MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 19 उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन

MP Board Class 11th Biology Solutions Chapter 19 उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन

उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन NCERT प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
गुच्छीय निस्यंद-दर (GFR) को परिभाषित कीजिए।
उत्तर:
वृक्कों के द्वारा प्रति मिनट निस्पंदित (Filter) की गई मात्रा गुच्छीय निस्यंद-दर (GFR,Glomerulus Filterate Rate) कहलाती है। एक स्वस्थ व्यक्ति में यह दर 125 मिली प्रति मिनट होती है।

प्रश्न 2.
गुच्छीय निस्यंद दर (GFR) की स्वनियमन क्रियाविधि को समझाइए।
उत्तर:
गुच्छीय निस्वंद दर के नियमन (Regulation) के लिए वृक्कों के गुच्छीय आसन्न तंत्र द्वारा एक अतिसूक्ष्म छनन (Ultrafiltration) की क्रिया संपन्न की जाती है। यह विशेष तंत्र अभिवाही (Afferent) एवं अपवाही (Efferent) धमनिकाओं (Arterioles) के संपर्क स्थल पर दूरस्थ कुण्डलित नलिका (Distal convoluted tubules) के रूपान्तरण से बनता है। गुच्छीय निस्यंद – दर (GFR) में गिरावट के इन आसन्न गुच्छ केशिकाओं (Glomerular capillaries) को रेनिन (Renin) के स्रावण के लिए सक्रिय करती है, जो वृक्कीय रुधिर का प्रवाह, बढ़ाकर गुच्छ निस्यंद-दर को पुनः सामान्य कर देती है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित कथनों को सही अथवा गलत में इंगित कीजिए –

  1. मूत्रण प्रतिवर्ती क्रिया द्वारा होता है।
  2. A.D.H. मूत्र को अल्पपरासरी बनाते हुए जल के निष्कासन में सहायक होता है।
  3. हेनले-लूप मूत्रण के सांद्रण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
  4. बोमन-सम्पुट में रक्त प्लाज्मा से प्रोटीनरहित तरल निस्पंदित होता है।
  5. समीपस्थ संवलित नलिका (PCT) में ग्लूकोस सक्रिय रूप से पुनः अवशोषित होता है।

उत्तर:

  1. सही
  2. गलत
  3. गलत
  4. गलत
  5. सही।

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प्रश्न 4.
प्रतिधारा क्रियाविधि का संक्षेप में वर्णन कीजिए।
उत्तर:
स्तनधारी सांद्रित मूत्र का उत्पादन करते हैं। इस कार्य में हेनले लूप (Henle’s loop) तथा वासा इरेक्टा (Vasa erecta) महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं NaCI और यूरिया आदि का परिवहन, हेनले लूप तथा वासा इरेक्टा की विशेष व्यवस्था द्वारा सुगम बनाया जाता है, जिसे प्रतिधारा क्रियाविधि (Counter currentmechanism) कहते हैं।

यह क्रियाविधि मध्यांश के अंतरकोशीय की प्रवणता को बनाए रखती है। इस प्रकार की अंतरकोशीय प्रवणता संग्रहण नलिका (Collecting duct) द्वारा जल के सहज अवशोषण (Absorption) में योगदान करती है और निस्यंद (Filterate) का सांद्रण करती है।
हमारा वृक्क प्रारंभिक निस्यंद की अपेक्षा लगभग चार गुना अधिक सांद्र मूत्र उत्सर्जित करते हैं। यह निश्चित ही जल के ह्रास (Loss) को रोकने की मुख्य क्रियाविधि है।

प्रश्न 5.
उत्सर्जन में यकृत, फुफ्फुस तथा त्वचा का महत्व बताइए।
उत्तर:
यकृत-उत्सर्जन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। यह रुधिर के अतिरिक्त अमीनो अम्लों को ऑक्सीडेटिव डिएमीनेशन द्वारा अमोनिया और पाइरुविक अम्ल में बदल देता है। पाइरुविक अम्ल ऑक्सीकरण द्वारा ऊर्जा देता है जबकि अमीनो अम्ल को यकृत की कोशिकाएँ कम हानिकारक पदार्थ यूरिया में बदल देती है जिसे वृक्क रुधिर से अलग कर देता है।

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इसके अलावा यकृत पुरानी मृत R.B.Cs को परिसंचरण तंत्र से विखण्डित करके अलग कर देता है और इसके हीमोग्लोबिन को उपयोगी पित्त वर्णकों में बदल देता है। यह कोलेस्ट्रॉल के अलावा आंत्र से अवशोषित स्केटॉल तथा इण्डोल को भी कम हानिकारक पदार्थों में परिवर्तित करके रक्त परिवहन में मिला देता है, जो वृक्क द्वारा रुधिर से अलग कर दिये जाते हैं।त्वचा व फेफड़े सहायक उत्सर्जी अंग हैं –

त्वचा (Skin):
अन्य कार्यों के अलावा मनुष्य की त्वचा में तैलीय (Sebaceous) तथा स्वेद ग्रन्थियाँ (Sweat glands) पायी जाती हैं । ये ग्रंथियाँ अपने स्रावों क्रमश: सीबम (Sebum) तथा पसीने के साथ कुछ उत्सर्जी पदार्थों को भी शरीर से बाहर करती हैं, इस कारण त्वचा को उत्सर्जी अंग कहते हैं।

फफ्फुस / फेफड़ा (Lungs):
हमारे फेफड़े प्रतिदिन भारी मात्रा में CO2 (18 L/day) एवं जलवाष्प का प्रतिदिन निष्कासन करते हैं।

