MP Board Class 11th General Hindi अपठित बोध
MP Board Class 11 General Hindi अपठित गद्यांश
अपठित रचना से तात्पर्य बिना पढ़े पद्यांश और गद्यांश से है। अपठितांश बहुधा निर्धारित है और प्रचलित पाठ्य पुस्तकों के अतिरिक्त किसी भी पुस्तक से प्रश्न-पत्र में दिया जाता है। ऐसे अपठित गद्यांशों और पद्यांशों से छात्रों की योग्यता और अध्ययनशीलता का परिचय मिलता है। अपठित अंश की व्याख्या अथवा संक्षेपण करने से यह भी पता चलता है कि विद्यार्थी में भाषा पर कितना अधिकार है और उसकी अभिव्यंजना शक्ति कितनी है।
अपठित अवतरण
1. हम नाम के आस्तिक हैं, हर बात में ईश्वर का तिरस्कार करके ही हमने आस्तिक की ऊँची उपाधि पाई है। ईश्वर का एक नाम दीनबन्धु है। यदि हम वास्तव में आस्तिक हैं, ईश्वर भक्त हैं, तो हमारा यह पहला धर्म है कि दीनों को प्रेम से गले लगाएँ, उनकी सहायता करें, उनकी सेवा-सुश्रूषा करें तभी न दीनबन्धु ईश्वर हम पर प्रसन्न होगा।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
2. हमारे समस्त आचरण में संयम की आवश्यकता है। हमें अपने विचारों और आवेगों को भी संयम की वल्गा से रोकना चाहिए। गाँधीजी के देश में यह बताने की आवश्यकता नहीं कि सत्य के लिए दण्ड भोगना समाज का हितकर कार्य है। परन्तु संयम और विवेक से ही यह स्थिर किया जा सकता है कि कौन-सा कार्य नीति संयम है। संयम और विवेक ही इस समय हमें उबार सकता है।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखए।
3. कुसंग का ज्वर सबसे भयानक होता है। वह केवल नीति और सद्वृत्ति का ही नाश नहीं करता बल्कि बुद्धि का भी क्षय करता है। किसी युवा पुरुष की संगति यदि बुरी होगी तो वह उसके पैर में बँधी चक्की के समान होगी, जो उसे दिन-रात अवनति के गड्ढे में गिराती जाएगी और यदि अच्छी होगी तो सहारा देने वाली बाहु के समान होगी जो उसे निरन्तर उन्नति की ओर उठाती जाएगी।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
4. भारत आधुनिक युग के विश्व-जीवन में अन्य राष्ट्रों का समभागी होकर . भी उनसे भिन्न है। राष्ट्र केवल सीमाओं और जनसंख्या के समच्चय का नाम नहीं है। उनके साथ परिस्थितियों के एक विशिष्ट आपात और एक विशिष्ट इतिहास का योग होता है। राष्ट्र एक व्यक्ति के सदृश्य ही है। जिन परिस्थितियों और ऐतिहासिक मकरंद : हिंदी सामान्य प्रतिक्रियाओं से भारत गुजरा है वे अपना स्वतन्त्र स्वरूप रखती हैं। उनके अनुरूप हमारी चेतना और व्यापक जीवन परिवेदना का निर्माण हुआ है।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
5. दूर के ढोल सुहावने होते हैं क्योंकि उनकी कर्कशता दूर तक नहीं पहुँचती। जब ढोल के पास बैठे हुए लोगों के कान के पर्दे फटते रहते हैं, तब दूर किसी नदी के तट पर संध्या समय, किसी दूसरे के कान में वही शब्द मधुरता का संचार कर देते हैं। ढोल के उन्हीं शब्दों को सुनकर वह अपने हृदय में किसी के विवाहोत्सव का चित्र अंकित कर लेता है। कोलाहल से पूर्ण घर के एक कोने में बैठी हुई किसी लज्जाशील नववधू की कल्पना वह अपने मन में कर लेता है।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।’
