MP Board Class 11th Special Hindi Sahayak Vachan Solutions Chapter 8 काठमाण्डू दर्शन

MP Board Class 11th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 8 काठमाण्डू दर्शन

काठमाण्डू दर्शन अभ्यास प्रश्न

निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर लिखिए

प्रश्न 1.
हिमालय के विषय में लेखक के विचार लिखिए।
उत्तर:
भारत से नेपाल की हवाई यात्रा गोरखपुर से सीमा पार करके हिमालय की तराई का प्रदेश शुरू होता है। यह प्रदेश वृक्षों का घना प्रदेश है। वृक्षों से ढंके वन लहराते समुद्र का दृश्य प्रस्तुत करते हैं।

हिमालय की श्रेणियाँ प्रबल आकर्षण की बिन्दु थीं। हिमालय को नगाधिराज हिमालय भी कहा जाता है। इससे भारत की अनेक पुराकथाएँ और उदात्त कल्पनाएँ जुड़ी हुई हैं। कालिदास, प्रसाद, पन्त और दिनकर के अनेक काव्य-विम्ब लेखक की चेतना में अनायास ही उद्बुद्ध होने लगे।

कालिदास ने तो हिमालय को पृथ्वी का मानदण्ड कह दिया। जो उनकी कल्पना के विराट स्वरूप का दिग्दर्शन है। हिमालय का सम्बन्ध शंकर भगवान से है, अतः इन प्रसंगों को कालिदास ने आनन्द-कल्पना के अंग बनाकर भव्य प्रस्तुति की है अपने ग्रन्थों में। कवि ने अपनी भक्ति के फूल इस हिमालय के सैकड़ों-हजारों बिम्बों के प्रति अर्पित किए हैं। परमश्रद्धेय जयशंकर प्रसाद जी ने तो हिमालय को प्रलय के बाद आर्विभूत प्रथम रचना के रूप में चित्रित किया है। हिमालय अपने उत्तुंग शिखरों से सुमण्डित दिगन्तव्यापी कलेवर से संयुक्त होने से उसकी प्रलय समाधि अभी भी भंग नहीं हुई है।

प्रकृति के कोमल चित्रों को उभारने वाले पंत जैसे महान् प्रकृति कवि के भव्य चित्र लेखक के मानस पटल पर अंकित होने लगे। कालिदास की अमर कृति ‘कुमार सम्भव’ के उदात्त कोमल प्रसंग चलचित्र के समान लेखक के मन में फेरी लगाने लगे। इस हिमालय के किसी प्रान्तर की निमृत गुफाओं में उमा ने शंकर को वरण करने की अभिलाषा से तपस्या की होगी। सम्भवतः यहीं कहीं निकटवर्ती कैलाश पर्वत के किसी शिखर पर त्रिनेत्र (शंकर) ने अपने तीसरे नेत्र की प्रचण्ड अग्नि शिखाओं से कामदेव को भस्म किया होगा।

इसी बीच लेखक को अपनी मातृभूमि, भारत के सीमा सम्बन्धी संकटों की स्मृति कौंधने लगी और महाकवि ‘दिनकर’ की ओजस्वी वाणी उसके कानों में इस प्रकार गूंजने लगी-

“जिसके द्वारों पर खड़ा क्रान्त,
सीमापति! तूने की पुकार,
पद दलित इसे करना पीछे,
पहले ले मेरा सिर उतार।”

हिमालय पर्वत को पर्वतों का राजा कहते हैं। नग का अर्थ पर्वत होता है, अतः इसे नगाधिराज भी सम्बोधित करते हैं। लेखक अपने नाम के साथ भी हिमालय का सम्बन्ध जोड़ता है-नगेन्द्र-नग + इन्द्र = पर्वतों का राजा। लेखक की कल्पना में हिमालय देवभूमि, देवात्मा, नगाधिराज, पृथ्वी का मानदण्ड न जाने कितने रूपों और नामों से सम्बोधित किए जाते हुए विराजमान हैं।

