MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 4 ग्राम-श्री

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 4 ग्राम-श्री (कविता, सुमित्रानन्दन पन्त)

ग्राम-श्री पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

ग्राम-श्री लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
पाठ में आई पंक्तियों के आधार पर सही जोड़ी बनाइए
(क) हरियाली – बालू के साँपों-सी
(ख) रवि के किरणें – मोती के दानों-से
(ग) आम्र-तरु – मखमल-सी
(घ) गंगा की रेती – चाँदी की-सी.
(ङ) हिमकन – रजत स्वर्ण मंजरियों-से
उत्तर:
(क) हरियाली – मखमल-सी
(ख) रवि की किरणें – चाँदी की-सी
(ग) आम्र-तरु – रजत स्वर्ण मंजरियों-से
(घ) गंगा की रेती – बालू के साँपों-सी
(ङ) हिमकन – मोती के दानों-से।

प्रश्न 2.
खेतों पर पड़ती हुई सूर्य की किरणें कैसी प्रतीत हो रही हैं?
उत्तर:
खेतों पर पड़ती हुई सूर्य की किरणें चाँदी की उजली जाली-सी प्रतीत हो रही हैं।

प्रश्न 3.
कवि ने सोने की किंकणियाँ किसको कहा है?
उत्तर:
कवि ने सोने की किंकणियाँ अरहर और सनई की पकी हुई फलियों को कहा है।

प्रश्न 4.
हरे-हरे तिनके कैसे दिखाई दे रहे हैं?
उत्तर:
हरे-हरे तिनके हरे खून की तरह दिखाई दे रहे हैं।

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ग्राम-श्री दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविता में वर्णित खेतों के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
खेतों का सौन्दर्य बड़ा ही अनूठा दिखाई दे रहा है। खेतों में दूर-दूर तक मखमल के समान कोमल हरियाली फैली हुई दिखाई दे रही है। उस पर जब सूर्य की किरणें पड़ती हैं, तब वह चाँदी के समान चमक उठती है। हरे-हरे तिनकों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तब हरे खून की तरह झलकते हुए दिखाई देते हैं। अरहर और सनई की पकी हुई फलियाँ घुघरू की तरह सुन्दर ध्वनि करती हैं। सरसों के पीले-पीले फूलों से तेल से युक्त सुगन्ध उड़ रही है। तीसी (अलसी) की कली हरी-भरी धरती पर झाँकती हुई दिखाई दे रही है। उधर खेतों में दूर-दूर तक पालक लहलहा रहे हैं, धनिया महक रही है, लौकी और सेम की फली मखमल की तरह लाल टमाटर और मिरचों की बड़ी हरी थैली दिखाई दे रही है।

प्रश्न 2.
भू पर आकाश उतरने का अनुभव कब होता है?
उत्तर:
भू पर आकाश उतरने का अनुभव उस समय होता है, जब चारों ओर घना कोहरा छा जाता है। सूर्य की किरणें कुहरे में उछलकर रह जाती हैं। फलस्वरूप अँधेरा और धुन्ध फैल जाता है। इससे कोई दूर की वस्तु साफ-साफ नहीं दिखाई देती है। सारा वातावरण झिलमिलाते हुए सुबह से शाम तक बना रहता है। इस प्रकार का दृश्य सचमुच बड़ा ही रोचक और अद्भुत लगता है।

प्रश्न 3.
कवि ने ग्राम की तुलना मरकत डिब्बे से क्यों की है?
उत्तर:
कवि ग्राम की तुलना मरकत डिब्बे से की है। यह इसलिए कि गाँव के चारों ओर कुहरे का साम्राज्य फैला हुआ है। इससे धुन्धमय सारा वातावरण हो जाता है। इस प्रकार के धुन्धमय वातावरण पर सूरज का जब प्रकाश पड़ता है, और उलझकर रह जाता है, तव वह धुन्धमय वातावरण नीलमणि के समान चमक उठता है। इसे ही लक्ष्य करके कवि ने ग्राम की तुलना मरकत डिब्बे से की है।

ग्राम-श्री भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित पद्यांश की व्याख्या कीजिए-
(क) रोमांचित-सी लगती वसुधा ………… शोभाशाली॥
(ख) अब रजत स्वर्ण-मंजरियों से …………. मतवाली॥
उत्तर:
(क) शब्दार्थ :
तलक-तक। रवि-सूर्य, सूरज। हरित्-हरा। रुधिर-खून। श्यामल-सविला। भूतल-धरती। फलक-विस्तृत (फैला हुआ) भाग। रोमांचित-प्रसन्न। वसुधा-धरती। किंकिणियाँ-छोटे-छोटे घुघरू।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा महाकवि सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा विरचित काव्य-रचना ‘ग्राम श्री’ से ली गई है। इसमें महाकवि पन्त ने गाँव की शोभा बढ़ाने वाली खेतों की हरियाली का आकर्षक चित्र खींचा है। इस विषय में महाकवि पन्त का कहना है कि

