MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’

MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ (कविता, सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’)

हम कहाँ जा रहे हैं…! पाठ्य-पुस्तक पर आधारित प्रश्न

हम कहाँ जा रहे हैं…! लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि का दोगली-दोहरी सभ्यता से क्या आशय है?
उत्तर:
दोगली-दोहरी सभ्यता से आशय है-पाश्चात्य सभ्यता और भारतीय सभ्यता का सम्मिश्रण।

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प्रश्न 2.
हम कैसी दुंदुभी बजा रहे हैं?
उत्तर:
हम विदेशी जीवन-शैली में अपनी संस्कृति की ही वस्तुओं को आयायित समझकर अपना रहे और आधुनिक होने की दुंदुभी बजा रहे हैं।

प्रश्न 3.
हम विदेश क्यों जा रहे हैं?
उत्तर:
अपनी ही संस्कृति के रहस्यों को जानने के लिए हम विदेश जा रहे हैं।

हम कहाँ जा रहे हैं…! दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
‘उल्टे बाँस बरेली को’ कवि ने किस संदर्भ में कहा है? (M.P. 2009)
उत्तर:
विदेशियों द्वारा हमारी परंपराओं और उपलब्धियों को अपना कहकर प्रचारित करने के सौंदर्य में कवि ‘उल्टे बाँस बरेली को’ कहा है।

प्रश्न 2.
हमने दूसरों को क्या सौंप दिया है? (M.P. 2010)
उत्तर:
हमने दूसरों को अपनी सभ्यता और संस्कृति सौंप दी है।

प्रश्न 3.
‘हम कहाँ जा रहे हैं’ से कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
‘हम कहाँ जा रहे हैं’ से कवि यह संदेश केता चाहता है कि भारतीय सभ्यता, संस्कृति, उसकी परंपराएँ, व्यवहार, उपलब्धियाँ और जीवन-मूल्य सर्वश्रेष्ठ है। हमें पाश्चात्य जीवन-शैली और वस्तुओं को नहीं अपनाना चाहिए। हमें भारतीय ही बने रहना चाहिए; क्योंकि इसी में हमारा कल्याण है।

हम कहाँ जा रहे हैं…! भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित का भाव पल्लवन कीजिए –

  1. मान्यताएँ बदल कर हम अपना सर मुड़ा रहे हैं।
  2. अपना खालिसे कलश भी हम विदेशी बना रहे हैं।

उत्तर:
1. हम भारतीय पुरातन काल से चली आ रही परंपराओं, जीवन-मूल्यों और आदर्शों को बदलकर, पाश्चात्य जीवन-शैली को अपनाकर, अपनी संस्कृति और अपने व्यवहार को भूलते जा रहे हैं। आज जब विश्व हमारे चिंतन और ज्ञान से नई चेतना प्राप्त कर रहा है, तब हम अपनी विरासत को छोड़कर विदेशी चिंतन और व्यवहार को ग्रहण करें, यह उचित नहीं है।

2. हम विदेशी वस्तुओं के प्रति इतने आकर्षित हो रहे हैं कि हमने शुद्ध भारतीय ‘देन कलश को विदेशी की देन बता दिया है। कवि ने इसके द्वारा भारतीयों पर व्यंग्य किया है कि हम अपनी सांस्कृतिक उपलब्धियों को भी नकार रहे हैं।

हम कहाँ जा रहे हैं…! भाषा-अनुशीलन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित मुहावरों का अर्थ लिखकर वाक्य में प्रयोग कीजिए –
(अ) मुलम्में पर मुलम्मा चढ़ाना।
(ब) उल्टे बाँस बरेली को
(स) दुदंभी बजाना
(द) सर मुंडाना।
उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 'हम कहाँ जा रहे हैं...!' img-1

प्रश्न 2.
विलोम शब्द लिखिए –

  1. कड़वा
  2. नीति
  3. ज्ञान
  4. सभ्यता
  5. रहस्य
  6. दानवीर।

उत्तर:
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 'हम कहाँ जा रहे हैं...!' img-3
हम कहाँ जा रहे हैं…! योग्यता-विस्तार

प्रश्न 1.
किसी प्रवासी भारतीय की कविता खोजिए और उसे कक्षा में सुनाइए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

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प्रश्न 2.
चाणक्य और अभिमन्यु के संबंध में जानकारी प्राप्त करें।
उत्तर:
चाणक्य चंद्रगुप्त का प्रधानमंत्री था और अर्थशास्त्र का रचयिता था। अभिमन्यु अर्जुन का पुत्र था। महाभारत युद्ध में द्रोणाचार्य के चक्रव्यूह को तोड़ने के लिए वह उसमें प्रवेश कर गया, किंतु वहाँ कई महारथियों ने मिलकर उसका वध कर दिया था।

प्रश्न 3.
पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण को आप कैसा मानते हैं? अपने विचार लिखिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

प्रश्न 4.
विश्व में हिन्दी भाषा के प्रचार-प्रसार की स्थिति पर अपने विचार अपने साथियों के साथ बाँटिए।
उत्तर:
छात्र स्वयं करें।

