MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 4 मेरी जीवन रेखा

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MP Board Class 10th Hindi Vasanti Solutions Chapter 4 मेरी जीवन रेखा (महावीर प्रसाद द्विवेदी)

मेरी जीवन रेखा पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

मेरी जीवन रेखालघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर

Meri Jeevan Rekha MP Board Chapter 4 Class 10th प्रश्न-1.
द्विवेदी जी के इस्तीफा वापस लेने के संबंध में उनकी पत्नी ने क्या कहा?
उत्तर-
द्विवेदी जी के इस्तीफा वापस लेने के संबंध में उनकी पत्नी ने उनसे कहा, “क्या थूककर भी उसे कोई चाटता है?

Class 10 Hindi Chapter 4 Mp Board  प्रश्न-2.
होशंगाबाद में द्विवेदी जी ने क्या नई उपलब्धियाँ प्राप्त की?
उत्तर-
होशंगाबाद में भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के ‘कवि-वचन-सुधा’ और गोस्वामी राधाचरण के एक मासिक पत्र ने द्विवेदी के अनुराग की वृद्धि कर दी।

Mp Board Class 10 Hindi Chapter 4 प्रश्न-3.
द्विवेदी जी लेखों की भाषा में किस प्रकार का संशोधन कर दिया करते थे?
उत्तर-
द्विवेदी जी लेखों की भाषा में संशोधन अधिक पाठकों की समझ में आने लायक कर देते थे।

Chapter 4 Hindi Class 10 Mp Board प्रश्न-4.
इंडियन प्रेस में काम करते हुए द्विवेदी जी ने कौन-सी पुस्तक लिखी?
उत्तर-
इंडियन प्रेस में काम करते हुए द्विवेदी जी ने ‘तृतीय रीडर’ पुस्तक लिखी।

मेरी जीवन रेखा दीर्घ-उत्तरीय प्रश्नोत्तर

Mp Board Class 10th Hindi Chapter 4 प्रश्न-1.
द्विवेदी जी ने अपने लिए कौन-से चार सिद्धान्त निश्चित किए और उनका पालन करने में वे कहाँ तक सफल हुए?
उत्तर-
द्विवेदी जी ने अपने लिए चार सिद्धांत या आदर्श निश्चित किए, यथा

  1. वक्त की पाबंदी करना,
  2. रिश्वत न लेना,
  3. अपना काम ईमानदारी से करना और
  4. ज्ञान-वृद्धि के लिए सतत प्रयत्न करते रहना। पहले तीन सिद्धांतों के अनुकूल आचरण करना तो सहज था, चौथे के अनुकूल सचेष्ट रहना कठिन था। फिर भी उसमें लगातार अभ्यास सफलता भी होती गई।

Mp Board Solution Class 10 Hindi Chapter 4 प्रश्न-2.
‘सरस्वती’ पत्रिका का संपादन कार्य द्विवेदी जी को किस प्रकार प्राप्त हुआ?
उत्तर-
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने प्रयाग के ‘इंडियन प्रेस’ द्वारा प्रकाशित ‘तृतीय रीडर’ की समालोचना पुस्तकाकार में प्रकाशित की थी। इस समालोचना में द्विवेदी जी ने उस रीडर के बहुत-से दोषों का उल्लेख किया था। इससे प्रभावित होकर ‘इंडियन प्रेस’ द्वारा उन्हें ‘सरस्वती’ पत्रिका का सम्पादन-कार्य सम्भालने का प्रस्ताव रखा गया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।

Vasanti Class 10th MP Board Chapter 4 प्रश्न-3.
द्विवेदी जी को विद्यार्थी जीवन में किन-किन कठिनाइयों का सामना करना पड़ा?
उत्तर-
द्विवेदी जी अपने गाँव के देहाती मदरसे में थोड़ी-सी उर्दू और घर पर थोड़ी-सी संस्कृत पढ़कर तेरह वर्ष की उम्र में मैं छब्बीस मील दूर रायबरेली के जिला स्कूल में अंग्रेजी पढ़ने गये। वे आटा, दाल घर से पीठ पर लादकर ले जाते थे। दो आने महीने फीस देते थे। दाल ही में आटे के पेड़े या टिकियाएँ पका करके पेट-पूजा करते थे। रोटी बनाना तब उन्हें आता ही न था। संस्कृत भाषा उस समय स्कूल में अछूत समझी जाती थी। विवश होकर अंग्रेजी के साथ फारसी पढ़ते थे। एक वर्ष किसी तरह वहाँ काटे फिर पुरवा, फतेहपुर और उन्नाव के स्कूलों में चार वर्ष काटे। कौटुम्बिक दुरवस्था के कारण वे इससे आगे न बढ़ सके। उनकी स्कूली शिक्षा की वहीं समाप्ति हो गई।

