MP Board Class 10th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 1 मैं और मेरा देश (निबन्ध, कन्हैयालाल मिश्र ‘प्रभाकर’)
मैं और मेरा देश अभ्यास
बोध प्रश्न
मैं और मेरा देश अति लघु उत्तरीय प्रश्न
Main Aur Mera Desh MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 1.
पंजाब केसरी के नाम से कौन जाना जाता है?
उत्तर:
पंजाब केसरी के नाम से लाला लाजपत राय को जाना जाता है।
मैं और मेरा देश पाठ के प्रश्न उत्तर MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 2.
‘दीवार में दरार पड़ गई’ का आशय किससे है?
उत्तर:
‘दीवार में दरार पड़ गई’ से लेखक का आशय उनके मन में जो पूर्णता का आनन्द भाव था उसमें उनको कमी का अनुभव होने से है।
Main Aur Mera Desh Question Answer MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 3.
जापानी युवक ने स्वामी रामतीर्थ को दिये गये फल के मूल्य के रूप में क्या माँगा?
उत्तर:
जापानी युवक ने स्वामी रामतीर्थ को दिये गये फल के मूल्य के रूप में यह माँगा कि यदि आप मूल्य देना ही चाहते हैं तो वह यह है कि आप अपने देश में जाकर किसी से यह न कहियेगा कि जापान में अच्छे फल नहीं मिलते।
मैं और मेरा देश के प्रश्न उत्तर MP Board Class 10th Hindi प्रश्न 4.
बूढ़े किसान ने राष्ट्रपति को कौन-सा उपहार दिया?
उत्तर:
बूढ़े किसान ने राष्ट्रपति कमाल पाशा को मिट्टी की छोटी हंडिया में अपने हाथ से तोड़ा गया पाव भर शहद दिया था।
मैं और मेरा देश लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
तेजस्वी पुरुष लाला लाजपत राय की दो विशेषताएँ कौन-सी थीं?
उत्तर:
तेजस्वी पुरुष लाला लाजपत राय की दो विशेषताएँ थीं-एक तो वे अपनी लेखनी द्वारा देश के लोगों में ओज का संचार करते थे, दूसरे वे जन सभाओं में अपनी तेजस्वी वाणी द्वारा लोगों में उत्साह का संचार किया करते थे।
प्रश्न 2.
देहाती बूढ़ा कमाल पाशा के पास क्यों गया था?
उत्तर:
देहाती बूढ़ा राष्ट्रपति कमाल पाशा के जन्मदिन पर उन्हें उपहार देने गया था। उपहार में वह एक हंडिया में पाव भर शहद लेकर आया था। कमाल पाशा ने उस उपहार को सराहते हुए कहा, “दादा आज सर्वोत्तम उपहार तुमने ही भेंट किया क्योंकि इसमें तुम्हारे हृदय का शुद्ध प्यार है।”
प्रश्न 3.
स्वामी रामतीर्थ जापानी युवक का उत्तर सुनकर मुग्ध हो गए, क्यों?
उत्तर:
स्वामी रामतीर्थ जापानी युवक का उत्तर सुनकर इसलिए मुग्ध हो गए क्योंकि उस युवक ने अपने कार्य से अपने देश के गौरव को बहुत ऊँचा उठा दिया था।
प्रश्न 4.
लेखक के अनुसार हमारे देश को किन दो बातों की सर्वाधिक आवश्यकता है?
उत्तर:
लेखक के अनुसार हमारे देश को दो बातों की सर्वाधिक आवश्यकता है-एक शक्ति बोध की और दूसरी सौन्दर्य बोध की। हम यह समझ लें कि हमारा कोई भी काम ऐसा न हो जो देश में कमजोरी की भावना को बल दे या कुरुचि की भावना को। हम कभी भी अपने देश के अभावों एवं कमजोरियों की सार्वजनिक स्थलों पर चर्चा न करें और न तो गन्दगी फैलायें और न गन्दे विचार व्यक्त करें।
प्रश्न 5.
देश के सामूहिक मानसिक बल का ह्रास कैसे हो रहा है?
