MP Board Class 9th Sanskrit Solutions Durva Chapter 16 अध्ययने प्रत्यूहः (नाट्यांशः)
MP Board Class 9th Sanskrit Chapter 16 पाठ्य पुस्तक के प्रश्न
प्रश्न 1.
एक पदेन उत्तरं लिखत (एक शब्द में उत्तर लिखो)
(क) सद्भिः सङ्गः केन भवति? (सज्जनों के साथ सम्पर्क किससे होता है?)
उत्तर:
पुण्येना। (पुण्य से)
(ख) दण्डकारण्यप्रदेशे के प्रमुखाः वसन्ति? (दण्डकारण्य प्रदेश में प्रमुख रूप से कौन रहता है?)
उत्तर:
अगस्त्यादयः। (अगस्तादि प्रमुख ऋषि रहते हैं)
(ग) देवताविशेषेण अद्भुतं किम् उपनीतम्? (देवता गण किस अद्भुत विशेषण को बताते हैं?)
उत्तर:
जृम्भकास्त्राणि। (जृम्भकास्त्र।)
(घ) दारको केन पोषितौ रक्षितौ च? (दोनों किसके द्वारा रक्षित पोषित हुए?)
उत्तर:
वल्मीकिना। (वाल्मीकि के द्वारा)।
(ङ) तयोः कानि जन्मसिद्धानि? (उन दोनों को क्या जन्म सिद्ध था?)
उत्तर:
जृम्भकास्त्र। (जृम्भकास्त्र।)
प्रश्न 2.
एकवाक्येन उत्तरं लिखत (एक वाक्य में उत्तर लिखो)
(क) आत्रेयी दण्डकारण्ये किमर्थं भ्रमति स्म? (आत्रेयी दण्डकारण्य वन में क्यों घूमते थे?)
उत्तर:
आत्रेयी दण्डकारण्ये महानध्ययनप्रत्यूह भ्रमति स्मः। (आत्रेयी दण्डकारण्य में पढ़ाई में विघ्न आ जाने के कारण घूमते थे।)
(ख) वाल्मीकिना तयोः कां विद्याम् अध्यापितौ? (वाल्मीकि के द्वारा उन दोनों को कौन-सी विद्या पढ़ाई जाती थी?)
उत्तर:
वाल्मीकिना तयोः त्रयीवर्जमितरास्तिस्त्रो विद्याम् अध्यापितौ। (वाल्मीकि के द्वारा उन दोनों को वेद को छोड़कर और तीनों (आन्वीक्षिकी, वार्ता और दण्डनीति) विद्याओं का अध्ययन कराया जाता था।)
(ग) गुरुः विद्या कथं वितरति? (गुरु विद्या कैसे देते हैं?)
उत्तर:
गुरुः विद्या प्राज्ञे विद्यां यथैव तथा जड़े वितरति। (गुरु जिस तरह बुद्धिमान छात्र को उसी तरह मन्द बुद्धि छात्र को भी विद्या देता है।)
(घ) ब्रह्मर्षिः किमर्थं तमसामनुप्रपन्नः? (बह्मर्षि तमसा नदी के किनारे किसलिए गए?)
उत्तर:
बह्मर्षिः माध्यन्दिनसवनाय नदीं तमसामनुप्रपन्नः। (ब्रह्मर्षि तमसा नदी के किनारे मध्याह्न (दोपहर की संध्या) वन्दन करने के लिए तमसा नदी के किनारे गए।)
(ङ) क्रौञ्चयोः एकं कः हतवान्? (क्रौञ्च में से एक को किसने मारा?)
उत्तर:
क्रौञ्चयोरेकं एक व्याधेन हतवान्। (क्रौञ्च में से एक को बहेलिया ने मारा।)
प्रश्न 3.
अधोलिखित प्रश्नानाम् उत्तराणि लिखत
(क) वनदेवता वनस्य सौन्दर्य विषये तापसी किं वदति? (वनदेता वन के सौन्दर्य के विषय में तापसी से क्या कहता है?)
