MP Board Class 12th Special Hindi वाक्य-बोध, वाक्य-भेद

MP Board Class 12th Special Hindi वाक्य – बोध, वाक्य – भेद

1. वाक्य – बोध।

मनुष्य के भावों और अर्थों को भाषा के माध्यम से व्यक्त और स्पष्ट करना ही वाक्य का मुख्य प्रयोजन है। भाषा का सौन्दर्य और चमत्कार सुन्दर और सुगठित सुवाक्य रचना में होता है। वाक्य के तीन गुण प्रमुख होते हैं –
(i) आकांक्षा,
(ii) योग्यता और
(iii) सन्निधि।

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(i) आकांक्षा – वाक्य के एक पद को सुनकर आगे जानने की जिज्ञासा आकांक्षा है।
(ii) योग्यता – अन्वय करने के बाद वाक्य के अर्थबोध में किसी प्रकार की कठिनाई नहीं होती है,उसे योग्यता कहते हैं।
(iii) सन्निधि – योग्यता और आकांक्षा के साथ ही वाक्य के शब्दों में परस्पर सन्निधि आवश्यक है।

  • शुद्ध वाक्य के गुण
  1. स्पष्टता – वाक्य सरल और स्पष्ट होना चाहिए। उन्हें पढ़ते या सुनते समय बराबर विचारों का उद्रेक हो।
  2. समर्थता – पाठक या श्रोता की भावनाओं को जाग्रत करने में सुगठित वाक्य ठीक माना जाता है।
  3. अति मधुरता – रचना को प्रभावशाली बनाने के लिए उसमें ऐसे वाक्य होने चाहिए जो सुनने में मधुर लगें। ऐसे वाक्यों से युक्त रचना को पढ़ने से पाठक आनन्द का अनुभव करता है।
  • वाक्य – रचना में होने वाली सामान्य अशुद्धियाँ

लिखते और बोलते समय स्पष्ट बात कहने की बड़ी आवश्यकता होती है। ऐसा नहीं होना चाहिए कि बोला कुछ जाय, लिखा कुछ जाय और समझा कुछ और जाय। इन सब दोषों का मूल कारण होता है – वाक्य में भाषा का निर्वाह न करना। कभी – कभी असावधानी के कारण वाक्य – रचना में भ्रामकता का दोष आ जाता है। कभी – कभी दूसरी भाषा से प्रभावित होने के कारण लेखक शिथिल और अनावश्यक वाक्यों की रचना कर जाते हैं।
इन गुण – दोषों को ध्यान में रखकर बड़ी सावधानी से वाक्यों की शुद्ध रचना करनी चाहिए। वाक्य रचना में होने वाली सामान्य अशुद्धियाँ प्रायः इस प्रकार हैं

1. वचन सम्बन्धी अशुद्धियाँ – आदि, अनेक अथवा बहुवचन संज्ञा की क्रियाओं में प्रायः वचन सम्बन्धी त्रुटियाँ होती हैं। जैसे
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2. लिंग सम्बन्धी अशुद्धियाँ – विशेषण और विशेष्य का लिंग एक जैसा हो,समस्त पदों के सर्वनाम का लिंग एवं क्रिया का लिंग अन्तिम पद के अनुसार होना चाहिए। उदाहरण
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3. अर्थ सम्बन्धी अशुद्धियाँ
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4. काल सम्बन्धी अशुद्धियाँ
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5. पुनरुक्ति सम्बन्धी अशुद्धियाँ
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6. मात्रा सम्बन्धी अशुद्धियाँ
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7. अन्य अशुद्धियाँ
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1. वर्तनी की दृष्टि से शुद्ध शब्दों का प्रयोग

वर्तनी (Spelling) का तात्पर्य अक्षर – विन्यास से है। पहले इसके लिए ‘हिज्जे’ या ‘अक्षरी’ नाम प्रचलित थे। उच्चारण की शुद्धता के अनुसार एवं व्याकरण की दृष्टि के अनुरूप शब्दों को लिखना ही, वर्तनी की दृष्टि से शुद्ध शब्दों का प्रयोग कहलाता है।

इन अशुद्धियों के कारण होते हैं—अज्ञान, भ्रान्ति, असावधानी,बनकर बोलने की दुष्प्रवृत्ति और विदेशी प्रभाव।

शुद्ध लेखन के लिए शुद्ध वर्तनी अपेक्षित होती है। वर्तनी ही भाषा की प्रभाव – क्षमता बढ़ाती है। अतः वर्तनी के सुधार या शब्द – शुद्धिकरण के लिए नीचे कुछ अशुद्ध शब्दों के शुद्ध रूप दिये हैं-
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2. अर्थ की दृष्टि से सही शब्दों का चयन