व्याख्या :
खेतों में दूर-दूर तक फैली हुई हरियाली मखमल के समान कोमल और सुन्दर लग रही है। उस पर सूर्य का प्रकाश जब पड़ता है, तब वह चाँदी के समान सफेद होकर मन को अपनी ओर खींच लेती है। हवा से हिलते हुए हरे-भरे तिनकों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तब ऐसा लगता है कि मानो हरा खून झलक रहा है। इस प्रकार की धरती को देखकर ऐसा लगता है कि नीला आकाश आकर धरती पर झुक गया है। वह अपने सफेद और नीलिमा का विस्तार पूरी धरती पर करते। हुए अधिक सुन्दर लग रहा है। इस प्रकार खेतों में जौ, गेहूँ की जब बालियाँ आती हैं, तब उनसे सजकर सारी धरती अधिक. सुन्दर दिखाई देने लगती है। सोने की चमक-दमक के समान अरहर और सनई की फलियाँ घुघरू की तरह आवाज करती हुई बहुत अधिक अच्छी लगती हैं।

विशेष :

  1. खेतों में दूर-दूर तक फैली हरियाली का आकर्षक चित्र खींचा गया है।
  2. ‘मखमल-सी’ चाँदी की-सी और रोमांचित-सी में उपमा अलंकार है।
  3. भाषा तत्सम शब्दों की है।
  4. शृंगार रस का प्रवाह है।

(ख) शब्दार्थ :
भीनी-भीगी हुई। हरित-हरा। धरा-धरती। नीलम-नीला। रजत-चाँदी। आम्र-आम। मंजरियों-बौरों। तरु-पेड़। ढाक-पलाश। कोकिला-कोयल। मुकुलित-खिले हुए। दाडिम-अनार।

प्रसंग :
पूर्ववत्।

व्याख्या :
अब खेतों में तेल की सुगन्ध से भीगी हई सरसों पीले-पीले रंगों में फूल गई है। दूसरे शब्दों में अब खेतों में सरसों के पीले-पीले फूल दिखाई देने लगे हैं। उनकी सुगन्ध तेल से भीगी हुई होकर चारों ओर फैल रही है। हरी-भरी धरती पर तीसी (अलसी) के नीली-नीली कली खिल रही है। उसे देखने से ऐसा लगता है, मानो वह चुपचाप कुछ देख रही है। इसी प्रकार अब आम की डालियाँ सोने-चाँदी की तरह बौरों से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पत्ते झड़ रहे हैं। प्रकृति की इस चंचलता और सुन्दरता से मदमस्त होकर कोयल इधर-उधर कूकने लगी है। बागों में कटहल की सुगन्ध फैल रही है, तो जामुन खिली हुई सुन्दर लग रही है। झरबेरी झूलती हुई दिखाई दे रही है। इस प्रकार आड़, नीबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन और मूली खिलते हुए मन को छू रहे हैं।

विशेष :

  1. भाषा मिश्रित शब्दों की है।
  2. शैली वर्णनात्मक है।
  3. प्रकृति का सुखद चित्र उपस्थित किया गया है।
  4. वसन्त ऋतु का स्वाभाविक उल्लेख है।
  5. ‘पीली-पीली’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

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ग्राम-श्री भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों के पर्यायवाची शब्द लिखो।।
रवि, धरती, जंगल, वृक्ष, आकाश।
उत्तर:
पर्यायवाची शब्द
रवि – सूर्य, सूरज, दिनकर, दिवाकर।
धरती – धरा, भू, पृथ्वी, अवनि।
जंगल – वन, विपिन।
वृक्ष – पेड़, पादप, तरु।
आकाश – नभ, गगन, आसमान।

प्रश्न 2.
कविता में आए हुए देशज शब्द छाँटकर उनके मानक हिन्दी शब्द लिखिए।
उत्तर:
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ग्राम-श्री योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
प्राकृतिक सौन्दर्य से सम्बन्धिते चित्रों को खोजकर उसका अलबम तैयार कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।!

प्रश्न 2.
नदियाँ निरन्तर प्रदूषित हो रहीं हैं, नदियों के प्रदूषण के कारण और निदान को चित्रों के माध्यम से बनाइए तथा उसका प्रदर्शन कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।!

प्रश्न 3.
आपको शहर अच्छा लगता है या गाँव, इस विषय पर कारण सहित अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।!