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प्रश्न 2.
नेपाल में लेखक के ठहरने की क्या व्यवस्था थी? संक्षिप्त में लिखिए।
उत्तर:
नेपाल में ठहरने की व्यवस्था विश्वविद्यालय की ओर से होटल में की गई थी। किन्तु लेखक के मित्र ने इस प्रस्ताव को रद्द कर दिया। लेखक से उसके मित्र महोदय ने आग्रह किया कि वे उसके (मित्र के) घर पर ही चलें। वहाँ ठहरें। मित्र के आग्रह से लेखक ने उसके घर पर ही ठहरना स्वीकार किया। लेखक महोदय मित्र के घर पहुँच गए। चाय पीते-पीते सन्ध्या हो गई। अतः शहर में ही घूमने का कार्यक्रम बनाया। काठमाण्डू-नया शहर और पुराना शहर-दो भागों में अवस्थित है। इस तरह अन्य बहुत सी बातें करते हुए रात्रिकाल को विश्राम किया। दूसरे दिन दर्शनीय स्थलों के देखने के लिए निश्चित किया। मित्र के आवास पर निवास चित्ताकर्षक और प्रसन्नता देने वाला रहा।

प्रश्न 3.
काठमाण्डू भ्रमण के बाद लेखक के अनुभव अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
काठमाण्डू में काष्ठमण्डप शहर के मध्यभाग में स्थित है। यह काष्ठमण्डप महावृक्ष के काष्ठ से निर्मित है। शुरू में यह यात्रियों का विश्राम गृह था। धीरे-धीरे देव भावना का समावेश हो जाने पर देवस्थान बन गया। इसमें कोई भी शिल्प सौन्दर्य नहीं है। कृष्ण मंदिर बागमती नदी के पास नगर से कुछ मील की दूरी पर है। यह मंदिर दो हजार वर्ष पुराना है। इसके निर्माण में चूने का प्रयोग नहीं किया गया है। वास्तुकला का अद्भुत चमत्कार है। स्वयंभूनाथ का मंदिर पर्वत खण्ड के विराट् भूभाग पर स्थित है। इसके विग्रह में चारों ओर आँखें लगी हैं जो चतुर्दिक दृकपात करती हैं और नगर को सुरक्षा देती हैं।

काठमाण्डू दर्शन और भ्रमण के बाद लेखक का अनुभव है कि भारत और नेपाल दोनों देश सांस्कृतिक और सामाजिक रूप से अति समृद्ध देश हैं। यह शैव, शाक्त और बौद्ध धर्मों का केन्द्र रहा है। बौद्ध, शाक्त और शैव-हिन्दू धर्म के विशिष्ट सम्प्रदाय हैं। नेपाल विश्व में एक ही हिन्दू राज्य है। यह न तो भारत की तरह धर्मनिरपेक्ष हैं और न पाकिस्तान की तरह धर्म प्रतिबद्ध। नेपाल इस बात का प्रमाण है कि हिन्दू धर्म को उसके सहज उदार रूप में स्वीकार कर लेने के बाद धर्म निरपेक्षता उतनी अनिवार्य नहीं रहती। अनेक हिन्दू-प्रथाएँ जो आज भारत में विलुप्त हैं, वे आज भी वहाँ की व्यावहारिक संस्कृति का अंग हैं। नेपाल और भारत के सम्बन्ध अत्यन्त आत्मीय तथा सौहार्द्रपूर्ण हैं-संस्कृति और धर्म की समानता चिरकाल से दोनों राष्ट्रों को स्नेहबन्ध पान में बाँधे हुए है।