हिन्दी में कतिपय ऐसे शब्द हैं जिन्हें ऊपर से देखने पर कोई अर्थ – भेद नहीं दिखाई देता है,पर सूक्ष्मतः उनमें अन्तर होता है। ऐसे शब्दों का ज्ञान आवश्यक है।
कुछ शब्दों का अर्थ तो एक ही रहता है, पर उनके प्रयोग में कुछ अन्तर रहता है। कभी – कभी सम्बद्ध शब्दों के प्रयोग से भी वाक्य अशुद्ध हो जाता है। जैसे
अशुद्ध वाक्य – शुद्ध वाक्य
(1) उसे व्यापार में हानि होने की आशा है। (1) उसे व्यापार में हानि होने की आशंका
(2) विनय को परीक्षा में उत्तीर्ण होने की आशंका है। (2) विनय को परीक्षा में उत्तीर्ण होने की आशा है।
(3) राम बुरी तरह प्रसिद्ध है। – (3) राम बुरी तरह बदनाम है।
(4) शोक है कि आपने मेरे पत्रों का उत्तर नहीं दिया। – (4) खेद है कि आपने मेरे पत्रों का उत्तर नहीं दिया।
(5) मैंने एक वर्ष तक उसकी प्रतीक्षा देखी। – (5) मैंने एक वर्ष तक उसकी प्रतीक्षा की।
(6) रमा एक मोतियों का हार गले में पहने – (6) रमा मोतियों का एक हार गले में पहने
(7) मीना चाचाजी के ऊपर विश्वास करती – (7) मीना चाचाजी पर विश्वास करती है।
(8) शब्द केवल संकेत मात्र होते हैं। – (8) शब्द संकेत मात्र होते हैं।
(9) आपके एक – एक शब्द तुले हुए होते – (9) आपका एक – एक शब्द तुला हुआ होता
(10) उसे अनेकों व्यक्तियों ने आर्शीवाद दिया। – (10) उसे अनेक व्यक्तियों ने आशीर्वाद दिया।

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(11) विंध्याचल पर्वत के दक्खिन में नर्मदा स्थित है। – (11) विंध्याचल के दक्षिण में नर्मदा स्थित
(12) मैं अपनी बात का स्पष्टीकरण करने के लिए तैयार हूँ। – (12) मैं अपनी बात का स्पष्टीकरण देने के लिए तैयार हूँ।
(13) मैं अपने गुरु के ऊपर बहुत श्रद्धा करता – (13) मैं अपने गुरु पर बहुत श्रद्धा रखता हूँ।
(14) सौन्दर्यता सबको मोह लेती है। – (14) सुन्दरता सबको मोह लेती है।
(15) हवा चल रही है। – (15) हवा बह रही है।
(16) महादेवी वर्मा विद्वान महिला थी। – (16) महादेवी वर्मा एक विदुषी महिला थीं।
(17) श्रीकृष्ण के अनेकों नाम हैं। – (17) श्रीकृष्ण के अनेक नाम हैं।
(18) यह घी की शुद्ध दुकान है। – (18) यह शुद्ध घी की दुकान है।
(19) मोहन आटा पिसाकर लाया। – (19) मोहन अनाज पिसाकर लाया।
(20) वे सज्जन पुरुष कौन हैं? – (20) वे सज्जन कौन हैं?
(21) प्रत्येक वृक्ष फल देते हैं। – (21) प्रत्येक वृक्ष फल देता है।

अर्थ की दृष्टि से सही शब्दों का चयन करने के लिए सूक्ष्म अन्तर वाले शब्दों को जान लेना चाहिए जिससे सही अर्थ का ज्ञान हो तो हम सभी जगह उसका उपयोग कर सकें। जैसे