हम कहाँ जा रहे हैं…! परीक्षोपयोगी अन्य महत्वपूर्ण प्रश्न

I. वस्तुनिष्ठ प्रश्न

प्रश्न 1.
‘हम कहाँ जा रहे हैं। कविता के कवि हैं –
(क) मैथिलीशरण गुप्त
(ख) देवेंद्र ‘दर्शिक’
(ग) बालकवि ‘वैरागी’
(घ) सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’
उत्तर:
(घ) सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’

प्रश्न 2.
मान्यताएँ बदलकर हम अपना सर……………………..रहे हैं –
(क) कटा
(ख) मुँडा
(ग) झुका
(घ) ऊँचा
उत्तर:
(ख) मुँड़ा।

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प्रश्न 3.
चक्रव्यूह में फँसा था –
(क) अभिमन्यु
(ख) अर्जुन
(ग) भीम
(घ) द्रोणाचार्य
उत्तर:
(क) अभिमन्यु।

प्रश्न 4.
हम ‘डॉविंची कोड’ बना रहे हैं, कैसे ………..
(क) दबाव में आकर
(ख) जान-बूझकर
(ग) अनजाने में
(घ) देख-सुनकर
उत्तर:
(ख) जान-बूझकर।

प्रश्न 5.
हम कैसी सभ्यता के रंग में रंगे हैं –
(क) दोहरी-दोगली
(ख) भारतीय पाश्चात्य
(ग) असली-नकली
(घ) अच्छी-बुरी
उत्तर:
(क) दोहरी-दोगली।

प्रश्न 6.
कवि ने हमें संदेश दिया है –
(क) हम भारतीय बने रहें
(ख) हम आधुनिक बनने के लिए पाश्चात्य जीवन-शैली अपनाएँ
(ग) हम अपनी संस्कृति-सभ्यता को भूल जाएँ
(घ) हम अपनी उपलब्धियों को नकार दें
उत्तर:
(क) हम भारतीय बने रहें।

प्रश्न 7.
हमारा कल्याण इसी में है कि –
(क) हम भारतीय बने रहें।
(ख) हम नकली जीवन-शैली को उतार फेंकें।
(ग) हम अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानें।
(घ) हम अपनी शक्ति को, अपनी उपलब्धियों को और अपनी सांस्कृतिक चेतना पहचानें।
उत्तर:
(घ) हम अपनी शक्ति को, अपनी उपलब्धियों को और अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानें।

II. निम्नलिखित रिक्त स्थानों की पूर्ति दिए गए विकल्पों के आधार कीजिए –

  1. सुदर्शन ‘प्रियदर्शनी’ ………. हैं। (प्रवासी भारतीय/अप्रवासी भारतीय)
  2. विश्व में ………. पहले स्थान पर है। (चीनी भाषा/हिंदी भाषा)
  3. हिंदी जानने वालों की संख्या ………. करोड़ है। (100/102)
  4. पाश्चात्य जीवन-शैली और वस्तुओं को देखकर हम ………. रहे। (भाग/ललचा)
  5. ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ कविता के कवि ……… हैं। (बालकवि वैरागी/सुदर्शन प्रियदर्शिनी)

उत्तर:

  1. अप्रवासी भातीय
  2. हिंदी भाषा
  3. 102
  4. ललचा
  5. सुदर्शन “प्रियदर्शिनी।

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III. निम्नलिखित कथनों में सत्य/असत्य छाँटिए –

  1. महाभारत के चक्रव्यूह में अभिमन्यु फँसा था।
  2. कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं’…में हैरीपीटर फिल्म का उल्लेख है।
  3. हम दोहरी-दोगली सभ्यता के रंग में रंगे हैं।
  4. कवि ने संदेश दिया है कि हम भारतीय बने रहें।
  5. ‘दोगली-दोहरी’ में उपमा अलंकार है।

उत्तर:

  1. सत्य
  2. असत्य
  3. सत्य
  4. सत्य
  5. असत्य।

IV. निम्नलिखित के सही जोड़े मिलाइए –

प्रश्न 1.
MP Board Class 12th Hindi Makrand Solutions Chapter 20 'हम कहाँ जा रहे हैं...!' img-4
उत्तर:

(i) (ङ)
(i) (ग)
(iii) (घ)
(iv) (ख)
(v) (क)।

V. निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर एक शब्द या एक वाक्य में दीजिए –

  1. हमारे लिए क्या शुभ संकेत नहीं है।
  2. विदेशी किसे क्या कहकर प्रचारित कर रहे हैं?
  3. हमारा कल्याण किसमें है?
  4. चाणक्य-नीति क्या है?
  5. ‘सब कुछ गड़मड़ा रहा है?

उत्तर:

  1. हमारे लिए यह शुभ संकेत नहीं है कि हम अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं।
  2. विदेशी हमारी देन वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग को अपना कहकर प्रचारित कर रहे हैं।
  3. हमारा कल्याण इसी में हैं कि हम भारतीय बने रहें।
  4. खूब सोच-विचार कर ही कदम उठाना चाणक्य नीति है।
  5. ‘सब कुछ गड़मड़ा रहा है’ से कवि का तात्पर्य है-भारतीय और पाश्चात्य जीवन-शैली एक-दूसरे से इतनी मिल गई हैं कि क्या भारतीय है और क्या पाश्चात्य, यह समझ पाना कठिन होता जा रहा है।

हम कहाँ जा रहे हैं…! लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
सुभद्रा कौन-सी कथा सुनते-सुनते सो गई थी?
उत्तर:
सुभद्रा चक्रव्यूह की कथा सुनते-सुनते सो. गई थी?