उत्तर:
वनदेवता वनस्य सौन्दर्य विषये तापसी यथेच्छा भोग्यं दो वदति। (वनदेवता वन के सौन्दर्य के विषय में तापसी से कहता है कि यह वन आपकी इच्छा के अनुसार उपभोग योग्य है।)
(ख) पद्मयोनिः वाल्मीकि किमवोचत्? (ब्रह्मा ने वाल्मीकि से क्या कहा?)
उत्तर:
पद्मयोनिरवोचत्-ऋषेः प्रबुद्धोऽसि वागात्मनि ब्रह्ममणि। तदृ ब्रहि रामचरितम्। (ब्रह्मा ने वाल्मीकि से कहा कि ऋषि जी! तुम शब्द रूप ब्रह्म में ज्ञान सम्पन्न हो गए हो, इस कारण रामचरित का वर्णन करो।)
(ग) साधूनां चरित कीदृशमस्ति? (सज्जनों का चरित किस तरह का होता है?)
उत्तर:
साधूनां चरितं सतां सद्भिः सङ्गः कथमपि हि पुण्येन भवति। (सज्जनों की संगति सज्जनों द्वारा कष्टमय पुण्य से होती है।)
(घ) क्रौञ्चवधानन्तरं वाल्मीकिमुखात् का वाणी निर्गता? (क्रौञ्च के वध के अनन्तर वाल्मीकि के मुख से कौन-सी वाणी निकली?)
उत्तर:
क्रौञ्चवधानन्तरं वाल्मीकि किं मुखात् वाणी निर्गता-मा निषाद्। प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः। (क्रौंच के वध के अनन्तर वाल्मीकि के मुख से वाणी निकली कि-हे व्याध! जो कि तूने एक का वध कर दिया है इसलिए तू बहुत समय तक प्रतिष्ठा प्राप्त न कर सकेगा)
प्रश्न 4.
यथायोग्यं योजयत
प्रश्न 5.
शुद्धवाक्यानां समक्षम् “आम्” अशुद्धवाक्यानां समक्षं “न” इति लिखत
उदाहरणम् :
तापसी अध्वगवेषा अस्ति। – आम्
व्याधः क्रौञ्च न हतवान्। – न
(क) गुरुः यथा प्राज्ञे तथैव जड़े विद्यां वितरति।
(ख) जृम्भकास्त्राणि जन्मसिद्धानि आसन्।
(ग) लवकुशौ त्रयी विद्यां न अधीतवन्तौ।
(घ) वाल्मीकिः आदिकविः अस्ति।
(ङ) वाल्मीकिः रामायणं न लिखितवान्
उत्तर:
(क) आम्
(ख) आम्
(ग) न
(घ) आम्
(ङ) न
प्रश्न 6.
उचितैः पदैः रिक्तस्थानानि पूरयत
(निगमान्तविद्याम्, पुण्येन, प्रतिष्ठाम, विशुद्धम्, माध्यन्दिनसवनाय)
(क) सतां सद्भिः सङ्गः पुण्येन भवति।
(ख) आत्रेयी निगमान्तविद्याम् अध्येतुम् पर्यटति।
(ग) महर्षि माध्यन्दिनसवनाय तमसामनुप्रपन्नः।
(घ) मा! निषाद प्रतिष्ठाम् त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
(ङ) रहस्यं साधूनामनुपधि विशुद्धं विजयते।
प्रश्न 7.
सन्धिविच्छेदं कृत्वा सन्धेः नाम लिखत
उदाहरणम् :
केनापि- केन + अपि = दीर्घस्वरसन्धिः।
(क) अथापरः – अथ + अपर = दीर्घस्वरसंधिः।
(ख) यथेच्छा – यथा इच्छा – गुणस्वरसंधिः।
(ग) यथैव – यथा + एव = वृद्धिस्वरसंधिः।
(घ) आत्रेय्यस्मि – आत्रेयी + अस्मि = यणस्वरसंधिः।
(ङ) अन्येऽपि – अन्ये + अपि = पूर्ण रूप।
प्रश्न 8.