Vasanti Hindi Book Class 10 MP Board Chapter 4 प्रश्न-4.
द्विवेदी जी को सरस्वती पत्रिका में प्रकाशन करने के लिए किस तरह के प्रलोभन दिए जाते थे? इस संबंध में उनकी प्रतिक्रिया क्या होती थी?
उत्तर-
द्विवेदी जी को सरस्वती पत्रिका में प्रकाशन के लिए इस प्रकार प्रलोभन दिए जाते थे- कोई कहता-‘मेरी मौसी का मरसिया छाप दो, मैं तुम्हें निहाल कर दूँगा। कोई लिखता-‘अमुक सभापति की ‘स्पीच’ छाप दो, मैं तुम्हारे गले में बनारसी दुपट्टा डाल दूंगा।’ कोई आज्ञा देता-‘मेरे प्रभु का सचित्र जीवन-चरित्र निकाल दोगे तो तुम्हें एक बढ़िया घड़ी या पैरगाड़ी नजर की जाएगी।’ इन प्रलोभनों पर द्विवेदी जी बहरा और गूंगा बन जाते और ‘सरस्वती’ में वही मसाला जाने देते, जिससे वे पाठकों का लाभ समझते। वे उनकी रुचि का सदैव ख्याल रखते और यह देखते रहते कि उनके किसी काम से उनको, सत्पथ से विचलित होने का साधन न प्राप्त हो।

Vasanti Hindi Book Class 10 Solutions Mp Board Chapter 4 प्रश्न-5.
आशय स्पष्ट कीजिए’अव्यवस्थित’ चित्त वाले मनुष्य की सफलता में सदा संदेह रहता है।
उत्तर-
उपर्युक्त वाक्य का आशय यह है कि व्यवस्थित चित्त से किया गया काम सुफल होता है। उसमें सहजता और सरलता होती है। आशंका तो उससे बिल्कुल नहीं होती है। इसके विपरीत अव्यवस्थित चित्त से किया गया काम कुफल होता है। वह दुखद होने के साथ आशंकाओं से भी भरा होता है।

मेरी जीवन रेखा भाषा अनुशीलन

प्रश्न-1.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम शब्द लिखिएअल्पज्ञ, सत्पथ, अनुकूल, जीवन, विद्वान, कृतज्ञ।
उत्तर-
Meri Jeevan Rekha MP Board Chapter 4 Class 10th
Class 10 Hindi Chapter 4 Mp Board

प्रश्न-2.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखिए
सरस्वती, मित्र, गृह, आत्मज, तरक्की।
उत्तर-
Mp Board Class 10 Hindi Chapter 4

प्रश्न-3.
निम्नलिखित में से तत्सम, तद्भव, देशज और विदेशी शब्द छांटिए
आत्मज, घृष्टता, मदरसा, फीस, पाबन्दी, निगरानी, स्कूल, जीवन,
सैनिक, नजर, मिडलैंड, मुलाजिम, उजरत, इस्तीफा, संगति।
उत्तर-
Chapter 4 Hindi Class 10 Mp Board

प्रश्न-4.
निम्नलिखित वाक्यांशों के लिए एक शब्द लिखिए
देहात का रहने वाला, जिस पर विश्वास किया जा सके, उपकार को मानना, जहाँ पर पुस्तकें छापी जाती हैं, कम ज्ञान रखने वाला।
उत्तर-
Mp Board Class 10th Hindi Chapter 4

प्रश्न-5.
निम्नलिखित मुहावरों को वाक्यों में प्रयुक्त कीजिए
मैदान मारना, पेट पूजा करना, होश आना।
उत्तर-
Mp Board Solution Class 10 Hindi Chapter 4

मेरी जीवन रेखा योग्यता विस्तार

प्रश्न-1.
द्विवेदी जी के जीवन संघर्ष के प्रेरक प्रसंगों को पढ़िए।

प्रश्न-2.
द्विवेदी युग के समकालीन साहित्यकारों की सूची बनाइए और उनके बारे में जानकारी प्राप्त कीजिए।

