MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 3 जननी जन्मभूमिश्च

MP Board Class 11th Hindi Swati Solutions गद्य Chapter 3 जननी जन्मभूमिश्च

जननी जन्मभूमिश्च अभ्यास

जननी जन्मभूमिश्च अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
“गंगा और गंगा के कछार को मेरा सलाम कहें” यह कथन लेखक से किसने कहा?
उत्तर:
गंगा और गंगा के कछार को मेरा सलाम कहें; यह कथन लेखक से बनारस के रहने वाले एक व्यक्ति ने कराची में कहा।

प्रश्न 2.
जननी और जन्मभूमि किससे अधिक श्रेष्ठ है? (2009, 6)
उत्तर:
जननी और जन्मभूमि स्वर्ग से भी अधिक श्रेष्ठ है।

प्रश्न 3.
आजादी की लड़ाई में ‘बड़े घर’ से आशय था? सही उत्तर लिखिए।
(अ) महल
(ब) जेलखाना
(स) बहुत बड़ी हवेली
(द) विशाल मकान।
उत्तर:
(ब) जेलखाना।

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जननी जन्मभूमिश्च लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
मातृभूमि और स्वर्ग में क्या अन्तर है?
उत्तर:
मातृभूमि स्वर्ग से श्रेष्ठ होती है। मातृभूमि की गोद में हमारा लालन-पालन होता है। जिस प्रकार मानव अपनी माँ के कर्ज से उऋण नहीं हो सकता, तद्नुरूप अपनी मातृभूमि से भी उऋण नहीं हो सकता।

प्रश्न 2.
फूल की कामना क्या है?
उत्तर:
फूल की एक प्रबल कामना थी कि हे माली ! तुम मुझे तोड़ने के पश्चात् उस पथ पर फेंक देना जिस पथ से मातृभूमि के हितार्थ अपने प्राण प्रसूनों को अर्पित करने वाले शहीद गुजरते हैं।

प्रश्न 3.
गाय के दूध से माँ के दूध की तुलना क्यों नहीं की जा सकती? (2014, 17)
उत्तर:
गाय के दूध की तुलना माँ के दूध से इसलिए नहीं की जा सकती क्योंकि गाय का दूध यत्र-तत्र सर्वत्र बाजार-हाट में उपलब्ध होता है। इसको व्यक्ति धन देकर खरीद सकता है। लेकिन माँ का दूध मूल्यवान है, कोई भी इसका मूल्य चुकता नहीं कर सकता।

प्रश्न 4.
लेखक ने अपने भारतीय हमवतन के चार सौ साल स्वर्ग को किस सुख पर हजार बार न्यौछावर किया है?
उत्तर:
लेखक ने अपने भारतीय हमवतन के चार सौ साल के स्वर्ग को मातृभूमि के सुख पर हजार बार न्यौछावर किया है, क्योंकि मातृभूमि के समान सुख एवं अपनत्व अन्यत्र प्राप्त होना दुर्लभ है।

जननी जन्मभूमिश्च दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
जन्मभूमि के प्रति प्रेम और राष्ट्र प्रेम में कोई अन्तर्विरोध नहीं है। पाठ के आधार पर स्पष्ट कीजिए। (2009)
उत्तर:
जन्मभूमि के प्रति प्रेम और राष्ट्र प्रेम में कोई अन्तर्विरोध नहीं है। उसका प्रमुख कारण है कि जो व्यक्ति जन्मभूमि के प्रति प्रेम व आस्था रखता है तथा मानव मूल्यों को समझता है वही व्यक्ति राष्ट्रीय दायित्व का भली प्रकार निर्वाह कर सकता है। मानव को अपने जीवन में विभिन्न प्रकार की परिस्थितियों में दूसरों की भावनाओं का सम्मान करते हुए आगे बढ़ना पड़ता है और तभी देशभक्ति का सही अर्थ चरितार्थ होता है। राष्ट्र के प्रति व्यक्ति तभी प्रेम कर सकता है, जबकि उसको अपनी जन्मभूमि से स्नेह हो।

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प्रश्न 2.
लेखक के नीग्रो कवि मित्र ने अमेरिका के सम्बन्ध में क्या विचार व्यक्त किए?
उत्तर:
लेखक के नीग्रो कवि मित्र ने अमेरिका के सम्बन्ध में अपने विचार इस प्रकार व्यक्त किए हैं कि यह कचरा फेंक उपभोक्ता का देश एवं यह आदमी और आदमी के बीच अदृश्य झिल्ली की दीवार बनाने वाली संस्कृति का देश है।