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प्रश्न 6.
मूत्रण की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
मूत्र उत्सर्जन की क्रिया मूत्रण (Urination) कहलाती है और इसे संपन्न करने वाली क्रियाविधि मूत्र-प्रतिवर्त कहलाती है। एक वयस्क मनुष्य प्रतिदिन औसतन 1-1.5 लीटर मूत्र उत्सर्जित करता है। मूत्र एक विशेष गन्ध वाला जलीय तरल है, जो रंग में हल्का पीला तथा थोड़ा अम्लीय (pH-6) होता है औसतन प्रतिदिन 25-30 ग्राम यूरिया का उत्सर्जन होता है। विभिन्न अवस्थाएँ मूत्र की विशेषताओं को प्रभावित करती हैं।

प्रश्न 7.
स्तंभ-I के बिन्दुओं का खण्ड स्तंभ-II से मिलान कीजिएस्तंभ –

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उत्तर:

  1. (c) अस्थिल मछलियाँ
  2. (e) वृक्क नलिका।
  3. (d) मूत्राशय
  4. (a) पक्षी
  5. (b) जल का पुनः अवशोषण

प्रश्न 8.
परासरण नियमन का अर्थ बताइये।
उत्तर:
परासरण नियमन का अर्थ-जीव शरीर या कोशिका या रुधिर में उपस्थित जल की मात्रा का परासरण की क्रिया द्वारा नियन्त्रण परासरण नियन्त्रण (Osmoregulation) कहलाता है। हमारे शरीर में यह कार्य वृक्क द्वारा किया जाता है, शेष जन्तु भी इस कार्य को उत्सर्जी अंगों के द्वारा ही करते हैं।

प्रश्न 9.
स्थलीय प्राणी सामान्यतया यूरिया या यूरिक अम्ल उत्सर्जित करते हैं तथा अमोनिया का उत्सर्जन नहीं करते हैं, क्यों?
उत्तर:
जल की हानि को रोकने के लिए स्थलीय प्राणी यूरिया या यूरिक अम्ल का उत्सर्जन करते हैं, अमोनिया का उत्सर्जन जलीय जीवों के द्वारा किया जाता है। शुष्क वातावरण में रहने वाले जन्तुओं के शरीर में उपापचयी क्रियाओं में बनी अमोनिया को यकृत कोशिकाओं द्वारा यूरिक अम्ल में बदल दिया जाता है, इसके बाद इस यूरिक अम्ल को शरीर से बाहर किया जाता है। यह यूरिक अम्ल न ही विषैला होता है और न ही जल में घुलनशील।

जल में अघुलनशील होने के कारण यूरिकोटेलिज्म उत्सर्जन करने वाले जन्तुओं में उत्सर्जन के कारण जल की हानि अपेक्षाकृत कम होती है और इसे ठोस रवों (Crystals) के रूप में जल की बहुत कम मात्रा के साथ मूत्र के रूप में उत्सर्जित किया जाता है। ये जन्तु कुछ यूरिक अम्ल को मल के साथ भी बाहर करते हैं। यूरिकोटेलिज्म उत्सर्जन करने वाले जन्तुओं को यूरिकोटेलिक जन्तु (Urecotelic animals) कहते हैं। वास्तव में इन जन्तुओं में यह उत्सर्जन शुष्क वातावरण के लिए एक रूपान्तरण है, जिसके द्वारा ये जल हानि को रोकते हैं।

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प्रश्न 10.
वृक्क के कार्य में जक्स्टा गुच्छ उपकरण (JGA) का क्या महत्व है ?
उत्तर:
जब शरीर में पानी की कमी होती है, तब वृक्क अधिक गाढ़े और कम मात्रा में मूत्र का उत्सर्जन करके शरीर से जल हानि को रोकता है । इस क्रिया का श्रेय जक्स्टा मेडुलरी वृक्क नलिकाओं को जाता है। शरीर में वैसोप्रेसिन के अधिक स्रावण के फलस्वरूप ही यह क्रिया होती है । इस क्रिया को वृक्क एक विशिष्ट प्रक्रिया द्वारा सम्पन्न करता है, जिसे प्रति प्रवाह प्रक्रिया (Counter current mechanism) कहते हैं।

प्रश्न 11.
नाम का उल्लेख कीजिए –

  1. एक कशेरुकी, जिसमें ज्वाला कोशिकाओं द्वारा उत्सर्जन होता है।
  2. मनुष्य के वृक्क के वल्कुट के भाग, जो मध्यांश के पिरामिड के बीच से रहते हैं।
  3. हेनले-लूप के समानांतर उपस्थित कोशिका का लूप।

उत्तर:

  1. प्लेनेरिया।
  2. बर्टीनी स्तंभ (Column of Bertini)।
  3. यू (U) आकार की संरचना वासा इरेक्टा बनाती है।

प्रश्न 12.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिये –

  1. हेनले-लूप की आरोही भुजा जल के लिए ………..जबकि अवरोही भुजा इसके लिए …….. है।
  2. वृक्क नलिका के दूरस्थ भाग द्वारा जल का पुनरावशोषण …………….. हॉर्मोन द्वारा होता है।
  3. अपोहन द्रव में …………….. पदार्थ के अलावा रक्त प्लाज्मा के अन्य सभी पदार्थ उपस्थित होते हैं।
  4. एक स्वस्थ वयस्क मनुष्य द्वारा औसतन ……………… ग्राम यूरिया का प्रतिदिन उत्सर्जन होता है।

उत्तर:

  1. अपारगम्य (Impermeable), पारगम्य (Permeable)
  2. एण्टी-डाइयूरेटिक एंजाइम (ADH)
  3.  नाइट्रोजन अपशिष्ट (Nitrogenous wastes)
  4. 25 – 30.

