहुत आवश्यक है। पात्रों के चरित्र की संक्षिप्त, स्पष्ट और संकेतात्मक अभिव्यक्ति कहानी के गुण हैं।

3.संवाद योजना – संवाद योजना कहानी को रोचक, सजीव बनाती है। संवाद छोटे होने चाहिए। लम्बे तथा बोझिल वाक्यों का प्रयोग नहीं किया जाना चाहिए। संवाद की भाषा चुस्त एवं अभिव्यंजनापूर्ण होनी चाहिए। संवादों के माध्यम से घटना – क्रम का विकास, पात्रों के चरित्रों पर प्रकाश पड़ना चाहिए।

4. वातावरण – कहानी की कथावस्तु किसी – न – किसी देश – काल से सम्बद्ध होती है। अतः देश – काल के अनुसार कहानी का वातावरण स्वाभाविक होना चाहिए। कथाकार घटना, पात्र, प्रकृति – सौन्दर्य से सम्बद्ध स्थानों आदि का ऐसा चित्रण करता है जो सहज होता है तथा कहानी को प्रभावपूर्ण बनाता है। यथा, ‘उसने कहा था’ कहानी का आरम्भ ही अमृतसर के बाजार से होता है, जिसमें लहनासिंह का सम्पूर्ण पंजाबी परिवेश सरसता के साथ रूपायित हो उठता है।

5. भाषा – शैली कहानी की भाषा, विषय एवं पात्र के अनुकूल होती है। मुसलमान पात्र उर्दू शब्द का अधिक प्रयोग करता है तथा पंडितजी संस्कृतनिष्ठ हिन्दी अधिक बोलते हैं। भाषा सरल, चुस्त एवं छोटे – छोटे वाक्य में गठित होती है। भाषा भावों, द्वन्द्व को अभिव्यक्त करने में सक्षम होनी चाहिए।

कहानी लेखन की अनेक शैलियाँ हो सकती हैं – वर्णनात्मक, संवादात्मक, आत्मकथात्मक, पत्रात्मक डायरी शैली आदि। एक – ही कहानी में एक – से – अधिक शैली का प्रयोग किया जा सकता है। आंचलिकता, हास्य – व्यंग्य, चित्रोपमता, प्रकृति का मानवीकरण आदि आयोजनों के द्वारा भाषा – शैली में सौन्दर्य – वृद्धि की जाती है।

6. उद्देश्य – प्रत्येक रचना में एकाधिक उद्देश्य निहित होते हैं। केवल मनोरंजन करना ही कहानी का उद्देश्य नहीं होता। कहानी की घटनाओं, पात्रों के संवादों आदि माध्यमों से कहानी का उद्देश्य व्यंजित होता है। कभी कहानी का उद्देश्य सामाजिक विद्रुपताओं पर प्रहार होता है तो कभी समाज, व्यक्ति के आचरणों में सुधार लाना होता है।

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प्रश्न 3.
हिन्दी कहानी के विविध प्रकारों का उल्लेख कीजिए। (म. प्र. 2013)
उत्तर–
कहानी के प्रकार – विषय, चरित्र, शैली आदि तत्त्वों के आधार पर कहानी के निम्नलिखित प्रमुख प्रकार हैं
(1) घटना प्रधान,
(2) चरित्र प्रधान,
(3) भाव प्रधान तथा
(4) वातावरण प्रधान कहानी।

(1) घटना प्रधान कहानी में घटनाओं की श्रृंखला होती है तथा किस्सा गोई की शैली में लिखी जाती है।
(2) चरित्र प्रधान कहानी में कहानी लेखक का अधिक ध्यान पात्रों के चरित्र – चित्रण पर ही अधिक रहता है। उसने कहा था’ कहानी चरित्र प्रधान है, जिसमें लहनासिंह का चरित्र प्रमुख है।
(3) भाव प्रधान कहानी में घटना गौण और भाव प्रधान होता है। संवदिया कहानी इसी प्रकार की है।
(4) वातावरण प्रधान कहानी में देश – काल के चित्रण पर ही अधिक ध्यान दिया जाता है। ऐतिहासिक कहानी कुछ इसी प्रकार की होती है।

प्रश्न 4.
हिन्दी कहानी के विकासक्रम को रेखांकित कीजिए। (म. प्र. 2009, 15)
उत्तर–
हिन्दी कहानी का विकासक्रम – हिन्दी साहित्य में कहानी का जन्म भारतेन्दु युग में हुआ। ‘सरस्वती’ पत्रिका के प्रकाशन से कहानी के क्षेत्र में क्रांति – सी आ गयी। इसके विकास को चार युगों में विभाजित किया जा सकता है
(1) प्रारम्भिक प्रयोगकाल – (सन् 1900 से 1910)
(2) विकास काल (पूर्वार्द्ध) – (सन् 1910 से 1936)
(3) विकास काल (उत्तरार्द्ध) – (सन् 1936 से 1947)
(4) स्वातन्त्रोत्तर काल – (सन् 1947 से अब तक)