प्रश्न-3.
जीवन में उन्नति करने के लिए आप कौन-कौन से गुण आवश्यक मानते हैं? उनकी सूची बनाइए तथा कक्षा में चर्चा कीजिए।

प्रश्न-4.
म.प्र. से प्रकाशित होने वाली हिंदी भाषा की पत्र-पत्रिकाओं की जानकारी एकत्र कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक/अध्यापिका की सहायता से हल करें।

मेरी जीवन रेखा परीक्षोपयोगी अतिरिक्त प्रश्नोत्तर

मेरी जीवन रेखा अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-(क)
महावीर प्रसाद द्विवेदी के बापन के विषय में आप जो कुछ जानते हैं उसे संक्षेप में लिखिए।
उत्तर-
महावीर प्रसाद द्विवेदी को बचपन से ही तुलसीदास की रामायण और ब्रजवासीदास के ब्रजविलास से अनुराग हो गया था। उन्होंने सैकड़ों फुटकर कवित्त भी कंठस्थ कर लिये थे। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की पत्रिका ‘कवि वचन सुधा’ और गोस्वामी राधाचरण के मासिक पत्र से उनका साहित्य में अनुराग और भी बढ़ गया था। यद्यपि उन्हें स्कूली शिक्षा प्राप्त करने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा था।

प्रश्न-(ख)
लेखक को अपनी जीवन-कथा लिखने की प्रेरणा कैसे मिली?
उत्तर-
लेखक को अपनी जीवन-कथा लिखने की प्रेरणा उनके मित्रों और हितैषियों से मिली। उन्होंने लेखक को अनेक पत्र लिखे। उन्होंने उन्हें अनेक उलाहने भी दिए। इस प्रकार अपने मित्रों और हितैषियों से अपनी जीवन-कथा लिखने की प्रेरणा प्राप्त की।

प्रश्न-(ग)
द्विवेदी जी ने नौकरी से इस्तीफा क्यों दिया? .
उत्तर-
द्विवेदी जी रेलवे में नौकरी करते थे। संयोगवश उनके अधिकारी ने उन्हें प्रतिदिन सुबह आठ बजे दफ्तर में आने का आदेश दिया। उन्होंने उनका यह आदेश मान लिया। उनका अधिकारी चाहता था कि द्विवेदी जी अन्य कर्मचारियों को भी प्रातः आठ बजे कार्यालय में आने का आदेश दें। इसे उन्होंने मानना उचित नहीं समझा। बात बढ़ गई और उन्होंने नौकरी से बिना किसी सोच-विचार के त्याग-पत्र दे दिया।

प्रश्न-(घ)
रेल की नौकरी छोड़ने के वाद द्विवेदी जी ने क्या किया?
उत्तर-
रेलवे की नौकरी छोड़ने के बाद लेखक को मित्रों से सहायता के अनेक प्रस्ताव आए, पर उन्होंने किसी की भी सहायता स्वीकार नहीं की। उन्होंने ‘इंडियन प्रेस’ द्वारा दिए गए कार्य अर्थात् ‘सरस्वती’ पत्रिका के सम्पादन कार्य को स्वीकार कर लिया। अवकाश के समय में वह अनुवाद आदि का भी थोड़ा-बहुत काम कर लिया करते थे।

प्रश्न-2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों में से चुनकर कीजिए।
1. उसने अपनी जीवनी कथा ……………….है। (कही, लिखी)
2. द्विवेदी जी थे …………………….. (शहरी, देहाती)
3. द्विवेदी का अनुराग …………….. पर हो गया था। (रामचरितमानस, सूरसागर)
4. सरस्वती …………. पत्रिका थी। (मासिक, साप्ताहिक)
5. ………………… की कमी के कारण द्विवेदी जी अध्ययन न कर सके। (धन, समय)
उत्तर-
1. लिखी,
2. देहाती,
3. रामचरितमानस,
4. मासिक,
5. समय।

प्रश्न-3.
दिए गए कथनों के लिए सही विकल्प चुनकर लिखिए
1. द्विवेदी जी ने आदर्श निश्चित किए
1. चार,
2. दो,
3. 10
4. कोई नहीं।
उत्तर-
1. चार,