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उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन अन्य महत्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
सही विकल्प चुनकर लिखिए –
1. यूरीनीफेरस नलिका में होते हैं –
(a) साधारण घनाकार एपीथीलियम ऊतक
(b) साधारण सीलियायुक्त एपीथीलियम
(c) स्क्वैमस एपीथीलियम
(d) स्ट्रेटीफाइड एपीथीलियम।
उत्तर:
(b) साधारण सीलियायुक्त एपीथीलियम

2. परानिस्यन्दन किस कारण होता है –
(a) ऑस्मोटिक सान्द्रता
(b) ग्लोमेरुलस हाइग्रोस्टेटिक दाब
(c) रुधिर परिवहन
(d) स्रावण।
उत्तर:
(b) ग्लोमेरुलस हाइग्रोस्टेटिक दाब

3. स्तनधारी वृक्क में बोमन सम्पुट कहाँ स्थित होते हैं –
(a) मेडुला में
(b) कॉर्टेक्स में
(c) पेल्विस में
(d) हाइलम में।
उत्तर:
(b) कॉर्टेक्स में

4. जब A.D.H. की मात्रा कम होती है तो मूत्र विसर्जन की दर –
(a) कम होती है
(b) बढ़ती है
(c) वैसी ही रहती है
(d) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(b) बढ़ती है

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5. निम्न में से कौन-सा भाग प्रोटोजोआ संघ की संकुचनशील रिक्तिका के कार्य के समरूप होता है –
(a) पसीना ग्रन्थियाँ
(b) वृक्क
(c) हृदय
(d) आहारनाल।
उत्तर:
(b) वृक्क

6. स्तनियों का मुख्य उत्सर्जी पदार्थ होता है –
(a) अमीनो अम्ल
(b) अमोनिया
(c) यूरिया
(d) यूरिक अम्ल।
उत्तर:
(c) यूरिया

7. यूरिया की सबसे कम मात्रा किसमें होती है –
(a) पल्मोनरी शिरा में
(b) यकृतीय धमनी में
(c) निवाहिका शिरा में
(d) वृक्कीय शिरा में।
उत्तर:
(d) वृक्कीय शिरा में।

8. मनुष्य के मूत्र में प्रोटीन उपापचय से बने वर्ण्य पदार्थ होते हैं –
(a) यूरेसिल, अमोनिया, यूरिया
(b) यूरिया, यूरिक अम्ल, सोडियम क्लोराइड
(c) यूरिया, मिलैनिन, ग्वानीन
(d) यूरिया, यूरिक अम्ल, क्रिएटिनिन।
उत्तर:
(d) वृक्कीय शिरा में।

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9. ग्लोमेरुलर निस्यन्द होता है –
(a) रुधिराणु रहित रुधिर
(b) जल, अमोनिया, रुधिराणुओं का मिश्रण
(c) रुधिराणु एवं प्लाज्मा प्रोटीन रहित रुधिर
(d) मूत्र।
उत्तर:
(c) रुधिराणु एवं प्लाज्मा प्रोटीन रहित रुधिर

10. स्तनी प्राणियों की उदर गुहा में दोनों वृक्क अनियमित स्थिति में होते हैं, बायाँ वृक्क कुछ पीछे या पश्च स्थित होता है। यह किसकी उपस्थिति के कारण होता है –
(a) स्प्लीन के
(b) आमाशय के
(c) सीकम तथा कोलन के
(d) बड़े मलाशय के।
उत्तर:
(b) आमाशय के

11. स्तनधारी के वृक्क में बोमन सम्पुट कहाँ स्थित होते हैं –
(a) मेडुला में
(b) कॉर्टेक्स में
(c) पेल्विस में
(d) हाइलम में।
उत्तर:
(b) कॉर्टेक्स में

12. डाइयूरेसिस अवस्था जिसमें –
(a) मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है
(b) मूत्र की मात्रा घट जाती है
(c) वृक्क मूत्र निर्माण बन्द कर देते हैं
(d) रुधिर का जल आयतन समाप्त हो जाता है।
उत्तर:
(a) मूत्र की मात्रा बढ़ जाती है

13. वृक्क बहुत सूक्ष्म कोशिकाओं तथा नलिकाओं का बना होता है जो कहलाती है –
(a) ऐक्जॉन्स
(b) डेण्ड्रॉन
(c) न्यूरॉन्स
(d) नेफ्रॉन्स।
उत्तर:
(d) नेफ्रॉन्स।

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14. मानव मूत्र में यूरिया किसके टूटने से बनता है –
(a) ग्लूकोज के
(b) अमीनो अम्ल के
(c) वसा के
(d) यूरिक अम्ल के।
उत्तर:
(d) यूरिक अम्ल के।

15. वृक्क में जल का पुनः अवशोषण किस हॉर्मोन के नियन्त्रण में होता है –
(a) STH के
(b)ACTH के
(c) LH के
(d) ADH के।
उत्तर:
(d) ADH के।

16. सामान्य अवस्था में वृक्क नलिकाओं द्वारा कौन-सा पदार्थ पुनः पूर्णरूप से अवशोषित कर लिया जाता है –
(a) यूरिया
(b) यूरिक अम्ल
(c) लवण
(d) ग्लूकोज।
उत्तर:
(d) ग्लूकोज।

