MP Board Class 11th Special Hindi अपठित पद्यांश

MP Board Class 11th Special Hindi अपठित पद्यांश

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(1) क्रुद्ध नभ के वज्रदंतों,
में उषा है मुस्कराती,
घोर, गर्जनमय गगन के,
कंठ में खग-पंक्ति गाती।
एक चिड़िया चोंच में तिनका,
लिये जो जा रही है,
वह सहज में ही पवन,
उनचास को नीचा दिखाती।
नाश के दुःख से कभी,
दबता नहीं निर्माण का सुख,
प्रलय की निस्तब्धता से,
सृष्टि का नवगान फिर-फिर।
नीड़ का निर्माण फिर-फिर,
सृष्टि का निर्माण फिर-फिर।

प्रश्न
1. प्रस्तुत पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. इस पद्यांश का शीर्षक लिखो।
उत्तर-
(1) प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने मानव को सदैव आशा के साथ जीवन जीने की प्रेरणा दी है। जैसे आकाश में काले बादलों के पश्चात् प्रात:काल उषा का आगमन होता है। आकाश में बादल घोर गर्जना करते हैं। पक्षी उसकी तनिक भी परवाह न करके अपने घोंसला बनाने में संलग्न रहते हैं। इसी प्रकार सृष्टि में दुःख-सुख का चक्र चलता है। प्रलय के पश्चात् नया जीवन प्रारम्भ होता है।
(2) शीर्षक ‘नव निर्माण’।

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(2) “तुम हो धरती के पुत्र न हिम्मत हारो,
श्रम की पूँजी से अपना काज सँवारो।
श्रम की सीपी में ही वैभव पलता है,
तब स्वाभिमान का दीप स्वयं ही जलता है।
मिट जाता है दैन्य स्वयं क्षण में,
छा जाती है नव दीप्ति धरा के कण में,
जागो, जागो श्रम से नाता तुम जोड़ो,
पथ चुनो कर्म का, आलस भाव तुम छोड़ो।”

प्रश्न
1. प्रस्तुत पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. प्रस्तुत पद्यांश का शीर्षक लिखिए।
उत्तर-
(1) कवि कहता है कि जिस प्रकार से सृष्टि में परिवर्तन होता है, उसी प्रकार प्रत्येक व्यक्ति के जीवन में भी निरन्तर परिवर्तन होता है। अत: व्यक्ति को जीवन में निराश नहीं होना चाहिये। सदैव स्वाभिमान के साथ परिश्रम करते हुए उद्यम ही सुख की निधि है। श्रम वैभव का प्रवेश द्वार है इसी के कारण स्वाभिमान की भावना जागृत होती है तथा निर्धनता समाप्त हो जाती है। मानव को प्रमाद त्यागकर श्रम करना चाहिये।
(2)शीर्षक-श्रम की महत्ता’।

(3) “प्राचीन हो या नवीन छोड़ो रूढ़ियाँ जो हो बुरी,
बनकर विवेकी तुम दिखाओ हंस जैसी चातुरी।
प्राचीन बातें ही भली हैं यह विचारों अलीक है,
जैसी अवस्था हो जहाँ, तैसी व्यवस्था ठीक है।
सर्वज्ञ एक अपूर्व युग का हो रहा संचार है,
देखो दिनों दिन बढ़ रहा विज्ञान का विस्तार है।
अब तो उठो क्यों पड़ रहे हो व्यर्थ सोच विचार में,
सुख दूर जीना भी कठिन है श्रम बिना संसार में।”

प्रश्न
1. इस पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. इस पद्यांश का शीर्षक बताइए।
उत्तर-
(1) हंस का नीर क्षीर विषय ज्ञान विश्वविख्यात है। कवि के मतानुसार मानव को प्राचीन अथवा नवीन रूढ़ियाँ जो उसकी उन्नति में बाधक हैं, उन्हें त्यागकर कल्याणकारी नीतियाँ ग्रहण करनी चाहिये तथा सड़ी-गली रूढ़ियों का मोह त्याग देना चाहिए।
(2) शीर्षक प्रगतिशील दृष्टिकोण’।

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(4) “निज राष्ट्र के शरीर के सिंगार के लिये
तुम कल्पना करो, नवीन कल्पना करो,
तुम कल्पना करो।
अब देश है स्वतन्त्र, मेदिनी स्वतन्त्र है
मधुमास है स्वतन्त्र, चाँदनी स्वतन्त्र है,
हर दीप स्वतन्त्र, रोशनी स्वतन्त्र है।
अब शक्ति की ज्वलन्त दामिनी स्वतन्त्र है।
लेकर अनन्त शक्तियाँ संघ समृद्धि की
तुम कामना करो, किशोर कामना करो,
तुम कामना करो।”

प्रश्न
1. प्रस्तुत पद्यांश का भाव स्पष्ट कीजिए।
2. प्रस्तुत पद्यांश का शीर्षक लिखिए।
उत्तर-
(1) कवि नवयुवकों को प्रेरणा प्रदान करते हुए कह रहा है कि तुम्हें नयी-नयी आजादी मिली है फलतः राष्ट्र को सजाने-सँवारने का काम तुम्हारे कंधों पर टिका है। अपनी पृथ्वी, अपना मधुमास एवं चाँदनी भी स्वतन्त्र है, प्रत्येक दीपक स्वतन्त्र है। शक्ति उदात्त स्रोत दामिनी (बिजली) भी स्वतन्त्र है। अतः इन शक्तियों के माध्यम से देश का नया निर्माण करना है।
(2) शीर्षक—देश का नव निर्माण’।

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