2. द्विवेदी सम्पादक थे
1. हंस के,
2. माधुरी के,
3. सरस्वती के,
4. इंडियन प्रेस के।
उत्तर-
2. आठ रुपये,

3. द्विवेदी का जन्म हुआ था
1. 1884 में,
2.1864 में,
3. 1874 में,
4. 1964 में।
उत्तर-
3. 1864 में,

4. द्विवेदी जी को सरस्वती से आमदनी थी
1. तेईस रुपए,
2. आठ रुपये,
3. पन्द्रह रुपये,
4. बीस रुपये।
उत्तर-
4. तेइस रुपये,

5. अध्यापक ने पुस्तक दिखाई थी
1. ब्रजवासीदास,
2. रामचरितमानस,
3. कवि-वचन-सुधा,
4. तृतीय रीडर।
उत्तर-
5. …………………

प्रश्न- 4. सही जोड़े मिलाइए
कर्मवीर – उपेन्द्रनाथ ‘अश्क’
साये में धूप – डॉ. एन.ई. विश्वनाथ अय्यर
डूबता सूरज – दुष्यंत कुमार
गिरती दीवारें – रमानाथ अवस्थी
रात और शहनाई – अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
उत्तर-
कर्मवीर – अयोध्यासिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
साये में धूप – दुष्यन्त कुमार
डूबता सूरज – डॉ. एन.ई. विश्वनाथ अय्यर
गिरती दीवारें – उपेन्द्र नाथ ‘अश्क’
रात और शहनाई – रामानाथ अवस्थी

प्रश्न-5.
निम्नलिखित वाक्य सत्य हैं या असत्य? वाक्य के आगे लिखिए।
1. द्विवेदी जी को अपनी कथा कहते हुए संकोच नहीं होता है।
2. रेलवे में द्विवेदी को पचास रुपये महीने मिलते थे।
3. द्विवेदी जी के पिता ईस्ट इंडिया कंपनी की पलटन में सैनिक थे।
4. अत्याचार के सहने से असहनशीलता प्रकट होती है।
5. ‘सरस्वती’ अपने समय की एकमात्र पाठकों की सेविका थी।
उत्तर-
1. असत्य,
2. सत्य,
3. सत्य,
4. असत्य,
5. सत्य।

प्रश्न-6.
निम्नलिखित कथनों के उत्तर एक शब्द में दीजिए
1. द्विवेदी किसके आत्मज थे?
2. द्विवेदी जी का निधन कब हुआ?
3. द्विवेदी जी की उन्नति का प्रधान कारण क्या था?
4. प्रलोभनों पर द्विवेदी जी क्या बन जाते थे?
5. द्विवेदी जी किसका ख्याल रखते थे?
उत्तर-
1. देहाती के,
2. 1938 में,
3. ज्ञानलिप्सा,
4. गूंगा और बहरा,
5. पाठकों का।

मेरी जीवन रेखा लघु-उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न-1.
महावीर प्रसाद द्विवेदी ने आत्मकथा क्यों लिखी थी?
उत्तर-
महावीर प्रसाद द्विवेदी क्या थे, इसका ज्ञान उनके मित्रों और हितैषियों को नहीं था। वे केवल द्विवेदी जी के ‘वर्तमान’ को ही जानते थे। अतएव अपने मित्रों और हितैषियों की जानकारी हेतु उन्होंने आत्मकथा लिखी।

प्रश्न-2.
महावीर प्रसाद द्विवेदी को अपनी कथा कहने में संकोच क्यों था?
उत्तर-
महावीर प्रसाद द्विवेदी का विचार था कि उनकी आत्मकथा में कोई तत्त्व नहीं है। उससे कोई कुछ सीख भी नहीं सकता। इन कारणों से उन्हें आत्मकथा लिखने में संकोच होता था।

प्रश्न-3.
महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म कहाँ और कब हुआ था?
उत्तर-
महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म उत्तर प्रदेश में रायबरेली जिले के दौलतपुर गाँव में सन् 1864 ई. में हुआ था।

प्रश्न-4.
द्विवेदी जी लेखों की भाषा में किस प्रकार का संशोधन करते थे?
उत्तर-
द्विवेदी जी पाठकों की रुचि का सदा ध्यान रखते थे। लेखों की भाषा के सुधार में भी उनका यही दृष्टिकोण रहता था। वे संशोधन द्वारा लेखों की भाषा अधिक-से-अधिक पाठकों की समझ में आने योग्य कर देते थे। वे ऐसे शब्दों का प्रयोग करते थे जिन्हें अधिक-से-अधिक पाठक समझ सकते थे।

