MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 3 दो बैलों की कथा-कहानी

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 3 दो बैलों की कथा-कहानी  (कहानी, मुंशी प्रेमचन्द)

दो बैलों की कथा-कहानी पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

दो बैलों की कथा-कहानी लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
झूरी के बैल किस नस्ल के थे?
उत्तर:
झूरी के बैल पछाई नस्ल के थे।

प्रश्न 2.
झूरी ने गोई को कहाँ भेज दिया?
उत्तर:
झूरी ने गोई को ससुराल भेज दिया।

प्रश्न 3.
झूरी की ससुराल जाते समय बैलों ने क्या समझा?
उत्तर:
झूरी की ससुराल जाते समय बैलों ने यह समझा कि मालिक ने उन्हें बेच दिया है।

प्रश्न 4.
गोई को ले जाते समय गया को पसीना क्यों आ गया?
उत्तर:
गोई को ले जाते समय गया को पसीना आ गया। यह इसलिए कि वे वहाँ जाना नहीं चाहते थे। अगर गया उन्हें पीछे से हाँकता तो वे दोनों इधर-उधर, भागने लगते थे। पगहिया पकड़कर आगे खींचने पर पीछे की ओर जाने लगते थे। मारने पर वे दोनों मुंह नीचे करके हँकारने लगते थे।

प्रश्न 5.
गया के घर जाकर दोनों बैलों ने नाँद में मुँह क्यों नहीं डाला?
उत्तर:
गया के घर जाकर दोनों बैलों ने नाँद में मुँह नहीं डाला। यह इसलिए कि उनका अपना घर छूट गया था। यह तो पराया घर था। वहाँ के लोग उन्हें बेगाने लग रहे थे। उन्हें वहाँ का खाना-पीना और रहना तनिक भी रास नहीं आया।

प्रश्न 6.
‘क’ स्तम्भ में पात्रों के नाम और ‘ख’ स्तम्भ में कथन दिए गए हैं-पात्रों के साथ सही कथन जोडिए?
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उत्तर:
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दो बैलों की कथा-कहानी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
झूरी के घर प्रातःकाल लौटे-बैलों का किसने स्वागत किया? और कैसे प्रातःकाल झूरी के घर वापस आने पर बैलों का स्वागत किस प्रकार किया गया?
उत्तर:
प्रातःकाल लौटे बैलों को देखकर झूरी गद्गद हो गया। दौड़कर उसने उन्हें गले लगा लिया। फिर वह उन्हें चूमने लगा। झूरी के घर प्रातःकाल लौटे बैलों का घर और गाँवों के लड़कों ने तालियाँ बजा-बजाकर स्वागत किया। उनमें से किसी ने अपने घरों से रोटियाँ लाकर खिलाया तो किसी ने गुड़। इसी प्रकार किसी ने चोकर लाकर दिया तो किसी ने भूसी। इस प्रकार उन्होंने उन दोनों बैलों का बड़े ही स्नेहपूर्वक स्वागत किया।

प्रश्न 2.
गया के घर से भाग आने पर बैलों के साथ कैसा व्यवहार किया गया?
उत्तर:
गया के घर से भाग आने पर बैलों के साथ झूरी की पत्नी ने बड़ा ही दुर्व्यवहार किया। उसने उन्हें खली और चोकर देना बन्द कर दिया। उसने यह निश्चय कर लिया कि वह अब उन्हें सूखे भूसे के सिवा और कुछ नहीं देगी। वे खाएँ या मरें। उसने मजूर को बड़ी ताकीद कर दी कि वह बैलों को खाली सूखा भूसा ही दे। इस प्रकार उनके प्रति बड़ी बेरहमी की गई।

प्रश्न 3.
दोनों बैलों ने आजादी के लिए क्या-क्या प्रयास किए?
उत्तर:
दोनों बैलों ने आजादी के लिए निम्नलिखित प्रयास किए-

  1. दो-चार बार गाड़ी को सड़क की ख़ाई में गिराना चाहा।
  2. हल में जोतने पर जैसे पाँव उठाने की कसम खा ली थी। गया मारते-मारते थक गया, लेकिन उन्होंने पाँव न उठाया।
  3. हीरा की नाक पर जब गया ने खूब डण्डे बरसाए तो मोती का गुस्सा काबू के बाहर हो गया। वह हल लेकर ऐसा भागा कि उससे हल, रस्सी, जुआ, जोत सब टूट-टाटकर बरावर हो गया।
  4. एक दिन चुपके से भैरो की लड़की के द्वारा रस्सी खोल दिए जाने पर वहाँ से ऐसे भाग निकले कि गया की पकड़ में नहीं आ पाए।

प्रश्न 4.
हीरा-मोती के पारस्परिक प्रेम का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
झरी के दोनों बैलों हीरा और मोती में बहुत ही अधिक पारस्परिक प्रेम था। बहुत दिनों से दोनों एक ही साथ रहते थे। इसलिए दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों एक-दूसरे की मौन-भाषा समझ लेते थे। इसी में वे परस्पर विचार-विनिमय भी किया करते थे। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूंघकर अपना प्रेम प्रकट करते थे। कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे। वे इसे किसी प्रकार के विरोध भाव से नहीं करते थे, अपितु विनोद और आत्मीयता के भाव से किया करते थे। इससे उनका पारस्परिक प्रेम और मजबूत दिखाई देता था।

प्रश्न 5.
भैरो की लड़की की बैलों से आत्मीयता क्यों हो गई थी?
उत्तर:
भैरो की लड़की की माँ मर चुकी थी। उसकी सौतेली माँ उसें मारती रहती थी। इस प्रकार उसको अपना ऐसा कोई नहीं दिखाई देता था, जिससे वह अपनी भावना को प्रकट कर सके। इसके लिए उसने अपने बैलों को ही चुना। वह उन्हें रातःको चुपके से रोटी खिलाती थी। उनके प्रति सहानुभूति दिखाती थी। इसलिए उन बैलों से उसे बड़ी आत्मीयता हो गई थी।

प्रश्न 6.
दोनों बैल दढ़ियल आदमी को देखकर क्यों काँप उठे?
उत्तर:
दोनों बैल दढ़ियल आदमी को देखकर काँप उठे। यह इसलिए कि-

  1. उसकी आँखें लाल-लाल की।
  2. उसकी मुद्रा बहुत ही कठोर थी।
  3. उसने उन दोनों बैलों के कूल्हों में अपनी उँगली गोद दी।
  4. उसका चेहरा बड़ा ही भयानक था।
  5. वह बड़ा ही जुल्मी और कसाई दिखाई दे रहा था।

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प्रश्न 7.
सिद्ध कीजिए कि कहानी अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल है।
उत्तर:
मुंशी प्रेमचन्द लिखित कहानी ‘दो बैलों की कथा’ में मनुष्य और पशु के परस्पर व्यवहार को दर्शाया गया है। इस कहानी में झूरी के दोनों बैलों के भीतर जागृत होने वाले कई प्रकार के भावों को व्यक्त किया गया है। इस प्रकार पशुओं के साथ मनुष्य द्वारा किए जाने वाले आत्मीय और भाईचारा के व्यवहार का जहाँ उल्लेख हुआ है, वहीं दूसरी ओर उनके प्रति की जाने वाली क्रूरता और स्वार्थपरता का भी चित्रण हुआ है। इस प्रकार. यह कहानी मनुष्य की तरह पशुओं के भी सुख-दुख और अपने-पराए के बोध को प्रकट करती है। इस प्रकार की विशेषताओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि मुंशी प्रेमचन्द लिखित प्रस्तुत कहानी ‘दो बैलों की कथा’ अपने उद्देश्य में पूर्ण सफल है।

प्रश्न 8.
कहानी के विकास क्रम पर प्रकाश डालते हुए कहानी की परिभाषा लिखिए।
उत्तर:
हिन्दी कहानी के विकास क्रम को छः भागों में इस प्रकार बाँटा जा सकता है-

  1. पहला उत्थान काल (सन् 1900 से 1910 तक)
  2. दूसरा उत्थान काल (सन् 1911 से 1919 तक)
  3. तीसरा उत्थान काल (सन् 1920 से 1935 तक)
  4. चौथा उत्थान काल (सन् 1936 से 1949 तक)
  5. पाँचवाँ उत्थान काल (सन् 1950 से 1960 तक)
  6. छठवाँ उत्थान काल (सन् 1960 से अब तक)।

