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MP Board Class 12th General Hindi अपठित बोध Important Questions
अपठित गद्यांश
1. राष्ट्रीय चरित्र का विकास ही प्रजातंत्र का आधार है। किसी भी राष्ट्र की नींव उसके राष्ट्रवासियों के चरित्र पर आधारित है। जिस राष्ट्र के नागरिकों का चरित्र जितना महान होगा, उसका भविष्य भी उतना ही महान होगा। प्रजातंत्र के क्रियान्वयन में राष्ट्र के चरित्र की रक्षा आवश्यक है। चरित्र से नैतिकता का विकास होता है और नैतिकता प्रजातंत्र की रक्षा कर उसे सफल बनाती है। राष्ट्रीय चरित्र से राष्ट्र के गौरव में वृद्धि होती है। यही कारण है कि भारत अपने राष्ट्रीय चरित्र के नाम पर विश्व के समक्ष अपना मस्तक ऊँचा किए हुए है। (म. प्र. 2009)
प्रश्न
- उक्त गद्यांश का उचित शीर्षक दीजिए।
- रेखांकित शब्दों का अर्थ लिखिए।
- उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
‘प्रजातंत्र एवं नैतिकता।’
2. शब्दार्थ-क्रियान्वयन:
कार्य रूप में पार्णित करना। राष्ट्रीय चरित्र-राष्ट्र का चरित्र (नैतिकता)।
3. सारांश:
प्रजातंत्र में राष्ट्रीय चरित्र का अत्यधिक महत्व है। प्रजातंत्र की सफलता एवं विकास में राष्ट्रीय चरित्र एवं नैतिकता की भूमिका होती है। भारत नैतिकता एवं राष्ट्रीय चरित्र के बल पर ही विश्व में गौरवान्वित है।
2. स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का वास होता है। इसके लिए मनुष्य को मानसिक रूप से और शारीरिक रूप से दोनों ही प्रकार से स्वस्थ होना चाहिए।
स्वस्थ मानसिकता ही स्वच्छ समाज को जन्म देती है। मनुष्य की शुद्ध सोच नई खोजों को जन्म देती है। इसका असर व्यक्ति विशेष पर नहीं बल्कि समाज, देश, जाति सभी पर समान रूप से पड़ता है। इसलिए मनुष्य को अपनी विचारधारा को विकसित करना होगा। पुरानी परम्पराएँ एवं रूढ़ियों को त्याग करके नयी विकास पद्धति को जन्म देना होगा।
प्रश्न
- उपरोक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए। (म. प्र. 2016)
- विकसित व स्वच्छ का विलोम शब्द लिखिए।
- उपर्युक्त गद्यांश का सारांश 30 शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
‘स्वस्थ शरीर से स्वस्थ समाज का विकास।’
2. विकसित:
अविकसित, स्वच्छ – अस्वच्छ।
3. सारांश:
स्वस्थ शरीर में स्वस्थ मस्तिष्क का विकास होता है। स्वच्छ मानसिक विचारधारा अच्छे समाज को जन्म देती है तथा समाज की पुरानी परम्पराएँ एवं रुढ़ियाँ दूर होती हैं। समाज एवं देश का वातावरण भी सुदृढ़ होता है जिसके द्वारा बहुआयामी विकास संभव है।
