MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 9 भोलाराम का जीव

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MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 9 भोलाराम का जीव

भोलाराम का जीव अभ्यास

भोलाराम का जीव अति लघु उत्तरीय प्रश्न

भोलाराम का जीव पाठ का सारांश MP Board Class 11th प्रश्न 1.
यमदूत को किसने चकमा दिया था?
उत्तर:
यमदूत को भोलाराम के जीव ने चमका दिया था।

भोलाराम का जीव प्रश्न उत्तर MP Board Class 11th प्रश्न 2.
भोलाराम का जीव ढूँढ़ने के लिए धरती पर कौन आया?
उत्तर:
भोलाराम का जीव ढूँढ़ने यमराज के आदेश से नारद जी धरती पर आये।

भोलाराम का जीव के प्रश्न उत्तर MP Board Class 11th प्रश्न 3.
भोलाराम की स्त्री ने नारद जी से क्या प्रार्थना की? (2015)
उत्तर:
भोलाराम की स्त्री ने नारद जी से यह प्रार्थना की कि यदि वे भोलाराम की रुकी हुई पेंशन दिलवा दें तो बच्चों का पेट कुछ दिन के लिए भर जायेगा।

भोलाराम का जीव के प्रश्न उत्तर Pdf MP Board Class 11th प्रश्न 4.
भोलाराम के मरने का क्या कारण था?
उत्तर:
भोलाराम को अवकाश के पश्चात् पाँच वर्ष तक पेंशन प्राप्त नहीं हुई। अतः धनाभाव के कारण मृत्यु हो गयी।

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भोलाराम का जीव लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

Bholaram Ka Jeev Kahani Ka Saransh MP Board Class 11th प्रश्न 1.
भोलाराम की जीवात्मा कहाँ अंटकी थी, वहस्वर्गक्यों नहीं जाना चाहता था?
उत्तर:
भोलाराम की जीवात्मा उसकी पेंशन की दरख्वास्तों में अटकी हुई थी। भोलाराम का मन उन्हीं में लगा था। इसी कारण वह स्वर्ग में बिल्कुल भी जाना नहीं चाहता था।

Bholaram Ka Jeev Sandesh MP Board Class 11th प्रश्न 2.
साहब ने नारद जी की वीणा क्यों माँगी?
उत्तर:
साहब ने नारद जी की वीणा इसलिए माँगी क्योंकि कार्यालयों की फाइलों में रखी दरख्वास्तें तभी आगे बढ़ती हैं जबकि उन दरख्वास्तों पर वजन रखा जाता है। इसी कारण साहब ने नारद जी की वीणा को दरख्वास्तों पर वजन बढ़ाने के लिए माँग लिया।

Bholaram Ka Jeev Saransh MP Board Class 11th प्रश्न 3.
“भोलाराम की दरख्वास्तें उड़ रही हैं, उन पर ‘वजन’ रखिये।” वाक्य में वजन शब्द किसकी ओर संकेत कर रहा है?
उत्तर:
भोलाराम की दरख्वास्तें उड़ रही हैं, उन पर ‘वजन’ रखिये का अर्थ वाक्य में इस बात को स्पष्ट करता है कि कुछ घूस दीजिए। क्योंकि आज के युग में जब तक कुछ रिश्वत न दो तो कार्यालयों में दरख्वास्तें आगे नहीं बढ़ी। इस प्रकार लेखक ने कार्यालयों में होने वाले भ्रष्टाचार एवं रिश्वतखोरी पर करारा व्यंग्य किया है। परसाई जी ने कहा कि यदि दरख्वास्तों पर वजन नहीं रखोगे तो उड़ जायेंगी। साधारण-सी बात द्वारा रिश्वत देने का संकेत किया है।

भोलाराम का जीव दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

Bholaram Ka Jeev Ka Saransh MP Board Class 11th  प्रश्न 1.
भोलाराम के रिटायर होने के बाद उसे और उसके परिवार को किन परेशानियों का सामना करना पड़ा? (2010)
उत्तर:
भोलाराम के रिटायर होने के बाद उसे निम्नलिखित कठिनाइयों का सामना करना पड़ा-
(1) आर्थिक कठिनाई :
भोलाराम के रिटायर होने के पश्चात् उसे और उसके परिवार को सबसे अधिक आर्थिक कठिनाई को झेलना पड़ा। क्योंकि रिटायर होने से पूर्व भी उसके पास धन का अभाव था। रिटायर होने के बाद पाँच वर्ष तक भोलाराम को पेंशन नहीं मिली। इस कारण वह मकान मालिक को किराया भी नहीं दे सका। उसके परिवार में दो पुत्र एवं एक पुत्री थे। इन सबका पालन-पोषण करने वाला एकमात्र भोलाराम ही था। आर्थिक परेशानियों के कारण भोलाराम की मृत्यु हो गयी।