प्रश्न 4.
भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन के समय लेखक ने क्या-क्या देखा? लिखिए।
उत्तर:
सन् 1967 ई. के मार्च की नौवीं तारीख थी। उस दिन लेखक का जन्मदिन था तथा महाशिव रात्रि का पर्व भी था। अतः रात्रि को भगवान पशुपतिनाथ के दर्शन का कार्यक्रम बनाया गया। लेखक अपने मित्र के सहयोग से मन्दिर परिसर में गाड़ी से पहुँच सका। मंदिर के प्रांगण में नंगे पैर ही प्रवेश करना था, वहाँ कीचड़ थी, अतः मोजे पहनने की सुविधा नहीं थी। साधारण रूप से लेखक को जाड़े की रात्रि में यह सब कष्ट साध्य तो था ही लेकिन अब तो वहाँ लेखक के लिए कोई अन्य गति भी नहीं थी। लेखक से मित्र श्रद्धालु बोला-भगवान पशुपतिनाथ के मंदिर में किसी बात का भी डर नहीं है। लेखक और उनके मित्र महोदय धक्के-मुक्के खाते देव-विग्रह के पास पहुँच ही गए। वहाँ प्रत्येक श्रद्धालु अपनी श्रद्धा और भक्ति भाव से भगवान को प्रणाम कर रहा था और आगे बढ़ रहा था। वहाँ अधिक समय तक रुकने की कोई सम्भावना नहीं थी।

लेखक ने देखा कि भगवान पशुपतिनाथ के मन्दिर के परिसर में भक्तों की अपार भीड़ सभी दिशाओं से उमड़ पड़ रही थी। मन्दिर के चारों ओर दूर-दूर तक तीर्थयात्रियों के तम्बू लगे हुए थे। यात्रियों की सुविधा के लिए दुकाने भी सजी हुई थीं जिनसे यात्रीजन अपनी आवश्यक वस्तुएँ खरीद सकते थे।

प्रश्न 5.
नेपाल के ‘त्रिभुवन विश्वविद्यालय’ का वर्णन अपने शब्दों में कीजिए।
उत्तर:
नेपाल का त्रिभुवन विश्वविद्यालय काठमांडू से कई मील दूर कीर्तिपुर नामक उपनगर में बन रहा है। इसका केवल प्रशासनिक खंड व दीक्षांत भवन बन चुके थे। विज्ञान विभाग की इमारतें बन रही थीं। विश्वविद्यालय के प्रवेश द्वार पर नागर अक्षरों में त्रिभुवन विश्वविद्यालय लिखा हुआ है और दीर्घा के भीतर सामने की दीवार पर नेपाली भाषा में उसकी स्थापना का संक्षिप्त इतिवृत्त दिया हुआ है। विश्वविद्यालय परिदृश्य अत्यन्त भव्य है। वह विशाल भूखण्ड, जिस पर विश्वविद्यालय स्थित है, पर्वतमाला से घिरा हुआ अर्द्धचन्द्राकार है।

निर्माण कार्य पूरा होने पर त्रिभुवन विश्वविद्यालय का परिवेश प्राकृतिक और मानवीय कला के संयोग से एक अपूर्व गरिमा से मण्डित हो जाएगा। विश्वविद्यालय की स्थापना सन् 1960 ई. में हुई थी। इसके अन्तर्गत कला, सामाजिक विज्ञान और भौतिक विज्ञान के प्रायः सभी प्रमुख विभाग और देश के विभिन्न भागों में स्थापित 35-36 स्नातक विद्यालय हैं। विभिन्न विषयों के लिए नेपाल के सुयोग्य नागरिकों के अतिरिक्त, भारत और अमरीका आदि के विशेषज्ञ विद्वानों की नियुक्ति की जाती है।