17. वृक्कों द्वारा रुधिर के संगठन के नियन्त्रण को सन्तुलित करने की क्रिया कहलाती है –
(a) ऑस्मोरेगुलेशन
(b) होमियोस्टेसिस
(c) कन्जरवेशन
(d) प्रभावी फिल्टरन।
उत्तर:
(b) होमियोस्टेसिस

18. केशिका गुच्छ के उत्सर्जी पदार्थों का निस्यन्द होता है –
(a) अवशोषण द्वारा
(b) परासरण द्वारा
(c) विसरण द्वारा
(d)अतिसूक्ष्म निस्यन्द द्वारा।
उत्तर:
(d)अतिसूक्ष्म निस्यन्द द्वारा।

19. स्तनी में हेनले का लूप वृक्क नलिकाओं का भाग है जो पाये जाते हैं –
(a) मेडुला में
(b) कॉर्टेक्स में
(c) पेल्विस में
(d) विर्डर नाल में।
उत्तर:
(a) मेडुला में

20. मनुष्य का वृक्क होता है –
(a) प्रोनेफ्रॉन
(b) मीसोनेफ्रॉन
(c) मेटानेफ्रॉन
(d) ओपिस्थोनेफ्रॉन।
उत्तर:
(c) मेटानेफ्रॉन

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प्रश्न 2.
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिये –

  1. जलीय जन्तु नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थों को ……………. के रूप में बाहर छोड़ते हैं।
  2. मूत्र के निर्माण की प्रक्रिया को बढ़ाने वाले पदार्थ ………….. कहलाते हैं।
  3. शरीर से उत्सर्जी पदार्थों को कृत्रिम रूप से बाहर करना ……………. कहलाता है।
  4. ……………. मूत्र के सान्द्रण हेतु उत्तरदायी होता है।
  5. मूत्र का पीला रंग ……………. नामक वर्णक के कारण होता है।
  6. यूरिया का निर्माण ……………. में होता है।
  7. वृक्कों की क्रियात्मक इकाइयाँ ……………. होती हैं।
  8. झींगा का उत्सर्जन अंग …………… है।
  9. केंचुए का उत्सर्जन अंग …………. है।
  10. जब मूत्र में जल और सोडियम की मात्रा बढ़ जाती है तो इसे ………….. रोग कहते हैं।

उत्तर:

  1. अमोनिया
  2. डाइयूरेटिक्स
  3. हीमोडायलिसिस
  4. हेनले लूप
  5. बिलिरुबिन
  6. यकृत
  7. नेफ्रॉन
  8. ग्रीन लैण्ड
  9. नेफ्रीडिया
  10. एडीसन।

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प्रश्न 3.
उचित संबंध जोडिए –
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उत्तर:

  1. (d) पित्त रस
  2. (a) यूरिकोटेलिक
  3. (e) यूरिया
  4. (b) ग्रीन ग्रंथि
  5. (c) वृक्क

प्रश्न 4.
एक शब्द में उत्तर दीजिए –

  1. मूत्र में उपस्थित वर्णक का नाम बताइये।
  2. मूत्र में सोडियम एवं पोटैशियम के उत्सर्जन को कौन-सा पदार्थ नियन्त्रित करता है ?
  3. मूत्र के आयतन को नियन्त्रित करने वाले कारक कौन-से हैं ?
  4. हाइड्रा के उत्सर्जन अंग का नाम लिखिए।
  5. वृक्क नलिका के उस भाग का नाम बताइए जो A.D.H. द्वारा उत्तेजित होता है।
  6. उस हॉर्मोन का नाम बताइए जो नेफ्रॉन में मूत्र निर्माण को नियन्त्रित करता है।
  7. मनुष्य के प्रमुख उत्सर्जी पदार्थों के नाम बताइए।
  8. हेनले लूप क्या है ?
  9. उस धमनी का नाम बताइए जो वृक्क में रक्त ले जाती है।
  10. यूरिया का निर्माण कहाँ होता है ?
  11. कॉकरोच के उत्सर्जी अंग का नाम लिखिए।
  12. वृक्क की संरचनात्मक इकाई क्या है ?
  13. यूरिया का निर्माण यकृत में किस रासायनिक चक्र द्वारा होता है ?
  14. प्रोटीन के डी-एमीनेशन से कौन-सा पदार्थ बनता है ?
  15. प्रॉन के उत्सर्जी अंग का नाम लिखिए।

उत्तर:

  1. यूरोक्रोम
  2. एल्डोस्टीरॉन
  3. वैसोप्रेसिन हॉर्मोन
  4. शरीर की कोशिकाएँ
  5. दूरस्थ कुंडलित नलिका
  6. वैसोप्रेसिन
  7. यूरिया
  8. नेफ्रॉन की U आकार की नलिका
  9. रीनल आर्टरी
  10. यकृत
  11. मैल्पीघी नलिकाएँ
  12. नेफ्रॉन
  13. आर्निथीन चक्र द्वारा
  14. अमोनिया
  15. ग्रीन
  16. ग्लैण्ड।

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उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
यूरियोटेलिक जन्तुओं में इस उत्सर्जन के महत्व को समझाइए।
उत्तर:
इस प्रकार के उत्सर्जन में जन्तु नाइट्रोजनी उत्सर्जी पदार्थों को यूरिया के रूप में उत्सर्जित करते हैं। यूरिया प्रकृति में अन्य उत्सर्जी पदार्थों के अनुपात में कम हानिकारक होती है। इस प्रकार उत्सर्जन या तो जलीय जन्तुओं में या उन स्थानीय जन्तुओं में पाया जाता है, जिनको जल के संरक्षण की आवश्यकता नहीं होती अर्थात् उन जन्तुओं में यह उत्सर्जन एक प्रकार से उपर्युक्त परिस्थितियों के लिए अनुकूलन है।

