MP Board Class 11th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 9 इत्यादि

MP Board Class 11th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 9 इत्यादि

इत्यादि अभ्यास प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रश्न 1.
‘इत्यादि’ शब्द का जन्म कब हुआ था? इसके माता-पिता के विषय में भी जानकारी दीजिए। (2017)
उत्तर:
‘इत्यादि’ के जन्म का सन्, संवत्, दिन की जानकारी ‘इत्यादि’ को भी नहीं है। लेकिन यह तो कहा जा सकता है कि जब शब्द का महा अकाल पड़ा था, तो उस समय ‘इत्यादि’ का जन्म हुआ था। इसकी माता का नाम ‘इति’ और पिता का नाम ‘आदि’ है। इसकी माता अविकृत ‘अव्यय’ घराने की है। इसके लिए यह थोड़े गौरव की बात नहीं है क्योंकि भगवान् फणीन्द्र की कृपा से ‘अव्यय’ वंश वाले प्रतापी महाराज ‘प्रत्यय’ के कभी आधीन नहीं हुए। वे सदा स्वाधीनता से विचरते आये हैं।

MP Board Solutions

प्रश्न 2.
ज्योतिषियों ने ‘इत्यादि’ के विषय में क्या भविष्य फल बतलाया था?
उत्तर :
जब ‘इत्यादि’ एक बालक था, तब इसके माँ-बाप ने एक ज्योतिषी से इसके अदृष्ट ‘भविष्य’ का फल पूछा। उन्होंने कहा था कि यह लड़का (इत्यादि) विख्यात और परोपकारी होगा। अपने समाज में यह सबका प्यारा बनेगा। परन्तु इसमें दोष है तो बस इतना ही कि यह कुँवारा ही रहेगा। विवाह न होने से इसके बाल-बच्चे नहीं होंगे। यह सुनकर माँ-बाप को पहले तो थोड़ा दुःख हुआ। पर क्या किया जाय ? होनहार ही यह था।

प्रश्न 3.
‘इत्यादि’ में सबसे अच्छा गुण क्या है? स्पष्ट कीजिए। (2014)
उत्तर:
‘इत्यादि’ में सबसे अच्छा गुण है कि क्या राजा, क्या रंक, क्या पण्डित, क्या मूर्ख, किसी के भी घर आने-जाने में ‘इत्यादि’ को कोई संकोच नहीं होता है और अपनी मानहानि नहीं समझता। अन्य शब्दों में यह गुण नहीं है। वे बुलाने पर भी कहीं जाने-आने में बड़ा गर्व करते हैं। बहुत आदर चाहते हैं जाने पर सम्मान का स्थान न पाने पर रूठकर उठ भागते हैं। इत्यादि में यह बात नहीं है। इसी से यह शब्द सबका प्यारा है।।

प्रश्न 4.
कठिनाई के समय इत्यादि’ शब्द वक्ता की किस प्रकार सहायता करता है?
उत्तर:
कठिनाई का समय वक्ता पर उस समय होता है जब वे किसी विषय को जानते नहीं, या भाषण के मध्य किसी बात को भूल जाते हैं। ऐसी दशा में उनकी सहायता करना या उनके मान की रक्षा करना ‘इत्यादि’ का ही काम होता है। वे उस दशा में भूली हुई शब्दावली को अपनी स्मृति में पुनः लाने का प्रयास करते हैं परन्तु उसे स्मरण नहीं कर पा रहे, तो उस दशा में वे महोदय पसीना-पसीना हो जाते हैं, चिन्ता के समुद्र में डूबने की नौबत आ जाती है, तब ‘इत्यादि’ शब्द ही उनकी नैया पार कराने को आगे आता है। ‘इत्यादि’ का यह परोपकारी स्वरूप है। इस शब्द को बुलाने की जरूरत नहीं, वह बिना बुलाए, उन महोदय की सहायता के लिए तैयार रहता है।