भारत सहयोग-संस्थान की ओर से 20-25 भारतीय प्राध्यापक वहाँ भिन्न-भिन्न विभागों में कार्य कर रहे हैं। हिन्दी विभाग में एक आचार्य (प्रोफेसर) एक उपाचार्य (रीडर) तथा कई प्राध्यापक हैं। नेपाल के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण हिन्दी और संस्कृत में वहाँ के छात्रों की विशेष रुचि है। कुलपति महादेय के अनुरोध पर मैंने पाठ्यक्रम और शोध व्यवस्था आदि के विषय में हिन्दी विभाग के सहयोगी-बन्धुओं से विचार-विनिमय किया और तुलनात्मक अनुसंधान पर विशेष बल देने पर परामर्श किया। नेपाल के प्राचीन ग्रंथागारों में अपार सामग्री भरी पड़ी है। वह प्रायः संस्कृत और पालि भाषा में है। परन्तु मैथिली हिन्दी के ग्रंथों का भी संग्रह काफी है। उनका सम्पादन और प्रकाशन निश्चय ही उपयोगी होगा।

काठमाण्डू दर्शन अति लघु उत्तरीय प्रश्न

प्रश्न 1.
नेपाल किन-किन धर्मों का केन्द्र रहा है?
उत्तर:
नेपाल शैव, शाक्त और बौद्ध धर्मों का केन्द्र रहा है।

प्रश्न 2.
नेपाल के त्रिभुवन विश्वविद्यालय की स्थापना कब हुई थी?
उत्तर:
नेपाल के कीर्तिपुर नामक उपनगर में बने त्रिभुवन विश्वविद्यालय की स्थापना सन् 1960 में हुई थी।

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काठमाण्डू दर्शन पाठ का सारांश

प्रस्तावना :
भारत की राजधानी दिल्ली से नेपाल की यात्रा मुश्किल से तीन घण्टे की है। यह यात्रा फॉकर फ्रेण्डशिप विमान से करनी थी। लेखक के परिवार और अन्तरंग वृत्त में थोड़ी सी हलचल मच गई। थोड़ी सी उत्तेजना भी उत्पन्न हुई।

व्यवस्था :
नेपाल में उस समय शीत ऋतु होने के कारण गर्म कपड़ों के विषय में परिवार के सदस्यों ने बहुत चर्चा की। मेरा ओवरकोट पुराना था। लोगों ने नए ओवरकोट को खरीदने का प्रस्ताव रखा। समय का अभाव था, अतः फिर अगले मौसम तक इसकी खरीद टल गई।

पासपोर्ट आदि का बन्धन नेपाल यात्रा के लिए बाधक नहीं था। भारत और नेपाल की निकटता परस्पर सद्भाव और सहयोग के कारण दोनों देशों के नागरिकों को यह सुविधाएँ प्राप्त हैं।सीमा शुल्क विभाग बहुत सतर्क है। इसकी ओर से तलाशी पूरी-पूरी तरह ली जाती है। सीमा शुल्क के लिए अधिकारी महोदय के सौजन्य से वापस आने और जाने में सुविधा मिल गई क्योंकि वे अधिकारी महोदय मेरे पूर्व छात्र थे।

नेपाल के लिए उड़ान-फॉकर फ्रण्डशिप विमान से पूर्वाह्न 11:30 बजे यह उड़ान शुरू हुई। लगभग डेढ़ घण्टे में हम लोग गोरखपुर की सीमा पार कर हिमालय की तराई में पहुँच गए। सारा वन प्रदेश था जो घने वृक्षों से ढंका हुआ था। चारों ओर हरीतिमा का समुद्र हिलोरें मार रहा था। घने होने से अन्धकारमय वन प्रदेश लेखक ने जीवन में पहली बार देखा। हिमालय के दर्शन हुए। कालिदास, जयशंकर प्रसाद, पन्त और दिनकर द्वारा निर्मित इसके विविध बिम्ब मेरी चेतना में उभरने लगे। दिनकर ने तो सीमा संकट को समाप्त करने के लिए ओजस्वी वाणी में कहा-

“जिसके द्वारों पर खड़ा क्रान्त,
सीमापति! तूने की पुकार,
पद दलित इसे करना पीछे,
पहले ले मेरा सिर उतार …।”