यह खरीदो-वह खरीदो के पागलपन वाला देश अगर वह स्थान स्वर्ग है तो फिर नरक कहाँ है? मन देश की छोटी-छोटी वस्तुओं के लिए तरसता रहता है। तब भी स्वर्ग इसको नहीं छोड़ पाता। यद्यपि स्वर्ग के प्राणी उसे दुतकारते हैं, विभिन्न प्रकार से अपमानित करते हैं लेकिन दुर्भाग्य की बात है कि स्वर्ग में द्वितीय श्रेणी के नागरिक का अधिकार प्राप्त करने के लिए उसे अपने देश की सरकार की सहायता की आवश्यकता पड़ती है। वह अपनी सरकार से अपेक्षा रखता है क्योंकि वह अपनी सरकार को विदेशी मुद्रा देता है।

लेकिन व्यक्ति उस समय इस बात को भूल जाता है कि मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर है। अतः अन्त में यह कहा जा सकता है कि नीग्रो कवि ने भी विदेश के महत्व को नकारते हुए मातृभूमि को श्रेष्ठ ठहराया है।

प्रश्न 3.
अपभ्रंश के पुराने दोहे में देश का सबसे बड़ा घर किसे कहा गया है और क्यों?
उत्तर:
अपभ्रंश के पुराने दोहे में देश का सबसे बड़ा घर वह है जहाँ प्यारे बन्धु रहते हैं। जो प्रत्येक व्यक्ति को दुःखों को सहने की क्षमता प्रदान करते हैं। वे दुःखी व्यक्ति के घावों पर मरहम अपने मधुर वचनों से लगाते हैं।

अत: देश का सबसे बड़ा घर यदि एक साधारण झोंपड़ी को कहा जाये तो उचित ही है। श्रीराम ने चित्रकूट में स्वयं पर्णकुटी बनायी तथा सुखपूर्वक निवास किया।

अन्य सुरम्य स्थान राधा की गौशाला है जहाँ श्रीकृष्णजी स्वयं गायों का दूध दुहने के लिए जाते थे। इसके अतिरिक्त भगवान बुद्ध की साधारण-सी आम की बगिया जहाँ पर उन्होंने महल त्यागने के पश्चात् अपना निवास स्थान बनाया और वैशाली की नगर वधू आम्रपाली को भिक्षा में लिया।

इसके अतिरिक्त जनसाधारण को सत्य, अहिंसा एवं प्रेम का पाठ पढ़ाने वाले महात्मा गाँधी भी साबरमती आश्रम में साधारण सी कुटिया में रहे। गाँधी जी सच्चे अर्थों में आज भी जनसाधारण के हृदय में विद्यमान हैं।

अतः निष्कर्ष में कह सकते हैं कि वह स्थान ही बड़ा घर है जहाँ कि सच्चरित्र व्यक्ति रहते हैं।

प्रश्न 4.
सप्रसंग व्याख्या कीजिए
(अ) देश का वरण……………बस हो जाता है।
(ब) वह अपनी निजता……………..”प्राप्त नहीं होता।
उत्तर:
(अ) सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य पुस्तक के निबन्ध ‘जननी जन्मभूमिश्च से उद्धत किया गया है। इसके लेखक ‘विद्यानिवास मिश्र’ हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण में मिश्र जी ने यह बताने का प्रयास किया है कि मातृभूमि का अन्य विकल्प नहीं है।

व्याख्या :
लेखक का कथन है कि जब लोग अपने देश की धरती को छोड़कर विदेशों में गमन करते हैं, तो वहाँ रहकर विवशता एवं आवश्यकतावश उन्हें उस देश के वातावरण में स्वयं को ढालने का प्रयास करना पड़ता है। लेकिन अपनी धरती माँ के सदृश पूज्यनीय एवं वन्दनीय है, उसको अंगीकार करने का प्रश्न ही नहीं उठता। वह तो मानव के हृदय पटल पर जन्म से ही अंकित रहती है। जिस प्रकार पुत्र का अपनी माँ के प्रति असीम अनुराग होता है, तदनुरूप व्यक्ति का मातृभूमि की मिट्टी के प्रति असीम लगाव होता है। विदेशों में भी जब उसके देश की चर्चा होती है तब भावनाओं का कोमल सागर हृदय में तरंगें लेने लगता है।

