MP Board Class 9th Hindi Navneet Solutions गद्य Chapter 4 नारियल (ललित निबन्ध, विद्यानिवास मिश्र)
नारियल अभ्यास
बोध प्रश्न
नारियल अति लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
लेखक के अनुसार अनुष्ठान के मांगलिक द्रव्यों की सूची में कौन-सी चीज है? जो अवश्य रखी जाती है।
उत्तर:
अनुष्ठान के मांगलिक द्रव्यों की सूची में नारियल को अवश्य रखा जाता है।
प्रश्न 2.
नारियल कहाँ का वृक्ष है?
उत्तर:
नारियल उष्ण कटिबन्ध का वृक्ष है।
प्रश्न 3.
नारियल का फल कैसा होता है?
उत्तर:
नारियल का फल ऊपर से कठोर एवं शुष्क होता है पर भीतर से एकदम रसपूर्ण होता है।
प्रश्न 4.
‘वंश’ शब्द के क्या अर्थ हैं?
उत्तर:
‘वंश’ शब्द के दो अर्थ हैं-बाँस और पुत्र।
प्रश्न 5.
भारवि की प्रशंसा में मल्लिनाथ की उक्ति क्या है?
उत्तर:
भारवि की प्रशंसा में मल्लिनाथ की उक्ति है कि भारवि की अर्थ गम्भीर वाणी नारियल के फल की तरह ऊपर से कठोर और भीतर से एकदम रसपूर्ण है।
नारियल लघु उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
तमिलनाडु में लेखक को क्या-क्या देखने को मिला?
उत्तर :
तमिलनाडु में लेखक को भारत के समुद्र की तटरेखा देखने को मिली। यह तटरेखा पल्लवों के ऐश्वर्य की छाँह में नारियल के पेड़ों की पंक्ति से युक्त थी।
प्रश्न 2.
नारियल को पिता के प्यार से जोड़ने के पीछे जो दृष्टि है वह क्या है और क्यों?
उत्तर:
नारियल को पिता के प्यार से जोड़ने के पीछे लोक चेतना की गहरी जीवन दृष्टि है जो अनुशासन को महत्त्व देती है, अनुशासित वात्सल्य को महत्व देती है। इसका अभिप्राय यह है कि जीवन में कठोर अनुशासन तो हो पर साथ ही दूसरों को सुख देने की मधुर कामना भी हो तभी जीवन सार्थक एवं सफल माना जाएगा।
प्रश्न 3.
नारियल के ‘भाव बन्धन’ से लेखक का क्या तात्पर्य है?
उत्तर:
नारियल के ‘भाव बन्धन’ से लेखक का यह तात्पर्य है कि जब हम अपने किसी पूज्य या सम्मानित व्यक्ति को नारियल भेंट करते हैं तो उसके पीछे यह भाव होता है कि तुम हमारे जीवन में अन्तर्निहित सम्पूर्ण श्रद्धा की भावना को ले जाओ और श्रद्धा से आबद्ध व्यक्ति सदैव गतिशील रहता है, वह कभी भी रुकता नहीं है।
नारियल दीर्घ उत्तरीय प्रश्न
प्रश्न 1.
