MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 8 देश-प्रेम

MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 8 देश-प्रेम (निबंध, आचार्य रामचन्द्र शुक्ल)

देश-प्रेम पाठ्य-पुस्तक के प्रश्नोत्तर

देश-प्रेम लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
देश-प्रेम का दावा कौन नहीं कर सकता?
उत्तर:
जो हृदय संसार की जातियों के बीच अपनी जाति की स्वतन्त्र सत्ता का अनुभव नहीं कर सकता, वह देश-प्रेम का दावा नहीं कर सकता।

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प्रश्न 2.
अपने स्वरूप को भूलने पर हमारी कैसी दशा होगी?
उत्तर:
अपने स्वरूप को भूलने पर हमारी दशा अपनी परम्परा से सम्बन्ध तोड़कर नई उभरी हुई इतिहास शून्य जातियों के समान होगी।

प्रश्न 3.
साँची की प्रसिद्धि का क्या कारण है?
उत्तर:
साँची की प्रसिद्धि का कारण है-बहुत सुन्दर छोटी-सी पहाड़ी के ऊपर स्थित होना, जिसके नीचे छोटा-मोटा जंगल है।

प्रश्न 4.
लेखक ने किस मौसम में साँची की यात्रा की थी?
उत्तर:
लेखक ने वसन्त ऋतु में साँची की यात्रा की थी।

देश-प्रेम दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
देश-प्रेम को साहचर्य प्रेम क्यों कहा गया है?
उत्तर:
देश-प्रेम को साहचर्य प्रेम कहा गया है। यह इसलिए कि इसके बिना सच्चा देश-प्रेम सम्भव नहीं है। जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें हम बराबर अपनी आँखों से देखते रहते हैं, जिनकी बातें हम हमेशा सुनते रहते हैं। इस प्रकार जिनसे हमारा हर घड़ी का साथ रहता है, उनसे हमारा गहरा सम्बन्ध स्थापित हो जाता है। यह सम्बन्ध स्थापित हो जाना ही साहचर्यगत प्रेम है।

प्रश्न 2.
रसखान ने ब्रजभूमि के प्रेम के सम्बन्ध में क्या कहा है?
उत्तर:
रसखान ने ब्रजभूमि के प्रेम के सम्बन्ध में यह कहा है –

“नैनन सों ‘रसखान’ जबै ब्रज के वन, बाग, तड़ाग निहारौं।
केतिक वे कलधौत के धाम, करील के कुंजन ऊपर वारौं॥”

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प्रश्न 3.
देश के स्वरूप से परिचित होने के लिए लेखक ने किन-किन बातों पर बल दिया है?
उत्तर:
देश के स्वरूप से परिचित होने के लिए लेखक ने निम्नलिखित बातों पर बल दिया है –

  1. घर से बाहर निकलकर और अपनी आँखें खोलकर देखना चाहिए कि खेतों में हरियाली कैसी लहलहा रही है।
  2. झाड़ियों के बीच नाले किस प्रकार कल-कल स्वर करते हुए बह रहे हैं।
  3. दूर-दूर तक पलाश के लाल-लाल फूल कैसे खिल रहे हैं और उनसे धरती कैसे लाल हो रही है।
  4. कछारों में पशुओं के झुण्ड चराते हुए चरवाहे कैसे तानें लड़ा रहे हैं।
  5. आमों के बागों के बीच गाँव कैसे. झाँक रहे हैं। उन गाँवों के लोगों से किसी पेड़ की छाया में कुछ देर बैठकर बातें करें कि ये सब हमारे ही देश के हैं।

प्रश्न 4.
“गेहूँ का पेड़ आम के पेड़ से छोटा होता है या बड़ा।” यह कथन किस सन्दर्भ में कहा गया है?
उत्तर:
“गेहूँ का पेड़ आम के पेड़ से छोटा होता है या बड़ा।” यह कथन अपने देश का महत्त्व भूलकर दूसरे देश के महत्त्व को समझने वाले गुलामी मानसिकता के शिकार लोगों की सोच-समझ के सन्दर्भ में कहा गया है। इस कथन के द्वारा लेखक ने यह बतलाना चाहा है कि देश-प्रेम होना और स्वदेशीपन की पहचान रखना आजकल के शहरी बाबुओं के लिए लज्जा का एक विषय हो रहा है।

