MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Chapter 8 दशपुरीया अष्टमूर्तिः

MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 8 दशपुरीया अष्टमूर्तिः (वर्णनात्मकः)

MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 8 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न

प्रश्न 1.
एकपदेन उत्तरं लिखत (एक पद में उत्तर लिखो)
(क) अष्टमूर्तिः कुत्र प्रतिष्ठापिता अस्ति। (अष्टमूर्ति कहाँ स्थित है?)
उत्तर:
दसपुर (दसपुर (मंदसौर))

(ख) कति शैवप्रतिमाः प्रसिद्धाः सन्ति। (कितनी शिव प्रतिमा प्रसिद्ध हैं?)
उत्तर:
त्रिनः। (तीन)

(ग) पूर्वमुखे कः रसः विद्यते? (पूर्व दिशा के मुख में कौन-सा रस विद्यमान है?)
उत्तर:
शान्तरसः। (शान्त रस)

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(घ) कस्यमुखस्य शिला लोहितवर्णा वर्तते? (किस मुख वाली शिला लाल रंग की है?)
उत्तर:
पश्चिमुखस्य। (पश्चिम मुख की)।

(ङ) कश्मिन मुखे शिवः अट्टहासं कुर्वन इव प्रतिभाति? (किस मुख में शिव अट्टहास करते दिखाई देते हैं?)
उत्तर:
उत्तरदिशः। (उत्तर दिशा)

प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) अष्टमूर्तिः भक्तैः कस्मिन ईशवीये दृष्टा? (अष्टमूर्ति भक्तों ने किस ईशवी में देखी?)
उत्तर:
अष्टमूर्तिः भक्तैः 1940 ईशवीये दृष्टा। (अष्टमूर्ति भक्तों ने 1940 ईशवी में देखी।)

(ख) वरस्य शृङ्गार मनोरमत्वं कस्मिन मुखे उल्लिखितम्? (वर के श्रृंगार का मनोहर वर्णन किस मुख में उल्लिखित है।)
उत्तर:
वरस्य शृंगार मनोरम भावं दक्षिण मुखे उल्लिखितम्। (वर के श्रृंगार का मनोहर वर्णन दक्षिण मुखे उल्लिखित है।)

(ग) ऐतिहासिकैः अर्धनारीश्वरस्य कः कालः निर्धारितः? (ऐतिहासिकों द्वारा अर्धनारीश्वर का कौन-सा काल निर्धारित किया गया है?)
उत्तर:
ऐतिहासिकैः अर्धनारीश्वरस्य चतुर्थदशः शताब्दे कालः निर्धारितः।। (ऐतिहासिकों ने अर्धनारीश्वर का काल चौदहवीं शताब्दी निर्धारित की है।)

(घ) अष्टमूर्तिः इदानीं केन नाम्ना प्रख्याता? (अष्टमूर्ति इस समय किस नाम से प्रसिद्ध हैं?)
उत्तर:
अष्टमूर्तिः इदानी पशुपतिनाथः नाम्ना प्रख्याता। (अष्टमूर्ति इस समय पशुपतिनाथ इस नाम से प्रसिद्ध है।)

प्रश्न 3.
अधोलिखित प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत। (नीचे लिखे हुए प्रश्नों के उत्तर लिखो)
(क) मूर्तेः पश्चिमे मुखे वैशिष्ट्यं किम्? (मूर्ति के पश्चिम मुख की क्या विशेषता है?)
उत्तर:
मूर्तेः पश्चिम मुखे वैशिष्ट्यं प्रलयंकारी शिव।। (मूर्ति के पश्चिम मुख में प्रलंयकारी शिव को दिखाया गया है)

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(ख) काः तिस्रः शैव प्रतिमाः प्रसिद्धः? (कौन-सी तीन शिव प्रतिमा प्रसिद्ध हैं?)
उत्तर:
अर्धनारीश्वरः, ऐलीफैण्टायाः त्रिमूर्ति, चिदम्बरस्य नटराज तिस्रः शैवप्रतिमाः प्रसिद्धाः। (अर्धनारीश्वर, ऐलीफैण्टा की त्रिमूर्ति, व चिदम्बर की नटराज मूर्ति ये तीन शिव प्रतिमा प्रसिद्ध हैं।)