(1) अनुराग = स्त्री – पुरुष के बीच होने वाला स्नेह। प्रेम = स्नेह सम्बन्ध मात्र। वात्सल्य = छोटों के प्रति बड़ों का स्नेह। भक्ति = बड़ों के प्रति छोटों का श्रद्धायुक्त स्नेह।
(2) अस्त्र = जो फेंक कर मारा जाय; जैसे – तीर, भाला, बम। शस्त्र = जिससे काटा जाय; जैसे – तलवार, छुरा। आयुध = लड़ाई के सभी साधन आयुध कहलाते हैं। इसमें अस्त्र – शस्त्र के अतिरिक्त लाठी,गदा,छड़ आदि को भी ले सकते हैं। हथियार = हाथ से चलाये जाने वाले आयुध।
(3) अशुद्धि = अपवित्रता, मिलावट, लिखने अथवा बोलने में कमी, इन सभी को अशुद्धि कहते हैं। भूल = विस्मृति, जिसमें कर्ता की असावधानी प्रकट होती है। त्रुटि = वस्तु में किसी कमी का होना।
(4) अमूल्य = वस्तु जो मूल्य देकर प्राप्त न की जा सके। जैसे – विद्या, ज्ञान, प्रेम, सफलता, सुख, विश्वास। बहुमूल्य = जिसका अधिक मूल्य देना पड़े,जो वस्तु साधारण मूल्य की न हो। जैसे—सोना,प्लेटिनम,हीरा। महँगा = जिस वस्तु को बदलते बाजार भाव के कारण अधिक मूल्य देकर पाया जाये।
(5) अलभ्य = जिसे किसी उपाय से न पाया जाय। दुर्लभ = जिसे अधिक कष्ट उठाकर पाया जाय।
(6) अलौकिक = जो संसार में इन्द्रियों के द्वारा सुलभ न हो। असाधारण = जो सांसारिक होकर भी अधिकता से न मिलता हो। अस्वाभाविक = अप्राकृतिक, जो प्रकृति के नियमों से बाहर का प्रतीत हो।
(7) अर्पण = शरणगति का भाव लिए अर्पण। दान = धार्मिक भावना के साथ दूसरे का स्वत्व स्थापित करना; जैसे – जलदान, दीपदान, विद्यादान, गोदान, अन्नदान। प्रदान = सामान्य रूप से बड़ों के द्वारा छोटों को देना। वितरण = समाज में उत्पादित वस्तुओं के विभाजन की प्रणाली।
(8) अनुग्रह = बड़े की ओर से छोटों के अभीष्ट सम्पादन की स्नेहपूर्ण क्रिया अनुग्रह है। अनुकम्पा = दुःख दूर करने की चेष्टा से युक्त कृपा। दया = दुःख देखकर द्रवित होना। कृपा = दुःख – निवारण के सामर्थ्य से युक्त दया। सहानुभूति = दूसरे के दुःख में समभागी होने का भाव। करुणा = दुःख निवारण की व्याकुलता लिए हुए द्रवित होना। ममता = माता के समान किसी पर वत्सल भाव।
(9) अंग = (अवयव) भौतिक समष्टि का भाग; जैसे – शरीर का अंग, वृक्ष का अंग, शाखा आदि। देह = शरीर। आकृति = रेखाओं से बनी कोई समष्टि, चाहे वह सजीव हो या निर्जीव।
(10) अमर्ष = द्वेष या दुःख जो तिरस्कार करने वाले के कारण होता है। क्रोध = प्रतिकूल आचरण के बदले में प्रतिकूल आचरण की प्रवत्ति। कलह = क्रोध को जब सक्रिय रूप दिया जाता है तो उससे होने वाला वाचिक या शारीरिक आचरण।

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(11) असुर = दैत्य या दानव – एक जाति विशेष, जो देवों के समकक्ष थी। राक्षस = यह अनुचित आचरण के कारण मनुष्य जाति के लिए आता है।
(12) अनुपम = बेजोड़ – जिसकी तुलना न हो सके। अपूर्व = जिसे पहले अनुभव न किया गया हो। अद्भुत = जो विस्मयजनक हो।
(13) आयु = जीवन के सम्पूर्ण समय को आयु कहते हैं। वयस् = जीवन के शरीर विकास सूचक भाग को वयस् कहा जाता है, जैसे – शैशव। अवस्था = दशा – जीवन के प्रसंग में बीते हुए जीवन का भाग। वयस् के अर्थ में भी चलता है, जैसे—युवावस्था, वृद्धावस्था।
(14) अबला = स्त्री की संज्ञा है जिससे उसकी कोमलता एवं निर्बलता का संकेत मिलता है। नारी = केवल नर जाति की स्त्री या मानवी। कान्ता = प्रिया, किसी पुरुष के स्नेह – सम्बन्ध से दिया हुआ स्त्री का नाम – जो चमक को भी प्रकट करता है। भार्या = वह स्त्री जो किसी पुरुष से अपने भरण – पोषण की प्राप्ति का अधिकार रखती हो। पत्नी = पति से सम्बद्ध धार्मिक कार्यों में पति का साथ देने वाली, जिसका धार्मिक रीति से विवाह सम्पन्न हुआ हो। वधू = विवाह के बाद नारी की संज्ञा। अंगना = अंगों की कोमलता तथा सुन्दरता की सूचक स्त्री की संज्ञा।
(15) आनन्द = समस्त मन, प्राण,शरीर, आत्मा के सम्मिलित सुखानुभूति को आनन्द कहते हैं, हर्षित,प्रसन्न। सुख = मन के अनुकूल किसी भी प्रतीति को सुख कहते हैं। हर्ष = सुख या आनन्द के कारण शरीर की रोमांचमयी अवस्था हर्ष है। उल्लास – उमंग = मन में सुख की वेगयुक्त अल्पकालिक क्रिया।

