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MP Board Class 10th Social Science Solutions Chapter 11 स्वातंत्र्योत्तर भारत की प्रमुख घटनाएँ
MP Board Class 10th Social Science Chapter 11 पाठान्त अभ्यास
MP Board Class 10th Social Science Chapter 11 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
सही विकल्प.चुनकर लिखिए
प्रश्न 1.
भारत और चीन युद्ध कब हुआ था ? (2014)
(i) 11 जुलाई, 1962
(ii) 20 अक्टूबर, 1962
(iii) 20 अगस्त, 1964
(iv) 11 जुलाई, 19651
उत्तर:
(ii) 20 अक्टूबर, 1962
प्रश्न 2.
1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का कारण क्या था ?
(i) कच्छ का रणक्षेत्र
(ii) आजाद कश्मीर
(iii) राजस्थान का जैसलमेर
(iv) भारत पर जासूसी।
उत्तर:
(i) कच्छ का रणक्षेत्र
प्रश्न 3.
लाखों शरणार्थी भारत में आए
(i) श्रीलंका से
(ii) बांग्लादेश से
(iii) पाकिस्तान से
(iv) चीन से।
उत्तर:
(ii) बांग्लादेश से
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
- भारतीय संविधान में अनुच्छेद ……………. के अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा दिया गया है।
- चीन और जापान युद्ध सन् ……………. में शुरू हुआ था।
- 1971 के भारत-पाक युद्ध के बाद ……………. देश का निर्माण हुआ।
- राष्ट्रीय आपातकाल अब तक ……………. बार घोषित हो चुका है।
उत्तर:
- 370
- 1937
- बांग्लादेश
- तीन।
सही जोड़ी मिलाइए
उत्तर:
- → (ङ)
- → (घ)
- → (ख)
- → (क)
- → (ग)
MP Board Class 10th Social Science Chapter 11 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत ने जिन प्रक्षेपास्त्रों को बनाया है, उनके नाम लिखें।
उत्तर:
भारत ने जिन प्रमुख प्रक्षेपास्त्रों का विकास किया उनमें प्रमुख हैं – ‘पृथ्वी’, ‘त्रिशूल’, ‘नाग’, ‘आकाश’।
प्रश्न 2.
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् ने कश्मीर समस्या समाधान के लिए किन पाँच देशों का दल बनाया था ? लिखिए।
उत्तर:
संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद् ने इस समस्या के समाधान के लिए पाँच राष्ट्रों चैकोस्लावाकिया, अर्जेण्टाइना, अमेरिका, कोलम्बिया और बेल्जियम के सदस्यों का एक दल बनाया। इस दल को मौके पर जाकर . स्थिति का अवलोकन करना था और समझौते का मार्ग ढूँढ़ना था।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 11 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार से कबाइलियों का मार्ग बन्द करने को क्यों कहा था ? लिखिए। (2017)
अथवा
महाराजा हरिसिंह ने भारत सरकार से सहायता कब और क्यों माँगी थी? (2012, 16)
उत्तर:
कश्मीर भारत की उत्तर – पश्चिम सीमा पर स्थित होने के कारण भारत और पाकिस्तान दोनों को जोड़ता है। 22 अक्टूबर, 1947 को उत्तर-पश्चिम सीमा प्रान्त के कबाइलियों और अनेक पाकिस्तानियों ने कश्मीर पर आक्रमण कर दिया। पाकिस्तान कश्मीर को अपने में मिलाना चाहता था। अतः उसने अपनी सीमाओं पर सेना को इकट्ठा कर चार दिनों के भीतर ही हमला कर आक्रमणकारी श्रीनगर से 25 मील दूर बारामूला तक आ पहुँचे। कश्मीर के शासक (राजा हरिसिंह) ने आक्रमणकारियों से अपने राज्य को बचाने के लिए भारत सरकार से सैनिक सहायता माँगी, साथ ही कश्मीर को भारत में सम्मिलित करने की प्रार्थना की।
प्रारम्भ में पाकिस्तान सरकार ने अधिकाधिक रूप से कश्मीर के बारे में कोई मत व्यक्त नहीं किया था। अतः भारत सरकार ने पाकिस्तान सरकार से कबाइलियों का मार्ग बन्द करने को कहा, परन्तु जब इस बात के प्रमाण मिलने लगे कि पाकिस्तान सरकार कबाइलियों की सहायता कर रही है तो गवर्नर जनरल लॉर्ड माउण्टबेटन की सलाह पर जनवरी 1948 में भारत सरकार ने सुरक्षा परिषद् में शिकायत की।
प्रश्न 2.
भारत और चीन युद्ध के क्या परिणाम हुए ? लिखिए। (2009, 10, 11, 14, 15, 18)
उत्तर:
भारत-चीन युद्ध के परिणाम – भारत-चीन युद्ध के निम्नलिखित निकटवर्ती व दूरगामी परिणाम सामने आये
- भारत-चीन सम्बन्ध तनावपूर्ण हो गये।
- भारत की अन्तर्राष्ट्रीय छवि एवं गुटनिरपेक्ष नीति को धक्का लगा।
- भारत के भू-भाग का एक बड़ा भाग चीन के कब्जे में चला गया।
- चीन-पाकिस्तान में नवीन सम्बन्ध स्थापित हुए।
- भारतीय विदेशी नीति में आदर्शवाद के स्थान पर व्यावहारिकता और यथार्थवाद को स्थान मिला।
- भारत-अमेरिका के सम्बन्धों में सुधार हुआ।
प्रश्न 3.
