MP Board Class 12th Special Hindi मुहावरे एवं लोकोक्तियाँ
1. मुहावरे
ये ऐसे छोटे-छोटे वाक्यांश हैं जिनके प्रयोग से भाषा में सौन्दर्य, प्रभाव, चमत्कार और विलक्षणता आती है। मुहावरा वाक्यांश होता है, अतः इसका स्वतन्त्र प्रयोग न होकर वाक्य के बीच में उपयोग किया जाता है। मुहावरे के वास्तविक अर्थ का ज्ञान होने पर ही इसका सही उपयोग हो सकता है। इसका सामान्य अर्थ न लेकर इसके गूढ़ अर्थ या व्यंजना से अर्थ समझना चाहिए। इसका उपयोग करने में इन बातों का ध्यान रखना चाहिए-
(1) मुहावरे को पढ़कर उसमें छिपे अर्थ को समझने का प्रयास करना चाहिए।
(2) उसी के अर्थ से मिलती-जुलती घटना या बात को चुनकर संक्षेप में लिखना चाहिए।
(3) मुहावरे को उसी वाक्य में मिलाकर उसी काल की क्रिया में रख देना चाहिए।
(4) यह भी ध्यान रखना आवश्यक है कि मुहावरा प्रयोग करने से अनेक रूप ले सकता है,क्योंकि उसमें थोड़ा परिवर्तन हो जाता है।
(5) मुहावरे के मूल अर्थ में ही उसका प्रयोग नहीं होता। जैसे-अंगारों पर पैर रखना = संकट में पड़ जाना। आई.ए. एस. की परीक्षा में बैठना और सफलता पाना अंगारे पर पैर रखने जैसा है। अंगारे पर पैर रखने में जितना कष्ट होता है,उतना ही प्रशासनिक परीक्षा की तैयारी और परीक्षा उत्तीर्ण करने में होता है।
यहाँ कुछ मुहावरे,उनके अर्थ और प्रयोग क्रमशः दिये जा रहे हैं-
(1) अपना उल्ल सीधा करना (अपना मतलब सिद्ध करना)-ममता मेरी हिन्दी की कॉपी ले गयी, अपना उल्लू तो सीधा कर लिया, पर मैंने इतिहास की किताब माँगी तो मना कर दिया।
(2) अक्ल पर पत्थर पड़ना (बुद्धि भ्रष्ट हो जाना) परीक्षा के समय वह रोजाना दिन में सो जाती थी,मानो उसकी अक्ल पर पत्थर पड़ गये हों।
(3) अन्धे की लाठी (एकमात्र आश्रय)-राकेश अपने बूढ़े बाप की अन्धे की लाठी है। [2009]
(4) अन्धेरे घर का उजाला (एकमात्र पुत्र) दीपक शर्माजी के अन्धेरे घर का उजाला है।
(5) अक्ल चकराना (विस्मित होना, बात समझ में न आना)-रामबाबू के निधन का समाचार सुनकर तो अक्ल चकरा गयी।
(6) अलग-अलग खिचड़ी पकाना (सबसे अलग-अलग) संगीता और अनुराधा दिन भर न जाने क्या अपनी अलग-अलग खिचड़ी पकाती रहती हैं।
(7) अंगार उगलना (कटु वचन बोलना)-जीजी या तो बोलती नहीं, जब बोलेंगी तो अंगार उगलेंगी।
(8) अगर-मगर करना (टालने का प्रयत्न करना)-भाभी से जब भी कमला की शादी की बात करो, वे अगर-मगर करने लगती हैं।
(9) अंग-अंग ढीला हो जाना (थक जाना) आपरेशन होने के बाद से तो ऐसा लगता है कि अंग-अंग ढीले हो गये।
(10) अंकुश देना (वश में रखना)-पिताजी तीनों लड़कों पर सदैव अंकुश दिये रहते हैं।
(11) अपने मुँह मियाँ मिट्ट बनना (अपनी प्रशंसा स्वयं करना)-अरुण हमेशा अपने मुँह मियाँ मिट्ट बना रहता है। [2017]
(12) अपने पैर पर कुल्हाड़ी मारना (स्वयं की हानि करना) रश्मि पढ़ाई अधूरी छोड़कर चली गयी, उसने अपने पैर पर कुल्हाड़ी मार ली।
(13) अपना गला फँसाना (स्वयं को संकट में डालना)-मंजु की सगाई करके मैंने अपना गला फँसा दिया।
(14) अन्धे को दिया दिखाना (मूर्ख को उपदेश देना)-गाँव वालों से प्रौढ़ शिक्षा की बात करना अन्धे को दिया दिखाने जैसा है।
(15) अंगद का पैर होना (दृढ़ निश्चय से जम जाना) राजीव तो अंगद के पैर की तरह जम गये हैं।
(16) अँगूठा दिखाना (साफ मना करना)-रानी से काम करने को कहा तो वह अँगूठा दिखाकर भाग गयी।
(17) अक्ल के घोड़े दौड़ाना (अटकलें लगाना) जब माला से पूछा कि सप्तर्षि कहाँ हैं तो वह अक्ल के घोड़े दौड़ाने लगी।
(18) अक्लमन्द की दुम बनना (मूर्ख होकर बुद्धिमानी की बात करना)-कमल व्यवसाय के बारे में कुछ समझता तो है नहीं, फिर भी अक्लमन्द की दुम बना रहता है।
(19) अपना-सा मुँह लेकर रहना (असफल होकर लज्जित होना) जब मीनू निकी को छोड़कर सिनेमा चली गयी तो निकी अपना-सा मुँह लेकर रह गयी।
(20) अरण्यरोदन करना (निरर्थक बात करना)–नेताओं के वक्तव्य अरण्यरोदन की तरह हो गये हैं।
(21) आँखों का तारा (अत्यन्त प्रिय) रुचि अपनी मम्मी की आँख का तारा है। [2009]
(22) आँख का किरकिरा होना (सदा खटकते रहना)-सुधीर की जब से पदोन्नति हुई है, वह सबकी आँख का किरकिरा हो गया।
(23) आँखों में पानी न रहना (बेशर्म हो जाना)—वह दिन भर व्यर्थ ही घूमता रहता है, उसकी आँखों में पानी ही नहीं रहा।
(24) आँख मूंद लेना (उदासीन होना)-अपना मकान बन जाने के बाद बड़े भैया ने हम सबकी तरफ से आँखें मूंद लीं।
(25) आड़े हाथ लेना (भर्त्सना करना, फटकारना) इस बार जब सन्तोष फिर उपदेश देने लगा तो मैंने उसे आड़े हाथों लिया।
(26) आठ आँसू रोना (अधिक दुःखी होना)-शास्त्रीजी के निधन से देशवासी आठ आँसू रोये।
(27) आपे से बाहर होना (क्रोधित होना)-बिहारी छोटी-सी बात पर भी आपे से बाहर हो जाता है।
(28) आटा-दाल का भाव मालूम होना (विषम परिस्थितियों में यथार्थ ज्ञान मिलना)-सुरेशजी,शादी होने दो, फिर मालूम होगा आटे-दाल का भाव।
(29) आकाश के तारे तोड़ना (असम्भव कार्य करना) वह प्रीति को इतना प्यार करता है कि उसके लिए आकाश के तारे भी तोड़ सकता है।
(30) आसमान सिर पर उठाना (बहुत अधिक शोर) निष्ठा गुड़िया लेकर भागी तो जमाते ने रो-रोकर आसमान सिर पर उठा लिया।
(31) आकाश से बातें करना (बहुत ऊँचा होना) सौरभ की पतंग आकाश से बातें करने लगी तो वह बहुत खुश हो गया।
(32) आँखें लाल-पीली करना (क्रोध करना) उत्सव के मन की न हो तो वह प्रायः आँखें लाल-पीली करने लगता है।
(33) आँखें बिछाना (प्यार से स्वागत करना)-दीपावली पर सुधा ने लिखा; आओ, हम आँखें बिछाये बैठे हैं। .