(16) भिज्ञ = विषय के ज्ञान से सम्पन्न। विज्ञ = विषय का विशेष ज्ञान रखने वाला। बहुज्ञ = अनेक विषयों का ज्ञाता।
(17) अंश = मूर्त, अमूर्त तत्त्व का भाग। खण्ड = मूर्त पदार्थ का विभाजन।
(18) अन्न = मुख्य भोजन का धान्य विशेष। दाना = किसी भी वस्तु का गोलाई लिए छोटी इकाई का नाम। जैसे–माला का दाना,मोती का दाना, अनाज का दाना। शस्य = फसल, जो खेत में काटने हेतु लगी हो। खाद्य = सभी प्रकार का भोजन योग्य पदार्थ। पकवान = पका हुआ भोजन।
(19) आज्ञा = बड़ों द्वारा छोटों के प्रति काम की प्रेरणा। अनुज्ञा = श्रोता की इच्छा के समर्थन में स्वीकृतिसूचक कथन। अनुमति = बड़ों द्वारा सहमति अथवा किसी काम करने की इच्छा का समर्थन। आदेश = प्रायः कार्याधिकारी द्वारा दी हुई आज्ञा।
(20) अनुनय = किसी बात पर सहमत होने की प्रार्थना। विनय = निवेदन, शिष्टता. अनुशासन। प्रार्थना = किसी कार्यसिद्धि या वस्तु प्राप्ति के लिए विनययुक्त कथन। निवेदन = अपनी बात विनयपूर्वक रखना। आवेदन = अपनी योग्यता आदि के कथन द्वारा किसी पद या कार्य हेतु प्रस्तुत होना।
(21) आमन्त्रण – किसी अवसर पर सम्मिलित होने का बुलावा। निमन्त्रण = उत्सव के अवसर पर बुलाना। आह्वान = ललकारना, संघर्ष के लिए बुलाना।
(22) इच्छा = किसी वस्तु के प्रति मन का राग। आशा = इच्छा के साथ प्राप्ति की सम्भावना का सुख। उत्कण्ठा = जिज्ञासा। स्पृहा = उत्कृष्ट इच्छा। मनोरथ = अभिलाषा।
(23) उत्साह = बड़े कार्यों के प्रति प्रेरित करने वाला आनन्ददायक भाव। साहस = सहने की शक्ति को साहस कहते हैं।
(24) तेज = बाहरी प्रकाश। कान्ति = चमक। प्रकाश = किरण समूह।
(25) ईर्ष्या = दूसरे की उन्नति न सह पाना। स्पर्धा = दूसरे को उन्नत देखकर स्वयं उन्नति की होड़। असूया = दूसरे के गुणों में दोष ढूँढ़ना। द्वेष = दूसरे की बुराई की कामना।
बैर = बहुत दिनों का संचित क्रोध का रूप।
(26) खेद = अनिष्ट सूचना। अवसाद = मन – शरीर की निश्चेष्टता। क्लेश = मन – शरीर दोनों का पीड़ित होना। कष्ट = दुःखजनक स्थिति। व्यथा = पीड़ा। वेदना = पीड़ा का मानसिक अनुभव। यातना = दुःख भोगने की मनोदशा। यन्त्रणा = दुःख की दीर्घकालिक जकड़न।
(27) ऋतु = छ: ऋतुएँ होती हैं। मौसम = पारिस्थितिक भेद।

यहाँ पर उदाहरण के लिए कुछ अशुद्ध तथा शुद्ध वाक्य दिये गये हैं, जिनका सावधानीपूर्वक अध्ययन करना चाहिए। (पहला वाक्य अशुद्ध है तथा दूसरा वाक्य शुद्ध है।)
1. अनावृष्टि के कारण आगामी वर्ष पशुओं के आहार में भारी कमी की आशंका है।
[अनावृष्टि के कारण आगामी वर्ष में पशुओं के आहार में भारी कमी की सम्भावना है।]

2. अनुराधा ने अपने पति के गले में एक फूल की माला डाल दी।
[अनुराधा ने अपने पति के गले में फूलों की एक माला डाल दी।]

3. अनेकों विद्यार्थी उपाधि – वितरणोत्सव के समारोह में सम्मिलित नहीं हो सके। ”
[अनेक विद्यार्थी उपाधि – वितरण समारोह में सम्मिलित नहीं हो सके।।

4. अपने से बड़ों के प्रति स्नेह और छोटों के प्रति श्रद्धा का भाव व्यक्त करना चाहिए।
[अपने से बड़ों के प्रति श्रद्धा और छोटों के प्रति स्नेह का भाव व्यक्त करना चाहिए।

5. आज का छात्र पढ़ने से अधिक फैशन को महत्व देते हैं।
[आज के छात्र पढ़ने से अधिक महत्त्व फैशन को देते हैं।]

6. आज शनिवार है और कल रविवार की छुट्टी है।
[आज शनिवार है और कल रविवार की छुट्टी होगी।

7. शीला आज्ञाकारी पत्नी है।
[शीला आज्ञाकारिणी पत्नी है।]

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8. हमारी देश की सरकार ईमानदार है।
[हमारे देश की सरकार ईमानदार है।