लेखक का नामकरण :
लेखक का नाम इनके पितामह ने नागों के उपासक नगाइच वंश से सम्बन्धित होने के कारण नागेन्द्र रखा जो बाद में नगेन्द्र (पर्वतों का राजा) हो गया। मेरे अन्दर शब्द-अर्थ का सौन्दर्य जागृत हो गया। अत: नगेन्द्र ही अधिक उपयुक्त लगा। अब हमारे विमान की परछाईं पर्वत पर इस तरह लग रही थी मानो किसी देवमन्दिर के रजत-शिखर पर छोटा सा पतंगा मंडरा रहा है। कल्पना और यथार्थ का भेद इस तरह ज्ञात हो रहा था।

काठमाण्डू :
एक अर्द्धवृत्ताकार घाटी-नेपाल राज्य में प्रवेश कर पर्वत श्रेणियों को पार करते ही विमान काठमाण्डू घाटी में उतरने लगा। लेखक कुर्सी पेटी बाँधकर हवाई अड्डे पर उतरने को तैयार हो गया। यह हवाई अड्डा मध्यम श्रेणी का है। हिमालय के पर्वत शिखरों की पृष्ठभूमि में उड़ते हुए विमान को देखकर पुराणों में वर्णित देव-गन्धर्वो के विमानों का स्मरण हो आया। इसी तरह उड़ते होंगे। काठमाण्डू शहर एक अर्द्धवृत्ताकार घाटी में स्थित है। विश्वविद्यालय की ओर से होटल में ठहरने की व्यवस्था को मेरे मित्र ने रद्द कर दिया और मैं उन मित्र महोदय के आग्रह पर उनके घर चला गया। नेपाल पर्यटकों का स्वर्ग कहा जाता है। मित्र महोदय ने वहाँ के दर्शनीय स्थलों के देखने की तालिका तैयार कर ली।

काठमाण्डू :
एक रंगीन पहाड़ी शहर-काठमाण्डू एक रंगीन पहाड़ी शहर है जिसमें नए और पुराने का अनमोल मिश्रण है। शहर का नया भाग आधुनिक ढंग का बना हुआ है। इसमें दूतावास की एवं पाश्चात्य उपयोगी वास्तुकला की इमारते हैं। सड़कें पक्की और साफ हैं। काठमाण्डू के पुराने हिस्से में स्थानीय लोगों के मकान हैं जिनका निर्माण लकड़ी और मिट्टी से किया गया है। पत्थर का प्रयोग बहुत कम किया गया है। सम्पन्न व्यक्तियों के विशेषकर राणा परिवार के सदस्यों के भवन सामन्तीय ढंग के हैं। उनके चारों ओर प्राचीर है और भीतर पहाड़ी शैली के गढ़ीनुमा मकान हैं। इनमें एक प्रकार के अनगढ़ पौरुष का आभास मिलता है। राजमहल में नई और पुरानी वास्तु शैली का मिश्रण है। बाहर की प्राचीर जहाँ पुराने ढंग की है, वहीं भीतर के भवन नए ढंग के नये साज सामान से लैस हैं।

सरकारी भवन :
सरकारी भवनों का निर्माण नए ढंग से किया गया है। परन्तु प्रधानमंत्री तथा मंत्रिमंडल के अन्य सदस्य वहाँ नहीं रहते। वे अपने खानदानी मकानों में ही रहते हैं।

शहर का पुराना भाग बहुत साफ-सुथरा नहीं है। वहाँ का वातावरण और परिवेश उत्तर प्रदेश के उत्तर-पूर्वी शहरों का सा है।

काठमाण्डू के बाजार :
काठमांडू के बाजार में विचित्रता है, रंगीनगी है। सुदूर पूर्व एशिया, चीन भारत और अब अमेरिका का माल यहाँ विदेशी कीमत पर मिलता है। नेपाल की रंग-बिरंगी चीजें बाजार के आकर्षण को बढ़ा देती हैं। खाने-पीने की चीजें वहाँ बहुत महँगी हैं।