6. उदारता का अभिप्राय केवल निःसंकोच भाव से किसी को धन दे डालना ही नहीं वरन् दूसरों के प्रति उदार भाव रखना भी है। उदार पुरुष सदा दूसरों के विचारों का आदर करता है और समाज में सेवक-भाव से रहता है। यह न समझो कि केवल धन से उदारता हो सकती है। सच्ची उदारता इस बात में है कि मनुष्य को मनुष्य समझा जाए। धन की उदारता के साथ सबसे बड़ी एक और उदारता की आवश्यकता यह है कि उपकृत के प्रति किसी प्रकार का एहसान न जताया जाए।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
7. हमें स्वराज्य तो मिल गया, परन्तु सराज्य अभी हमारे लिए एक सखद स्वप्न ही है। इसका प्रधान कारण यह है कि देश को समृद्ध बनाने के उद्देश्य से कठोर परिश्रम करना हमने अब तक नहीं सीखा। श्रम का महत्त्व और मूल्य हम जानते ही नहीं। हम अब भी आराम तलब हैं। हमे हाथों से यथेष्ट काम करना रुचता ही नहीं। हाथों से काम करने को हम हीन लक्षण समझते हैं। हम कम से कम काम द्वारा जीविका चाहते हैं। हम यही सोचते रहते हैं किसी तरह काम से बचा जाए। यह दूषित मनोवृत्ति राष्ट्र की आत्मा में आ बैठी है और वहाँ से हटती नहीं। यदि हम इससे मुक्त नहीं होते तो देश आगे बढ़ नहीं सकता।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
8. मनुष्य को स्वयं पर गर्व है। वह स्वयं को जगदीश्वर की अत्युत्तम तथा सर्वश्रेष्ठ कृति समझता है। वह अपने व्यक्तित्व को चिरस्थायी बनाना चाहता है। मनुष्य जाति का इतिहास क्या है? उसके सारे प्रयत्नों का केवल एक ही उद्देश्य है। चिरकाल से मनुष्य यही प्रयत्न कर रहा है कि किसी प्रकार वह उस अप्राप्य अमृत को प्राप्त करे जिसे पीकर वह अमर हो जाए।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
9. जो साहित्य मुर्दे को भी जिन्दा करने वाली संजीवन औषधि का भण्डार है, जो साहित्य पतितों को उठाने वाला और उत्पीड़ितों के मस्तक को उन्नत करने वाला है, उसके उत्पादन और संवर्धन की चेष्टा जो जाति नहीं करती वह अज्ञानांधकार की गर्त में पड़ी रहकर किसी दिन अपना अस्तित्व ही खो बैठती है। अतएव समर्थ होकर भी जो मनुष्य इतने महत्त्वशाली साहित्य की सेवा और श्रीवृद्धि नहीं करता अथवा उससे अनुराग नहीं रखता वह समाज-द्रोही है, वह देश-द्रोही है, वह जाति-द्रोही है।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
10. शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को मनुष्य बनाना, उनमें आत्मनिर्भरता की भावना भरना तथा देशवासियों का चरित्र-निर्माण करना होता है। परन्तु वर्तमान शिक्षा प्रणाली से इस प्रकार का कोई लाभ नहीं हो रहा है। इसे उदर-पूर्ति का साधन मात्र कह सकते हैं। परन्तु यह भी पूर्णतया नहीं, क्योंकि जब भी प्रतिवर्ष विद्यालयों से हजारों नवयुवक डिग्री प्राप्त करके निकलते हैं और उन्हें नौकरी नहीं मिल पाती। इस कारण बेकारी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