निम्नलिखित गद्य खण्डों की सन्दर्भ एवं प्रसंग सहित व्याख्या कीजिए
(अ) इसमें वह कठोरता ………………… आँख न हो।
उत्तर:
सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश ‘नारियल’ पाठ लेख से लिया गया है। इसके लेखक पं. विद्यानिवास मिश्र हैं।
प्रसंग :
लेखक ने इस अंश में नारियल के रूप में छिपी हुई भावनाओं पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि नारियल का फल मांगलिक कार्यों में प्रयोग में लाया जाता है। मांगलिक का अर्थ मधुर होना है। पर यहाँ यह भी बताया गया है कि उसका अर्थ मधुर होना
तो है ही साथ ही उसमें कठोरता का होना भी अनिवार्य माना गया है। क्योंकि कठोरता के अभाव में मधुरता की रक्षा नहीं हो सकती। यदि उसमें कठोरता होगी तो वह ताप को तथा अन्य अनेक प्रकार की कुत्सित (बुरी) दृष्टियों को भी सरलता से झेल सकेगी। इसके साथ ही उसमें हर चीज को गहनता से देखने हेतु एक तीसरा नेत्र भी हो। नारियल में तीन आँखें होती हैं, इसी ओर लेखक का इशारा है।
(ब) कठोरता के बिना …………….. द्रव नहीं बनता।
उत्तर:
सन्दर्भ एवं प्रसंग :
पूर्ववत्।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि जीवन में मधुरता की रक्षा कठोरता ही कर सकती है अतः मानव को मधुर एवं सहज होने के साथ-ही-साथ कठोर एवं संयमित भी होना चाहिए। ताप या कष्टों के झेल लेने के पश्चात् ही मधुर रस का जन्म होता है। अतः मनुष्यों को नारियल के समान ऊपर से शुष्क एवं कठोर होना चाहिए तथा अन्दर से रससिक्त।
(स) ऋतु चक्र …………… पर ही होता है।
उत्तर:
लेखक कहता है कि यह हिन्दुस्तान देश अपने आपमें अनोखा है। इसकी पहचान इसमें बहने वाली नदियों से होती है या इस देश में पायी जाने वाली वनस्पतियों से होती है। इसके देशकाल की जानकारी यहाँ बहती हुई नदियाँ अथवा यहाँ पर पाये जाने वाले बड़े वृक्षों से होती है। कौन-सी ऋतु कब आ रही है। उसका आभास सबसे पहले वनस्पतियाँ ही देती हैं। यथा-सरसों के फूलने पर या नये-नये पत्तों के आने पर बसन्त ऋतु के आगमन की सूचना मिल जाती है उसी प्रकार पत्तों के वृक्षों से पृथ्वी पर गिरने से हमें पतझड़ की सूचना मिल जाती है।
प्रश्न 2.
‘नारियल’ विषय पर संक्षिप्त आलेख लिखिए।
उत्तर:
‘नारियल’ का हमारी संस्कृति में विशेष महत्त्व है। सभी मांगलिक कार्यों में; यथा-हवन में, कथा में, विवाह में, पूजा में, मकान, दुकान के शुभ मुहूर्त आदि सभी में नारियल की महत्ता मानी जाती है।
नारियल का फल उष्ण कटिबन्ध का फल है। समुद्र तटीय इलाकों में इसकी खूब पैदावार होती है। यह देखने में ऊपर से शुष्क एवं कठोर होता है पर भीतर से एकदम मधुर होता है। लेखक का मानना है कि कर्तव्यपरायण व्यक्ति भी नारियल के ही समान होता है। वह कर्तव्यपालन में अनुशासन एवं आत्म संयम पर बल देता है साथ ही अन्दर से वह कोमल एवं मधुर तथा परोपकारी होता है। इस प्रकार अनुशासन रखते हुए भी वह कल्याणकारी कार्य करता है। इसी कारण मांगलिक कार्यों में नारियल को विशेष महत्त्व दिया गया है।
नारियल की तुलना पिता से की गयी है। पिता भी नारियल के समान ही ऊपर से कठोर एवं अनुशासन प्रिय होता है पर भीतर से दयार्द्र एवं कोमल होता है। समाज के लोगों को भी अपना जीवन नारियल के अनुरूप बनाना चाहिए।
प्रश्न 3.
‘पिता’ की तुलना नारियल की किस प्रकृति विशेष से की है और क्यों?
उत्तर:
पिता की तुलना नारियल की उस प्रकृति विशेष से की है जिसमें नारियल ऊपर से तो शुष्क एवं कठोर दिखाई देता है पर भीतर से मधुर रस से पूर्ण होता है। उसी तरह पिता भी अनुशासन का प्रबल समर्थक होने के कारण ऊपर से शुष्क एवं कठोर दिखाई देता है पर इस अनुशासन की कठोरता धारण करता हुआ पिता बालक के हित एवं कल्याण की भावना अपने अन्त:करण में संजोये रखता है। अनुशासन के मूल में दूसरों के हित की भावना भरी हुई है। अतः जीवन में अनुशासन पिता के समान ही होना चाहिए।
नारियल भाषा अध्ययन
प्रश्न 1.