प्रश्न-5.
द्विवेदी जी ‘सरस्वती’ में किस प्रकार की सामग्री प्रकाशित करते थे?
उत्तर-
द्विवेदी जी पाठकों की रुचि का ध्यान रखते थे और ‘सरस्वती’ में वही सामग्री प्रकाशित करते थे जो पाठकों के लिए लाभप्रद होती थी। इसके लिए वे लेखों की भाषा में संशोधन भी कर दिया करते थे ताकि उसे अधिक-से-अधिक पाठक समझ सकें।

मेरी जीवन-रेखा कवि-परिचय

महावीर प्रसाद द्विवेदी का जन्म रायबरेली के दौलतपुर गाँव में सन् 1864 ई. में हुआ था। उन्होंने प्रारम्भिक शिक्षा अपने गाँव की पाठशाला में प्राप्त की थी। उसके बाद वे कुछ दिन रायबरेली के जिला स्कूल तथा फतेहपुर के स्कूल में पढ़ते रहे। इसके बाद वे बम्बई में अपने पिता रामसहाय द्विवेदी के पास चले गए।

बम्बई में उन्होंने संस्कृत, गुजराती, मराठी और अंग्रेजी का अध्ययन किया। आजीविका के लिए उन्होंने रेलवे की नौकरी कर ली। शीघ्र ही उन्होंने रेलवे की नौकरी छोड़ दी। सन् 1903 में 1920 ई. तक उन्होंने ‘सरस्वती’ पत्रिका का सफल सम्पादन किया। इस काल में उन्होंने अनेक साहित्यकारों का मार्गदर्शन किया। उनका देहावसान् 21 सितम्बर, 1938 ई. में हुआ था।

रचनाएँ- द्विवेदी जी ने अनेक मौलिक ग्रन्थों की रचना की। साथ ही उन्होंने अनेक ग्रन्थों का अनुवाद भी किया। उनके मौलिक ग्रन्थों में नैषध चरित चर्चा, कालिदास की समालोचना, हिन्दी-भाषा की उत्पत्ति, अतीत स्मृति, विचार-विमर्श, विज्ञान-वार्ता आदि उल्लेखनीय हैं।

भाषा-शैली-द्विवेदी जी की भाषा-शैली सरल और सुबोध है। कहीं-कहीं वह दुर्बोध और असहज हो गई है। इसके मुख्य कारण हैं-जटिल और उच्चस्तरीय शब्दों का आ टपकना। इस प्रकार आपकी भाषा की शब्दावली सरल और प्रचलित हिन्दी की है तो आम प्रचालित संस्कृत के भी। इस प्रकार की भाषा से निर्मित आपकी शैली में विविधता आ गई है। वह कहीं सरल-सुबोध और बोधगम्य है तो कहीं गवेषणात्मक और शोधपरक है। कुल मिलाकर आपकी भाषा-शैली विषयानुकूल और तथ्यों को प्रकट करने वाली समर्थ और सक्षम भाषा-शैली है।।

साहित्य में स्थान- द्विवेदी जी ने ‘सरस्वती’ पत्रिका के माध्यम से ‘खड़ी बोली’ को परिष्कृत और व्याकरण-सम्मत करने का महान् कार्य किया। खड़ी बोली को काव्य-भाषा में प्रतिष्ठित करने का श्रेय उन्हीं को ही जाती है। उन्होंने ज्ञान के विविध क्षेत्रों से सामग्री लेकर हिन्दी भाषा और साहित्य के अभावों को पूरा किया।

मेरी जीवन रेखा निबंध का सारांश

महावीर प्रसाद द्विवेदी की आत्म-कथात्मक इस निबंध में उनके जीवन-संघर्ष और साधना का परिचय मिलता है। इससे यह स्पष्ट होता है कि यदि दृढ़-संकल्प, आत्म-विश्वास और निरंतर कठिन परिश्रम की क्षमता हो तो जीवन में उन्नति को कोई नहीं रोक सकता।

लेखक को उनके मित्रों और हितैषियों ने अनेक पत्र लिखे। वे लेखक के मुख से उनकी जीवन कथा सुनना चाहते थे। लेखक ने उनकी भावनाओं का आदर करते हुए अपने जीवन के संबंध में कुछ बातें सूत्र-रूप में दी हैं।