ताशकन्द समझौते की शर्ते लिखिए। (2009, 11, 14, 15)
अथवा
ताशकन्द समझौता क्या है ? इसकी शर्तों का उल्लेख कीजिए। (2010,17)
उत्तर:
ताशकन्द समझौता – सन् 1965 के भारत-पाक युद्ध विराम के बावजूद युद्ध क्षेत्रों में झड़पें बन्द नहीं हुई थीं। इस स्थिति को समाप्त करने के लिए सोवियत संघ ने विशेष रुचि ली सोवियत संघ ने दोनों पक्षों को वार्ता के लिए ताशकन्द आमन्त्रित किया। 4 जनवरी, 1966 को पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खाँ तथा भारत के प्रधानमन्त्री लालबहादुर शास्त्री के मध्य ताशकन्द में वार्ता आरम्भ हुई। अन्तत: 10 जनवरी, 1966 को ऐतिहासिक ताशकन्द समझौते पर दोनों पक्षों ने हस्ताक्षर किये।
ताशकन्द समझौते की शर्ते
इस समझौते की महत्त्वपूर्ण शर्ते निम्नलिखित थीं –
- दोनों पक्षों ने अच्छे पड़ोसियों जैसे सम्बन्ध निर्माण करने पर सहमति व्यक्त की।
- दोनों पक्षों ने यह सहमति व्यक्त की कि वे 5 अगस्त, 1965 के पूर्व जिस स्थिति में थे वहाँ अपनी सेनाओं को वापस बुला लेंगे। दोनों पक्ष युद्धविराम की शर्तों का पालन करेंगे।
- दोनों पक्षों ने एक-दूसरे के आन्तरिक मामलों में हस्तक्षेप न करने, एक-दूसरे के विरुद्ध प्रचार को रोकने तथा पुनः राजनयिक सम्बन्धों की स्थापना का निर्णय लिया।
इसके अन्तर्गत आर्थिक, व्यापारिक, सांस्कृतिक सम्बन्धों को मधुर बनाने पर भी सहमति व्यक्त की गयी।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 11 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत-चीन युद्ध में एकतरफा युद्धविराम की घोषणा चीन ने क्यों की ? वर्णन कीजिए। (2011, 13, 16)
उत्तर:
चीन के साथ भारत के अत्यन्त प्राचीन सम्बन्ध रहे हैं। भारत और चीन के मध्य तिब्बत को लेकर की स्थिति उत्पन्न हुई। भारत तिब्बत पर चीन के अधिकार को स्वीकार करने को तैयार था परन्तु वहाँ एक स्वायत्त शासन स्थापित करने का पक्षधर भी था। चीन ने भारत की मंशा को अनदेखा करते हुए 25 अक्टूबर, 1950 को तिब्बत पर सैनिक कार्यवाही शुरू कर दी। भारत ने चीन की इस कार्यवाही का विरोध किया। मार्च 1958 में तिब्बत में चीन के विरुद्ध विद्रोह शुरू हो गया। विद्रोहियों को दलाईलामा का समर्थन प्राप्त था। जब चीन ने विद्रोह को कुचलने का प्रयास किया तो दलाईनामा को तिब्बत छोड़कर भागना पड़ा। दलाईनामा को भारत ने शरण दी जिससे दोनों राष्ट्रों के मध्य ‘शीत युद्ध’ शुरू हो गया। इसक साथ ही चीन ने सीमा विवाद शुरू कर दिया। सन् 1960 में भारत और चीन के प्रधानमनी दिल्ली में सीमा विवाद पर बात करने के लिए मिले लेकिन 8 सितम्बर, 1962 को चीन ने भारत-चीन सीमा के पूर्वी क्षेत्र अर्थात् भारतीय ने नेफा क्षेत्र पर आक्रमण कर दिया। चीनी फौजों ने 20 अक्टूबर, 1962 को भारत-चीन सीमा पर तैनात भारतीय फौजों पर आक्रमण कर दिया।
अक्टूबर 1962 का युद्ध कोई आकस्मिक घटनाक्रम नहीं था। यह सब उन घटनाओं की चरम परिणति. थी जो तिब्बत संकट को देखने के बाद आईं। चीन द्वारा मैकमोहन रेखा को अस्वीकार किया गया और यह आक्रमण लद्दाख के अक्साई चीन और पूर्व में नेफा (वर्तमान में अरुणाचल प्रदेश) में व्यापक पैमाने पर हुआ। इस दौरान युद्ध-विराम के सुझाव अवश्य सामने आए किन्तु कोई समझौता नहीं हो सका। चीन ने एकतरफा युद्ध-विराम की घोषणा की।
चीन द्वारा एकतरफा युद्ध-विराम की घोषणा के कारण
भारत – चीन युद्ध की पृष्ठभूमि का अध्ययन करने पर कुछ बातें सामने आती हैं। जैसे— चीन द्वारा भारत पर अचानक आक्रमण क्यों किया गया ? युद्ध में भारत को पराजय क्यों मिली ? और चीन द्वारा एकतरफा युद्ध-विराम की घोषणा क्यों की गई ? विद्वानों ने उक्त घटनाओं पर विचारमंथन करने के बाद निम्न विचार प्रस्तुत किये –
- चीन अपनी शक्ति का प्रदर्शन करना चाहता था।
- चीन भारत को अपमानित करना चाहता था।
- चीन की नीति विस्तारवादी थी।
- चीन विश्व में अपनी आर्थिक व राजनैतिक सर्वोच्चता दर्शाना चाहता था।
- चीन भारतीय गुटनिरपेक्षता की नीति को गलत साबित करना चाहता था।
- युद्धविराम की घोषणा करके चीन विश्व समुदाय का समर्थन प्राप्त करना चाहता था।
प्रश्न 2.