अव्ययैः वाक्य निर्माण कुरुत
उदाहरणं यथाः
तत्र महर्षिः वाल्मीकिः वसति स्म।
(क) अपि – रामः अपि फलं खादति।
(ख) यदा – यदा मोहितः आगच्छति तदा अन्शुलः, राशिन्तश्च गच्छति।
(ग) किल – रामचन्द्रः किल पितृभक्तिः आसीत्।
(घ) खलु – पासः प्रधानं खलु योग्यतायाः।
(ङ) एकदा – एकदा अहं भेड़ाघट्टम्अवश्यमेव गमिष्यामि।
अध्ययने प्रत्यूहः पाठ-सन्दर्भ/प्रतिपाद्य
महाकवि भवभूति रचित ‘उत्तर रामचरितम्’ नामक नाटक ग्रन्थ से उद्धृत यह अंश संस्कृत भाषा के नाट्य परम्परा का परिचय प्रस्तुत करने में सक्षम है। बुद्धि कौशल युक्त गुरु का छात्रों के प्रति समान रूप से समदर्शिता का भाव यहाँ प्रस्तुत किया गया है।
अध्ययने प्रत्यूहः पाठ का हिन्दी अर्थ
(ततः प्रविशत्यध्वगवेषा तापसी)
1. तापसी-अये, वनदेवता फलकुसुमगर्भेण पल्लवायेण दूरान्मामुपतिष्ठते। (प्रविश्य) वनदेवता-(अर्घ्य विकीय)
यथेच्छाभोग्यं वो वनमिदमयं मे सुदिवसः
सतां सद्भिः सङ्गः कथमपि हि पुण्येन भवति।
तरुच्छाया तोयं यदपि तपसां योग्यमशनं
फलं वा मूलं वा तदपि न पराधीनमिह वः॥
तापसी :
किमत्रोच्यते?
प्रियप्राया वृत्तिर्विनयमधुरो वाचि नियमः
प्रकृत्या कल्याणी मतिरनवगीतः परिचयः।
पुरो वा पश्चाद् वा तदिदमविपर्यासितरसं
रहस्यं साधूनामनुपधि विशुद्धं विजयते॥
(उपविशतः)
शब्दार्थः :
वनदेवता-वनदेवता-forest God;फलकुसुमगर्भेण-फल और फलो से भरे-full of fruits and flowers; पल्लवादंण-पल्लवसहित-with new leaves; दूरान्मामुपतिष्ठते-दूर से ही मेरा सत्कार करती है-salute me from long distance; अर्घ्य विकीर्य-अर्घ्य देखकर-water give by hands; यथेच्छायोग्य इच्छा के अनुसार योग्य-like desire consumation; कथमपि-किसी तरह से-any how; पुण्येन-पुण्य के द्वारा-By good work; तरुछाया-वृक्ष की छाया-shade of tree; तदापि-वह भी-he also; किमत्रोक्यते-क्या कहा जाए-what do say; पुरो-पहले-first; पश्चाद्-बाद में-after; विनयमूर्धरा-विनय के कारण हृदयाकर्षक-to reason of attration by heart; अनवगीतः-अनिन्दित-not criticise; प्रियाप्रायव्रति-अतिशय प्रियकारी व्यवहार-lovely behavioure.
हिन्दी अर्थः :
(तब पथिक रूप में तपस्विनी का प्रवेश)
तापसी :
अरे! वन देवता पुष्प-फलों से पूर्ण, पल्लव फपी अर्घ्य के द्वारा दूर से ही मेरा स्वागत करते हैं। (प्रवेश करके)
वन देवता :
(अर्घ्य देकर) यह वन इच्छानुरूप भोग के लिए आप को अर्पित है क्योंकि सज्जनों का सज्जन पुरुष से संयोग बड़े पुण्य से होता है। वृद्धा की छाया, जल और तप के योग्य जो भी पदार्थ-फल मूल है वह आपकी सेवा में है, पराधीन नहीं है।
तापसी :
इस पर क्या कहा जाए?