1. पहला उत्थान काल (सन् 1900 से 1910 तक) :
चन्द्रधर शर्मा गुलेरी की ‘उसने कहा था’। यह काल हिन्दी कहानी का आरम्भिक काल कहा जाता है। इसके बाद चन्द्रधर शर्मा की ‘इन्दुमती’, बंग महिला की ‘दुलाईवाली’, रामचन्द्र शुक्ल की ‘ग्यारह वर्ष का समय’ आदि कहानियाँ हिन्दी की आरम्भिक कहानियाँ मानी जाती हैं।

2. दूसरा उत्थान काल (सन् 1911 से 1919 तक) :
इस काल में जयशंकर प्रसाद महाकथाकार के रूप में उभड़कर आए। सन् 1911 में उनकी ‘ग्राम’ कहानी ‘इन्दु’ नामक.मासिक पत्रिका में प्रकाशित हुई। उनकी ‘छाया’, ‘प्रतिध्वनि’, ‘आकाशदीप’, ‘इन्द्रजाल’ आदि कहानी-संग्रह प्रकाशितः हुए। उनके अतिरिक्त विश्वम्भरनाथ शर्मा ‘कौशिक’, ज्वालादत्त शर्मा, चतुरसेन शास्त्री, जे.पी. श्रीवास्तव, राधिकारमण प्रसाद सिंह आदि उल्लेखनीय कथाकार इसी काल की देन हैं।

3. तीसरा उत्थान काल (सन् 1920 से 1935 तक) :
इस काल को महत्त्व कथा साहित्य की दृष्टि से बहुत ही अधिक है। यह इसलिए कि इसी काल में कथा सम्राट मुंशी प्रेमचन्द का आगमन हुआ। उन्होंने अपनी कहानियों में भारतीय समाज की ऐसी सच्ची तस्वीर खींची जो किसी काल के किसी भी कथाकार के द्वारा सम्भव नहीं हुआ। ‘ईदगाह’, ‘पंच-परमेश्वर’, बूढ़ी काकी’, ‘बड़े घर की बेटी’, ‘मन्त्र’, ‘शतरंज के खिलाड़ी’, ‘दो बैलों की कथा’ आदि उनकी बहुत प्रसिद्ध कहानियाँ हैं। इस काल के अन्य महत्त्वपूर्ण कथाकारों में सुदर्शन, पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी, शिवपूजन सहाय, सुमित्रानन्दन पन्त, सूर्यकान्त त्रिपाठी निराला, महादेवी वर्मा, रामकृष्ण दास, वृन्दावन लाल वर्मा, भगवती प्रसाद बाजपेयी आदि हैं।

4. चौथा उत्थान काल (सन् 1936 से 1949 तक) :
कहानी कला की दृष्टि से इस काल का महत्त्व इस दृष्टि से है कि इस काल की कहानियों ने विभिन्न प्रकार की विचारधाराओं को जन्म दिया। मनोवैज्ञानिक और प्रगतिवादी कथाकार इस काल में अधिक हुए। मनोवैज्ञानिक कथाकारों में इलाचन्द्र जोशी, अज्ञेय, जैनेन्द्र कुमार, चन्द्रगुप्त विद्यालंकार, पाण्डेय बेचन शर्मा उग्र आदि हुए।

प्रगतिवादी कथाकारों में यशपाल, राहुल सांकृत्यायन; रांगेय राघव, अमृत लाल नागर, राजेन्द्र यादव आदि उल्लेखनीय हैं। विचार प्रधान कथाकारों में धर्मवीर भारती, कन्हैया लाल मिश्र ‘प्रभाकर’ आदि विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। महिला कथाकारों में सुभद्राकुमारी चौहान, शिवरानी देवी, मन्नू भण्डारी, शिवानी आदि अधिक प्रसिद्ध हैं।

5. पाँचवाँ उत्थान काल (सन् 1950 से 1960 तक) :
इस काल की कहानी को कई उपनाम मिले, जैसे-‘नई कहानी’, ‘आज की कहानी’, ‘अकहानी’ आदि। इस काल की कहानियों में वर्तमान युग-बोध, सामाजिक विभिन्नता, वैयक्तिकता, अहमन्यता : आदि की अभिव्यंजना ही मुख्य रूप से सामने आई। इस काल के कमलेश्वर, फणीश्वरनाथ ‘रेणु’, अमरकान्त, निर्मल वर्मा, मार्कण्डेय, शिव प्रसाद सिंह, भीष्म साहनी. मोहन राकेश, कृष्णा सोबती, रघुवीर सहाय, शैलेश मटियानी, हरिशंकर पारसाई, लक्ष्मीनारायण लाल, राजेन्द्र अवस्थी आदि कथाकारों के नाम बहुत प्रसिद्ध हैं।

6. छठवाँ उत्थान काल (सन् 1960 से अव तक) :
इस काल को साठोत्तरी हिन्दी कहानी के नाम से जाना जाता है। इस काल के कहानीकार पूर्वापेक्षा नवी चंतना और शिल्प के साथ रचना-प्रक्रिया में जुटे हुए दिखाई देते हैं। इस काल की कहानी की यात्रा विभिन्न प्रकार के आन्दोलनों से जुड़ी हुई है, जैसे-नयी कहानी (कमलेश्वर, अमरकान्त, मार्कण्डेय, फणीश्वर नाथ ‘रेणु’, राजेन्द्र यादव, मन्नू भण्डारी, मोहन राकेश, शिव प्रसाद सिंह, निर्मल वर्मा, उषा प्रियंवदा आदि), अकहानी (रमेश बख्शी, गंगा प्रसाद ‘विमल, जगदीश चतुर्वेदी, प्रयाग शुक्ल, दूधनाथ सिंह, ज्ञानरंजन आदि), सचेतन कहानी (महीप सिंह, योगेश गुप्त, मनहर चौहान, रामकुमार ‘भ्रमर’ आदि), समानान्तर कहानी (कामतानाथ, से.रा. यात्री, जितेन्द्र भाटिया, इब्राहिम शरीक, हिमांशु जोशी आदि), सक्रिय कहानी (रमेश बत्रा, चित्रा मुद्गल, राकेश वत्स, धीरेन्द्र अस्थाना आदि)। इनके अतिरिक्त इस काल के ऐसे भी कथाकार हैं, जो उपर्युक्त आन्दोलनों से अलग होकर कथा-प्रक्रिया में समर्पित रहे हैं, जैसे-रामदरश मिश्र, विवेकी राय, मृणाल पाण्डेय, मृदुला गर्ग, निरूपमा सेवती, शैलेश मटियानी, ज्ञान प्रकाश विवेक, सूर्यबाला, मेहरून्निसा परवेज, मंगलेश डबराल आदि।

आज की कहानी शहरी-सभ्यता, स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की नई अवधारणा, आपसी . सम्बन्धों के बिखराव, भय और असुरक्षा की भावना, चारित्रिक ह्रास, यौन कुण्ठा, घिनौनी मानसिकता, अन्याय, अत्याचार के विरुद्ध संघर्ष, औद्योगिकीकरण के दुष्प्रभाव से दम तोड़ती मानवता आदि को चित्रित करने में सक्रिय दिखाई दे रही हैं। इसकी भाषा-शैली दोनों ही तराशती हुई और नए-नए तेवरों को प्रस्तुत करने की क्षमता प्रशंसनीय है।

दो बैलों की कथा-कहानी की परिभाषा

कहानी की परिभाषा पश्चिमी और भारतीय समीक्षकों ने अलग-अलग रूप में दी है
I. पाश्चात्य समीक्षक

  1. पश्चिमी विद्वान एडगर रलन पो ने कहानी को रसोद्रेक करने वाला. एक ऐसा आख्यान माना है, जो एक ही बैठक में पढ़ा जा सके।
  2. एच.जी. वेल्स का कहना है कि कहानी तो बस वही है, जो लगभग बीस मिनट में साहस और कल्पना के साथ पढ़ी जाए।
  3. हडसन कहानी में चरित्र की अभिव्यक्ति मानते हैं।