निम्नलिखित शब्दों की शुद्ध वर्तनी लिखिएसारथकता, रितु, रिणियों, मधूर।
उत्तर:
प्रश्न 2.
निम्नलिखित शब्दों के हिन्दी मानक रूप लिखिएपिपरा, इमलिया।
उत्तर:
शब्द हिन्दी मानक रूप
पिपरा पीपल
इमलिया इमली
प्रश्न 3.
निम्नलिखित शब्दों के विलोम रूप लिखिएसिंचन, तपन, भोग, गाँव, मधुर।
उत्तर:
शब्द | विलोम |
सिंचन | असिंचन |
तपन | शीत |
भोग | योग |
गाँव | नगर |
मधुर | कटु |
प्रश्न 4.
निम्नलिखित शब्दों का वाक्यों में प्रयोग कीजिए-
वनस्पति, मधुरता, पीढ़ी-दर-पीढ़ी, वंश वृक्ष, अभिनन्दन।
उत्तर:
वनस्पति – पर्वतीय क्षेत्रों में वनस्पतियाँ बहुत मिलती हैं।
मधुरता – नारियल ऊपर से तो कठोर लगता है पर भीतर मधुरता भरे रहता है।
पीढ़ी-दर-पीढ़ी – मनुष्य इस संसार में पीढ़ी-दर-पीढ़ी अपने समाज को कुछ-न-कुछ देता ही रहता है।
वंश वृक्ष – हर मनुष्य का अपना वंश वृक्ष होता है।
अभिनन्दन – सज्जन लोगों का समाज को सदैव अभिनन्दन करना चाहिए।
‘प्रश्न 5.
निम्नलिखित शब्दों में रूढ़, यौगिक और योगरूढ़ शब्द अलग-अलग लिखिए
नववधु, उद्यान-विज्ञानी, विरूप, विश्व, मंत्र, लता, हिमालय।
उत्तर:
नारियल संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या
(1) हिन्दुस्तान एक विचित्र देश है, उसकी पहचान नदी से होती है या वनस्पति से। उसके देशकाल का बोध या तो नदी कराती है या वनस्पति कराती है। विशेष रूप से काल का बोध वनस्पति ही कराती है। उसके ऋतु चक्र का अवतरण सबसे पहले वनस्पति जगत् पर ही होता है।
कठिन शब्दार्थ :
विचित्र = अनोखा; ऋतु-चक्र = छः ऋतुओं का बारी-बारी से; अवतरण = आना।
सन्दर्भ :
प्रस्तुत गद्यांश नारियल’ पाठ से लिया गया है। इसके लेखक पं. विद्यानिवास मिश्र हैं।
प्रसंग :
इन पंक्तियों में लेखक ने नदियों एवं वनस्पतियों के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि यह हिन्दुस्तान देश अपने आपमें अनोखा है। इसकी पहचान इसमें बहने वाली नदियों से होती है या इस देश में पायी जाने वाली वनस्पतियों से होती है। इसके देशकाल की जानकारी यहाँ बहती हुई नदियाँ अथवा यहाँ पर पाये जाने वाले बड़े वृक्षों से होती है। कौन-सी ऋतु कब आ रही है। उसका आभास सबसे पहले वनस्पतियाँ ही देती हैं। यथा-सरसों के फूलने पर या नये-नये पत्तों के आने पर बसन्त ऋतु के आगमन की सूचना मिल जाती है उसी प्रकार पत्तों के वृक्षों से पृथ्वी पर गिरने से हमें पतझड़ की सूचना मिल जाती है।
विशेष :
- लेखक ने भारत में नदियों एवं वनस्पतियों के महत्त्व पर प्रकाश डाला है।
- भाषा सहज एवं सरल है।
(2) ये पेड़ हमारी समष्टि-चेतना के प्रतीक हैं। एक देह से अनेक होने की फलवत्ता इनमें दिखाई पड़ती है और अनेक होकर भी एक ही पहचान रखने की अन्विति भी इनमें दिखाई पड़ती है। इन सबका अलग-अलग स्वाद है, रस है। पर नारियल की बात अलग है। वह सम्पूर्ण जीवन है, एक कठोर आचरण में मधुर रस संहित रूप से संचित करने वाला जीवन है।
कठिन शब्दार्थ :
