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MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 18 अर्थव्यवस्था : सेवा क्षेत्र एवं अधोसंरचना
MP Board Class 10th Social Science Chapter 18 पाठान्त अभ्यास
MP Board Class 10th Social Science Chapter 18 वास्तानिष्ट प्रश्न
सही विकल्प चुनकर लिखिए
प्रश्न 1.
जैसे-जैसे अर्थव्यवस्था विकसित होती है, राष्ट्रीय आय में तृतीयक क्षेत्र का अंश
(i) बढ़ता जाता है
(ii) घटता जाता है
(iii) बढ़ता है तत्पश्चात् घटता है
(iv) घटता है तत्पश्चात् बढ़ता है।
उत्तर:
(i) बढ़ता जाता है
प्रश्न 2.
बाजार के विस्तार में सहायक होते हैं
(i) परिवहन के साधन
(ii) संचार के साधन
(iii) बैंक एवं वित्तीय संस्थाएँ
(iv) उक्त सभी।
उत्तर:
(iv) उक्त सभी।
प्रश्न 3.
कृषि क्षेत्र निम्न में सम्मिलित है – (2009, 15)
(i) प्राथमिक
(ii) द्वितीयक
(iii) तृतीयक
(iv) द्वितीयक एवं तृतीयक दोनों।
उत्तर:
(i) प्राथमिक
प्रश्न 4.
सेवा क्षेत्र रोजगार प्रदान करता है –
(i) प्रत्यक्ष रूप से
(ii) अप्रत्यक्ष रूप से
(iii) प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों रूप से
(iv) इनमें में से कोई नहीं।
उत्तर:
(iii) प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों रूप से
प्रश्न 5.
सेवा क्षेत्र के निरन्तर विकास का कारण है –
(i) सरकारी हस्तक्षेप
(ii) कृषि एवं उद्योगों का विकास
(iii) सोच में परिवर्तन
(iv) उक्त सभी।
उत्तर:
(iv) उक्त सभी।
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
- अर्थव्यवस्था का ……………… क्षेत्रों में विभाजन किया गया है। (2009, 13)
- सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था का ……………… क्षेत्र होता है। (2010)
- वर्ष 2005-06 में सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का योगदान ……………… प्रतिशत था।
- शिक्षा एवं स्वास्थ्य ……………… अधोसंरचना के अंग हैं। (2009, 14, 16, 18)
- ऊर्जा आयोग का गठन मार्च ……………… में किया गया।
उत्तर:
- तीन
- तृतीयक
- 52.4
- सामाजिक
- 1981
सही जोड़ी बनाइए
उत्तर:
- → (ख)
- → (ग)
- → (क)
- → (ङ)
- → (घ)
MP Board Class 10th Social Science Chapter 18 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
देश की कुल जनसंख्या का वह भाग; जो प्रत्यक्ष रूप से उत्पादक क्रियाओं में सहयोग करता है, क्या कहलाता है ?
उत्तर:
द्वितीयक क्षेत्र।
प्रश्न 2.
कार्यशील जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण का प्रतिशत किस प्रकार का रहता है ?
उत्तर:
कार्यशील जनसंख्या का व्यावसायिक वितरण का प्रतिशत बढ़ता रहता है।
प्रश्न 3.
अर्थव्यवस्था के उस क्षेत्र का नाम बताइए जो कृषि एवं उद्योग के संचालन में सहायता पहुँचाता है। (2018)
उत्तर:
तृतीयक क्षेत्र कृषि एवं उद्योग के संचालन में सहायता पहुँचाता है।
प्रश्न 4.
डॉक्टर, शिक्षक, नाई, धोबी, वकील आदि की सेवाएँ किस प्रकार के कार्यक्षेत्र में आती हैं? (2009)
उत्तर:
डॉक्टर, शिक्षक, नाई, धोबी, वकील आदि की सेवाएँ तृतीयक क्षेत्र के अन्तर्गत आती हैं।
प्रश्न 5.
सेवा क्षेत्र क्या है ? (2015, 17)
उत्तर:
तृतीयक क्षेत्र की गतिविधियों से वस्तुओं के स्थान पर सेवाओं का सृजन होता है। अत: इसे सेवा ‘क्षेत्र भी कहा जाता है।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 18 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र एवं राष्ट्रीय आय में क्या सम्बन्ध है ? लिखिए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र एवं राष्ट्रीय आय में सम्बन्ध-एक राष्ट्र की राष्ट्रीय आय या सकल घरेलू उत्पाद (जी. डी. पी.) की गणना के लिए उस राष्ट्र के प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों को आधार माना जाता है। इसके लिए सबसे पहले इन तीनों क्षेत्रों से प्राप्त उत्पादन के मौद्रिक मूल्य की गणना की जाती है। तदुपरान्त इन अलग-अलग क्षेत्रों से प्राप्त मौद्रिक मूल्य को जोड़ा जाता है। इस प्रकार देश का सकल घरेलू उत्पाद (जी. डी. पी.) या राष्ट्रीय आय के आँकड़े प्राप्त हो जाते हैं।
अनुभव यह बताता है कि आर्थिक विकास के साथ-साथ जहाँ प्राथमिक, द्वितीयक एवं तृतीयक क्षेत्रों से प्राप्त आय में वृद्धि होती है, वहीं इनके तुलनात्मक योगदान में भी परिवर्तन होता है। यह देखा गया है कि जैसे-जैसे किसी राष्ट्र में आर्थिक विकास होता है; वैसे-वैसे कुल राष्ट्रीय आय में प्राथमिक क्षेत्र का योगदान क्रमशः कम होता जाता है तथा तृतीयक या सेवा क्षेत्र का योगदान बढ़ता जाता है।
प्रश्न 2.
अर्थव्यवस्था के प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र को उदाहरण की सहायता से समझाइए।
अथवा
प्राथमिक क्षेत्र को उदाहरण देकर समझाइए। (2015)
अथवा
अर्थव्यवस्था के द्वितीयक क्षेत्र को उदाहरण की सहायता से समझाइए। (2014, 16, 18)
उत्तर:
प्राथमिक क्षेत्र – प्राकृतिक संसाधनों पर प्रत्यक्ष रूप से आधारित गतिविधियों को प्राथमिक क्षेत्र कहा जाता है। उदाहरण के लिए कृषि को लिया जा सकता है। फसलों के उत्पादन के लिए मुख्यतः प्राकृतिक कारकों; जैसे-मृदा, वर्षा, सूर्य का प्रकाश, वायु आदि पर निर्भर रहना पड़ता है। अतः कृषि उपज एक प्राकृतिक उत्पाद है। इसी प्रकार वन, पशुपालन, खनिज आदि को भी प्राथमिक क्षेत्र के अन्तर्गत लिया जाता है।
द्वितीयक क्षेत्र – इस क्षेत्र की गतिविधियों के अन्तर्गत प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। उदाहरण के लिए लोहे से मशीन बनाना या कपास से कपड़ा बनाना आदि यह प्राथमिक गतिविधियों के बाद अगला कदम है। इस क्षेत्र में वस्तुएँ सीधे प्रकृति से उत्पादित नहीं होती हैं, वरन् उन्हें मानवीय क्रियाओं के द्वारा निर्मित किया जाता है। ये क्रियाएँ किसी कारखाने या घर में हो सकती हैं। चूँकि यह क्षेत्र क्रमशः सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के उद्योगों से जुड़ा हुआ है इसीलिए इसे औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता है।
प्रश्न 3.