लेखक के पिता देहाती थी। उनका वेतन दस रुपए मासिक था। लेखक ने देहाती स्कूल में उर्दू पढ़ी थी। तेरह वर्ष की आयु में वह रायबरेली के जिला स्कूल में अंग्रेजी पढ़ने चले गए थे। पारिवारिक कारणों से उन्हें स्कूली शिक्षा से आगे पढ़ने का अवसर नहीं मिला।

इसके पश्चात् लेखक ने अजमेर में पन्द्रह रुपए मासिक पर नौकरी कर ली। बचपन से ही लेखक की रुचि सुशिक्षित लोगों की संगति करने की ओर थी। इसके फलस्वरूप उन्होंने अपने लिए चार आदर्श निश्चित किए-समय की पाबन्दी, रिश्वत न लेना, ईमानदारी से अपना काम करना और ज्ञान वृद्धि के लिए निरंतर प्रयत्न करते रहना।

सतत् अभ्यास से उन्होंने रेल की पटरियाँ बिछाने और उसकी सड़क की निगरानी का कार्य भी सीख लिया। अपने कार्य के कारण उन्हें उन्नति के लिए कभी भी प्रार्थना-पत्र नहीं देना पड़ा। उनकी उन्नति का प्रधान कारण उनकी ज्ञान लिप्सा थी। इससे उनकी मासिक आय उनकी योग्यता से कई गुणा हो गई।

कुछ समय के बाद उनके अधिकारी ने उनके द्वारा औरों पर अत्याचार करना चाहा। अधिकारी के आदेश पर उन्होंने स्वयं तो आठ बजे दफ्तर में आना स्वीकार कर लिया, पर दूसरों को प्रतिदिन प्रातः आठ बजे आने का आदेश देने से इनकार कर दिया। बात बढ़ने पर उन्होंने नौकरी से त्याग-पत्र दे दिया। उनकी पत्नी ने भी लेखक के निर्णय का समर्थन किया और आठ आने रोज तक की आमदनी से घर का खर्च चलाने का भरोसा दिलाया।

महावीर प्रसाद द्विवेदी को ‘सरस्वती’ के सम्पादन कार्य से 20 रुपए मासिक वेतन और तीन रुपए डाक खर्च के लिए मिलते थे। उन्होंने उसी से ही सन्तुष्ट रहने का निश्चय किया।
लेखक के पिता ईस्ट इंडिया कम्पनी की एक पलटन में सिपाही थे। वे मामूली पढ़े-लिखे और बड़े भक्त थे। गदर में उनकी पलटन ने भी विद्रोह कर दिया था। उनके पिता ने पलटन से भागकर सतलुज में छलांग लगा दी थी। वे जैसे-तैसे बच गए थे और मांगते-खाते कई महीने बाद साधु वेश में घर आए थे।

लेखक के दादा संस्कृतज्ञ थे और पलटनों को पुराण सुनाया करते थे। उनकी दादी ने उनके द्वारा इकट्ठी की हुई सैकड़ों हस्तलिखित पुस्तकों को बेचकर उनके पिता और चाचा का पालन-पोषण किया। उनके पितृव्य दुर्गाप्रसाद में नए-नए किस्से बनाकर कहने की अद्भुत शक्ति थी। उनके नाना और मामा भी संस्कृतज्ञ थे।

बचपन से ही लेखक का अनुराग तुलसी, रामायण और ब्रजवासी दास के ब्रजविलास पर हो गया था। भारतेन्दु हरिश्चन्द्र के ‘कवि वचन सुधा’ और गोस्वामी राधाचरण के एक मासिक पत्र से उनका यह अनुराग और भी बढ़ गया था। उनका यह अनुराग बहुत समय तक ज्यों-का-त्यों बना रहा। उन्होंने संस्कृत और अंग्रेजी की पुस्तकों के कुछ अनुवाद भी किए।

एक अध्यापक के अनुरोध पर उन्होंने कोर्स की एक पुस्तक की समालोचना पुस्तकार में प्रकाशित की। इस समालोचना के फलस्वरूप ‘इंडियन प्रेस’ ने ‘सरस्वती’ पत्रिका का सम्पादन कार्य उन्हें देने की इच्छा प्रकट की। इसे उन्होंने स्वीकार कर लिया।