9. आपका पत्र धन्यवाद सहित मिला।
[आपका पत्र धन्यवादपूर्वक मिला।

10. आपका भवदीय। [2010]
[आपका या भवदीय ]

11. उसकी आँख से आँसू बह रहा है।
[उसकी आँख से आँसू निकल रहे हैं।]

12. हमें पानी दो।
[मुझे पानी दो।

13. आपका लिखावट बड़ा अच्छा है।
[आपकी लिखावट बड़ी अच्छी

14. आपकी सलाह ग्राह्य योग्य है।
[आपकी सलाह ग्राह्य है।)

15. कश्मीर की सौन्दर्यता दर्शनीय है।
कश्मीर का सौन्दर्य दर्शनीय है।।

16. वह लौटकर वापस आ गया।
[वह वापस आ गया। या वह लौटकर आ गया।

17. आपने वह प्रतिज्ञा न भूले होंगे।
[आप वह प्रतिज्ञा न भूले होंगे।

18. रामचरितमानस सबसे श्रेष्ठतम ग्रन्थ है। [2011]
[रामचरितमानस श्रेष्ठतम ग्रन्थ है।।]

19. यद्यपि वे सज्जन है लिन्तु क्रोधी है।
[यद्याचे वह सज्जन है, किन्तु क्रोधी है।]

20. वह धनी व्यक्ति है। (बिना अर्थ बदले नकारात्मक)
वह निर्धन व्यक्ति नहीं है।

21. उसके पास पाँच भूगोल की पुस्तकें हैं।
[उसके पास भूगोल की पाँच पुस्तकें हैं।]

22. सरोवर के अन्दर पानी भरा है। ,
सरोवर में पानी भरा है।।

23. पिता का पुत्र में विश्वास है।
पिता का पुत्र पर विश्वास है।।

24. कई ऑफिस के अधिकारी छुट्टी लेकर चले गए।
[ऑफिस के कई अधिकारी छुट्टी लेकर चले गए।

25. उनका बहुत भारी सम्मान हुआ।
[उनका बहुत सम्मान हुआ।]

26. उनके पूज्यास्पद पूज्य पिता चल बसे।
[उनके पूज्यास्पद (या पूज्य) पिता चल बसे।

27. उनका वहाँ जाने की इच्छा न थी।
उनकी वहाँ जाने की इच्छा न थी।

28. उसे मृत्यु – दण्ड की सजा मिली है।
[उसे मृत्यु – दण्ड मिला है।]

29. गाँधीजी का देश सदा आभारी रहेगा।
देश गाँधीजी का सदा आभारी रहेगा।

30. यह कार्य आवश्यकीय है।
यह कार्य आवश्यक है।।

31. मैं कल दिल्ली से वापस लौटूंगा।
[मैं कल दिल्ली से लौटूंगा।]

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32. उसने मेरे को कुछ नहीं बोला।
[उसने मुझे कुछ नहीं कहा।]

33. मैं आटा पिसवाने जा रहा हूँ।
मैं गेहूँ पिसवाने जा रहा हूँ।

34. वह गुणवान महिला है।
[वह गुणवती महिला है।

35. बन्दूक एक उपयोगी शस्त्र है।
[बन्दूक एक उपयोगी अस्त्र है।]

36. मेरी अंक सूची गुम हो गई है।
मेरी अंक सूची गुम गयी है।]

37. यदि परिश्रम करोगे तो अच्छे अंक प्राप्त करोगे।
[यदि परिश्रम करेंगे तब अच्छे अंक प्राप्त होंगे। [2010]

38. दोनों में यह उत्तमतर है।
दोनों में यह उत्तम है।]

39. उसके बाद फिर क्या हुआ?
[उसके बाद क्या हुआ?]

40. गाय बोलती है।
गाय रम्भाती है।

41. खरगोश को काटकर गाजर खिलाओ।
(खरगोश को गाजर काटकर खिलाओ।

42. बच्चा दूध को रो रहा है।
[बच्चा दूध के लिये रो रहा है।।

43. महान् व्यक्ति सदा पूज्यनीय होते हैं।
[महान् व्यक्ति सदा पूजनीय होते हैं।

44. धातुओं में सोने से अधिक कीमती कोई धातु नहीं है।
सोना सबसे अधिक कीमती धातु है।।

45. वह बुद्धिमान लड़का है। (बिना अर्थ बदले नकारात्मक)
(वह मूर्ख लड़का नहीं है।।

46. यह एक उपयोगी पुस्तक है.उसे खरीद लो।
[यह एक उपयोगी पुस्तक है,इसे खरीद लो।

47. वह प्रतिदिन सबेरे के समय पढ़ता है।
[वह प्रतिदिन सुबह पढ़ता है।

48. भगवान के अनेकों नाम हैं।
भगवान के अनेक नाम हैं।]

49. उसने ऊपर को देखकर हँसा।
[वह ऊपर देखकर हँसा।]