सेवा क्षेत्र के कृषि एवं राष्ट्रीय आय में योगदान की विवेचना कीजिए।
उत्तर:
सेवा क्षेत्र का कषि में योगदान – किसानों की प्राकतिक आपदाओं से बचाने का कार्य भी सेवा क्षेत्र द्वारा किया जाता है। वर्षा बीमा योजना, फसल बीमा योजना, कृषि आय बीमा योजना तथा राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना आदि के द्वारा कृषि उपज की अनिश्चितता एवं जोखिक को दूर किया जाता है। साथ ही सेवा क्षेत्र किसानों को उन्नत खाद, बीज आदि के क्रय हेतु पूँजी प्रदान कर उत्पादन बढ़ाने में सहायक होता है। इस प्रकार सेवा क्षेत्र कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में सहयोग करता है।
राष्ट्रीय आय में योगदान – आज शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण सभी में सेवा क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है। यही कारण है कि राष्ट्रीय आय का आधे से अधिक भाग अब सेवा क्षेत्र से प्राप्त हो रहा है। राष्ट्र के आर्थिक विकास के साथ सेवा क्षेत्र की गतिविधियाँ तेजी से बढ़ रही हैं, इसीलिए राष्ट्रीय आय में सेवा क्षेत्र का योगदान निरन्तर बढ़ रहा है।
प्रश्न 4.
भारत में सेवा क्षेत्र के विकास के कोई चार कारण स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
भारत में सेवा क्षेत्र के विकास के कारण भारत में सेवा क्षेत्र के विकास के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
(1) सेवाओं का विस्तार – स्वतन्त्रता प्राप्ति के बाद देश में पंचवर्षीय योजनाओं का क्रियान्वयन किया गया। इससे देश में अनेक सेवाएँ; जैसे-चिकित्सालय, शैक्षणिक संस्थाएँ, डाक एवं तार, परिवहन, बैंक, बीमा कम्पनी, स्थानीय संस्थाएँ, सुरक्षा सेवाएँ, न्याय व्यवस्था आदि का विस्तार हुआ। परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था में इनकी भागीदारी तेजी से बढ़ी है।
(2) प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रों का विस्तार – देश में प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रों का पिछले वर्षों में तेजी से विस्तार हुआ है। औद्योगिक क्रान्ति के साथ-साथ देश में कृषि क्षेत्र में हरित क्रान्ति सफल रही। इससे परिवहन, व्यापार, भण्डारण, बैंकिंग जैसी सेवाओं की माँग में वृद्धि हुई है। परिणामस्वरूप देश में इन सेवाओं का तेजी से विस्तार हुआ।
(3) उपभोग में वृद्धि – आय में वृद्धि के साथ-साथ उपभोग में भी वृद्धि होने लगती है। आय में वृद्धि होने पर व्यक्ति निजी अस्पताल, महँगे स्कूल, वाहनों का प्रयोग एवं आधुनिक नई-नई वस्तुओं को खरीदने पर अधिक खर्च करने लगता है। फलतः देश में सेवा क्षेत्र की भागीदारी में तीव्रता से वृद्धि हुई है।
(4) सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित वस्तुओं का प्रयोग – पिछले कुछ वर्षों में सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित अनेक नई-नई सेवाएँ जीवन के लिए आवश्यक बन गयी हैं। ट्यूबलाइट, टेलीविजन, केबिल कनेक्शन, मोबाइल फोन, मोटर गाड़ियाँ, स्कूटर, मोटर साइकिल, कम्प्यूटर, इण्टरनेट, कालसेण्टर आदि ने भारत में उपभोक्ता वस्तुओं के बाजार को बहुत विस्तृत कर दिया है। फलतः सेवा क्षेत्र की भागीदारी बढ़ी है।
(5) वैश्वीकरण का प्रभाव – वैश्वीकरण के परिणामस्वरूप भारतीयों पर पश्चिमी देशों का प्रभाव पड़ा है और उनकी सोच में परिवर्तन आया है। हर व्यक्ति सारी सुख-सुविधाएँ प्राप्त करना चाहता है। अतः बैंक, बीमा, पर्यटन, परिवहन, होटल आदि सभी प्रकार की सेवाओं की माँग बहुत बढ़ गई है। परिणामस्वरूप सेवा क्षेत्र के योगदान में तेजी से वृद्धि हुई है।
प्रश्न 5.
अधोसंरचना के प्रकारों का वर्णन कीजिए। (2014, 16, 18)
उत्तर:
अधोसंरचना से आशय उन सुविधाओं, क्रियाओं तथा सेवाओं से है, जो उत्पादन के अन्य क्षेत्रों के संचालन तथा विकास एवं दैनिक जीवन में सहायक होती हैं।
अधोसंरचना के प्रकार – अधोसंरचना को दो भागों में बाँटा गया है –
(1) आर्थिक अधोसंरचना – अधोसंरचना जो मुख्यतः शक्ति, यातायात एवं दूर संचार से सम्बन्धित होती है, को आर्थिक संरचना कहा जाता है। रेल, सड़क, बन्दरगाह, हवाई अड्डे, बाँध, विद्युत केन्द्र आदि को आर्थिक संरचना के अन्तर्गत रखा जाता है। आर्थिक विकास में इनका महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसीलिए इन्हें बुनियादी आर्थिक सुविधाएँ भी कहा जाता है।
(2) सामाजिक अधोसंरचना – सामाजिक अधोसंरचना मानव संसाधन का विकास करने एवं मानव पूँजी निर्माण करने में सहायक होती है। शिक्षा, स्वास्थ्य, चिकित्सा आदि इसके अंग होते हैं। इनसे समाज को कुशल, निपुण एवं स्वस्थ जनशक्ति प्राप्त होती है। इससे कार्यक्षमता बढ़ती है जिससे प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र में उत्पादन तेजी से बढ़ता है। परिणामस्वरूप अर्थव्यवस्था का तेजी से विकास होता है।
प्रश्न 6.