(ग) दशपुर कुत्र अस्ति? अधुना केन नाम्ना प्रसिद्धम्? (दशपुर कहाँ स्थित है? वर्तमान में यह किस नाम से प्रसिद्ध है?)
उत्तर:
दशपुरं मध्यप्रदेशस्य पश्चिम भागे मालवाञ्चले शिवनानधास्तीरे अस्ति। अधुना मंदसौर नाम्ना प्रसिद्धम्। (दशपुर मध्य प्रदेश के पश्चिम भाग में मालवाञ्चल में शिवना नदी के किनारे स्थित है। वर्तमान में यह मंदसौर नाम से प्रसिद्ध है।)

(घ) अष्टमूर्तेः उत्तर मुखे कीदृशं वैशिष्ट्यं विद्यते? (अष्टमूर्ति का उत्तर मुख क्या विशेषता बतलाता है।)
उत्तर:
अष्टमूर्तेः उत्तर मुखे आनंदतत्त्व युक्ता वैशिष्ट्यं विद्यते। (अष्टमूर्ति का उत्तर मुख आनंद तत्त्व से युक्त होने की विशेषता बताता है।)

प्रश्न 4.
रिक्तस्थानानि पूरयत
(क) पूर्वमुखे शान्तरसविशिष्टः शिवसमाधिः विद्यते।
(ख) अष्टमुखाङ्कितं लिङ्गम् अष्टमूर्तिः इति नाम्ना ज्ञायते।।
(ग) अद्यावधि शैवप्रतिमाः केवलं तिस्रः प्रसिद्धाः।
(घ) लघु सर्पद्वयं प्रतीकरूपेण उत्कीर्णीतम्।

प्रश्न 5.
युग्ममेलनं कुरुत-
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प्रश्न 6.
अवायैः वाक्यनिर्माणं कुरुत-
अधुना – दशपुरम् अधुना मन्दसौरम् इति नाम्ना प्रख्यातम् अस्ति।
इदानीम् – इदानीः सः विद्यालयं गच्छति।
यथा – सः यथा एव आगच्छतिर्तदा अहं गमिष्यामि।
तथा – यथा नृपः तथा प्रजाः।
तत्र – तत्र कोऽपि न विद्यते।
अपि – सः अपि गमिष्यसि।
अत्र – अत्र वृक्षाः सन्ति।

प्रश्न 7.
निम्नलिखित शब्दानां संधिविच्छेद कृत्वा सन्धेः नाम लिखत
उदाहरणम् :
विद्यार्थी-विद्या+अर्थी = विद्यार्थी।
(क) उभावपि
उत्तर:
उभौ+अपि = अयादि स्वर

(ख) अत्रैव
उत्तर:
अत्र+एव = वृद्धि स्वर

(ग) सर्वे
उत्तर:
सः+एव – विसर्ग = वृद्धि स्वर संधि

(घ) नास्ति
उत्तर:
न+अस्ति = दीर्घ स्वर

(ङ) अत्रास्ति
उत्तर:
अत्र+अस्ति = दीर्घ स्वर।

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प्रश्न 8.
उदाहरणानुसारं क्रियापदानां वचन परिवर्तनं कुरुत
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प्रश्न 9.
निम्नलिखितपदानां समास विग्रहं कृत्वा। समासस्य नाम लिखत
उदाहरणं यथा
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प्रश्न 10.
निम्नलिखित मूलशब्दं विभक्तिं वचनं च लिखत
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प्रश्न 11.
निम्नलिखितानां शब्दानां धातुं प्रत्ययं च पृथक् कुरुत
उदाहरणं यथा
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दशपुरीया अष्टमूर्तिः पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य

मध्य प्रदेश के मालव अंचल में स्थित मंदसौर नगर के पुरातात्त्विक महत्त्व से हम लोग पूर्ण भिज्ञ हैं। यहाँ स्थित आठ मुखों वाली भगवान शिव की लिंग प्रतिमा अद्भुत एवं अनुपम है। प्रस्तुत पाठ डॉ. रामचन्द्र तिवारी द्वारा प्रणीत है। धर्म, दर्शन एवं पुरातत्त्व में इनका अभिनिवेश होने के कारण ‘अद्वितीय अष्टमूर्ति’ नामक पुस्तक आपने लिखी। इसकी मूर्तियाँ ही पाठ की विशेषता हैं।

