MP Board Class 9th Sanskrit व्याकरण संधि प्रकरण
दो वर्गों के मिलने पर जो परिवर्तन होता है, उसे संधि कहते हैं। जैसे-हिम+आलय-हिमालयः।
संधि तीन प्रकार की होती है-
1. स्वर संधि
2. व्यंजन संधि
3. विसर्ग संधि
1. स्वर संधि-दो स्वरों के मेल से जो परिवर्तन होता है, उसे स्वर संधि कहते हैं। स्वर संधि के छः भेद होते हैं-
(i) दीर्घ,
(ii) गुण,
(iii) वृद्धि,
(iv) यण,
(v) अयादि,
(vi) पूर्वरूप,
(vi) प्रकृति भाव।”
(i) दीर्घ संधि-अ, आ के बाद अ, आ आने पर आ इ, ई के बाद इ, ई आने पर ई, उ, ऊ के बाद उ, ऊ आने पर ऊ तथा ऋ, ऋ के बाद ऋ आने पर ऋ हो जाता है, उसे दीर्घ संधि कहते हैं।
जैसे-
(ii) गुण संधि (आदगुणः)-अ, आ के बाद इ, ई आने पर ‘ए’ बन जाता है। इसी प्रकार अ, आ के आगे उ, ऊ हो तो ‘ओ’ और ऋ आ जाने पर ‘अर’ बन जाता है।
जैसे-
(iii) वृद्धि संधि (वृरिचि)-अ, आ के आगे ए, ऐ आने से ‘ऐ’ हो जाता है और अ, आ के आगे ओ या औ आने से ‘औ’ हो जाता है। ऐ और औ स्वरों के वृद्धि रूप हैं।
जैसे-
(iv) यण संधि (इकोयणचि)-इ, ई, उ, ऊ ऋ से आगे उनसे भिन्न स्वर आने पर इ को यु, ड को व् और ऋ को र होता है-
(v) आयादि संधि (एचोऽयवायावः)-ए, ऐ, ओ, औ से आगे यदि कोई भिन्न स्वर आ जाए तो पहले वर्णों को क्रमशः अय्, आय, अव् और आव् हो जाते हैं।
जैसे-
(vi) पूर्णरूप संधि-पदान्त ए तथा ओ के पश्चात् अ आने पर अ का लोप हो जाता है तथा उसके स्थान पर अवग्रह (ऽ) लगा दिया जाता है।
- हरे + अत्र = हरेऽत्र
- विष्णो + अत्र = विष्णोऽत्र
- सखे + अर्पय = सखेऽर्पय
- सर्वे + अपि = सर्वेऽपि।