प्रश्न 5.
“भिन्न-भिन्न भाषाओं के शब्द भण्डार में ‘इत्यादि’ का नाम भिन्न-भिन्न है।” उदाहरण देकर समझाइए।
उत्तर:
आजकल ‘इत्यादि’ का महत्त्व बढ़ता जा रहा है, क्योंकि लोगों के पास शब्द की दरिद्रता बढ़ गयी है। अतः ‘इत्यादि’ का सम्मान बढ़ जाना स्वाभाविक है। अतः आजकल ‘इत्यादि’ ही इत्यादि है। इत्यादि का सम्मान, शब्द समाज में किसी शब्द का नहीं है। होगा भी तो कोई विरला ही। सम्मान और आदर जो बढ़ा है उसके साथ इत्यादि’ के नामों की संख्या भी बढ़ रही है। आजकल ऐसे अनेक नाम हैं-भिन्न-भिन्न भाषाओं के ‘शब्द समाज’ में इत्यादि का नाम भी भिन्न-भिन्न है। ‘इत्यादि’ का पहनावा भी भिन्न-भिन्न है-अत: जैसा देश वैसा ही वेश बनाकर इत्यादि सभी जगह विचरण करता है। स्थान कोई भी हो ‘इत्यादि’ शब्द विलायत के पार्लियामेन्ट में, महासभा में भी यह शब्द ‘इत्यादि’ भिन्न रूप में लोगों की सहायता के लिए बैठा है। भिन्न रूप में इत्यादि का बगैरह-बगैरह, इत्यलम् (संस्कृत में) आदि इसके अन्य रूप और उदाहरण हैं।

इत्यादि अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘इत्यादि’ शब्द इत्यादि क्यों कहलाया?
उत्तर:
‘इत्यादि’ शब्द इसके दो जनक शब्दों ‘इति’ और ‘आदि’ से मिलकर बना है। अतः इसे इत्यादि कहा जाता है।

प्रश्न 2.
‘इत्यादि’ शब्द क्या-क्या कार्य करता है?
उत्तर:
‘इत्यादि’ शब्द मूर्ख को पंडित बनाता है, जिसे युक्ति नहीं सूझती उसे युक्ति सुझाता है। लेखक को यदि भाव प्रकट करने की भाषा नहीं जुटती तो भाषा जुटाता है। कवि को उपमा बताता है, इत्यादि-इत्यादि।

MP Board Solutions

इत्यादि पाठ का सारांश

प्रस्तावना :
‘इत्यादि’ शब्द का प्रयोग बड़े सम्मान के साथ वक्ता (भाषण देने वाले) और लेखक दोनों ही करते रहे हैं। सभा का आयोजन किया जा रहा हो, अथवा किसी सोसाइटी में किसी विषय पर भाषण दिया जा रहा हो या वार्ता का आयोजन किया जा रहा हो, तो वहाँ वक्ता महोदय ‘इत्यादि’ का प्रयोग करने से नहीं चूकते।

लेखक अनेक पुस्तकों का सृजन करता है, वक्ता अनेक तरह के भाषण देता है लेकिन इन दोनों में से कोई भी ‘इत्यादि’ शब्द की व्युत्पत्ति कैसे हुई, इस पर कोई भी वार्ता या सूत्र लिखना नहीं चाहता। वक्ता भी अपने वार्तालाप के दौरान ‘इत्यादि’ का प्रयोग तो करता है लेकिन उसकी निष्पत्ति और सृजन के ऊपर कुछ भी बताने से बचता है। ‘इत्यादि’ शब्द अपने आप ही अपनी प्रशंसा करने से हिचकता है और यह बात स्पष्ट होती है कि ‘इत्यादि’ का प्रयोग वे ही लोग ज्यादातर करते हैं जिनके पास अपनी बात स्पष्ट करने के लिए शब्दों की कमी होती है या उन्हें शाब्दिक दुनिया की दरिद्रता भोगनी पड़ रही है।