11. सामाजिक जीवन में क्रोध की जरूरत बराबर पड़ती है। यदि क्रोध हो तो मनुष्य दूसरों के द्वारा पहुँचाए जाने वाले बहुत-से कष्टों की चिर-निवृत्ति का उपाय ही न कर सके। कोई मनुष्य किसी दुष्ट के नित्य दो-चार प्रहार सहता है। यदि उसमें क्रोध का विकास नहीं हुआ है तो वह केवल आह-ऊँह करेगा, जिसका उस दुष्ट पर कोई प्रभाव नहीं। उस दुष्ट के हृदय में विवेक, दया आदि उत्पन्न करने में बहुत समय लगेगा।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
12. जन का प्रवाह अनन्त होता है। सहस्रों वर्षों से भूमि के साथ राष्ट्रीय जन ने तादात्म्य प्राप्त किया है। जब तक सूर्य की रश्मियाँ नित्य प्रातःकाल भुवन को अमृत से भर देती हैं, तब तक राष्ट्रीय जन का जीवन भी अमर है। इतिहास के अनेक . उतार-चढ़ाव पार करने के बाद भी राष्ट्र निवासी जन नई उठती लहरों से आगे बढ़ने के लिए आज भी अजर-अमर हैं। जन का सततवाही जीवन नदी के प्रवाह की तरह है, जिसमें कर्म और ा के द्वारा उत्थान के अनेक घाटों का निर्माण होता है।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखए।
13. दंडकोप का ही एक विधान है। राजदंड राजकोप है, जहाँ कोप लोककोप और लोककोप धर्मकोप है, जहाँ राजकोप धर्मकोप से एकदम भिन्न दिखाई पड़े वहाँ उसे राजकोप न समझकर कुछ विशेष मनुष्यों का कोप समझना चाहिए। ऐसा कोप राजकोप के महत्त्व और पवित्रता का अधिकारी नहीं हो सकता। उसका सम्मान जनता अपने लिए आवश्यक नहीं समझती।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
14. विकृत भोजन से जैसे शरीर रुग्ण होकर बिगड़ जाता है उसी तरह विकृत साहित्य से मस्तिष्क भी विकारग्रस्त होकर रोगी हो जाता है। मस्तिष्क का बलवान
और शक्ति सम्पन्न होना अच्छे ही साहित्य पर अवलम्बित है। अतएव एक बात निर्धान्त है कि मस्तिष्क के यथेष्ट विकास का एकमात्र साधन उसका साहित्य है। यदि हमें जीवित रहना है और सभ्यता की दौड़ में अन्य जातियों की बराबरी करना है तो हमें श्रद्धापूर्वक बड़े उत्साह से सत्साहित्य का उत्पादन और प्राचीन साहित्य की रक्षा करनी चाहिए।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
15. हमारा एक जातीय व्यक्तित्व है। वेश-भूषा, रहन-सहन और शक्ल-सूरत में भेद होते हुए भी भारतवासी अपने जातीय व्यक्तित्व से पहचान लिए जाते हैं। वह व्यक्तित्व हमारी जातीय मनोवृत्ति, जीवन-मीमांसा, रहन-सहन, रीति-रिवाज, उठने-बैठने के ढंग, चाल-ढाल, वेश-भूषा, साहित्य, संगीत आदि में अभिव्यक्त होता है। विदेशी प्रभाव पड़ने पर भी वह बहुत अंशों में अक्षुण्ण बना हुआ है। वह हमारी एकता का मूल सूत्र है।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
16. कश्मीर का नाम लेते ही हृदय में जो आनन्द की लहरें उठने लगती हैं उसकी नम दलदलभरी भूमि किसने सौंदर्य में रंगी? किसने झेलम के तटवर्ती आकाश की सुरभि को बोझिल वाय से मदहोश किया? किसने उसके केसर की फैली क्यारियों में जादू की मिट्टी डाली?