3. शिक्षा का उद्देश्य मनुष्य को बनाना है उनमें आत्मनिर्भरता की भावना भरना तथा देशवासियों का चरित्र निर्माण करना होता है। परन्तु वर्तमान शिक्षा प्रणाली में इस प्रकार का कोई लाभ नहीं हो रहा है। प्रतिवर्ष हजारों नवयुवक डिग्री प्राप्त करके निकलते हैं और उन्हें नौकरी नहीं मिल पाती। इस कारण बेरोजगारी दिनों दिन बढ़ती जा रही है। (म. प्र. 2017)
प्रश्न
- उपयुक्त शीर्षक लिखिए।
- बेकारी का पर्याय लिखिए।
- सारांश लिखिए।
- शिक्षा का उददेश्य लिखिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
शिक्षा का उद्देश्य मानवहित में।
2. बेकारी का पर्याय:
व्यर्थ या फालतू।
3. सारांश:
शिक्षा का उद्देश्य मानव हित के लिए अत्यंत आवश्यक है इससे उसमें आत्मनिर्भरता की भावना पैदा करना तथा एक आदर्श चरित्र का निर्माण करना।
जिसके कारण प्रत्येक नागरिक स्वावलम्बी जीवन जी सकें और यह सब शिक्षा डाटा ही संभव है।
4. उद्देश्य:
शिक्षा का प्रथम लक्ष्य आत्मनिर्भर बनाना साथ ही बेकारी की समस्या को दूर करना।
4. आदर्श व्यक्ति कर्मशीलता में ही अपने जीवन की सफलता समझता है। जीवन के प्रत्येक क्षण में वह कार्यरत रहता है। विश्राम और विनोद के लिए उसके पास निश्चित समय रहता है। शेष समय राष्ट्र एवं समाज के प्रति समर्पित होता है। कर्मशील व्यक्ति हाथ पर हाथ रखकर बैठने को मृत्यु से भी बुरा समझता है। उसमें कर्म करने की लगन व उत्साह अत्यधिक मात्रा में होता है। धैर्य के बल पर वह बड़े-बड़े पर्वतों को खोद कर ढहा देता है। कंटकाकीर्ण राह पर चलने में वह संतोष अनुभव करता है। वह दुःख और सुख को समान समझता हुआ परिस्थितियों को अपना दास बना लेता है। (महत्वपूर्ण)
प्रश्न
- गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
- गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
‘व्यक्ति और कर्म’।
2. सारांश:
निरन्तर कर्म करते रहना ही जीवन की सफलता है। कर्मशील व्यक्ति हमेशा व्यस्त रहता है। उसमें काम करने की लगन और उत्साह होता है। धैर्य रखकर वह कठिन से कठिन कार्य कर लेता है। दुर्गम रास्तों पर चलकर उसे संतोष मिलता है। वह सुख-दुःख को समान मानता है तथा परिस्थितियों को अपने अधीन बना लेता है।
5. अहिंसा भी सत्य का पूरक रूप है। अहिंसा का व्यवहार सत्य है अहिंसा में दूसरे के अधिकारों की विशेषकर जीवधारियों की स्वीकृति रहती है। अहिंसा मनसा चाचा-कर्मणा तीनों से होती है। अहिंसा के पीछे जियो और जीने दो का सिद्धांत रहता है। जहाँ अहिंसा का गान नहीं वहाँ मानवता नहीं। अहिंसा मानवता का पर्याय है। मनुष्य को उस जान को लेने का अधिकार नहीं जिसे वह नहीं दे सकता। हिंसा केवल जान लेने में ही नहीं वरन् दूसरों के स्वाभिमान को आघात पहुँचाने में भी होती है। (म. प्र. 2010)
प्रश्न
- उपर्युक्त गद्यांश का समुचित शीर्षक दीजिए।
- मानवता का पर्याय किसे कहते हैं?
- उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
‘अहिंसा गद्यांश का उचित शीर्षक है।’
2. अहिंसा के पीछे जियो और जीने दो का सिद्धांत रहता है। जहाँ अहिंसा का गान नहीं वहाँ मानवता नहीं। अहिंसा मानवता का पर्याय है।
3. सारांश:
अहिंसा सत्य का ही रूप है। अहिंसा का व्यवहार सत्य पर केन्द्रित है। यह जियो और जीने दो की विचारधारा पर विश्वास करता है। अहिंसा की सूक्ष्म धारणा लेखक ने व्यक्त की है कटु शब्दों का प्रयोग करना भी हिंसा है।
6. समय एक अमूल्य निधि है, जीवन संग्राम में सफल होने के लिए समय का सदुपयोग परम आवश्यक है। अक्सर लोग समय की तुलना धन से करते हैं। लेकिन समय धन से अधिक मूल्यवान है। धन तो एक साधन.मात्र है, परंतु समय सब कुछ है। धन नष्ट भी हो जाये तो पुनः प्राप्त किया जा सकता है, किन्तु नष्ट किए समय को प्राप्त करना असंभव है। जो मनुष्य समय नष्ट करता है समय उसे नष्ट कर देता (म. प्र. 2018)
प्रश्न
- उपर्युक्त गद्यांश का सार्थक शीर्षक लिखिए।
- जीवन में सफल होने के लिये क्या आवश्यक है?
- सबसे अधिक मूल्यवान क्या है?
- उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
समय का सदुपयोग।
2. जीवन संग्राम में सफल होने के लिए समय का सदुपयोग परम आवश्यक है।
3. समय धन से अधिक मूल्यवान है।
4. सारांश:
समय अनमोल है। सफल होने के लिए समय का सदुपयोग परम आवश्यक है। अक्सर लोग धन की तुलना समय से करते हैं। समय धन से अधिक मूल्यवान है। धन तो साधन मात्र है। परंतु समय सब कुछ है। धन नष्ट होने पर पुनः प्राप्त करना संभव है, लेकिन गुजरा हुआ समय कभी दुबारा प्राप्त नहीं किया जा सकता है। जिसने समय का सदुपयोग नहीं किया समय उसे नष्ट कर देता है।
7. मेरे सपनों के भारत में सब लोगों को समानता का व्यवहार मिलेगा। जाति या धर्म के नाम पर देश को शक्तिहीन नहीं होने दिया जाएगा। मेरे सपनों के भारत में उग्रवादियों और देश के दुश्मनों के लिए कोई स्थान नहीं होगा। सभी लोग सुरक्षा और शांति से जीवनयापन करेंगे। मेरे सपनों के भारत में हिन्दी राष्ट्रभाषा होगी और प्रादेशिक भाषाओं की उन्नति के पर्याप्त अवसर दिये जायेंगे। मेरा भारत किसी देश पर पहले आक्रमण नहीं करेगा, परन्तु यदि कोई देश इस पर आक्रमण करेगा, तो वह उसकी ईंट से ईंट बजा देगा। (म. प्र. 2013)
प्रश्न
- उपर्युक्त गद्यांश का एक उपर्युक्त शीर्षक लिखिए।
- उपर्युक्त गद्यांश का सारांश लगभग 25 शब्दों में लिखिए।
- मेरे सपनों के भारत में सब लोगों के साथ किस तरह के अवसर की अपेक्षा की गई है?
- उन्नति’ शब्द का एक पर्यायवाची शब्द लिखिए।
- ‘ईंट से ईंट बजा देना’ मुहावरे का अर्थ लिखिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
देश प्रेम की प्रबल भावना’।
2. सारांश:
प्रत्येक देश में सभी लोग शांति एवं सौहार्द्रपूर्ण जीवन-यापन करते हैं इसमें शत्रुता के लिए कोई स्थान नहीं होता, भारत में चाहे राष्ट्रभाषा हो या प्रादेशिक, सभी के विकास के पर्याप्त अवसर दिये जाते हैं, परन्तु जब कोई भारतीय, भाषा, धर्म एवं देश पर नुकसान पहुँचाने की कोशिश करता है तब भारत हर मुकाबले से लड़ने के लिए सक्षम है।
3. मेरे सपनों के भारत में राष्ट्रभाषा और प्रादेशिक भाषाओं की उन्नति के पर्याप्त अवसर दिये जाने की अपेक्षा की है।
4. तरक्की या प्रगति।
5. नष्ट कर देना।
8. वैदिक काल से हिमालय के पहाड़ बहुत पवित्र माने जाते हैं इसमें कोई सन्देह नहीं कि हिमालय के पहाड़ों का दृश्य अति सुन्दर है। उसकी विशालता को देखकर मन में आनंद और कृतज्ञता की लहर उठती है। ऐसा लगता है कि यह विशाल सृष्टि ईश्वर की देन है सम्पूर्ण सृष्टि के प्रति समभाव जाग्रत होता है। सारे भारत की जलवायु को प्रभावित करने वाला यही हिमालय है। गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ को तीर्थ माना जाता है। उन स्थानों से निकलने वाली पवित्र नदियाँ ही वास्तव में हमारी प्राणदात्री रही है। (म. प्र. 2014)
प्रश्न
- उपर्युक्त अवतरण का उचित शीर्षक दीजिए।
- किस काल से हिमालय को पवित्र पहाड़ माना जाता है?