दशपुरीया अष्टमूर्तिः पाठ का हिन्दी अर्थ

मध्यप्रदेशस्य पश्चिमे भागे मालवाञ्चले शिवनानद्यास्तीरे दशपुरं नाम नगरमस्ति। दशपुरम् अधुना मन्दसौरम इति नाम्मा प्रख्यातमस्ति। एतस्य दशपुरस्य वर्णनम् महाकविकालिदासेनापि स्वकीये ग्रन्थे मेघदूते कृतम्। अत्रैव शिवनानयास्तीरे भगवतः शिवस्य विशालमन्दिरमस्ति। अत्र स्थितम् अष्टमुखाकितं शिव लिङ्गम् अष्टमूर्तिः इति लिखितम् । इदानीं सैव पशुपतिनाथः इति नाम्ना दशपुरे प्रख्यातः।

शब्दार्थ :
अधुना-इस समय-This time; स्वकीये-स्वयं के-by self; इसका-its; लिखतम्-लिखित-Written; इदानीं-इस समय-this time.

हिन्दी अर्थ :
मध्य प्रदेश के पश्चिम भाग मालवांचल में शिवना नदी के किनारे स्थिति दशपुर नामक नगर है। दशपुर का आधुनिक नाम मन्दसौर प्रसिद्ध है। इस दशपुर का वर्णन महाकवि कालिदास ने भी स्वरचित ग्रन्थ मेघदूत में किया है। यहीं पर शिवना नदी के किनारे भगवान शिव का विशाल मन्दिर है। इसमें स्थित अष्टमुखी लिंग प्रतिमा है-ऐसा लिखा गया है। इस समय वही मन्दिर पशुपति नाथ नाम से प्रसिद्ध है।

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2. शैवदर्शनदृष्ट्या शैवकलादृष्ट्या च दशपुरीया अष्टमूर्तिः शैवमूर्तिषु अद्वितीया अस्ति। अद्यावधि शैवप्रतिमाः केवलं तिस्रः प्रसिद्धाः सन्ति। प्रथमा-प्रथमशताब्धाः मथुरायाः अर्धनारीश्वरः, द्वितीया अष्टमशताब्धाः, एलीफैण्टायाः त्रिमूर्ति। तृतीया दशमशताब्याः, चिदम्बरस्य नटराजः। शेषाणि लिङ्गानि। तामु तादृशी कला, दर्शनं वा नास्ति यथा दशपुरे वर्तमानायाः अष्टमूर्ती। वस्तुतः सा अनुपमा, अतिशायिनी शैव प्रतिमा अस्ति। अष्ट मुखानि प्रायः ‘सप्त फिट’ मानात्मके उत्तुङ्गे विशाले नीललोहिते पाषाणलिङ्गे उट्टङ्कितानि सन्ति।

शब्दार्थ :
अष्टमुखाङ्कितम्-उत्कीर्ण आठ मुख वाली-Carve of eight mouth; नीललोहिते-नीले व रक्तवर्ण से युक्त-with blue & Red Colour; पाषाणलिङ्गे-पत्थर के लिङ्ग पर-on the stone statue; अर्धनारीश्वर-अर्धनारीश्वर-(शिव पार्वती का रूप)-the fame of Shiva and Parvati.

हिन्दी अर्थ :
शैव दर्शन की दृष्टि से, शैव कला की दृष्टि से दशपुर की अष्टमूर्ति शिव मूर्ति अद्वितीय है। आज तक शिव की केवल तीन ही प्रतिमाएँ प्रसिद्ध हैं। मथुरा स्थित प्रथम शताब्दी की अर्धनारीश्वर की मूर्ति, आठवीं शताब्दी की एलीटो की त्रिमूर्ति और तीसरी, दशम शताब्दी की चिदम्बरम् की नटराज मूर्ति। शेष सभी शिवलिंग हैं। उनमें वेसी कला दृष्टिगोचर नहीं होती जैसी दशपुर की वर्तमान अष्टमूर्ति में। वस्तुतः यह शिव की मूर्ति अनुपम एवं अद्वितीय है। यह अष्टमुख लिंग मूर्ति सात फुट ऊँचे विशाल गुलाबी-नीले पाषाण खण्ड पर उकेरा गया है।