कश्मीर समस्या क्या है ? विस्तार से समझाइए। (2009, 10, 14, 18)
उत्तर:
कश्मीर समस्या
कश्मीर की समस्या भारत और पाकिस्तान के मध्य सबसे जटिल समस्या है। स्वतन्त्रता के पश्चात् दो नये राज्य बने, तो देशी रियासतों को स्वतन्त्रता प्रदान की गई कि वह अपनी इच्छानुसार भारत या पाकिस्तान में विलय हो सकती हैं या स्वतन्त्र रह सकती हैं। अधिकांश रियासतें भारत या पाकिस्तान में मिल गईं।
कश्मीर के राजा हरीसिंह ने अपनी रियासत जम्मू-कश्मीर को स्वतन्त्र रखने का निर्णय लिया। राजा हरीसिंह का विचार था कि कश्मीर यदि पाकिस्तान में मिलता है तो जम्मू की हिन्दू जनता और लद्दाख की बौद्ध जनता के साथ अन्याय होगा और यदि वह भारत में मिलता है तो मुस्लिम जनता के साथ अन्याय होगा। अत: उसने यथास्थिति बनाये रखी और विलय के विषय पर तत्काल कोई निर्णय नहीं लिया।
संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रयास – संयुक्त राष्ट्र संघ की सुरक्षा परिषद ने इस समस्या के समाधान के लिए पाँच राष्ट्रों चेकोस्लावाकिया, अर्जेण्टाइना, अमेरिका, कोलम्बिया और बेल्जियम के सदस्यों का एक दल बनाया, इस दल को मौके पर जाकर स्थित का अवलोकन करना था और समझौते का मार्ग ढूँढ़ना था। दल ने मौके पर जाकर स्थिति का अध्ययन किया तथा अपनी रिपोर्ट में निम्न बातों का उल्लेख किया
- पाकिस्तान अपनी सेनाएँ कश्मीर से हटाए तथा कबाइलियों और ऐसे लोगों को जो कश्मीर के निवासी नहीं हैं, वहाँ से हटाने का प्रयास करें।
- जब पाकिस्तान उपर्युक्त शर्तों को पूर्ण कर लेगा तब आयोग के निर्देशों पर भारत भी अपनी सेनाओं का अधिकांश भाग वहाँ से हटा ले।
- अन्तिम समझौता होने तक युद्धविराम की स्थिति रहेगी और भारत कश्मीर में स्थानीय अधिकारियों के सहयोग के लिए उतनी ही सेनाएँ रखेगा जितनी कानून और व्यवस्था बनाए रखने के लिए आवश्यक होगा।
जनमत संग्रह के प्रयास – रिपोर्ट के आधार पर दोनों पक्षों में लम्बी वार्ता के बाद 1 जनवरी, 1949 को युद्धविराम के लिए सहमत हो गए। कश्मीर के विलय का निर्णय जनमत संग्रह के आधार पर होना था। संयुक्त राष्ट्र संघ ने जनमत संग्रह की शर्तों को पूर्ण करने के लिए एक अमेरिका अधिकारी को प्रशासक के रूप में नियुक्त किया। प्रशासक ने भारत एवं पाकिस्तान से जनमत संग्रह के आधार पर चर्चा की परन्तु उसका कोई परिणाम नहीं निकला अतः उसने अपने पद से त्यागपत्र दे दिया।
पाकिस्तान की अमेरिका से सन्धि – पाकिस्तान कश्मीर को छोड़ना नहीं चाहता था बल्कि उसका दावा भारत के नियन्त्रण में स्थित कश्मीर पर भी था। अत: उसने अपनी सैनिक शक्ति में वृद्धि की तथा शक्तिशाली राष्ट्र अमेरिका से सन्धि कर अपना पक्ष मजबूत बनाने का प्रयास किया। पाकिस्तान ने सन् 1954 में अमेरिका से सन्धि की और सन् 1955 में वह ‘सेण्टो’ नामक संगठन का सदस्य भी बन गया। इसका सदस्य बनने से उसे अमेरिका की सहानुभूति प्राप्त हुई। इसके बदले उसे कुछ सामरिक अड्डे भी प्राप्त हुए। इन परिस्थितियों में पं. नेहरू ने कश्मीर नीति में परिवर्तन किया। उन्होंने जब तक पाकिस्तान अपनी सेना नहीं हटा लेता तब तक जनमत संग्रह से मना किया। कश्मीर के प्रश्न पर सोवियत संघ ने भारत का समर्थन किया। इस समर्थन से भारत की स्थिति मजबूत हो गयी।
भारत द्वारा जम्मू – कश्मीर को विशेष दर्जा-6 फरवरी, 1954 को कश्मीर की विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर जम्मू-कश्मीर राज्य का विलय भारत में करने की सहमति प्रदान की। भारत सरकार ने 14 मई, 1954 को संविधान में संशोधन कर अनुच्छेद 370 के अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान किया। 26 जनवरी, 1957 को जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू हो गया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ का एक अभिन्न अंग बन गया।
इसके बाद पाकिस्तान निरन्तर कश्मीर का प्रश्न उठाकर वहाँ राजनीतिक अस्थिरता पैदा करने का प्रयास करता रहा है। पाकिस्तान ने इस मामले को सुरक्षा परिषद् में उठाकर जनमत संग्रह की माँग की। पाकिस्तान को इस प्रश्न पर अमेरिका, ब्रिटेन और फ्रांस का समर्थन प्राप्त रहा परन्तु भारत ने इसका विरोध किया। भारत की मित्रता सोवियत संघ के साथ भी थी। अतः सोवियत संघ ने विशेषाधिकार का प्रयोग कर मामले को ठण्डा किया। सन् 1962 में पाकिस्तान ने कश्मीर में पुन: जनमत संग्रह की माँग उठायी परन्तु पुनः सोवियत संघ ने अपने विशेषाधिकार का उपयोग किया।
पाकिस्तान में जितनी सरकारें आयी हैं वे कश्मीर के मुद्दे को जीवन्त रखने का प्रयास करती हैं जबकि भारत के लिए यह मुद्दा उसकी अखण्डता एवं सम्मान का प्रश्न है।
प्रश्न 3.