(2) कार्यालय कर्मचारियों का अमानवीय व्यवहार :
भोलाराम रिटायर होने के बाद हर पन्द्रह दिन के बाद दफ्तर में दरख्वास्त देने के लिए जाते थे। लेकिन लगातार पाँच वर्ष तक चक्कर काटने के बाद भी भोलाराम को पेंशन नहीं मिली। भोलाराम का परिवार भुखमरी के कगार पर आ खड़ा हुआ। धीरे-धीरे पेंशन न मिलने के फलस्वरूप गरीबी और भूख से व्याकुल भोलाराम मृत्यु की गोद में समा गया।

(3) पालन-पोषण की चिन्ता :
रिटायर होने के बाद पेंशन न मिलने के कारण भोलाराम को अपने परिवार की बहुत अधिक चिन्ता थी क्योंकि वह भूख से बेहाल बच्चों को नहीं देख सकता था। बच्चों के पालन-पोषण के लिए धीरे-धीरे घर के बर्तन व अन्य सामान भी बिक गये। परन्तु परिवार के पोषण की चिन्ता व मकान मालिक को किराया देने की चिन्ता ने उसे समय से पूर्व ही मौत की गोद में सुला दिया।

Bholaram Ka Jeev Ka Saransh In Hindi MP Board Class 11th प्रश्न 2.
धर्मराज के अनुसार नरक की आवास समस्या किस प्रकार हल हुई?
उत्तर:
धर्मराज के अनुसार नरक की आवास समस्या इस प्रकार हल हुई। नरक में आवास की व्यवस्था करने के लिए उत्तम कारीगर आ गये थे। अनेक इस प्रकार के ठेकेदार भी थे जिन्होंने पूरे पैसे लेने के बाद बेकार इमारतें बनायी थीं।

इसके अतिरिक्त अनेक बड़े-बड़े इंजीनियर भी आये हुए थे। इन इंजीनियरों एवं ठेकेदारों ने बहुत-सा धन पंचवर्षीय योजनाओं के अन्तर्गत हड़प लिया था। इंजीनियर कभी भी काम पर नहीं गये थे। मगर इन गुणी कारीगरों, ठेकेदारों एवं इंजीनियरों ने मिलकर नरक के आवास की समस्या को चुटकियों में हल कर दिया था। क्योंकि ये सभी भवन निर्माण की कला में निपुण थे।

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Bholaram Ka Jeev Question Answer MP Board Class 11th प्रश्न 3.
“अगर मकान मालिक वास्तव में मकान मालिक है तो उसने भोलाराम के मरते ही उसके परिवार को निकाल दिया होगा।” इस वाक्य में निहित व्यंगार्थ को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
अगर मकान मालिक वास्तव में मकान मालिक है तो उसने भोलाराम के मरते ही परिवार को निकाल दिया होगा। इस वाक्य में आज के मकान मालिकों की हृदयहीनता पर कठोर प्रहार किया है।

इस कहानी के माध्यम से लेखक ने यह बताने का प्रयास किया है कि किरायेदार के पास भोजन के लिए रुपया हो अथवा न हो, वह मरे अथवा जीवित रहे। मकान मालिक को केवल किराये से मतलब है। लेखक का अभिप्राय है जब तक मकान मालिक को आशा थी कि भोलाराम की पेंशन एक न एक दिन मिल जायेगी। तब तक उसने भोलाराम के परिवार को उसमें रहने दिया।

भोलाराम के मरते ही मकान मालिक को किराये के रुपये मिलने की उम्मीद समाप्त हो गयी। अतः उसने उसके परिवार को घर से निकाल दिया।

लेखक ने मकान मालिकों पर भी व्यंग्य किया है कि उन्हें केवल रुपयों से मतलब होता है। मकान मालिक स्वयं को शासक समझते हैं और किरायेदारों पर शासन करते हैं। समय पर मकान का किराया न मिलने पर घर से बाहर सामान फिकवाने से भी नहीं चूकते हैं।

भोलाराम का जीव के प्रश्न उत्तर Class 10 MP Board Class 11th प्रश्न 4.
साहब ने भोलाराम की पेंशन में देर होने की क्या वजह बताई?
उत्तर:
छोटे बाबू ने भोलाराम की पेंशन में देर होने का प्रमुख कारण बताया कि भोलाराम ने अपनी दरख्वास्तों पर वजन नहीं रखा था। अत: वह कहीं पर उड़ गयी होंगी।