भारतीय सेवाओं का विश्व में क्या योगदान है ? लिखिए।
उत्तर:
भारतीय सेवाओं का विश्व में योगदान – भारतीय अर्थव्यवस्था में सेवा क्षेत्र के विकास का यह परिणाम है कि आज भारत विश्व के विभिन्न राष्ट्रों को कई प्रकार की सेवाएँ उपलब्ध करा रहा है। भारतीय सेवाओं के विश्व में योगदान को सरलता से अग्रलिखित तथ्यों द्वारा समझा जा सकता है –
(1) कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर सेवाएँ – भारत ने पिछले कुछ वर्षों में कम्प्यूटर के क्षेत्र में काफी प्रगति की है। बंगलुरु, हैदराबाद, पूना एवं मुम्बई कम्प्यूटर के प्रमुख केन्द्र हैं जहाँ निर्यात हेतु बड़ी संख्या में सॉफ्टवेयर तैयार किए जाते हैं। भारत से सॉफ्टवेयर का निर्यात विश्व के अनेक राष्ट्रों में किया जाता है। अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी जैसे विकसित राष्ट्रों में भारतीय कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर विशेष लोकप्रिय है।
(2) संचार सेवाएँ – संचार सेवाओं के क्षेत्र में भी भारत विकसित राष्ट्रों के समकक्ष है और दूरसंचार सेवाओं का निर्यात करके विदेशी मुद्रा अर्जित कर रहा है। भारत अनेक राष्ट्रों को दूर संचार सेवाओं के विकास हेतु सहयोग दे रहा है। मालदीप के डिजिटल चा का भारत द्वारा आधुनिकीकरण किया गया है तथा एक दूर संवेदी इकाई की स्थापना की गई है। नेपाल में दूरसंचार सेवाओं के लिए “यूनाइटेड टेलीकॉम” के नाम से संयुक्त कम्पनी का गठन किया गया है।
(3) बैंकिंग एवं वित्तीय सेवाएँ – 30 जून, 2010 तक भारत के सार्वजनिक क्षेत्र के 16 एवं निजी क्षेत्र की 6 बैकों ने 52 राष्ट्रों में अपनी शाखाएँ खोली हैं। इनमें स्टेट बैंक ऑफ इण्डिया, बैंक ऑफ बड़ौदा एवं बैंक ऑफ इण्डिया प्रमुख हैं। इस प्रकार बैंकिंग एवं वित्तीय सेवाओं से भी लाभ हो रहा है।
(4) तकनीकी एवं परामर्श सेवाएँ – भारत ने अनेक क्षेत्रों में तकनीकी एवं प्रबन्धकीय कुशलता भी प्राप्त की है। फलत: भारत अनेक विकासशील एवं पिछड़े राष्ट्रों को रेलवे लाइन के निर्माण, सड़क निर्माण, कारखानों के निर्माण में तकनीकी एवं परामर्श सेवाएँ दे रहा है।
प्रश्न 7.
ऊर्जा एवं परिवहन के महत्व की संक्षेप में व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
ऊर्जा का महत्व – किसी भी राष्ट्र का आर्थिक विकास उपलब्ध ऊर्जा के साधनों पर निर्भर करता है। कारण यह है कि कृषि, उद्योग, खनिज, परिवहन आदि सभी क्षेत्रों में ऊर्जा की आवश्यकता होती है। ऊर्जा के विभिन्न स्रोत हैं-विद्युत, कोयला, प्राकृतिक तेल एवं गैस आदि। इन सभी में सबसे अधिक महत्व विद्युत का है।
परिवहन का महत्व – परिवहन के सभी साधनों ने मिलकर सामाजिक, आर्थिक एवं राजनैतिक क्रान्ति पैदा की है। इन साधनों का जीवन के हर क्षेत्र में विशेष महत्व है।
- इन साधनों से हम आसानी से कम समय में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जा सकते हैं।
- औद्योगिक कच्चे माल को उनके प्राप्ति स्थल से औद्योगिक केन्द्रों तक तथा औद्योगिक केन्द्रों से तैयार माल को बाजारों और उपभोक्ताओं तक पहुँचाते हैं।
- इन साधनों के द्वारा उपभोक्ता वस्तुएँ बाजारों तथा उपभोक्ताओं तक शीघ्रता से पहुँचाई जाती हैं।
- देश के विभिन्न क्षेत्रों में अशान्ति, सूखा, बाढ़, महामारियों आदि की स्थिति उत्पन्न होने पर तत्काल सहायता पहुँचाने में यातायात के साधन मददगार होते हैं।
- यातायात के साधनों के विकास से देश के विभिन्न भागों के बीच भाईचारा व प्रेम बढ़ा है। इससे राष्ट्रीय एकता मजबूत होती है तथा आर्थिक स्थिति सुदृढ़ होती है।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 18 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था को क्षेत्रों में बाँटने की आवश्यकता क्यों होती है ? अर्थव्यवस्था के क्षेत्रों का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
अर्थव्यवस्था के क्षेत्र किसी भी राष्ट्र की जनशक्ति अपने जीवन-यापन हेतु विभिन्न प्रकार की गतिविधियों में लगी रहती है। कोई खेती करता है तो कोई कारखाने में लगा रहता है या व्यापार करता है। इन गतिविधियों से ही उसे आय प्राप्त होती है। अतः अर्थव्यवस्था को भली-भाँति समझने के लिए यह आवश्यक है कि उन क्षेत्रों का अध्ययन किया जाए जिनमें देश की जनशक्ति कार्यरत् है।
किसी भी अर्थव्यवस्था को ठीक से समझने के लिए उसे तीन क्षेत्रों में बाँटा जाता है। इन क्षेत्रों का विस्तृत विवरण अग्र प्रकार है –
(1) प्राथमिक क्षेत्र-प्राकृतिक संसाधनों पर प्रत्यक्ष रूप से आधारित गतिविधियों को प्राथमिक क्षेत्र कहा जाता है। उदाहरण के लिए कृषि को लिया जा सकता है। फसलों को उत्पादित करने के लिए मुख्यतः प्राकृतिक कारकों; जैसे-मृदा, वर्षा, सूर्य प्रकाश, वायु आदि पर निर्भर रहना पड़ता है। अतः कृषि उपज एक प्राकृतिक उत्पाद है। इसी प्रकार वन, पशुपालन, खनिज आदि को भी प्राथमिक क्षेत्र के अन्तर्गत लिया जाता है।