ग्राम-श्री परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

ग्राम-श्री लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
धरती पर कौन झुका हुआ लग रहा है?
उत्तर:
धरती पर आकाश का स्वच्छ नीला फलक झुका हुआ लग रहा है।

प्रश्न 2.
भीनी तैलाक्त गन्ध किसकी उड़ रही है?
उत्तर:
भीनी तैलाक्त गन्ध सरसों के पीले-पीले फूलों से उड़ रही है।

प्रश्न 3.
नदी के किनारे पर कौन सोई रहती है?
उत्तर:
नदी के किनारे पर मगरौठी (एक चिड़िया विशेष) सोई रहती है।

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ग्राम-श्री दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
कविता में वर्णित बागों के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
कविवर सुमित्रानन्दन विरचित कविता ‘ग्राम श्री’ में बागों के सौन्दर्य का वर्णन स्वाभाविक होने के साथ-साथ अधिक रोचक है। कवि के अनुसार वागों में आम के पेड़ की डालें वीरों से लद गए हैं। वे सोने-चाँदी की तरह चमकती हुई सुन्दर लग रही हैं। पलाश और पीपल के पके हुए पत्ते झर रहे हैं। इस प्रकार के दृश्य से कोयल मतवाली होकर कू-कू की मधुर ध्वनि करने लगी है। दूसरी ओर कटहल की सुगन्ध फैल रही है। पकी हुई जामुन मन को छू रही है। जंगली झरवेरी झूलती हुई दिखाई दे रही है। आड़ फूल रहे हैं। इसी प्रकार नीबू, अनार, आलू, गोभी, बैगन और मूली भी। पीले-पीले मीठे अमरूदों पर पड़ी हुई लाल-लाल चित्तियाँ खूब सुन्दर लग रही हैं। पके हुए बेर सुनहरे और मधुर लग रहे हैं। इस प्रकार बगिया के छोटे-छोटे पेड़ों पर छोटे-छोटे छाजन मन को अपनी ओर खींच रहे हैं।

प्रश्न 2.
कोयल कब मतवाली हो उठती है?
उत्तर:
कोयल तब मतवाली हो उठती है, जब वसन्त ऋतु का आगमन होने लगता है। बागों में आमों की डालियाँ चाँदी-सोने जैसी चमक वाली मंजरियों (बौरों) से लद जाती हैं। ढाक और पीपल के पेड़ अपने-अपने पुराने पत्ते रूपी कपड़े उतार-उतार कर नए पत्ते रूपी कपड़ों को पहनने लगते हैं। इस प्रकार का. मदमस्त कर देने वाले वातावरण में कोयल मतवाली होकर कू-कू की अपनी मधुर तान छोड़ने लगती है।

प्रश्न 3.
कुहरे में कौन-कौन सुन्दर लगते हैं और क्यों?
उत्तर:
कुहरे में खेत, बाग, घर और वन बहुत सुन्दर लगते हैं। ऐसा इसलिए कि कुहरे से जब खेत, बाग, घर और वन ढक जाते हैं, तब उन पर सूरज की रोशनी सीधी नहीं पड़ती है। वह तो कुहरे से उलझकर रह जाती है। इससे खेत, बाग, घर और वन पर पड़ा हुआ कुहरा सतरंगी होकर बहुत सुन्दर लगने लगता है। इसे ही लक्ष्य करके कवि ने कहा है कि कुहरे में खेल, बाग, घर और वन बहुत ही सुन्दर लगते हैं।

ग्राम-श्री कवि-परिचय

प्रश्न.
श्री सुमित्रानन्दन पन्त का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताएँ लिखिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय :
श्री सुमित्रानन्दन पन्त प्रकृति के सुकुमार और मानवतावाद के प्रमुख कवि हैं। पन्त जी का जन्म उत्तराखण्ड राज्य के अल्मोड़ा जिले के कौसानी गाँव में 20 मई, 1910 को एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी आरम्भिक शिक्षा गाँव में हुई। इसके बाद की शिक्षा राजकीय स्कूल, अल्मोड़ा में हुई। इसके बाद उनकी शिक्षा काशी के जयनारायण स्कूल में हुई। आपने उच्चशिक्षा के लिए प्रयाग के म्योर सेन्ट्रल कॉलेज में प्रवेश लिया लेकिन गाँधी जी के असहयोग आन्दोलन में सक्रिय भाग लेने के कारण 1921 में कॉलेज की पढ़ाई छोड़ दी और स्वतन्त्र रूप से विभिन्न भाषा-साहित्य का अध्ययन किया। पन्तजी पर महात्मा गाँधी, कार्लमार्क्स, अरविन्द और विवेकानन्द के विचारों का गहरा प्रभाव पड़ा। सन् 1950 में आप आकाशवाणी के निदेशक नियुक्त हुए। आपकी साहित्यिक प्रतिभा का मूल्यांकने करके आपको ‘सहित्य-वाचस्पति’, ‘ज्ञानपीठ’, ‘पद्मभूषण’ आदि पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। 28 दिसम्बर, 1977 में 65 वर्ष की अल्पायु में ही पन्त जी इस संसार से सदा के लिए विदा होकर अमर हो गए।