(ब) सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
मिश्र जी का कथन है प्रवासी भारतीय विदेशों में रहकर भी अपने देश के प्रति प्रेम से जुड़े रहना चाहते हैं।

व्याख्या :
मिश्र जी विदेश यात्रा पर गये। वहाँ प्रवासी भारतीयों की बातचीत से उनकी दुविधा उजागर हुई कि विदेशों में रहते हुए भी वे अपनी निजता या मातृभूमि के प्यार को किसी भी दशा में त्यागने के लिए तैयार नहीं है। यद्यपि उन्हें विदेशी भाषाओं का ज्ञान नहीं था लेकिन भोजपुरी एवं थाई भाषा बोलने में पूरी तरह सक्षम थे। उनकी यह हार्दिक अभिलाषा थी कि वृद्धावस्था के आगमन पर वह अपनी मातृभूमि के प्रांगण में ही जीवनयापन करें।

मृत्यु की गोद में सोने से पूर्व तुलसी दल तथा गंगा के पवित्र जल की एक बूंद उसके गले में अवश्य डाली जाये। मानव मातृभूमि के प्रति अपने अपनत्व को इतना महत्व देता है जितना कंठगत प्राण को वह येन-केन प्रकारेण बचाने का भरसक प्रयास करता है। ये अपनी जड़ से अथवा मातृभूमि से जुड़े रहने का जीवन्त प्रमाण है। मातृभूमि की मिट्टी में जो प्यार निहित है, वह सौभाग्य का प्रतीक है। ऐसा अनुराग अन्यत्र मिलना दुर्लभ है।

प्रश्न 5.
भाव पल्लवन कीजिए
(अ) मुल्क बदल जाये, वतन तो वतन होता है।
उत्तर:
प्रस्तुत कथन में मिश्र जी ने विदेशों की धरती पर रहने वाले व्यक्ति का अपने देश के प्रति लगाव एवं प्यार को व्यक्त किया है।

मुझे मेरे देश का ही एक व्यक्ति करांची की सैर कराने में सहायक हुआ। उसने मेरा इतना स्वागत किया कि मेरे हृदय-तन्त्री के तारों को झंकृत कर दिया। मेरी वायुयान से दूसरी उड़ान का समुचित प्रबन्ध कर दिया। जब लेखक ने उससे विदा माँगी तो उसके नेत्रों में आँसू झलकनोलगे। उसने कहा कि अपना वतन अपना ही होता है। देशों के परिवर्तन से व्यक्ति के अपने देश के प्रति अनुराग में तनिक भी कमी नहीं आती।

(ब) जननी जन्मभूमिश्च स्वर्गादपि गरीयसी।
उत्तर:
प्रस्तुत कथन का भाव है कि जननी एवं जन्मभूमि स्वर्ग से भी श्रेष्ठ है। इस तथ्य को राम ने लंका के सत्कार को ठुकराकर मातृभूमि के प्रति अपने स्नेह को व्यक्त किया है। इस युक्ति की सार्थकता अचानक पाकिस्तानी की आँखों में छलछलाने वाले अश्रु बिन्दुओं में साकार रूप से दृष्टिगोचर हो रही थी। मनुष्य को मातृभूमि की महत्ता का ज्ञान विदेशों में रहने पर ही ज्ञात होता है, जहाँ आडम्बर एवं बाह्य प्रदर्शन का बोलबाला है।

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प्रश्न 6.
‘जननी जन्मभूमिश्च’ पाठ के आधार पर ‘मातृभूमि स्वर्ग के समान है’ विषय के पक्ष में तीन उदाहरण देकर अपनी बात समझाइए। (2010)
उत्तर:
मातृभूमि स्वर्ग से भी बढ़कर होती है। इसका कारण है कि हम जन्म लेते ही मातृभूमि पर पैर रखते हैं। वह हमारा भार सहन करती है, हमारी लात सहती है। मातृभूमि ही हमें भोजन, पानी, फल आदि देती है और बड़ा करती है। मातृभूमि हमें अनायास ही सब कुछ देती है। इस तरह मातृभूमि स्वर्ग के समान ही नहीं उससे भी अधिक महत्व की है। यही कारण है कि मातृभूमि को भूल पाना असम्भव है।

