MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Chapter 12 प्रहेलिकाः

MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 12 प्रहेलिकाः

MP Board Class 7th Sanskrit Chapter 12 अभ्यासः

प्रश्न 1.
एक शब्द में उत्तर लिखो
(क) सुप्तोऽपि नेत्रे क: न निमीलयति? [सोते हुए भी दोनों नेत्रों को कौन बन्द नहीं करती है?]
उत्तर:
मत्स्यः

(ख) फलानाम् दाता कः अस्ति? [फलों को देने वाला कौन होता है?]
उत्तर:
वृक्षः

(ग) पक्षिराजः कः अस्ति? [पक्षियों का राजा कौन है?]
उत्तर:
गरुड़ः।

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प्रश्न 2.
एक वाक्य में उत्तर लिखो
(क) मूकः कथं जीवति? [गूंगा कैसे जीवित रहता है?]
उत्तर:
मूकः मौनेन जीवति। [गूंगा मौन रूप (बिना बोले) में जीवित रहता है।]

(ख) एकेन पादेन कः तिष्ठति? [एक पैर पर कौन खड़ा रहता है?]
उत्तर:
एकेन पादेन बको तिष्ठति। [बगुला एक पैर पर खड़ा रहता है।]

(ग) नारिकेलफले कति नेत्राणि भवन्ति। [नारियल के फल में कितनी आँखें होती हैं?]
उत्तर:
नारिकेलफले त्रिनेत्राणि भवन्ति। [नारियल के फल में तीन आँखें होती हैं।]

प्रश्न 3.
रिक्त स्थानों की पूर्ति करो(पण्डितः, मम, मूकः, शूलपाणिः, तस्यादिः)
(क) न ……….. न तस्यान्तः।
(ख) साक्षरं न च………….।
(ग) त्रिनेत्रधारी न च………….।
(घ) स्वजाति जीवाः…………. भोजननि।
(ङ) मौनेन जीवामि मुनिन …………।
उत्तर:
(क) तस्यादिः
(ख) पण्डितः
(ग) शूलपाणिः
(घ) मम
(ङ) मूकः।

प्रश्न 4.
उचित मेल करो
MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Chapter 12 प्रहेलिकाः img 1
उत्तर:
(क) → (3)
(ख) → (5)
(ग) → (1)
(घ) → (2)
(ङ) → (4)

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प्रश्न 5.
सन्धि विच्छेद करो
(क) तस्यादिः
(ख) तस्यान्तः
(ग) वृक्षाग्रवासी
(घ) ममाप्यस्ति
(ङ) तवाप्यस्ति।
उत्तर:
(क) तस्य + आदिः
(ख) तस्य + अन्तः
(ग) वृक्ष + अग्रवासी
(घ) मम + अपि + अस्ति
(ङ) तव + अपि + अस्ति।

प्रश्न 6.
समानार्थक शब्दों का मेल करो
MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Chapter 12 प्रहेलिकाः img 2
उत्तर:
(क) → (4)
(ख) → (3)
(ग) → (1)
(घ) → (2)

प्रश्न 7.
विपरीतार्थक शब्दों का मेल करो
MP Board Class 7th Sanskrit Solutions Chapter 12 प्रहेलिकाः img 3
उत्तर:
(क) → (4)
(ख) → (3)
(ग) → (1)
(घ) → (2)

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प्रश्न 8.
उदाहरण के अनुसार अन्वय की पूर्ति करो
(क) सुप्तः………… नेत्रे न निमीलयामि, जलस्य ……… नित्यं……………मम………… स्वजा. तिजीवाः, मान्या! ………… नामधेयं …………।
(ख) …………. तिष्ठामि बकः न……….. , दाता……….. न कृतिः …………. यत्नः, मौनेन”…………. मुनिः …………. मूकः, सेव्यः ………… कः नृपतिः……….. देवः।
उत्तर:
(क) अपि, मध्ये, निवसामि, भोजनानि मम, वदन्तु।
(ख) अहं पादेन, पङ्गुः, अहं फलानां न, जीवामि न, न, अस्मि, न।

प्रहेलिकाः हिन्दी अनुवाद

अपदं दूरगामी च, साक्षरं न च पण्डितः।
अमुखं स्फुटवक्ता च, मां जानाति सः पण्डितः॥१॥

अन्वयः :
अहं पादाभ्यां विना दूरं गच्छामि। अक्षरयुक्तः। किन्तु, पण्डितः नास्मि। अहं मुखेन विना स्पष्टं वदामि। यः मां जानाति सः पण्डितः।

अनुवाद :
मैं पैरों के बिना भी दूर तक जाता हूँ। अक्षरयुक्त हूँ किन्तु पण्डित नहीं हूँ। मैं मुख के बिना स्पष्ट बोलता हूँ। जो मुझे जानता है, वह विद्वान है।

न तस्यादिः न तस्यान्तः, मध्ये यस्तस्य तिष्ठति।
ममाप्यस्ति तवाप्यस्ति, यदि जानासि तद् वद॥२॥