प्रश्न 2.
यूरिया के स्थान पर यूरिक अम्ल का उत्सर्जन पक्षियों एवं सरीसृपों के लिए ज्यादा उपयोगी है, क्यों?
उत्तर:
यूरिक अम्ल तथा इसके लवण अपेक्षाकृत कम विषैले तथा जल में अघुलनशील होते हैं। इस कारण इनका उत्सर्जन ठोस रूप में किया जाता है। फलत: जल की हानि नहीं होती जबकि यूरिया के उत्सर्जन में जल की हानि होती है। इस प्रकार पक्षियों तथा सरीसृपों में यूरिक अम्ल का उत्सर्जन जल की हानि को रोकने का एक रूपान्तरण है।

प्रश्न 3.
निम्नलिखित जन्तुओं के उत्सर्जी अंगों के नाम लिखिए –

  1. प्रोटोजोआ
  2. सीलेन्ट्रेट्स
  3. मोलस्क
  4. ऑर्थोपोड्स
  5. एनीलिडा।

उत्तर:

  1. प्रोटोजोआ-संकुचनशील धानियाँ, प्लाज्मा झिल्ली।
  2. सीलेन्ट्रेट्स-कोशिका झिल्ली से सीधा विसरण।
  3. मोलस्क-रीनल अंग या वृक्क।
  4. ऑर्थोपोड्स-मैल्पीषियन नलिकाएँ।
  5. एनीलिडा–नेफ्रीडिया।

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प्रश्न 4.
ऊँट में कूबड़ क्यों पाया जाता है ?
उत्तर:
ऊँट में कूबड़ पाया जाता है, जिसमें काफी मात्रा में वसा संगृहीत होती है। इसी वसा में जल संचित रहता है। मरुस्थलीय जन्तु होने के कारण जल उपलब्ध नहीं होने पर वसा के विघटन से प्राप्त जल शारीरिक क्रियाओं के काम आता है। इस प्रकार कूबड़, ऊँट में जल की कमी को पूरा करने के लिए एक अनुकूल है।

प्रश्न 5.
शरीर के किस अंग के द्वारा अमोनिया को यूरिया में परिवर्तित किया जाता है ?
उत्तर:
यकृत।

प्रश्न 6.
यदि किसी मनुष्य के यकृत में डी-एमीनेशन की क्रिया बन्द कर दी जाये तो उत्सर्जन की क्रिया पर क्या प्रभाव पड़ेगा?
उत्तर:
अमोनिया का आगे यूरिया में परिवर्तित होकर शरीर से बाहर निकलना बन्द हो जाएगा, क्योंकि छोटी आँत से यकृत में आयी हुई अमीनो अम्ल की अधिक मात्रा से अमीनो भाग को हटाकर शर्करा का निर्माण बन्द हो जाएगा, फलतः पायरुविक अम्ल और अमोनिया का बनना बन्द हो जाएगा। इस प्रकार इस क्रिया के कारण हमारे शरीर की दूसरी जैविक क्रियाएँ भी प्रभावित होंगी और शरीर में हानिकारक पदार्थ एकत्रित होते रहेंगे।

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उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
दूरस्थ कुण्डलित तथा संग्राहक कुण्डलित नलिका की पारगम्यता किस प्रकार नियन्त्रित की जाती है ? जिसके कारण शरीर में जल की मात्रा का नियन्त्रण किया जाता है।
उत्तर:
जब हमारे शरीर में जल की मात्रा अधिक होती है, तब वृक्क के नेफ्रॉन्स इसे रुधिर से अवशोषित करके मूत्र को तनु और अधिक मात्रा में बनाते हैं, लेकिन जब शरीर में जल की मात्रा कम हो जाती है तब वृक्क नलिकाएँ जल अवशोषण को कम कर देती हैं, जिससे मूत्र कम तथा गाढ़ा हो जाता है। मूत्र की प्रकृति में ये परिवर्तन नेफ्रॉन्स की दूरस्थ कुण्डलित नलिकाओं और संग्रह नलिकाओं की पारगम्यता में परिवर्तन के कारण पैदा होते हैं और इनकी पारगम्यता का नियन्त्रण दो हॉर्मोनों के द्वारा किया जाता है।

पहला हॉर्मोन ऐल्डोस्टीरॉन (Aldosteron) है, जो वृक्क नलिकाओं के निस्यद (Filtrate) से Na’ के पुनः अवशोषण को बढ़ाता है, जिससे शरीर के आन्तरिक वातावरण में Na’ की उचित मात्रा बनी रहे। दूसरा हॉर्मोन वैसोप्रेसिन (Vasopressin) मूत्र की तनुता और सान्द्रता का नियन्त्रण करता है । ऐल्डोस्टीरॉन का निर्माण ऐड्रीनल ग्रन्थि के कॉर्टेक्स तथा वैसोप्रेसिन का निर्माण पीयूष ग्रन्थि की पश्च पालि में होता है।

प्रश्न 2.
वृक्क के किन्हीं चार कार्यों को लिखिए।
उत्तर:
वृक्क का मुख्य कार्य नाइट्रोजन युक्त उत्सर्जी पदार्थों को शरीर से बाहर निकालना है। इसके अलावा ये निम्नलिखित कार्यों का भी सम्पादन करते हैं
1. जल सन्तुलन (Water balance):
वृक्क शरीर में जल की मात्रा को सन्तुलित बनाये रखने का कार्य करते हैं। ये जल की अतिरिक्त मात्रा को शरीर से बाहर निकालते हैं।