II. भारतीय समीक्षक

  1. डा. श्याम सुन्दर दास के अनुसार-“आख्यायिका एक निश्चित लक्ष्य या प्रभाव को लक्षित करके लिखा गया नाटकीय आख्यान है।”
  2. मुंशी प्रेमचन्द के अनुसार-“कहानी एक रचना है, जिसमें जीवन के किसी अंश या किसी मनोभाव को प्रदर्शित करना ही लेखक का उद्देश्य रहता है। उसके चरित्र, उसकी शैली, उसका कथा-विन्यास सब उसी एक भाव की पुष्टि करते हैं। यह एक गमला है, जिसमें एक ही पौधे का माधुर्य अपने समुन्नत रूप में दृष्टिगोचर होता है।”
  3. इलाचन्द जोशी के अनुसार-“जीवन का एक चक्र नाना परिस्थितियों के संघर्ष में उल्टा-सीधा चलता रहता है। इस सुवृहत् चक्र की विशेष परिस्थितियों का प्रदर्शन ही कहानी होती है।”
  4. सच्चिदानन्द हीरानन्द वात्स्यायन अज्ञेय के अनुसार-“छोटी कहानी एक सूक्ष्मदर्शक यन्त्र है, जिसमें मानवीय अस्तित्व के मर्मस्पर्शी दृश्य खुलते हैं।”

दी गई उपर्युक्त मान्यताओं के आधार पर यह कहा जा सकता है-
कहानी, जीवन के किसी एक विशेष मनोभाव या अंश का एक ऐसा प्रतिबिम्ब है, जो सम्भवतया संक्षिप्त नाटकीय शैली में विश्वसनीय कथा के रूप में प्रस्तुत होता है।

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दो बैलों की कथा-कहानी भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्यांशों की व्याख्या कीजिए
(क) “भागे इसलिए कि……..खाएँ चाहे मरें।”
(ख) “दोनों दिन भर जोते जाते……..विद्रोह भरा हुआ।”
(ग) “हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था।”
(घ) “दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया। यहाँ भी किसी सज्जन का वास है।”
(ङ) “बैल का जन्म लिया है तो मार से कहाँ तक बचेंगे।”
उत्तर:
गद्यांशों की सप्रसंग व्याख्या :
(क) भागे इसलिए कि वे लोग तुम्हारी तरह बैलों को सहलाते नहीं। खिलाते हैं, तो रगड़कर जोतते भी हैं। ये दोनों ठहरे कामचोर, भाग निकले। अब देखू? कहाँ से खली और चोकर मिलता है। सूखे भूसे के सिवा कुछ न दूंगी, खाएँ चाहे मरें।

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा मुंशी प्रेमचन्द लिखित कहानी ‘दो बैलों की कथा’ से अवतरित है। इसमें कहानीकार ने झरी को अपनी ससुराल से अपने दोनों बैलों हीरा और मोती के भागकर आने पर उन्हें सही ठहराया, तो उसकी पत्नी ने उसका विरोध करते हुए कहा कि

व्याख्या :
गया ‘के यहाँ वे दोनों बैल नहीं टिक सके। इसका मुख्य कारण यह है कि वह बैलों को खिलाता है डटकर काम लेने के लिए, उन्हें उसकी तरह आराम देने के लिए नहीं। वह उन्हें खिलाता है, तो वह उनसे काम लेना भी जानता है। उन्हें खिलाकर उन्हें बड़े ही कड़ाई से हल में सुबह से शाम तक जोतता है। इन्हें तो बैठकर खाना चाहिए। ये काम करने से भागते हैं। इसलिए उसने जब इनसे डटकर काम लेना शुरू किया तो ये भागकर यहाँ चले आए। अब देखना है कि इन्हें खली और चोकर कौन खिलाता है। मैं इन्हें सूखा ही भूसा-चारा दूंगी। उसे ये खाएं या न खाएं, मेरी बला से।

विशेष :

  1. झूरी की पत्नी का आक्रोश उसकी कठोरता को प्रकट कर रहा है।
  2. भाव बड़े ही निष्ठुर हैं।
  3. शैली प्रवाहमयी है।
  4. यह अंश स्वाभाविक है।

(ख) “दोनों दिन भर जोते जाते……..विद्रोह भरा हुआ।”
प्रसंग :
पूर्ववत्! इसमें कहानीकार ने झूरी के दोनों बैलों हीरा और मोती की मेहनत और सहनशीलता को बतलाने का प्रयास किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि झूरी के दोनों बैल हीरा और मोती उसके साले के यहाँ कड़ी मेहनत करने लगे। उसका साला गया उनसे खूब डटकर काम लेता था। वह उन्हें सुबह से शाम तक हल में जोतता था। उन पर जोर-जोर से डण्डे . बरसाता था। इससे वे दोनों क्रोधित होकर उसका बार-बार विरोध करते थे। फिर भी वह उनके प्रति जरा भी नरमी नहीं दिखाता था। इस प्रकार उनसे डटकर काम लेने के बाद वह उन्हें उनके रहने-बैठने की जगह पर बाँध देता था। रात होने पर पहले की तरह उसकी लड़की उन्हें चुपके से दो रोटियाँ खिलाकर चली जाती थी। दोनों उसके द्वारा दी हुई उन रोटियों को प्रसाद की तरह बड़े ही प्रेमभाव से लेते थे। उससे उन्हें एक ऐसी अद्भुत सहनशक्ति मिलती थी कि वे रूखा-सूखा भूसा-चारा खाकर भी अपनी कमजोरी कुछ भी अनुभव नहीं करते थे। ऐसा होने पर भी गया के प्रति उनके मन में अधिक घृणा और विरोध भरा हुआ था।

विशेष :

  1. बैल जैसे कड़ी मेहनत करने वाले पशुओं के प्रति मनुष्य की कठोरता का उल्लेख है।
  2. बाल स्वभाव पशु-प्रेम का उल्लेख रोचक रूप में है।
  3. उर्दू-हिन्दी की शब्दावली है।
  4. शैली भावात्मक है।
  5. भाषा मुहावरेदार है।

(ग) “हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था।”
प्रसंग :
पूर्ववत! इसमें कहानीकार ने हीरा और मोती के अपने मालिक झूरी के प्रति शिकायत के भावों को व्यक्त करते हुए कहना चाहा है कि

व्याख्या :
हीरा और मोती को लगा कि उनके मालिक झूरी ने अपने साले गया को उन्हें बेच दिया। उन्हें यह नागवार लगा। वे तो अपने मालिक झूरी की सच्चे तन-मन से सेवा कर रहे थे, फिर उसने उन्हें उसे क्यों बेच दिया। वे तो उसकी सेवा करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़े थे। वे तो यह निश्चय कर लिये थे कि उन्हें उसके यहाँ ही जीना है और उसके यहाँ ही मर जाना है।

विशेष :

  1. बैलों की स्वामिभक्ति प्रकट की गई है।
  2. यह अंश प्रेरक रूप में है।
  3. भाषा सजीव है।

(घ) “दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया। यहाँ भी किसी सज्जन का वास है।”
प्रसंग :
पूर्ववत्! इसमें कहानीकार ने गया की लड़की के द्वारा दोनों बैलों को रात के समय चुपके से रोटियों के खिलाने से प्रभाव उन दोनों बैलों के एहसानमन्द होने का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि जब रात के समय चुपके से झूरी के साले गया की लड़की दोनों बैलों को रोटियाँ खिलाती थी, तब उन दोनों को बड़ी शान्ति और तसल्ली होती थी कि इस गया नामक जालिम के यहाँ भी कोई उनके दुख को समझने वाला और उसमें हाथ बँटाने वाला है। इस प्रकार उन्हें मन-ही-मन कुछ ही देर के लिए सही यह अवश्य खुशी होती थी कि किसी दुर्जन के यहाँ भी कोई सज्जन रहता है।

विशेष :

  1. भाषा सरल है।
  2. कथन मार्मिक है।
  3. शैली सुबोध है।

(ङ) “बैल का जन्म लिया है, तो मार से कहाँ तक बचेंगे।”
प्रसंग :
पूर्ववत्! इसमें कहानीकार ने झूरी के दोनों बैलों हीरा और मोती में से हीरा की सहनशीलता और अपनी जाति-धर्म की समझ का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि हीरा और मोती झूरी की कठोरता से तंग आकर उसका विरोध करने लगे थे। एक दिन दोनों गया द्वारा हल में जोतने का कड़ा विरोध किया। वे जब टसमस न हुए तो उसने उनको खूब मारा। वह मारते-मारते थक गया। फिर उसने हीरा की नाक पर जमकर डण्डे जमाए। इससे मोती बेकाबू होकर ऐसा भागा कि हल, रस्सी, जुआ, जोत सब टूट-टाटकर बराबर हो गया। उसे हीरा ने समझाया तो मोती ने कहा कि अब की बड़ी मार पड़ेगी। हीरा ने उससे कहा कि उन्हें मार पड़ने से नहीं डरना चाहिए। ऐसा इसलिए कि बैल का जन्म मार खाने के लिए होता है। इसे समझकर उसे मार से बचने या डरने की बात न सोचकर उसको डटकर सहना चाहिए, उससे भागना नहीं चाहिए।