इसी कारण नारद जी सीधे बड़े साहब के पास पहँचे। वहाँ पहँचने पर बड़े साहब ने कहा, “क्या आप दफ्तरों के रीति-रिवाज नहीं जानते। असली गलती भोलाराम की थी, यह भी तो एक मन्दिर है। अत: यहाँ भी दान पुण्य करना पड़ता है लेकिन भोलाराम ने वजन नहीं रखा। अतः पेंशन मिलने में देर हो गयी।”

लेखक ने इस कहानी के माध्यम से दफ्तरों के बाबू और साहब लोगों की मानसिक दशा का विवेचन किया है। परसाई जी ने यह बताने का प्रयास किया है कि बिना चढ़ावे के कोई भी कार्य नहीं होता है।

प्रश्न 5.
लेखक ने इस व्यंग्य के माध्यम से किन अव्यवस्थाओं पर चोट की है? (2008, 12)
उत्तर:
लेखक ने अपने इस व्यंग्य के माध्यम से समाज में होने वाले भ्रष्टाचारों के विभिन्न पहलुओं पर प्रकाश डाला है। लेखक का कहना है कि आज चालाकी, झूठ, जालसाजी एवं रिश्वतखोरी का चारों ओर बोलबाला है। समाज का प्रत्येक श्रेणी का व्यक्ति इस रिश्वतखोरी एवं चालाकी के रोग से ग्रसित है। बिना इसके कोई भी काम नहीं होता है।

लेखक ने सबसे पहले कारीगरों, ठेकेसरों एवं इंजीनियरों पर व्यंग्य किया है। वे किस प्रकार रद्दी सामग्री का प्रयोग करके भवन निर्माण करते हैं। भवन निर्माण के लिए आये हुए रुपयों को किस प्रकार हड़प लेते हैं।

इसके पश्चात् सरकारी दफ्तरों की दुर्दशा का वर्णन किया है। जहाँ चपरासी से लेकर साहब तक सभी को रिश्वत चाहिए। बिना रिश्वत लिए किस प्रकार प्रार्थना-पत्र हवा में उड़ जाते हैं अर्थात् कागजों पर कार्यवाही रुक जाती है। इस बात पर लेखक ने व्यंग्य किया है। रिश्वत और घूस लेने की बात को न तो साहब खुलकर कहते हैं और न ही चपरासी।

रिश्वत लेने के साहब व चपरासियों के ऐसे सूक्ष्म संकेतात्मक शब्द होते हैं जो कि इस बात को स्पष्ट कर देते हैं कि कर्मचारी का काम कैसे होगा। इस व्यंग्य में लेखक ने रिश्वत देने के लिए ‘वजन’ शब्द का प्रयोग किया है। बिना वजन’ के कागज उड़ जायेंगे। इस प्रकार व्यंग्यपूर्ण शब्दों का प्रयोग किया है।

सरकारी दफ्फरों में फैली अव्यवस्था, भ्रष्टाचार एवं घूसखोरी का वर्णन किया है। उन्होंने यह भी बताया जो कर्मचारी अपने जीवन के बहुमूल्य क्षण सरकारी सेवा में लगाते हैं। उनको रिटायर होने के बाद किस प्रकार पेंशन के लिए दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं।

दफ्तरों के चक्कर काटने के उपरान्त भी धन का चढ़ावा न चढ़ाने पर व्यक्ति को भूखे मरने की नौबत आ जाती है। इस प्रकार सरकारी दफ्तरों की दशा का ऐसा वर्णन किया है जो पाठक के सम्मुख दफ्तरों की अव्यवस्था एवं अनियमितता का परिचायक है। लेखक ने मानव की आधुनिकता पर भी प्रहार किया है और बताया है कि आज के युग में कोई साधु-सन्तों को भी नहीं पूजता है। वे साधुओं की भी अवहेलना करते हैं।

परसाई जी ने समाज की कुत्सित मनोवृत्ति को उजागर किया है। सामाजिक विसंगतियों तथा मानसिक दुर्बलता, राजनीति व रिश्वतखोरी एवं लालफीताशाही पर तीखा व्यंग्य किया है।

प्रश्न 6.
इन गद्यांशों की संदर्भ एवं प्रसंगों सहित व्याख्या कीजिए
(1) आप हैं बैरागी …………….. करना पड़ता है।
(2) धर्मराज क्रोध ………… इन्द्रजाल हो गया।
उत्तर:
(1) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
उपर्युक्त कथन पेंशन दफ्तर के साहब का नारद जी के प्रति है। वे उनको दान-पुण्य के विषय में समझा रहे हैं। साहब नारद जी को पेंशन के कागजों पर वजन रखने के लिए कहते हैं।