जननी जन्मभूमिश्च भाषा अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के हिन्दी रूप लिखिए-
वतन, मुल्क, सलाम, जाहिल, हकीकत, कैदखाना।
उत्तर:
देश, राष्ट्र, प्रणाम, अशिक्षित, वास्तविक, बन्दीगृह।

प्रश्न 2.
निम्नलिखित वाक्यांश के लिए एक शब्द लिखिए
(क) राष्ट्र से सम्बन्धित भाव
(ख) आध्यात्म से सम्बन्धित
(ग) व्यवसाय से सम्बन्धित
(घ) बूढ़ा होने की अवस्था।
उत्तर:
(क) राष्ट्रीय
(ख) आध्यात्मिक
(ग) व्यावसायिक
(घ) वृद्धावस्था।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित अशुद्ध वाक्यों को शुद्ध करके लिखिए
उत्तर:
(अ) अशुद्ध-मोहन कुत्ते को डण्डे से मारा।
शुद्ध-मोहन ने कुत्ते को डण्डे से मारा।

(आ) अशुद्ध-क्या आप खाना खा लिए हैं?
शुद्ध-क्या आपने खाना खा लिया है?

(इ) अशुद्ध-दरवाजे पर कौन आई है?
शुद्ध-दरवाजे पर कौन आया है?

(ई) अशुद्ध- मेरा बेटा और बेटी बाजार गई हैं।
शुद्ध-मेरा बेटा और बेटी बाजार गये हैं।

(उ) अशुद्ध- इतना मीठा चाय मैं नहीं पी सकती हूँ।
शुद्ध-इतनी मीठी चाय मैं नहीं पी सकती हूँ।

प्रश्न 4.
निम्नलिखित मुहावरों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
पसरा होना, घेरे में डालना, आँखें छलछला आना, स्वर्ग बना रहना, लात सहना, भारी पड़ना।
उत्तर:

  1. पसरा होना-प्लेटफार्म पर यात्री रेलगाड़ी की प्रतीक्षा में यत्र-तत्र पसरे हुए थे।
  2. घेरे में डालना-पुलिस ने अपराधियों को घेरे में डालकर बन्दी बना लिया।
  3. आँखें छलछला आना-विदेश में अपनी मातृभूमि का प्रकरण आते ही मेरी आँखें छलछला उठीं।
  4. स्वर्ग बना रहना-आत्मीयता के माध्यम से ही धरती पर स्वर्ग बना रहेगा।
  5. लात सहना-विदेशी शासन में भारतीयों को अंग्रेजों को लात सहनी पड़ी।
  6. भारी पड़ना-भारतीय क्रिकेट टीम इस बार कंगारुओं (ऑस्ट्रेलिया) पर भारी पड़ी।

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जननी जन्मभूमिश्च पाठ का सारांश

प्रस्तुत निबन्ध के लेखक श्री विद्यानिवास मिश्र हैं। ललित निबन्ध लेखन के क्षेत्र में उनका विशिष्ट स्थान है। प्रस्तुत निबन्ध में लेखक ने ऐतिहासिक प्रसंगों एवं विभिन्न संस्मरणों के माध्यम से जन्मभूमि के महत्त्व का दिग्दर्शन कराया है। जन्मभूमि का कोई भी विकल्प नहीं है। पौराणिक उदाहरणों एवं लोकगीत के माध्यम से जन्मभूमि की महिमा का बखान किया है। प्रवासी भारतीयों की भावनाओं को भी व्यक्त किया है जो अपनी मातृभूमि के प्रति लगाव रखते हैं। फूल भी मौन रूप से अपनी यह इच्छा व्यक्त करता है कि उसे देश की बलि वेदी पर प्राण-प्रसून अर्पित करने वाले वीरों के मार्ग पर बिखेर दिया जाये। लेखक के मतानुसार मानवीय मूल्यों पर प्रतिष्ठित भावना, मातृभूमि के प्रेम में बाधक नहीं है।

