MP Board Class 8th Special Hindi Model Question Paper

MP Board Class 8th Special Hindi Model Question Paper

समय : 3 घण्टा
पूर्णांक : 100

1. सही विकल्प चयन कर लिखिए-
(अ) महेश्वर नगरी नदी के तट पर है
(क) नर्मदा,
(ख) चम्बल,
(ग) सोन,
(घ) बेतवा।
उत्तर-
(क) नर्मदा,

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(आ) सिकन्दर की छाती दहलती थी
(क) हिन्दुस्तान की तलवार से,
(ख) बिजली के गरजने से,
(ग) अपनी प्रजा से,
(घ) गीत-संगीत से।
उत्तर-
(क) हिन्दुस्तान की तलवार से,

(इ) ‘खेड़ा सत्याग्रह’ नाम पड़ा
(क) अंग्रेजों के विरुद्ध बखेड़ा करने से,
(ख) खेड़ा के किसानों के लगान के कारण,
(ग) अंग्रेजों को खड़ा करने के कारण,
(घ) अन्याय के विरोध में।
उत्तर-
(ख) खेड़ा के किसानों के लगान के कारण,

(ई) मन, वचन और काया से इन्द्रियों को अपने वेश में रखना कहलाता है
(क) अहिंसा,
(ख) अस्तेय,
(ग) ब्रह्मचर्य,
(घ) अपरिग्रह।
उत्तर-
(ग) ब्रह्मचर्य,

(उ) ‘सत्याग्रह’ शब्द का सन्धि विच्छेद है
(क) सत्य + ग्रह,
(ख) सत्य + आग्रह,
(ग) सत्या + ग्रह,
(घ) सत्याग + रह।
उत्तर-
(ख) सत्य + आग्रह।

2. रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
(अ) अधिक फूल खिलने के कारण पटना का नाम ……………………………………… भी था।
(आ)मुण्डा जनजाति में ‘सिंग’ का अर्थ है ………………………………………।
(इ) एक समय में सौ प्रकार की बातें सुनकर दोहराने वाले व्यक्ति ………………………………………” कहलाते हैं।
(ई) शान्ति निकेतन की स्थापना ……………………………………… ने की थी।
(उ) गुप्तवंश भारतीय इतिहास में ……………………………………… के नाम से। विख्यात है।
(ऊ) धनुरासन में शरीर की आकृति ……………………………………… के समान हो। जाती है।
(ए) ईश्वर में विश्वास करने वाला ………………………………………” कहलाता है।
उत्तर-
(अ) कुसुमपुर,
(आ) सूर्य,
(इ) शतावधानी,
(ई) रवीन्द्रनाथ टैगोर,
(उ) स्वर्णयुग,
(ऊ) धनुष,
(ए) आस्तिक।

3. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर दीजिए(अ) ‘गाँव’ में रहने वाले व्यक्ति के लिए एक शब्द लिखिए।
उत्तर-
ग्रामीण।

(आ) ‘विचार’ और ‘हस्तक्षेप’ शब्द के लिए आगत (विदेशी शब्द) लिखिए।
उत्तर-
विचार-ख्याल, हस्तक्षेप-दखल।

(इ) नारी तथा पुरुष शब्द में ‘त्व’ प्रत्यय जोड़कर नए शब्द लिखिए।
उत्तर-
नारी + त्व = नारीत्व; पुरुष + त्व = पुरुषत्व।

(ई) ‘नारी’ और ‘जल’ शब्दों में उचित विशेषण जोड़कर लिखिए।
उत्तर-
सुन्दर नारी; स्वच्छ जल।

(उ) उत्प्रेक्षा अलंकार का उदाहरण लिखिए।
उत्तर-
“सोहत ओढ़े पीतपट स्याम सलोने गात।
मनहु नीलमणि सैल पर, आतप परयौ प्रभात।।”

(ऊ) निम्नलिखित शब्दों के लिंग परिवर्तन कर लिखिएपण्डित, आत्मज, तरुणी, पत्नी।
उत्तर-
पण्डित-पण्डितानी; आत्मज-आत्मजा;
तरुणी-तरुण; पत्नी-पति।।

(ए) जुगुप्सा किस रस का स्थायी भाव है?
उत्तर-
जुगुप्सा वीभत्स रस का स्थायी भाव है।