प्रश्न 2.
‘डॉविंची कोड’ से क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘डॉविंची कोड’ से तात्पर्य है नकली नियमावली।

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प्रश्न 3.
विदेशी क्या कर रहे हैं?
उत्तर:
विदेशी हमारी वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग को अपना कहकर प्रचारित कर रहे हैं।

प्रश्न 4.
विदेशी हमारा क्या-क्या ग्रहण कर उन्हें क्या-क्या बना दिया है?
उत्तर:
विदेशी हमारी वास्तुकला को ग्रहण कर उसे फेंगशुई, सत्वज्ञान को रेकी और योग को योगा बना दिया है।

प्रश्न 5.
कवि ने क्या उतार फेंकने के लिए कहा है?
उत्तर”:
कवि ने नकली जीवन-शैली उतार फेंकने के लिए कहा है।

प्रश्न 6.
‘उल्टे बाँस बरेली को’ कवि सुदर्शन ने किस संदर्भ में कहा है? (M.P. 2009)
उत्तर:
‘उल्टे बाँस बरेली को’ कवि सुदर्शन ने उस संदर्भ में कहा है कि विदेशी हमारी ही वस्तुओं को ग्रहण करके उसे अपना अच्छा बताकर हमें लौटा रहे हैं।

हम कहाँ जा रहे हैं…! दीर्घ उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
कवि ने किन प्रसंगों को उजागर किया है?
उत्तर:
कवि ने भारतीय और पाश्चात्य जीवन-बोध के उन प्रसंगों को उजागर किया है जिनमें हम अपनी संस्कृति और अपने परंपरागत व्यवहार को भूल रहे हैं।

प्रश्न 2.
हम पाश्चात्य जीवन-शैली की चकाचौंध में क्या-क्या खोते जा रहे हैं?
उत्तर:
हम पाश्चात्य जीवन-शैली की चकाचौंध में अपनी सांस्कृतिक पहचान, धर्म-कर्म, वेशभूषा, भाषा-ज्ञान, विधि-विधान आदि खोते जा रहे हैं।

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प्रश्न 3.
हमारा क्या-क्या विदेशी हो गया है?
उत्तर:
हमारा खालिस कलश, धर्म, कर्म, वेशभूषा, भाषा-विज्ञान, विधि-विधान सभ्यता, संस्कृति, दानवीरता, वास्तुकला, सत्वज्ञान, योग, नीम की निमोली आदि विदेशी हो गए हैं। इन्हें विदेशी अपना मुलम्मा चढ़ाकर अपना बतलाते हुए प्रचारित कर रहे हैं।

प्रश्न 4.
‘हम कहाँ जा रहे हैं….. कविता के उद्देश्य पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ कविता सोद्देश्यपूर्ण कविता है। इसमें कवि सुदर्शन का यह उद्देश्य है कि हमें बाहरी आडम्बरों से दूर रहना चाहिए। तथाकथित सभ्यता और पाश्चात्य जीवन-शैली को बिना सोचे-समझे अपनाना मूर्खता है। हमारी ही विरासत और सांस्कृतिक निष्ठा दुनिया में श्रेष्ठ है। विदेशी वस्तुओं की ओर दौड़ना अच्छी बात नहीं है। अच्छी बात यही है कि हम भारतीय हैं और भारतीय बने रहें।

हम कहाँ जा रहे हैं…! पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
“हम कहाँ जा रहे हैं…!” कविता का सार अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
‘हम कहाँ जा रहे हैं। कविता में कवि सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’ ने भारतीय और पाश्चात्य जीवन-बोध के उन प्रसंगों को उजागर किया है। जिन्हें हम भारतीय अपनी भारतीय संस्कृति और परंपरागत व्यवहार में होने पर भी भूलते जा रहे हैं। कविने इस बात पर बल दिया है कि हम अपनी छम प्रवृत्ति को छोड़ दें। बाह्य आडंबर को नष्ट कर दें। कुछ नवीन सभ्यता के नाम पर पाश्चात्य जीवन-शैली का अपनाना बुद्धिमानी नहीं है। सच तो यह है कि हमारी विरासत एवं सांस्कृतिक निष्ठा विश्व में श्रेष्ठ है। पाश्चात्य जीवन-शैली और उनकी वस्तुओं को देखकर हम ललचा रहे हैं। उन्हें स्वीकार कर रहे हैं।

अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। हम अपनी संस्कृति को देखने-समझने के लिए विदेश जा रहे हैं। यहाँ तक कि हम अपने स्वयं के कलश (धरोहर) को भी विदेशी बता रहे हैं। मैंनशुई, रेकी और योगा का उल्लेख करते हुए कवि कहता है कि यह सब कुछ हमारी वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग हमारी ही देन हैं। विदेशी लोग अपना कहकर प्रचारित कर रहे हैं। कवि हमें सचेत करता है कि हमें अपनी शक्ति को, अपनी उपलब्धियों को अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानना चाहिए। इसी में हमारा कल्याण है कि हम भारतीय बने रहे। नकली जीवन-शैली को त्याग दें।

काव्यांशों की सप्रसंग व्याख्या

प्रश्न 1.
चिरंतन काल से
लिख-पीढ़ी दर –
पीढ़ियाँ चली
मान्यताएँ बदलकर
अपना सर हम

मुड़ा रहे हैं…!
न जाने हम कहाँ
जा रहे हैं…!