‘इत्यादि की व्युत्पत्ति :
‘इत्यादि’ शब्द की व्युत्पत्ति किस समय हुई इसकी जानकारी किसी को भी नहीं है। वक्ता या लेखक अपनी भावना या अपने विचार व्यक्त करना चाहता है, लेकिन उस भाव को व्यक्त करने को उसके पास कोई शब्द न हो, तो उस स्थिति में ‘इत्यादि’ शब्द का प्रयोग करता है, बस, यही वह अवसर या क्षण होता है, तब ‘इत्यादि’ शब्द का जन्म होता है। इत्यादि का विग्रह-इति और आदि होता है। ‘इति’ अव्यय है और ‘आदि’ प्रत्यय । अतः इत्यादि में अव्यय और प्रत्यय का योग है जो अपने प्राकृत रूप में मिलकर अपना नया शब्द व्युत्पन्न करते हैं और उसका अर्थ भी फिर एक ही होता है। ‘इत्यादि’ शब्द का अर्थ इति और आदि दोनों के मेल से है। प्रत्येक के अलग-अलग रूप से नहीं। इत्यादि से आगे और भी फिर कुछ भी नहीं कहा जाता। तात्पर्य यह है कि इति और आदि दोनों मिलकर ‘इत्यादि’ बनते हैं लेकिन फिर इससे आगे बढ़कर कुछ भी नहीं।

प्राचीनकाल में इत्यादि का प्रयोग :
पुराने जमाने में इत्यादि का प्रयोग बहुत कम होता था, अतः ‘इत्यादि’ इतना प्रचलित नहीं था, जितना आजकल। इसका कारण था कि लोगों के पास शब्द भण्डार की कमी नहीं थी। वे लोग बुद्धिमान थे, उनके पास शब्दों की दरिद्रता नहीं थी। अब लोग चाहे विदेशों की पार्लियामेन्ट हो, या अपने ही देश की कोई भी पार्टी हो-राजनैतिक, सामाजिक अथवा अन्य कोई। उसके जितने भी सदस्य होते हैं, वे धड़ाधड़ इत्यादि का प्रयोग बेहिचक करते हैं क्योंकि उनके पास तत्सम्बन्धी शब्दावली का अभाव है। विद्वान हो, मूर्ख हो, सभी की जीभ पर ‘इत्यादि’ विराजमान हो रहा है। गरीब हो धनवान् हो-सबकी यही दशा है। इसका अर्थ है लोग इत्यादि से प्यार करते हैं।

‘इत्यादि’ बड़ा सहायक :
‘इत्यादि’ शब्द का प्रयोग करते ही आगे कुछ भी बोलने, स्पष्टता देने या लिखने की आवश्यकता नहीं होती है। लेखक या वक्ता प्राचीन ग्रन्थकारों, विद्वानों, धर्मवेत्ता और दार्शनिकों के नाम यदि भूल जाता है तो कुछ के आगे ‘इत्यादि’ प्रयोग करके थोड़े समय में अपनी बात कहकर समाप्त कर देता है। इसके पीछे यदि बात है, तो उन लेखकों की विद्वानों की या वक्ताओं की अल्पज्ञता।

आलोचक-समालोचक :
किसी भी कृति में यदि कोई थोड़ा भी दोष हो तो आलोचक उस रचना की धज्जियाँ उड़ाकर उसको प्रचलन से अदृश्य करा सकता है। परन्तु एक समालोचक बुराइयों और अच्छाइयों के दौर में बीच का रास्ता निकालकर उस कृति को लोगों में प्रसिद्धि दिला सकता है। समालोचक या आलोचक अपनी स्वार्थपरता के वशीभूत होकर किसी भी कृति को श्रेष्ठ घोषित कर देते हैं।

MP Board Class 11th Hindi Solutions