(ऐ) मोहन जायेगा? इस सम्बन्ध में से यदि वाक्य प्रश्नवाचक बन जाए तो इस आरोह-अवरोह को क्या कहेंगे?
(i) बलाघात,
(ii) अनुतान,
(iii) मात्रा सन्तुलन।
उत्तर-
(i) अनुतान।

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4. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर 3 से 5 वाक्यों में दीजिए-

(अ) जब बहू ने दर्पण देखा तो वह व्याकुल हो गई?
उसके अनुभव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
जब बीरबल की पत्नी (बहू) कामकाज से निवृत्त हो गई तो उसने सोचा कि वह अब देखेगी कि उसका पति अपने लिए शहर से क्या वस्तु लाया है। उस बहू ने सन्दूक खोला, तो दर्पण देखा। उसमें झाँकते ही, उसे अपनी आकृति दिखाई दी। आकृति देखकर उसे लगा कि उसका पति अपने लिए एक दूसरी सुन्दर-सी पत्नी लेकर आया है, जो उसी की तरह सजी-धजी है और एक जादू से छिपाकर रख ली है। वे मुझे बहुत प्यार करने का नाटक करते हैं परन्तु वे शहर से मेरी सौत लेकर आए हैं। उसने अपनी सास को जोर से आवाज देते हुए पुकारा और कहा कि हे अम्मा! देखो-ये (बीरबल उसका पति) उसकी
सौतन शहर से ले आये हैं।

(आ) बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी में सालिम को कैसे अनुभव हुए?
उत्तर-
‘बॉम्बे नैचुरल हिस्ट्री सोसाइटी’ में सालिम अली ने पक्षियों के शरीरों में भूसा भरकर रखे गये तरह-तरह के पक्षियों को देखा। वह अचम्भे में रह गया। श्री मिलार्ड ने किसी भी भारतीय वयस्क को इतने उत्साह से भरा नहीं देखा जो पक्षियों के बारे में जानना चाहता हो। उसने सीखना शुरू कर दिया कि पक्षियों को किस तरह पहचाना जाता है। साथ ही उसने यह भी सीख लिया कि मरे हुए पक्षी के शरीर में भूसा भरकर किस तरह सुरक्षित रखा जा सकता है।

(इ) संगीत का सामाजिक महत्त्व कब और क्यों बढ़ जाता है?
उत्तर –
संगीत का वास्तविक महत्त्व तब होता है, जब संगीत की शास्त्रीयता साधना को महत्त्व देती है। संगीत की मिठास आत्मिक शान्ति देती है एवं जीवन को जीने की उमंग पैदा करती है। संगीत से सने गीतों को सुनकर आदमी अपने आप में थिरक उठता है। उसके हृदय में करुणा का भाव जाग उठता है और करुणा का भाव आँसुओं के रूप में बह निकलता है। इससे साधारण लोग प्रभावित हो उठते हैं। यही कारण है कि संगीत को सम्पूर्ण समाज महत्त्व देता है।

(ई) कारकों के चिह्न (परसर्ग) कौन-कौन से हैं?
उत्तर-
अध्याय 4 व्याकरण में शीर्षक 14 ‘कारक’ का अवलोकन करें।

(उ) “मोहन पढ़ने में चतुर है और मोहन गाना गाता है” को जोड़कर संयुक्त वाक्य बनाइए।
उत्तर-
मोहन गाना गाता है लेकिन (वह) पढ़ने में भी चतुर है।

(ऊ) ‘वसीयतनामे का रहस्य’ अथवा ‘याचक और दाता’ नामक कहानी में से किसी एक का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर-
“वसीयतनामे का रहस्य”
इस कहानी में गाँव के एक वयोवृद्ध किसान की न्यायप्रियता, दूरदर्शिता, ईमानदारी, निष्पक्षता और बुद्धिचातुर्य से परिचित कराया गया है। लोग शिक्षित होकर भी बुद्धिमान नहीं होते। उस ग्रामीण ने अपनी जायदाद को तीन पुत्रों में बाँट दिए जाने के लिए वसीयत लिखी। वस्तुतः वह चाहता था कि परिश्रमी और ईमानदार पुत्र ही उसकी वसीयतनामे के हकदार हों। राजा ने भी बड़ी चतुराई से उस समस्या का समाधान खोज निकाला। चार पुत्र होने पर जायदाद का विभाजन तीन में ही हो; इस पहेली को राजा ने प्रत्येक पुत्र से किए प्रश्नों के उत्तर के माध्यम से सुलझा दिया। तात्पर्य यह है कि बड़ी से बड़ी समस्याओं का समाधान बुद्धि के कौशल से सम्भव है।’