1. प्रारम्भिक काल
कहानीकार – कहानियाँ
1. श्री किशोरी लाल गोस्वामी – इन्दुमती।
2. बंग महिला – दुलाई वाली।
3. आचार्य रामचन्द्र शुक्ल – ग्यारह वर्ष का समय।
4. माधव राव सप्रे – टोकरी भर मिट्टी।
5. गिरिजा दत्त बाजपेयी – पंडित और पंडिताइन।

2. विकास काल (पूर्वार्द्ध) – इस युग को हिन्दी का ‘स्वर्ण युग’ कहा जाता है।
कहानीकार – कहानियाँ
1. प्रेमचन्द – पंच परमेश्वर, पूस की रात, बड़े घर की बेटी, शतरंज के खिलाड़ी, कफन।
2. जयशंकर प्रसाद – आकाशदीप, पुरस्कार, गुण्डा।
3. पं. चन्द्रधर शर्मा ‘गुलेरी’ – उसने कहा था, बुद्ध का काँटा, सुखमय जीवन।
4. भगवती प्रसाद बाजपेयी – मिठाई वाला, सूखी लकड़ी।
5. विश्वम्भर नाथ शर्मा ‘कौशिक’ – ताई, रक्षाबन्धन, चित्रशाला।

अन्य कहानीकार – वृन्दावनलाल वर्मा, सियाराम शरण गुप्त, आचार्य चतुरसेन शास्त्री, सुदर्शन, निराला, विनोद शंकर व्यास, चण्डी प्रसाद हृदयेश।

3. विकास काल (उत्तरार्द्ध)
कहानीकार – कहानियाँ
1. जैनेन्द्र कुमार – अपना – अपना भाग्य, पार्जण।
2. अज्ञेय – रोज, अमर वल्लरी, कोठरी की बात।
3. इलाचन्द्र जोशी – आहुति, छाया, दीवाली।
4. भगवतीचरण वर्मा – प्रायश्चित, दो बाँके।
5. यशपाल – पराया सुख, परदा, दु:ख।

अन्य कहानीकार – रांगेय राघव, विष्णु प्रभाकर, धर्मवीर भारती, अमृतराय, अमृतलाल नागर, चन्द्रगुप्त विद्यालंकार, महादेवी वर्मा, श्रीराम शर्मा, उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’।

4.स्वातन्त्रोत्तर काल – इस युग में कहानी के क्षेत्र में नयी कहानी, ‘सचेतन कहानी’ तथा ‘समानान्तर कहानी’ आदि नामों से अनेक आन्दोलन हुए।
कहानीकार – कहानियाँ
1. मोहन राकेश – सौदा, एक और जिन्दगी।
2. कमलेश्वर – साँप, खोई हुई दिशाएँ।
3. राजेन्द्र यादव – किनारे से किनारे तक, छोटे – छोटे ताजमहल।
4. मन्नू भंडारी – सजा, यही है जिन्दगी।
5. फणीश्वरनाथ ‘रेणु’ – संवदिया, ठेस, लाल पान की बेगम।

अन्य कहानीकार – शिवानी, निर्मल वर्मा, उषा प्रियंवदा, हरिशंकर परसाई, शरद जोशी, श्रीकान्त वर्मा, कृष्णा सोबती, भीष्म साहनी आदि।
इस प्रकार हिन्दी कहानी सतत् अपनी विकास यात्रा पर अग्रसर है।

प्रश्न 5.
एकांकी की परिभाषाएँ लिखिए। (Imp.)
उत्तर–
परिभाषा – एकांकी ऐसी नाट्य विधा है जो एक अंक में रचित होती है। इसमें एक ही घटना तथा एक प्रभावान्विति होती है। एकांकी न तो नाटक का संक्षिप्त रूप है न वह नाटक का एक अंक है। एकांकी स्वयं में पूर्ण रचना है।

डॉ. नगेन्द्र के अनुसार – “एकांकी में एक, विस्तार की सीमा कहानी जैसी, जीवन का एक पहलू, एक महत्वपूर्ण घटना, एक विशेष परिस्थिति अथवा उदीप्त क्षण, एकता, एकाग्रता और आकस्मिकता की अनिवार्यता, संकलन त्रय का साधारणत: पालन, कथावस्तु का ऐक्य होना चाहिए।”