2. लवण संतुलन (Salt balance)
अतिरिक्त लवणों को भी वृक्क मूत्र के साथ बाहर निकाल देते हैं। इस प्रकार रुधिर में आवश्यकता से अधिक लवण नहीं हो पाते।

3. अम्ल-क्षार सन्तुलन (Acid-Base balance)
वृक्क शरीर में अम्ल-क्षार का सन्तुलन बनाये रखते हैं।

4. हानिकारक पदार्थों का संतुलन (Balance of harmful substances)
वृक्क शरीर में अनावश्यक रूप से उत्सर्जी पदार्थों, जैसे-विष, दवाइयों इत्यादि को भी मूत्र के साथ बाहर निकालते हैं और इस प्रकार हानिकारक पदार्थों का संतुलन बनाये रखते हैं।

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प्रश्न 3.
नेफ्रॉन का चित्र बनाकर निम्न को नामांकित कीजिये –
(1) ग्लोमेरुलस
(2) बोमेन्स कैप्सूल
(3) हेनले का लूप
(4) संग्रहण नलिका।
अथवा
मनुष्य के नेफ्रॉन का नामांकित चित्र बनाइये।
उत्तर:

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टीप:
तारांकित स्थानों पर नामांकन दिखाया गया है।

प्रश्न 4.
ऐल्डोस्टीरॉन का क्या कार्य है ? समझाइए।
उत्तर:
ऐल्डोस्टीरॉन हॉर्मोन ऐड्रीनल ग्रन्थि द्वारा स्रावित होता है। यह रुधिर में Na+ आयन की मात्रा को नियन्त्रित करता है। पुनः अवशोषण का नियन्त्रण रेनिन (Renin) हॉर्मोन द्वारा होता है, जो कि वृक्क द्वारा स्रावित होता है। रेनिन हॉर्मोन द्वारा ऐन्जियोटेन्सिनोजन का एन्जियोटेन्सिन (Angiotensin) में परिवर्तित करता है। ऐन्जियोटेन्सिन ऐड्रीनल कॉर्टेक्स में ऐल्डोस्टिरॉन के स्रावण को उत्प्रेरित करता है।

प्रश्न 5.
नेफ्रोस्टोम (Nephrostome) क्या है ? इसकी कार्यविधि को समझाइए।
उत्तर:
यह कीप के समान संरचना है, जिसके मुख पर रोम पाये जाते हैं। इसकी चौड़ी शिरा देहगुहा एवं सँकरी शिरा वृक्क शिराओं में खुलती है। मुख में उपस्थित रोम की गति से देहगुहा का द्रव वृक्क शिरा (Renal vein) में आता है। नेफ्रोस्टोम मेढक की भ्रूणीय अवस्था में पाये जाते हैं जो बाद में नष्ट हो जाते हैं।

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प्रश्न 6.
होमियोस्टेसिस एवं डाइयूरेसिस से क्या समझते हैं ?
उत्तर:
होमियोस्टेसिस (Homeostasis):
शरीर के अंदर के वातावरण को स्थायी एवं नियन्त्रित बनाये रखना होमियोस्टेसिस कहलाता है। नेफ्रॉन या वृक्क नलिकाओं द्वारा स्थायी नियन्त्रण बना रहता है। इनके द्वारा जल, खनिज लवण एवं अन्य पोषक पदार्थों का अवशोषण होता है एवं उत्सर्जी पदार्थों को शरीर से बाहर करती हैं।

डाइयूरेसिस (Diuresis)-मूत्र स्रावण की मात्रा बढ़ जाने की क्रिया को डाइयूरेसिस कहते हैं। ऐसे पदार्थ जो मूत्र स्रावण की मात्रा बढ़ाते हैं, वे डाइयूरेटिक (Diuretic) पदार्थ कहलाते है। यूरिया एक प्रकार का डाइयूरेटिक है, जो कि मूत्र स्रावण को बढ़ा देता है। ग्लूकोज, कैफीन भी डाइयूरेटिक पदार्थ हैं।

उत्सर्जी उत्पाद एवं उनका निष्कासन दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
मनुष्य के वृक्क की संरचना को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
वृक्क की बाह्य संरचना (External structure of kidney):
वृक्क कशेरुक दण्ड के नीचे उदर में स्थित सेम के बीज के समान संरचना है, जिसकी लम्बाई 10 cm एवं चौड़ाई 6 cm होती है। इसका भार लगभग 150 gm होता है। वृक्क मनुष्य का मुख्य उत्सर्जी अंग है। वृक्क के दोनों ओर ऐड्रीनल ग्रन्थियाँ पायी जाती हैं। वृक्कों द्वारा रुधिर में उपस्थित पदार्थ पृथक् किये जाते हैं, जिसे मूत्र द्वारा शरीर के बाहर कर दिया जाता है। वृक्क के अंदर अवतल किनारा हाइलम कहलाता है। इस स्थान से मूत्रवाहिनी एवं वृक्क शिरा बाहर निकलती हैं और वृक्क धमनी प्रवेश करती है।