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
17. “यह संसार एक पुलिया है, इसके ऊपर से निकल जा, किन्तु इस पर घर बनाने का विचार मन में न ला। जो यहाँ एक घंटाभर भी ठहरने का इरादा करेगा, वह चिरकाल तक यहाँ ठहरने को उत्सुक हो जाएगा। सांसारिक जीवन तो एक घड़ी भर का ही है, उसे ईश्वर-स्मरण तथा भगवद् भक्ति में बिता। ईश्वरोपासना के अतिरिक्त सब कुछ व्यर्थ है, सब कुछ आसार है।”
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
18. सर्वोदय शब्द का अर्थ सबका उदय, सबका उत्कर्ष तथा सबका विकास है। यह सिद्धान्त भारत का पुरातन आदर्श माना गया है। महात्मा गाँधी के मतानुसार सर्वोदय का अर्थ आदर्श समाज व्यवस्था है। किसी भी व्यक्ति या समूह का दमन, शोषण या विनाश से नहीं किया जाएगा। इस समाज-व्यवस्था में सब बराबर के सदस्य होंगे। सबको उनके परिश्रम की पैदावार में हिस्सा मिलेगा। बलवान दुर्बलों की रक्षा करेंगे और उनके संरक्षक का काम करेंगे तथा प्रत्येक सदस्य सबके कल्याण का ध्यान रखेगा।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
19. पुस्तकों का हम सबको बहुत ऋणी होना चाहिए। मनुष्य जाति ने आज तक जितना भी ज्ञान तथा अनुभव प्राप्त किया है, जो भी अन्वेषण और आविष्कार किए हैं, वे सब इनमें संचित हैं। इनसे हम हर प्रकार का ज्ञान प्राप्त करते हैं। ये अध्यापक हमको बिना दंड प्रकार के, बिना कुटिल शब्द कहे अथवा क्रोध किए और बिना शुल्क लिए ही शिक्षा दे सकते हैं। यदि हम इनके सन्निकट जाएँ तो वे सोते अथवा अन्य किसी कार्य में संलग्न न मिलेंगे। यदि हम जिज्ञासु हैं और इनसे प्रश्न करते हैं तो यह हमसे कुछ परोक्ष न रखेंगे। यदि हम इनके यथार्थ रूप को न समझे तो ये भुनभुना नहीं जाएँगे और यदि हम अज्ञानी हैं तो हमारी मूर्खता पर हँसेंगे नहीं। इसलिए बुद्धि तथा ज्ञान से पूर्ण पुस्तकालय संसार की बहुमूल्य वस्तु है।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
20. दार्शनिक कहते हैं, जीवन एक बुदबुदा है। भ्रमण करती हुई आत्मा को ठहरने की एक धर्मशाला-मात्र है। वे यह भी कहते हैं कि हम जीवन का संग तथा वियोग क्या है? प्रवाह में साथ ही बढ़ते हुए लकड़ी के टुकड़ों का साथ और विलग होने के समान है। परन्तु क्या ये विचार एक संतृप्त हृदय को शांत कर सकते हैं? क्या ये भावनाएँ चिरकाल की विरहाग्नि में जलते हुए हृदय को सांत्वना प्रदान कर सकती हैं। सांसारिक जीवन की व्यवस्थाओं से दूर बैठा सांसारिक जीवन संग्राम का एक तटस्थ दर्शक भले कुछ भी कहे, किन्तु जीवन के इस भीषण संग्राम में युद्ध करते हुए सांसारिक घटनाओं के कठोर धपेड़े खाते हुए हृदयों की क्या दशा होतो है, वह एक भुक्तभोगी कह सकता है।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
21. मानव जाति के लिए एक नए युग का सूत्रपात हो गया है। यह नया युग आणविक क्रांति का युग है। भविष्य में इतिहासकार इस युग को आणविक युग कहकर पुकारेंगे या सभ्यता के महाविनाश को बीभत्स और रोमांचकारी गाथा सुनने के लिए कोई इतिहासकार जीवन ही नहीं बचेगा। इसका निर्णय आज हमें समस्त मानव जाति को ही करना है, क्योंकि आज समस्त संसार का भविष्य खतरे में पड़ गया है।
(क) इस गद्यांश का उपयुक्त शीर्षक बताइए।