काव्य :
i. महाकाव्य-लोकायतन।
ii. खण्ड-काव्य-ग्रन्थि।
iii.काव्य-संग्रह :
1. युगपथ, 2. उत्तरा, 3-वीणा, 4. पल्लव, 5. गुंजन, 6. उच्छ्वास, 7. युगान्त, 8. ग्राम्या, 9. रजत-रश्मि, 10. शिल्पी, 11. कला और बूढ़ा चाँद, 12. ऋता, 13. युगवाणी, 14. स्वर्ण-किरण, 15. स्वर्ण-धूलि, 16. अमिता, 17. वाणी, 18. सौ वर्ण, 19. चिदम्बरा और 20. पल्लविनी।

उपन्यास :
हार
कहानी :
संग्रह-पाँच कहानियाँ
अनुवाद :
मधुज्वाल
नाटक :
ज्योत्सना, परी, क्रीड़ा और रानी!
इनके अतिरिक्त पन्त जी ने गद्य-लेखन की आलोचना भी की है।

भाषा-शैली :
पन्त जी की भाषा सरल, सुस्पष्ट और मधुर है। उनकी भाषा की सर्वप्रधान विशेषता है-सरसता और प्रवाहमयता। इस प्रकार की भाषा में सामान्य और विशिष्ट शब्दों के मेल हुए हैं। कविवर जयशंकर प्रसाद की तरह आपकी भाषा अत्यन्त प्रौढ़ और गम्भीर न होकर सुकुमार, स्वाभाविक, ललित और भावप्रद है।

पन्तजी की शैली छायावादी शैली है। वह अलंकृत, गेय और बोधगम्य है। संगीत और नाद के अद्भुत मेल से वह झंकृत और मुखर हो उठी है। इस तरह कविवर पन्त की भाषा-शैली रोचक और अर्थपूर्ण सिद्ध होती है।

व्यक्तित्व :
पन्त जी मूलरूप से कवि रहे। उनका व्यक्तित्व इसीलिए काव्यात्मक कहा जा सकता है। उनके साहित्यिक व्यक्तित्व को ‘ज्ञानपीठ’, ‘साहित्य-वाचस्पति’ और ‘पद्मभूपण’ उपाधियों से अलंकृत किया गया। पन्तजी के व्यक्तित्व का दूसरा पक्ष है-‘सौभाग्यता’ और सौन्दर्य। पन्त अत्यन्त सरल और सहज स्वभाव के थे। उनका ‘बाहरी और भीतरी व्यक्तित्व अत्यधिक आकर्षक और मोहक रहा। वे सुदर्शन व्यक्तित्व वाले हिन्दी के अनोखे कवि के रूप में जाने गए।

महत्त्व :
पन्तं जी का साहित्यिक महत्त्व तब भी था और आज भी है। छायावादी स्तम्भों के वे एक महान स्तम्भ के रूप में युग-युग तक याद किए जाते रहेंगे। उनकी काव्य-चेतना की दार्शनिक उपलब्धियाँ भी एक महत्त्वपूर्ण देन के रूप में स्वीकार की जाती रहेंगी।

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ग्राम-श्री भाव सारांश

प्रश्न.
कविवर सुमित्रानन्दन पन्त विरचित कविता ‘ग्राम श्री’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
कविवर सुमित्रानन्दन पन्त विरचित कविता ‘ग्राम श्री’ एक रोचक और हृदयस्पर्शी है। इसमें प्रकृति की सुन्दरता का कई रूपों में चित्रण किया गया है। खेतों में दूर-दूर तक मखमल की तरह हरियाली फैली हुई है। उस पर सूर्य की किरणें पड़कर चाँदी की तरह दिखाई देती हैं। हरे-हरे तिनके की झलक अधिक सुन्दर लगती है। अरहर, सनई, जौ और गेहूँ की बालियों से लदी हुई यह धरती अधिक प्रसन्न हो रही है। चारों ओर तेल से युक्त गन्ध उड़ रही है। पीले रंग का फूल सरसों और नीले रंग की तीसी भी अपनी सुन्दरता को फैला रही है। चाँदी और सोने की तरह आम में बौर आ चुके हैं, ढाक और पीपल के पत्तों को झरते हुए देखकर मतवाली कोयल बोल रही है, कटहल, जामुन, झरबेरी, आड़, नीबू, अनार, आलू, गोभी, बैगन, मूली, अमरूद, बेर, पालक, धनिया, लौकी, सेम, टमाटर और मिर्ची खेतों में बढ़ते, फूलते और फलते हुए मन को अपनी ओर खींच रहे हैं। सुबह-सुबह ऐसी ओस पड़ती है कि मानो धरती पर आसमान आ गया है। इस प्रकार सारा ग्रामीण अंचल नीलमणि के डिब्बे में बन्द हुआ दिखाई देता है। उसकी यह अद्भुत सुन्दरता सबको बाग-बाग कर देती है।