विशेष :

  1. हीरा के स्वधर्म और स्वजाति की समझ प्रेरक रूप में है।
  2. यह वाक्य प्रभावशाली है।
  3. भाषा सजीव है।

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दो बैलों की कथा-कहानी भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों से वाक्य बनाइए-
मारता-पीटता, भूखा-प्यासा, जल-भुन गई, रूखा-सूखा, आगे-पीछे।
उत्तर:
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प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों में उपसर्ग छाँटिए-
विश्वास, अभिनन्दन, निर्दयी, अनुमान, दुर्बल, अनाथ।
उत्तर:
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प्रश्न 3.
निम्नलिखित सामासिक पदों का समास विग्रह करते हुए समास का नाम लिखिए
संध्या-समय, प्रातःकाल, बाल-सभा, पशुवीर, दोपहर, गाय-बैल।
उत्तर:
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प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों का सन्धि-विच्छेद कर सन्धि का नाम लिखिए-
मनोहर, स्वागत, सज्जन, अन्तान।
उत्तर:
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प्रश्न 5.
निम्नलिखित वाक्यों को शुद्ध कीजिए

  1. संध्याकाल के समय दोनों बैल अपने नए स्थान पर पहुँचे।
  2. गाँव के इतिहास में ऐसी अभूतपूर्व घटना कभी नहीं पाई थी।
  3. दो बैल का ऐसा अपमान कभी नहीं हुआ।
  4. पहाड़ से उतरते हुए उसका पैर रपट गया।

उत्तर:

  1. संध्या-समय दोनों बैल अपने नए स्थान पर पहुँचे।
  2. गाँव के इतिहास में यह अभूतपूर्व घटना थी।
  3. दोनों बैलों का एसा अपमान कभी न हुआ था।
  4. पहाड़ से उतरते समय उसका पैर रपट गया।

दो बैलों की कथा-कहानी योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
यह कहानी आपको कैसी लगी? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
छात्र/छात्रा इसे अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 2.
दो बैलों की कहानी नामक चलचित्र का अवलोकन कर उसकी समीक्षा लिखिए।
उत्तर:
छात्र/छात्रा इसे अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
हल में जोते जाने के अतिरिक्त बैलों से कौन-कौन से कार्य लिए जा सकते हैं। सचित्र कथा तैयार कीजिए।
उत्तर:
छात्र/छात्रा इसे अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 4.
आपके घर में यदि कोई पालतू जानवर है तो उसके प्रति आपका व्यवहार कैसा रहता है, लिखिए।
उत्तर:
छात्र/छात्रा इसे अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

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दो बैलों की कथा-कहानी परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

दो बैलों की कथा-कहानी लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
झूरी के बैलों के क्या नाम थे?
उत्तर:
झूरी के बैलों के नाम हीरा और मोती थे।

प्रश्न 2.
दोनों बैलों ने अपनी मूक भाषा में क्या सलाह की?
उत्तर:
दोनों बैलों ने अपनी मूक भाषा में यह सलाह की कि गाँव में सोता पड़ जाने पर पगहे तुड़ाकर अपने घर की ओर भाग चलेंगे।

प्रश्न 3.
मजूर को क्या ताकीद कर दी गई?
उत्तर:
मजूर को यह ताकीद कर दी गई कि बैलों को खाली सूखा भूसा दिया जाए।

प्रश्न 4.
बैलों का कैसा अपमान कभी न हुआ था?
उत्तर:
बैलों का ऐसा अपमान कभी न हुआ था कि मार खाने के बाद भी उन्हें सूखा ही भूसा दिया गया।

प्रश्न 5.
झूरी ने कौन-सा सबूत दिया की वे बैल उसके ही हैं? –
उत्तर:
झूरी ने यह सबूत दिया कि वे बैल उसके ही द्वार पर खड़े हैं। इसलिए वे उसके ही हैं।

दो बैलों की कथा-कहानी दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
झूरी के दोनों बैलों में किस प्रकार घनी दोस्ती हो गई थी?
उत्तर:
झूरी के दोनों बैलों में बहुत अधिक भाईचारा हो गया था। दोनों बहुत दिनों से एक ही साथ रहते थे। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक-भाषा में विचार-विनिमय करते थे। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूंघकर अपना प्रेम-भाव प्रकट, किया करते थे। कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे-विरोध के भाव से नहीं, अपितु मनोरंजन और आत्मीयता के ही भाव से।

जब वे दोनों हल या गाड़ी में जोते जाते और गर्दन हिला-हिलाकर चलते तो उस समय दोनों की यही कोशिश होती थी कि अधिक-से-अधिक भार मेरी ही गर्दन पर रहे। दिन-भर के वाद दोपहर या शाम को खुलते तो एक-दूसरे को चाट-चाटकर अपनी थकान दूर किया करते थे। नाँद में खली-भूसा पड़ जाने पर दोनों एक ही साथ उठते। एक ही साथ नाँद में मुँह डालते। अगर एक मुँह हटा लेता तो दूसरा भी हटा लेता था।

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प्रश्न 2.
झूरी के प्रति बैलों की कौन-कौन-सी आत्मीयता के भाव प्रकट किए थे?
उत्तर:
झूरी के प्रति उसके बैलों ने निम्नलिखित आत्मीयता के भाव प्रकट किए थे-

  1. वह उन गरीबों को अपने घर से क्यों निकाल रहा है?
  2. क्या उन्होंने उसकी सेवा करने में कोई कमी की?
  3. अगर वे कम मेहनत करते थे, तो वह और उन से काम ले लेता।
  4. उन्हें तो उसकी ही सेवा में मरना-जीना कबूल था।
  5. उन्होंने तो उससे कभी भी दाने-चारे की शिकायत नहीं की। उसने उन्हें जो कुछ भी खिलाया उसे इन्होंने चुपचाप खा लिया। ऐसा होने के बावजूद वह उन्हें गया नामक इस जालिम के हाथ क्यों बेच दिया है।

प्रश्न 3.
लड़की द्वारा गराँव खोल दिए जाने पर बैलों ने क्या किया?
उत्तर:
लड़की द्वारा गराँव खोल दिए जाने पर बैलों ने तेजी से झूरी के घर की ओर भागना शुरू किया। वे सीधे दौड़ते चले गए। यहाँ तक उन्हें रास्ते का कुछ भी पता नहीं चला। वे जिस परिचित रास्ते से आए थे, उसे भूल गए। अब उनके सामने नया रास्ता और नए-नए स्थान आने लगे। तब वे एक खेत के किनारे खड़े हो गए। खेत में मटर थी। उससे अपनी भूख मिटाने लगे थे। रह-रहकर आहट लेते थे कि कोई आता तो नहीं। जब पेट भर गया तो दोनों मस्त होकर उछलने लगे।

प्रश्न 4.
दढ़ियल आदमी से छुटकारा पाने के लिए बैलों ने क्या किया?
उत्तर:
दढ़ियल आदमी से छुटकारा पाने के लिए बैलों ने भागना शुरू किया। रास्ते में ही वे अपने मालिक झूरी के खेत-कुएँ आदि को भली-भाँति पहचान गए थे, इससे उनमें और तेजी आ गई। दोनों उन्मत्त होकर बछड़ों की तरह ल्ले ले करते हुए अपने मालिक झूरी के घर आ गए। फिर अपने थान पर आकर खड़े हो गए।

प्रश्न 5.
झूरी के सामने जब दढ़ियल बैलों को पकड़ने चला तो मोती ने क्या किया?
उत्तर:
झूरी के सामने जब दढ़ियल बैलों को पकड़ने चला तो मोती ने सींग चलाया। दढ़ियल अपने बचाव के लिए पीछे हटा। मोती ने उसका पीछा किया तो वह भागने लगा। वह गाँव से बाहर ही जाकर खड़ा हो गया। उसे इस तरह देखकर मोती उसको देखता रहा। दढ़ियल इस समय धमकियाँ दे रहा था, गालियाँ दे रहा था और पत्थर फेंक रहा था। मोती शूरवीर की तरह उसका रास्ता रोके खड़ा था। जब वह दढ़ियल चला गया तो मोती अकड़ता हुआ लौट आया।

दो बैलों की कथा-कहानी लेखक-परिचय

प्रश्न.
मुंशी प्रेमचन्दं का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनकी साहित्यिक विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
जीवन-परिचय-कथा साहित्य के युग-निर्माता के रूप में मुंशी प्रेमचन्द अत्यन्त लोकप्रिय हैं।