- हिमालय में कौन-कौन से तीर्थ स्थित हैं?
- उपर्युक्त गद्यांश का सारांश 30 शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
‘हिमालय का महत्व’
2. वैदिक काल से हिमालय को पवित्र पहाड़ माना जाता है।
3. गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ तीर्थ माना जाता है।
4. सारांश:
उपर्युक्त गद्यांश का सार निम्नांकित है-हिमालय भारत प्रहरी है वैदिक काल से हिमालय को पवित्र माना गया है। उसकी महानता सबको प्रभावित करती है पहाड़ अति सुन्दर दृश्य जैसे लगता है कि इसकी सृष्टि ईश्वर ने की है-सारे तीर्थ स्थानों का जनक यह हिमालय ही है। गंगोत्री, यमुनोत्री, बद्रीनाथ, केदारनाथ को तीर्थ माना गया है।
9. अनुशासन की पहली पाठशाला है-परिवार। बच्चा अपने परिवार में जैसा देखता है, वैसा ही आचरण करता है, जो माता-पिता अपने बच्चों को अनुशासन में देखना चाहते हैं वे पहले स्वयं अनुशासन में रहते हैं विद्यार्थी जीवन में अनुशासन का होना अत्यन्त आवश्यक है, जो विद्यार्थी आकर्षणों से भरी जिन्दगी को अनुशासित कर लेते हैं, वे सफलता की सीढ़ियों पर चढ़ते चले जाते हैं। अनुशासन के बल पर ही छात्र अपने समय का सही उपयोग कर सकता है। निश्चित समय पर उठना व्यायाम करना भोजन करना, पढ़ाई करना और शयन करना इन नियमों का पालन कर वह अपने जीवन में अनेक ऊँचाइयों को प्राप्त कर सकता है। (म. प्र. 2015)
प्रश्न
- उपर्युक्त गद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
- माता-पिता का क्या कर्त्तव्य है?
- जीवन में ऊँचाइयों को प्राप्त करने के लिए छात्र को क्या-क्या करना चाहिए?