ग्राम-श्री संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

1. फैली खेतों में दूर तलक,
मखमल-सी कोमल हरियाली।
लिपटी जिससे रवि की किरणें,
चाँदी की-सी उजली जाली ॥1॥

तिनके के हरे-हरे नन’ पर,
हिल हरित् रुधिर है रहा झलक।
श्यामत भूतल पर झुका हुआ,
नभ का चिर निर्मल नील फलका ॥2॥

रोमांचित-सी लगती वसुधा,
आई जौ-गेहूँ में बाली,
अरहर सनई की सोने की,
किंकिणियाँ है शोभाशाली ॥3॥

शब्दार्थ :
तलक-तक। रवि-सूर्य, सूरज। हरित्-हरा। रुधिर-खून। श्यामल-सविला। भूतल-धरती। फलक-विस्तृत (फैला हुआ) भाग। रोमांचित-प्रसन्न। वसुधा-धरती। किंकिणियाँ-छोटे-छोटे घुघरू।

प्रसंग :
प्रस्तुत पद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा महाकवि सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा विरचित काव्य-रचना ‘ग्राम श्री’ से ली गई है। इसमें महाकवि पन्त ने गाँव की शोभा बढ़ाने वाली खेतों की हरियाली का आकर्षक चित्र खींचा है। इस विषय में महाकवि पन्त का कहना है कि

व्याख्या :
खेतों में दूर-दूर तक फैली हुई हरियाली मखमल के समान कोमल और सुन्दर लग रही है। उस पर सूर्य का प्रकाश जब पड़ता है, तब वह चाँदी के समान सफेद होकर मन को अपनी ओर खींच लेती है। हवा से हिलते हुए हरे-भरे तिनकों पर जब सूर्य का प्रकाश पड़ता है, तब ऐसा लगता है कि मानो हरा खून झलक रहा है। इस प्रकार की धरती को देखकर ऐसा लगता है कि नीला आकाश आकर धरती पर झुक गया है। वह अपने सफेद और नीलिमा का विस्तार पूरी धरती पर करते । हुए अधिक सुन्दर लग रहा है। इस प्रकार खेतों में जौ, गेहूँ की जब बालियाँ आती हैं, तब उनसे सजकर सारी धरती अधिक. सुन्दर दिखाई देने लगती है। सोने की चमक-दमक के समान अरहर और सनई की फलियाँ घुघरू की तरह आवाज करती हुई बहुत अधिक अच्छी लगती हैं।

विशेष :

  1. खेतों में दूर-दूर तक फैली हरियाली का आकर्षक चित्र खींचा गया है।
  2. ‘मखमल-सी’ चाँदी की-सी और रोमांचित-सी में उपमा अलंकार है।
  3. भाषा तत्सम शब्दों की है।
  4. शृंगार रस का प्रवाह है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य-बोध सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
(i) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।।
(iii) ‘नभ का चिर निर्मल नील फलक’ का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद्यांश में महाकवि पन्त ने खेतों में दूर-दूर तक फैली हरियाली का रोचक चित्रण किया है। मखमल की तरह कोमल दूर-दूर तक फैली हरियाली के रूप बड़े ही आकर्षक हैं। उस पर पड़ता हुआ सूर्य का प्रकाश उसे कई आकर्षक रूपों में ढाल देता है। इससे वह कभी चाँदी के समान दिखाई देता है, तो कभी झलकते हुए हरे खून के समान दिखाई देती है।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश की भाषा तत्सम शब्दों की है। ‘मखमल-सी’, ‘चाँदी की-सी’ और रोमांचित-सी’ में उपमा अलंकार है। ‘हरे-हरे’ में पुनरुक्ति अलंकार है। शृंगार रस के प्रवाह में बिम्ब-प्रतीक संजीव हो उठे हैं। चित्रात्मक शैली अधिक हृदयस्पर्शी बन गई है।

(iii) ‘नभ का चिर निर्मल नील फलक’ में कवि ने प्रकृति का भाववर्द्धक चित्रण किया है। इससे आकाश का मनमोहक स्वरूप उजागर हुआ है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-
प्रश्न:
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) ‘हरित रुधिर है रहा झलक’ पद्यांश में किसका रुधिर झलक रहा है और क्यों?
(iii) ‘मखमल-सी कोमल हरियाली’ का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
(i) कवि-सुमित्रानन्द पन्त, कविता-‘ग्राम श्री’!
(ii) ‘हरित रुधिर है रहा झलक’ में हरे-हरे तन अर्थात् हरियाली का रुधिर झलक रहा है। यह इसलिए कि सूर्य की किरणें जब ओस पड़ी हुई हरियाली पर सुबह-सुबह पड़ती हैं, तब वह खून की तरह झलकने लगती है।
(iii) ‘मखमल-सी कोमल हरियाली’ का भाव-सौन्दर्य अधिक आकर्षक है। हरियाली को मखमल के समान कोमल कहकर कवि ने प्रकृति की सुकुमारता और सुन्दरता को प्रस्तुत किया है। इससे कवि का प्रकृति के प्रति अधिक लगाव स्पष्ट हो रहा है।