(34) आँख का काजल निकालना (ठग लेना) प्रफुल्ल इतना चतुर है कि वह आँख का काजल निकाल ले और पता ही न चले।
(35) आग में घी डालना (क्रोध को और बढ़ाना)-जब माताजी को राजू समझाने लगा तो पिताजी बोले-अरे,क्यों आग में घी डालता है?
(36) आकाश-पाताल का अन्तर (अत्यधिक पार्क होना)-नीता और गीता की आदत में आकाश-पाताल का अन्तर है।
(37) उड़ती चिड़िया पकड़ना (मन की बात जानना)-शास्त्रीजी के पास जाओ, वे उड़ती चिड़िया पकड़ लेते हैं।
(38) कान का कच्चा (अफवाहों पर विश्वास करना) श्रीवास्तवजी कान के कच्चे हैं, तभी तो रावत की बातों को सत्य मान लेते हैं।
(39) कान में तेल डालना (अनसुनी करना) क्यों विमला, आज कान में तेल डालकर बैठी हो क्या?
(40) चेहरे पर हवाइयाँ उड़ना (घबरा जाना) जब जयकुमार से पूछा-कहाँ से आ रहे हो तो उसके चेहरे पर हवाइयाँ उड़ने लगीं।
(41) हाथों के तोते उड़ जाना (होश उड़ना) विष्णु घर से क्या गया, नीलिमा के हाथों के तोते उड़ गये।
(42) न तीन में न तेरह में (अप्रासंगिक होना) विभाग की कार्यवाही में कितनी ही गड़बड़ हुई,पर रमेश को क्या वह न तीन में न तेरह में।
(43) सूरज को दीपक दिखाना (ज्ञानवान को ज्ञान देना) सन्ध्या जब हॉस्टल से घर आई तो नई-नई बातें बताकर सूरज को दीपक दिखा रही थी।
(44) पहाड़ टूट पड़ना (मुसीबत आ जाना)—पेट्रोल के दाम क्या बढ़े, जनता पर पहाड़ टूट पड़ा।
(45) ईद का चाँद होना (बहुत दिनों बाद दिखाई देना) स्वाति जब छुट्टियाँ मनाकर आई तो नीलम बोली, अरे ! वाह तुम तो ईद का चाँद हो गयी।’
(46) हाथ कंगन को आरसी क्या? (प्रत्यक्ष को प्रमाण की जरूरत नहीं) रेखा की चित्रकला के लिए हाथ कंगन को आरसी क्या? पूरा घर चित्रों से भरा है।
(47) चोली-दामन का साथ (घनिष्ठ सम्बन्ध)-प्रूफ रीडर और प्रकाशक का तो चोली दामन का साथ है।
(48) जी चुराना (काम न करना,काम से डरना) काशीराम हमेशा काम से जी चुराता है।
(49) कलम तोड़ना (अच्छी रचना करना)-आकाश जी जब कविता लिखते हैं, कलम तोड़ देते हैं।
(50) धूप में बाल सफेद होना (अनुभवहीन ज्ञान)-दादी ने रोहन को डाँटकर कहा, तुम मेरी बात मानने को तैयार नहीं हो,क्या धूप में मेरे बाल सफेद हुए हैं?
(51) बाल-बाँका न होना (हानि न होना)-विपत्ति में पड़ने पर धैर्य नहीं खोना चाहिये, धैर्यवान व्यक्ति का कभी बाल-बाँका न होगा।
(52) सिर धुनना (पछताना) दीपक ने अपनी सारी आमदनी जुये में गँवा दी अब सिर धुन रहा है।
(53) सिर पर कफन बाँधना (मरने से न डरना)-देश के वीर सिपाही युद्ध के लिये सिर पर कफन बाँधकर चलते हैं। [2012]
(54) आँखों में धूल झोंकना (धोखा देना) आजकल ठग आँखों में धूल झोंककर किसी भी व्यक्ति को आसानी से लूट लेते हैं।
(55) कान खड़े करना (सतर्क रहना) युद्ध स्थल में सैनिकों को सदैव कान खड़े रखना चाहिये।
(56) नाकों चने चबाना (तंग करना)-सीमा ने उधार के रुपये लौटाने में मुझे नाकों चने चबा दिये।
(57) मुँह की खाना (पराजित होना)–भारत को क्रिकेट विश्व कप में मुँह की खानी पड़ी।
(58) दाँत खट्टे करना (हरा देना) भारतीय सैनिकों ने कारगिल के युद्ध में पाकिस्तानी सेना के दाँत खट्टे कर दिये। [2013, 17]
(59) छाती पर मूंग दलना (जान-बूझकर तंग करना)-सुरेश ने रमेश से कहा-तुम अपना काम देखो, व्यर्थ में मेरी छाती पर क्यों मूंग दल रहे हो?