जन्म एवं शिक्षा :
मुंशी प्रेमचन्दजी का जन्म सन् 1880 ई. में काशी के पास पाण्डेयपुर नामक गाँव में हुआ था। आपका असली नाम धनपतराय था। मैट्रिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के उपरान्त आप एक विद्यालय में अध्यापक हो गए। कुछ समय बाद आपने बी.ए. की परीक्षा उत्तीर्ण की और सब डिप्टी इन्सपेक्टर बन गए। आपने अपने विद्यार्थी जीवन-काल से ही कहानियाँ लिखनी शुरू कर दी थीं। आपका निधन सन् 1936 ई. में हो गया।

रचनाएँ :
मुंशी प्रेमचन्द जी ने मुख्य रूप से कथा-साहित्य की रचना की है। इसके अतिरिक्त भी आपने नाटक, निबन्ध और आलोचना साहित्य की संवृद्धि.की. है। आपकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं

उपन्यास :
सेवासदन, कायाकल्प, रंगभूमि, कर्मभूमि, प्रेमाश्रम, गबन, निर्मला और गोदान। आपने ‘मंगलसूत्र’ नामक उपन्यास भी लिखना शुरू किया था।

कहानी :
संग्रह-प्रेम-पचीसी, प्रेम-पूर्णिमा, प्रेम-प्रसून, सन्त-सरोज, मानसरोवर आदि। नाटक-कर्बला, संग्राम और प्रेम की बेदी।

भाषा-शैली :
मुंशी प्रेमचन्द की भाषा-शैली सम्बन्धित निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
1. भाषा :
मुंशी प्रेमचन्द जी की भाषा सरल, सपाट और धाराप्रवाह है। उसमें उर्दू के शब्दों की प्रधानता है। कहीं अंग्रेजी और अरबी-फारसी के भी शब्द हैं।
2. शैली :
मुंशी प्रेमचन्द जी की शैली विविध है। वह कहीं वर्णनात्मक है. और! कहीं चित्रात्मक है। बोधगम्यता आपकी शैलीगत सर्वप्रधान विशेषता है। कहावतों और मुहावरों के अधिक प्रयोग से शैली सशक्त, बोधगम्य और प्रवाहमयी हो गई है।

महत्त्व :
मुंशी प्रेमचंदजी का हिन्दी कथा-साहित्य में बेजोड़ स्थान है। आपने इस क्षेत्र में अपनी लेखनी से भारतीय समाज का आदर्शमय और अत्यन्त प्रभावशाली चित्र खींचकर इसको प्रेरणादायक बना दिया है।

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दो बैलों की कथा-कहानी पाठ का सारांश

प्रश्न.
प्रेमचन्द लिखित कहानी ‘दो बैलों की कथा’ का सारांश अपने शब्दों! में लिखिए।
उत्तर:
मुंशी प्रेमचन्द लिखित कहानी ‘दों बैलों की कथा” में पशुओं के प्रति मनुष्य द्वारा किए जाने वाले आत्मीय और कठोर व्यवहार का रोचक चित्र प्रस्तुत किया गया है। कहानी के अनुसार झूरी के हीरा और मोती दो बैल थे। दोनों सुन्दर और चौकस थे। उनमें परस्पर बहुत प्रेम था। दोनों एक-दूसरे की बात समझ लेते थे। उनमें इतनी घनिष्ठ दोस्ती थी कि वे दो शरीर एक प्राण थे। वे दिनभर काम करने के बाद नाँद में एक ही साथ मुँह डालते थे और एक ही साथ मुँह हटा लेते थे। दोनों एक-दूसरे को चाट-चाटकर अपनी थकान मिटाते थे। एक दिन झूरी ने उन दोनों को अपनी ससुराल भेज दिया। उन्होंने समझ लिया कि वे बेच दिए गए हैं।

इसलिए उन्होंने उन्हें ले जाने वाले झूरी के साले गया का विरोध किया। उन्हें घर तक ले जाने में उसे दाँतों पसीना आ गया। दिन-भर के भूखे रहने पर भी उन्होंने वहाँ कुछ भी खाया-पीया नहीं। रात को सबके सो जाने पर वे पगहे तुड़ाकर भागते हुए झूरी के घर वापस आ गए। झूरी ने दौड़कर उन्हें गले लगाया। गाँव के लोगों ने तालियाँ बजा बजाकर उनका स्वागत किया। लेकिन झूरी की पत्नी से. यह नहीं देखा गया। उसने क्रोध में आकर कहा कि वे दोनों बैल नमकहराम हैं कि बिना काम किए ही भाग आए हैं। इन्हें अब सूखे भूसे ही खाने को दिया जाएगा। झूरी ने इसका विरोध तो किया, लेकिन उसकी एक न चली।

दूसरे दिन आकर झूरी का साला बैलों को ले गया। उन्हें गाड़ी में जोता। मोती ने गाड़ी को सड़क की खाई में गिराना चाहा तो हीरा ने उसे सँभाल लिया। शाम को झूरी ने बदले की भावना से उन्हें मोटी रस्सियों से बाँधकर उनके सामने सूखा भूसा डाल दिया। उन दोनों ने उसे सूंघा तक नहीं। उसने अपने बैलों को खली-चूनी सब कुछ दी। दूसरे दिन उसने उन्हें हल में जोता तो उन्होंने अपने पाँव नहीं बढ़ाए। उसे देखकर गया क्रोध से पागल हो उठा। उसने उन दोनों पर जमकर डण्डे बरसाए। दोनों हल सहित सब कुछ तोड़कर भाग उठे। गया को दो आदमियों के साथ दौड़कर आते हुए देखकर हीरा ने मोती को समझाया कि अब भागना व्यर्थ है। हीरा मोती की बात मानकर चुपचाप खड़ा हो गया। गया उन दोनों को पकड़कर घर ले गया। उसने फिर वही सूखा भूसा उन दोनों के सामने रख दिया। दोनों ने उसे देखा तक नहीं। रात को एक छोटी-सी लड़की उन्हें दो रोटियाँ खिला जाती थी।

वे प्रसाद की तरह उन्हें खाकर चुपचाप पड़े रहते थे। एक दिन उस लड़की ने उन दोनों की मोटी-मोटी रस्सियों को खोलकर उन्हें भाग जाने का मौका दिया। फिर उसने जोर से चिल्लाते हए कहा-“ओ दादा! दोनों बैल भागे जा रहे हैं, जल्दी दौड़ो” इसे सुनकर गया उनको पकड़ने चला। वे दोनों और भागने लगे तो गया भी उनके पीछे तेजी से दौड़ने लगा। यह देख वह गाँव के कुछ लोगों को साथ लेने के लिए लौटा तो वे दोनों और सरपट भागने लगे। इससे उन्हें अपने परिचित रास्ते का कुछ भी ज्ञान नहीं रहा। वे रास्ता भूल भटककर किसी के मटर के खेत में चरने लगे। भरपेट मटर चर लेने के बाद वे इठलाने लगे। उन्हें वहाँ देखकर काजी हाउस में बन्द कर दिया गया। एक सप्ताह तक वे वहाँ विना चारे के बन्द रहे। उन्हें दिन भर में एक बार पानी पिलाया जाता था। इससे वे जिन्दा तो रहे, लेकिन उनसे उठा तक न जाता था।

एक सप्ताह के बाद उनको नीलाम कर दिया गया। एक दढ़ियल आदमी ने उन्हें खरीद लिया। वह बहुत कठोर था। नीलाम होने के बाद दोनों (हीरा और मोती) को वह दढ़ियल लेकर चला। उस समय दोनों भय से थर-थर काँप रहे थे, लेकिन वे मजबूर थे। अचानक उन्हें लगा कि वे परिचित रास्ते पर ही चल रहे हैं। गया उन्हें इसी रास्ते से ले गया था। इसी कुएँ पर वे पुर चलाने आया करते थे। अब हमारा घर पास ही आ गया है। इससे दोनों छलाँग लगाते हुए झूरी के घर की ओर दौड़ने लगे। वहाँ पहुँचकर वे अपने-अपने थान पर खड़े हो गए। उनके पीछे-पीछे दौड़ते हुए वह दढ़ियल भी वहाँ पहुँच गया। झूरी उन दोनों को देखकर प्रसन्नता से झूम उठा। उसने उन्हें गले लगाया। उस दढ़ियल ने कहा-‘मैंने इन्हें मवेशीखाने से नीलाम लिया है।