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2. उड़ती भीनी तैलाक्त गन्ध,
फूली सरसों पीली-पीली। जो,
हरित धरा से झाँक रही,
नीलम की कलि तीसी नीली ॥4॥

अब रजत स्वर्ण-मंजरियों से,
लद गई आम्र तरु की डाली।
झर रहे ढाक, पीपल के दल,
हो उठी कोकिला, मतवाली ॥5॥

महके कटहल, मुकुलित जामुन,
जंगल में झरबेली झूली।
फूले आडू, नीबू, दाडिम,
आलू, गोभी, बैगन, मूली ॥6॥

शब्दार्थ :
भीनी-भीगी हुई। हरित-हरा। धरा-धरती। नीलम-नीला। रजत-चाँदी। आम्र-आम। मंजरियों-बौरों। तरु-पेड़। ढाक-पलाश। कोकिला-कोयल। मुकुलित-खिले हुए। दाडिम-अनार।

प्रसंग :
पूर्ववत्।

व्याख्या :
अब खेतों में तेल की सुगन्ध से भीगी हई सरसों पीले-पीले रंगों में फूल गई है। दूसरे शब्दों में अब खेतों में सरसों के पीले-पीले फूल दिखाई देने लगे हैं। उनकी सुगन्ध तेल से भीगी हुई होकर चारों ओर फैल रही है। हरी-भरी धरती पर तीसी (अलसी) के नीली-नीली कली खिल रही है। उसे देखने से ऐसा लगता है, मानो वह चुपचाप कुछ देख रही है। इसी प्रकार अब आम की डालियाँ सोने-चाँदी की तरह बौरों से लद गई हैं। ढाक और पीपल के पत्ते झड़ रहे हैं। प्रकृति की इस चंचलता और सुन्दरता से मदमस्त होकर कोयल इधर-उधर कूकने लगी है। बागों में कटहल की सुगन्ध फैल रही है, तो जामुन खिली हुई सुन्दर लग रही है। झरबेरी झूलती हुई दिखाई दे रही है। इस प्रकार आड़, नीबू, अनार, आलू, गोभी, बैंगन और मूली खिलते हुए मन को छू रहे हैं।

विशेष :

  1. भाषा मिश्रित शब्दों की है।
  2. शैली वर्णनात्मक है।
  3. प्रकृति का सुखद चित्र उपस्थित किया गया है।
  4. वसन्त ऋतु का स्वाभाविक उल्लेख है।
  5. ‘पीली-पीली’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य-बोध सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(iii) ‘हो उठी कोकिला मतवाली’ का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद्यांश की भावयोजना सरल और साधारण है। उससे अर्थ सहज में ही स्पष्ट हो रहा है। चूंकि वसन्त ऋतु का आगमन हो चुका है। फलस्वरूप प्रकृति अपने रूप-प्रतिरूप को सँवारती हुई नई दुल्हन के समान अपने प्रियतम वसन्त के आने की प्रतीक्षा कर रही है। इससे उसका अंग-प्रत्यंग अधिक सुन्दर और आकर्षक दिखाई दे रहा है। विभिन्न प्रकार के पेड़-पौधों की सजावट को इसी अर्थ में देखा जा सकता है।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश की भाषा सरल और सुबोध है। इसको प्रभावशाली बनाने के लिए कवि ने उपमा, रूपक और पुनरुक्ति अलंकारों का यथोचित प्रयोग किया है। ‘हरित धरा से झाँक रही, नीलम की कलि तीसी नीली।’ में प्रकृति का मानवीकरण करके कवि ने इस पद्यांश को और अधिक सजीव बना रहा है। श्रृंगार इसका सुन्दर प्रवाह है।

(iii) ‘हो उठी. कोकिला मतवाली’ में प्रकृति का मानवीकरण किया गया है। इससे प्रकृति में आए हुए वसन्त ऋतु के असाधारण प्रभाव का सहज ही अनुमान हो जाता है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) तेल से युक्त किसकी सुगन्ध उड़ रही है?
(iii) इस पद्यांश में किस ऋतु का चित्रण हुआ है?
उत्तर:
(i) कवि-सुमित्रानन्द पन्त, कविता-‘ग्राम श्री’।
(ii) तेल से युक्त सुगन्ध सरसों के पीले-पीले फूलों से चारों ओर उड़ रही है।
(iii) इस पद्यांश में वसन्त ऋतु का चित्रण हुआ है।

3. पीले मीठे अमरूदों में अब,
लाल-लाल चित्तियाँ पड़ी।
पक गए सुनहरे मधुर बेर,
अँवली से तरु की डाल जड़ी ॥7॥