उत्तर:
यदि आप चलती रेलों में, मुसाफिर खानों में, चौपालों पर और मोटर-बसों में बैठकर देश की कमियों और बुराइयों की चर्चा करना अपना धर्म समझते हैं और यदि दूसरे देशों की तुलना में अपने देश को नीचा या छोटा मानते हैं, तो आप देश के सामूहिक मानसिक बल का ह्रास कर रहे हैं।
मैं और मेरा देश दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘जय’ बोलने वालों का महत्त्व प्रतिपादित कीजिए।
उत्तर:
‘जय’ बोलने वालों का बहुत महत्त्व है। किसी भी मैच में जब कोई वर्ग खिलाड़ियों के अच्छे प्रदर्शन पर तालियाँ बजाता है या उनका जय-जयकार करता है तो खिलाड़ियों में आत्म संचार एवं उत्साह कई गुना बढ़ जाता है। गिरता हुआ खिलाड़ी अच्छा प्रदर्शन कर जाता है। कवि-सम्मेलनों और मुशायरों में तो तालियाँ बजाने या जयकारा बोलने से कवियों एवं शायरों में दो गुना जोश आ जाता है और वे मंचों पर छा जाते हैं।
प्रश्न 2.
जापान में शिक्षा लेने आये विद्यार्थी की कौन-सी गलती से उसके देश के माथे पर कलंक का टीका लग गया?
उत्तर:
जापान में किसी अन्य देश से शिक्षा लेने आये विद्यार्थी ने सरकारी पुस्तकालय से उधार ली गयी पुस्तक में से कुछ दुर्लभ चित्रों को फाड़ लिया था। उसकी इस हरकत को एक अन्य जापानी लड़के ने देख लिया था। अतः उसने चोर लड़के की शिकायत कर दी। पुलिस ने उसे पकड़ लिया और उसके कब्जे से चोरी किये गये चित्र बरामद कर लिये। फिर उस लड़के को देश से निकाल दिया गया तथा पुस्तकालय के बाहर बोर्ड पर लिख दिया गया कि उस देश का (जिसका वह चोर विद्यार्थी था) कोई निवासी इस पुस्तकालय में प्रवेश नहीं कर सकता। इस प्रकार इस विद्यार्थी ने अपने नीच कार्य से अपने देश के माथे पर कलंक का टीका लगा दिया था।
प्रश्न 3.
देश के शक्तिबोध को चोट कैसे पहुँचती है?
उत्तर:
यदि आप बात-बात में सार्वजनिक स्थानों पर, चलती रेलों में, क्लबों में, मुसाफिरखानों, चौपालों पर या मोटर बसों में बैठकर अपने देश की कमियों को उजागर करते रहते हैं या देश की निन्दा करते रहते हैं या फिर दूसरे देशों से तुलना करते हुए अपने देश को हेय या तुच्छ बताते रहते हैं, तो निश्चय ही आप अपने इन कार्यों से देश के शक्तिबोध को चोट पहुंचा रहे हैं।
प्रश्न 4.
‘देश के सौन्दर्य बोध को आघात लगता है तो – संस्कृति को गहरी चोट लगती है’-इस कथन की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
यदि समाज में सामान्य शिष्टाचार नहीं है, आप में। खान-पान और उठने-बैठने में शिष्टता नहीं है, फूहड़पन है। यदि आप केला खाकर छिलका रास्ते में फेंक देते हैं, घर का कूड़ा निर्धारित स्थान पर न फेंककर इधर-उधर फेंक देते हैं, दफ्तर, घर, गली, होटल, धर्मशालाओं में रहते हुए आप अपनी पीक या थूक इधर-उधर कर देते हैं या फिर अपने मुँह से गन्दी गालियाँ निकालते हैं, तो निश्चय ही आपके द्वारा किये गये इन कार्यों से देश के सौन्दर्य बोध को आघात लगता है तथा इससे देश की संस्कृति को गहरी चोट लगती है।
प्रश्न 5.
देश के लाभ और सम्मान के लिए नागरिकों के कर्तव्यों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
देश के लाभ और सम्मान के लिए नागरिकों को कभी भी ऐसा काम नहीं करना चाहिए जिससे देश की प्रतिष्ठा पर आँच आये। हमें अपने आपको सभ्य एवं संस्कारवान बनाना चाहिए। हमेशा दूसरों का आदर करें, सत्य बोलें एवं देश से प्रेम करें। हम भूलकर भी ऐसा कोई काम न करें जिससे देश की बदनामी हो। अपने उठने-बैठने एवं बात करने में हमें शिष्टता का पालन करना चाहिए। घर, दफ्तर, धर्मशाला, होटल आदि स्थान पर गन्दगी नहीं फैलानी चाहिए। जरूरत मन्दों एवं गरीबों की सदैव सहायता करनी चाहिए।
मैं और मेरा देश भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित सामासिक पदों का विग्रह करके समास का नाम बताइए-
उत्तर:
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों का संधि-विच्छेद कीजिए-
उत्तर:
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद करते हुए सन्धि का नाम लिखिए-
उत्तर:
मैं और मेरा देश महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
मैं और मेरा देश बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
एक भूकम्प आया था जिससे दीवार में दरार पड़ गयी। वह भूकम्प कहाँ आया था?