अथवा

वृद्धा ने सेठजी के घर जाकर मोहन के माथे पर हाथ फेरा। मोहन ने हाथ को पहचान लिया; उसने अपनी आँखें तुरन्त खोल दी। कहने लगा, ‘माँ’, तुम आ गईं। वृद्धा कहने लगी, “हाँ बेटा, तुम्हें छोड़कर कहाँ जा सकती हूँ। उसने मोहन का सिर गोद में रखा, थपथपाया। मोहन की नींद आ गई। कुछ दिन बाद मोहन स्वस्थ हो गया। जो काम दवाइयाँ, डॉक्टर और हकीम नहीं कर सके, वह काम वृद्धा माँ की ममता ने कर दिखाया।”

1. अब वह वृद्धा माँ वापस लौटने लगी तो सेठजी ने उससे कहा कि वे मोहन के ही पास रुक जाएँ, लेकिन वे नहीं मानी। सेठजी हाँडी के रुपये न देने के लिए क्षमा माँगने लगे और वह हाँडी लौटाने लगे तो वृद्धा ने कहा कि यह तो मैंने मोहन के लिए जमा किये थे। उसी को दे देना।

वृद्धा ने सेठजी की धरोहर (मोहन) ईमानदारी से लौटा दी। अब वह उसे यहाँ छोड़कर अपनी लाठी का सहारा लेकर चलती हुई अपनी झोपड़ी में लौट गई। उसके नेत्रों से आँसू बह रहे थे, परन्तु यह आँसू फूलों के पराग से, ममता की महक से महक रहे थे। वृद्धा माँ का ममत्व सेठ बनारसीदास के धन से अधिक गरिमावान सिद्ध हुआ। इस तरह सेठजी याचक थे और वृद्धा माँ दाता के रूप में महान और उदारता की साक्षात् मूर्ति सिद्ध हुई।

(ए) पाषाण युग का मानव किस प्रकार का जीवन जीता था?
उत्तर-
पाषाण युग का मानव जंगलों, पर्वतों और नदी घाटियों में विचरण करता था। कन्दमूल, फल और पशुओं का शिकार कर अपना पेट भरता था तथा पहाड़ों की गुफाओं में रहता था।

(ए) प्राणायाम के लाभ बताइए।
उत्तर-
प्राणायाम के लाभ-

  • प्राणायाम से शरीर के सभी विकार दूर होते हैं।
  • इसमें प्राणशक्ति में वृद्धि होती है।
  • गले से सम्बन्धित रोग दूर होते हैं। स्वर मधुर बनता
  • थायरॉइड सम्बन्धी बीमारियाँ ठीक होती हैं।
  • आन्तरिक एवं मानसिक शान्ति मिलती है।
  • स्मृति बढ़ाने में सहायक है।
  • शरीर सुन्दर, सुडौल, शक्तिशाली एवं तेजस्वी बनता है।
  • शरीर में स्फूर्ति रहती है।
  • पाचन शक्ति में वृद्धि होती है।

(ओ) सत्याग्रह-आश्रमवासियों को किन नियमों का पालन करना पड़ता था?
उत्तर-
आश्रमवासियों को सादे वस्त्र और सादे भोजन से सन्तोष करना पड़ता था। भोजन के पदार्थों में मिर्च-मसाले नहीं डाले जाते थे, दूध बहुत कम दिया जाता, परन्तु फल और मेवे अधिक दिये जाते थे। आश्रमवासियों को छुट्टियाँ नहीं दी जाती थीं। उन्हें अपने हाथ से ही सारा काम करना पड़ता था। उनसे किसी प्रकार की आर्थिक सहायता नहीं ली जाती थी। जो अतिथि आते थे, उन्हें भी आश्रम के नियमों का पालन करना होता था।