(60) छाती पर साँप लोटना (ईर्ष्या करना) पड़ोसी की सम्पन्नता को देखकर उसकी छाती पर साँप लोट गया।
(61) पेट में चूहे दौड़ना (बहुत भूख लगना) रमेश ने गुरुजी से कहा, अब आप मुझे छुट्टी दे दें, मेरे तो पेट में चूहे दौड़ रहे हैं।
(62) हथेली पर सरसों उगाना (जल्दी करना) देवेन्द्र तुम कुछ देर प्रतीक्षा करो हथेली पर सरसों उगाने से क्या लाभ?
(63) हाथ पीले करना (विवाह सम्पन्न करना)-आधुनिक युग में दहेज प्रथा के कारण बेटी के हाथ पीले करना पिता के लिये कठिन समस्या है।
(64) हाथ धोकर पीछे पड़ना (बुरी तरह पीछे लगना) बहुत से लोगों की आदत होती है कि वे अपनी स्वार्थपूर्ति के लिये व्यर्थ ही हाथ धोकर पीछे पड़ जाते हैं।
(65) होम करते हाथ जलना (अच्छे काम में बदनामी) समाज सेवा ऐसा कार्य है जिसमें होम करते हाथ जलने की सम्भावना बनी रहती है।
(66) मुट्ठी गरम करना (भेंट देना/रिश्वत देना)-आजकल मुट्ठी गर्म किये बिना कोई भी कार्य नहीं होता है।
(67) टेढ़ी अँगुली से घी निकालना (सीधे काम नहीं बनता)-दुष्ट व्यक्ति से कोई भी कार्य टेढी अंगुली से घी निकालने के समान है।
(68) पाँचों अँगुलियाँ घी में (सब प्रकार से सुख)-लॉटरी निकलने के बाद रमेश की पाँचों अँगुलियाँ घी में हैं।
(69) कमर टूटना (थक जाना) श्रमिकों की घोर परिश्रम के कारण कमर टूट जाती है।
(70) फूंक-फूंककर पैर रखना (सावधानी से चलना)-आज की स्पर्धा के युग में व्यापारी को अपनी उन्नति के लिये फूंक-फूंककर पैर रखना चाहिये।
(71) आँख लगना (झपकी आना) टी. वी.देखते-देखते अचानक मेरी आँख लग गयी और चोर चोरी कर ले गये।
(72) आँखें दिखाना (क्रोध करना)-तुम मुझे आँखें दिखाकर भयभीत नहीं कर सकते।
(73) आँखों से गिर जाना (सम्मान खो देना) लोग झूठ बोलने के कारण दूसरों की आँखों से गिर जाते हैं।
(74) आग लगाना (भड़काना) कुछ लोगों की आदत आग लगाकर तमाशा देखने की होती है।
(75) आँसू पीना (दुःख में विवशता का अनुभव करना)-पुत्र की मृत्यु के बाद पिता को आँसू पीकर मौन रहना पड़ा।
(76) आँसू पोंछना (धीरज देना)-हमारा कर्तव्य है कि दुःख पड़ने पर सदैव दूसरों के आँसू पोंछने का प्रयास करें।
(77) आकाश कुसुम (अनहोनी, असम्भव बात) सीमा के लिये पूरे उत्तर प्रदेश में प्रथम स्थान प्राप्त करना आकाश कुसुम के समान प्रमाणित हुआ।
(78) आस्तीन का साँप (विश्वासघाती)-आज के युग में प्रत्येक क्षेत्र में आस्तीन के साँप विद्यमान हैं। अतः उनसे सतर्क रहने की आवश्यकता है। [2013]
(79) आब उतरना (इज्जत चली जाना) चोरी करने के फलस्वरूप मोहन की आब उतर गयी।
(80) उल्टी गंगा बहना (विपरीत काम करना) यह कार्य मेरे वश के बाहर है, तुम तो सदैव उल्टी गंगा बहाते हो। [2009]
(81) उधेड़-बुन में पड़ना (दुविधा में पड़ना) कार्य का अत्यधिक बोझ होने के कारण दीपक उधेड़-बुन में पड़ा है कि कौन-सा कार्य पहले पूरा करे।
(82) उल्लू बनाना (मूर्ख बनाना)-सोहन ने मोहन से कहा तुम कैसे धोखा खा गये, तुम तो सबको उल्लू बनाने में माहिर हो।
(83) ऊँच-नीच समझना (भले-बुरे का विवेक होना) बुद्धिमान व्यक्ति ऊँच-नीच समझकर अपना कार्य सम्पन्न करते हैं।
(84) एक आँख से देखना (समदर्शी)–माता-पिता को पुत्र एवं पुत्री को एक आँख से देखना चाहिये।
(85) एक लाठी से हाँकना (अच्छे-बुरे का अन्तर न करना)-सज्जन एवं दुर्जन को एक लाठी से हाँकना अनुचित है।
(86) कगार पर खड़े होना (मृत्यु के समीप) व्यक्ति को कगार पर खड़े होने के समय ईश्वर याद आता है।
(87) कचूमर निकालना (अत्यधिक पिटाई करना)-पुलिस ने चोर को इतना प्रताड़ित किया कि उसका कचूमर निकल गया।
(88) कच्चा चिट्टा खोलना (पोल खोलना) हत्यारे को पकड़ लिये जाने पर उसने अपने अपराध का कच्चा चिट्ठा खोल दिया।
(89) कदम चूमना (खुशामद करना) आजकल लोग आगे बढ़ने के लिये अधिकारियों के कदम चूमते हैं।
(90) कलेजा जलना (असन्तोष से दुःख होना)-दूसरों की प्रगति देखकर अपना कलेजा जलना मूर्खता है।