व्याख्या :
प्रस्तुत गद्यांश में नारद जी को पेंशन कार्यालय के साहब सरकारी कार्यालयों की गतिविधियों से परिचित करवा रहे हैं। जब नारद जी को साहब की बात समझ में नहीं आयी तो उन्होंने कहा कि भोलाराम ने जो गलती की वह आप न करें। यदि आप मेरा कहा मान लेंगे तो आपका कार्य पूर्ण हो जायेगा। आप इस कार्यालय को देवालय समझेंगे तभी आपको सफलता मिलेगी। जिस प्रकार ईश्वर से सम्पर्क करने के लिए व्यक्ति को मन्दिर के पुजारी के समक्ष दान-दक्षिणा देनी पड़ती है। उसी प्रकार इस कार्यालय में भी आपको अधिकारी से सहयोग करने के लिए भोलाराम की दरख्वास्तों पर ‘वजन’ रखना होगा, क्योंकि बिना वजन के दरख्वास्तें उड़ रही हैं। आपको यह बात मैं केवल इस कारण बता रहा हूँ कि आप भोलाराम के प्रियजन हैं। इसी कारण इन दरख्वास्तों पर वजन रख दें। जिससे कि भोलाराम द्वारा की गयी गलती सुधर जाय। इस प्रकार नारद जी से रिश्वत देने के लिए व्यंग्य में कहा है।

(2) सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘भोलाराम का जीव’ नामक व्यंग्य से लिया गया है। इसके लेखक सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई’ हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश में बताया है कि भोलाराम की मृत्यु हुए पाँच दिन हो गये। लेकिन वह अभी तक धर्मराज के पास नहीं पहुँचा। अतः धर्मराज दूत के प्रति क्रोध व्यक्त कर रहे हैं।

व्याख्या :
गद्यांश में भोलाराम के जीव के विषय में बताया है कि वह किस प्रकार यमदूत को चकमा दे गया। धर्मराज ने क्रोधित होते हुए दूत से कहा अरे बेवकूफ ! तू निरन्तर कई वर्षों से जीवों को लाने का कार्य कर रहा है। इस कार्य को करते-करते तू वृद्ध हो गया है। लेकिन तुझसे एक साधारण से वृद्ध व्यक्ति को नहीं लाया गया और वह जीव तुझे धोखा देकर कहाँ लोप हो गया।

दूत ने नतमस्तक होकर धर्मराज से कहा-महाराज, मैंने अपने कार्य में तनिक भी असावधानी नहीं की थी। मैं प्रत्येक कार्य को भली प्रकार करता हूँ। इस कार्य को करने की मेरी आदत भी है। मेरे हाथों से कभी भी कोई भी अच्छे-से-अच्छा वकील भी नहीं मुक्त हो पाया है। लेकिन इस समय तो कोई मायावी चमत्कार ही हो गया है। क्योंकि मेरी सावधानी के बाद भी भोलाराम का जीव अदृश्य हो गया।

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प्रश्न 7.
इन पंक्तियों का पल्लवन कीजिए-
(1) साधुओं की बात कौन मानता है?
उत्तर:
उपर्युक्त कथन नारद जी का भोलाराम की पत्नी के प्रति है। जब नारद जी भोलाराम की पत्नी से मिलने गये तब उसकी पत्नी के मन में यह आशा जागृत हुई कि नारद जी सिद्ध पुरुष हैं अतः कार्यालय के कर्मचारी उनकी बात को नहीं टालेंगे। परन्तु उसकी बात को सुनकर नारद जी बोले कि साधुओं की बात कौन मानता है ? कहने का तात्पर्य है कि आधुनिक युग में मनुष्य साधुओं को न तो सम्मान देते हैं, न ही उनके कोप भाजन से भयभीत होकर कोई कार्य करना चाहते हैं। प्राचीन युग में मनुष्य साधु-सन्तों का मान-सम्मान करते थे तथा उनकी आज्ञा का पालन करना कर्त्तव्य मानते थे।

(2) गरीबी भी एक बीमारी है। (2008)
उत्तर:
प्रस्तुत वाक्य भोलाराम की पत्नी का है जब नारद जी भोलाराम की पेंशन के विषय में उससे मिलने जाते हैं। उस समय नारद जी भोलाराम की पत्नी से पूछते हैं कि, “भोलाराम को क्या बीमारी थी?” इस पर भोलाराम की पत्नी कहती है, “मैं आपको किस प्रकार बताऊँ भोलाराम को गरीबी की बीमारी थी।”