(क) प्रान्त में
(ख) विदेश में
(ग) प्रदेश में
(घ) मन-मानस में।
उत्तर:
(घ) मन-मानस में।
प्रश्न 2.
तेजस्वी पुरुष कौन थे जिन्हें ‘पंजाब केसरी’ कहा जाता है?
(क) लाला लाजपत राय
(ख) वल्लभभाई पटेल
(ग) चन्द्रशेखर आजाद
(घ) सुभाषचन्द्र बोस।
उत्तर:
(क) लाला लाजपत राय
प्रश्न 3.
हमारे देश के कौन-से सन्त जापान गये?
(क) दयानन्द
(ख) रामानन्द
(ग) विवेकानन्द
(घ) स्वामी रामतीर्थ।
उत्तर:
(घ) स्वामी रामतीर्थ।
प्रश्न 4.
बूढ़े किसान ने राष्ट्रपति को उपहार में भेंट किया (2015)
(क) फल
(ख) मिठाई
(ग) रुपया
(घ) शहद।
उत्तर:
(घ) शहद।
प्रश्न 5.
शल्य कौन था?
(क) अर्जुन का सारथी
(ख) कर्ण का सारथी
(ग) कृष्ण का सारथी
(घ) कोचवान।
उत्तर:
(ख) कर्ण का सारथी
रिक्त स्थानों की पूर्ति
- स्वामी रामतीर्थ ………… गये थे। (2009)
- जीवन एक युद्ध स्थल है और युद्ध में ………… ही तो काम नहीं होता।
- एक दिन वह सरकारी पुस्तकालय से एक पुस्तक पढ़ने को लाया जिसमें कुछ ………… चित्र थे।
- राजधानी में अपनी …………. का उत्सव समाप्त कर वे अपने भवन में ऊपर चले गये।
- क्या आप कभी केला खाकर ………… रास्ते में फेकते हैं?
उत्तर:
- जापान
- लड़ना
- दुर्लभ
- वर्षगाँठ
- छिलका।
सत्य/असत्य
- स्वामी रामतीर्थ एक बार जापान गए थे। (2016, 17)
- कमालपाशा उन दिनों मलेशिया के राष्ट्रपति थे।
- क्या कभी अकेला चना भाड़ फोड़ सकता है,मुहावरा है।।
- लाला लाजपत राय की कलम और वाणी दोनों तेजस्विता की अद्भुत किरणें थीं।
उत्तर:
- सत्य
- असत्य
- असत्य
- सत्य।
सही जोड़ी मिलाइए
उत्तर:
1. → (ङ)
2. → (घ)
3. → (ग)
4. → (ख)
5. → (क)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
- श्री कन्हैया लाल मिश्र जी ने किन पत्रों का सम्पादन किया?
- हमारे देश को कौन-सी दो बातों की सबसे अधिक जरूरत है?
- हमारे देश के कौन-से सन्त जापान गये?
- यह निबन्ध किस शैली में रचा गया है?