नगर के विशेष स्थान पर चौक और चौराहों पर-महाराजाधिराज महेन्द्र व महारानी के चित्र लगे हुए हैं। इन चित्रों के नीचे संस्कृतनिष्ठ नेपाली भाषा में देवनागरी अक्षरों में हिन्दू राजभक्ति परम्परानुसार राजदम्पत्ति की मंगल प्रशस्तियाँ अंकित हैं। वहाँ सभी जगह-मार्गों, हाटों, प्रशासनिक इमारतों पर नेपाली भाषा का ही प्रयोग किया गया है। कहीं पर भी ‘अन्तर्राष्ट्रीय भाषा’ का प्रयोग नहीं किया गया है।

नेपाल के प्रमुख स्थान :
समय का अभाव होने के कारण मुख्य रूप से तीन प्रमुख स्थानों को देखने का कार्यक्रम बन सका-(1) नगर में स्थित काष्ठमंडप, (2) स्वयंभूनाथ और (3) पाटन का कृष्ण मंदिर।

काष्ठमंडप शहर के मध्यभाग में अवस्थित है। इसका रूप और आकार पगोडा के समान है। सम्पूर्ण मण्डप एक ही महावृक्ष के काष्ठ से निर्मित है। काठमांडू काष्ठ मंडप का ही तद्भव है।

स्वयंभूनाथ का मंदिर एक पर्वत खण्ड के ऊपर विराट् भूमिका पर स्थित है। इस मंदिर का प्रमुख आकर्षण है–स्वर्णपत्र से मंडित भगवान बुद्ध की विशाल प्रतिमा। इस प्रतिमा में चारों ओर दो-दो आँखें लगी हैं जो मानो एक चिर सजग प्रहरी हो और चतुर्दिक दृक्पात करता हुआ नगर की रक्षा कर रहा हो।

पाटन के कृष्ण मंदिर को देखने के लिए बागमती नदी पार करके कुछ मील दूर जाना पड़ता है। पाटन नगर एक छोटा सा उपनगर है। जहाँ हर जगह छोटे-छोटे मन्दिर या मूर्ति गृह बने हैं। यह कृष्ण मंदिर प्रायः दो हजार वर्ष पुराना है। इसके निर्माण में चूने का प्रयोग नहीं हुआ है। वास्तुकला का यह अद्भुत चमत्कार है जो बिना चूने के इतना मजबूत बना है।

नेपाल-विश्व में एकमात्र हिन्दू राज्य :
नेपाल विश्व में एकमात्र हिन्दू राज्य है। वह भारत वर्ष की भाँति धर्म निरपेक्ष राज्य नहीं है और न पाकिस्तान की तरह धर्म प्रतिबद्ध। नेपाल सदा से ही शैव, शाक्त और बौद्ध धर्मों का केन्द्र रहा है।

भारत और नेपाल के सम्बन्ध :
भारत में विलुप्त अनेक हिन्दू-प्रथाएँ, आज भी वहाँ की व्यावहारिक संस्कृति का अंग हैं। नेपाल और भारत के सम्बन्ध अत्यन्त आत्मीय तथा सौहार्द्रपूर्ण हैं-संस्कृति और धर्म की समानता चिरकाल से दोनों राष्ट्रों को स्नेह बन्धन में बाँधे हुए है।

भगवान पशुपति नाथ के दर्शन :
रात्रि में भगवान पशुपति नाथ के दर्शन के लिए गए। यह शिवरात्रि का पर्व था। संयोग से उस दिन 09 मार्च थी जो लेखक का जन्मदिन था। भक्तों की अपार भीड़ उमड़ रही थी। मंदिर के प्रांगण में नंगे पाँव प्रवेश किया। थोड़ा कष्ट उठाते हुए देव विग्रह के समीप पहुँचे। भगवान को प्रणाम किया।