समष्टि-चेतना = चेतना जगत् के; फलवत्ता = फलवती होना; अन्विति = समाहित होने की भावना।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्। प्रसंग-लेखक ने वृक्षों को मानव चेतना का प्रमाण माना है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि वनस्पतियाँ अर्थात् पेड़-पौधे अपने भीतर एक चेतना जगत् को धारण किये हुए हैं। वृक्ष तो एक अकेला ही होता है लेकिन जब वह पुष्पित एवं फलित होता है तो उस एक से अनेकता का जन्म होता है। कहने का भाव यह है कि वृक्ष के फलने पर उन फलों के बीजों से अनेक वृक्ष उत्पन्न होते हैं यही एकता की अनेकता है। बीज का पुनः वृक्ष रूप में उपजना उसके अमरत्व की निशानी है। इस प्रकार वे अनेक होते हुए भी एक होने के स्वरूप को प्रस्तुत करते हैं। वृक्षों के विविध रूप होते हैं और अपने इस विविध रूप में ही वे अलग-अलग स्वाद वाले फल देते हैं। उन सबका रस भी अलग-अलग गुणों वाला होता है। परन्तु इन वृक्षों में नारियल की पहचान अलग ही है।
वह अपने आप में समग्रता को धारण किए हुए है। उसका ऊपरी आवरण कठोर होता है पर अपने अन्त:करण में वह मधुर रस को छिपाये रहता है। वह रस एक संहिति है जिससे जीवन को सरसता प्राप्त होती है। कहने का भाव यह है कि नारियल का फल ऊपर से भले कठोरता का आभास करा रहा है और यह कठोरता भी जीवन में अनुशासन का पर्याय है अर्थात् हमें अपने जीवन को अनुशासन में बाँधकर शुष्क रूप में रखना है लेकिन हमारे अन्त:करण में रस का खजाना होना चाहिए जो संसार को सुख एवं शान्ति प्रदान कर सके।
विशेष :
- लेखक नारियल के फल के समान ही व्यक्ति को ऊपर से शुष्क एवं कठोर बने रहने की तथा भीतर से रस पूर्ण बने रहने की शिक्षा देता है।
- भाषा सहज एवं सरल है।
(3) जो लोकगीत मैंने पहले उद्धत किया उसका यही तो अभिप्राय है कि तुम सम्पूर्ण जीवन जियो, कठोर भी बनो, मधुर भी बनो। बिना कठोर हुए, बिना कर्तव्य-परायण हुए करुणा कहाँ से आएगी। निरी करुणा भी किस काम की, यदि उसमें चारुता और मंजुता न हो। चारुता के लिए मृदु और कठोर का सन्तुलन चाहिए और मंजुता के लिए ताप की पकाई चाहिए। यह जीवन केवल अपने खाने-पीने की वस्तु नहीं है। यह उपभोक्ता नहीं है। यह उपभोग्य है। यही इसका सौभाग्य है। सौभाग्य से वंचित भाग अमंगल है, निरर्थक है।
कठिन शब्दार्थ :
अभिप्राय = मतलब; निरी = कोरी, केवल; चारुता = सुन्दरता; मंजुता = कोमलता; मृदु = कोमल; उपभोग्य = उपभोग में लाने योग्य; अमंगल = अशुभ; निरर्थक = जिसका कोई अर्थ न हो।