(औ) निम्नलिखित अपठित गद्यांश को पढ़कर नीचे लिखे प्रश्नों के उत्तर दीजिए”मेरे स्वराज्य का ध्येय अपनी सभ्यता की विशेषता को अक्षुण्य बनाए रखना है। मैं बहुत-सी नई बातों को लेना चाहता हूँ, पर उन सबको भारतीयता का जामा पहनाना होगा। भारत ने पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली है। ऐसा तभी कहा जा सकेगा, जब जनता यह अनुभव करने लगेगी कि उसे अपनी उन्नति करने तथा रास्ते पर चलने की आजादी है।”

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प्रश्न-
(i) गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक दीजिए।
(ii) स्वराज्य का ध्येय क्या है?
(ii) पूर्ण स्वतन्त्रता प्राप्त कर ली है’, ऐसा कब कहा जा सकेगा?
उत्तर-
(i) स्वराज्य का ध्येय’ उपयुक्त शीर्षक है।
(ii) स्वराज्य का ध्येय है कि हम अपनी सभ्यता, अपनी संस्कृति को निरन्तर बनाए रखें। हम अपनी सभ्यता और संस्कृति में बाहर की बहुत-सी बातों को ग्रहण कर लेना तो चाहते हैं परन्तु उन्हें भारतीयता में बदलकर।
(iii) भारतवर्ष एक स्वतन्त्र देश है। इसने पूर्ण आजादी प्राप्त कर ली है।’ ऐसा तो तभी कहा जा सकेगा जब हम अपनी उन्नति करने में भी आजाद हों। साथ ही, हमें उन उपायों की भी जानकारी होनी चाहिए, जिन पर चलकर हम उन्नति कर सकें और अपनी आजादी की रक्षा कर सकें।

5. (अ) अपने प्रधानाध्यापक को साँची घूमने जाने के
लिए तीन दिवस के अवकाश हेतु आवेदन-पत्र लिखिए।
अथवा
अपनी माताजी को एक पत्र लिखकर शाला की
बालदिवस की गतिविधियों के बारे में बताइए।
उत्तर-
‘पत्र लेखन’ नामक अध्याय का अवलोकन करें।

(आ) निम्नलिखित में से किसी एक विषय पर निबन्ध लिखिए-
(1) गणतन्त्र दिवस,
(2) तुलसीदास,
(4) कम्प्यूटर,
(4) मेरा प्रिय शिक्षक।
उत्तर-
‘निबन्ध लेखन’ नामक अध्याय का अवलोकन करें।

(इ) गाँधी जी ने फिनिक्स आश्रम की स्थापना क्यों की?
उत्तर-
गाँधी जी रस्किन की पुस्तक (अपटू दिस लास्ट) में विशेष रुचि रखते थे। वे इसे एक उत्साहवर्धक एवं प्रभावशाली पुस्तक ठहराते थे। इस पुस्तक के सर्वोदयी विचार से प्रभावित होकर पुस्तक में वर्णित भावों एवं विचारों को मूर्त रूप देने के लिए डर्बन में सौ एकड़ भूमि लेकर फिनिक्स आश्रम की नींव डाली। इस प्रकार गाँधी जी पुस्तक में वर्णित विचारों को साकार रूप देने में सफल रहे।

6.
(अ) निम्नलिखित पद्यांशों में किसी एक की सप्रसंग व्याख्या कीजिएन इसका अर्थ हम पुरुषत्व का बलिदान कर देंगे। न इसका अर्थ हम नारीत्व का अपमान सह लेंगे। रहे इंसान चुप कैसे कि चरणाघात सहकर जब,
उमड़ उठती धरा पर धूल, जो लाचार सोई है।
उत्तर-
कवि यह बताते चलते हैं कि हम हिन्दुस्तानियों ने ही सदैव संसार को शान्ति का सन्देश दिया है तथा अहिंसा का उपदेश देकर मन, कर्म और वचन से सत्य का आचरण करने के लिए पूरे संसार को सलाह दी है। इसका यह अर्थ नहीं लगा लेना चाहिए कि हम अहिंसा का आचरण अपनाकर वीरता का त्याग कर देंगे और कायर बन जायेंगे और इसका यह अर्थ भी नहीं लगा लेना चाहिए कि हम नारीपन (स्त्रीत्व) के लिए किए गये अपमान को सह लेंगे। हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि धरती पर पैरों के नीचे दबी कुचली धूल भी पैरों की ठोकर खाने पर आकाश में उमड़कर चारों ओर छा जाती है। वह (स्त्री रूपी धूल) किसी वजह से अपनी लाचारी की दशा में अपनी शक्ति को पहचानती नहीं रही है। यह उसकी सुप्त अवस्था थी, अज्ञानता थी, उसकी अशिक्षा थी।