दस मार्च :
लेखक को 10 मार्च के दिन नेपाल में भारतीय राजदूत श्री श्रीमन्नारायण से मिलना था। वैदेशिक शिष्टाचार के अनुसार उनसे मिला।

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त्रिभुवन विश्वविद्यालय :
वहाँ से विश्वविद्यालय की नई इमारत की ओर चल दिया। यह इमारत काठमाण्डू से कई मील दूर कीर्तिपुर नामक उपनगर में है। विश्वविद्यालय का नाम ‘त्रिभुवन विश्वविद्यालय’ है। इसकी दीर्घा में इसका संक्षिप्त इतिवृत्त दिया हुआ है। जो नेपाली 389 भाषा में है। यह विश्वविद्यालय भव्य आकर्षक विशाल भूमि खण्ड पर स्थित है। पर्वतमाला से घिरा हुआ अर्धचन्द्राकार है। यहाँ प्रकृति और मानव कृति का अद्भुत संयोग है। इस विश्वविद्यालय की स्थापना 1960 ई. में हुई थी।

विश्वविद्यालय का विस्तार :
इस विश्वविद्यालय में-कला, सामाजिक विज्ञान और भौतिक विज्ञान के प्रायः सभी प्रमुख विभाग हैं और देश के विभिन्न भागों में स्थापित 35-36 स्नातक विद्यालय हैं।

विभिन्न विषयों के अध्यापक :
विभिन्न विषयों के अध्यापन के लिए नेपाल के सुयोग्य नागरिकों के अतिरिक्त भारत और अमेरिका आदि के विशेषज्ञ विद्वानों की नियुक्ति की जाती है। भारत सहयोग संस्थान की ओर से 20-25 भारतीय प्राध्यापक वहाँ विभिन्न विभागों में कार्य कर रहे हैं। हिन्दी विभागों में एक आचार्य (प्रोफेसर), एक उपाचार्य (रीडर) तथा कई प्राध्यापक हैं। नेपाली भाषा के साथ घनिष्ठ सम्बन्ध होने के कारण हिन्दी और संस्कृत में वहाँ के छात्रों में विशेष रुचि है।

प्राचीन ग्रंथागारों में अपार सामग्री भरी पड़ी है। वह सामग्री प्रायः संस्कृत और पालि भाषा में है। इसके साथ ही मैथिली हिन्दी का काफी संग्रह है। इन सबका सम्पादन और प्रकाशन निश्चय ही बहुत उपयोगी होगा।

उपसंहार :
अब लेखक के लौटने का दिन 11 मार्च, 1967 था। मध्याह्न में नेपाल-विमान-सेवा से हवाई जहाज से दिल्ली लौटना था। अतः 10.30 बजे हम लोग हवाई अड्डे के लिए चल दिए। यूरोप से कोई विशेष अतिथि नेपाल आ रहे थे। अतः हवाई अड्डे के मार्ग जल्दी बंद हो गए। हमारे विमान में अभी दो-तीन घण्टे का विलम्ब था। हवाई जहाज के आने पर मैंने अपने अतिथेय बन्धुओं से विदा ली। अपरिचित प्रदेश में उनके कारण सभी तरह की सुख-सुविधा रही। यह विमान भी फॉकर फ्रेण्डशिप था। यहाँ सारी सूचनाएँ नेपाली भाषा में दी जाती हैं। समय से लेखक पालम पर उतर गया। उन्हें लेने के लिए बच्चे और परिवार के सदस्य वहाँ पहले से ही खड़े हुए थे। दिल्ली जनपथ से ही उनकी अभिलषित चीजें खरीदकर र्दी क्योंकि नेपाल से कोई भी वस्तु खरीदकर लाई नहीं जा सकती थी।

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