नौकरी छोड़ने पर उनके मित्रों ने उनकी सहायता करने की इच्छा प्रकट की पर उन्होंने किसी की भी सहायता स्वीकार नहीं की। उन्होंने अपने अंगीकृत कार्य में सारी शक्ति लगा देने का निश्चय किया। इस कार्य से उन्हें जो थोड़ा-बहुत अवकाश मिलता था, उसमें वे अनुवाद आदि का काम करते थे।

उनके सम्पादन में ‘सरस्वती’ का जैसे-जैसे प्रचार बढ़ता गया, वैसे-वैसे उनकी आर्थिक स्थिति भी अच्छी होती गई।

उन दिनों ‘सरस्वती’ का काफी सम्मान था। उसमें कुछ छापना बहुत महत्त्वपूर्ण समझा जाता था। लेखक को इस पत्रिका में छपवाने के लिए कई प्रलोभन दिए जाते थे, पर वह इन प्रलोभनों की परवाह किए बिना वही कार्य करते जिसमें वह पाठकों का लाभ समझते। वे पाठकों की रुचि का सदा ध्यान रखते थे और लेखों को संशोधित कर देते थे जिससे उन्हें अधिक-से-अधिक पाठक समझ लें। उन्होंने अपनी विद्वत्ता की झूठी छाप डालने की कभी भी कोशिश नहीं की।

मेरी जीवन रेखा संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

1. मैं यदि किसी के अत्याचार को सह लूँगा तो उससे मेरी सहनशीलता अवश्य सूचित होती है, पर उससे मुझे औरों पर अत्याचार करने का अधिकार नहीं मिल जाता।

शब्दार्थ-सूचित-प्रकट। औरों-दूसरों।

संदर्भ-प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिंदी सामान्य’ में संकलित आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी लिखित निबन्ध ‘मेरी जीवन-रेखा’ से है।

प्रसंग-इस गद्यांश में लेखक ने अपने मन की बात रखते हुए कहा कि

व्याख्या-महावीर प्रसाद द्विवेदी के अंग्रेज़ अफसर ने उन्हें आदेश दिया कि वे कर्मचारियों को सुबह आठ बजे दफ्तर में आने के लिए कहें। महावीर प्रसाद ने अपने अधिकारी के आदेश के अनुसार स्वयं तो आठ बजे प्रातः दफ्तर में आना शुरू कर दिया पर कर्मचारियों को प्रातः आठ बजे आने का आदेश देने से इनकार कर दिया। उनका विचार था कि यदि मैं किसी के अत्याचार को सहन करता हूँ तो इससे यह पता चलता है कि मैं सहनशील हूँ, मुझमें अत्याचार सहन करने की शक्ति है। पर स्वयं अत्याचार सहन करने से हमें दूसरों पर अत्याचार करने का अधिकार प्राप्त नहीं होता। अत्याचार सहन करने का अभिप्राय यह नहीं कि हम दूसरों पर अत्याचार करें।

विशेष-
1. लेखक का स्पष्ट कथन प्रेरक रूप में है।
2. भाषा-शैली अधिक सरल है।

अर्थग्रहण संबंधी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-1.
लेखक की किससे क्या प्रकट होती है?
उत्तर-
लेखक की किसी के अत्याचार को सहने की सहनशीलता प्रकट होती है।

विषय-वस्तु पर आधारित बोध प्रश्नोत्तर

प्रश्न-1.
उपर्युक्त गद्यांश का आशय क्या है?
उत्तर-
उपर्युक्त गद्यांश में लेखक ने सहनशीलता को महत्त्व दिया है। इसे सात्त्विक गुण माना है।

2. मैंने सोचा अव्यवस्थित-चित्त मनुष्य की सफलता में सदा संदेह रहता है। क्यों न मैं अंगीकृत कार्य ही में अपनी सारी शक्ति लगा दूँ। प्रयत्न और परिश्रम की बड़ी महिमा है।