(91) कलेजा फटना (दुःखी होना) पति की मृत्यु के बाद सीमा का कलेजा फट गया।
(92) कलेजे पर पत्थर रखना (दु.ख में धैर्य रखना) व्यापार में घाटा आने पर मोहन ने कलेजे पर पत्थर रखकर नौकरी करना शुरू कर दी।
(93) कान कतरना (किसी से बढ़कर काम दिखाना)-प्रवीण की पुत्र-वधू इतनी निपुण है कि वह अच्छे-अच्छे के कान कतरती है।
(94) कान भरना (चुगली करना)-पड़ोसियों के कान भरना रीमा की पुरानी आदत है।
(95) कानाफूसी करना (आपस में चुपचाप सलाह करना)-विवाह में व्यवधान आने पर रोहित ने अपने सम्बन्धियों से कानाफूसी करना प्रारम्भ कर दी।
(96) कानों कान खबर न लगना (पता न लग पाना) जनता पार्टी के चुनाव में जीत जाने की किसी को कानों कान खबर न थी।
(97) कान पर जूं न रेंगना (तनिक भी प्रभाव न पड़ना) मालिक ने नौकर से कहा कि मैं तुम्हें इतनी देर से बुता रहा हूँ, पर तुम्हारे कान पर जूं नहीं रेंगती।
(98) कुत्ते की मौत मरना (बुरी मौत मरना)-पुलिस मुठभेड़ में दुर्दान्त डाकू कुत्ते की मौत मारा गया।
(99) कोरा जवाब देना (स्पष्ट मना करना) विपत्ति के समय किसी को कोरा जवाब देना अच्छा नहीं है।
(100) काबैल (दिन-रात परिश्रम करना)-पिता ने पुत्र से कहा तुम इस नौकरी को छोड़ दो, दिन-रात कोल्हू के बैल की तरह पिले रहते हो फिर भी कुछ नहीं मिलता।
(101) कौड़ी का न पूछना (तनिक भी सम्मान न करना)-आजकल के पुत्र वृद्ध होने पर माता-पिता को कौड़ी का भी नहीं पूछते हैं।
(102) कौड़ी-कौड़ी को मुहताज होना (अत्यधिक गरीब) मोहन के घर चोरी हो जाने पर वह कौड़ी-कौड़ी को मुहताज हो गया।
(103) खटाई में पड़ना (काम रुक जाना) चुनाव के कारण सड़क निर्माण का कार्य खटाई में पड़ गया।
(104) खाने को दौड़ना (क्रोध करना) राम ने अपने पड़ोसी से कहा तुम व्यर्थ ही खाने को दौड रहे हो मैंने तुमसे क्या कहा है
(105) खून खौलना (अत्यधिक क्रोधित होना)-पुत्र की शरारत को देखकर पिता का खून खौल गया।
(106) खयाली पुलाव पकाना (मन ही मन कल्पना करना)-खयाली पुलाव पकाने से कोई भी काम नहीं होता, परिश्रम सफलता की कुंजी है।
(107) गरम होना (क्रोध आना) आजकल के नवयुवकों में बात-बात पर गर्म होने की आदत है।
(108) गऊ होना (अत्यन्त सीधा होना)-रोहन का स्वभाव गऊ के समान है।
(109) गागर में सागर भरना (थोड़े में बहुत कहना) बिहारी ने अपने दोहों में गागर में सागर भर दिया है।
(110) गाल बजाना (बकवास करना)-परिश्रम करने से फल मिलेगा. गाल बजाने से नहीं।
(111) गाल फुलाना (गुस्से में चुप होना)-सीमा ने गीता से कहा तुम तो हर समय गाल फुलाये रहती हो, तुमसे कौन बात करेगा?
(112) गूलर का फूल होना (दर्शन न होना)-आज के युग में आदर्श व्यक्ति एक प्रकार से गूलर के फूल के समान हो गये हैं।
(113) गुड़ गोबर करना (बना बनाया काम बिगाड़ देना) कार्य पूर्ण होने से पहले ही विनोद ने सब गुड़ गोबर कर दिया।
(114) गुल छर्रे उड़ाना (मौज मस्ती मारना) सोहन अपने पिता की मृत्यु के बाद उनकी सम्पत्ति से गुल छरें उड़ा रहा है।
(115) गोल-माल करना (घपला करना)-आजकल समाचार पत्रों में अधिकांश गोल-माल के समाचार निकलते रहते हैं।
(116) गुल खिलना (रहस्य पता चलना)-पुलिस द्वारा पकड़े जाने पर पता चला कि देवेन्द्र ने कौन-कौन से गुल खिलाये थे।
(117) घड़ों पानी पड़ना (लज्जित होना)-अपने पुत्र की करतूतों को सुनकर सोहन के पिता पर घड़ों पानी पड़ गया।
(118) घर फँक तमाशा देखना (अपनी परिस्थिति से अधिक व्यय करना)-घर फॅक तमाशा देखने वाले कभी जीवन में सफल नहीं होते।
(119) घाव पर नमक छिड़कना (दुःख में और दुःखी करना)-राम ने मोहन से कहा मैं तो खुद ही परेशान हूँ। तुम मेरे घावों पर नमक क्यों छिड़क रहे हो?
(120) घास खोदना (व्यर्थ समय गँवाना) अध्यापक ने छात्र से कहा कि इतने सरल प्रश्न भी नहीं कर पा रहे हो,साल भर क्या घास खोदते रहे?