अर्थात् भोलाराम की सबसे बड़ी बीमारी उसकी निर्धनता थी, क्योंकि भोलाराम के पास जीवन-यापन के लिए रुपया न था। पेंशन लेने के लिए लगातार कार्यालय के चक्कर लगाते-लगाते थक गया था। उसे हर पल चिन्ता सताती थी कि परिवार का भरण-पोषण किस प्रकार होगा? घर में जितने बर्तन व आभूषण थे सब एक-एक करके बिक गये थे। अतएव भोलाराम अपनी गरीबी की बीमारी से ग्रसित होकर काल के गाल में समा गया।
“चिता हम उसे कहते हैं जो मुर्दे को जलाती है।
बड़ी है इसलिए चिन्ता जो जीते को जलाती है।”

(3) साधु-सन्तों की वीणा से तो और भी अच्छे स्वर निकलते हैं।
उत्तर:
यह कथन पेंशन से सम्बन्धित कार्यालय के साहब का है। जब नारद जी को साहब ने भोलाराम की दरख्वास्त पर ‘वजन’ रखने को कहा तो नारद जी उसका अभिप्राय समझ न पाये। तब साहब ने नारद जी की चापलूसी की और समझाया कि इस वीणा को वे उसे दे दें। क्योंकि उनकी पुत्री गायन-वादन में निपुण है। साहब ने साधु-सन्तों की प्रशंसा भी की जिससे नारद जी अपनी वीणा को साहब को दे दें।

वीणा हथियाने के लिए ही साहब ने इस प्रकार नारद जी से कहा कि साधु-सन्त वीणा का रख-रखाव जानते हैं। इसके अतिरिक्त इसका प्रयोग उत्तम संगीत के लिए करते हैं। अतः इस वीणा के स्वर भी अच्छे होंगे।
अच्छी संगति में वस्तु पर अच्छा ही प्रभाव पड़ता है। ऐसा लेखक ने साहब के माध्यम से कहलवाने का प्रयास किया है।

भोलाराम का जीव भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के लिए मानक शब्द लिखिए-
ओवरसियर, गुमसुम, इंकमटैक्स, हाजिरी, दफ्तर, आखिर, इमारत, बकाया, काफी, रिटायर।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 9 भोलाराम का जीव img-1

प्रश्न 2.
निम्नलिखित मुहावरों को अपने वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
उत्तर:
(1) चमका देना
वाक्य प्रयोग-अपराधी पुलिस को चकमा देकर भाग गये।

(2) चंगुल से छूटना
वाक्य प्रयोग-रोहन का आतंकवादियों के चंगुल से छूटना आसान नहीं है।

(3) उड़ा देना
वाक्य प्रयोग-गुरुजनों की शिक्षा को हँसी में उड़ा देना उचित नहीं है।

(4) पैसा हड़पना
वाक्य प्रयोग-अपहरणकर्ता ने पैसा हड़पने के बाद भी व्यापारी को मार ही डाला।

(5) वजन रखना
वाक्य प्रयोग-प्रत्येक विभाग के कर्मचारी वजन रखवाकर ही काम करना चाहते हैं।

प्रश्न 3.
इस पाठ में से योजक चिह्न वाले विशेषण क्रिया के द्विरुक्ति शब्द छाँटकर लिखिए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 9 भोलाराम का जीव img-2

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों के शुद्ध रूप लिखिए
(क) धोखा नहीं खाई थी आज तक मैंने।
(ख) रास्ता मैं कट जाता है डिब्बे के डिब्बे मालगाड़ी के।
(ग) आ गई उम्र तुम्हारी रिटायर होने की।
(घ) फाइल लाओ केस की भोलाराम बड़े बाबू से।
उत्तर:
(क) मैंने आज तक धोखा नहीं खाया था।
(ख) मालगाड़ी के डिब्बे के डिब्बे रास्ते में कट जाते हैं।
(ग) तुम्हारी भी रिटायर होने की उम्र आ गई।
(घ) बड़े बाबू से भोलाराम के केस की फाइल लाओ।

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प्रश्न 5.
निम्नलिखित अनुच्छेद में पूर्ण विराम, निर्देशक चिह्न तथा अवतरण चिह्न आदि का यथास्थान प्रयोग कीजिए-
बाबू हँसा आप साधु हैं आपको दुनियादारी समझ में नहीं आती दरख्वास्तें पेपरवेट से नहीं दबती खैर आप इस कमरे में बैठे बाबू से मिलिए।
उत्तर:
बाबू हँसा-“आप साधु हैं, आपको दुनियादारी समझ में नहीं आती। दरख्वास्तें ‘पेपरवेट’ से नहीं दबतीं। खैर, आप इस कमरे में बैठे बाबू से मिलिए।”