(ख) संक्षेप में सारांश लिखिए।
MP Board Class 11 General Hindi अपठित पद्यांश
सच्चा कर्म सच्ची सेवा सच्चा धरम।
दुश्मन के आगे कभी झुके नहीं हम॥
खौलता है खून, साँस चलती गरम।
कितने हों कष्ट नहीं होते जो नरम॥
भारत माँ की आबरू ये पहचानते।
माता भारती का दर्द ये ही जानते॥1॥
इनको न कोई प्यारे जाति और पंथ।
इनकी राष्ट्रभक्ति का होता नहीं अंत॥
नहीं जानते हैं ये हिंदू मुसलमान।
इनको चाहिए सलामत हिन्दुस्तान॥
तोप के भी आगे जो हैं सीना तानते।
माता भारती का दर्द ये ही जानते॥2॥
चाहे हो पहाड़ चाहे गहरी हो खाई।
हर प्रतिकूलता में हिम्मत बनाई।
आग उगलें दुश्मन की गोलियाँ।
बढ़ती गई हैं फिर भी आगे टोलियाँ।
तोड़ते पहाड़ नहीं राख छानते।
माता भारती का दर्द ये ही जानते॥3॥
जिसमें नहीं है देश-भक्ति का जुदून।
उसका कहेंगे हम बेईमान खून॥
चाहे कोई जाति हो या कोई हो धन।
सबकी जुबाँ पे हो वंदे मातरम्।
ये ही सच्ची देशभक्ति हम मानते
इसको ही सच्चा धर्म हम जानते॥4॥
-कमलेश कुमार जैन ‘वसंत’
- उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक लिखिए।’
- कवि सच्चा धर्म किसे मानता है?
- कवि ने कविता में किसका चित्रण किया है?
- उपर्युक्त कविता का भावार्थ लिखिए।
2. अपठित पद्यांश
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
वन-उपवन पनप गए सब
कितने नव अंकुर आए।
वे पीले-पीले पल्लव
फिर से हरियाली लाए।
वन में मयूर अब नाचें
हँस-हँस आनन्द मनाएँ।
उनकी छवि देख रही हैं
नभ से घनघोर घटाएँ।
-संकलित
- उक्त पद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए?
- उक्त पंक्तियों में किस मौसम का वर्णन हुआ है?
- आकाश से बरसाती बादल कौन-सा दृश्य देख रहे हैं?
3. अपठित पद्यांश
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
जय हे मातृभूमि कल्याणी
शुभ्र किरीट हिमालय तेरा
सागर है चरणों का चेरा
हृदय देवताओं का डेरा
शस्य श्यामला रूप तुम्हारा
शीतल चूनर धानी।
-मधु चतुर्वेदी
- उक्त पद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए?
- ये पंक्तियाँ किस देश के संबंध में कही गई हैं?
- इन पंक्तियों में मातृभूमि की किन विशेषताओं का उल्लेख किया गया है:
3. अपठित पद्यांश
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
बस कागजी घुड़दौड़ में है आज इति कर्त्तव्यता,
भीतर मलिनता हो, भले की किन्तु बाहर भव्यता,
धनवान ही धार्मिक बनें यद्यपि अधर्मासक्त हैं,
हैं लाख में दो-चार सुहृदय शेष बगुला भक्त हैं।
-मैथिलीशरण गुप्त
- उक्त पद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए?
- आजकल कर्त्तव्य की समाप्ति किसे समझा जाता है?
- अधर्मी किस आधार पर धार्मिक बन गए हैं?
- बगुला भक्त से क्या आशय है?
3. अपठित पद्यांश
निम्नलिखित पद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए-
यदि तुम अपनी अमित शक्ति को समझ काम में लाते,
अनुपम चमत्कार अपना तुम देख परम सुख पाते,
यदि उदीप्त हृदय में सच्चे सुख की हो अभिलाषा,
वन में नहीं जगत् में आकर करो प्राप्ति की आशा।
-रामनरेश त्रिपाठी
- उक्त पद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए?
- अमित शक्ति से कवि का क्या आशय है?
- सच्चा सुख कहाँ प्राप्त किया जा सकता है?