3. अस्याः मूर्तेः केवलं चतुर्मुखानि एव पूर्णतया लिङ्गमथ्ये निर्मितानि सन्ति, ततोऽधः चतुर्मुखानि केवलम् अशित एव निर्मितानि सन्ति। वैदेशिकानाम् आक्रमणवशात् एषा मूर्तिः रक्षणार्थम् अर्धनिर्मिता एव शिवनागर्भे (ईशवीये चतुर्दशाब्दे) गोपिता, कालेन नदी प्रवाहात् प्रकटिता एषा मूर्तिः 1940 ईशवीये वर्षे भक्तैः दृष्टा, तटे प्रतिष्ठापिता च। अस्या निर्मितानि मुखानि अतीव सुन्दराणि जीवनतत्त्वस्य व्यञ्जकानि च सन्ति।

शब्दार्थ :
ततोऽध-इससे नीचे-below its; गोपिता-छिपा दी गई-is hidden; प्रकटिता-प्रकट हुआ-appeared; जीवनतत्त्वस्य-जीवन के तत्त्व का-factor of life.

हिन्दी अर्थ :
इस मूर्ति के मात्र चार मुख ही पूर्णरूपेण लिंग के मध्य ही निर्मित हैं। उसके नीचे चारमुख केवल अर्धांश में ही निर्मित है। विदेशियों के आक्रमण के कारण इस मूर्ति की रक्षा के लिए अर्धमूर्ति शिवना के गर्भ में चौदहवीं शताब्दी में द्विपादी गई। समायानुसार नदी के प्रवाह के कारण यह मूर्ति बाहर निकल आई। सन् 1940 ई. में भक्तों ने इसे देखकर नदी के तट पर स्थापित कर दिया। इस मूर्ति के मुख बहुत सुंदर हैं जो जीवन के तथ्य को व्यक्त करते हैं।

4. दक्षिणमुखशिल्पे विवाहमण्डपस्थस्य वरस्य शृङ्गारमनोरमत्वं दृश्यते। तत्रैव शीर्षे केशकलापे षोडशीचन्द्र कला शोभते च। अत्रैवमुखे शुचिस्मितत्वं मधुरस्मितत्वं च अवलोकनीयम् । अत्र भयङ्कराः सर्पाः न उत्कीर्णाः, केवलं लघु सर्पद्वयं प्रतीकरूपेण उत्कीर्णितं वर्तते। पूर्व मुखे शान्तरस विशिष्टः शिवसमाधिः व्यज्यते। अस्मिन् केशकिरीटे रुद्राक्षमालयोः रेखाद्वयं निबद्धम् अस्य! मध्यमणिः तिलक रूपेण उपनिबद्धः। अत्र ग्रीवायां सर्पमाला, मन्दारमाला च शोभते।

शब्दार्थ :
स्मितत्वम्-मुस्कुराहट-Smile; मध्यमणि-बीच की मणि-between very precious stone; दृश्यते-दिखाई देता है-Looks; तत्रैव-वहाँ-there; अवलोकनीयम्-देखने को-for Look; उत्कीर्ण-उत्कीर्ण-Carve, scratch; तिलक रूपेण-तिलक के रूप में-in the form of auspious mark; उपनिबद्ध-बंधी हुई-to tie on for head;

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हिन्दी अर्थ :
मूर्ति की दक्षिण मुख की रचना विवाह मण्डप में बैठे श्रृंगार युक्त दूल्हे जैसी दिखाई देती है। उमसें सबसे ऊपर बालों के मध्य चन्द्रमा की सोलहवीं कला सुशोभित हो रही है। इस मुख की पवित्र मुस्कान ही देखने योग्य है। इस मूर्ति में भयंकर सर्प उत्कीर्ण नहीं किए गए हैं। केवल दो छोटे सर्प ही प्रतीक रूप में उत्कीर्ण हैं। मूर्ति के पूर्व मुख से शान्ति रस की विशिष्टता से युक्त शिव के समाधिस्थ होने का भाव व्यक्त होता है। इस मूर्ति में बालों की जटा में रुद्राक्ष की दो मालाएँ दो रेखाओं के रूप में दर्शित होती हैं। इसके बीच की मणि तिलक के समान दृष्टिगोचर होती है। इस मूर्ति में गले के साँप की माला और मंदार की माला शोभित हो रही है।