भोलाराम का जीव पाठ का सारांश

हरिशंकर परसाई एक महान् व्यंग्यकार के रूप में हिन्दी जगत् में सुविख्यात हैं। उनके द्वारा लिखित प्रस्तुत पाठ भोलाराम का जीव’ वर्तमान भ्रष्टाचार पर एक करारा व्यंग्य है। पौराणिक प्रतीकों के माध्यम से भोलाराम नामक सेवानिवृत्त एक साधारण व्यक्ति की सेवानिवृत्ति के पश्चात् आने वाली समस्याओं का व्यंग्यात्मक आंकलन है। भोलाराम की जीवात्मा मृत्यु के पश्चात् भी पेंशन सम्बन्धी कार्यों में अटकी हुई है।

व्यंग्य में घूसखोरी एवं प्रशासकीय अव्यवस्था के प्रति करारा प्रहार किया गया है। प्रस्तुत व्यंग्य का उद्देश्य किसी के हृदय को दुखाने का नहीं अपितु कर्त्तव्यपरायणता एवं दूसरों के दुःखों के प्रति संवेदना जागृत करना है।

भोलाराम का जीव कठिन शब्दार्थ

असंख्य = अनेक। लापता = गायब। कुरूप = बदसूरत। चकमा = धोखा। सावधानी = ध्यान से। गुमसुम = चुपचाप। दिलचस्प = रोचक। दरख्वास्त = प्रार्थना-पत्र। कोशिश = प्रयास, प्रयत्न। कुटिल = क्रूर। असल में वास्तव में। ऑर्डर = आदेश। दफ्तरों = कार्यालयों। हाजिर = उपस्थित। तीव्र = तेज। वायु-तरंग = हवा की लहरें। चंगुल = फन्दा, बन्धन में फंसा। अभ्यस्थ = अभ्यस्त। इन्द्रजाल = जादू । व्यंग = चुभने वाली हँसी। विकट = भयानक। छान डाला = खोज डाला, ढूँढ़ डाला। टैक्स = कर। बकाया = शेष। क्रन्दन = रुदन। संसार छोड़ना = मृत्यु को प्राप्त होना।

भोलाराम का जीव संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

1. धर्मराज क्रोध से बोले-“मूर्ख ! जीवों को लाते-लाते बूढ़ा हो गया, फिर भी एक मामूली बूढ़े आदमी के जीव ने तुझे चकमा दे दिया।”
दूत ने सिर झुकाकर कहा, “महाराज, मेरी सावधानी में बिल्कुल कसर नहीं थी। मेरे इन अभ्यस्थ हाथों से अच्छे-अच्छे वकील भी नहीं छूट सके। पर इस बार तो कोई इन्द्रजाल ही हो गया।”

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक के ‘भोलाराम का जीव’ नामक व्यंग्य से लिया गया है। इसके लेखक सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई’ हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश में बताया है कि भोलाराम की मृत्यु हुए पाँच दिन हो गये। लेकिन वह अभी तक धर्मराज के पास नहीं पहुँचा। अतः धर्मराज दूत के प्रति क्रोध व्यक्त कर रहे हैं।

व्याख्या :
गद्यांश में भोलाराम के जीव के विषय में बताया है कि वह किस प्रकार यमदूत को चकमा दे गया। धर्मराज ने क्रोधित होते हुए दूत से कहा अरे बेवकूफ ! तू निरन्तर कई वर्षों से जीवों को लाने का कार्य कर रहा है। इस कार्य को करते-करते तू वृद्ध हो गया है। लेकिन तुझसे एक साधारण से वृद्ध व्यक्ति को नहीं लाया गया और वह जीव तुझे धोखा देकर कहाँ लोप हो गया।

दूत ने नतमस्तक होकर धर्मराज से कहा-महाराज, मैंने अपने कार्य में तनिक भी असावधानी नहीं की थी। मैं प्रत्येक कार्य को भली प्रकार करता हूँ। इस कार्य को करने की मेरी आदत भी है। मेरे हाथों से कभी भी कोई भी अच्छे-से-अच्छा वकील भी नहीं मुक्त हो पाया है। लेकिन इस समय तो कोई मायावी चमत्कार ही हो गया है। क्योंकि मेरी सावधानी के बाद भी भोलाराम का जीव अदृश्य हो गया।

विशेष :

  1. शैली व्यंग्यपूर्ण है। भाषा सरस व सरल है।
  2. लेखक ने धर्मराज के क्रियाकलाप का परिचय दिया है।