- उपर्युक्त गद्यांश का सारांश 30 शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
‘अनुशासन का महत्व’।
2. माता:
पिता का कर्तव्य है कि यदि अपने बच्चों को अनुशासन में देखना चाहते हैं, तो वे पहले स्वयं अनुशासन में रहें। ऐसा कोई कार्य न करें जो अनापेक्षित हो।
3. निश्चित समय पर उठना, व्यायाम करना, भोजन करना, पढ़ाई करना और शयन करना इन नियमों का पालन कर वह अपने जीवन में अनेक ऊँचाइयों को प्राप्त कर सकता है।
4. सारांश:
परिवार ही अनुशासन की प्रथम पाठशाला है जो अभिभावक गण अपने बच्चों को अनुशासन में देखना चाहते हैं, वे स्वयं अनुशासन में रहें। जो विद्यार्थी अनुशासन का पालन करते हैं, उन्हें निश्चित रूप में सफलता प्राप्त होती और जीवन की ऊँचाइयों पर पहुँच जाते हैं साथ ही अपने लक्ष्य को प्राप्त करने में सफल होते हैं।
अपठित पद्यांश
1. जग की विषम आँधियों के झोंके सम्मुख हो सहना। (म. प्र. 2016)
स्थिर उद्देश्य समान और विश्वास-सदृश्य दृढ़ रहना।
जाग्रत नित रहना उदारता-तुल्य असीम हृदय में।
अंधकार में शांत चन्द्र-सा, ध्रुव-सा निश्छल भय में।
प्रश्न
- उपर्युक्त पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
- उपरोक्त पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
- स्थिर, समान, शांत, विश्वास शब्दों के विलोम शब्द लिखिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
विषम परिस्थितियाँ एवं जागरूकता’।
2. भावार्थ:
जीवन में कितना ही कष्टमय समय क्यों न हो, हमें ऐसे समय धैर्य एवं आत्मविश्वास नहीं खोना चाहिए। सदैव जागरूक रहकर समाज का विकास करें और जियो और जीने दो का सूत्र अपने जीवन में अपनाएँ।
3. स्थिर:
अस्थिर, समान-असमान, शांत-अशांत, विश्वास-अविश्वास।
2. सच्चा कर्म, सच्ची सेवा, सच्चा धर्म। (म. प्र. 2012)
दुश्मन के आगे कभी झुके नहीं हम।
खौलता है खून, साँस चलती गरम।
कितने हों कष्ट नहीं होते जो नरम।
भारत माँ की आबरू से पहचानते।
माता भारती का दर्द ये ही जानते।
प्रश्न
- उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक लिखिए।
- कवि सच्चा धर्म किसे मानता है?
- उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ लिखिए।
- दुश्मन के पर्यायवाची लिखिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
‘सत्कर्तव्य’।
2. सच्चा कर्म, सच्ची सेवा, सच्चा धर्म एवं दुश्मन के सामने कभी न झुकना ही सच्चा धर्म है।
3. भावार्थ:
उपर्युक्त पंक्तियों का भावार्थ यह है मनुष्य सत्य का आचरण करना, मानवता की सेवा करना, सच्चे धर्म का पालन मन, वचन एवं कर्म से करना। दुश्मन के सामने कभी-भी नतमस्तक न होना। कैसी भी विषय परिस्थिति क्यों न हों। हमें उन्हें देखकर कभी घबराना नहीं। भारत माता के डर से कष्ट को जानते हैं तथा उसकी रक्षा के लिए तन-मन, धन से समर्पित है।
4. दुश्मन का पर्यायवाची-शत्रु, रिफ।
3. फसल क्या है? (म. प्र. 2011)
और तो कुछ नहीं है वह
नदियों के पानी का जादू है वह
हाथों के स्पर्श की महिमा है
भूरी – काली संदली मिट्टी का गुण धर्म है
रूपांतर है सूरज की किरणों का
सिमटा हुआ संकोच है हवा की थिरकन का।
प्रश्न
- उपर्युक्त पद्यांश का एक उपर्युक्त शीर्षक दीजिए।
- फसल पर किसका जादू चलता है?
- उपर्युक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
‘फसल एवं भूमि का संबंध’।
2. फसलों पर नदियों का जादू चलता है।
3. भावार्थ:
कवि का कहना है कि फसल क्या है? अच्छी पैदावार फसलों द्वारा ही संभव है नदियों द्वारा फसलों की सिंचाई की जाती है जिससे अधिक-से-अधिक अनाज होता है। साथ ही किसानों के हाथों का परिश्रम भी इसमें समाहित है नदियों के बहाव के द्वारा कई प्रकार की मिट्टी खेतों तक पहुँचती है जिसमें भूरी काली संदली सभी प्रकार की मिट्टी का गुण पाया जाता है लहराती फसलों पर पड़ती हुई सूर्य की किरणे एवं हवा का थिरकन फसलों पर चार चाँद लगा देता है साथ ही फसलों की सुंदरता बढ़ती है।
4. तुम हो धरती के पुत्र न हिम्मत हारो,
श्रम की पूँजी से अपना काज सँवारो।
श्रम की सीपी में भी वैभव पलता है,
तब स्वाभिमान का दीप स्वयं जलता है।
मिट जाता है दैत्य स्वयं एक क्षण में,
छा जाती है, दीप्त धरा के कण में।
‘जागो, जागो श्रम से नाता तुम जोड़ो,
पथ चुनो काम का, आलस भाव तुम छोड़ो।
प्रश्न
- उपर्युक्त पंक्तियों का भाव स्पष्ट कीजिए। (म. प्र. 2010)
- कवि ने किस पूँजी से बिगड़े कार्य सँवारने की कही है?