50. रमेश प्रतिदिन हर रोज स्कूल जाता है।
[रमेश प्रतिदिन स्कूल जाता है।]

51. श्रीमती महादेवी वर्मा विद्वान् महिला हैं।
[श्रीमती महादेवी वर्मा विदुषी हैं।]

52. उसकी टाँग टूट गया।
[उसकी टाँग टूट गई।

53. उसके सामने एक गहरी समस्या है।
[उसके सामने एक गम्भीर समस्या है।

54. लक्ष्मीबाई एक तेजस्वी नारी थीं।
लक्ष्मीबाई एक तेजस्विनी नारी थीं।

55. वह सन्तान को लेकर दुःखी है।
वह सन्तान के कारण दुःखी है।] [2011]

56. जो कल आएगा सो पुरस्कार पाएगा।
जो कल आएगा वह पुरस्कार पाएगा।

57. गाँधी जी पक्के ईश्वर भक्त थे।
गाँधी जी सच्चे ईश्वर भक्त थे।

58. जंगल में शेर चिंघाड़ने लगा।
जंगल में शेर दहाड़ने लगा।

59. वह खाना खाकर के जाएगा।
वह खाना खाकर जाएगा।।

60. वे सज्जन पुरुष कौन हैं?
वे सज्जन कौन हैं?]

61. आप अपने मन से सोचें।
आप अपने मन में सोचें।।

62. भारत की बढ़ती हुई जनसंख्या वृद्धि के कारण लिखिए।
भारत की जनसंख्या वृद्धि के कारण लिखिए।]

63. राम – श्याम के झगड़े का हेतु क्या हो सकता है?
[राम – श्याम के झगड़े का कारण क्या हो सकता है?]

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  • विराम चिह्नों का उपयोग

बोलना एक विशिष्ट कला है, जिसका आवश्यक गुण यह है कि सुनने वाला या सुनने वाले बोलने वाले के भाव को अच्छी तरह समझ सकें। इसके लिए यह अनिवार्य है कि बोलने वाला बीच – बीच में आवश्यकतानुसार कुछ – कुछ ठहरकर बोले। यही क्रम बोलने में होता भी है। वह किसी पद,वाक्यांश या वाक्य को बोलते समय ठहरता जाता है ! इस विश्राम को व्याकरण में ‘विराम’ कहते हैं। लिखते समय ऐसे स्थानों पर कुछ चिह्न लगा दिये जाते हैं। इन चिह्नों को ‘विराम चिह्न’ कहते हैं। शाब्दिक अर्थ के अनुसार विराम’ का अर्थ है रुकाव, ठहराव अथवा विश्राम। बोलने में कहीं कम समय लगता है और कहीं ज्यादा। इसी दृष्टि से चिह्न भी कम समय और अधिक समय के अनुसार अलग – अलग होते हैं। इनके अतिरिक्त कुछ और भी चिह्न होते हैं, जिनका अध्ययन साहित्य के विद्यार्थी के लिए अत्यन्त अनिवार्य है।

चिह्नों का महत्त्व इतना अधिक है कि भूल से गलत स्थान पर चिह्न लगा देने से वाक्य का अर्थ बदल जाता है, अत: चिह्न लगाने में पूर्ण सावधानी रखना आवश्यक है,जैसे – –
रुको मत जाओ। (कोई चिह्न नहीं)
रुको मत जाओ। (जाने का निषेध)
रुको मत,जाओ। (रुकने का निषेध)

राष्ट्र भाषा हिन्दी में आजकल उसके विकास के साथ – साथ विराम चिह्नों की संख्या और प्रयोग बढ़ता जा रहा है। प्रमुख विराम चिह्न जिनका आजकल प्रयोग बहुतायत से होता है, निम्नानुसार हैं
1. अल्प विराम ( , )
2. अर्द्ध विराम (;)
3. पूर्ण विराम (।)
4. प्रश्न चिह्न (?)
5. विस्मयादि बोधक (!)
6. संयोजक चिह्न ( – )
7. निर्देशक चिह्न ( – )
8. कोष्ठक () []
9. उद्धरण या अवतरण चिह्न ‘ ‘ ” ”
10. लोप निर्देशक xxx …..
11. आदेश चिह्न : –
12. लाघव चिह्न °
13. हंस पद ^
14. बराबर सूचक चिह्न =
15. पुनरुक्ति बोध चिह्न (,,)
16. समाप्ति सूचक चिह्न – : x : –

(1) अल्प विराम (,)
यह चिह्न उस स्थान पर लगाया जाता है, जहाँ वक्ता बहुत ही थोड़े समय के लिए रुके।
जैसे –
हेमलता,शारदा, वेदश्री और जयश्री उज्जैन, देवास और महू होकर आज ही लौटी हैं। वह आयेगा, परन्तु रुकेगा नहीं।