(121) चम्पत हो जाना (गायब हो जाना)-पुलिस को देखकर अपराधी चम्पत हो जाते हैं।
(122) चिकना घड़ा होना (किसी बात का असर न होना)–श्याम को कितना ही समझाओ लेकिन वह तो चिकना घड़ा हो गया है। किसी की बात सुनता ही नहीं।
(123) चिकनी-चुपड़ी बातें करना (बनावटी प्रेम दिखाना)-आजकल का युग चिकनी-चुपड़ी बातें करके काम बनाने का हो गया है। [2016]
(124) चित्त कर देना (हराना) हॉकी के खेल में सेन्ट पीटर्स स्कूल के छात्रों ने राधा बल्लभ स्कूल के छात्रों को चित्त कर दिया।
(125) चुल्लू भर पानी में डूब मरना (अत्यन्त लज्जित होना)-परीक्षा में बार-बार अनुत्तीर्ण होने पर पिता ने पुत्र से कहा तुम चुल्लू भर पानी में डूब मरो।।
(126) चेहरे का रंग उतरना (उदास होना)-चोरी पकड़े जाने पर सुरेश के चेहरे का रंग उतर गया।
(127) चैन की बंशी बजाना (सुखपूर्वक रहना) लॉटरी निकल आने पर महेश चैन की बंशी बजा रहा है।
(128) छक्के छूटना (पराजित होना) भारतीय सैनिकों के समक्ष पाकिस्तान की सेना के छक्के छूट गये।
(129) छक्के छुड़ाना (निरुत्साहित कर देना) लक्ष्मीबाई ने अंग्रेजों के छक्के छुड़ा दिये।
(130) छक्के पंजे करना (मौज मनाना)-पूँजीपति बिना श्रम के छक्के पंजे करते रहते
(131) छठी का दूध याद आना (अत्यधिक परेशानी का अनुभव करना) पर्वतारोहियों को दुर्गम चढ़ाई चढ़ने में छठी का दूध याद आ गया।
(132) छिद्रान्वेषण करना (दोष ढूँढ़ना)-मित्रों का छिद्रान्वेषण करना उचित नहीं होता है।
(133) छापा मारना (छिपकर आक्रमण करना) विद्युत विभाग ने बड़े-बड़े व्यापारियों पर छापा मारना शुरू कर दिया।
(134) छींटाकशी करना (व्यंग्य करना) बहुत-से लोगों की प्रवृत्ति दूसरों पर छींटाकशी करके प्रसन्न होने की होती है।
(135) छाया करना (संरक्षण देना)-पिता पुत्र के निमित्त सदैव छाया बनकर रहता है।
(136) जबान में लगाम रखना (सम्भल कर बात करना)-बड़ों के समक्ष हमेशा जबान में लगाम रखकर बात करनी चाहिये।
(137) जबान चलाना (जरूरत से ज्यादा बोलना)- तुम चुप क्यों नहीं रहते व्यर्थ में जबान चला रहे हो।
(138) जबानी जमा खर्च (व्यर्थ की बातें विकास कार्य की योजनाएँ आजकल जबानी जमा खर्च तक सीमित रह गयी हैं।
(139) जमीन-आसमान एक करना (सीमा से अधिक कर गुजरना)-परीक्षा के समय विद्यार्थी जमीन-आसमान एक कर देते हैं।
(140) जमीन पर पाँव न रखना (अभिमान करना) अचानक धन प्राप्त होने पर महेश के पाँव जमीन पर नहीं पड़ते।
(141) जली-कटी सुनाना (भली-बुरी कहना) नौकर के उचित प्रकार काम न करने पर मालिक ने उसे जली-कटी सुनाना प्रारम्भ कर दिया।
(142) जड़ खोदना (समूल नष्ट करना) चाणक्य ने अपनी कूटनीति से नन्दवंश की जड़ खोद दी।
(143) जड़ तक पहुँचना (कारण का पता लगा लेना) हमें बात की जड़ तक पहुँचे बिना किसी पर आरोप नहीं लगाना चाहिये।
(144) जहर बोना (दूसरे के लिये संकट उत्पन्न करना) बहुत से लोगों का स्वभाव जहर बोकर दूसरों को कष्ट पहुँचाने का होता है।
(145) जहर उगलना (उग्र बातें करना)-पाकिस्तानी शासक भारत के विरुद्ध जहर उगलते रहते हैं।
(146) जहर का यूंट पीना (क्रोध रोके रहना)-झगड़ा हो जाने पर रमेश जहर का घुट पीकर रह गया।
(147) जान पर खेलना (जोखिम का काम करना)-सुरेश ने अपनी जान पर खेलकर डूबते बच्चे की जान बचायी।
(148) जान में जान आना (भय टल जाना)—भूकम्प समाप्त होने पर लोगों की जान में जान आ गयी।
(149) जान के लाले पड़ना (संकट पड़ना)-अकालग्रस्त क्षेत्र में अन्न के अभाव के कारण जान के लाले पड़ जाते हैं।
(150) आपे से बाहर होना (क्रोध में होश खो बैठना) जगदीश ने श्याम से कहा मेरी जरा-सी भूल पर तुम आपे से बाहर क्यों हो रहे हो?
(151) जी हल्का होना (शान्ति प्राप्त होना)—पुत्र को रोग से मुक्त देखकर माँ का जी हल्का हो गया।
(152) जी छोटा करना (निराश होना)-रमेश ने मोहन से कहा मैं तुम्हारी सहायता के लिये तैयार हूँ, तुम जी छोटा क्यों करते हो?
(153) जी खट्टा होना (स्नेह कम होना)—पैतृक सम्पत्ति में विधिवत् विभाजन न होने पर भाइयों का आपस में जी खट्टा हो गया।
(154) जी का जंजाल (परेशानी का कारण) दुष्ट का संग जी का जंजाल होता है।
(155) जीती बाजी हारना (काम बनते-बनते बिगड़ जाना) सचिन के चोट लगने के कारण भारतीय टीम जीती बाजी हार गयी।
(156) झाँसा देना (धोखा देना)-अपराधी पुलिस वाले को झांसा देकर भाग गया।
(157) टकटकी बाँधना (लगातार देखना)-पपीहा स्वाति नक्षत्र के बादलों को टकटकी लगाकर देखता रहता है।
(158) टस से मस न होना (अड़े रहना)-रावण विभीषण के लाख समझाने पर भी टस से मस नहीं हुआ।
(159) टाँग अडाना (बाधा डालना)-पिता ने पुत्र को समझाते हुए कहा, बड़ों के बीच में टाँग अड़ाना अनुचित है।