व्यवहार अत्यधिक प्रीतियुक्त, हृदय को आकर्षित करने वाली नम्रता, स्वभाव से ही मंगल रूप बुद्धि, न बदलने वाला, व अनिंदित प्रेम, छल-कपट से रहित और विशुद्ध-ऐसा उत्कृष्ट रूप साधुओं का होता है। (दोनों बैठते हैं)
2. वनदेवता-काम् पुनरत्रभवतीमवगच्छामि?
तापसी :
आत्रेय्यस्मि।
वनदेवता :
आर्ये आत्रेयि! कुतःपुनरिहागम्यते? किम् प्रयोजनो दण्डकारण्योपवनप्रचारः?
आत्रेयी :
अस्मिन्नगस्त्यप्रमुखाः प्रदेशे भूयांस उद्गीथविदो वदन्ति।
तेभ्योऽधिगन्तुं निगमान्तविद्यां वाल्मीकिपादिह पर्यटामि॥
वनदेवता :
यदा तावदन्येऽपि मुनयस्तमेव हि पुराणब्रह्मवादिनम् प्राचेतसमृषिम् ब्रह्मपारायणायोपासते, तत्कोऽयमार्यायाः प्रवासः?
आत्रेयी :
तस्मिन् हि महानध्ययनप्रत्यूह इत्येष दीर्घप्रवासोऽङ्गीकृतः। वनदेवता-कीदृशः?
आत्रेयी :
तत्र भगवतः केनापि देवताविशेषेण सर्वप्रकाराद्भुतं स्तन्यत्यागमात्रके वयसि धर्तमानं दारकद्वयमुपनीतम्। तत्खलु न केवलं तस्य, अपितु तिरश्चामप्यन्तः करणानि तत्त्वान्युपस्नेहयति।
शब्दार्थः :
आत्रेयरिम-मैं आत्रेयी हूं-I am Aitreyi. कुत्रः-कहां से-from where; प्रयोजना-प्रयोजन है -is pland. अगस्त्यप्रमुखाः -अगस्त्य आदि प्रमुख-Augustya and main; प्रदेशे-क्षेत्र में-In area; पर्यटामि-घूमते हुए आ रहा हूं-coming into wonderd; वदन्ति-कहते हैं-says; ब्रह्मवादिनाम्ब्रह्मवादी-of Bramha; उपासते-उपासना करते हैं-prayers; आर्याया-आर्यों का-Aryar; प्रवासः-प्रवास-migration; तस्मिनः-वहां-there; प्रत्यूह- विघ्न-disturbe; दीर्घ प्रवासो-दीर्घप्रवास को-lang bravery; अंगीकृता-स्वीकृत किया है-expect; कीदृशः-कैसा-how, सर्वेकारात-सभी प्रकार से-all types; वयस्वीउम्र में-In age; तस्य-उसके-his; अधिगतुम्-जानने के लिए-for knowing,
हिन्दी अर्थ :
वन देवता-आपको मैं क्या समझू?
तापसी :
मैं आत्रेयी हूँ।
वनदेवता :
आर्ये आत्रेयी! आप कहाँ से आ रही हैं? किस प्रयोजन से आप दण्डकारण्य में घूम रही हैं?
आत्रेयी :
इस स्थान में अगस्त्य आदि प्रमुख ऋषि रहते हैं। उनसे वेदान्त की शिक्षा प्राप्त करने के लिए ऋषि वाल्मीकि के आश्रम से आ रही हूँ।
वनदेवता :
जब अनेक ऋषि मुनि एवं अनुभवी ब्रह्मवेत्ता मुनि महर्षि वाल्मीकि के यहाँ वेदांत शिक्षा ग्रहण करते हैं, तब आर्या के यहाँ आकर प्रवास का क्या कारण है?
आत्रेयी :
वहाँ पढ़ने में व्यवधान उत्पन्न हो जाने के कारण मैंने दीर्घ प्रवास को स्वीकार किया।
3. वनदेवता-तयैव किल देवतया तयोः कुशलवाविति नामनी प्रभावश्चाख्यातः।
वनदेता :
कीदृशः प्रभावः?