- उपर्युक्त पद्यांश का समुचित शीर्षक दीजिए।
उत्तर:
1. भावार्थ:
यहाँ कवि का कथन है कृषक (कर्मवीर) कभी-भी परिस्थिति से हार नहीं मानता और वह दिन-रात मेहनत कर अपने भाग्य को अपने कर्मों द्वारा बनाता है और अपने स्वाभिमान की रक्षा करता है और दीनता जैसे भाव को त्याग देता है। और निरंतर धरती में कार्य करते बिना रुके अपने लक्ष्य की तरफ बढ़ता रहता है।
2. कवि ने श्रम की पूँजी से बिगड़े कार्य सँवारने की बात कही है।
3. शीर्षक:
‘कर्मवीर’।
5. हम अनेकता में भी तो है एक ही
हर झगड़े में जीता सदा विवेक ही
कृति, आकृति भाषा के वास्ते
बने हुए हैं, मिलते-जुलते रास्ते।
आस्थाओं की टकराहट से लाभ क्या?
मंजिल को हम देंगे भला जवाब क्या?
हम टूटे तो टूटेगा यह देश भी, मैला वैचारिक परिवेश भी।
सृजनरत हो आजादी के दिन जियो,
श्रमकर्ताओं रचनाकारों, साथियों। (म. प्र. 2013)
प्रश्न
- उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक दीजिए।
- सारांश लिखिए।
- मनुष्य के विचारों में मैलापन कब आ जाता है?
- ‘आस्था’ शब्द का विलोम लिखिए।
- हम मिल-जुलकर किन-किन रास्तों को आसान बना सकते हैं?
उत्तर:
1. शीर्षक:
‘भारतीय संस्कृति में विविधता में एकता’।
2. सारांश:
हम सब विभिन्न धर्मों जातियों एवं सम्प्रदायों के होते हुए भी एक हैं क्योंकि हमारी संस्कृति की तट्ट में एकता निहित है। प्रत्येक प्रांत की अलग भाषा होने के बावजूद भी प्रत्येक भाषाओं का जन्म संस्कृत से हुआ है, संस्कृत जननी है। साथ ही धर्म में विविधता के बाहरी रूप में ही देखा जा सकता है। ईश्वर सबका एक है रास्ते अनेक हैं-ईश्वर के नाम अनेक हो सकते हैं। परन्तु सबका मालिक एक है अर्थात् सबकी मंजिल एक है।
3. मनुष्य के विचारों में जब आस्थापन की कमी होती है तब विचारों की टकराहट बढ़ जाती है और तब विचारों में मैलापन आ जाता है।
4. अनास्था।
5. हम मिल:
जुलकर आस्थाओं की टकराहट दूर कर हर रास्ते को आसान बना सकते हैं।
6. “ठान लोगे तुम अगर युग को नई तस्वीर दोगे
गर्जना से शत्रुओं के तुम कलेजे चीर दोगे।
दाँव गौरव पर लगे तो शीश दे देना विहँस कर
देश के सम्मान पर, काली घटा छाने न देना
देश की स्वाधीनता पर आँच तुम आने न देना।” (म. प्र. 2014, 17)
प्रश्न
- उपर्युक्त पद्यांश का शीर्षक लिखिए।
- काली घटा से क्या तात्पर्य है?