(2) अर्द्ध विराम ( ; )
अर्द्ध विराम के चिह्न का प्रयोग उस समय किया जाता है, जबकि अल्प विराम से कुछ अधिक समय तक रुकना हो। इसका प्रयोग प्रायःदो स्वतन्त्र उपवाक्यों को अलग करने के लिए किया जाता है।

जैसे
मैंने गोली चलने की आवाज सुनी;
चार पक्षी फड़फड़ाकर जमीन पर गिर पड़े।

(3) पूर्ण विराम (।)
वाक्य पूरा होने पर कुछ अधिक समय के लिए रुकना होता है, इसलिए प्रत्येक वाक्य की पूर्णता पर इस चिह्न का प्रयोग करते हैं। जैसे
बांग्लादेश आजाद हो गया।

संकेत – कुछ लोग इस चिह्न को पूर्ण विराम के स्थान पर केवल ‘विराम’ कहते हैं और पूर्ण विराम के चिह्न दो खड़ी लकीर ( ॥) को मानते हैं। साधारणत: दो खड़ी लकीर वाले इस चिह्न
का प्रयोग पद्य की पूर्णता पर किया जाता है। जैसे

देख्यो रूप अपार, मोहन सुन्दर श्याम को।
वह ब्रज राजकुमार,हिय – जिय नैनन में बस्यो।

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(4) प्रश्न चिह्न (?)
प्रश्नवाचक चिह्न, प्रश्न सूचक वाक्यों के अन्त में पूर्ण विराम के स्थान पर आता है। जैसे
1. यह किसका घर है?
2. वह कहाँ जा रहा है?

(5) विस्मयादिबोधक चिह्न (!)
इस चिह्न का प्रयोग विस्मयादि सूचक शब्दों या वाक्यों के अन्त में किया जाता है। सम्बोधन कारक की संज्ञा के अन्त में भी इसे लगाया जाता है। जैसे
1. अरे ! वहाँ कौन खड़ा है।
2. हाय ! इसका बुरा हुआ।
3. हे ईश्वर ! उसकी रक्षा करो।

(6) संयोजक चिह्न ( – )
इसे सामासिक चिह्न भी कहते हैं। इस चिह्न का प्रयोग सामासिक शब्दों के मध्य में होता है। जैसे
हे ! हर – हार – अहार – सुत,मैं विनवत हूँ तोय।

(7) निर्देशक चिह्न ( – ) (: – )
इस चिह्न का दूसरा नाम विवरण चिह्न भी है। इसका प्रयोग उस स्थिति में किया जाता है, जबकि किसी वाक्य के आगे कई बातें क्रम से लिखी जाती हैं। इसे आदेश चिह्न भी कहते हैं।
निम्नलिखित शब्दों की परिभाषा लिखो संज्ञा, सर्वनाम, विशेषण, क्रिया। कभी – कभी (: – ) इस चिह्न के स्थान पर डेश ( – ) का भी प्रयोग कर लिया जाता है।

(8) कोष्ठक () [ ]
कोष्ठक का प्रयोग निम्न प्रकार से किया जाता है—
1. किसी विषय के क्रम बतलाने के लिए अक्षरों या अंकों के साथ इसका प्रयोग होता है। जैसे
(क) व्यक्ति वाचक संख्या। (ख) जाति वाचक संख्या।
(1) एशिया
(2) यूरोप

2. वाक्य के मध्य में किसी शब्द के अर्थ को स्पष्ट करने के लिए इसका प्रयोग होता है। जैसे
हे कोन्तेय,(अर्जुन) तू क्लेव्यता (कायरता) को प्राप्त न हो।

3. नाटकों में अभिनय को प्रकट करने के लिए भी कोष्ठकों का प्रयोग किया जाता है। जैसे
महाराणा प्रताप – क्रोध से) नहीं, ऐसा कदापि नहीं हो सकता।
मानसिंह – (नम्रता से) राणा ! हठ न करो। बात के मान लेने में तुम्हारा हित है।

(9) अधरण या अवतरण चिह्न (‘) (” “)
हिन्दी में इस चिह्न के अन्य नाम भी हैं। जैसे – उल्टा विराम,युगल – पाश,आदि। इस चिह्न का प्रयोग उस समय किया जाता है जबकि किसी व्यक्ति की बात या कथन को उसी के शब्दों में लिखना होता है। यह चिह्न वाक्य के आदि और अन्त में लगाया जाता है। इकहरे और दोहरे चिह्नों में यह अन्तर है कि जब किसी उद्धरण को लिखना होता है तो दोहरे चिह्न लगाये जाते हैं, किन्तु वाक्य के मध्य में यदि आवश्यकता हुई तो इकहरे उद्धरण चिह्न को लगाया जाता है।