इसलिए ये मेरे बैल हैं। झूरी ने कहा -‘ये मेरे बैल हैं, क्योंकि ये मेरे द्वार पर खड़े हैं। किसी को मेरे बैलों को नीलाम करने का कोई भी हक नहीं है। लेकिन उस दढ़ियल ने झूरी की एक न सुनी। उसने उन्हें बलपूर्वक पकड़ना चाहा तो मोती ने उसे सींग चलाकर गाँव से बाहर कर दिया। इससे वह हारकर चला गया। मोती अकड़ता हुआ लौट आया। गाँव के लोग यह देखकर बाग-बाग हो गए। झूरी ने उन दोनों के नाँदों में खली, भूसा, चोकर और दाना भर दिया। उन्हें दोनों प्रसन्नतापूर्वक खाने लगे। झूरी उन्हें सहला रहा था।

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दो बैलों की कथा-कहानी संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

1. झरी के दोनों बैलों के नाम थे हीरा और मोती। दोनों पछाई जाति के थे। देखने में सुन्दर, काम में चौकस, डील में ऊँचे। बहुत दिनों साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक-भाषा में विचार-विनिमय करते थे। एक-दूसरे के मन की बात कैसे समझ जाता था, हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूंघकर अपना प्रेम प्रकट करते। कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे-विग्रह के नाते में नहीं। केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोस्तों में घनिष्टता होते ही धोल-धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हल्की-सी रहती है, जिस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता।

शब्दार्थ :
पछाई-पश्चिम प्रदेश का। चौकस-चौकन्ना। विनिमय-लेन-देन, आदान-प्रदान। मूक-मौन। गुप्त-छिपी हुई। वंचित-न पाना, असमर्थ। विग्रह-झंगड़ा, तकरार। विनोद-मनोरंजन। आत्मीयता-लगाव, अपनापन। घनिष्ठता-निकटता। धोल-धप्पा-खुलापन। फुसफुसी-अस्थिर, कामचलाऊ।’

प्रसंग :
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी समान्य भाग-1′ में संकलित तथा मुंशी प्रेमचन्द लिखित कहानी ‘दो बैलों की कथा’ से अवतरित है। इसमें कहानीकार ने पछाई जाति के दो बैलों की अद्भुत विशेषताओं को बतलाने का प्रयास किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि झूरी नामक किसी आदमी के पास पछाई जाति के दो विशेष बैल थे। एक का नाम था हीरा तो दूसरे का नाम था मोती। दोनों की सुन्दरता बहुत अधिक थी। उनका शारीरिक गठन और रूप मन को बार-बार छू लेने वाला था। वे देखने में सुन्दर तो थे ही, अपने काम को पूरा करने में तत्पर रहते थे। वे काम करते समय तनिक भी जी नहीं चुराते थे। वे एक-साथ कई सालों से रह रहे थे। इससे दोनों में बहुत गहरा प्रेम हो गया था। वे अपनी मौन भाषा में परस्पर अपना विचार व्यक्त करते रहते थे। इससे दोनों एक-दूसरे की बातों को खूब अच्छी तरह से समझ जाते थे। उन्हें इस तरह देखकर सबको हैरानी होती थी कि वे कैसे आपस की बातों को समझ लेते हैं। यह अनुमान ही लगाया जा सकता है कि मनुष्य दुर्लभ उनमें कोई अवश्य ही गुप्त शक्ति थी।

कहानीकार का पुनः कहना है हीरा और मोती का परस्पर प्रेम-व्यवहार खुला हुआ था। वे एक-दूसरे के पास बैठते-रहते। एक-दूसरे को चाटते-सूंघते थे। एक-दूसरे को सींग मिलाते थे। उनका यह परस्पर व्यवहार किसी भी दशा में परस्पर लड़ने-झगड़ने की मंशा से नहीं होता था। यह तो उनके परस्पर लगाव को मनोरंजन के रूप में बढ़ाने के लिए ही होता था। इस प्रकार उनकी दोस्ती बहुत घनी हो गई थी। उसमें खुलापन आ गया। उससे वह और टिकाऊ होने लगी थी। सच-मुच में इसके बिना दोस्ती ऐसी हल्की-हल्की-सी बनी रहती है, जिसके समाप्त होने की शंका बनी रहती है।

विशेष :

  1. पछाई जाति के बैलों का रोचक उल्लेख है।
  2. सच्ची दोस्ती की विशेषताओं को बतलाया गया है।
  3. ‘कुछ हल्की -सी’ में उपमा अलंकार है।
  4. सामाजिक शब्दावली है।
  5. वर्णनात्मक शैली है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) लेखक और रचना का नाम लिखिए।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय क्या है?
(iii) पछाई जाति के बैलों की क्या विशेषताएँ होती हैं?
(iv) किस दोस्ती पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता?
उत्तर:
(i) लेखक का नाम-मुंशी प्रेमचन्द, रचना का नाम-‘दो बैलों की कथा’।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय है-पछाई जाति के बैलों की विशेषताएँ बतलाना। लेखक ने इसे बड़े ही रोचक और सरस रूप में व्यक्त किया है। इससे आकर्षक जानकारी मिलती है।
(iii) पछाई जाति के बैलों की अनेक रोचक विशेषताएँ होती हैं. जैसे-देखने में सुन्दर, काम में चौकस, ऊँचे डीलडौल, परस्पर भाईचारा, घनी दोस्ती आदि।
(iv) जिस दोस्ती में आत्मीयता की कमी और भेदभाव हो, उस पर ज्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) दोनों बैलों में भाईचारा क्यों हो गया था?
(ii) मनुष्य से वे दोनों वैल क्यों श्रेष्ठ थे?
(iii) दोनों बैलों में किस प्रकार की दोस्ती थी?
उत्तर:
(i) दोनों बैल बहुत दिनों से एक ही साथ रहते थे। इसलिए उनमें भाईचारा हो गया था।
(ii) दोनों बैल मूक भाषा में एक-दूसरे से विचार-विनिमय किया करते थे। ऐसी अद्भुत शक्ति जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाले मनुष्य में नहीं थी। इस दृष्टि से वे दोनों बैल मनुष्यों में श्रेष्ठ थे।
(iii) दोनों बैलों में घनी और पक्की दोस्ती थी।

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2. संयोग की बात, झूरी ने एक बार मोई को ससुराल भेज दिया। बैलों को क्या मालूम, वे क्यों भेजे जा रहे हैं। समझे, मालिक ने हमें बेच दिया। अपना यों – बेचा जाना उन्हें अच्छा लगा या बुरा, कौन जाने, पर झूरी के साले गया को घर तक गोई ले जाने में दाँतों पसीना आ गया। पीछे से हाँकता तो दोनों दाएँ-बाएँ भागते, पगहिया पकड़कर आगे से खींचता तो दोनों पीछे को जाने लगते। मारता तो दोनों नीचे करके हँकारते। अगर ईश्वर ने उन्हें वाणी दी होती, तो झूरी से पूछते-तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो? हमने तो तुम्हारी सेवा करने में कोई कसर नहीं . उठा रखी। अगर इतनी मेहनत से काम न चलता था तो और काम ले लेते। हमें . तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था। हमने कभी दाने-चारे की शिकायत नहीं की। तुमने जो कुछ खिलाया, वह सिर झुकाकर खा लिया, फिर तुमने हमें इस जालिम के हाथों क्यों बेच दिया।

शब्दार्थ :
संयोग-अचानक। गोई-दो बैलों की जोड़ी। दाँतों पसीना आना-(मुहावरा)-अत्यधिक मेहनत करना। दाएँ-बाएँ-इधर-उधर। पगहिया-पशुओं के गले में बाँधनेवाली रस्सी। हँकारते-हुँकारते, जोर की आवाज करते। वाणी-जबान। कसर-कमी। चाकरी-नौकरी। कबूल-मंजूर, स्वीकार। जालिम-अत्याचारी, जुल्मी, निर्दयी।