यहाँ यह प्रश्न उठता है कि इन गतिविधियों को प्राथमिक क्यों कहा जाता है ? कारण यह है कि प्राथमिक क्षेत्र उन सभी उत्पादों का आधार है, जिन्हें हम बाद में निर्मित करते हैं। उदाहरण के लिए, कच्चे लोहे का उपयोग इस्पात कारखाने में होता है और उससे विभिन्न प्रकार की मशीनों का निर्माण होता है। अधिकांश प्राकृतिक उत्पाद कृषि, पशुपालन, मछली पालन, वन एवं खनिज से प्राप्त होते हैं, अतः इस क्षेत्र को कृषि एवं सहायक क्षेत्र भी कहते हैं। संक्षेप में कहा जा सकता है कि जब हम प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग करके किसी वस्तु का उत्पादन करते हैं तो इसे प्राथमिक क्षेत्र की गतिविधियाँ कहा जाता है।
(2) द्वितीयक क्षेत्र – इस क्षेत्र की गतिविधियों के अन्तर्गत प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण प्रणाली के माध्यम से अन्य रूपों में परिवर्तित किया जाता है। उदाहरण के लिए लोहे से मशीन बनाना या कपास से कपड़ा बनाना आदि यह प्राथमिक गतिविधियों के बाद अगला कदम है। इस क्षेत्र में वस्तुएँ सीधे प्रकृति से उत्पादित नहीं होती हैं, वरन् उन्हें मानवीय क्रियाओं के द्वारा निर्मित किया जाता है। ये क्रियाएँ किसी कारखाने या घर में हो सकती हैं। चूँकि यह क्षेत्र क्रमशः सम्बन्धित विभिन्न प्रकार के उद्योगों से जुड़ा हुआ है इसीलिए इसे औद्योगिक क्षेत्र भी कहा जाता है।
(3) तृतीयक या सेवा क्षेत्र – इस क्षेत्र की गतिविधियाँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र से भिन्न होती हैं। तृतीयक क्षेत्र की गतिविधियाँ स्वत: वस्तुओं का उत्पादन नहीं करती, वरन् उत्पादन प्रक्रिया में सहयोग करती हैं। उदाहरण के लिए प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं को थोक एवं फुटकर बाजारों में बेचने के लिए रेल या ट्रक द्वारा परिवहन की आवश्यकता पड़ती है। प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रों में उत्पादन करने के लिए बैंकों से ऋण लेने की आवश्यकता होती है। उत्पादन एवं व्यापार में सुविधा के लिए टेलीफोन, इण्टरनेट, पोस्ट ऑफिस, कोरियर आदि की आवश्यकता होती है।
इस प्रकार परिवहन, भण्डारण, संचार, बैंक व्यापार आदि से सम्बन्धित गतिविधियाँ तृतीयक क्षेत्र में आती हैं। चूँकि, तृतीयक क्षेत्र की गतिविधियों से वस्तुओं के स्थान पर सेवाओं का सृजन होता है, अतः इसे सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है।
प्रश्न 2.
एक आय घटक के रूप में सेवा क्षेत्र का महत्व स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सेवा क्षेत्र का महत्व-आय के घटक के रूप में
उत्पादन के तीनों क्षेत्र राष्ट्रीय आय के सृजन में योगदान करते हैं। पहले सेवा क्षेत्र का योगदान बहुत कम था किन्तु आय एवं रोजगार दोनों ही दृष्टिकोणों से आज परिस्थितियाँ बदल गई हैं, आर्थिक विकास के साथ-साथ ही सेवा क्षेत्र का महत्व भी बढ़ गया है। जहाँ सन् 1951 में सेवा क्षेत्र का योगदान 28 प्रतिशत था जो वर्ष 2014-15 में 58.3 प्रतिशत हो गया।”
रोजगार और आय के घटक के रूप में इस क्षेत्र का महत्व निम्न प्रकार समझा जा सकता है –
(1) रोजगार के अवसर-सेवा क्षेत्र लोगों को प्रत्यक्ष एवं अप्रत्यक्ष दोनों रूपों में रोजगार प्रदान करता है। उदाहरण के लिये, “भारतीय रेलवे में कुल 14 लाख कर्मचारी नियोजित हैं।” 2 यह संख्या देश में किसी भी अन्य उपक्रम की तुलना में अधिक है। रोजगार के अवसर जुटाने में परिवहन, सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी बैंक, शैक्षणिक संस्थाएँ, स्वास्थ्य सेवाएँ, पर्यटन एवं होटल व्यवसाय का योगदान बहुत अधिक है। इस प्रकार सेवा क्षेत्र बेरोजगारी दूर करने एवं लोगों की आय बढ़ाने में सहायक होता है।
(2) उत्पादन में वृद्धि-सेवा क्षेत्र कम लागत पर एवं कम समय में अधिक उत्पादन करने एवं गुणवत्ता में वृद्धि करने में भी सहायक होता है। यह क्षेत्र दो प्रकार से सहायता पहुँचाता है-एक तो कुशल प्रशिक्षण एवं स्वस्थ श्रमिक उपलब्ध कराकर उत्पादन की गुणवत्ता बढ़ाता है। दूसरा, कुशलता एवं कार्यक्षमता में वृद्धि से उत्पादन एवं आय में वृद्धि करता है।
(3) औद्योगिक विकास में सहायक-बैंक एवं अन्य वित्तीय संस्थाएँ साख का सृजन करती हैं और सभी प्रकार के उद्योगों के लिए पूँजी की पूर्ति करती हैं, फिर चाहे वित्त की अल्पकालिक आवश्यकता हो या मध्यकालिक या दीर्घकालिक उद्योगों की स्थापना से लेकर बाजार तक वस्तुएँ पहुँचाने एवं विज्ञापन करने हेतु
- आर्थिक समीक्षा 2015-16; पृष्ठ 156.
- आर्थिक समीक्षा 2007-08, पृष्ठ 218.