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2. “वह समस्या तों हल हो गई, पर एक विकट उलझन आ गई है। भोलाराम नाम के एक आदमी की पाँच दिन पहले मृत्यु हुई। इसने सारा ब्रह्माण्ड छान डाला, पर वह कहीं नहीं मिला। अगर ऐसा होने लगा, तो पाप-पुण्य का भेद ही मिट जायेगा।”

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश में लेखक ने धर्मराज की चिन्ता के बारे में बताया है कि भोलाराम का जीव मृत्यु के उपरान्त कहीं भी नहीं मिला।

व्याख्या :
प्रस्तुत गद्यांश में बताया है कि धर्मराज की नरक आवास की चिन्ता तो समाप्त हो गई, क्योंकि धर्मराज ने उस समस्या का समाधान योग्य कारीगर एवं इंजीनियरों द्वारा करवा लिया था, लेकिन अब धर्मराज के सम्मुख एक विकराल समस्या उत्पन्न हो गयी है। यमदूत के पास से भोलाराम का जीव निकलकर गायब हो गया। उसने सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड में खोज लिया लेकिन वह मिल ही नहीं रहा है, जबकि उसकी मृत्यु को केवल पाँच ही दिन हुए थे। इस बात का हमें कदापि दुःख नहीं है कि भोलाराम का जीव गायब हो गया। हमें तो इस बात का दुःख है यदि इस प्रकार मृत्यु के उपरान्त जीव गायब होने लगे तो पाप-पुण्य का अन्तर समाप्त हो जायेगा, क्योंकि ऐसा कहा जाता है कि व्यक्ति को अपने कर्मानुसार ही स्वर्ग और नरक में जाना पड़ता है। इसी कारण व्यक्ति संसार में बुरे कर्म करते समय अवश्य भयभीत रहता है कि उसे ईश्वर के दरबार में जाने के उपरान्त वहाँ अपने कर्मों का हिसाब देना पड़ेगा। इसीलिए भोलाराम का जीव गायब होने पर धर्मराज की चिन्ता बढ़ गयी थी।

विशेष :

  1. लेखक ने इस कहानी के माध्यम से बताया है कि व्यक्ति को अपने कर्मानुसार फल भुगतना पड़ता है।
  2. यह उक्ति सत्य है-
    जो जस करहिं, सो तस फल चाखा।
  3. भाषा सरल, व्यंग्यपूर्ण एवं मुहावरेदार है। जैसे-ब्रह्माण्ड छानना।
  4. लेखक ने मानव को सत्कर्म करने की शिक्षा दी है।

3. क्या बताऊँ? गरीबी की बीमारी थी पाँच साल हो गये, पेंशन पर बैठे, पर पेंशन अभी तक नहीं मिली। हर दस पन्द्रह दिन में एक दरख्वास्त देते थे, पर वहाँ से यही जवाब मिलता, “विचार हो रहा है।” इन पाँच सालों में सब गहने बेचकर हम लोग खा गये। फिर बर्तन बिके। अब कुछ नहीं बचा था। फाके होने लगे थे। चिन्ता में घुलते-घुलते और भूखे मरते-मरते उन्होंने दम तोड़ दिया।” (2009, 17)

सन्दर्भ :
पूर्ववत्। प्रसंग-भोलाराम की पत्नी नारद को अपने पति की बीमारी के विषय में बताती है।

व्याख्या :
भोलाराम की बीमारी के विषय में उसकी पत्नी कहती है कि उन्हें गरीबी की बीमारी थी। वे पाँच साल पहले नौकरी पूरी करके पेंशन पर गये थे किन्तु आज तक पेंशन नहीं मिली है। वे पेंशन पाने की कोशिश में लगे रहते थे। दस-पन्द्रह दिन बाद पेंशन के लिए दरख्वास्त लिखते थे। वहाँ पता लगता था कि अभी पेंशन देने पर विचार किया जा रहा है। गरीबी के कारण पेंशन के अभाव में हमने अपने सभी गहने बेचकर अपना पेट भरा। इसके बाद घर के बर्तन बेचकर काम चलाया। अब घर में कुछ नहीं बचा था। भूखे पेट रहने लगे थे। पेंशन की चिन्ता और पेट की भूख से परेशान रहते हुए वे इस संसार से चल बसे।।

विशेष :

  1. सरकारी अधिकारियों के अमानवीय व्यवहार के घातक परिणाम का चित्रण किया गया है।
  2. सरल, सुबोध तथा व्यंग्यात्मक शैली को अपनाया है।
  3. व्यावहारिक खड़ी बोली का प्रयोग हुआ है।