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इसके लेखक ने खाउ पियउ धना नरियर, बिलसउ धना सेनुर’ लोकगीत की व्याख्या की है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि मैंने जो यह उपर्युक्त लोकगीत की एक पंक्ति प्रस्तुत की है उसका स्पष्ट मतलब यह है कि तुम जीवन को ठाठ से जियो, उमंग से जियो लेकिन जीवन में कठोरता भी रहे और मधुरता भी। जीवन में कठोरता धारण किए बिना अथवा कर्तव्यपरायण हुए बिना करुणा नहीं आ पायेगी और आगे लेखक कहता है कि कोरी करुणा भी जीवन में कोई महत्त्व नहीं रखती है उसमें चारुता एवं मंजुता भी होनी चाहिए। चारुता जीवन में तभी आएगी जब उसमें मृदु एवं कठोर का सन्तुलन होगा, साथ ही मंजुता के लिए उसमें तपन भी होनी चाहिए। बिना तपन के मंजुता भी सारगर्भित नहीं रहती है। हमारे जीवन का लक्ष्य केवल उपभोक्ता बनकर रह जाना नहीं है अपितु हमें तो अपने आपको उपभोग्य बनाना होगा। जब मनुष्य अपने जीवन को दूसरों के लिए उपभोग्य बना देगा तभी उसे उसके जीवन की सार्थकता प्राप्त हो सकेगी। यही सार्थकता उसका सौभाग्य होगी। सौभाग्य से रहित भोग अकल्याणकारी होता है, वह निरर्थक होता है।
विशेष :
- लेखक का मानना है कि जीवन में कठोरता एवं मधुरता दोनों का सामंजस्य होना चाहिए। तभी जीवन सार्थक बन पायेगा।
- भाषा सहज एवं सरल है।
(4) नारियल को पिता के प्यार से जोड़ने के पीछे लोक-चेतना की गहरी जीवन दृष्टि है जो अनुशासन को महत्त्व देती है, अनुशासित जीवन वात्सल्य को महत्त्व देता है। नारियल को पूर्णाहुति के रूप में अर्पित करने का यह अभिप्राय है कि अनुशासन में संधा पर भीतर रस की उत्कण्ठा से दूसरों को सुख देने की कामना से भरा हो, तभी जीवन है, पूर्ण जीवन है, उसी को अर्पित करके अनुष्ठान पूर्ण होता है। बिना आत्म-संयम की दीक्षा के कोई भी स्नेह, कोई भी प्यार पूर्ण नहीं होता है।
कठिन शब्दार्थ :
पूर्णाहुति = पूर्ण आहुति यज्ञ में की जाती है; अर्पित = भेंट; संधा=बँधा हुआ, डटा हुआ; अनुष्ठान = किसी विशेष प्रयोजन से किया जाने वाला व्रत या यज्ञ; दीक्षा = शिक्षा।
सन्दर्भ :
पूर्ववत्।
प्रसंग :
इस गद्यांश में नारियल को लेखक ने पिता के प्यार से जोड़ा है।
व्याख्या :
लेखक कहता है कि पिता के मन में नारियल फलता है। यह नारियल ऊपर से बड़ा संयत, शुष्क एवं कठोर दिखाई देता है पर भीतर से वह रस से पूर्ण होता है। इस नारियल का सम्बन्ध पिता के प्यार से जोड़ने में लेखक को लोक चेतना की गहरी जीवन दृष्टि देखने को मिलती है और यह जीवन दृष्टि ऐसी है जो अनुशासन को महत्त्व देती है तथा अनुशासित वात्सल्य को महत्त्व देती है। यज्ञों में पूर्णाहुति के समय नारियल की महत्ता को बताते हुए लेखक कहता है कि पूर्णाहुति के समय जो नारियल यज्ञ की वेदी में आहुत किया जाता है उसके पीछे मन्तव्य यह है कि व्यक्ति को अनुशासन में तो आबद्ध रहना चाहिए पर अन्त:करण में दूसरों को सुख देने की ही भावना होनी चाहिए। जीवन की सार्थकता एवं पूर्णता भी अर्पण में है और इसी अर्पण से अनुष्ठान पूर्ण होता है। जब तक जीवन में आत्म-संयम नहीं है तब तक न कोई दीक्षा, न प्यार पूर्ण हो सकता है।
विशेष :
- लेखक जीवन में अनुशासन को बहुत महत्त्व देता है क्योंकि अनुशासित व्यक्ति ही संयत रहकर समाज में कुछ योगदान कर सकता है साथ ही उसे अन्त:करण से दयालु होना चाहिए।
- भाषा सहज एवं सरल है।