चाणक्य नीतियों
के चक्रव्यूह में फँसे
हम अभिमन्यु के
व्यूह को दुहरा रहे हैं…।

सुनते-सुनते
कथा, सो गई
सुभद्रा-हम जान-बूझकर
डॉविंची कोड बना रहे हैं।
रहस्य पर रहस्य
दबे हैं संस्कृति के
उन्हें देखने-समझने
विदेश आ रहे हैं…!

पगड़ी उतरी –
बार-बार-हमारी
फिर भी कलगी
की-कलफ सहला रहे हैं…… (Page 93)

शब्दार्थ:

  • चिरंतन – पुरातन, बहुत पहले से चलते रहने वाला।
  • मान्यताएँ – किसी सिद्धांत आदि का मान्य होना, मानने योग्य।
  • सर मुड़ाना – अपने पास का धन गँवा देना।
  • चाणक्य-नीति – चंद्रगुप्त मौर्य के प्रधानमंत्री की चतुराई भरी चाल।
  • व्यूह – सैनिकों को युद्धभूमि में उपयुक्त स्थान पर रखना।
  • डॉविची कोड – नकली आचारसंहिता, नकली नियमावली।
  • रहस्य – गुप्त भेद।
  • पगड़ी उतारना – प्रतिष्ठा समाप्त करना।
  • कलगी – पगड़ी। में लगाया जाने वाला फूंदना।
  • कलफ़ – माँड़ी।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश.सुदर्शन ‘प्रिंयदिर्शनी’ द्वारा रचित कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ से उद्धृत है। कवि ने भारतीयों को पुरातन समय से चली आ रही भारतीय संस्कृति की मान्यताओं को छोड़कर पाश्चात्य जीवन-शैली को बिना सोचे-समझे अपनाने और अपनी जीवन-शैली को भूलते जाने को उचित नहीं मानता। इन्हीं भावों को इस काव्यांश में व्यक्त किया गया है।

व्याख्या:
कवि का कहना है कि हम भारतीय पुरातन काल से पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपनी संस्कृति की परंपरागत जीवन-शैली को बदलकर, अपने परंपरागत व्यवहार को भूलते जा रहे हैं। हम अपने जीवन-मूल्यों और आदर्श परंपराओं को छोड़कर पाश्चात्य परंपराओं और जीवन-शैली का अंधानुकरण करके कहाँ जा रहे हैं। हम पाश्चात्य संस्कृति की चतुराईभरी नीतियों के चक्रव्यूह में फंसकर अभिमन्यु वध वाले कांड को दुहरा रहे हैं; अर्थात् हम भारतीय पाश्चात्य जीवन-शैली के शिकार होते जा रहे हैं, जिसमें एक बार फँसने के बाद निकलना अभिमन्यु की तरह असंभव है।

जिस प्रकार अभिमन्यु ने सुभद्रा के गर्भ में ही चक्रव्यूह में प्रवेश का मार्ग जान लिया या किंतु कहानी सुनते-सुनते सुभद्रा के सो जाने पर वह उससे निकलने का मार्ग नहीं जान पाया क्योंकि सुभद्रा कथा के बीच में ही सो गई थी। अभिमन्यु चक्रव्यूह में घुस तो गया, लेकिन वापस नहीं लौट सका। वही स्थिति हमारी है। हम पाश्चात्य जीवन-शैली के चक्रव्यूह में फँसते जा रहे हैं। हमारे लिए उससे छुटकारा पाना कठिन है। हम जान-बूझकर इसमें फँस रहे हैं तथा बिना सोचे-समझे इसे अपनाकर, नकली नियमावली बना रहे हैं। हमें यह अपनी छद्म प्रवृत्ति छोड़ देनी चाहिए।

हमारी भारतीय सभ्यता और संस्कृति में अनेक गुप्त भेद दबे पड़े हैं। हम उन गुप्त भेदों को जानने के लिए विदेश आ रहे हैं। आज जब हमारे चिंतन और ज्ञान को अपनाकर विश्व नई चेतना ग्रहण कर रहा है, तब हम अपनी विरासत को छोड़कर विदेशी चिंतन और व्यवहार को अपनाने के लिए आतुर हो रहे हैं। ऐसा करने से बारम्बार हमारी प्रतिष्ठा घटती जा रही, है, फिर भी हम कलगी में लगे कलफ़ को सहला रहे हैं।

विशेष:

  1. कवि ने भारतीय संस्कृति को पाश्चात्य संस्कृति से श्रेष्ठ बताया है और पाश्चात्य शैली को बिना विचारे स्वीकार करना उचित नहीं है।
  2. सुनते-सुनते, बार-बार मैं पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है।
  3. कलगी की कलफ़ में अनुप्रास अलंकार है।
  4. मुहावरों का सटीक, सार्थक प्रयोग किया गया है।
  5. महाभारत की पौराणिक कथी का प्रयोग हुआ है।
  6. भाषा तत्सम प्रधान है जिसमें अंग्रेजी के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  7. मुक्त छंद है। तुकांत का अभाव है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
चिरंतन काल से चली आ रही मान्यताओं को बदलेकर हम क्या कर रहे हैं?
उत्तर:
पुरातन काल से चली आ रही अपनी संस्कृति और परंपरागत मान्यताओं को बदलकर हम पाश्चात्य जीवन-शैली का अनुकरण कर अपनी संस्कृति और परंपरागत व्यवहार को भूलते जा रहे हैं।

प्रश्न (ii)
चाणक्य नीतियों से क्या आशय है?
उत्तर:
चाणक्य नीतियों से आशय है चतुराई की चालें। हम पाश्चात्य जीवन-शैली की चतुराईभरी चालों में फँसते जा रहे हैं। आशय यह कि हम बिना सोचे-विचारे उन्हें अपना रहे हैं।

प्रश्न (iii)
हम किन्हें देखने-समझने विदेश जा रहे हैं?
उत्तर:
भारतीय सभ्यता-संस्कृति में अनेक. गुप्त भेद दवे पड़े हैं। हम उन गुप्त भेदों को जानने के लिए विदेश जा रहे हैं।

पयांश पर आधारित सौंदर्य संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
प्रस्तुत पद्यांश के भाव-सौंदर्य पर प्रकाश डालिए।.
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
हम भारतीय अपनी संस्कृति और अपने परंपरागत व्यवहार को भूलते जा रहे हैं। शताब्दियों से पीढ़ी-दर-पीढ़ी चली आ रही मान्यताओं, जीवन आदर्शों और जीवन-शैली को छोड़कर पाश्चात्य जीवन-शैली को बिना सोचे विचारे अपना रहे हैं। अपनी ही संस्कृति के रहस्यों को जानने के लिए हम विदेशों में जा रहे हैं। यह उचित नहीं है।

प्रश्न (ii)
पद्यांश के शिल्प-सौंदर्य को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
कवि कहता है कि पाश्चात्य जीवन-शैली का बिना सोचे-विचारे स्वीकार करना बुद्धिमानी नहीं है। सुनते-सुनते, बार-बार में पुनरुक्तिप्रकाश अलंकार है। ‘कलगी की कलफ’ में अनुप्रास अलंकार है। मुहावरों को सटीक, सार्थक प्रयोग किया गया है। महाभारत की पौराणिक कथा और चाणक्य का उल्लेख करने से उदाहरण अलंकार है। चाणक्य…सुभद्रा में रूपक अलंकार है। मुक्तक छंद है। तुकांत का अभाव है। भाषा तत्सम प्रधान है, जिसमें अंग्रेजी शब्दों का प्रयोग किया है।

प्रश्न (iii)
पद्यांश का मुख्य भाव बताइए।
उत्तर:
पद्यांश का मुख्य भाव यह है कि हमारी विरासत एवं संस्कृति दुनिया में सर्वश्रेष्ठ है।

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प्रश्न 2.
सब कुछ गड़मड़ा
रहा है-क्या है
हमारा-क्या
पाश्चात्य –
जानकर भी
नकारा –
सर हिला रहे हैं…।
दोगली-दोहरी
सभ्यता के रंग
में रंगे हैं –
हम और हमारा
कुछ भी नहीं
यही…
मुलम्में पर
मुलम्मा चढ़ा
रहे हैं…। (Page 94)

शब्दार्थ:

  • गड़मड़ा – अस्त-व्यस्त होना।
  • मुलम्मे पर मुलम्मा चढ़ाना – दिखावे पर दिखावा करना, सोने या चाँदी का पानी चढ़ाया हुआ।
  • नकारा – अस्वीकृत, इनकार, निकम्मा।
  • दोगली – वर्णसंकर।
  • दोहरी – दो तरह की बात।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’ द्वारा रचित कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं’ से उद्धृत है। कवि का मानना है कि हम न तो भारतीय रह पाए हैं और न ही पूरी तरह पाश्चात्य जीवन-शैली को अपना सके। हम दो रंगी सभ्यता में रंगे जा रहे हैं।

व्याख्या:
कवि कहता है कि आज सब कुछ अस्त-व्यस्त हो रहा है। कहने का भाव यह है कि भारतीय संस्कृति, परंपराएँ और मान्यताएँ तथा पाश्चात्य जीवन-शैली दोनों ही एक-दूसरे में मिलकर गड़मड़ होकर अस्त-व्यस्त हो रही हैं। इस कारण पता ही नहीं चलता कि क्या हमारा है अर्थात् क्या भारतीय है और क्या पाश्चात्य है। सत्य तो यह है कि हम सब कुछ जानकर भी निकम्मे बने हुए अस्वीकृति में सर हिला रहे हैं। हम वर्णसंकर; अर्थात् दो प्रकार की जीवन-शैली अपनाकर दो तरह की बातें करते हैं।

