MP Board Class 6th Sanskrit Solutions Surbhi Chapter 17 चरामेति चरामेति
MP Board Class 6th Sanskrit Chapter 17 अभ्यासः
प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) वयं कस्य सेवार्थ निरन्तरं चलिष्यामः? (हम किसकी सेवा के लिए निरन्तर चलते रहेंगे?)
उत्तर:
लोकसेवार्थम्
(ख) वयं कान् दण्डयिष्यामः? (हम किनको दण्डित करेंगे?)
उत्तर:
दुर्जनान्।
प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत् (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) भारतभूतलात् वयं किं हरिष्याम:? (भारत धरा से हम किसे दूर करेंगे?)
उत्तर:
भारतभूतलात् वयं दैन्यं हरिष्यामः। (भारत धरा से हम दीनता को दूर करेंगे।)
(ख) वयं कान् रक्षिष्यामः? (हम किनकी रक्षा करेंगे?)
उत्तर:
वयं सज्जनान् रक्षिष्यामः। (हम सज्जनों की रक्षा करेंगे।)
प्रश्न 3.
पदानां पुरुषं वचनं च लिखत (शब्दों के पुरुष और वचन लिखो)
प्रश्न 4.
कोष्ठकात् उचितानि पदानि चित्वा रिक्तस्थानानि पूरयत (कोष्ठक से उचित शब्दों को चुनकर रिक्त स्थानों को भरो)
(क) वयमेव भारतस्यापि मङ्गलम् ……….। (करिष्यामः/चलिष्यामः)
(ख) वयं लोकसेवार्थं ……….। (प्रचलामः/रक्षिष्यामः)
(ग) वयं सर्वभारतभूतलात् दैन्यं ……….। (दण्डयिष्यामः/हरिष्यामः)
(घ) वयं भेदभावस्य ……….. उद्यताः सर्वदाः। (वर्धनाय/विनाशाय)
(ङ) वयं मातृभूमेः प्रतिष्ठा ………… ।(नेष्यामः/रक्षिष्यामः)
उत्तर:
(क) करिष्यामः
(ख) प्रचलामः
(ग) हरिष्यामः
(घ) विनाशाय
(ङ) नेष्यामः।
प्रश्न 5.
उचितंयुग्ममेलनम् कुरुत (उचित जोड़े मिलाओ)
उत्तर:
(क) → 4
(ख) → 3
(ग) → 1
(घ) → 2
प्रश्न 6.
उदाहरणानुगुणं अन्वयपूर्ति कुरुत (उदाहरण के अनुसार अन्वय की पूर्ति करो)
(क) वयम् एव ……….. अपि ……….. करिष्यामः ………. मातृभूमेः ……….. परमोन्नतिं नेष्यामः च।
(ख) वयम् …….. विना सततं ………… करिष्यामः ……….. चलिष्यामः, निरन्तरं ………..।
उत्तर:
(क) भारतस्य, मङ्गलम्, प्रतिष्ठाम्।
(ख) आलस्यं, कार्याणि, अग्रे अग्रे, चलिष्यामः।
योग्यताविस्तारः
लृट्लकारस्य रूपाणि लिखत (लृट् लकार के रूप लिखो)
पठ्, खेल, खाद्, धाव्, चल्।
उत्तर:
लृट् लकार-
‘पठ्’ धातु-के रूप :
‘खेल्’ धातु (लृट् लकार) :
‘खाद्’ धातु (लृट् लकार) :
‘धाव्’ धातु (लृट् लकार) :
‘चल्’ धातु :
उच्चारणं कुरुत (उच्चारण करो)-
(क) हरिष्यामः
(ख) प्रचलामः।
नोट :
उच्चारण करने में प्रत्येक मात्रा व अक्षर पर ध्यान देना चाहिए, त्रुटिपूर्ण उच्चारण से बचना चाहिए।
चरामेति चरामेति हिन्दी अनुवाद
वयं धीराः वयं वीराः, वयं सर्वत्र निर्भयाः।
चरामो लोकसेवार्थं, प्रचलामो निरन्तरम्॥१॥
अनुवाद :
हम धैर्यशाली हैं, हम वीर हैं, हम सभी जगह निर्भय बने रहते हैं। लोक सेवा के लिए हम चलते रहते हैं (इस तरह हम) निरन्तर ही चलते रहते हैं।
विद्युतां मरुतां कोपः, सिंहानां चापि गर्जनम्।
नापि शत्रुभयं क्वापि, अस्मान् रोद्धं कदाप्यलम्॥२॥
अनुवाद :
बिजलियों, मरुतों (तेज अन्धड़ों) का क्रोध तथा सिंहों की गर्जना भी तथा कहीं पर भी शत्रुओं का भय भी कभी भी हमें रोक पाने में समर्थ नहीं होता है।
वयमग्रे चलिष्यामः, चलिष्यामो निरन्तरम्।
दुर्जनान् दण्डयिष्यामः रक्षिष्यामश्च सज्जनान्॥३॥
अनुवाद :
हम आगे ही आगे चलते जायेंगे। (हम) निरन्तर ही चलते रहेंगे। दुष्टों को दण्डित करेंगे और सज्जनों की रक्षा करेंगे।
वयमेव करिष्यामः भारतस्यापि मङ्गलम्।
प्रतिष्ठां मातृभूमेश्च नेष्यामः परमोन्नतिम्॥ ४॥
अनुवाद :
हम ही भारतवर्ष का कल्याण करेंगे तथा मातृभूमि की प्रतिष्ठा को परम उन्नति तक ले जायेंगे (पहुँचा देंगे)।
दैन्यं चैव हरिष्यामः सर्वभारतभूतलात्।
भेदभावविनाशाय, उद्यताः सर्वदा वयम्॥५॥
अनुवाद :
भारतवर्ष के सम्पूर्ण धरातल से दीनता का हरण कर देंगे तथा भेद-भाव के विनाश के लिए हम सदा ही उद्यत (तैयार) हैं।
विनालस्यं करिष्यामः कार्याणि सततं वयम्।
अग्रे अग्रे चलिष्यामः चलिष्यामो निरन्तरम्॥६॥
अनुवाद :
हम सदा ही बिना आलस्य के निरन्तर ही कार्यों को करते रहेंगे। (हम) आगे ही आगे चलते रहेंगे, निरन्तर ही चलते रहेंगे।
दुःखानां तु विनाशाय, वर्धनाय सुखस्य च।
सर्वभूतहितार्थाय, चलिष्यामो निरन्तरम्॥७॥
अनुवाद :
दु:खों के विनाश के लिए और सुख की वृद्धि के लिए तथा सभी प्राणियों के हित के लिए हम निरन्तर ही चलते रहेंगे।
चरामेति चरामेति शब्दाथाः
चरामेति = हम चलें। परम = श्रेष्ठ। कदाप्यलम् = (कदापि = कभी भी, अलम् = पर्याप्त)। मरुतां = हवा का। धीराः = धैर्यवाले। उद्यताः = तत्पर हैं। दण्डयिष्यामः = दण्ड देंगे। लोकसेवार्थं = जनता की सेवा के लिए। निरन्तरम् = लगातार। रोद्धम् = रोकने के लिए। सर्वभूतहितार्थाय = सब प्राणियों के हित के लिए। निर्भया = निर्भय होकर। क्वापि = कोई भी। नेष्यामः = ले जायेंगे। वर्धनाय = बढ़ाने के लिए।