लहलह पालक, महमह धनिया,
लौकी और सेमफली फैली।
मखमली टमाटर हुए लाल,
मिरचों की बड़ी हरी थैली ॥8॥

बगिया के छोटे पेड़ों पर,
सुन्दर लगते छोटे छाजन।
सुन्दर गेहूँ की बालों पर,
मोती के दानों-से हिमकन ॥9॥

शब्दार्थ :
बगिया-वाग। हिमकन-बर्फ के ओस की बूंदें।

प्रसंग :
पूर्ववत्। इसमें कवि ने वसन्तकालीन वागों की सुन्दरता का उल्लेख करते हुए कहा है कि

व्याख्या :
इस समय बागों में लाल-लाल चित्तियों वाले पीले-मीठे अमरूद खिल रहे हैं। उधर सुनहले रंग वाली हुई बेर बहुत ही मधुर हो रही है और अँवली से पेड़ की डाल जड़ी हुई है। अब खेतों में पालक लहलहा रहे हैं, धनिया की महक चारों ओर फैल रही है। इसी प्रकार लौकी और सेमफली फैल रही है। लाल-लाल टमाटर मखमल की तरह सुन्दर लग रहे हैं तो मिरचों की सुन्दरता बड़ी हरी थैली की तरह दिखाई देती है। कवि का पुनः कहना है कि बागों के छोटे-छोटे पेड़ों पर जो छोटे-छोटे छाजन हैं, वे मन को छू रहे हैं। खेतों में फैली हुई गेहूँ की बालों पर पड़ी हुई ओस की बूंदें मोती के दानों के समान चमक रहे हैं।

विशेष :

  1. वसन्तकालीन खेतों और बागों की सजावट का चित्रण है।
  2. सरल शब्द हैं।
  3. चित्रात्मक शैली है।
  4. ‘मोती के दानों-से हिमकन’ में उपमा अलंकार है और लाल-लाल में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य-बोध सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश के काव्य-सौन्दर्य पर प्रकाश डालिये।
(iii) ‘मखमली टमाटर हुए लाल’ का भाव-सौन्दर्य लिखिए।
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद्यांश में वसन्तकालीन प्रकृति का स्वाभाविक चित्रण किया गया है। इसके लिए कवि ने बागों में पक रहे फलों और खेतों में पक रही फसलों का यथार्थपूर्ण चित्रांकन किया है। इस प्रकार के ये दोनों चित्र कल्पना से रंगीन होकर यथार्थ से दूर नहीं हैं। इनसे उत्पन्न हुई सजीवता और बोधगम्यता इस पद्यांश को सार्थक बना रही है। इससे कवि का गहरा प्रकृति-प्रेम साफ-साफ प्रकट हो रहा है।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य भाषा, शैली, अलंकार, बिम्ब, प्रतीक योजना आदि से सज्जित है। इस पद्यांश की भाषा सरल है, तो इसमें अनुप्रास, रूपक, उपमा आदि अलंकार हैं। तुकान्त शब्दावली का प्रयोग भावों को बढ़ाने में सहायक सिद्ध हुए हैं।

(iii) ‘टमाटर’ की कोमलता और सुन्दरता को दर्शाने के लिए उन्हें मखमली कहना बड़ा ही सटीक लगता है। हरा से लाल होने पर भी टमाटर की कोमलता और सुन्दरता ज्यों-की-त्यों बनी रहती है, यह कवि का अनुभव बड़ा गहरा और सराहनीय है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में प्रकृति के किस विशेष रूप को चित्रित किया गया. है और क्यों?
उत्तर:
(i) कवि-सुमित्रानन्द पन्त, कविता-‘ग्राम श्री’।
(ii) उपर्युक्त पद्यांश में कवि ने प्रकृति के वसन्तकालीन विशेष रूप को चित्रित किया है। प्रकृति का यह विशेष रूप सर्वाधिक आकर्पक, सरस और हृदयस्पर्शी है। ‘कवि ने इसे ही ध्यान में रखा है।

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4. प्रातः ओझल हो जाता जग,
भू पर आता ज्यों उतर गगन।
सुन्दर लगते फिर कुहरे,
उठते से खेत, बाग, गृह, वन ॥10॥

बालू के साँपों से अंकित,
गंगा की संतरंगी रेती।
सुन्दर लगती सरपत छाई,
तट पर तरबूजों की खेती ॥11॥

अँगुली की कंघी से बगुले,
कलंगी सँवारते हैं कोई।
तिरते जल में सरखाव,
पुलिन पर मगरौठी रहती सोई ॥12॥

मरकत-डिब्बे-सा खुला ग्राम,
जिस पर नीलम नभ आच्छादन।
निरुपम हिमांत में स्निग्ध-शान्त,
निज शोभा से हरता जन-मन ॥13॥