वृक्क की आंतरिक संरचना (Inter to Urinary bladder nal structure of kidney):
वृक्क की आंतरिक संरचना में दो भाग स्पष्ट दिखाई देते हैं-बाहरी भाग कॉर्टेक्स (Cortex) तथा भीतरी भाग मेड्यूला (Medulla) कहलाता है। मेड्यूला (Medulla) से घिरे मूत्र वाहिनी के विस्तृत भाग को वृक्क श्रेणी या पेल्विस कहते हैं। वृक्क में अनेक कुण्डलित इकाइयाँ (नलियाँ) पायी जाती हैं, जिन्हें वृक्क नलिकाएँ कहते हैं। प्रत्येक वृक्क नलिका (Uriniferous tubular) का आरम्भ मेड्यूला भाग से होता है।

इनके सिरे पर एक प्याली जैसी रचना बोमेन सम्पुट (Bowman capsule) होती है, जिसमें रक्त केशिकाओं का जाल ग्लोमेरुलस (Glomerulus) होता है। ग्लोमेरुलस का निर्माण एक अभिवाही धमनी (Afferent arteriole) द्वारा होता है, जो अपवाही धमनिका (Efferent arteriole) के रूप में बोमेन सम्पुट से बाहर निकलती है यह वृक्क के चारों ओर एक जाल बनाती है। ये केशिकाएँ आपस में मिलकर सूक्ष्म शिराएँ (Venules) बनाती हैं, जो मिलकर वृक्क शिरा (Renal vein) के रूप में बाहर निकलती हैं।

केशिका गुहा का निर्माण करने वाली धमनिकाएँ वृक्क धमनी (Renal artery) की शाखाएँ होती हैं। वृक्क नलिकाएँ संग्राहक नलिकाओं में खुलती हैं। यहीं मूत्र एकत्रित होता है। संग्रह नलिकाएँ ही मिलकर मूत्र वाहिनियों का निर्माण करती हैं। दोनों वृक्कों से आने वाली मूत्र वाहिनियाँ (Ureter) पीछे की ओर अलग-अलग छिद्रों द्वारा मूत्राशय में खुलती है।

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है। यह यूरिक अम्ल न ही विषैला होता है और न ही जल में घुलनशील। जल में अघुलनशील होने के कारण यूरिकोटेलिज्म उत्सर्जन करने वाले जन्तुओं में उत्सर्जन के कारण जल की हानि अपेक्षाकृत कम होती है और इसे ठोस रवों (Crystals) के रूप में जल की बहुत कम मात्रा के साथ मूत्र के रूप में उत्सर्जित किया जाता है । ये जन्तु कुछ यूरिक अम्ल को मल के साथ भी बाहर करते हैं।

यूरिकोटेलिज्म उत्सर्जन करने वाले जन्तुओं को यूरिकोटेलिक जन्तु (Urecotelic animals) कहते हैं। वास्तव में इन जन्तुओं में यह उत्सर्जन शुष्क वातावरण के लिए एक रूपान्तरण है, जिसके द्वारा ये जल हानि को रोकते हैं।

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प्रश्न 2.
मूत्र निर्माण की क्रियाविधि का विस्तृत वर्णन कीजिए।
उत्तर:
शरीर में उपस्थित उपापचयी हानिकारक पदार्थों को बाहर करने की क्रिया को उत्सर्जन कहते हैं। नाइट्रोजन युक्त pressure उपापचयी उत्सर्जी पदार्थों का उत्सर्जन मूत्र के । रूप में होता है। वृक्क प्रमुख उत्सर्जी अंग है, जिसमें कार्यात्मक इकाई नेफ्रॉन उपस्थित रहता है। 30 mm Hg वृक्क के अंदर ही मूत्र (Urine) का निर्माण होता है।

मूत्र निर्माण की क्रियाविधि (Mecha Renal intratubular nism of urine formation):
यकृत में यूरिया का निर्माण होता है एवं रुधिर में पहुँचकर वक्क नलिकाओं में पहुँचता है। वक्क नलिकाओं द्वारा चित्र-अतिसूक्ष्म निस्यन्दन का भित्तीय प्रदर्शन मूत्र का निर्माण तीन भौतिक विधियों द्वारा होता है –

  1. अतिसूक्ष्म निस्यन्दन (Ultrafiltration)
  2. पुनः अवशोषण (Reabsorption)
  3. स्रावण (Secretion)।

1. अतिसूक्ष्म निस्यन्दन (Ultrafiltration):
यह क्रिया वृक्क के बोमेन कैप्स्यूल में होती है। ग्लोमेरुलस एवं बोमेन कैप्स्यूल की भित्तियाँ आपस में सटी-सटी रहती हैं, जो कि छानने का कार्य करती हैं। अभिवाही धमनी से रुधिर जब ग्लोमेरुलस में आता है तो इसका दाब काफी बढ़ जाता है, क्योंकि अपवाही धमनी का व्यास कम होता है। ग्लोमेरुलस में रुधिर दाब को द्रवस्थैतिक दाब (Hydrostatic Pressure) कहते हैं। यह दाब 70 mm Hg होता है।

इस दाब के कारण रुधिर में उपस्थित यूरिया, यूरिक अम्ल, ग्लूकोज, लवण एवं अन्य पदार्थ विसरित होकर बोमेन सम्पुट में आ जाते हैं। छनित द्रव को ग्लोमेरुलस निस्यन्द (Glomerulus filtrate) कहते हैं। मनुष्य में प्रभावी निस्यन्दन दाब 10 mm Hg होता है जिससे छानने की क्रिया होती है। मानव में 125ml छनित द्रव दोनों वृक्कों से प्रति मिनट बनता है। एक दिन में लगभग 180 लीटर छनित द्रव प्राप्त होता है, जिसमें 0.8% ही मूत्र के रूप में परिवर्तित होता है।