उत्तर:
- ज्ञानोदय, नया जीवन और विकास
- एक शक्तिबोध दूसरा सौन्दर्यबोध
- स्वामी रामतीर्थ
- दृष्टान्त शैली।
मैं और मेरा देश पाठ सारांश
प्रस्तुत निबन्ध में निबन्धकार ने व्यक्ति के जीवन-विकास में घर,नगर, समाज की भूमिका का उल्लेख करते हुए देश के प्रति उसके कर्त्तव्यबोध को जाग्रत करने की चेष्टा की है। निबन्धकार के अनुसार यदि हम अपना सम्मान चाहते हैं, तो हमें अपने साथ-साथ अपने देश का सम्मान भी करना चाहिए और अपने देश का गौरव बढ़ाने के लिए ऐसे कार्य करने चाहिए जिससे अन्य देशों में भी हमारे देश का नाम ऊँचा हो तथा सभी देश हमारा और हमारे देश का सम्मान करें।
व्यक्ति और देश के सम्बन्धों की व्याख्या करते हुए निबन्धकार ने देश के गौरव और प्रतिष्ठा के लिए प्रत्येक व्यक्ति की देशनिष्ठा को रेखांकित किया है। हमें भी उन महापुरुषों की तरह कार्य करने चाहिए जिनके प्रयास से हमारा देश स्वतन्त्र हुआ, हमारे देश का गौरव बढ़ा। ऐसा ही एक उदाहरण स्वर्गीय पंजाब केसरी लाला लाजपत राय का निबन्धकार ने दिया है, जिन्होंने अपनी कलम और वाणी से हमारे देश को एक अलग पहचान दी। लाला जी के अनुसार भारतवर्ष की गुलामी उनके लिए एक कलंक थी जिसे उन्होंने अपनी कलम से भारतवासियों के समक्ष रखा था, क्योंकि यह गुलामी उनके लिए एक मानसिक भूकम्प के समान थी।
दर्शनशास्त्रियों के अनुसार जीवन बहुमुखी है। यदि हम कुछ नहीं कर सकते तो हमें उनका उत्साहवर्धन करना चाहिए जो अपने देश,समाज,नगर के लिए कुछ कार्य करना चाहते हैं। हमारे राष्ट्र के महान् सन्त स्वामी रामतीर्थ एक बार जापान जा रहे थे। वह भोजन के रूप में फल ही ग्रहण करते थे। गाड़ी स्टेशन पर रुकी। किसी ने बताया कि यहाँ अच्छे फल प्राप्त नहीं होते। एक जापानी युवक प्लेटफार्म पर खड़ा था, उसने स्वामी जी को फल दिये, साथ ही उसने स्वामी जी से प्रार्थना की कि इस घटना को किसी को न बतायें, यह उस युवक की देशभक्ति का उदाहरण है।
पुस्तकालय में चोरी करते हुए विदेशी नागरिक को बाहर निकाल दिया गया, यह देश के प्रति उसकी अपूर्ण निष्ठा है। तुर्की के राष्ट्रपति कमाल पाशा ने विश्राम त्यागकर तीन कोस से पैदल आये हुए वृद्ध से भेंट की। रेल का सफर भी हमारे देश में अन्य देशों की अपेक्षा अधिक कष्टप्रद है। अन्त में लेखक का कथन है कि चुनाव के समय योग्य व्यक्ति को मत देना ही अधिक श्रेयस्कर है। इसी से देश और समाज की उन्नति में चार चाँद लगेंगे।
मैं और मेरा देश संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
(1) अपने महान् राष्ट्र की पराधीनता के दीन दिनों में जिन लोगों ने अपने रक्त से गौरव के दीपक जलाये और जो घोर अन्धकार और भयंकर बवण्डरों के झकझोरों में जीवन भर खेले, उन दीपकों को बुझने से बचाते रहे, उन्हीं में एक थे वे लालाजी। उनकी कलम और वाणी दोनों में तेजस्विता की अद्भुत किरणें थीं।
कठिन शब्दार्थ :
पराधीनता = गुलामी। दीन दिनों = बुरे दिनों में। गौरव के दीपक = देश की प्रतिष्ठा को जीवित रखा। तेजस्विता = तेज, प्रताप की आभा।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश ‘मैं और मेरा देश’ शीर्षक निबन्ध से लिया गया है। इसके लेखक श्री कन्हैया लाल मिश्र। ‘प्रभाकर’ हैं।
प्रसंग :
इस गद्यांश में लेखक ने लाला लाजपत राय की देश भक्ति एवं तेजस्विता का वर्णन किया है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि अपने महान् देश की गुलामी के उन दुर्दिनों में जब देश को कदम-कदम पर अपमान का घूट पीना पड़ता था, लाला लाजपत राय ने अपने रक्त से गौरव के दीपक को जलाये रखा। उन पर अनेक भयंकर बवण्डर एवं झोंके आये पर वे अपने लक्ष्य से बिल्कुल भी हटे नहीं। उनकी कलम में तेजस्विता थी जिसको वे अपने लेखों में लिखकर विदेशी सत्ता के विरुद्ध आग उगला करते थे और समय-समय पर जनता जनार्दन को अपनी तेजस्वी एवं ओजस्वी वाणी से प्रोत्साहन देते रहते थे।