सन् 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के परिणाम लिखिए। (2009, 11, 12, 13, 15, 17)
उत्तर:
भारत में पाकिस्तानी घुसपैठियों को रोकने के लिए 25 अगस्त, 1965 से दोनों पक्षों की सेनाओं में सीधी लड़ाई आरम्भ हुई। छम्ब-जूरिया क्षेत्र से पाकिस्तान आसानी से आक्रमण कर सकता था। अतः पाकिस्तानी सेनाओं ने आक्रमण किया और अखनूर पर कब्जा कर लिया। पाकिस्तान ने वायुसेना से अमृतसर पर हमला किया। अतः भारतीय सेनाओं ने पाकिस्तानी सेना के दबाव को कम करने के लिए पाकिस्तान के पंजाब प्रदेश पर तीन तरफ से आक्रमण किया। भारतीय सेनाएँ लाहौर की ओर बढ़ीं। यह एक ऐसा अघोषित युद्ध था जिसमें दोनों पक्ष पूर्वी सीमान्त पर पूरी शक्ति के साथ लड़े।
23 सितम्बर, 1965 को संयुक्त राष्ट्र संघ के हस्तक्षेप से युद्ध हुआ। भारतीय सेना युद्धविराम के समय तक पाकिस्तान के 740 वर्गमील क्षेत्र पर अधिकार कर चुकी थी और पाकिस्तान के कब्जे में 240 वर्गमील के लगभग भारतीय क्षेत्र था।
युद्ध के परिणाम – सन् 1965 के युद्ध में भारत को पाकिस्तान पर विजय प्राप्त हुई थी। इस युद्ध के अंग्रलिखित परिणाम हुए –
- पाकिस्तान कश्मीर समस्या का समाधान युद्ध द्वारा करना चाहता था। उसने युद्ध का मार्ग अपनाया परन्तु उसकी मनोकामना पूरी नहीं हुई।
- पाकिस्तान यह सोचता था कि कश्मीर की मुस्लिम जनता उसका साथ देगी, परन्तु ऐसा नहीं हुआ। भारत ने यह सिद्ध किया कि भारतीय धर्मनिरपेक्षता का आधार अत्यन्त मजबूत है।
- पाकिस्तान इस भ्रम में था कि युद्ध के समय चीन उसका साथ देगा, परन्तु ऐसा नहीं हुआ।
- युद्ध के दौरान भारतीय जनता तथा सैनिकों का मनोबल ऊँचा रहा। भारतीय सेना के अधिकांश हथियार स्वदेशी थे।
- भारत-पाकिस्तान के युद्ध में संयुक्त राष्ट्र संघ की महत्त्वपूर्ण भूमिका थी। संयुक्त राष्ट्र संघ को सफलता इसलिए मिली क्योंकि सोवियत संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका ने अपूर्व सहयोग दिया था।
- पाकिस्तान के लिए यह युद्ध घातक सिद्ध हुआ। युद्ध में पराजय ने उसकी सैनिक तानाशाही के खोखलेपन को सिद्ध कर दिया।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 11 अन्य परीक्षोपयोगी प्रश्न
MP Board Class 10th Social Science Chapter 11 वस्तुनिष्ठ प्रश्न
बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू हुआ
(i) 15 अगस्त, 1947
(ii) 15 अगस्त, 1949
(iii) 26 जनवरी, 1957
(iv) 26 जनवरी, 19581
उत्तर:
(iii) 26 जनवरी, 1957
प्रश्न 2.
ताशकन्द समझौते के समय भारत के प्रधानमन्त्री थे
(i) जवाहरलाल नेहरू
(ii) लालबहादुर शास्त्री
(iii) इन्दिरा गांधी
(iv) राजीव गांधी
उत्तर:
(ii) लालबहादुर शास्त्री
प्रश्न 3.
भारत में आपातकाल लागू हुआ था
(i) 25 जून, 1975
(ii) 25 जून, 1972
(iii) 30 जून, 1977
(iv) 30 जून, 1978
उत्तर:
(i) 25 जून, 1975
रिक्त स्थानों की पूर्ति कीजिए
- कश्मीर के राजा ………. ने अपनी रियासत जम्मू-कश्मीर को स्वतन्त्र रखने का निर्णय लिया।
- दलाईलामा को भारत सरकार ने शरण दी जिससे दोनों देशों के मध्य ………. शुरू हो गया।
- 1971 का युद्ध भारत और पाकिस्तान के मध्य ………. दिन तक चला।
उत्तर:
- हरीसिंह
- शीत युद्ध
- 14
सत्य/असत्य
प्रश्न 1.
कश्मीर भारत की उत्तर-पश्चिम सीमा पर स्थित है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 2.
ताशकन्द समझौता भारत और चीन के मध्य हुआ था। (2016)
उत्तर:
असत्य
प्रश्न 3.
सन् 1931 में जापान द्वारा मंचूरिया पर आक्रमण किया गया।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 4.
परमाणु ऊर्जा रेडियोधर्मी तत्वों के विखण्डन से प्राप्त होती है।
उत्तर:
सत्य
प्रश्न 5.
परमाणु प्रसार को रोकने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर पाँच संगठनों की स्थापना की गई है।
उत्तर:
असत्य
जोड़ी मिलाइए
उत्तर:
- → (ख)
- → (ग)
- → (क)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
प्रश्न 1.
भारत और पाकिस्तान के मध्य सबसे अधिक उलझी हुई समस्या है।
उत्तर:
कश्मीर समस्या
प्रश्न 2.