सभी व्यवस्थाएँ सेवा क्षेत्र द्वारा की जाती है। संक्षेप में, सेवा क्षेत्र पूँजी सम्बन्धी आवश्यकताओं की पूर्ति कर औद्योगिक विकास में सहायक होता है।
(4) बाजार के विस्तार में सहायक – सेवा क्षेत्र प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र के उत्पादों के बाजार का विस्तार करने में सहायक होता है। परिवहन की सुविधा से माल एवं यात्रियों को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है। संचार के साधनों द्वारा व्यापारिक सौदे तय किये जाते हैं या होटल बुक किया जाता है। इससे सभी प्रकार की गतिविधियाँ सरल हो जाती हैं।
(5) कृषि के विकास में सहायक – किसानों की प्राकतिक आपदाओं से बचाने का कार्य भी सेवा क्षेत्र द्वारा किया जाता है। वर्षा बीमा योजना, फसल बीमा योजना, कृषि आय बीमा योजना तथा राष्ट्रीय कृषि बीमा योजना आदि के द्वारा कृषि उपज की अनिश्चितता एवं जोखिक को दूर किया जाता है। साथ ही सेवा क्षेत्र किसानों को उन्नत खाद, बीज आदि के क्रय हेतु पूँजी प्रदान कर उत्पादन बढ़ाने में सहायक होता है। इस प्रकार सेवा क्षेत्र कृषि उत्पादकता को बढ़ाने में सहयोग करता है।
(6) राष्ट्रीय आय में योगदान – आज शहरी क्षेत्र हो या ग्रामीण सभी में सेवा क्षेत्र का महत्वपूर्ण योगदान है। यही कारण है कि राष्ट्रीय आय का आधे से अधिक भाग अब सेवा क्षेत्र से प्राप्त हो रहा है। राष्ट्र के आर्थिक विकास के साथ सेवा क्षेत्र की गतिविधियाँ तेजी से बढ़ रही हैं, इसीलिए राष्ट्रीय आय में सेवा क्षेत्र का योगदान निरन्तर बढ़ रहा है।
(7) विदेशी मुद्रा का अर्जन-पिछले कुछ वर्षों से सेवाओं के निर्यात से भी बड़ी मात्रा में विदेशी मुद्रा की प्राप्ति हो रही है। जहाजरानी एवं हवाई सेवाओं के साथ-साथ पर्यटन एवं वित्तीय सेवाओं से भी हमें विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। हाल ही के वर्षों में कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर, कॉल सेन्टर, शिक्षा एवं स्वास्थ्य के क्षेत्रों में भी काफी विकास हुआ और अब इन सेवाओं से भी विदेशी मुद्रा प्राप्त हो रही है।
प्रश्न 3.
सेवा क्षेत्र का आशय स्पष्ट कीजिए तथा सेवा क्षेत्र के महत्व की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
सेवा क्षेत्र का आशय
सेवा क्षेत्र या तृतीयक क्षेत्र की गतिविधियाँ प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्र से भिन्न होती हैं। सेवा क्षेत्र की गतिविधियाँ स्वतः वस्तुओं का उत्पादन नहीं करतीं, वरन् उत्पादन प्रक्रिया में सहयोग करती हैं। उदाहरणार्थ, प्राथमिक और द्वितीयक क्षेत्रों द्वारा उत्पादित वस्तुओं को थोक एवं फुटकर बाजारों में बेचने के लिए रेल या ट्रक द्वारा परिवहन करने की आवश्यकता पड़ती है। उद्योगों से बने हुए माल को रखने के लिए गोदामों की आवश्यकता होती है। प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रों में उत्पादन करने के लिए बैंकों से ऋण लेने की आवश्यकता होती है।
इस प्रकार परिवहन, भण्डारण, संचार, बैंक, व्यापार आदि से सम्बन्धित गतिविधियाँ तृतीयक क्षेत्र में आती हैं। इन गतिविधियों के विस्तार से ही आर्थिक विकास को गति मिलती है। चूँकि तृतीयक क्षेत्र की गतिविधियों से वस्तुओं के स्थान पर सेवाओं का सृजन होता है, अतः इसे सेवा क्षेत्र भी कहा जाता है।
अर्थव्यवस्था में कुछ ऐसी सेवाएँ भी होती हैं जो वस्तुओं के उत्पादन में प्रत्यक्ष योगदान न देकर अप्रत्यक्ष रूप से सहायता करती हैं। उदाहरण के लिए शिक्षक, डॉक्टर, वकील, लेखाकर्मी, प्रशासनिक आदि की सेवाओं को लिया जा सकता है। धोबी, नाई एवं मोची की सेवाएँ भी महत्वपूर्ण होती हैं। वर्तमान समय में सूचना प्रौद्योगिकी पर आधारित सेवाएँ जैसे इण्टरनेट, कैफे, ए. टी. एम. बूथ, कॉल सेन्टर, सॉफ्टवेयर निर्माण आदि
का भी उत्पादन की गतिविधियों में महत्वपूर्ण स्थान है।
सेवा क्षेत्र के महत्व – उत्पादन के तीनों क्षेत्र राष्ट्रीय आय के सृजन में योगदान करते हैं। पहले सेवा क्षेत्र का योगदान बहुत कम था किन्तु आय एवं रोजगार दोनों ही दृष्टिकोणों से आज परिस्थितियाँ बदल गई हैं, आर्थिक विकास के साथ-साथ ही सेवा क्षेत्र का महत्व भी बढ़ गया है। जहाँ सन् 1951 में सेवा क्षेत्र का योगदान 28 प्रतिशत था जो वर्ष 2014-15 में 58.3 प्रतिशत हो गया।”
प्रश्न 4.