जननी जन्मभूमिश्च कठिन शब्दार्थ

प्रवास = विदेश में रहने वाला। उत्कण्ठा = आकांक्षा। कोफ्त = खीझ। कानून की कैद – कानून का बन्धन। मुल्क = देश। वतन = मातृभूमि, जन्मभूमि। अपि = भी। रोचते = अच्छी लगती। स्वर्गादपि गरीयसी = स्वर्ग से बढ़कर। सार्थकता वास्तविकता। बेकाबू = काबू से बाहर। दायित्व = जिम्मेदारी। निष्ठा = आस्था। सुधि = याद। लोकाचार = सामाजिक रीति-रिवाज। सुलक्षण कन्या = अच्छे गुणों वाली लड़की। नीग्रो = अश्वेत अमेरिकन नागरिक। जाहिल = अशिष्ट। भौतिक सुख-सुविधा = सांसारिक सुख-सुविधा। आध्यात्मिक = आत्मा सम्बन्धी, ब्रह्म और जीव से सम्बन्धित। उपभोक्ता = उपभोग करने वाला। अदृश्य झिल्ली = जो झिल्ली दिखायी न दे। उद्वेलित = उद्विग्न। विरक्ति = अलगाव, विराग। अनबूझ पहेली = अनसुलझी पहेली। दुतकारते = प्रताड़ित करना। विडम्बना = विसंगति। अपेक्षा = आशा करना। अलाव = आग जलाने का वह स्थान जिसके चारों ओर लोग बैठकर आग तापते हैं। निरुपायता = कोई उपाय न होना। उत्सुकता = जिज्ञासा। बहिश्त = स्वर्ग। रूमानी = रसिक, रस से युक्त। लुभावना = मन को अच्छा लगना। प्रवासी भारतीय = अन्य देश में रहने वाले भारतीय। विवशता = मजबूरी, लाचारी। आत्मीयता = अपनत्व, स्नेह के साथ। मार्गदर्शक = मार्ग दिखाने वाला। परिमार्जित = परिष्कृत। प्रतिबिम्ब = परछाईं। तृप्त = सन्तुष्ट। निजता = अपनापन। कण्ठगत प्राण = गले तक आ चुके प्राण, प्राण निकलने की स्थिति। अपभ्रंश = एक भाषा। बड़प्पन = श्रेष्ठता, बड़ाई। आराध्य = इष्ट देव, जिसकी आराधना की जाये। मुमूर्ष = मरणासन्न, मरण का इच्छुक। पेरियार = केरल प्रान्त का एक क्षेत्र। नवनीत = मक्खन। न्यौछावर = निछावर, समर्पण।

जननी जन्मभूमिश्च संदर्भ-प्रसंग सहित व्याख्या

1. देश का वरण न जाने किन-किन दबावों और जरूरतों से आदमी करता है पर माँ का कोई वरण नहीं करता, न कोई जन्मभूमि का वरण करता है। वह माँ का बस बेटा होता है, जन्मभूमि का, माटी का बस हो जाता है। (2008, 14, 17)

सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यावतरण हमारी पाठ्य पुस्तक के निबन्ध ‘जननी जन्मभूमिश्च से उद्धत किया गया है। इसके लेखक ‘विद्यानिवास मिश्र’ हैं।

प्रसंग :
प्रस्तुत अवतरण में मिश्र जी ने यह बताने का प्रयास किया है कि मातृभूमि का अन्य विकल्प नहीं है।

व्याख्या :
लेखक का कथन है कि जब लोग अपने देश की धरती को छोड़कर विदेशों में गमन करते हैं, तो वहाँ रहकर विवशता एवं आवश्यकतावश उन्हें उस देश के वातावरण में स्वयं को ढालने का प्रयास करना पड़ता है। लेकिन अपनी धरती माँ के सदृश पूज्यनीय एवं वन्दनीय है, उसको अंगीकार करने का प्रश्न ही नहीं उठता। वह तो मानव के हृदय पटल पर जन्म से ही अंकित रहती है। जिस प्रकार पुत्र का अपनी माँ के प्रति असीम अनुराग होता है, तदनुरूप व्यक्ति का मातृभूमि की मिट्टी के प्रति असीम लगाव होता है। विदेशों में भी जब उसके देश की चर्चा होती है तब भावनाओं का कोमल सागर हृदय में तरंगें लेने लगता है।

विशेष :

  1. प्रवासी भारतीयों का अपने देश के प्रति अगाध स्नेह को दर्शाया है।
  2. मानवीय भावनाओं का अंकन है।
  3. शैली प्रांजल एवं प्रभावपूर्ण है।