प्रसंग :
पूर्ववत्! इसमें कहानीकार ने पछाई जाति के दो बैलों की सच्ची भावनाओं पर प्रकाश डालने का प्रयास किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि एक दिन अचानक झूरी ने अपने उन प्यारे दोनों बैलों हीरा और मोती को अपनी ससुराल भेज दिया। उसका साला गया जब उन दोनों को लेकर चला, तो वे दोनों यह बिलकुल ही नहीं समझ पा रहे थे कि वे अपने मालिक झूरी के पास से क्यों दूसरे मालिक के पास भेजे जा रहे हैं? क्या उनके मालिक ने उन्हें बेच दिया है या और कोई बात है। अगर उनके मालिक ने उन्हें बेच दिया है तो यह उनके लिए बहुत ही अफसोस की बात है। उन्हें इस बात का बेहद दुख है। इस प्रकार सोच-समझ कर वे अपने मालिक के साले गया के साथ जाना अनुचित समझ लिये। फलस्वरूप वे उसके साथ जाने से कतराने लगे। जब वह उन्हें आगे बढ़ाने के लिए पीछे से हाँकता तो वे इधर-उधर होने लगते। पगहिया पकड़कर आगे खींचता तो वे पीछे की ओर भागने लगते। उसके मारने पर वे दोनों जोर-जोर से हुँकारते। इस तरह उसे उन दोनों को अपने घर ले आने में नाकों चने चबाना पड़ा।

कहानीकार का पुनः कहना है कि झूरी के वे दोनों बैल हीरा और मोती अपने मालिक की इस अचानक बेरहमी को बिल्कुल ही नहीं समझ पा रहे थे कि वह अब उन्हें बेसहारा क्यों बना रहा है? अगर वे कुछ बोल पाते, तो वे उससे यह अवश्य पूछते कि क्या उन्होंने उसके काम सच्चाई से नहीं किए। अगर नहीं तो वह उनसे फिर से और सारे काम लेता। वे तो उसका ही काम सच्चाई से करते हुए अपनी पूरी-की-पूरी जिन्दगी बिता देना चाहते थे। उन्होंने तो उससे कभी भी खाने-पीने की कुछ भी शिकायत नहीं की। उन्हें जो कुछ मिला, चुपचाप स्वीकार कर लिया। फिर उनसे ऐसी कौन-सी गलती हुई कि उसने इस बेरहम के गले लगा दिया।

विशेष :

  1. पछाई जाति के बैलों की सच्चाई पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा सरल है।
  3. मार्मिक कथन है।
  4. मुहावरों के सटीक प्रयोग हैं।
  5. यह अंश अधिक रोचक है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) लेखक और रचना का नाम लिखिए।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय क्या है?
(iii) किसने किसे और क्यों ससुराल भेज दिया?
(iv) गया को घर तक गोई को ले जाने में दाँतों पसीना क्यों आ गया?
(v) दोनों बैलों को अपने मालिक से क्या शिकायत थी?
उत्तर:
(i) लेखक का नाम-मुंशी प्रेमचन्द, रचना का नाम-‘दो बैलों की कथा’।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय है-पछाई जाति के दो बैलों का अपनी स्वामि-भक्ति के भावों को प्रकट करना।
(iii) झूरी ने अपने दोनों बैल हीरा और मोती को अपनी ससुराल अपने साला गया के कहने पर भेज दिया।
(iv) गया को घर तक गोई को ले जाने में दाँतों पसीना आ गया। ऐसा इसलिए कि गोई किसी प्रकार से वहाँ जाने में राजी नहीं थे। वे इधर-उधर या आगे-पीछे भाग-भागकर गया को काफी परेशान कर डाले थे।
(iv) दोनों बैलों को अपने मालिक झूरी से कई शिकायत थीं-क्या उन दोनों ने उसके काम ईमानदारी से नहीं किए। अगर कोई कमी थी तो और काम लेते। उन्होंने उससे कभी कोई शिकायत नहीं की। वे तो जीवनभर उसी के यहाँ काम करते हुए मर जाना अच्छा समझते थे। उसने जो कुछ खिलाया, वे चुपचाप खा लिये। फिर उसने इस निर्दयी के गले में क्यों डाल दिया।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) बैलों ने क्या समझा?
(ii) बैलों ने गया का विरोध क्यों किया?
(iii) बैलों की झूरी से शिकायत में कौन-से भाव थे?
उत्तर:
(i) बैलों ने यह समझा कि उनके मालिक ने उन्हें किसी जालिम के हाथ बेच दिया है।
(ii) बैलों ने गया का विरोध किया। ऐसा इसलिए कि वे उसके साथ बिलकल ही नहीं जाना चाहते थे।
(iii) बैलों की अपने मालिक झूरी से शिकायत में सच्ची स्वामि-भक्ति के भाव भरे थे। उनके वे भाव बड़े ही आत्मीय, सरस और मेल-मिलाप के थे।

3. दोनों दिन-भर जोते जाते, डण्डे खाते, अड़ते। शाम को थान पर बाँध दिए। जाते और रात को वही बालिका उन्हें दो रोटियाँ खिला जाती। प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी कि दो-दो गाल भूसा खाकर भी दुर्बल न होते थे, मगर दोनों की आँखों में, रोम-रोम में विद्रोह भरा हुआ था।

शब्दार्थ :
अड़ते-विरोध करते। थान-बूँटा, बैलों के रहने या बैठने का स्थान।। प्रसाद-भेंट। बरकत-शक्ति। दुर्बल-कमजोर। विद्रोह-विरोध।

प्रसंग :
पूर्ववत्! इसमें कहानीकार ने झूरी के दोनों बैलों हीरा और मोती की मेहनत और सहनशीलता को बतलाने का प्रयास किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि झूरी के दोनों बैल हीरा और मोती उसके साले के यहाँ कड़ी मेहनत करने लगे। उसका साला गया उनसे खूब डटकर काम लेता था। वह उन्हें सुबह से शाम तक हल में जोतता था। उन पर जोर-जोर से डण्डे बरसाता था। इससे वे दोनों क्रोधित होकर उसका बार-बार विरोध करते थे। फिर भी वह उनके प्रति जरा भी नरमी नहीं दिखाता था। इस प्रकार उनसे डटकर काम लेने के बाद वह उन्हें उनके रहने-बैठने की जगह पर बाँध देता था। रात होने पर पहले की तरह उसकी लड़की उन्हें चुपके से दो रोटियाँ खिलाकर चली जाती थी। दोनों उसके द्वारा दी हुई उन रोटियों को प्रसाद की तरह बड़े ही प्रेमभाव से लेते थे। उससे उन्हें एक ऐसी अद्भुत सहनशक्ति मिलती थी कि वे रूखा-सूखा भूसा-चारा खाकर भी अपनी कमजोरी कुछ भी अनुभव नहीं करते थे। ऐसा होने पर भी गया के प्रति उनके मन में अधिक घृणा और विरोध भरा हुआ था।

विशेष :

  1. बैल जैसे कड़ी मेहनत करने वाले पशुओं के प्रति मनुष्य की कठोरता का उल्लेख है।
  2. बाल स्वभाव पशु-प्रेम का उल्लेख रोचक रूप में है।
  3. उर्दू-हिन्दी की शब्दावली है।
  4. शैली भावात्मक है।
  5. भाषा मुहावरेदार है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) लेखक और रचना का नाम लिखिए।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का मुख्य भाव क्या है?
(iii) ‘प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी’ ऐसा लेखक ने क्यों कहा है?
उत्तर:
(i) लेखक का नाम-मुंशी प्रेमचन्द, रचना का नाम-‘दो बैलों की कथा’।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का मुख्य भाव यह है कि मनुष्य बैल जैसे बेजुबान पशुओं के प्रति अपने स्वार्थ में अंधा होकर उनकी स्वामि-भक्ति को नहीं देख पाता है। उसे तो बच्चों की निःस्वार्थमयी आँखें देख और समझकर उनसे सहानुभूति रहती है।
(iii) प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी’ ऐसा लेखक ने इसलिए कहा। है कि बालिका द्वारा खिलाई गई उन दो रोटियों से उन दोनों बैलों को अद्भुत आत्मीयता का अनुभव होता था। उससे उनमें गया की कठोरता को सह लेने की पूरी-पूरी ताकत आ जाती थी।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) दोनों बैलों पर गया किस प्रकार जुल्म करता था?
(ii) दोनों बैलों के प्रति कौन तथा कैसे सहानुभूति प्रकट करता था?
(iii) दोनों बैलों की आँखों में किसके प्रति विद्रोह भरा था?
उत्तर:
(i) दोनों बैलों पर झूरी का साला गया खूब जुल्म करता था। वह उन्हें सुबह से शाम तक हल में जोतता था। इसके बावजूद वह उन पर जोरों से डण्डे बरसाता था। शाम होने पर वह उनको रूखा-सूखा चौरा-भूसा डाल देता था।
(ii) दोनों बैलों के प्रति गया की लड़की चुपके से रात को दो रोटियाँ खिलाकर अपनी सहानुभूति प्रकट करती थी।
(iii) दोनों बैलों की आँखों में गया के प्रति अधिक विद्रोह भरा हुआ था।