अधोसंरचना का अर्थ स्पष्ट करते हुए उसके अंगों के विषय में संक्षेप में लिखिए।
उत्तर:
अधोसंरचना का अर्थ
अधोसंरचना या आधारभूत संरचना, जैसा कि इसका नाम है, यह उत्पादन के प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रों के विकास हेतु आधार प्रदान करती है। किसी भी राष्ट्र की प्रगति कृषि एवं उद्योगों के विकास पर निर्भर है किन्तु स्वयं कृषि उत्पादन के लिए ऊर्जा, वित्त, परिवहन आदि साधनों की आवश्यकता होती है। इसी प्रकार उद्योगों में उत्पादन के लिए मशीनरी, प्रबन्ध, ऊर्जा, बैंक, बीमा, परिवहन आदि साधनों की आवश्यकता होती है। ये सभी सुविधाएँ एवं सेवाएँ सम्मिलित रूप से आधारभूत संरचना कहलाती हैं। इस प्रकार अधोसंरचना से आशय उन सुविधाओं, क्रियाओं तथा सेवाओं से है, जो उत्पादन के अन्य क्षेत्रों के संचालन तथा विकास एवं दैनिक जीवन में सहायक होती हैं।
अधोसंरचना के अंग
अधोसंरचना के प्रमुख अंग निम्न प्रकार हैं –
(1) ऊर्जा – किसी भी राष्ट्र के आर्थिक विकास के लिए ऊर्जा के साधनों की आवश्यकता होती है। उद्योग एवं कारखानों ऊर्जा द्वारा ही संचालित होते हैं। ऊर्जा की आवश्यकता परिवहन के क्षेत्र में भी होती है। आधुनिक औद्योगिक युग में शक्ति के साधन ही किसी देश की आर्थिक प्रगति का सूचक होते हैं।
ऊर्जा के विभिन्न स्रोत हैं; जैसे-विद्युत, कोयला, प्राकृतिक तेल एवं गैस आदि। इन सभी स्रोतों में सबसे अधिक महत्त्वपूर्ण विद्युत का है। विद्युत का उत्पादन तीन प्रमुख स्रोतों से होता है; यथा-जल विद्युत, तापीय विद्युत एवं अणु विद्युत। जल विद्युत के अन्तर्गत नदियों पर बाँध बनाकर विद्युत का उत्पादन किया जाता है। तापीय विद्युत में कोयले का उपयोग होता है। अणु विद्युत में यूरेनियम एवं थोरियम का प्रयोग होता है।
भारत में लगभग 80 प्रतिशत विद्युत का उत्पादन ताप विद्युत से होता है जो मुख्यतः कोयले पर आधारित है। भारत में अनुमानत: 21 करोड़ टन कोयले के भण्डार हैं किन्तु यहाँ के कोयले में राख की मात्रा अधिक होती है। अतः अच्छे किस्म के कोयले का आयात ऑस्ट्रेलिया से किया जाता है। कायले का उपयोग विद्युत उत्पादन के अलावा इस्पात कारखानों, रेलवे एवं ईंटों को पकाने में होता है। प्राकृतिक तेल एवं गैस का भी उर्जा में महत्त्वपूर्ण स्थान है। किन्तु भारत को कुल आवश्यकता का लगभग 80 प्रतिशत प्राकृतिक तेल एवं पेट्रोल का आयात करना पड़ता है।
(2) परिवहन – किसी भी देश की अर्थव्यवस्था में परिवहन का महत्त्वपूर्ण स्थान होता है। परिवहन का महत्त्व आर्थिक एवं सामाजिक दोनों दृष्टिकोणों से होता है। भारत में परिवहन का विकास मुख्य रूप से व्यापारिक एवं प्रशासनिक सुविधाओं के दृष्टिकोण से किया गया था किन्तु स्वतन्त्रता के बाद पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान परिवहन का विस्तार सम्पूर्ण आर्थिक विकास को ध्यान में रखकर किया गया है। देश में परिवहन के साधनों के विकास को निम्न प्रकार से स्पष्ट कर सकते हैं
- रेल परिवहन
- सड़क परिवहन
(3) संचार – भारत में संचार व्यवस्था विश्व में सबसे बड़ी है। सर्वप्रथम देश में संचार सेवा की शुरूआत सन् 1837 में हुई किन्तु इन सेवाओं का विस्तार स्वतन्त्रता के बाद ही हुआ है। वर्ष 1991 से प्रारम्भ हुए आर्थिक सुधारों ने दूरसंचार सेवाओं में क्रान्तिकारी परिवर्तन किए। निजी क्षेत्र की भागीदारी ने इस क्षेत्र को अभूतपूर्व विस्तार दिया। जून 2015 तक देश में टेलीफोनों की संख्या 1007.4 मिलियन हो गई। मोबाइल सेट्स अब शहरी क्षेत्रों के साथ-साथ ग्रामीण क्षेत्रों में भी बहुत लोकप्रिय हो गये हैं।
दूरसंचार सेवाओं के विस्तार के परिणामस्वरूप भारत अब ज्ञान आधारित समाज की ओर तेजी से बढ़ रहा है। इण्टरनेट एवं ब्रॉडबैण्ड ग्राहकों की संख्या में तेजी से वृद्धि हो रही है। कम्प्यूटरों एवं संचार प्रौद्योगिकी के प्रचार-प्रसार ने डाक प्रणाली को भी आधुनिक बना दिया है। भारत ने उपग्रह प्रणाली विकसित कर ली है। इसका प्रयोग दूरसंचार के साथ-साथ मौसम की जानकारी, दूरदर्शन, आकाशवाणी आदि कार्यों में किया जाता है।
(4) बैंकिंग, बीमा एवं वित्त – तीव्र आर्थिक विकास के लिए बैंकिंग, बीमा एवं अन्य वित्तीय संस्थाओं का महत्त्वपूर्ण स्थान है। वर्ष 1969 में प्रमुख बैंकों के राष्ट्रीयकरण के बाद से ही देश में व्यापारिक बैंकों ने अभूतपूर्व प्रगति की है। वर्ष 2015 तक सभी सार्वजनिक क्षेत्र की बैंकों की शाखाएँ बढ़कर लगभग 1,31,750 हजार हो गई हैं। इसके साथ ही देश में निजी क्षेत्र में भी अनेक व्यापारिक बैंक एवं वित्तीय संस्थाएँ कार्यरत् हैं। ये संस्थाएँ उद्योग एवं व्यापार के साथ-साथ घरेलू उपयोग हेतु व्यक्तिगत ऋण उपलब्ध कराती हैं। देश में सहकारी बैंकिंग व्यवस्था का भी तेजी से विस्तार हुआ है। ग्रामीण क्षेत्रों में सहकारी साख समितियाँ कृषि विकास हेतु ऋण उपलब्ध कराती हैं।
(5) शिक्षा एवं स्वास्थ्य – विकसित देशों का अनुभव यह दर्शाता है कि शिक्षा एवं स्वास्थ्य जैसी सामाजिक अधोसंरचना के अभाव में आर्थिक विकास सम्भव नहीं है। पिछड़े एवं विकासशील देशों में संसाधनों के अभाव के कारण शिक्षा, प्रशिक्षण एवं स्वास्थ्य आदि पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया जाता है। भारत में भी इन सुविधाओं का विस्तार स्वतन्त्रता के बाद पंचवर्षीय योजनाओं के दौरान हुआ है। भारत में प्रारम्भ से ही ‘सभी के लिए शिक्षा’ को केन्द्र में रखकर शिक्षा के विस्तार के विभिन्न कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया गया है। स्वतन्त्रता के बाद से ही सभी स्तर की शैक्षणिक संस्थाओं का तीव्र गति से विस्तार हुआ है। वर्तमान में देश में कुल 8.47 लाख प्राथमिक शालाएँ, 4.25 लाख माध्यमिक शालाएँ एवं 1.93 लाख उच्चतर माध्यमिक विद्यालय हैं। इसके साथ देश में 3,694 व्यावसायिक शिक्षा संस्थान एवं 757 विश्वविद्यालय हैं। देश में शैक्षणिक संस्थाओं के विस्तार के कारण साक्षरता दर 2011 में 74 प्रतिशत हो गई जो 1951 में 18.33 प्रतिशत थी।
1 भारत 2016, पृष्ठ 222.