- उपर्युक्त पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
‘देश के रक्षक नवयुवक’।
2, काली घटा से तात्पर्य मुसीबत का आना अर्थात् कोई भारी विपत्ति जो आने वाली हो। देश के नवयुवकों तुम इस काली घटा के प्रभावी जवाब दे सकते हो।
3. भावार्थ:
नवयुवकों तुम ही भारत माता की नई तस्वीर देने वाले हो अर्थात् नया रूप देने वाले तुम शत्रु को परास्त कर सकते हो। हर विकट परिस्थिति का उत्तर तुम ही हो क्योंकि तुम्हारे अन्दर असीम शक्ति है तुम कभी देश पर संकट नहीं आने देना।।
7. “देश प्रेम के ओ मतवालों, उनको भूल न जाना।
महाप्रलय की अग्नि साथ लेकर जो जग में आए।
विश्वबली शासन के भय जिनके आगे मुरझाएँ।
चले गए जो शीश चढ़ाकर, अर्घ्य लिए प्राणों का,
चले मजारों पर हम उनके आज प्रदीप जलाएँ।” (म. प्र. 2015)
प्रश्न
- उपर्युक्त पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
- यह कविता किसे संबोधित की गई?
- कवि किनको न भूलने की बात कह रहा है?
- उपर्युक्त पद्यांश का भावार्थ लिखिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
‘अमर शहीद का बलिदान’।
2. यह कविता नवयुवकों को संबोधित करते हुए लिखी गई है।
3. कवि अमर शहीदों के बलिदान को न भूलने की बात कर रहा है।
4. भावार्थ:
शहीदों की कुरबानियों को न भूलने की सलाह देता है आज उनके लहू से ही भारत आजाद है। वे शहीद जिन्होंने हँसते-हँसते अपने मस्तिष्क को चढ़ाया, जिससे भारत-भूमि परतंत्रता के बंधन से दूर हो सकी। आज आजादी के बाद हम उनकी यादों को अपने दिल से एक पल के लिए अलग नहीं होने देंगे। साथ ही उनके समाधि स्थल पर दीपक जलायेंगे। जिससे आने वाली पीढ़ी को भी प्रेरणा मिल सके।
8. रवि जग में शोभा सरसाता,
सोम सुधा बरसाता
सब है जग कर्म में कोई
निष्क्रिय दृष्टि न आता,
है उद्देश्य नितांत तुच्छ
तृण के भी लघु जीवन का
उसी पूर्ति में वह करता है
अंत कर्ममय तन का। (म. प्र. 2018)
प्रश्न
- उपर्युक्त पद्यांश का उचित शीर्षक लिखिए।
- तृण का जीवन कैसा है?
- उपर्युक्त पद्यांश का सारांश लिखिए।
उत्तर:
1. शीर्षक:
कर्ममय जीवन की महत्ता’।
2. तृण का जीवन लघु है और उसी पूर्ति में अर्थात् कर्म करते हुए वह अपने जीवन की समाप्ति करता है।
3. संसार में समस्त सजीव एवं निर्जीव सब अपने-अपने कार्यों में संलग्न हैं:
बिना रूके सब अपना कार्य करते हैं। सूर्य प्रातः प्रकाश की छंटा फैलाकर अंधकार को नष्ट करता है। चंद्रमा रात्रि में उदित होकर अमृतमय ओस की बूंदें बिखेरकर शीतलता प्रदान करता है। डाल पर लगा हुआ पत्ता भी अपने कर्म को करता है। उसका उद्देश्य नि:स्वार्थ है, राहगीरों को छाया प्रदान करता है तथा ऐसा करते हुए अपने जीवन की समाप्ति कर देता है। इससे हमें यह सीख मिलती है कि बिना रूके हम अपना कर्म करते रहें, बिना फल की आसक्ति के, तभी जीवन सफल होगा।