देश-प्रेम भाव-विस्तार/पल्लवन

प्रश्न 1.
निम्नलिखित कथनों का भाव पल्लवन कीजिए –

  1. स्वतन्त्रता से अभिप्राय स्वरूप की स्वतन्त्र सत्ता है।
  2. प्रेम हिसाब-किताब नहीं है। हिसाब-किताब करने वाले भाड़े पर मिल सकते हैं, पर प्रेम करने वाले नहीं।
  3. परिचय प्रेम का प्रवर्तक है।

उत्तर:
1. स्वतन्त्रता से अभिप्राय स्वरूप की स्वतन्त्र सत्ता है:
उत्तर:
उपर्युक्त कथन का भाव यह है कि स्वदेश-प्रेम स्वतन्त्र सत्ता के अनुभव बिना नहीं हो सकता है। जो जाति या प्राणी अपनी स्वतन्त्र सत्ता का अनुभव नहीं कर पाता है, वह देश-प्रेम का दावा नहीं कर सकता है। स्वतन्त्र सत्ता से अभिप्राय अपने स्वरूप की स्वतन्त्र सत्ता ही है। इसलिए देश-प्रेम तभी सम्भव है, जब कोई देशवासी स्वतन्त्रतापूर्वक अपने देश के एक-एक रूप की स्वतन्त्रता की पहचान करे। उससे . लगाव रखे। उसके साथ रहे। उसे चाहभरी दृष्टि से देखे और उसकी याद में आँसू बहाए।

2. प्रेम हिसाब-किताब नहीं है। हिसाब-किताब करने वाले भाड़े पर मिल सकते हैं, पर प्रेम करने वाले नहीं।
उत्तर:
उपर्युक्त कथन का भाव यह है कि देश-प्रेम विशुद्ध प्रेम होता है। उसमें किसी प्रकार के लाभ-हानि की सोच-समझ नहीं होती है। इस प्रकार की सोच-समझ रखने वाले देश-प्रेमी नहीं हो सकते हैं। वे तो अर्थशास्त्री हो सकते हैं, जो देश की दशा या प्रत्येक देशवासी की औसत आमदनी का परता बता सकते हैं। लेकिन देश-प्रेम का दावा नहीं कर सकते हैं। इस प्रकार सच्चा देश-प्रेमी तो अपने देश के प्रत्येक स्वरूप से परिचित होता है। वह देश के प्रत्येक स्वरूप के साथ हर घड़ी सम्बन्ध बनाए रहता है। उसके प्रति हित-चिन्तन किया करता है। इसके लिए वह किसी लाभ-हानि की बात वह तनिक भी नहीं सोचता समझता है। वह यह भलीभाँति जानता है उसका कर्तव्य है देश-प्रेम करना, हिसाब-किताब करना नहीं। हिसाब-किताब करने वाले भाड़े के भी हो सकते हैं, लेकिन देश-प्रेम करने वाले भाड़े के कभी नहीं हो सकते हैं।

3. परिचय प्रेम का प्रवर्तक है।
उत्तर:
उपर्युक्त कथन का भाव यह है कि परिचय से ही लगाव होता है। यह लगाव धीरे-धीरे प्रेम में बदल जाता है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि बिना परिचय के प्रेम नहीं हो सकता है। हम अपने दैनिक जीवन में यह देखते हैं कि पशु-बालक भी जिनके साथ रहते हैं। उनसे परच जाते हैं। इससे उनका परस्पर प्रेम हो जाता है। वह प्रेम बिना किसी लाभ-हानि का होता है। यह इसलिए परिचय से उत्पन्न हुआ प्रेम शुद्ध हृदय से ही होता है। यह बहुत ही टिकाऊ और सरस होता है।

देश-प्रेम भाषा-अध्ययन

प्रश्न 1.
‘भव’ से पूर्व ‘अनु’ जोड़कर ‘अनुभव’ बना है। ‘अनु’ उपसर्व जोड़कर पाँच शब्द बनाइए।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 8 देश-प्रेम img-1

प्रश्न 2.
‘देश-प्रेम’ में तत्पुरुष समास है। तत्पुरुष समास के पाँच उदाहरण लिखिए।
उत्तर:

  1. भातृ-प्रेम
  2. हठयोग
  3. राजपुरुष
  4. राजपुत्र और
  5. दुख-सागर।

प्रश्न 3.
निम्नांकित शब्दों के दो-दो पर्यायवाची शब्द लिखिए।
आख, पेड़, वन, पर्वत, देहात।
उत्तर:
MP Board Class 11th Hindi Makrand Solutions Chapter 8 देश-प्रेम img-2