स्वतन्त्रता के पश्चात् सरकार ने देश में स्वास्थ्य सुविधाओं के विस्तार पर विशेष जोर दिया है। देश में मलेरिया, तपेदिक, कुष्ठ रोग, एड्स, कैंसर और मानसिक विकृतियों जैसी बीमारियों को नियन्त्रित करने के विभिन्न कार्यक्रमों का क्रियान्वयन किया जा रहा है। सन् 1951 में प्राथमिक एवं सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों की संख्या केवल 725 थी जो बढ़कर वर्ष 2005 में 1.72 लाख हो गई। आधुनिक पद्धतियों के डॉक्टरों की संख्या इस अवधि में 0.62 लाख से बढ़कर 6.65 लाख हो गई है। देश में स्वास्थ्य सेवाओं के विस्तार से जीवन प्रत्याशा में तीव्रता से वृद्धि हुई है। वर्ष 1951 में पुरुषों व महिलाओं की जीवन प्रत्याशा 32.5 व 31.7 वर्ष थी जो 2012 में बढ़कर 65-4 व 68.8 वर्ष हो गई है।
(6) विदेशी व्यापार – वर्ष 2006 में जारी विश्व बैंक रिपोर्ट के अनुसार, सकल घरेलू उत्पाद के आधार पर भारतीय अर्थव्यवस्था विश्व की 12वीं बड़ी अर्थव्यवस्था हो गई है। अर्थव्यवस्था के विकास में कृषि तथा उद्योगों के साथ-साथ आन्तरिक एवं विदेशी व्यापार का भी विशेष महत्त्व है। पिछले कुछ वर्षों में भारत का विदेशी व्यापार तीव्रता से बढ़ा है। वर्ष 2014-15 में ₹ 27,37,087 करोड़ का आयात एवं ₹ 18,96,348 करोड़ का निर्यात किया गया है। भारत मुख्य रूप से पेट्रोलियम पदार्थ, खाद्य तेल, रासायनिक पदार्थ, मशीनरी आदि का आयात करता है। इसके साथ ही खनिज पदार्थ, रत्न एवं आभूषण, सिले हुए वस्त्र, मछली, कम्प्यूटर सॉफ्टवेयर आदि का निर्यात करता है। भारत का विदेशी व्यापार मुख्यत: अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम, जर्मनी एवं रूस से होता है।
प्रश्न 5.
शिक्षा एवं स्वास्थ्य का आर्थिक विकास में क्या योगदान है ? लिखिए।
उत्तर:
शिक्षा का योगदान-शिक्षा मानव के दृष्टिकोण को व्यापक बनाती है। शिक्षा के माध्यम से मनुष्य के नैतिक, बौद्धिक, मानसिक तथा शारीरिक गुणों का विकास किया जाता है। किसी भी अर्थव्यवस्था के विकास में शिक्षा का उल्लेखनीय योगदान होता है। यद्यपि शिक्षा किसी स्थूल वस्तु का उत्पादन नहीं करती, किन्तु यह लोगों को उत्पादन कार्य के लिए अधिक कुशल बनाती है। इससे लोगों के ज्ञान में वृद्धि होती है जिससे उत्पादकता बढ़ती है। अतः शिक्षा पर निवेश से हमें उसी प्रकार के मूर्त आर्थिक परिणाम प्राप्त होते हैं जिस प्रकार एक कारखाने के निर्माण में निवेश करने से प्राप्त होते हैं। विभिन्न ग्रामीण के समाधान, जनसंख्या वृद्धि दर को कम करने, रूढ़ियुक्त होने तथा विश्व को वैज्ञानिक एवं तार्किक दृष्टिकोण से देखने व समझने के लिए भी शिक्षा अनिवार्य है। अतः किसी भी समाज में व्यापक व सूक्ष्म आर्थिक परिवर्तन लाने का सर्वाधिक सशक्त माध्यम शिक्षा है।
स्वास्थ्य का योगदान – स्वास्थ्य और व्यक्ति का विकास किसी भी राष्ट्र के सामाजिक एवं आर्थिक विकास का विभिन्न अंग होता है। स्वास्थ्य से मनुष्य की शारीरिक क्षमता का विकास होता है। स्वास्थ्य का सम्बन्ध मात्र रोग निवारण से न होकर शारीरिक एवं मानसिक सुख तथा कल्याण से है। देश की स्वस्थ जनंसख्या ही उत्पादन कार्य में प्रभावकारी भूमिका निभा सकती है। व्यक्ति की कार्य करने की क्षमता एवं इच्छा पर स्वास्थ्य का प्रभाव पड़ता है और यह उत्पादकता को प्रभावित करती है। श्रमिक जब शारीरिक दृष्टि से कमजोर होगा या स्वस्थ नहीं होगा तब वह उत्पादन कार्य ठीक प्रकार से नहीं कर पायेगा और राष्ट्रीय उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। इसलिए स्वास्थ्य सुविधाओं को अनिवार्य माना गया है।
प्रश्न 6.
भारत में सेवा क्षेत्र के विस्तार के कारणों की व्याख्या कीजिए।
उत्तर:
भारत में सेवा क्षेत्र का विस्तार होने के कारण
भारतीय अर्थव्यवस्था के अध्ययन से स्पष्ट होता है कि पिछले छः दशकों में यद्यपि सभी क्षेत्रों के उत्पादन में वृद्धि हुई है लेकिन तृतीयक क्षेत्र या सेवा क्षेत्र की भागीदारी सबसे अधिक रही। अब सेवा क्षेत्र राष्ट्र में सबसे बड़े उत्पादक एवं आय सृजक क्षेत्र के रूप में उभरा है। भारत में सेवा क्षेत्र के योगदान में तेजी से हुई। वृद्धि के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं –
- सेवाओं का विस्तार।
- प्राथमिक एवं द्वितीयक क्षेत्रों का विस्तार।
- उपभोग में वृद्धि।
- सूचना एवं संचार प्रौद्योगिकी पर आधारित वस्तुओं का प्रयोग।
- वैश्वीकरण का प्रभाव।
[नोट: विस्तृत विवेचन के लिए लघु उत्तरीय प्रश्न 4 का उत्तर देखें।]
1 आर्थिक समीक्षा 2015-16,A-99.
MP Board Class 10th Social Science Chapter 18 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
MP Board Class 10th Social Science Chapter 18 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय
प्रश्न 1.
‘स्वर्णिम चतुर्भुज’ का सम्बन्ध है –
(i) यातायात से
(ii) विज्ञान से
(iii) कृषि से
(iv) उद्योग से।
उत्तर:
(i) यातायात से
प्रश्न 2. (2012)
प्राथमिक क्षेत्र की गतिविधि है –
(i) गन्ने से शक्कर बनाना
(ii) मकान निर्माण
(iii) बैंकिंग
(iv) मछली पकड़ना।
उत्तर:
(iv) मछली पकड़ना।
प्रश्न 3.