4 जनवरी, 1966 को राष्ट्रपति अयूब खाँ तथा लालबहादुर शास्त्री के मध्य कौन-सी वार्ता आरम्भ हुई ?
उत्तर:
ताशकन्द वार्ता
प्रश्न 3.
वित्तीय संकट के कारण भारत में आपातकाल कितनी बार लगाया गया है ?
उत्तर:
कभी नहीं
प्रश्न 4.
तारापुर परमाणु शक्ति केन्द्र की स्थापना किस वर्ष में की गई ?
उत्तर:
वर्ष 1969 में
प्रश्न 5.
जम्मू-कश्मीर को किस अनुच्छेद के अन्तर्गत विशेष राज्य का दर्जा दिया गया है ? (2017)
उत्तर:
अनुच्छेद 370
MP Board Class 10th Social Science Chapter 11 अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ का एक अभिन्न अंग किस प्रकार बना ?
उत्तर:
6 फरवरी, 1954 को कश्मीर विधानसभा ने एक प्रस्ताव पारित कर जम्मू-कश्मीर-राज्य का विलय भारत में करने की सहमति प्रदान की। भारत सरकार ने 14 मई, 1954 को संविधान में संशोधन कर अनुच्छेद 370 के अन्तर्गत जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा प्रदान किया। 26 जनवरी, 1957 को जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू हो गया। इसके साथ ही जम्मू-कश्मीर भारतीय संघ का एक अभिन्न अंग बन गया।
प्रश्न 2.
सी. टी. बी. टी. क्या है ?
उत्तर:
सी. टी. बी. टी. अर्थात् ‘परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि’, विश्व भर में किये जाने वाले सभी प्रकार के परमाणु परीक्षणों पर रोक लगाने के उद्देश्य से लायी गयी सन्धि या समझौता है।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 11 लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
भारत की विदेशी नीति की प्रमुख विशेषताएँ बताइए।
उत्तर:
भारत की विदेश नीति की प्रमुख विशेषताएँ- भारत की विदेशी नीति की प्रमुख विशेषताएँ निम्नलिखित हैं –
- भारत ने शान्तिपूर्ण सहअस्तित्व के सिद्धान्त में विश्वास करते हुए विश्वशान्ति बनाये रखने के लिए हर सम्भव सहयोग देने की नीति का पालन किया है।
- भारत साम्राज्यीय एवं प्रजातीय विभेद का विरोध करता है और पिछड़े राष्ट्रों की सहायता करने को तत्पर रहता है।
- भारत संयुक्त राष्ट्र संघ तथा उससे सम्बन्धित अन्य संस्थाओं का समर्थन करता है तथा उनसे सहयोग करता है।
प्रश्न 2.
सन् 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की पराजय के प्रमुख बताइए। (2009)
अथवा
सन् 1971 में हुए भारत-पाक युद्ध में पाकिस्तान की पराजय के कारण लिखिए। (2009, 14)
उत्तर:
सन् 1971 के युद्ध में पाकिस्तान की पराजय के प्रमुख कारण-पाकिस्तान की पराजय के प्रमुख कारण अग्रलिखित थे –
- पाकिस्तान सैनिक दृष्टि से भारत से कमजोर था।
- पाकिस्तान का नैतिक पक्ष दुर्बल था। पाकिस्तान ने पूर्वी पाकिस्तान के साथ जो भेदभावपूर्ण नीति अपनायी थी, उसके परिणामस्वरूप वहाँ जन-आन्दोलन आरम्भ हुआ। बंगाली अपनी स्वतन्त्रता के लिए युद्ध लड़ रहे थे।
- पाकिस्तान की सैनिक तानाशाही लोकतान्त्रिक प्रणाली की उपेक्षा कर रही थी। यह उपेक्षा उसके लिए हानिकारक साबित हुई।
- पूर्वी और पश्चिमी पाकिस्तान के मध्य दूरी के कारण पाकिस्तान पूर्वी पाकिस्तान तक सहजता से नहीं पहुँच सकता था। समुद्री मार्ग की भारतीय नौसेना ने घेराबन्दी कर ली थी अत: उसकी सेना को आपूर्ति बन्द हो गयी।
- पाकिस्तान के अत्याचारों से पीड़ित होकर लाखों की संख्या में शरणार्थी भारत आये। इस कारण भारत को पाकिस्तान के मामले में हस्तक्षेप का अवसर मिला।
प्रश्न 3.
आपातकाल क्या है ? स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
स्वतन्त्रता प्राप्ति के पश्चात् भारत को उसके समक्ष मौजूद अनेक समस्याओं का सामना युद्धस्तर पर करना पड़ा। इसी बात को ध्यान में रखकर संविधान निर्माताओं ने केन्द्र सरकार को इस प्रकार की शक्तियाँ प्रदान की जिसमें वह संकटकाल में उत्पन्न स्थितियों का सामना प्रभावशाली ढंग से कर सके। देश की सुरक्षा, एकता तथा अखण्डता को बनाए रखने के लिए भारत के संविधान में कुछ आपातकालीन प्रावधान किये गये हैं। भारत के संविधान में भारत के राष्ट्रपति की आपातकालीन (संकटकालीन) स्थितियों से निपटने के लिए विशेष शक्तियाँ प्रदान की गई हैं।
प्रश्न 4.