हम एक ओर भारतीय सभ्यता-संस्कृति की अपनी परंपरागत जीवन-शैली को नहीं छोड़ पा रहे हैं और दूसरी ओर हम पाश्चात्य सभ्यता-संस्कृति की जीवन-पद्धति को बिना विचारे अपनाकर दोहरी जिन्दगी जी रहे हैं। कहने का भाव यह है कि हम आधुनिक होने का दिखावा कर रहे हैं। हम अपनी विरासत को भुलाकर पाश्चात्य जीवन-शैली और वस्तुओं को देखकर ललंचा रहे हैं अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। इस प्रकार हम दिखावे पर दिखावा कर रहे हैं। भारतीय जीवन-शैली पर पाश्चात्य जीवन-शैली को चढ़ा रहे हैं।

विशेष:

  1. भारतीय जीवन-शैली को छोड़कर पाश्चात्य जीवन-शैली को अपनाने वालों पर व्यंग्य किया है।
  2. भारतीय पाश्चात्य होने का दिखावा कर रहे हैं। अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं।
  3. दोगली-दोहरी में अनुप्रास अलंकार है।
  4. मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
  5. छंदविहीन रचना में तुक और लय का अभाव है।
  6. भाषा सरल और उर्दू शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कवि और कविता का नाम लिखिए।
उत्तर:
कवि-सुदर्शन ‘प्रियदर्शनी, कविता-‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’

प्रश्न (ii)
‘हम और हमारा’ से कवि का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
‘हम’ से कवि का तात्पर्य है हम भारतीय और ‘हमारा’ से तात्पर्य है-हम भारतीयों की उपलब्धियों से, अपनी विरासत से हे जिसे हम भूलते जा रहे हैं।

प्रश्न (iii)
‘दोगली-दोहरी सभ्यता के रंग में रंगे’ द्वारा कवि क्या कहना चाहता है?
उत्तर:
कवि यह कहना चाहता है कि हा भारतीय अपनी संस्कृति की मान्यताओं और जीवन-शैली के साथ-साथ पाश्चात्य जीवन-शैली और उनकी वस्तुओं के प्रति ललचा रहे हैं। इस तरह हम न तो अपनी जीवन-शैली को छोड़ पा रहे हैं और न ही पाश्चात्य जीवन-शैली को पूरी तरह अपना पा रहे हैं।

पद्यांश पर आधारित सौंदर्य-संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
पद्यांश का भाव-सौदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
भारतीय जीवन-शैली और पाश्चात्य जीवन-पद्धति दोनों मिल जाने के कारण सभी कुछ अस्त-व्यस्त हो रहा है। हम अपनी विरासत और उपलब्धियों को भी जानते हुए नकार रहे हैं। हमें लगता है कि हमारा कुछ भी नहीं है। यही कारण है कि हम परत पर परत चढ़ा रहे हैं।

प्रश्न (ii)
पद्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
हम भारतीय पाश्चात्य होने का दिखावा कर रहे हैं और अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। दोगली-दोहरी में अनुप्रास अलंकार है। मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है। छंदविहीन रचना में तुक और लय का अभाव है। भाषा सरल और उर्दू शब्दावली से युक्त खड़ी बोली है। विशेषणों का प्रयोग अर्थवत्ता में वृद्धि कर रहा है।

प्रश्न 3.
अपना खालिस
कलश भी हम
विदेश बता रहे, हैं…।
न धर्म न कर्म-अपना
न वेश-न भूषा
न भाषा-न विज्ञान
न विधि-न विधान –
सब कुछ दूसरों
के हवाले –
किए जा रहे हैं….।
बड़े त्यागी –
ऋषि-और दानवीर हैं हम –
दूसरे-हमें –
हमारे ही प्याले
से-हमारी सभ्यता
संस्कृति का
घुट पिला रहे हैं… (Page 94)

शब्दार्थ:

  • खालिस – शुद्ध।
  • कलश – घड़ा।
  • विधि – रचना, ढंग।
  • विधान – व्यवस्था।

प्रसंग:
प्रस्तुत पद्यांश सुर्दशन ‘प्रियदर्शनी’ द्वारा रचित कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं….!’ से उद्धृत है। कवि भारतीयों पर व्यंग्य करते हुए कहता है कि हम अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। यहाँ तक कि इमने स्वयं के कलश (धरोहर) को भी विदेशी दर्शा दिया है।

व्याख्या:
कवि कहता है कि हम अपनी उपलब्धियों को नकार रहे हैं। यहाँ तक अपने शुद्ध देशी कलश (धरोहर) को भी विदेशी बता रहे हैं। दूसरे शब्दों में, मांगलिक कार्यों में रखा जाने वाला कलश भारतीय संस्कृति की देन है। विदेशी वस्तुओं को अपनाने के चक्कर में हमने उसे भी विदेशी संस्कृति की देन बता दिया है। न धर्म – हमारा है, न कर्म अपना है और न ही पहनावा अपना रहा है। यहाँ तक कि विधि-विधान भी अपने नहीं रहे। हम सब कुछ हवाले किए जा रहे हैं। हम बड़े त्यागी बन रहे हैं। कहने का भाव यह है कि हम अपनी उपलब्धियों को विदेशियों को दिए जा रहे हैं।