5. पश्चिममुखे प्रलयङ्करः शिवः रुद्ररूपेण व्यज्यते। अस्यैव मुखस्य सम्पूर्णा शिला केवलं लोहितवर्णा वर्तते। अत्र तादृशी नीलिमा श्वेतधारा वा न दृश्यते यादृशी मुखान्तरेषु। सुखे तृतीयनेत्रं सुस्पष्टम् अवलोक्यते। उग्रक्रोधेन मुखं विकृतम् उत्कीर्णम् । अस्मिन्नेव मुखे ऊँकार उल्लिखितः। ॐकारादेव उदयः, प्रलयश्च उभावपि भवतः इति शिल्पस्य दर्शनम्। उत्तरमुखे आनन्दतत्त्वस्य व्यञ्जना विद्यते। अस्मिन् भगवान विजयामत्त अट्टहासं कुर्वन इव प्रतिभाति। अत्र कपोलौ उत्फुल्लौ, अधरोष्ठौ स्फुटौ, नेत्रौ निमीलिते, शिथिलाः विकीर्णाः मूर्धजाः च सुस्पष्टं दृश्यन्ते। अर्धनिर्मितेषु अधोऽङ्कितेषुमुखेणु प्रथमे विद्यार्विभावःद्वितीये उद्योगार्थिभावः चतुर्थे च अर्थार्थभावः च विद्भिः सम्भाव्यन्ते। वस्तुतः दशपुरीया अष्टमूर्तिः कलासौन्दर्यदृष्ट्या दार्शनिकदृष्ट्या च सर्वासु शैवप्रतिमासु अद्वितीय उत्कृष्टा दर्शनीया च अस्ति।

शब्दार्थ :
प्रलयङ्कर-प्रलय करने वाला-disasterer; लोहितवर्णा-लाल रंग की-Red coloured; निलिमाश्वेतधारा-नीली अथवा सफेद धारा-Blue or white stream; उदयः प्रलयश्च-रचना एवं विनाश-Creation & disaster; उभावपि-दोनों ही-both; विजयामत्त-भांग के नशे में मस्त-to become fortic some with Bhang (hemp leaves); अट्टहासम-जोरों से हँसना-Laughing in a loud voice; विकिर्णाः-फैले हुए-Spread; रुद्ररूपेण-क्रोध के रूप में-in the form of Anger.

हिन्दी अर्थ :
मूर्ति के पश्चिम मुख से शिव का प्रलयंकर रुद्र रूप प्रकट होता है। इस मुख की सम्पूर्ण शिला लोहित वर्ण की है। यहाँ नील-श्वेत वर्ण की धारा नहीं दिखाई देती जैसी दूसरे मुख से। इस मूर्ति में शिव की तीसरी आँख स्पष्ट रूप से दिखाई देती है। अत्यधिक क्रोध को व्यक्त करने के लिए मूर्ति के मुख को विकृत रूप में उत्कीर्ण किया गया है। इसी मूर्ति के मुख में ओंकार लिखा गया है। इसी ओंकार से ही उदय और प्रलय दोनों होता है-ऐसा शिल्पकारों ने इस मूर्ति में दिखाने का प्रयत्न किया है।

मूर्ति के उत्तर मुख में आनन्द तत्त्व की अभिव्यंजना की गई है। इसमें भगवान शिव भाँग के नशे में मत्त अट्टहास करते दिखाई देते हैं। यहाँ उनका गाल फूला हुआ दिखाई देता है, ओठ विकसित एवं आँखें मुंदी (अलसाई हई), सिर के बाल ढीले बिखरे हुए साफ-साफ दिखाई देते हैं। अर्ध निर्मित नीचे के मुखों में पहले मुँह पर ब्रह्मचारी (विद्यार्थी) का भाव, दूसरे में धर्मशील होने का भाव, तीसरे में उद्योगी होने का भाव एवं चौथे मुखसे अर्थार्थी होने का भाव दिखाई देता है।

वास्तव में दशपुर की यह अष्टमूर्ति कला, सौन्दर्य एवं दार्शनिक दृष्टि से सभी शैव मूर्तियों में उत्कृष्ट एवं दर्शनीय है।

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