उदयशंकर भट्ट के अनुसार – – “एकांकी में जीवन का एक अंश, परिवर्तन का एक क्षण, सब प्रकार के वातावरण से प्रेरित, एक झोंका, दिन में एक घंटे की तरह मेघ में बिजली की तरह, बसंत में फूल के ह्रास की तरह व्यक्त होता है।”

प्रश्न 6.
एकांकी के विविध तत्वों का वर्णन कीजिए। (म. प्र. 2009, 12, 13)
उत्तर–
परिभाषा – एकांकी ऐसी नाट्य विधा है जो एक अंक में रचित होती है। इसमें एक ही घटना तथा एक प्रभावान्विति होती है। एकांकी न तो नाटक का संक्षिप्त रूप है और न वह नाटक का एक अंक है। एकांकी स्वयं में पूर्ण रचना है।

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एकांकी के तत्व –

  1. कथावस्तु,
  2. पात्र या चरित्र – चित्रण,
  3. कथोपकथन,
  4. संकलन त्रय या वातावरण,
  5. संघर्ष,
  6. भाषा – शैली,
  7. अभिनेयता,
  8. उद्देश्य या प्रभावान्विति।

1. कथावस्तु – एकांकी की कथावस्तु छोटी तथा किसी एक मार्मिक घटना पर आधारित होती है। इसमें आरम्भ, विकास तथा चरम परिणति तीन मोड़ होते हैं। इसका आरम्भ कौतूहलपूर्ण होता है। मार्मिकता, परिधि संकोच या संक्षिप्तता, प्रभावान्विति या उद्देश्य कथावस्तु के अनिवार्य तत्व होते हैं। यह कथावस्तु एक अंक तथा कई दृश्यों में होती है।
2. पात्र या चरित्र – चित्रण – एकांकी में पात्रों की संख्या कम होती है। इसमें एक प्रधान पात्र होता है जिसके इर्द – गिर्द दूसरे पात्र होते हैं। पात्रों के क्रिया – कलापों के द्वारा, कथन के द्वारा, पात्रों के चरित्र का चित्रण किया जाता है।
3. कथोपकथन – एकांकी की संवाद – योजना, बहुत – ही चुस्त, संक्षिप्त, सजीव, सरस तथा गतिशील होती है। इसके माध्यम से कथा का विकास एवं चरित्रों के ऊपर प्रभाव पड़ता है। वस्तुतः एकांकी संवाद प्रमुख रचना है। (म. प्र. 2010)
4. संकलन त्रय या वातावरण – संकलन त्रय का अर्थ है देश, काल तथा घटनाओं की अन्विति अर्थात् एकांकी की घटना एक देश, एक काल तथा एक प्रभावान्विति से युक्त होनी चाहिए तभी उसके वातावरण में स्वाभाविकता, सजीवता तथा सहजता आती है जो एकांकी को प्रभावपूर्ण बनाती है।
5.संघर्ष – आधुनिक एकांकी में घात – प्रतिघात तथा द्वन्द्व या मनोदशाओं का चित्रण अनिवार्य होता है।
6. भाषा – शैली – एकांकी की भाषा सरल तथा पात्रों के अनुकूल होती है। विषय की गम्भीरता के अनुकूल भाषा भी गम्भीर होती है।
7. अभिनेयता – अभिनेयता किसी भी नाट्य – रचना की जान होती है। एकांकी में दृश्यों का संयोजन इस प्रकार किया जाना चाहिए जिससे कि वह रंगमंच पर अभिनीत हो सके। इसलिए एकांकी की संवाद – योजना, रंग – विधान, अभिनेयता की दृष्टि से योजित होते हैं।
8. उद्देश्य या प्रभावान्विति – एकांकी में कोई – न – कोई एक उद्देश्य होता है या प्रभावान्विति होती है। यह प्रभावान्विति एकांकी की चरम सीमा पर जाकर व्यक्त होती है। .

प्रश्न 7.
हिन्दी एकांकी के विविध प्रकारों का उल्लेख कीजिए। (म. प्र. 2015)
उत्तर–
एकांकी के प्रकार – विषय की दृष्टि से एकांकी कई प्रकार के होते हैं। जैसे – सामाजिक, धार्मिक, व्यंग्यपूर्ण, ऐतिहासिक, राजनीतिक, पौराणिक आदि।

शैली की दृष्टि से एकांकी के निम्नलिखित प्रकार हो सकते हैं –

  1. स्वप्न रूप,
  2. प्रहसन,
  3. काव्य एकांकी,
  4. रेडियो रूपक,
  5. ध्वनि रूपक,
  6. वृत्त रूपक।