4. “आप हैं बैरागी ! दफ्तरों के रीति-रिवाज नहीं जानते। असल में भोलाराम ने गलती की। भई यह भी एक मन्दिर है। यहाँ भी दान-पुण्य करना पड़ता है। आप भोलाराम के आत्मीय मालूम होते हैं। भोलाराम की दरख्वास्तें उड़ रही हैं, उन पर वजन रखिए।” (2008)

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
उपर्युक्त कथन पेंशन दफ्तर के साहब का नारद जी के प्रति है। वे उनको दान-पुण्य के विषय में समझा रहे हैं। साहब नारद जी को पेंशन के कागजों पर वजन रखने के लिए कहते हैं।

व्याख्या :
प्रस्तुत गद्यांश में नारद जी को पेंशन कार्यालय के साहब सरकारी कार्यालयों की गतिविधियों से परिचित करवा रहे हैं। जब नारद जी को साहब की बात समझ में नहीं आयी तो उन्होंने कहा कि भोलाराम ने जो गलती की वह आप न करें। यदि आप मेरा कहा मान लेंगे तो आपका कार्य पूर्ण हो जायेगा। आप इस कार्यालय को देवालय समझेंगे तभी आपको सफलता मिलेगी। जिस प्रकार ईश्वर से सम्पर्क करने के लिए व्यक्ति को मन्दिर के पुजारी के समक्ष दान-दक्षिणा देनी पड़ती है।

उसी प्रकार इस कार्यालय में भी आपको अधिकारी से सहयोग करने के लिए भोलाराम की दरख्वास्तों पर ‘वजन’ रखना होगा, क्योंकि बिना वजन के दरख्वास्तें उड़ रही हैं। आपको यह बात मैं केवल इस कारण बता रहा हूँ कि आप भोलाराम के प्रियजन हैं। इसी कारण इन दरख्वास्तों पर वजन रख दें। जिससे कि भोलाराम द्वारा की गयी गलती सुधर जाय। इस प्रकार नारद जी से रिश्वत देने के लिए व्यंग्य में कहा है।

विशेष :

  1. भाषा शैली व्यंग्य प्रधान है। उर्दू शब्दों का प्रयोग है; जैसे-दफ्तर, असल, दरख्वास्तें आदि।
  2. लेखक ने कार्यालय के साहब पर व्यंग्य किया है।

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5. साहब ने कुटिल मुस्कान के साथ कहा, “मगर वजन चाहिए। आप समझे नहीं। जैसे आपकी यह सुन्दर वीणा है, इसका भी वजन भोलाराम की दरख्वास्त पर रखा जा सकता है। मेरी लड़की गाना-बजाना सीखती हैं। यह मैं उसे दूंगा। साधु सन्तों की वीणा से तो और अच्छे स्वर निकलते हैं।”

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
नारद जी जब भोलाराम की पेंशन के सन्दर्भ में साहब के दफ्तर में प्रविष्ट हो जाते हैं तो वे नारद जी को भोलाराम की दरख्वास्त पर वजन रखने को कहते हैं।

व्याख्या :
जब नारद जी भोलाराम की पेंशन के विषय में जानने के लिए कार्यालय में साहब के पास जाते हैं, तब साहब क्रूरता से मुस्करा कर नारद जी से कहते हैं। इस दरख्वास्त पर वजन रखिये। ‘वजन’ का अभिप्राय न समझने पर साहब उदाहरण के लिए कहते हैं आपकी यह वीणा बहुत ही खूबसूरत है। इसके अतिरिक्त आपके पास और कुछ है भी नहीं। अतः बिना वजन के भोलाराम की दरख्वास्त पर कार्यवाही प्रारम्भ नहीं होगी। वजन के रूप में नारद जी को अपनी वीणा गँवानी पड़ी।

ऐसा इस कारण हुआ क्योंकि साहब की लड़की को गायन-वादन का शौक था। अतः साहब ने वीणा को उपयोगी समझकर नारद जी से वजन स्वरूप माँग ली। इसके अतिरिक्त साहब ने यह भी कहा कि यह वीणा मैं अपनी पुत्री को उपहार स्वरूप दे दूँगा। उन्होंने नारद जी की वीणा की भी प्रशंसा की और कहा कि साधु और महात्माओं की वीणा के स्वर वास्तव में, बहुत अच्छे निकलते हैं। यह कहकर साहब ने साधु-सन्तों की प्रशंसा की है।

विशेष :

  1. लेखक ने रिश्वत के लिए व्यंग्य में संकेतात्मक शब्द ‘वजन’ का प्रयोग किया
  2. उर्दू शब्दों का प्रयोग है; जैसे-वजन, दरख्वास्त।
  3. शैली व्यंग्यात्मक है।