प्रश्न 4.
निम्नलिखित वाक्यों को कोष्ठक में दिए गए निर्देशानुसार परिवर्तित कर लिखिए –

  1. स्तूप के नीचे छोटा-मोटा जंगल है। (निषेधात्मक)
  2. स्तूप छोटी-सी पहाड़ी के ऊपर नहीं है। (विधानवाचक)
  3. महुआ की महक आ रही है। (प्रश्नवाचक)
  4. किसानों के झोपड़ों में क्या हो रहा है? (विस्मयादि बोधक)
  5. तुम चुपचाप काम करते हो। (आज्ञावाचक)

उत्तर:

  1. स्तूप के नीचे छोटा-मोटा जंगल नहीं है।
  2. स्तूप छोटी-सी पहाड़ी के ऊपर है।
  3. क्या महुआ की महक आ रही है?
  4. ओह! किसानों के झोपड़ों में क्या हो रहा है।
  5. तुम चुपचाप काम करो।

देश-प्रेम योग्यता विस्तार

प्रश्न 1.
अपने आस-पास के किसी प्राकृतिक स्थल के सौन्दर्य का वर्णन कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

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प्रश्न 2.
भारत के प्रमुख देशभक्तों के चित्रों का संकलन कर एक अलबम बनाइए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 3.
“मातृभाषा प्रेम देश-प्रेम का द्योतक है।” विषय पर वाद-विवाद प्रतियोगिता का आयोजन करें।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

प्रश्न 4.
मध्यप्रदेश के लेखकों की देशभक्ति पूर्ण रचनाओं का संकलन कीजिए।
उत्तर:
उपर्युक्त प्रश्नों को छात्र/छात्रा अपने अध्यापक की सहायता से हल करें।

देश-प्रेम परीक्षोपयोगी अन्य महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

देश-प्रेम लघु उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
स्वतन्त्र सत्ता से क्या अभिप्राय है?
उत्तर:
स्वतन्त्र सत्ता से अभिप्राय स्वरूप की स्वतन्त्र सत्ता है।

प्रश्न 2.
अपने स्वरूप को भूलकर ‘भारतवासियों ने क्या किया?
उत्तर:
अपने स्वरूप को भूलकर भारतवासियों ने संसार में सुख-समृद्धि तो प्राप्त की लेकिन उदात्तवृत्तियों को उत्तेजित करने वाली बँधी-बँधाई परम्परा से अपना सम्बन्ध तोड़ लिया और नई उभरी हुई इतिहास शून्य जातियों में अपना नाम लिखाया।

देश-प्रेम दीर्घ उत्तरीय प्रश्नोत्तर

प्रश्न 1.
सच्चे देश-प्रेमी की क्या पहचान होती है?
उत्तर:
सच्चे देश-प्रेमी की निम्नलिखित पहचान होती है –

  1. वह अपने देश के सभी मनुष्य, पशु, पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, पत्ते, वन, पर्वत, नदी, नाले, झरने आदि से प्रेम करेगा।
  2. वह अपने देश के प्रत्येक स्वरूप को चाहभरी दृष्टि से देखेगा।
  3. विदेश में होने पर वह अपने देश के स्वरूप को याद करके तरसेगा और आँसू बहाएगा।
  4. वह अपने देश के प्रत्येक दशा को जानने के लिए उत्सुक रहेगा।
  5. वह अपने देश के सुख-दुःख को अपना सुख-दुःख समझने का प्रयास करता रहेगा।

प्रश्न 2.
“आजकल अपने देश के स्वरूप का परिचय बाबुओं की लज्जा का एक विषय हो रहा है।” ऐसा लेखक ने क्यों कहा है?
उत्तर:
“आजकल अपने देश के स्वरूप का परिचय बाबुओं की लज्जा का एक विषय हो रहा है।” ऐसा लेखक ने इसलिए कहा कि आजकल के बाबुओं अर्थात् पश्चिमी संस्कृति व सभ्यता में शिक्षित और अभ्यस्त लोगों को अपने देश के स्वरूप का कुछ भी ज्ञान नहीं होता है। उन्हें तो विदेशी स्वरूप और दशा का ही ज्ञान और पता होता है। इसलिए वे विदेशी स्वरूप को ही महत्त्व देते हैं। उसका ही गुणगान करते हैं। अगर उनके सामने कोई देश-प्रेम की बात करता है, तो उससे वे अपनी मानहानि समझकर उसे महत्त्वहीन सिद्ध करने का प्रयास करते हैं। इस प्रकार वे देश के स्वरूप से अनजान रहने या बनने में अपनी बड़ी शान समझते हैं।