भारत में आपातकाल की घोषणा कौन करता है तथा वह कितने प्रकार की होती है ? (2012, 15)
उत्तर:
सामान्यतः आपातकालीन तीन प्रकार के होते हैं जिनकी घोषणा राष्ट्रपति केन्द्रीय मन्त्रिमण्डल के लिखित परामर्श पर कर सकता है –
(1) राष्ट्रीय आपातकाल – भारत के राष्ट्रपति यदि सन्तुष्ट हो जाये कि स्थिति बहुत कठिन है तथा भारत या उसके किसी भाग की सुरक्षा खतरे में है। युद्ध या बाहरी आक्रमण या क्षेत्र के अन्तर्गत सशस्त्र विद्रोह के कारण विकट समस्या हो सकती है। तब ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर राष्ट्रपति मन्त्रिमण्डल की लिखित अनुशंसा पर आपातकाल की घोषणा कर सकता है।
(2) राज्य में संवैधानिकतन्त्र की विफलता से उत्पन्न आपातकाल – राष्ट्रपति किसी राज्य के राज्यपाल की रिपोर्ट पर या किसी अन्य प्रकार से सन्तुष्ट हो जाए कि वहाँ राज्य का शासन विधिपूर्वक चलाया नहीं जा सकता है। ऐसी स्थिति में राष्ट्रपति आपातकाल की घोषणा कर संवैधानिक तन्त्र की विफलता को रोकने का प्रयास करता है। आम बोलचाल की भाषा में इसे राष्ट्रपति शासन कहते हैं।
(3) वित्तीय संकट – यदि राष्ट्रपति सन्तुष्ट हो जाए कि भारत या इसके किसी भाग की वित्तीय स्थिति या साख को खतरा है तो वित्तीय संकट की घोषणा कर सकता है।
प्रश्न 5.
भारत में आपातकाल कब और कितनी बार घोषित किया गया ? (2018)
उत्तर:
आपातकाल की घोषणाएँ-राष्ट्रीय आपातकाल भारत में अब तक तीन बार घोषित किया गया है –
- चीन द्वारा आक्रमण करने पर 26 अक्टूबर, 1962 से 10 जनवरी 1968 तक।
- पाकिस्तान द्वारा आक्रमण के कारण 3 दिसम्बर, 1971 से 21 मार्च, 1977 तक तथा आन्तरिक उपद्रव की आशंका के आधार पर 25 जून, 1975 को भारत में आपातकाल घोषित किया गया।
- राज्य में संवैधानिक तन्त्र की विफलता से उत्पन्न आपातकाल की घोषणा का प्रयोग अनेक बार हुआ है।
वित्तीय संकट के कारण भारत में अभी तक कभी भी आपातकाल नहीं लगाया गया है।
MP Board Class 10th Social Science Chapter 11 दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सन् 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध के परिणाम लिखिए। (2016, 18)
अथवा
सन् 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध का वर्णन कीजिए। (2013)
उत्तर:
सन् 1971 का भारत-पाकिस्तान युद्ध चौदह दिन तक चला। पाकिस्तान के लिए यह युद्ध बड़ा मँहगा सिद्ध हुआ। उसे अपने देश के एक विशाल अंग पूर्वी पाकिस्तान से हाथ धोना पड़ा। पूर्वी पाकिस्तान अब बांग्लादेश के रूप में एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में प्रतिष्ठित हो चुका था। सन् 1971 के भारत-पाक युद्ध के महत्त्वपूर्ण परिणाम निम्नलिखित रहे –
- बांग्लादेश का निर्माण हुआ।
- पाकिस्तान की जनसंख्या शक्ति और क्षेत्रफल कम हुआ।
- सन् 1965 के पश्चात् सन् 1971 में पुनः हार ने पाकिस्तान का मनोबल तोड़ दिया।
- इस युद्ध ने पाकिस्तान से सहानुभूति रखने वाले राष्ट्र अमेरिका और चीन के हौसलों और महत्वाकांक्षा की पराजय हुई।
- भारत को यह समझ में आ गया कि अमेरिका उसका शुभचिन्तक नहीं है। अतः भारत ने सोवियत संघ के साथ मित्रता बढ़ाई।
- भारत-पाकिस्तान युद्ध के समय देश के विभिन्न राजनीतिक दलों ने अपने सारे मतभेद भुला दिये। बांग्लादेश की स्वतन्त्रता एक राष्ट्रीय प्रश्न बन गया था।
- इन बातों का पाकिस्तान की आन्तरिक राजनीति पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा। जनता ने राष्ट्रपति याहियाँ खाँ से त्यागपत्र की माँग की। पराजय के कारण पाकिस्तान में प्रदर्शन हुए। याहियाँ खाँ को त्यागपत्र देना पड़ा। उनके स्थान पर जुल्फिकार अली भुट्टो ने पद ग्रहण किया, जिन्हें विरासत में कई समस्याएँ मिलीं। विभक्त जनमत, विभक्त मनोस्थिति और विभाजित नेतृत्व वाला पाकिस्तान नियति के चक्र में बुरी तरह फंस गया।
प्रश्न 2.