अन्वयः :
‘न’ तस्य आदिः। ‘न’ तस्य अन्तः। मध्ये ‘य’ अस्ति। मम अपि अस्ति। तव अपि अस्ति। यदि जानासि तद् वद।

अनुवाद :
‘न’ उसका प्रारम्भ है। न उसका अन्त है। बीच में ‘जो’ है। मेरे भी पास है। तुम्हारे भी (पास) है। यदि जो जानता है, वह बोले। [नेत्र ]

सुप्तोऽपि नेत्रे न निमीलयामि,
जलस्य मध्ये निवसामि नित्यम्।
स्वजातिजीवा: मम भोजनानि,
वदन्तु मान्याः! मम नामधेयम्॥३॥

अन्वयः :
अहं सुप्ते अपि नेत्रे न निमीलयामि। जलस्य मध्ये एव निवसामि। स्वजातिजीवाः मम भोजनानि सन्ति। मान्याः! मम नाम वदन्तु।

अनुवाद :
मैं सोते हुए भी दोनों नेत्रों को बन्द नहीं करती हूँ। जल के बीच ही रहती हूँ। अपनी जाति के जीव ही मेरे भोजन हैं। हे माननीये! मेरा नाम बतलायें। [मत्स्य (मछली)]

तिष्ठामि पादेन बको न पगुः,
दाता फलानां न कृतिर्न यत्नः।
मौनेन जीवामि मुनिर्न मूकः,
सेव्योऽस्मि कोऽहं नृपतिर्नदेवः॥ ४॥

अन्वयः :
अहं पादेन तिष्ठामि, किन्तु न बकः, न पगुः। अहं फलानां दाताः, किन्तु न कृतिः, न यत्नः। मौनेन जीवामिः, किन्तु न मुनिः, न मूकः। सेव्यः अस्मि अहं:, किन्तु न नृपतिः, न देवः। अहं कः?

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अनवाद :
मैं पैर पर (तने पर) खड़ा रहता हूँ। किन्तु बगुला नहीं हूँ, न लँगड़ा हूँ। मैं फलों को देने वाला हूँ किन्तु कोई रचना नहीं हूँ। न कोई प्रयत्न हूँ। मौन रूप में ही जीवित रहता हूँ किन्तु मैं न तो मुनि हूँ और न मूक (गँगा) हूँ। मैं सेवा किये जाने योग्य हूँ, किन्तु राजा नहीं हूँ, न (कोई) देवता हूँ। (बताओ) मैं कौन [वृक्ष]

वृक्षाग्रवासी न च पक्षिराजः,
त्रिनेत्रधारी न च शूलपाणिः।
त्वग्वस्त्रधारी न च सिद्धयोगी,
जलं च विभ्रन्न घटो न मेघः॥५॥

अन्वयः :
अहं वृक्षाग्रवासी, किन्तु न पक्षिराजः। अहं त्रिनेत्रधारी:, किन्तु न शूलपाणिः, अहं त्वग्वस्त्रधारी किन्तु न सिद्धयोगी। जलं विभ्रन् किन्तु न घटः, न मेघः।

अनुवाद :
मैं वृक्ष के अगले भाग पर रहता हूँ। किन्तु मैं पक्षिराज (गरुड़) नहीं हूँ। मैं तीन नेत्र धारण करने वाला हूँ, किन्तु हाथ में त्रिशूल धारण करने वाला ‘शिव’ नहीं हूँ। मैं छाल के वस्त्र धारण करता हूँ, किन्तु कोई सिद्धि प्राप्त करने वाला योगी नहीं हूँ। जल से परिपूर्ण हूँ परन्तु घड़ा नहीं हूँ (और) न बादल है। [नारियल]

प्रहेलिकाः शब्दार्थाः

अपदं = बिना पैर वाले। दूरयानम् = दूर तक जाने वाला वाहन। (दूरगामी = दूर तक जाने वाला।) साक्षरम् = अक्षरयुक्त। अमुखम् = बिना मुख वाले। स्फुटवक्ता = स्पष्ट बोलने वाला। तस्यादिः = उसका प्रारम्भ। तस्यान्तः = उसका अन्त। ममाप्यस्ति = मेरे पास भी है। निमीलयामि = मैं मूंद लेता हूँ। वदन्तु = कहें। नामधेयम् = नाम। कृतिः = रचना। सेव्योस्मि = सेवा योग्य हूँ। वृक्षाग्रवासी = वृक्ष के ऊपर रहने वाला। पक्षिराजः = गरुड़ (पक्षियों का राजा)। विभ्रन् = धारण करता हुआ। शूलपाणिः = हाथ में शूल (त्रिशूल) धारण करने वाले भगवान शंकर। त्वग्वस्त्रधारी = पेड़ की छाल के वस्त्र धारण करने वाले। त्वक् = पेड़ की छाल।

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