आत्रेयी :
तयोः किल सरहस्यानि जृम्भकास्त्राणि जन्मसिद्धनीति।
वनदेवता :
अहो नु भोश्चित्रमेतत्।
आत्रेयी :
तौ च भगवता वाल्मीकिना धात्रीकर्मतः परिगृह्य पोषितौ रक्षितौ च, निर्वृत्तचौलकर्मणोस्तयोस्त्रयी-वर्जमितरास्तिस्रो विद्याः सावधानेन परिनिष्ठापिताः। तदनन्तरं भगवतैकादशे वर्षे क्षात्रेण कल्पेनोपनीय त्रयीविद्यामध्यापितौ न त्वेताभ्यामतिदीप्तिप्रज्ञाभ्यामस्मदादेः सहाध्ययनयोगोऽस्ति यतः
वितरति गुरुः प्राज्ञे विद्यां यथैव तथा जडे
न तु खलु तयोाने शक्तिं करोत्यपहन्ति वा।
भवति हि पुनर्भूयान् भेदः फलम् प्रति, तद्यथा
प्रभवति शुचिबिम्बग्राहे मणिनं मृदादयः॥
वनदेवता :
अयमध्ययनप्रत्यूहः?
आत्रेयी :
अन्यश्च।
वनदेवता :
अथापरः कः?
शब्दार्थः :
कीदृशः-किस तरह-How type; वितरति-वितरित करती है-Distributes; प्राज्ञे-शास्त्र विषय-Knowledge of book; प्रभवति-प्रभावित करती है-to affect; सुचि-पवित्रता-holyness; प्रत्यूहः-बाध्य-trouble.
हिन्दी अर्थः :
वनदेवता-कैसा विघ्न?
आत्रेयी :
वहाँ भगवान वाल्मीकि के निकट किसी देवता ने सभी प्रकार से अद्भुत एवं स्तन त्याग करने की अवस्था के दो बच्चों को छोड़ दिया है। वे बालक केवल उन्हीं के नहीं वरन् पशु-पक्षियों के हृदय में भी स्नेह का संचार करते हैं।
वनदेवता :
क्या आप उन दोनों बालकों का नाम जानती हैं?
आत्रेयी :
उसी देवता ने उन दोनों का नाम लव एवं कुश यह नाम व प्रभाव बताया है।
वनदेवता :
कैसा प्रभाव? आत्रेयी-उन दोनों को मन्त्रपूरित जृम्भका नामक अस्त्र सिद्ध है। वनदेवता-यह आश्चर्य है।
आत्रेयी :
उन दोनों को भगवान वाल्मीकि ने धात्री के समान पालन-पोषण व रक्षित किया है। चूडाकर्म से निवृत्त होने के बाद बहुत कुशलतापूर्वक उन्हें वेदाध्ययन के अतिरिक्त अन्य तीन विद्याओं (आन्वीक्षिकी, वार्ता एवं दण्डनीति) का अध्ययन कराया। पुनः उनकी ग्यारहवीं साल की उम्र में क्षत्रिय विधि से उपनयन संस्कार कर उन्हें वेद की शिक्षा प्रदान की। अत्यंत प्रतिभा के धनी उन दोनों बालकों के साथ हम लोगों का पढ़ना बहुत कठिन है क्योंकि गुरु तीव्र बद्धि एवं मंद बुद्धि वाले दोनों तरह के छात्रों को एक समान शिक्षा प्रदान करता है। दोनों में से किसी को न अलग से समझने की सामर्थ्य प्रदान करता है और न ही किसी को बोध-शक्ति को नष्ट ही करता है। ऐसा होने पर भी परिणाम में बहुत भिन्नता होती है, जैसे कि हीरा, स्फटिक मणि आदि सभी प्रतिबिम्ब ग्रहण करने में समर्थ होते हैं किन्तु मिट्टी आदि पदार्थ प्रतिबिम्ब धारण नहीं कर सकते।
वन देवता :
पढ़ने में यही विघ्न है?
आत्रेयी :
और दूसरा भी
वन देवता :
और दूसरा विघ्न क्या है?