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4. गया हड़बड़ाकर भीतर से निकला और बैलों को पकड़ने चला। वे दोनों भागे। गया ने पीछा किया। और भी तेज हुए। गया ने शोर मचाया। फिर गाँव के कुछ आदमियों को भी साथ लेने के लिए लौटा। दोनों मित्रों को भागने का मौका मिल गया। सीधे दौड़ते चले गए। यहाँ तक कि मार्ग का ज्ञान न रहा। जिस परिचित मार्ग से आए थे, उसका यहाँ पता न था। नए-नए गाँव मिलने लगे। तब दोनों एक खेत के किनारे खड़े होकर सोचने लगे, अब क्या करना चाहिए।

शब्दार्थ :
हड़बड़ाकर-घबड़ाकर। ज्ञान-पता। परिचित-जाना-पहचाना

प्रसंग :
पूर्ववत्! इसमें कहानीकार ने गया के घर हीरा और मोती के भागने और उनके भटक जाने का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि गया की लड़की ने रात को हीरा और मोती के गले में बँधी हुई रस्सियों को खोलकर उन्हें चुपके से भाग जाने के लिए कहा। इसे सुनते ही दोनों वहाँ से भाग खड़े हुए। इसके बाद उस लड़की ने जोर से चिल्लाते हुए कहा कि दोनों बैल भागे जा रहे हैं। इसे सुनकर गया हड़बड़ाकर भीतर से दौड़ा। उसने उन दोनों बैलों को पकड़ने की पूरी कोशिश की, लेकिन वे उससे दूर निकलने लगे। गया ने थोड़ा और जोर लगाया तो वे और तेजी से भागने लगे।

अपनी पकड़ से उन दोनों को बाहर होते हुए देखकर उसने जोर-जोर से चिल्लाना शुरू किया। उसकी आवाज सुनकर लोग दौड़े-दौड़े उसके पास आ गए। उसने कुछ आदमियों को अपने साथ लेकर उन दोनों बैलों का पीछा किया। इतने समय में वे दोनों काफी दूर निकल गए। वे इतनी तेजी से भाग रहे थे कि वह सही-गलत रास्ते का चुनाव नहीं कर पाए। यहाँ तक कि वे झूरी के घर से जिस रास्ते से होकर आए थे, उससे भी भटक गए। अब उनके सामने सब कुछ नया-नया और अनजान था। इससे वे घबड़ा गए। आगे अब क्या करना चाहिए या क्या नहीं करना चाहिए, इस सोच-विचार में वे एक खेत के किनारे खड़े हो गए।

विशेष :

  1. सारा वर्णन स्वाभाविक रूप में है।
  2. भाषा सरल है।
  3. बोधगम्य शैली है।
  4. अभिधा शब्द-शक्ति है।
  5. वाक्य-गठन छोटे-छोटे हैं।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) लेखक और रचना का नाम लिखिए।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय क्या है?
(iii) दोनों बैल किस सोच-विचार में पड़ गए?
उत्तर:
(i) लेखक का नाम-मुंशी प्रेमचन्द, रचना का नाम- ‘दो बैलों की कथा’।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय है-झूरी के दोनों बैलों की खटाई में पड़ी हुई आजादी का उल्लेख।
(iii) दोनों बैंल अपने जाने-पहचाने रास्ते से भटक गए थे। अब वे इस सोच-विचार में पड़ गए कि वे अब किधर जाएँ और. क्या करें।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.
(i) गया दोनों बैलों को क्यों नहीं पकड़ पाया?
(ii) दोनों बैल अपने परिचित रास्ते से क्यों भटक गए?
(iii) दोनों बैल किस निष्कर्ष पर पहुँचे?
उत्तर:
(i) गया दोनों बैलों को नहीं पकड़ पाया। यह इसलिए कि वे दोनों झांनी तेजी से भाग गए कि वे उसकी पकड़ से बाहर हो गए।
(i) दोनों बैल परिचित रास्ते से इसलिए भटक गए कि झूरी का साला गया। उन्हें पकड़ने के लिए शोर मचाने लगा जिससे गाँव के कई लोग इकट्ठा होकर उन्हें पकड़ने के लिए दौड़े। जल्दी भागने के चक्कर में वे रास्ता भटक गए।
(iii) दोनों बैल इस निष्कर्ष पर पहुँचे कि अब उन्हें अच्छी तरह से सोच-विचार कर ही कदम बढ़ाने चाहिए।

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5. सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा अत्यन्त कठोर, आया और दोनों मित्रों के कूल्हों में उँगली गोदकर मुंशी जी से बातें करने लगा। उसका चेहरा देखकर अन्तर्ज्ञान से दोनों मित्रों के दिल काँप उठे। वह कौन है और उन्हें क्यों टटोल रहा है, इस विषय में उन्हें कोई सन्देह न हुआ। दोनों ने एक-दूसरे को भीत नेत्रों से देखा और सिर झुका लिया।

शब्दार्थ :
सहसा-अचानक। मुद्रा-भाव। गोदकर-घुसाकर। अन्तर्ज्ञान-आत्मज्ञान, भीतरी ज्ञान। भीत-डरे हुए।

प्रसंग :
पूर्ववत्! इसमें कहानीकार ने मवेशीखाने से दोनों बैलों के नीलाम होने के समय का उल्लेख किया है।

व्याख्या :
कहानीकार का कहना है कि मवेशीखाना में पड़े हुए झूरी के दोनों बैलों हीरा और मोती को एक सप्ताह हो गया। एक दिन उनकी नीलामी होने लगी। यों तो उन्हें खरीदने के लिए कई लोग आए। उन्हें कमजोर और मरियल देखकर किसी की हिम्मत उन्हें खरीदने की नहीं होती थी। उनमें से एक दाढ़ीवाला आदमी आया। उसकी आँखें लाल-लाल थीं। उसकी मुद्रा बड़ी कठोर और डरावनी थी। आते ही उसने उन दोनों के कूल्हों में अपनी उँगली को घुसा दिया। फिर वह उनको ख़रीदने के लिए मवेशीखाने के मुंशी से बातें करने लगा। वे दोनों उस दाढ़ीवाले आदमी को देखकर डर गएं। उन्होंने अपने आत्मज्ञान से उसकी बेरहमी को समझ लिया। वे यह भी समझ गए कि वह उनका क्या करेंगा? उसकी मंशा क्या है? अपने ऊपर आने वाली किसी विपदा का अनुमान कर दोनों एक-दूसरे को डरी-डरी आँखों से देखा। फिर इशारों-इशारों में उसे भगवान भरोसे छोड़कर सिर को झुका लिया।

विशेष :

  1. बैलों की बेबसी का उल्लेख है।
  2. भयानक रस का प्रवाह है
  3. भावात्मक शैली है।
  4. देशज शब्दों के प्रयोग हैं।
  5. शब्द-प्रयोग सरल है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) लेखक और रचना का नाम लिखिए।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय प्रया है?
(iii) दढ़ियल आदमी कैसा था?
(iv) दोनों बैलों ने दढ़ियल आदमी को क्या समझा?
उत्तर:
(i) लेखक का नाम-मुंशी प्रेमचन्द, रचना का नाम-‘दो बैलों की कथा’।
(ii) प्रस्तुत गद्यांश का प्रमुख विषय. किसी जुल्मी द्वारा झूरी के दोनों बैलों की नीलामी किए जाने के कारणं दोनों की मजबूरी का उल्लेख करना है।
(iii) दढ़ियल आदमी बड़ा ही भयानक और कठोर था।
(iv) दोनों बैलों ने दढ़ियल आदमी को कसाई समझा।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर-
प्रश्न.
(i) दढ़ियल आदमी ने हीरा और मोती को किस प्रकार टटोला?
(ii) दोनों मित्रों के दिल क्यों काँप उठे?
(iii) किस बात का दोनों मित्रों को कोई सन्देह नहीं हुआ?
उत्तर :
(i) दढ़ियल आदमी ने हीरा और मोती को उनके कूल्हों में उँगली गोदकर टटोला।
(ii) दोनों मित्रों ने अपने अन्तर्ज्ञान से यह समझ लिया कि वह दढ़ियल आदमी बहुत ही कठोर है।
(iii) दोनों मित्रों को इस बात का कोई सन्देह नहीं हुआ कि वह दढ़ियल आदमी उन्हें मार डालेगा।

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