(160) टाँग पसार कर सोना (निश्चिन्त होना) बेटी का विवाह सम्पन्न होने पर माता-पिता टॉग पसार कर सोते हैं।
(161) टोपी उछालना/पगड़ी उछालना (अपमान करना) बरात को लौटाकर वर पक्ष ने कन्या के पिता की टोपी उछालकर अच्छा नहीं किया। [2009]
(162) ठोकना बजाना (पूर्णतः परख के देखना)-आधुनिक युग में नौकरों को ठोक बजाकर ही काम पर रखना चाहिये।
(163) डंके की चोट पर कहना (निर्भीकतापूर्वक कहना)-निर्भीक लोग अधिकारियों की काली करतूतों को डंके की चोट पर उजागर करते हैं।
(164) डींग हाँकना (झूठी शेखी बघारना) बहुत से लोगों की व्यर्थ में ही डींग मारने की आदत होती है।
(165) ढिंढोरा पीटना (व्यर्थ प्रचार करना)–नौकरी मिलने से पूर्व ही मोहन ने ढिंढोरा पीटना प्रारम्भ कर दिया कि वह एक उच्च अधिकारी बन गया है।
(166) ढोल में पोल होना (सारहीन सिद्ध होना)-आजकल के नेताओं के कथन ढोल में पोल सिद्ध होते हैं।
(167) ढाल बनना (सहारा बनना)-पत्नी के लिये पति ढाल के समान होता है।
(168) ढुलमुल होना (अनिश्चय) व्यक्ति को जीवन में सफलता प्राप्त करनी हो तो ढुलमुल नीति से नहीं चलना चाहिये।
(169) ढील देना (छूट देना)-माता-पिता द्वारा बच्चों को अधिक ढील देना हानिकारक
(170) तलवे चाटना (खुशामद करना) आजकल बहुत से लोग दूसरों के तलवे चाटकर अपना काम बना लेते हैं।
(171) तारे गिनना (नींद न आना)-सीताजी राम के विरह में तारे गिन-गिन कर अपना समय व्यतीत करती थीं।
(172) तिल का ताड़ बनाना (छोटी बात को बढ़ा-चढ़ाकर कहना) राम ने मोहन से कहा तुमने तिल का ताड़ बनाकर बने बनाये काम को बिगाड़ दिया।
(173) तिलांजलि देना (पूरी तरह त्याग देना) झूठ को तिलांजलि देना सफलता का द्योतक है।
(174) तितर-बितर होना (अलग-अलग होना)-पुलिस को देखकर जुआरी तितर-बितर हो गये।
(175) तीन तेरह होना (तितर-बितर होना)-पिता की मृत्यु के उपरान्त सम्पूर्ण परिवार तीन तेरह हो गया।
(176) तूती बोलना (अधिक प्रभावशाली होना)-आजकल देश में आतंकवादियों की तूती बोल रही है। [2009]
(177) थूक कर चाटना (बात कहकर मुकर जाना)-पाकिस्तानी शासकों का स्वभाव थूक कर चाटने जैसा है।
(178) दम मारना (थोड़ा विश्राम करना)-परीक्षा समाप्त होने के उपरान्त विद्यार्थियों को दम मारने की फुरसत मिली।
(179) माथा ठनकना (पहले से ही विपरीत बात होने की आशंका)-पिता को अत्यधिक रोगग्रस्त देखकर मृत्यु की आशंका से पुत्र का माथा ठनक गया। [2014]
(180) कपाल क्रिया करना (मार डालना)-वीर युद्धभूमि में शत्रुओं की कपाल क्रिया करके ही चैन की साँस लेते हैं।
(181) भाग्य फूटना (दुर्भाग्य का आना)-एकमात्र पुत्र का निधन होने पर उसकी माँ के भाग्य ही फूट गये।
(182) नमक हलाली करना (ईमानदारी बरतना)-स्वामिभक्त सेवक नमक हलाली करके अपनी वफादारी का परिचय देते हैं।
(183) बाल-बाल बचना (परेशानी आने से बचना)-ट्रक की चपेट में आने पर वह बाल-बाल बच गया।
(184) नाक भौं सिकोड़ना (अप्रसन्नता प्रकट करना) जरा-जरा-सी बात पर नाक भौं सिकोड़ना उचित नहीं है।
(185) छोटे मुँह बड़ी बात (सीमा से अधिक कहना)-स्वामी ने नौकर से कहा छोटे मुँह बड़ी बात अच्छी नहीं होती।
(186) दाँतों तले उँगली दबाना (चकित होना) ताजमहल के सौन्दर्य को देखकर विदेशी दाँतों तले उँगली दबाते हैं। [2014]
(187) अँगुली उठाना (दोषारोपण करना) बिना सोचे-समझे दूसरों पर अंगुली उठाकर लोग अपने दोषों पर पर्दा डालते हैं।
(188) ऐड़ी-चोटी का पसीना एक करना (भरपूर परिश्रम करना) परीक्षा के समय छात्र ऐड़ी-चोटी का पसीना एक करके ही दम लेते हैं।
(189) गड़े मुर्दे उखाड़ना (बीती बातें याद करना) बहुत से लोगों का स्वभाव गढ़े मुर्दे उखाड़ना होता है।
(190) अंधेर मचाना (खुला अन्याय करना)-आजकल आतंकवादियों ने अंधेर मचा रखा है। [2009, 14]
(191) अन्धा धुन्ध (बिना रोक-टोक के) अन्धाधुन्ध वाहन चलाने के कारण दुर्घटनाएँ घटित हो रही हैं।
(192) अपनी पड़ना (अपनी चिन्ता) भूकम्प आने पर सबको अपनी-अपनी पड़ रही थी।
(193) अचकचाना (भ्रमित होना)-मानसिक दृष्टि से दुर्बल व्यक्ति प्रत्येक कार्य में अचकचाते रहते हैं।
(194) उखाड़-पछाड़ करना (आगे-पीछे की बातों को याद करके संघर्ष करना)-उखाड़-पछाड़ करने से झगड़ा शान्त होने के बजाय और बढ़ जाता है।
(195) उठान रखना (पूर्ण प्रया स करना)-विपत्ति के समय उठान रखकर ही व्यक्ति को विपत्ति से मुक्ति मिलती है।
(196) कलेजा मुँह को आना (अत्यधिक दुःखी होना) श्रवण कुमार की मृत्यु का समाचार सुनकर उसके माँ-बाप का कलेजा मुँह को आ गया।
(197) कलेजे पर हाथ रखना (अपने, आप विचार करना)-विपत्ति पड़ने पर मोहन ने सोहन से कहा कि तुम अपने कलेजे पर हाथ रखकर देखो तब पता चलेगा।
(198) कान खड़े होना (सतर्क होना)—पुलिस के आने पर चोरों के कान खड़े हो गये।