भारत-बांग्लादेश सम्बन्धों पर एक विस्तृत लेख लिखिए। (2009, 17)
उत्तर:
भारत – बांग्लादेश सम्बन्ध
सन् 1971 के भारत-पाकिस्तान युद्ध की परिणति के रूप में बांग्लादेश का उदय हुआ। जब पूर्वी बंगाल और पाकिस्तानी शासक के विरुद्ध विद्रोह हुआ तब भारत की सहानुभूति बांग्ला स्वतन्त्रता सेनानियों के प्रति रही। पाकिस्तान के सैनिक तानाशाह ने जब इन विद्रोहियों का क्रूरता के साथ दमन किया तब भारत ने इसका कड़ा विरोध किया। पाकिस्तान द्वारा किये गये नरसंहार से भयभीत होकर पूर्वी बंगाल के अनेक शरणार्थी भारत में आ गये। भारत ने इनके भोजन-आवास की व्यवस्था की और साथ ही बांग्लादेश की मक्ति वाहिनी के जक को प्रशिक्षित किया। इससे बांग्ला शरणार्थियों का आजादी प्राप्त करने के लिए उत्साह बढ़ा।
(1) स्वतन्त्र बांग्लादेश की घोषणा – 26 मार्च, 1971 को शेख मुजीब के नेतृत्व में स्वतन्त्र बांग्लादेश की घोषणा गुप्त रेडियो से की गई। इसके साथ ही पश्चिमी पाकिस्तान का दमनचक्र शुरू हुआ। अन्ततः 17 अप्रैल, 1971 को बांग्लादेश में स्वतन्त्र प्रभुसत्ता सम्पन्न गणतन्त्र की घोषणा की गई और विश्व की सरकारों से मान्यता प्रदान करने का आग्रह किया। मुक्ति संघर्ष के दौरान लगभग एक करोड़ बांग्लादेशी शरणार्थी भारत में आ गये थे। इसका सीधा प्रभाव भारत की सुरक्षा व एकता-अखण्डता पर पड़ रहा था। बांग्लादेश की समस्या के समाधान के लिए भारत की तत्कालीन प्रधानमन्त्री श्रीमती इन्दिरा गांधी ने कई पश्चिमी राष्ट्रों की यात्रा की किन्तु उन्हें पूर्णतः सफलता नहीं मिली। अन्ततः 3 दिसम्बर, 1971 को भारत-पाकिस्तान के मध्य युद्ध शुरू हो गया।
(2) बांग्लादेश को मान्यता – बांग्लादेश के तात्कालिक विदेशी मन्त्री के अनुरोध पर भारत ने 6 दिसम्बर, 1971 को बांग्लादेश को मान्यता प्रदान कर दी। 8 दिसम्बर, 1971 को ही बांग्लादेश ने हुसैन अली को भारत में अपना प्रथम राजदूत नियुक्त कर दिया।
(3) भारत-बांग्लादेश की प्रथम सन्धि-10 दिसम्बर, 1971 को भारत के साथ बांग्लादेश की प्रथम सन्धि हुई। इस सन्धि में भारत सैनिक और आर्थिक आधार पर स्वतन्त्र बांग्लादेश के पुनर्निर्माण के लिए तैयार हुआ। सन् 1971 के युद्ध में पाकिस्तान के पराजित होते ही बांग्लादेश की सरकार ढाका में स्थापित की गई। भारत और अन्तर्राष्ट्रीय जनमत के समक्ष घुटने टेकते हुए पाकिस्तान को 8 जनवरी, 1971 को अवामी लीग नेता शेख मुजीबुर्रहमान को रिहा करने पर बाध्य होना पड़ा। रिहाई के बाद शेख ने भारत के प्रति अपना आभार व्यक्त किया।
(4) भारत-बांग्लादेश की द्वितीय सन्धि – बांग्लादेश को एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में स्थापित करने के उद्देश्य से भारत-बांग्लादेश की द्वितीय सन्धि हुई। भारत ने बांग्लादेश की आर्थिक, आन्तरिक व बाह्य समस्याओं के समाधान की जिम्मेदारी ली। भारत और भूटान के बाद एक स्वतन्त्र राष्ट्र के रूप में बांग्लादेश के पूर्वी जर्मनी, नेपाल, बर्मा (म्यांमार), पश्चिमी यूरोपीय देश, मलेशिया, इण्डोनेशिया आदि देशों ने भी मान्यता दे दी। जनवरी 1972 में काहिरा में अफ्रेशियाई देशों का एकता सम्मेलन हुआ जिसमें बांग्लादेश को स्थायी सदस्य बनवाने में एक बार फिर भारत ने अपना बड़प्पन दिखाया। भारत ने बांग्लादेश के साथ व्यापार और सांस्कृतिक समझौते भी किये। 9 अगस्त, 1972 को भारत ने बांग्लादेश को संयुक्त राष्ट्र संघ के सदस्य राष्ट्र के रूप में मान्यता दिये जाने को समर्थन किया परन्तु चीन द्वारा वीटो पावर से इस कार्य में भारत को सफलता नहीं मिली।
प्रश्न 3.