अकबर ने उस दिन प्रार्थना के स्वर में कहा, “हे विश्वनियन्ता ! तू सत्य है; तू ही राम; तू ही रहीम है।” उसने आगे कहा,“दुनिया में सच्चा ईमान ‘मानव धर्म’ है।”

(10) लोप निर्देशक चिह्न (xxx) (……)
इन चिह्नों का प्रयोग तब होता है, जबकि कोई लेखक किसी का उद्धरण देते समय कुछ अंश छोड़ना चाहता है। इनका प्रयोग निम्नांनुसार किया जाता है
1. उस स्थिति में जबकि लेखक किसी लम्बे विवरण को छोड़कर आगे की बात लिखना चाहता है,तब वह चार – पाँच ऐसे निशान लगा देता है। जैसे
आग का वह दृश्य क्या था,सर्वस्व नाश की विभीषिका थी। चारों ओर से लोग दौड़ रहे थे। xxx सम्पूर्ण गाँव जलकर स्वाहा हो गया।
2. जब कुछ शब्द या वाक्य छोड़ने होते हैं, तो ‘ इसका प्रयोग करते हैं। जैसे – बम्बई नगर है। रिक्त स्थान की पूर्ति करो।

(11) आदेश चिह्न (: – )
जब प्रश्न न पूछा जाकर आदेश दिया जाये वहाँ आदेश चिह्न लगाया जाता है, जैसे किन्हीं पाँच चीनी यात्रियों का नाम लिखिए :

(12) लाघव चिह्न (०)।
जब किसी प्रसिद्ध शब्द को पूरा न लिखकर संक्षेप में लिखा जाता है,तब उसका प्रारम्भिक अक्षर लिखकर लाघव चिह्न (०) लगा दिया जाता है। जैसे
हिन्दी साहित्य सम्मेलन – हि. सा. स.
मध्य प्रदेश राज्य – म. प्र. राज्य
नागरी प्रचारिणी सभा,काशी – ना० प्र० स० ,काशी

(13) हंस पद (.)
इस चिह्न का प्रयोग उस समय किया जाता है, जबकि कोई शब्द या बात वाक्य लिखते समय मध्य में छूट जाय। उस स्थिति में नीचे इस चिह्न को लगाकर ऊपर वह शब्द लिख दिया जाता है। जैसे
वह
“मैंने पास जाकर देखा गुलाब का फूल था।”

(14) बराबर सूचक चिह्न (=)
इस चिह्न को तुल्यता सूचक चिह्न भी कहते हैं। इसका प्रयोग समानता दिखलाने के लिए किया जाता है। जैसे –
विद्या + आलय = विद्यालय

(15) पुनरुक्ति बोध चिह्न (,)
उस स्थिति में जबकि ऊपर कही हुई बात अथवा शब्द को नीचे की ओर उसी रूप में लिखना होता है, तो इस चिह्न को लगा देते हैं, जिसका मतलब होता है – यह वही शब्द है जो
ऊपर लिखा हुआ है। जैसे
5 आदमी एक काम 15 दिन में करते हैं
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(16) समाप्ति सूचक चिह्न ( – : x : – )
इस चिह्न का प्रयोग उस समय किया जाता है,जबकि कोई लेख अध्याय,परिच्छेद, पुस्तक आदि समाप्त हो गई हो। जैसे
और इस प्रकार भारत देश आजाद हुआ।
( – : x : – )

वाक्य – भेद

(1) रचना के अनुसार वाक्य के तीन भेद होते हैं :

  1. सरल,
  2. मिश्रित और
  3. संयुक्त वाक्य।

(i) जिस वाक्य में एक ही संज्ञा और क्रिया का प्रयोग होता है, उसे सरल या साधारण वाक्य कहते हैं।
(ii) जन मूल वाक्य के साथ एक या अधिक वाक्य और भी मिले होते हैं,तब वह वाक्य मिश्रित वाक्य कहलाता है।
(ii) जब कई सरल और मिश्रित वाक्य – समूह अव्ययों के द्वारा एक ही वाक्य में जुड़े रहते हैं, तब वह वाक्य संयुक्त वाक्य कहलाता है।

(2) अर्थ के अनुसार वाक्यों के प्रकार

  1. विधिवाचक – मधु मेरे घर आयी।
  2. निषेधवाचक – मधु मेरे घर नहीं आयी।
  3. आज्ञार्थक – मधु मेरे घर आये और मिले।
  4. प्रश्नवाचक क्या मधु आयी थी?
  5. विस्मयादिबोधक – हाय मधु आए तो कितना अच्छा !
  6. इच्छाबोध – अच्छा हो कि मधु मेरे घर आए।
  7. सन्देहसूचक – मधु जरूर मेरे घर आयी होगी।
  8. संकेतार्थक – यदि मधु जानती तो जरूर मेरे घर आती।

(3) क्रिया के अनुसार वाक्यों के भेद

  1. कर्तृ प्रधान,
  2. कर्म प्रधान,
  3. भाव प्रधान।

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