(199) काम आना (युद्ध में वीर गति को प्राप्त होना)-देश के वीर युद्धभूमि में काम आकर अमर हो जाते हैं।
(200) गुदड़ी का लाल (निर्धन परन्तु गुणवान व्यक्ति)–भारत के पूर्व प्रधानमन्त्री स्व. लाल बहादुर शास्त्री गुदड़ी के लाल थे। [2009]
(201) पलकें बिछाना (आतुर होकर प्रतीक्षा करना) विश्व विजेता भारतीय क्रिकेट दल के सदस्यों की अगवानी हेतु उनके शहरवासी पलकें बिछाये बैठे थे। [2012]
(202) खून का यूंट पीना (चुपचाप अपमान सहन करना) सास द्वारा बहू को गलती न होने के बावजूद डाँटे जाने पर भी वह खून का यूंट पीकर रह गई। [2016]
2. लोकोक्तियाँ (कहावतें)
मनुष्य का जीवन अनुभवों से भरा है। कभी-कभी एक ही अनुभव कई लोगों को होता है और उनके मुँह से जो बातें निकलती हैं वे प्रचलित होकर कहावत बन जाती हैं। लोक + उक्ति = लोकोक्ति, लोगों द्वारा कहा गया कथन है। ये लोकोक्तियाँ प्रायः नीति, व्यंग्य, चेतावनी, उपालम्भ आदि से सम्बन्धित होती हैं। अपनी बात की पुष्टि के लिए लोग लोकोक्ति का सहारा लेते हैं। कभी-कभी बिना असली बात कहे हुए भी लोग लोकोक्ति बोल देते हैं और वास्तविक अर्थ प्रसंग से समझ लिया जाता है।
लोकोक्तियाँ मुहावरे की अपेक्षा विस्तृत होती हैं। ये क्रियार्थक नहीं होतीं। ये अविकारी होती हैं, इन्हें लिंग, वचन के अनुसार बदलते नहीं हैं। इन्हें वाक्यों में प्रयुक्त नहीं किया जा सकता। ये वाक्यरूप में ही अपने आप में पूर्ण होती हैं। लोकोक्तियाँ लेखकों के लेखन या भाषणकर्ताओं से निसृत होकर प्रचलित होती हैं। लोकोक्ति साहित्य का गौरव है। इन्हें समझने के लिए इनका सही अर्थ जानना आवश्यक है, तभी इनका प्रयोग सफल होगा।
लोकोक्ति का प्रयोग करते समय इन बातों को ध्यान में रखना चाहिए
(1) लोकोक्ति पढ़ते-पढ़ते ऐसे विस्तृत अनुभव को पकड़ने का प्रयास करना चाहिए, जिसका प्रतिनिधि बनकर लोकोक्ति का शब्द और अर्थ प्रयोग में लाया जाये।
(2) उस अनुभव वाले अर्थ को संक्षिप्त में एक वाक्य में स्पष्ट कर देना चाहिए।
(3) वर्तमान परिस्थिति में उस अनुभव को घटित करने वाली घटना और लोकोक्ति के अनुभव वाले अर्थ को फिर देख लेना चाहिए कि दोनों समानता रखते हों।।
(4) अब उक्त घटना को एक या दो वाक्यों में लिखकर उसके अन्त में समर्थन रूप में लोकोक्ति लिखनी चाहिए।
कुछ लोकोक्तियाँ,उनके अर्थ और वाक्य प्रयोग इस प्रकार हैं-
(1) अपना हाथ जगन्नाथ (अपने हाथ से किया गया काम सबसे अच्छा होता है। माँ ने कहा इससे अच्छे आपके कपड़े में नहीं धो सकती। बेहतर हो आप स्वयं साफ करें। सुना है न-अपना हाथ जगन्नाथ।
(2) अपने मरे सरग दिखता है (स्वयं कार्य करने से ही काम बनता है)-सेठजी ने नौकर को जरूरी काम से बाजार भेजा परन्तु दो बार जाने के बाद भी वह उस काम को नहीं कर पाया। इस पर सेठजी ने कहा-अपने मरे ही सरग दिखता है।
(3) अपने लड़के को काना कौन कहता है (अपनी वस्तु सभी को सुन्दर लगती है। रोहित अपनी हर चीज की बहुत तारीफ करता है परन्तु दूसरों की चीजों में नुक्स निकालता है। सच ही कहा गया है-अपने लड़के को काना कौन कहता है।
(4) अपना दाम खोटा तो परखैया क्या करे (जब स्वयं में दोष हो तो दूसरे भी बुरा कहेंगे) रीना का छोटा बेटा बड़ा ही उद्दण्ड है, जब पड़ौसी से उसका झगड़ा हुआ तो रीना बोली-अपना दाम खोटा तो परखैया क्या करे।
(5) अपनी करनी पार उतरनी (अपने ही परिश्रम से सफलता मिलती है) नरेश नकल की उम्मीद में रहकर परीक्षा में फेल हो गया तो उसकी माँ ने उसे समझाते हुए कहा-अपनी करनी पार उतरनी। [2009]
(6) अपनी-अपनी ढपली अपना राग (अपनी ही बातों को महत्ता देना)-आजकल तो सभी लोग अपनी-अपनी ढपली, अपना-अपना राग अलापते हैं।
(7) अपने ही शालिग्राम डिब्बे में नहीं समाते (जो अपना ही काम पूरी तरह नहीं कर पाता, वह दूसरों की क्या मदद करेगा) नन्दू बड़ा ही कामचोर है,एक बार जब वह पड़ौसी की मदद के लिये गया तो पड़ौसी ने कहा-रहने दो, तुम्हारे तो अपने ही शालिग्राम डिब्बे में नहीं समाते।
(8) अन्या पीसे कुत्ता खाय (नासमझ के कामों का लाभ चतुर उठाते हैं) महेश बहुत ही नासमझ है, हर कोई उसे बेवकूफ बनाकर अपना काम निकाल लेता है, उसका तो वही हिसाब है-अन्धा पीसे कुत्ता खाए।
(9) अतिसय रगर करे जो कोई, अनल प्रकट चन्दन ते होई (अधिक परिश्रम से कठिन काम भी सिद्ध होते हैं या अधिक छेड़ने से शान्त पुरुष भी गरम हो जाता है) विकास ने रात-दिन मेहनत करके आई. ए. एस. की परीक्षा उत्तीर्ण की तो उसकी दादी ने कहा-अतिशय रगर करे जो कोई, अनल प्रकट चन्दन ते होई।
(10) अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गईं खेत (हानि होने से पहले रक्षा का प्रबन्ध करना चाहिए)-सेठ करोड़ीमल ने कंजूसी के कारण अपने जर्जर हुए मकान की मरम्मत नहीं कराई। जब बरसात में उनका मकान गिर पड़ा तो उनकी पत्नी ने कहा-अब पछताए होत क्या, जब चिड़िया चुग गईं खेत।