शब्दार्थ-अव्यवस्थित-चित्त-चंचल हृदय। अंगीकृत कार्य–लिया हुआ काम। महिमा-महत्त्व।

संदर्भ-पूर्ववत।

प्रसंग-इसमें लेखक ने प्रयत्न और परिश्रम का महत्त्व दर्शाया है।

व्याख्या-महावीर प्रसाद द्विवेदी ने सरकारी नौकरी छोड़ दी। उसके बाद उन्होंने ‘सरस्वती’ पत्रिका का सम्पादन-कार्य स्वीकार कर लिया। अतः उन्होंने सोचा कि अब मुझे इसे मन लगाकर करना चाहिए। जो व्यक्ति मन लगाकर काम नहीं करता, उसकी सफलता भी निश्चित नहीं होती। उन्हें ‘सरस्वती’ पत्रिका का सम्पादन कार्य दिया गया था। अतएव उन्होंने इस कार्य में सारी शक्ति लगाने का मन बनाया। प्रयत्न और परिश्रम का बहुत महत्त्व होता है। इससे कठिन-से-कठिन कार्य को भी सफलतापूर्वक पूरा किया जा सकता है।

विशेष-
1. यह अंश भाववर्द्धक है।
2. भाषा में प्रवाह है।

अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-1.
अव्यवस्थित चित्त का क्या परिणाम होता है?
उत्तर-
अव्यवस्थित चित्त का परिणाम अच्छा नहीं होता है। उससे असफलता की आशंका बनी रहती है। विषय-वस्तु पर आधारित बोध प्रश्नोत्तर

प्रश्न-6
उपर्युक्त गद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
उत्तर-
उपर्युक्त गद्यांश का मुख्य भाव है-प्रयत्न और परिश्रम के साथ व्यवस्थित चित्त से लक्ष्य-प्राप्ति की ओर बढ़ना चाहिए।

3. संशोधन द्वारा लेखों की भाषा अधिक संख्यक पाठकों की समझ में आने लायक कर देता। यह न देखता कि यह शब्द अरवी का है या फारसी का या तुर्की का। देखता सिर्फ यह कि इस शब्द, वाक्य या लेख का आशय अधिकांश पाठक समझ लेंगे या नहीं। अल्पज्ञ होकर भी किसी पर अपनी विद्वत्ता की झूठी छाप छापने की कोशिश मैंने कभी नहीं की।

शब्दार्थ-संशोधन करना-सुधारना। अधिक-संख्यक-बहुत अधिक संख्या में। लायक-योग्य। अल्पज्ञ-कम जानने वाला। झूठी छाप छापना-झूठा प्रभाव डालना। आशय-अभिप्राय, अर्थ।

संदर्भ-पूर्ववत्।

प्रसंग-इसमें महावीर प्रसाद द्विवेदी ने यह स्पष्ट किया है कि लेखों का संशोधन करते समय वे पाठकों का ध्यान रखते थे।

व्याख्या-लेखक पत्रिका’ में लेखों को प्रकाशित करने से पहले उनका संशोधन करते थे। संशोधन करते समय वे इस बात का ध्यान रखते थे कि भाषा ऐसी हो जो अधिक-से-अधिक पाठकों की समझ में आ जाए। इसके लिए वे ऐसे शब्दों का प्रयोग करते थे जिन्हें अधिक-से-अधिक पाठक समझ जाएँ। इसके लिए वे उर्दू, फारसी और अरबी भाषा के ऐसे शब्दों का प्रयोग करने में भी संकोच नहीं करते थे जिन्हें सामान्य पाठक आसानी से समझ सकता था।

लेखक ने अपने-आपको अल्पज्ञ कहा है। उनका कहना है कि उन्होंने संशोधन करते समय अपनी विद्वत्ता का झूठा प्रभाव डालने का प्रयत्न नहीं किया।

विशेष- आचार्य महावीर प्रसाद की सम्पादन कला का महत्त्वांकन है।
1. भाषा में प्रवाह है।
2. यह अंश ज्ञानवर्द्धक है।

अर्थग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर

प्रश्न-2.
लेखक के संशोधन की क्या विशेषता थी?
उत्तर-
लेखक के संशोधन की यह विशेषता थी कि वह बोधगम्य भाषा का प्रयोग करता था। दूसरी बात यह कि उसका आशय साधारण पाठक के अनुकूल होता था।

विषय-वस्तु पर आधारित बोध प्रश्नोत्तर

प्रश्न-1.
उपर्युक्त गद्यांश का आश्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर-
उपर्युक्त गद्यांश में लेखक सम्पादन कला के श्रेष्ठ स्वरूप को रखने का प्रयास किया है। इसे उसने प्रेरक रूप में प्रस्तुत करने का आकर्षक प्रयास किया है।