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प्रश्न 3.
‘देश-प्रेम’ निबन्ध के मुख्य भाव को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर:
‘देश-प्रेम’ निबन्ध आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का एक ज्ञानवर्द्धक निबन्ध है। इसमें लेखक ने यह बतलाने का प्रयास किया है कि देश-प्रेम हृदय का शुद्ध और पवित्र भाव है। यह उसी के हृदय में उत्पन्न होता है, जिसे अपने देश के प्रत्येक स्वरूप का परिचय और अनुभव प्राप्त होता है। अपने देश के लोक-जीवन के प्रति अनुराग (लगाव) और उसकी शान्ति और उन्नति के लिए हमेशा प्रयत्नशील होने वाला ही सच्चा देश-प्रेमी होता है। परिचय और साहचर्य ही प्रेम के प्रवर्तक होते हैं। इसलिए अपने देश के सभी प्राणियों और प्रकृति के साथ हमारा जितना घनिष्ठ सम्बन्ध होगा, उतना ही हमारा देश-प्रेम मजबूत और परिपूर्ण होगा। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि देश-प्रेम न कोई बाहरी दिखावा है और न कोई शाब्दिक हिसाब-किताब का विषय ही।

देश-प्रेम लेखक-परिचय

प्रश्न 1.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल का संक्षिप्त जीवन-परिचय देते हुए उनके साहित्य की विशेषताओं पर प्रकाश डालिए।
उत्तर:
हिन्दी साहित्य की सूक्ष्म और परिपक्व रूप में देखने-परखने और मूल्यांकन की परम्परा रामचन्द्र शुक्ल ने दी। इस अभूतपूर्व योगदान के कारण उन्हें आचार्य की उपाधि प्रदान की गई। इतिहास और काव्य के क्षेत्र में आचार्य शुक्ल की भूमिका अधिक चर्चित है।

जीवन-परिचय:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल हिन्दी के श्रेष्ठ निबन्धकार तथा समीक्षक हैं। आपका जन्म बस्ती जिले के अगोना नामक गाँव में सन् 1884 ई. में हुआ था। इनकी आरम्भिक शिक्षा उर्दू तथा अंग्रेजी में हुई। विधिवत् शिक्षा तो वे इण्टरमीडिएट तक ही प्राप्त कर सके। शुक्लजी ने आरम्भ में मिर्जापुर के मिशन स्कूल में पढ़ाया। जब काशी में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा ‘हिन्दी शब्द सागर’ का सम्पादन आरम्भ हुआ, तो शुक्लजी को वहाँ कार्य करने का मौका मिला फिर हिन्दू विश्वविद्यालय, काशी के हिन्दी विभाग में प्राध्यापक नियुक्त हुए तथा विभागाध्यक्ष बने। शुक्लजी ने अंग्रेजी, बंगला, संस्कृत तथा हिन्दी के प्राचीन साहित्य का गम्भीर अध्ययन किया।

शुक्लजी का पत्रकारिता के क्षेत्र में प्रवेश ‘आनन्द-कादम्बिनी’ पत्रिका के सम्पादन से हुआ जिसका सम्पादन उन्होंने कई वर्षों तक कुशलतापूर्वक किया था। इसके बाद वे नागरी प्रचारिणी सभा में ‘हिन्दी शब्द-सागर’ के सहयोगी नियुक्त हुए थे। इसके बाद आपने ‘नागरी प्रचारिणी’ पत्रिका का कई वर्षों तक कुशलता के साथ सम्पादन किया। साहित्य-सेवा करते हुए शुक्लजी ने 8 फरवरी, 1941 को अन्तिम साँस ली।

रचनाएँ:
यों तो शुक्लजी प्रमुख रूप से निबन्धकार और समालोचक के रूप में ही सुविख्यात हैं लेकिन इसके साथ ही कवि भी रहे हैं। यह बहुत कम चर्चा में है। उनकी रचनाएँ निम्नलिखित हैं –