प्रश्न 8.
हिन्दी एकांकी के विकास को कितने भागों में बाँटा गया है? (म. प्र. 2010, 13)
उत्तर–
(1) भारतेन्दु युग – सन् 1872 से 1910 तक – (सामाजिक कुरीतियाँ, आत्म गौरव का भाव)
(2) प्रसाद युग सन् 1911 से 1930 तक – (राष्ट्रीय, सामाजिक, नैतिक, आदर्शवादी)
(3) रामकुमार वर्मा युग सन् 1930 से 1947 तक – (शिल्प की दृष्टि से नयापन)
(4) स्वातन्त्रयोत्तर युग – सन् 1947 से अब तक। (विषय – वस्तु की दृष्टि से विविधता)

प्रश्न 9.
हिन्दी साहित्य के इतिहास को कितने भागों में बाँटा गया है? प्रत्येक का नाम तथा सन् व एक – एक कवि का उल्लेख कीजिए।
उत्तर–
हिन्दी साहित्य के इतिहास को चार भागों में बाँटा गया है
(1) वीरगाथा काल – सन् 1050 से 1375 तक
(2) भक्तिकाल – सन् 1375 से 1700 तक
(3) रीतिकाल – सन् 1700 से 1900 तक
(4) आधुनिक काल – सन् 1900 से अब तक।

प्रत्येक के एक – एक कवि –
(1) चन्द बरदायी, नरपति नाल्ह
(2) सूरदास, तुलसीदास, कबीर, जायसी
(3) बिहारी, भूषण
(4) प्रसाद, पन्त, निराला।

प्रश्न 10.
हिन्दी के प्रमुख चार एकांकीकारों का नाम एवं उनकी एक – एक रचनाएँ लिखिए। (म. प्र. 2011, 12, 15)
उत्तर–
हिन्दी साहित्य का प्रथम एकांकीकार जयशंकर प्रसाद को माना जाता है। उनका ‘एक घुट’ प्रथम एकांकी है। वैसे तो यह माना जाता है कि एकांकियों की रचना अंग्रेजी साहित्य के अनुकरण पर हुई थी, परन्तु संस्कृत साहित्य में अनेक एकांकी मिलते हैं।

एकांकीकार – प्रसिद्ध एकांकियाँ
1. डॉ. रामकुमार वर्मा – दीपदान, रेशमी टाई, पृथ्वीराज की आँखें।
2. विष्णु प्रभाकर – वापसी, हब्बा के बाद।
3. भगवतीचरण वर्मा – सबसे बड़ा आदमी, दो कलाकार।
4. उदयशंकर भट्ट – नये मेहमान, नकली और असली।
5. भुवनेश्वर प्रसाद – कारवाँ, ऊसर।
6. सेठ गोविन्द दास – केरल का सुदामा।
7. जगदीशचन्द्र माथुर – रीढ़ की हड्डी, भोर का तारा।
8. उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’ – सूखी डाली, पापी।

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अन्य एकांकीकार – गिरिजा कुमार माथुर, वृन्दावन लाल वर्मा, धर्मवीर भारती, विनोद रस्तोगी, हरिकृष्ण प्रेमी, लक्ष्मी नारायण मिश्र, लक्ष्मी नारायण लाल।

भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के एक अंक वाले नाटक ‘भारत दुर्दशा’, ‘अंधेर नगरी’ – इन्हें आधुनिक ढंग का एकांकी नहीं माना जा सकता।

एकांकी आधुनिक युग की ही उपज है। हिन्दी एकांकी विधा का इतिहास अत्यन्त अल्पकालिक है।

प्रश्न 11.
जगदीश चंद्र माथुर एवं रामकुमार वर्मा की दो – दो एकांकी के नाम लिखिए।
उत्तर–
(1) जगदीश चंद्र माथुर –

  • रीढ़ की हड्डी,
  • भोर का तारा।

(2) डॉ. रामकुमार वर्मा –

  • दीपदान,
  • पृथ्वीराज की आँखें।

प्रश्न 12.
स्वातन्त्रोत्तर काल में लिखी गई कहानी एवं कहानीकार के नाम लिखिए।
उत्तर–
कहानीकार – कहानियाँ
1. मोहन राकेश – सौदा, एक और जिन्दगी
2. कमलेश्वर – साँप, खोई हुई दिशाएँ
3. राजेन्द्र यादव – किनारे से किनारे तक
4. मन्नू भण्डारी – सजा
5. फणीश्वर नाथ ‘रेणु’ – ठेस, संवदिया।

वस्तुनिष्ठ प्रश्न
प्रश्न 1.
हिन्दी कहानी एवं एकांकी के दो समान तत्व कौन – कौन से हैं?
उत्तर–
कथानक, संकलन – त्रय।

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प्रश्न 2.
भारतेन्दु युग का नामकरण किस साहित्यकार के नाम पर किया गया है?
उत्तर–
भारतेन्दु हरिश्चन्द्र।

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