अथवा
पकड़ वारि की धार झूलता है मेरा मन, आओ रे सब मुझे घेरकर गाओ सावन। इन्द्रधनुष के झूले में झूलें मिल सब जन, फिर-फिर आए जीवन में सावन मन भावन॥
उत्तर-
प्रसंग-कवि कामना करता है कि सावन जीवन में बार-बार आये।

व्याख्या-कवि कहता है कि मेरा मन जल की धार को पकड़कर अनेक कल्पनाओं के झूले में झूलने लगता है। आप सब के सब सामूहिक रूप से मिलकर आओ। मुझे चारों ओर से – घेरकर खड़े हो जाओ तथा सावन के गीत गाओ। सभी लोग वर्षा ऋतु में आकाश में दिखने वाले इन्द्रधनुष के झूले में झूलें। इन्द्रधनुष। के अनेक रंगों की तरह अनेक कल्पनाओं में डूब जाओ। इस तरह मन को अच्छा लगने वाला (मन में अच्छे-अच्छे भाव पैदा करने वाला) सावन प्रत्येक प्राणी के मन में अनेक बार आता रहे, ऐसी मैं आशा करता हैं।

(आ) निम्नलिखित गद्यांशों में से किसी एक की सन्दर्भ सहित व्याख्या कीजिए। “ऋषि मुनियों और साधकों की हजारों वर्षों की तपस्या एवं परिश्रम का प्रतिफल है संगीत। कहा जाता है कि जिस। समाज में कला का स्थान नहीं होता, वह समाज भी प्राणहीन हो जाता है।”
उत्तर-
संगीत के विकास और उन्नति के लिए हमारे ऋषियों, मुनियों तथा संगीत कला की साधना करने वाले संगीतकारों ने तपस्या की। वे सभी एकचित्त होकर संगीत की साधना में लगे रहे। आज संगीत कला जिस मुकाम को प्राप्त हो गयी है, वह मुकाम उन सभी साधकों की तपस्या और उनकी। मेहनत का नतीजा है, परिणाम है। यह कहावत सत्य है कि वह समाज मरा हुआ (मृत) होता है जिसमें संगीत आदि अनेक कलाओं को महत्त्व नहीं दिया जाता। अतः समाज की जीवन्तता – के लिए आवश्यक ही नहीं अनिवार्य भी है कि समाज के लोगों को कला के महत्त्व को समझना चाहिए और इसके विकास
और उन्नति के लिए निरन्तर सहयोग देकर साधकों को उत्साहित। करना चाहिए।

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अथवा

“चाँद आता है तो चाँदी जैसी चमक उठती हैं, सूरज। आता है तो उस जैसी ही तप उठती हैं।”
उत्तर-
नदी का जल बड़े आकार वाली चट्टानों को डुबाता हुआ बहता है। जल के नीचे डूबी हुई चट्टानों के ऊपर छोटी-छोटी घास उग रही है। जाड़ा, गर्मी और बरसात के मौसम को निरन्तर सहती रहती हैं। इन चट्टानों को यदि काटने का प्रयास किया जाय, तो वे कट तो अवश्य जायेंगी परन्तु झुकती नहीं हैं। ये चट्टानें लगातार ही आगे तक बढ़ती जाती हैं अर्थात् बहुत दूरी तक ये चट्टानें नदी के अथाह तल के नीचे और किनारों पर लगातार अपने मस्तक को उठाये हुए आगे तक बहते जल के साथ बढ़ती हुई जाती हैं। उनकी पवित्रता धीमी नहीं होती, मन्द नहीं पड़ती। चन्द्रमा की चाँदनी में चाँदी की तरह ही चमचमाती रहती हैं। सूर्य के उदय होते ही, उसके तेज से एकदम तपने लगती हैं, परन्तु जब वर्षा ऋतु का आगमन होता है, तब यहाँ घना अन्धकार छा जाता है, फिर भी इनकी धवलता लिए हुए चमक, निर्मलता, उनकी पवित्रता समाप्त नहीं होती। यह वास्तव में तपस्या ही है। अन्य कुछ भी नहीं।

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