भारत में रेल सेवा आरम्भ हुई (2015)
(i) 1853 ई. में
(ii) 1854 ई. में
(iii) 1856 ई. में
(iv) 1857 ई. में।
उत्तर:
(i) 1853 ई. में
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
- ………………. क्षेत्र में प्राकृतिक उत्पादों को विनिर्माण के द्वारा अनेक उपयोगी रूपों में परिवर्तित किया जाता है।
- रेल, सड़क और वायु परिवहन ………………. क्षेत्र में आते हैं।
- संचार सेवा की शुरुआत सन् ………………. में हुई ।
उत्तर:
- द्वितीयक
- तृतीयक
- 1837
सत्य/असत्य
प्रश्न 1.
अर्थव्यवस्था का तीन क्षेत्रों में विभाजन किया गया है। (2011)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 2.
सेवा क्षेत्र अर्थव्यवस्था का तृतीयक क्षेत्र होता है। (2018)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 3.
वर्ष 2005-06 में सकल घरेलू उत्पाद में सेवा क्षेत्र का योगदान 52.4 प्रतिशत था। (2011)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 4.
शिक्षा एवं स्वास्थ्य सामाजिक अधोरचना के अंग हैं। (2011)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 5.
ऊर्जा आयोग का गठन मार्च, 1985 में किया गया। (2011)
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 6.
कृषि प्राथमिक क्षेत्र के अन्तर्गत आती है। (2009, 17)
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 7.
विकसित देशों के अधिकांश जनसंख्या प्राथमिक क्षेत्र से जुड़ी रहती है। (2012)
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 8.
शिक्षक, डॉक्टर, वकील की सेवाएँ उत्पादन में प्रत्यक्ष रूप से योगदान देती हैं। (2012)
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 9.
औद्योगिक क्षेत्र को प्राथमिक क्षेत्र कहा जाता है। (2013)
उत्तर:
असत्य।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 18 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
‘अधोसंरचना’ किसे कहते हैं ? (2017)
उत्तर:
वे सुविधाएँ एवं क्रियाएँ जो उत्पादन के कार्यों में सहायक होती हैं, को अधोसंरचना कहा जाता है; जैसे-ऊर्जा; परिवहन के साधन, बाँध, शिक्षा, स्वास्थ्य सुविधाएँ आदि।
प्रश्न 2.
ज्ञान आधारित समाज किसे कहते हैं ?
उत्तर:
वह समाज जिसमें सभी क्रियाएँ उपलब्ध ज्ञान के आधार पर संरचना होती हैं। दूरसंचार तकनीक के विस्तार से ज्ञान आधारित समाज की धारणा का विकास हुआ है।
प्रश्न 3.
‘दूरसंवेदी इकाई’ से क्या आशय है ?
उत्तर:
उपग्रहों के माध्यम से संचालित संचार सेवाएँ, भू-जल स्तर मापना, खनिज व पेट्रोलियम पदार्थों का पता लगाना, नक्शा तैयार करना, गुप्त जानकारियाँ आदि सेवाओं का क्रियान्वयन दूरसंवेदी इकाई के द्वारा होता है।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 18 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सामाजिक आधारिक संरचना व आर्थिक आधारिक संरचना में अन्तर स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
सामाजिक आधारिक संरचना व आर्थिक आधारिक संरचना में अन्तर
सामाजिक आधारिक संरचना
- शिक्षा, प्रशिक्षण, शोध, स्वास्थ्य तथा आवास आदि सामाजिक संरचनाओं के घटक हैं।
- इन संरचनाओं का उद्देश्य मानव तथा उसके वातावरण को सुधारना है।
- ये संरचनाएँ प्रबन्धक, इंजीनियर आदि उपलब्ध कराती हैं।
- ये संरचनाएँ अर्थव्यवस्था को अप्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।
- ये आर्थिक संरचनाओं का आधार हैं।
आर्थिक आधारिक संरचना
- परिवहन, संचार, ऊर्जा तथा वित्तीय संस्थाएँ आर्थिक संरचना के घटक हैं।
- ये संरचनाएँ कृषि तथा औद्योगिक क्षेत्र की उत्पादकता में वृद्धि लाने वाला वातावरण तैयार करती हैं।
- ये संरचनाएँ व्यापार तथा उद्योग की बाधाओं को दूर करती हैं।
- ये संरचनाएँ अर्थव्यवस्था को प्रत्यक्ष रूप से प्रभावित करती हैं।
- ये सामाजिक संरचनाओं को विकसित करती हैं।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 18 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
रेल परिवहन, सड़क परिवहन एवं जल परिवहन को संक्षेप में समझाइए।
उत्तर:
रेल परिवहन – भारत में माल एवं सवारी की ढुलाई के लिए परिवहन का सबसे सुविधाजनक व सस्ता साधन रेलवे है। रेलवे का शुभारम्भ सन् 1853 में हुआ था जब प्रथम रेल बम्बई (मुम्बई) से थाणे तक चलाई गई। इसके बाद देश में रेलमार्गों का चहुंमुखी विकास हुआ। अब तक देश में कुल 66,030 किलोमीटर रेलमार्ग का निर्माण किया गया। फलतः अब भारतीय रेलवे एशिया की सबसे बड़ी एवं विश्व के दूसरे स्थान की रेल प्रणाली हो गयी है।
सड़क परिवहन – भारत एक गाँवों का देश है। अत: ग्रामीण क्षेत्रों में उत्पादन बढ़ाने तथा रोजगार के अवसरों में वृद्धि करने की दृष्टि से सड़कों का महत्वपूर्ण स्थान है। देश में कुल 52.32 लाख किमी. लम्बी सड़कें हैं। वर्तमान में अनेक महत्वाकांक्षी योजनाएँ क्रियान्वित की जा रही हैं जिनमें स्वर्णिम चतुर्भुज सड़क योजना अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सड़कों के तेजी से विस्तार के लिए निजी क्षेत्र को भी अब सड़कों के निर्माण कार्य में शामिल कर लिया गया है।
जल परिवहन – भारत की जल परिवहन प्रणाली दो प्रकार की है-प्रथम. आन्तरिक जल परिवहन व द्वितीय तटीय जल परिवहन आन्तरिक जल परिवहन गहरी नदियों एवं नहरों में होता है। इसमें नाव तथा स्टीमरों का प्रयोग होता है।
भारत का समुद्रतट 7517 किमी लम्बा है और इस पर 13 बड़े एवं 200 छोटे बन्दरगाह हैं। भारत का मुख्य विदेशी व्यापार बड़े बन्दरगाहों द्वारा होता है।
1 भारत 2017, पृष्ठ 735.