विशेष :
- लालाजी की अनुपम देशभक्ति पर प्रकाश डाला गया है।
- भाषा सहज एवं सरल है।
(2) हाँ जी, युद्ध में जय बोलने वालों का भी बहुत महत्व है। कभी मैच देखने का अवसर मिला ही होगा, आपको। देखा नहीं आपने कि दर्शकों की तालियों से खिलाड़ियों के पैरों में बिजली लग जाती है और गिरते खिलाड़ी उभर जाते हैं। कविसम्मेलनों और मुशायरों की सफलता दाद देने वालों पर निर्भर करती है। इसलिए मैं अपने देश का कितना भी साधारण नागरिक क्यों न हूँ, अपने देश के सम्मान की रक्षा के लिए कुछ भी कर सकता हूँ।
कठिन शब्दार्थ :
पैरों में बिजली= चुस्ती-फुर्ती, उत्तेजना। दाद = तारीफ।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इस गद्यांश में लेखक जय बोलने के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कह रहा है।
व्याख्या :
लेखक प्रभाकर जी कहते हैं कि हाँ जी, युद्ध में जय बोलने वालों का बड़ा महत्त्व होता है। लेखक पाठकों से प्रश्न करता है कि आपको जीवन में कभी किसी मैच को देखने का मौका मिला होगा। उस समय दर्शक गण जब तालियाँ बजाते हैं तो खिलाड़ियों का उत्साह बढ़ जाता है, उनके पैरों में बिजली जैसी गति आ जाती है। इतना ही नहीं जो खिलाड़ी निराशा में डूब जाते हैं, उनमें भी इस जय-जयकार से जोश आ जाता है और उनकी पराजय जय में बदल जाती है। यही बात कवि-सम्मेलनों एवं मुशायरों पर भी लागू होती है। यदि श्रोताओं की ओर से सुनाने वालों को बार-बार दाद मिलने लगेगी, तो सुनाने वालों .का उत्साह कई गुना बढ़ जायेगा। अतः यह हमारा पवित्र कर्तव्य है कि हम अपने देश के सम्मान की रक्षा हर प्रकार से करें। चाहे हम साधारण नागरिक हों या महत्त्वपूर्ण। देश सम्मान हमारा लक्ष्य होना चाहिए।
विशेष :
- लेखक ने जय के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
- भाषा सहज एवं सरल है।
(3) जहाँ एक युवक ने अपने काम से अपने देश का सिर ऊंचा किया था, वहीं एक युवक ने अपने देश के मस्तक पर कलंक का ऐसा टीका लगाया, जो जाने कितने वर्षों तक संसार की आँखों में उसे लांछित करता रहा।
कठिन शब्दार्थ :
सिर ऊँचा किया = देश का सम्मान बढ़ाया। मस्तक पर कलंक का टीकादेश को नीचा दिखाया।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
लेखक का मत है कि हम अच्छे कामों से देश का सम्मान बढ़ा सकते हैं और बुरे कार्यों से देश को नीचा गिरा सकते हैं।
व्याख्या :
लेखक प्रभाकर जी ने देश के दो युवकों के उदाहरण देकर यह बताना चाहा है कि अच्छे कार्यों से देश का सम्मान बढ़ता है। इसके लिए उन्होंने जापान के उस युवक का उदाहरण दिया है जिसने स्वामी रामतीर्थ की इस टिप्पणी पर कि ‘जापान में शायद अच्छे फल नहीं मिलते’ उस जापानी युवक ने अपने देश की बेइज्जती होते देख दौड़कर ताजे और अच्छे फल लाकर स्वामी जी को दे दिए। जब स्वामी जी ने उस बालक को फलों का मूल्य देना चाहा तो उसने मूल्य लेने से मना कर दिया और कहा कि यदि आप इसका मूल्य देना ही चाहते हैं तो वह यह है कि अपने देश में जाकर किसी से यह मत कहना कि जापान में अच्छे फल नहीं मिलते।
लेखक ने दूसरा उदाहरण उस युवक का दिया जो अपने देश से जापान में शिक्षा लेने आया था। उस बालक ने सरकारी पुस्तकालय से उधार ली हुई एक पुस्तक में से कुछ दुर्लभ चित्र चुरा लिए। उसकी इस हरकत को एक जापानी विद्यार्थी ने देख लिया था। फलतः उसने इसकी सूचना पुस्तकालय को दे दी। पुलिस ने तलाशी लेकर उस विद्यार्थी से वे चित्र बरामद कर लिए फिर उस विद्यार्थी को जापान से निकाल दिया गया। इस दूसरे युवक ने अपने बुरे काम से अपने देश के माथे पर कलंक का टीका लगाया। अतः लेखक का मानना है कि अच्छे काम करने वालों की सदा प्रशंसा होती है और बुरे काम करने वालों की निन्दा।