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2. पुनः अवशोषण (Reabsorption):
जैसा कि हम देखते हैं कि वर्ण्य या उत्सर्जी पदार्थों के साथ कुछ उपयोगी पदार्थों जैसे-ग्लूकोज, जल तथा लवण को भी ग्लोमेरुलस द्वारा छानकर अलग कर दिया जाता है। चूंकि ये पदार्थ शरीर के लिए उपयोगी होते हैं। अतः इन्हें मूत्र के साथ बाहर न करके पुनः अवशोषित कर लिया जाता है। वृक्क नलिकाओं के चारों तरफ रीनल धमनिका तथा रीनल शिराओं का जाल बिछा होता है, जब रुधिर से छना भाग कुण्डलित वृक्क नलिकाओं से गुजरता है तो वृक्क नलिकाओं की एपिथीलियल कोशिकाएँ इन उपयोगी पदार्थों को अवशोषित कर लेती हैं तथा इसे रुधिर कोशिकाओं में डाल देती हैं।

यहाँ पर पानी की अधिकांश मात्रा (लगभग 90%) भी अवशोषित कर ली जाती है, जिससे वृक्क नलिका का शेष द्रव गाढ़ा हो जाता है, अब इसे मूत्र कहते हैं। इससे कुछ जल, यूरिया तथा कुछ लवण घुले होते हैं। यह मूत्र संग्रह नलिकाओं, संग्रह वाहिनियों और मूत्र वाहिनी से होता हुआ मूत्राशय में एकत्र किया जाता है।

मूत्राशय की दीवार पारदर्शक तथा बाहर की ओर एपिथीलियम तथा बीच में अरेखित पेशियों व संयोजी ऊतकों की बनी होती है। जब ये अरेखित पेशियाँ संकुचित होती हैं तो मूत्र मूत्रमार्ग से होता हुआ शरीर से बाहर चला जाता है।
पुनः अवशोषण की क्रिया नेफ्रॉन या वृक्क नलिका के लावी भाग में होती है।

3. स्त्रावण (Secretion):
ग्लोमेरुलस में छनन के बावजूद रुधिर में कुछ उत्सर्जी पदार्थ शेष रह जाते हैं, जिन्हें वृक्क नलिका की दीवार की कोशिकाएँ अवशोषित कर लेती हैं, क्योंकि ग्लोमेरुलस से आने वाली कोशिकाएँ वृक्क नलिका के चारों तरफ जाल के रूप में स्थित होती हैं । वृक्क नलिका द्वारा अवशोषित ये वर्ण्य पदार्थ वृक्क नलिका की कोशिकाओं से विसरित होकर नलिका के मूत्र में शामिल हो जाते हैं। इस क्रिया को स्रावण कहते हैं।

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प्रश्न 3.
निम्नलिखित पर संक्षिप्त टिप्पणी लिखिए –

  1. नेफ्रिडियम
  2. हरित ग्रन्थि।

उत्तर:
(1) नेफ्रिडियम (Nephridium):
यह एक उत्सर्जी अंग है, जो ऐनीलिडा संघ के जन्तुओं में पाया जाता है। नेफ्रिडियम, नेफ्रोस्टोम व शीर्षस्थ वाहिनी (Terminal duct) से मिलकर बना होता है। नेफ्रोस्टोम एक सिलिएटेड फनल द्वारा देहगुहा में खुलता है। नेफ्रोस्टोम के पीछे एक छोटी तथा सँकरी नलिका होती है, जो नेफ्रोस्टोम को शीर्षस्थ वाहिनी से जोड़ती है इसे ग्रीवा कहते हैं।

नेफ्रोस्टोम का शरीर लम्बी कुण्डलित नली का बना होता है जिसे दो पालियों में बाँटा जा सकता है-सीधी lobe पालि (Straight lobe) तथा वयावृत पालि (twisted lobe) नेफ्रोस्टोम की ग्रीवा से शीर्ष उत्सर्जन नलिका (Terminal excretory duct) है, जो सेप्टल उत्सर्जी नाल (Septal excretory duct) में खुलती है।

यह नाल अपने ही ओर की सुप्राइन्टेस्टाइनल उत्सर्जी नाल (Supra -intestinal excretory duct ) में खुलती है जो आहारनाल में खुलती है। इस प्रकार प्रत्येक नेफ्रिडियम देहगुहा तथा रुधिर से उत्सर्जी पदार्थ एकत्रित करके आहारनाल द्वारा शरीर से बाहर निकाल देता है।

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(2) हरित ग्रन्थि (Green gland):
पैलीमोन आर्थोपोडा संघ के वर्ग क्रस्टेशिया का जन्तु हैं, जिसमें उत्सर्जी अंग हरित ग्रन्थि होती है। ये ऐण्टिनी में स्थित Glandular होते हैं। प्रत्येक हरित ग्रन्थि में एक एण्ड सैक (End sac), लेबिरिन्थ (Labyrinth) तथा आशय (Bladder) होते हैं। एण्ड सैक एक सेम के बीज के आकार की रचना है, जिसमें रुधिर रिक्तिकाएँ होती हैं।

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यहीं सर्वप्रथम Renal sac / मूत्र का निर्माण होता है, जो लेबिरिन्थ की नलिकाओं से होता हुआ आमाशय में पहुँचता है। आमाशय एक सूक्ष्म मूत्र नलिका (Ureter) से जुड़ा रहता है और छिद्र द्वारा बाहर खुलता है, जिसे वृक्क छिद्र (Renal pores) कहते हैं। आशय एक नलिका द्वारा वृक्क थैली (Renal sacs) से भी जुड़ता है।

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