हम अपने-आपको ऋषि और दानवीर समझ रहे हैं। दूसरी ओर विदेशी हमारी इन्हीं परंपराओं का सत्व ग्रहण करके हमें ही परोस रहे हैं और हम उन्हें विदेशी मानकर ग्रहण कर रहे हैं। दूसरे शब्दों में, पाश्चात्य संस्कृति के लोग हमारी भारतीय संस्कृति की मान्यताओं व हमारी उपलब्धियों को दूसरा नाम देकर हमारी सभ्यता और संस्कृति हमें ही परोस रहे हैं और हम उन्हें अपना रहे हैं। यह हमारे लिए शुभ संकेत नहीं है।

विशेष:

  1. हम भारतीय अपनी संस्कृति, अपनी मान्यताएँ और परंपरागत व्यवहार को त्यागकर विदेशी जीवन-शैली अपना रहे हैं जो शुभ संकेत नहीं है।
  2. सभ्यता-संस्कृति में अनुप्रास अलंकार है।
  3. मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है।
  4. भाषा सरल खड़ी बोली है जिसमें उर्दू के शब्दों का प्रयोग किया गया है।
  5. छंदविहीन रचना में तुक और लय का अभाव है।
  6. व्यंग्यात्मकता का प्रयोग, किया गया है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
कवि ने भारतीयों पर क्या व्यंग्य किया है?
उत्तर:
कवि ने भारतीयों पर व्यंग्य किया है कि हम लोग विदेशी वस्तुओं के प्रति ललचा रहे हैं इसलिए हमें अपनी संस्कृति में मांगलिक कार्यों में प्रयोग होने वाले भारतीय देन कलश को भी विदेशी बता दिया है। यह सर्वथा अनुचित है।

प्रश्न (ii)
भारतीय अपनी किन-किन सांस्कृतिक उपलब्धियों को दूसरों को सौंप रहे हैं?
उत्तर:
भारतीय अपना धर्म-कर्म, वेशभूषा, भाषा और ज्ञान एवं विधि-विधान आदि दूसरों को सौंप रहे हैं और उनकी जीवन-शैली को अपना रहे हैं। हमारे पास अपना कुछ नहीं रहा है।

प्रश्न (iii)
विदेशी हमें क्या परोस रहे हैं?
उत्तर:
विदेशी हमारी सभ्यता और संस्कृति को अपने साँचे में ढोलकर हमें ही परोस रहे हैं।

पयांश पर आधारित सौंदर्य-संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
पद्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
कवि ने भारतीयों को व्यंग्य का निशाना बनाया है। हम पाश्चात्य जीवन-शैली और वस्तुओं को देखकर ललचा रहे हैं। इसलिए हम अपना सब कुछ उन्हें सौंप रहे हैं। हमारी यह स्थिति हो गई है कि न हमारा धर्म-कर्म, न ही वेशभूषा, भाषा-ज्ञान और न कोई विधि-विधान रहा है। पाश्चात्य सभ्यता और संस्कृति के लोग हमारी उपलब्धियों को अपना बताकर हमें परोस रहे हैं।

प्रश्न (ii)
पद्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट. कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
कवि ने भारतीयों की मनःस्थिति को व्यंग्य का निशाना बनाया है। अतः पद्यांश की भाषा में व्यंग्यात्मकता है। हमें हमारे’ व ‘सभ्यता-संस्कृति’ में अनुप्रास अलंकार है। मुहावरों का सार्थक प्रयोग किया गया है। भाषा सरल खड़ी बोली है इसमें उर्दू शब्दों का प्रयोग हुआ है। छंदविहीन रचना में तुक और लय का अभाव है।

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प्रश्न 4.
उल्टे बाँस
बरेली को –
योग-साधना –
धर्म नीति –
सब उल्टे हमें
परोसे
जा रहे हैं…।
वास्तुकला
हुई फेंगशुई
सत्वज्ञान को
रेकी-बना रहे हैं
योग को योगा हुआ देख
कैसी हम
दुंदुभी-बजा
रहे हैं…!
नीम भी
गले नहीं उतरी –
हमें कड़वी लगी –
निमोली की
तरह-तोड़ कर
उन्हें खिला रहे हैं –
हम कहाँ जा रहे हैं…! (Page 94)

शब्दार्थ:

  • दुंदुभी – एक तरह का वाद्य-यंत्र।
  • उल्टे बाँस बरेली को – जैसा होना चाहिए उसके विपरीत होना।

प्रसंग:
प्रस्तुत काव्यांश सुदर्शन ‘प्रियदर्शिनी’ द्वारा रचित कविता ‘हम कहाँ जा रहे हैं…!’ से उद्धृत है। इसमें कवि कह रहा है कि पाश्चात्य और अन्य देशों केलोग हमारी परंपराओं का सत्व ग्रहण करके हमें ही परोस रहे हैं और हम उन्हें विदेशी मानकर स्वीकार कर रहे हैं। हमें आधुनिक चकाचौंध में अपनी संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए।