4. आयेत्री-अथ स ब्रह्मर्षिरेकदा माध्यन्दिनसवनाय नदीं तमसामनुप्रपन्नः। तत्र युग्मचारिणोः क्रौञ्चयोरेकं व्याधेन वध्यमानं ददर्श। आकस्मिकप्रत्यवभासां देवीं वाचमानुष्टुभेन छन्दसा परिणतामभ्युदैरयत्-
मा निषाद! प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः।
वनदेवता-चित्रम्? भग्नायादन्यत्र नूतनश्छन्दसामवतारः।
आत्रेयी :
तेन हि पुनः समयेन तं भगवन्तमाविर्भूतशब्दप्रकाशमृषिमुपसङ्गम्य भगवान् भूतभावनः-पद्मयोनिरवोचत् ऋषे प्रबुद्धोऽसि वागात्मनि ब्रह्माणि। तब्रूहि रामचरितम्। अव्याहतज्योतिरार्षं ते चक्षुः प्रतिभातु। आयः कविरसि इत्युक्त्वान्तर्हितः। अथ स भगवान् प्राचेतसः प्रथमम् मनुष्येषु शब्दब्रह्मणस्तादृशं विवर्तमितिहासं रामायणम् प्रणिनाय।
वनदेवता :
हन्त! पण्डितः संसारः।
आत्रेयी :
तस्मादेव हि ब्रवीमि ‘तत्र महानध्ययनप्रत्यूह’ इति।
वनदेवता :
युज्यते। आत्रेयी-विश्रान्तास्मि भद्रे! संप्रत्यगस्त्याश्रमस्य पन्थानम् ब्रूहि।
वनदेवता :
इतः पञ्चवटीमनुप्रविश्य गम्यतामनेन गोदावरी तीरेण।
(इति निष्क्रान्तः)।
शब्दार्थः :
व्याधेन-बहेलिया ने-Hunter. पद्मयोनि-ब्रह्म-Brahma; प्रबुद्धोऽसि-प्रबुद्ध है-wise man; तादृशं-उस तरह-this type; तस्मादेव-इसी कारण से-for this reason; ब्रवीमि-कहती हूँ-says.
हिन्दी अर्थ :
एक दिन ब्रह्मर्षि दोपहर स्नान के लिए तमसा नदी के तट पर गए। वहाँ प्रेमरत नर-मादा क्रौंच पक्षियों में से एक नर को बहेलिए द्वारा मारे जाते हुए देखा। तब उन्होंने एकाएक उत्पन्न हुए छन्दबद्ध श्लोक के रूप में कहा-हे बहेलिए तुमने काम मोहित क्रौंच पक्षी के जोड़े में से एक को मार दिया, इस कारण तुम बहुत समय तक प्रतिष्ठा नहीं प्राप्त कर सकोगे।।
वनदेवता :
आश्चर्य है! वेद के अतिरिक्त भी छन्द का नया जन्म हुआ।
आत्रेयी :
जिनको छन्द रूपी प्रकाश का दर्शन हो गया है एवं भगवान वाल्मीकि के पास आकर लोक के जन्मदाता ब्रह्मा ने आकर कहा-ऋषि! तुम शब्द रूप ब्रह्मा से अभिभूत हो गए हो। अब तुम रामचरित का वर्णन करो। न क्षीण होने वाला प्रकाश रूपी आर्य ज्ञान तुम्हें प्रकाशित करे। तुम आदि कवि हो। ऐसा कहकर ब्रह्मा अंतर्धान हो गए। तब भगवान वाल्मीकि ने मनुष्यों में सर्वप्रथम शब्द ब्रह्म का रूपान्तर कर रामायण नामक इतिहास की रचना की।
वनदेवता :
हाय! तब तो सांसारिक लोग भी पण्डित हो जाएँगे। आत्रेयी-इसी कारण वहाँ पढ़ने में विघ्न है-ऐसा मैं कहती हूँ। वनदेवता-ठीक है।
आत्रेयी :
हे भद्र! मैं विश्राम कर चुकी। अब मुझे भगवान अगस्त्य के आश्रम का मार्ग बताएँ।
वनदेवता :
वहाँ से पंचवटी में प्रवेश कर गोदावरी के किनारे से जाइए। इस तरह जाते हैं।