(11) अन्या क्या चाहे दो आँखें (मनचाही वस्तु देने वाले से और कुछ नहीं चाहिए) रामकिशन ने जब भिखारी को भोजन और कपड़ा दिया तो वह खुश हो गया। भई, अन्धा क्या चाहे दो आँखें।
(12) अकल बड़ी कि भैंस (वयस = उम्र) (उम्र के बड़प्पन से बुद्धि की श्रेष्ठता अधिक अच्छी है) घण्टों से साइकिल ठीक करने में जुटे रमेश के पन्द्रह वर्षीय भतीजे ने पलक झपकते ही साइकिल की खराबी दूर कर दी। किसी ने ठीक ही कहा है-अकल बड़ी या भैंस।
(13) आए थे हरिभजन को ओटन लगे कपास (ऊँचे उद्देश्य की तैयारी करके साधारण काम में जुट जाना)-सुरेश गाँव छोड़कर शहर में डॉक्टर बनने के सपने लेकर आया था परन्तु बमुश्किल उसे छोटी सी नौकरी ही मिल सकी। किसी ने ठीक ही कहा है-आये थे हरि भजन को ओटन लगे कपास।
(14) आम के आम गुठलियों के दाम (किसी वस्तु से दुहरा लाभ होना)-ट्रॉली वाले मलबा उठाने तथा मलबा डालने,दोनों के पैसे लेते हैं। उनके तो आम के आम गुठलियों के दाम
(15) आँख का अन्धा गाँठ का पूरा (नासमझ धनी पुरुष जो ठगी में पड़कर हानि उठाता है) जीवन ने परिणाम जानते हुए भी रेल में बेटिकट यात्रा की और पकड़ा गया। इसे कहते हैं-आँख का अन्धा गाँठ का पूरा।
(16) आँख के अन्धे नाम नयनसुख (नाम के विपरीत गुण होना)-ताले ठीक करने वाले से एक साधारण से ताले की चाबी भी न बन सकी तब ऐसा लगा मानो आँख के अन्धे नाम नयनसुख वाली कहावत चरितार्थ हो रही हो।।
(17) आधी रात खाँसी आए, शाम से मुँह फैलाये (काम का समय आने के बहुत पहले ही चिन्ता करने लगना)-मुनिया की शादी में अभी पूरे छः माह पड़े हैं परन्तु रामलाल ने अभी से पूरे घर में हाय-तौबा मचा रखी है। ऐसा लगता है मानो आधी रात खाँसी आये, शाम से मुँह फैलाये।
(18) आधा तेल आधा पानी (ऐसी मिलावट जो अनुपयोगी हो)-दुकानदार ने अधिक मुनाफा कमाने की जुगत में देशी घी में डालडा घी मिलाकर बेचना चाहा परन्तु सफल न हो सका। इसे कहते हैं-आधा तेल आधा पानी।
(19) इधर कआँ उधर खाई (दविधा की स्थिति या दोनों तरफ से हानि की सम्भावना) चोटिल सचिन को फाइनल मैच में खिलाएँ अथवा नहीं, पूरी टीम यह सोचती रही क्योंकि सभी खिलाड़ी जानते थे कि इधर कुआँ है और उधर खाई।।
(20) ईश्वर देता है तो छप्पर फाड़ के (अकस्मात् अत्यधिक लाभ हो जाना)-सब्जी बेचने वाली की लॉटरी क्या लगी उसकी तो किस्मत ही बदल गई। किसी ने ठीक ही कहा है-ईश्वर देता है तो छप्पर फाड़के।
नोट-आगे कुछ लोकोक्तियों के मात्र अर्थ दिये जा रहे हैं। विद्यार्थियों से अपेक्षा है कि वे अर्थ को भली-भाँति समझकर इन लोकोक्तियों को वाक्यों में प्रयोग करने का अभ्यास करेंगे।
(1) उल्टा चोर कोतवाल को डॉट-अनुचित काम करके भी न दबना।
(2) ऊखल में सिर देकर मूसलों का क्या डर–एक बार किसी मार्ग पर चल पड़ो तो फिर संकटों से घबराना नहीं चाहिए।
(3) ऊसर में मसर-व्यर्थ ही बीच में अड़ना।
(4) एक साथै, सब सधै, सब साधै सब जाय-एक हो काम मन लगाकर करना चाहिए, यदि निश्चय डिग गया तो सब नष्ट हो जायेगा।
(5) एक चना क्या भाड़ फोड़ेगा-अकेला व्यक्ति बड़ी योजना सफल नहीं बना पाता।
(6) एक हाथ से ताली नहीं बजती-लड़ाई या मित्रता अकेले सम्भव नहीं।
(7) एक मछली तालाब को गन्दा करती है-एक के दुष्कर्म से सहकर्मी बदनाम होते हैं।
(8) ओछे की प्रीति बालू की भीति-तुच्छ व्यक्ति की मित्रता स्थायी नहीं होती।
(9) आधी छोड़ सबको धावै, आधी जाय न सबरी पावै-लालच व्यक्ति के हाथ छ नहीं आता।
(10) काठ के उल्लू-निकम्मा आदमी। किसी काम का नहीं ;
(11) कर नहीं तो डर नहीं-बुरा न किया तो किसी से डरना कैसा।।
(12) कड़वा करेला नीम चढ़ा-दुष्ट व्यक्ति को दुष्ट की संगति मिल जाये तो वह और अधिक दुष्ट हो जाता है।
(13) कहीं की ईंट कहीं का रोड़ा, भानुमति ने कुनबा जोड़ा इधर-उधर की वस्तुओं से काम चलाना।
(14) काम परै कछु और है, काम सरै कुछ और-स्वार्थ पूरा होने पर आदमी बदल जाता है।
(15) काजी घर के चूहे सयाने–चतुर लोगों की संगति में छोटे लोग भी चतुराई सीख जाते हैं।
(16) काजर की कोठरी में कैसहू सयानो जाय, एक लीक काजर की लागि है सो लागि है कुसंगति से कुछ न कुछ हानि अवश्य होती है।
(17) कभी गाड़ी नाव पर, कभी नाव गाड़ी पर सभी को सभी से काम पड़ता है।
(18) खोदा पहाड़ निकली चुहिया–बड़े श्रम से थोड़ा लाभ।
(19) खरगोश के सींग असम्भव बात,जो न देखी न सुनी।
(20) गुरु गुड़ हो रहे चेला शक्कर हो गये जिससे कोई गुण सीखा हो, उसकी अपेक्षा अधिक चतुराई दिखाना।।
(21) घर का जोगी जोगना, आन गाँव का सिद्ध-समीप रहने वाले गुणी को लोग महत्त्व नहीं देते, दूर वाले को सम्मान करते हैं।
(22) गिलोय और नीम चढ़ी-दुर्गुणों में और वृद्धि हो जाना,दो-दो दुर्गुण।