भारत का आणविक शक्ति के रूप में विकास किस प्रकार हुआ? वर्णन कीजिए। (2013, 16)
अथवा
भारत की परमाणु नीति के सिद्धान्तों को समझाइए। (2009)
अथवा
आणविक शक्ति की पाँच उपयोगिताएँ एवं एक महत्व लिखिए। (2012)
[संकेत : ‘परमाणु ऊर्जा के उपयोग’ शीर्षक देखें।]
उत्तर:
भारत की आणविक शक्ति
(1) परमाणु ऊर्जा की प्राप्ति-परमाणु ऊर्जा रेडियोधर्मी तत्वों के विखण्डन से प्राप्त की जाती है। इस ऊर्जा से विद्युत बनायी जाती है। यूरेनियम, यूरियम, प्लूटोनियम आदि प्रमुख रेडियोधर्मी तत्व हैं। इन तत्वों में भारी मात्रा में ऊर्जा छिपी है। एक अनुमान के अनुसार, एक किलो यूरेनियम से जितनी ऊर्जा प्राप्त होती है उतनी 27,000 टन कोयले से प्राप्त की जाती है। यूरेनियम बहुत मूल्यवान तत्व है।
(2) परमाणु ऊर्जा के प्रमुख केन्द्र-परमाणु ऊर्जा के विकास के क्षेत्र में टाटा संस्थान-1945 तथा भाभा परमाणु ऊर्जा केन्द्र सन् 1957 की स्थापना से परमाणु तकनीकी का विकास हुआ। सन् 1956 में अप्सरा शोध रिएक्टर की स्थापना हुई और सन् 1969 में तारापुर परमाणु शक्ति केन्द्र की स्थापना के बाद यह भारत का पहला व्यावसायिक रियेक्टर केन्द्र बना। भारत ने तारापुर (महाराष्ट्र), कोटा (राजस्थान), कलपक्कम (तमिलनाडु), नरौरा (उत्तर प्रदेश), काकरपारा (गुजरात) एवं गा में परमाणु ऊर्जा केन्द्र स्थापित किए हैं।
परमाणु ऊर्जा के उपयोग – परमाणु ऊर्जा का उपयोग शान्तिपूर्ण एवं विकास कार्यों के लिए वरदान स्वरूप है। कृषि, चिकित्सा, उद्योग आदि क्षेत्रों में इसका उपयोग हो रहा है। नहरों, बाँधों तथा खानों के निर्माण के लिए परमाणु विस्फोटों का प्रयोग किया जा रहा है। साथ ही इसका उपयोग विध्वंसक, शस्त्रों के निर्माण में भी किया जाता है जो कि अनुचित है।
पारम्परिक ऊर्जा स्रोतों की कमी से निपटने के लिए परमाणु ऊर्जा संयंत्रों की बड़ी भूमिका है। मुम्बई में विद्युत उत्पादन परमाणु रिएक्टरों के माध्यम से किया जा रहा है।
भारत की परमाणु नीति – भारत की परमाणु नीति को उसकी विदेशी नीति के मूल सिद्धान्तों के सन्दर्भ में समझा जा सकता है। भारत की विदेशी नीति के तीन मूलभूत सिद्धान्त हैं-राष्ट्रीय सुरक्षा, आर्थिक विकास और विश्व व्यवस्था। इसके अतिरिक्त भारत उपनिवेशवाद, साम्राज्यवाद, रंगभेद का विरोध करते हुए परस्पर सहअस्तित्व, सभी राष्ट्रों से मित्रता एवं अन्तर्राष्ट्रीय शान्ति और सद्भाव की नीति में विश्वास रखता है। भारत की परमाणु नीति का लक्ष्य अपनी सुरक्षा एवं विकास को सुनिश्चित करना है और यह भी ध्यान में रखना है कि एक ऐसे विश्व की स्थापना हो, जो सहयोग, सद्भाव और शान्ति पर आधारित हो। भारत के प्रधानमन्त्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने परमाणु बम न बनाने के संकल्प को अनेक अवसरों पर दोहराया। श्रीमती इन्दिरा गांधी ने देश की रक्षा को अति महत्त्वपूर्ण विषय मानते हुए परमाणु नीति पर पुनर्विचार की बात कही। 1974 में इन्दिरा गांधी ने पोखरण (राजस्थान) में ‘शान्तिपूर्ण परमाणु परीक्षण किया।
सन् 1980 के दशक के परमाणु नीति-सन् 1980 के दशक से प्रक्षेपास्त्रों के विकास के कारण भारत की परमाणु नीति में प्रमुख परिवर्तन आया। इस सन्दर्भ में सन् 1983 में प्रारम्भ की गयी ‘एकीकृत निर्देशित प्रक्षेपास्त्र योजना’ अति महत्त्वपूर्ण है। प्रसिद्ध वैज्ञानिक ए. पी. जे. अब्दुल कलाम इस योजना के अध्यक्ष बनाये गये। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत भारत ने जिन प्रक्षेपास्त्रों का विकास किया वे ‘पृथ्वी’, ‘त्रिशूल’, ‘नाग’ तथा ‘आकाश’ हैं।
परमाणु प्रसार रोकने के लिए अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर तीन संगठनों की स्थापना हुई-आंशिक मास्को परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि (पी. टी. बी. टी.) 1963, परमाणु अप्रसार संधि (एन. पी. टी.) 1968 तथा व्यापक परमाणु परीक्षण निषेध सन्धि (सी. टी. बी. टी.)1996।
सन् 1990 के दशक के परमाणु नीति-सन् 1990 के दशक से भारत की परमाणु नीति में मोड़ आया क्योंकि विश्वस्त सूत्रों से ज्ञात हुआ कि पाकिस्तान ने परमाणु बम तैयार कर लिया है। अपनी रक्षा को मजबूत बनाने, उसमें आत्मनिर्भरता प्राप्त करने के लिए तथा अन्तर्राष्ट्रीय परिवेश के दबावों से बचने के लिए परमाणु परीक्षण किये जाने पर विचार किया गया। 11 मई, 1998 को भारत ने तीन भूमिगत परमाणु परीक्षण लगातार एक के बाद एक पोखरण में किये। परमाणु परीक्षण सम्पन्न हो जाने के पश्चात् प्रधानमन्त्री अटल बिहारी बाजपेयी ने घोषित किया कि “हम एक बड़े बम की क्षमता वाले” राष्ट्र बन गये हैं। परन्तु प्रधानमंत्री ने आश्वासन दिया कि परमाणु हथियारों का उपयोग हम किसी देश के विरुद्ध नहीं करेंगे वरन् अपनी आत्मरक्षा के लिए करेंगे।
वास्तव में भारत ने आणविक परीक्षण इसलिए किये क्योंकि भारत की सीमाओं के निकट परमाणु अस्त्र क्षमता एवं प्रक्षेपास्त्रों की मौजूदगी थी। अत: भारत को अपनी सुरक्षा मजबूत बनाने के लिए तथा अन्तर्राष्ट्रीय परिस्थितियों में राजनैतिक एवं कूटनीतिक रूप से दबाव बढ़ाना आवश्यक था परन्तु भारत आरम्भ से ही शान्तिदूत रहा है और उसने आणविक शक्ति दूसरों पर अपनी प्रभुता स्थापित करने तथा दूसरे राष्ट्रों के मामलों में हस्तक्षेप प्राप्त करने के लिए नहीं की है।