शब्दार्थ :
प्रातः-सुबह ओझल-छिप जाना, साफ न दिखाई देना। गगन-आसमान। कुहरे-ओस। सरपत-एक प्रकार का पौधा, झाड़ी। तट-किनारा। सुरखाव-एक पक्षी। मगरौठी-एक पक्षी। मरकत-नीलमणि। नभ-आकाश। आच्छादन-ढक्कन।

प्रसंग :
पूर्ववत्। इसमें कवि ने जाड़े के प्रातःकालीन दृश्य का चित्रांकन करते हुए कहा है कि

व्याख्या :
जाड़े की सुबह पड़ी हुई ओस से सारा ढका हुआ ऐसा लगता है, मानो धरती पर आसमान उतर आया है। कुहरे में खेत, बाग, घर और जंगल जगकर उठते हुए बहुत सुन्दर दिखाई देते हैं। गंगा नदी की रेत सात रंगों में सांपों से चिह्नित दिखाई देती है। उसके किनारे-किनारे तरबूजों की खेती सरपत से छाई हुई मन को अपनी ओर खींच लेती है।

कवि का पुनः कहना है कि सुबह-सुबह कहीं बगुले अपनी कलंगी सँवारते हुए ऐसे दिखाई देते हैं, मानो वे अपनी अंगुलियों से कंघी कर रहे हैं। कहीं सुरखाब पक्षी जल में तैर रहे हैं, तो कहीं किनारे पर मगरौठी पक्षी सोया हुआ दिखाई देता है। सुबह-सुबह नीलमणि के डिब्बे के समान गाँव खुला हुआ दिखाई देता है, अर्थात् सुबह-सुबह गाँवों की चंचलता दिखाई देती है। चूंकि पूरे गाँव को ओस ढके रहता है, जिससे उस पर आसमान का नीलापन बड़ा ही आकर्षक लगता है। उस समय उसकी जो शान्तिमय शोभा होती है, उस पर सारा जन-मन निछावर हो जाता है।

विशेष :

  1. प्रातःकालीन ओस से लिपटे गाँवों का चित्रांकन किया गया है।
  2. शैली वर्णनात्मक और चित्रात्मक दोनों है।
  3. उच्चस्तरीय शब्दों के प्रयोग हैं।
  4. मुख्य रूप से उपमा अलंकार है।
  5. अभिधा शब्द-शक्ति है।

पद्यांश पर आधारित सौन्दर्य-बोध सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) प्रस्तुत पद्यांश का भाव-सौन्दर्य स्पष्ट कीजिए।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का काव्य-सौन्दर्य लिखिए।
(iii) अँगुली की कंधी से बगुले, कलंगी सँवारते हैं कोई।
उत्तर:
(i) प्रस्तुत पद्यांश में शीतकालीन सुबह का भावपूर्ण चित्रण है। रात की पड़ी हुई ओस से सारा ग्रामीण अंचल किस प्रकार सतरंगी होकर मन को छू रहा है, इसका आलंकारिक चित्र प्रस्तुत किया गया है। इससे आकाश का नीलापन धरती पर मानो उतर आया है। बगुले, सुरखाब और मंगरौठी का नदी के किनारे अलग-अलग दिखाई देना भी कम आकर्षक नहीं है। इस प्रकार सारा ग्रामीण अंचल ओस की बूंदों से ढका हुआ अपनी अद्भुत शोभा को बढ़ा रहा है।

(ii) प्रस्तुत पद्यांश की भाषा मिश्रित शब्दों की है। उपमा, अनुप्रास, उत्प्रेक्षा, रूपक और मानवीकरण अलंकारों का चयन बड़े ही सटीक हैं । चित्रात्मक और वर्णनात्मक शैली के द्वारा शृंगार रस का प्रवाह अधिक सरस हो गया है। बिम्ब और प्रतीक यथास्थान प्रयुक्त हुए हैं।

(iii) अँगुली की कंघी से बगुले कलंगी सँवारते हैं कोई।’ का भाव-सौन्दर्य हृदयस्पर्शी है। बगुले का अपनी कलंगी को अपनी अंगुली रूपी कंघी से सँवारना मानवीय व्यापार की ओर संकेत कर रहा है। इसमें प्रयुक्त हुआ यह बिम्ब बड़ा ही सजीव और रोचक है। भावों को प्रस्तुत करने वाली भाषा की सहजता सराहनीय हैं।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु से सम्बन्धित प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) कवि और कविता का नाम लिखिए।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का प्रमुख विषय क्या है?
(iii) प्रातः कौन किससे ओझल हो जाता है?
उत्तर:
(i) कवि-सुमित्रानन्द पन्त, कविता-‘ग्राम श्री’।
(ii) प्रस्तुत पद्यांश का प्रमुख विषय है-शीतकालीन सुवह का भावपूर्ण प्रकृति का चित्रांकन करना। इसको कवि ने विभिन्न प्रकार से आकर्षक बनाने का प्रयास किया है।
(iii) प्रातः संसार कहरे से ओझल हो जाता है।

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