विशेष :
- लेखक ने अच्छे गुण अपनाने का युवकों को सन्देश दिया है।
- भाषा सहज एवं सरल है।
(4) जैसा मैं अपने लाभ और सम्मान के लिए हरेक छोटी-छोटी बात पर ध्यान देता हूँ, वैसा ही मैं अपने देश के लाभ और सम्मान के लिए भी छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दै। यह मेरा कर्तव्य है और जैसे मैं अपने सम्मान और साधनों से अपने जीवन में सहारा पाता हूँ, वैसे ही देश के सम्मान और साधनों से भी सहारा पाऊँ-यह मेरा अधिकार है। बात यह है कि मैं और मेरा देश दो अलग चीज तो हैं ही नहीं।
कठिन शब्दार्थ :
सम्मान = आदर, इज्जत।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि व्यक्ति विशेष को जैसा मान-सम्मान पाने की इच्छा होती है, वैसा ही देश के लिए भी किया जाना चाहिए।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि जिस तरह मैं अपने व्यक्तिगत लाभ एवं आदर के लिए छोटी से छोटी बात पर भी ध्यान देता हूँ, उसी तरह मुझे अपने देश का भी ध्यान रखना चाहिए। मेरा यह कर्त्तव्य है। जिस प्रकार मैं अपने सम्मान और साधनों से अपने जीवन में सहारा पाता हूँ, वैसे ही देश के सम्मान और साधनों से भी सहारा पाऊँ-यह मेरा अधिकार है। लेखक यह बताना चाहता है कि मैं और मेरा देश दोनों एक ही हैं, इनमें कहीं भेद नहीं होना चाहिए।
विशेष :
- लेखक अपने को देश से अलग नहीं मानता है।
- भाषा सहज एवं सरल है।
(5) मैंने जो कुछ जीवन में अध्ययन और अनुभव सीखा है, वह यही है कि महत्त्व किसी कार्य की विशालता में नहीं है, उस कार्य के करने की भावना में है। बड़े से बड़ा कार्य हीन है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना नहीं है और छोटे से छोटा कार्य भी महान है, यदि उसके पीछे अच्छी भावना है।
कठिन शब्दार्थ :
विशालता= व्यापकता, बड़ा होना। हीन = छोटा, तुच्छ।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
लेखक कहता है कि भावना से ही कोई कार्य अच्छा या बुरा, बड़ा या छोटा होता है।
व्याख्या :
लेखक प्रभाकर जी कहते हैं कि मैंने अपने सम्पूर्ण जीवन में जो कुछ भी अध्ययन और अनुभव किया है, उससे मैं इस निष्कर्ष पर पहुँचा हूँ कि जीवन में महत्त्व कार्य के छोटे-बड़े से नहीं होता है, उसका महत्त्व तो काम करने की भावना से होता है। बड़े से बड़ा कार्य भी तुच्छ श्रेणी का बन जायेगा, यदि उसके पीछे कर्ता की भावना पवित्र एवं महान नहीं है।
विशेष :
- लेखक भावना को महान् मानता है, कार्य को नहीं।
- भाषा सहज एवं सरल है।
(6) आपके द्वारा देश के सौन्दर्य बोध को भंयकर आघात पहुँच रहा है और आपके द्वारा देश की संस्कृति को गहरी चोट पहुंच रही है।
कठिन शब्दार्थ :
आघात = चोट।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इस अंश में लेखक यह बताना चाहता है कि यदि आपका जीवन साफ-सफाई से दूर रहने वाला एवं गन्दगी प्रिय है तो इससे आप देश के सौन्दर्य बोध एवं संस्कृति को बहुत नुकसान पहुंचा रहे हैं।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि यदि आप अपने घर की गन्दगी सड़क पर फेंकते हैं और उसे उसके स्थान पर नहीं फेंकते हैं या अपने मुँह से अपशब्द निकालते हैं, या अपने आस-पास की जगह को थूक या पीक से गन्दा किये रहते हैं तो निश्चय ही इस प्रकार के व्यवहार से आप देश के सौन्दर्य बोध को चोट पहुँचा रहे हैं और आपके इन कारनामों से देश की संस्कृति को बहुत हानि पहुँच रही है।
विशेष :
- लेखक ने व्यावहारिक जीवन में सफाई एवं स्वच्छता रखने का उपदेश दिया है।
- भाषा सहज एवं सरल है।