व्याख्या:
कवि का कहना है कि विदेशी उल्टे बाँस बरेली की कहावत को चरितार्थ करते हुए अर्थात् हमारी उपलब्धियों, परंपराओं और जीवन-पद्धति को हमें लौटा रहे हैं जबकि होना यह चाहिए था कि हमें ही उन्हें सब कुछ अपना बता कर देना चाहिए था, पर हो रहा इसके विपरीत है। हमारी संस्कृति में प्रारंभ से ही योग-साधना पर बल दिया जाता रहा है। धर्म-नीति हमारी परंपरा का अंग रही है। वे इन्हें हमसे लेकर हमें ही परोस रहे हैं। उदाहरणार्थ-हमारी वास्तुकला को ग्रहण कर उसे फेंगशुई नाम दे दिया गया, सत्वज्ञान को ग्रहण कर रेकी बना दिया और योग को योगा बना दिया गया।

इस प्रकार वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग हमारी ही देन है। इसे विदेशी लोग अपना कहकर – प्रचारित कर रहे हैं और हम इन्हें विदेशी मानकर और इन्हें अपनाकर कितने प्रसन्न हो रहे हैं। कवि कहता है कि नीम का वृक्ष हमारी संस्कृति की देन है, लेकिन वह भी – हमारे गले नहीं उतरा। वह भी हमें कड़वा लगा। उसके औषधीय गुणों को हमने नहीं जाना। हम उनकी निमोलियों की दवाई बना-बनाकर उन्हें खिला रहे हैं। दूसरे शब्दों में, विदेशियों ने नीम के महत्त्व को पहचानकर उसे पेटेंट कराने का प्रयास किया।

कवि कहता है कि हम लोग कहाँ जा रहे हैं। हम अपनी संस्कृति को भूले जा रहे हैं। सच तो यह है कि हमारी विरासत और सांस्कृतिक निष्ठा दुनिया में श्रेष्ठ है। हमें अपनी संस्कृति को नहीं भूलना चाहिए। उसकी प्रासंगिकता को आधुनिकता के साथ तलाशें और भली-भाँति भारतीय जीवन-मूल्यों के महत्त्व को समझें। हम भारतीय बने रहें और नकली जीवन-शैली को उतार दें।

विशेष:

  1. कवि ने हमें अपनी शक्ति को, अपनी उपलब्धियों और अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानने और भारतीय बने रहने का संदेश दिया है।
  2. बाँस बरेली में अनुप्रास अलंकार है।
  3. उदाहरण अलंकार भी है।
  4. मुहावरों और कहावतों का सुंदर प्रयोग किया गया है।
  5. भाषा सरल, तत्सम और विदेशी शब्दों से युक्त खड़ी बोली है।
  6. छंदविहीन रचना में लय और तुक का नितांत अभाव है।

पद्यांश पर आधारित विषय-वस्तु संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
हमारी संस्कृति की किन-किन उपलब्धियों को विदेशी किन-किन नामों से हमें परोस रहे हैं?
उत्तर:
हमारी संस्कृति की वास्तुकला, सत्वज्ञान और योग को विदेशी ग्रहण करके हमें ही फेंगशुई, रेकी और योगा के नाम से परोस रहे हैं।

प्रश्न (ii)
‘कैसी हम दुंदुभी बजा रहे हैं…!’ के द्वारा कवि हम पर क्या व्यंग्य कर रहा है?
उत्तर:
इसके द्वारा कवि यह व्यंग्य कर रहा है कि हम अपनी ही वास्तुकला को फेंगशुई, सत्वज्ञान को रेकी और योग को योगा को विदेशी मानकर, अपनाकर स्वयं को आधुनिक समझकर अत्यंत प्रसन्न हो रहे हैं। यह हमारे लिए उचित नहीं है।

प्रश्न (iii)
कवि क्या संदेश देना चाहता है?
उत्तर:
कवि यह संदेश देना चाहता है कि हम अपनी शक्ति, अपनी उपलब्धियों और अपनी सांस्कृतिक चेतना को पहचानें। हमारी विरासत विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। आधुनिक जीवन की चकाचौंध में अपनी संस्कृति को न भूलें भारतीय बने रहें तथा नकली पाश्चात्य जीवन-शैली को उतार फेंकें।

काव्यांश पर आधारित सौंदर्य-संबंधित प्रश्नोत्तर

प्रश्न (i)
काव्यांश का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भाव-सौंदर्य:
इस काव्यांश में कवि ने यह भाव व्यक्त किया है कि हमारी सभ्यता संस्कृति के जीवन-मूल्य विश्व में सर्वश्रेष्ठ है। विदेशी लोग हमारी संस्कृति की उपलब्धियों को ही अपनी उपलब्धियाँ बताकर प्रचारित कर रहे हैं। वे हमारी वास्तुकला को फेंगशुई, सत्वज्ञान को रेकी और योग का योगा बनाकर हमें परोस रहे हैं। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम अपनी संस्कृति की उपलब्धियों को पहचानें और भारतीय बने रहें। इस तरह हमें पाश्चात्य जीवन-शैली अपनाने की आवश्यकता नहीं है।

प्रश्न (ii)
काव्यांश का शिल्प-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
शिल्प-सौंदर्य:
‘बाँस बरेली, तरह-तोड़’ में अनुप्रास अलंकार है। उदाहरण अलंकार भी है। मुहावरों और कहावतों का सुंदर प्रयोग किया गया है। भाषा सरल, तत्सम और विदेशी शब्दों से युक्त खड़ी बोली है। छंदविहीन रचना में लय और तुक का अभाव है। शब्द चयन भावानुकूल है।

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