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2. इस आदमी की दुविधा एक मानवीय दुविधा है, वह अपनी निजता का प्रतिबिम्ब तो पाना चाहता है, पाकर तृप्त भी होता है, पर अपनी निजता को खोना नहीं चाहता, कंठगत प्राण की तरह उसे बचाये रखना चाहता है। शायद अपनी जड़ से इतना लगाव न होता तो इतना प्यार, अनायास दूसरे से पाने का सौभाग्य प्राप्त नहीं होता। (2009, 11)

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
मिश्र जी का कथन है प्रवासी भारतीय विदेशों में रहकर भी अपने देश के प्रति प्रेम से जुड़े रहना चाहते हैं।

व्याख्या :
मिश्र जी विदेश यात्रा पर गये। वहाँ प्रवासी भारतीयों की बातचीत से उनकी दुविधा उजागर हुई कि विदेशों में रहते हुए भी वे अपनी निजता या मातृभूमि के प्यार को किसी भी दशा में त्यागने के लिए तैयार नहीं है। यद्यपि उन्हें विदेशी भाषाओं का ज्ञान नहीं था लेकिन भोजपुरी एवं थाई भाषा बोलने में पूरी तरह सक्षम थे। उनकी यह हार्दिक अभिलाषा थी कि वृद्धावस्था के आगमन पर वह अपनी मातृभूमि के प्रांगण में ही जीवनयापन करें।

मृत्यु की गोद में सोने से पूर्व तुलसी दल तथा गंगा के पवित्र जल की एक बूंद उसके गले में अवश्य डाली जाये। मानव मातृभूमि के प्रति अपने अपनत्व को इतना महत्व देता है जितना कंठगत प्राण को वह येन-केन प्रकारेण बचाने का भरसक प्रयास करता है। ये अपनी जड़ से अथवा मातृभूमि से जुड़े रहने का जीवन्त प्रमाण है। मातृभूमि की मिट्टी में जो प्यार निहित है, वह सौभाग्य का प्रतीक है। ऐसा अनुराग अन्यत्र मिलना दुर्लभ है।

विशेष :

  1. लेखक की गहन अनुभूति विद्यमान है।
  2. भाषा में कोमल कमनीयता का समावेश है।
  3. शैली सरस, सरल एवं सुबोध है।

3. स्वर्ग से मातृभूमि इसलिए ही शायद बड़ी है कि स्वर्ग का भोग करने वाला अपने को ऊँचा समझने लगता है, मातृभूमि से प्यार करने वाला विनम्र बना रहता है, यह समझने के लिए कि जैसे अपनी भूमि के लिए तड़पता है, वैसे ही दूसरा भी तड़पता होगा। बड़प्पन कहीं रहने से या कहीं न रहने से नहीं आता है, आता है दूसरे को बड़प्पन देने से, दूसरे के दुःख को अपना दुःख मानने से। (2013)

सन्दर्भ :
पूर्ववत्।

प्रसंग :
मिश्र जी ने इस गद्यांश में मानवीय विनम्रता की महत्ता को उजागर किया गया है।

व्याख्या :
सामान्यतः स्वर्ग को सबसे उत्तम माना गया है, किन्तु जन्मभूमि से भी बढ़कर जो स्वर्ग का उपभोग करता है, वह स्वयं को अन्य से ऊँचा समझता है, परन्तु मातृभूमि को प्रेम करने वाला शिष्ट एवं नम्र बना रहता है। उसमें बड़े होने का गर्व नहीं आता है। वह जानता है कि जैसे मेरे मन में अपनी जन्मभूमि के लिए तड़पन है, वैसी ही तड़पन औरों में भी अपनी मातृभूमि के लिए अवश्य होगी। श्रेष्ठता किसी विशेष स्थान पर रहने अथवा नहीं रहने से नहीं आती है। यह तो दूसरे को श्रेष्ठ मानने से प्राप्त होती है, औरों के कष्ट को अपना कष्ट मानने से बड़प्पन आता है।

विशेष :

  1. जन्मभूमि के प्रति प्यार हृदय में विनम्रता का संचार करता है।
  2. सरल, सुबोध, व्यावहारिक भाषा का प्रयोग किया गया है।
  3. तर्कपूर्ण विवेचनात्मक शैली में विषय को स्पष्ट किया गया है।

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