1. निबन्ध-संग्रह:

  • विचार-वीथी
  • चिन्तामणि भाग 1-2
  • त्रिवेणी।

2. समालोचना:

  • जायसी, सूर और तुलसी पर श्रेष्ठ आलोचनाएँ।

3. इतिहास:

  • हिन्दी-साहित्य का इतिहास
  • काव्य में रहस्यवाद

4. कविता-संग्रह:

  • वसन्त
  • पथिक
  • शिशिर-पथिक
  • हृदय का मधुर भार
  • अभिमन्यु-वध।

5. सम्पादन:

  • हिन्दी शब्द-सागर
  • नागरी-प्रचारिणी पत्रिका
  • तुलसी
  • जायसी।

6. अनुवाद:

  • शशांक
  • बुद्ध-चरित
  • कल्पना का आनन
  • आदर्श-जीवन
  • मेगस्थनीज का भारतवर्षीय वर्णन
  • राज्य प्रबन्ध-शिक्षा
  • विश्वप्रपंच।

भाषा-शैली:
शुक्लजी की भाषा संस्कृतनिष्ठ साहित्यिक भाषा है। उसमें कहीं-कहीं तद्भव शब्द भी आए हैं। मुख्य रूप से आपकी भाषा गम्भीर, संयत, भावपूर्ण और सारगर्भित है। आपके शब्द चयन ठोस, संस्कृत और उच्च-स्तरीय हैं। उर्दू, अंग्रेजी और फारसी शब्दों के प्रयोग कहीं-कहीं हुए हैं। अधिकतर संस्कृत और सामाजिक शब्द ही आए हैं। शुक्लजी की शैली गवेषणात्मक, मुहावरेदार और हास्य-व्यंग्यात्मक है। इससे विषय का प्रतिपादन सुन्दर ढंग से हुआ है। इस प्रकार से हम कह सकते हैं कि शुक्लजी की भाषा-शैली, विषयानुकूल होकर साभिप्राय और सफल है।

व्यक्तित्व:
शुक्लजी का व्यक्तित्व सर्वप्रथम कविमय व्यक्तित्व था जो उत्तरोत्तर समीक्षक और निबन्धकार सहित इतिहासकार के रूप में बदलता गया। इस प्रकार शुक्ल जी का व्यक्तित्व विविध है। संक्षेप में हम यह कह सकते हैं कि शुक्लजी युग-प्रवर्तक प्रधान व्यक्तित्व के धनी साहित्यकार हैं।

देश-प्रेम पाठ का सारांश

प्रश्न 1.
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखित निबन्ध ‘देश-प्रेम’ का सारांश अपने शब्दों में लिखिए।
उत्तर:
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल लिखित निबन्ध ‘देश-प्रेम’ एक भाववर्द्धक और प्रेरक निबन्ध है। इसमें लेखक ने देश-प्रेम के स्वरूप और उसकी विशेषताओं को स्पष्ट करने का प्रयास किया है। लेखक के अनुसार देश-प्रेम एक ऐसा प्रेम है जो देश के स्वरूप से परिचित होने से प्राप्त होता है। देश के प्रत्येक स्वरूप को अर्थात् उसके मनुष्य, पशु-पक्षी, नदी-नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि के बीच रहने, उसे हमेशा देखने, अनुभव आदि के द्वारा उसके प्रति लोभ या राग उत्पन्न होना ही देश-प्रेम है। यदि. यह नहीं है तो देश-प्रेम की बातें करना कोरी बकवाद है या किसी और भाव के संकेत के लिए गढ़ा हुआ शब्द है।

इस प्रकार यदि किसी को अपने देश से सच्चा प्रेम होगा तो वह उसके प्रत्यके स्वरूप आदि की याद विदेशों में भी करते हुए उसके लिए तरसता रहेगा। इसीलिए कविवर ‘रसखान’ तो किसी की ‘लकुटी अरु कामरिया’ पर तीनों पुरी का राजसिंहसान तक त्यागने का तैयार थे। लेखक का पुनः कहना है कि पशु-पालक जिसके साथ रहते हैं, उससे परिचित हो जाते हैं। यह परचना ही, परिचय ही प्रेम का प्रवर्तक है। देश-प्रेम के लिए यह आवश्यक है कि हम बाहर निकलकर देखें कि कैसे खेत-बाग लहलहा रहे हैं। कछारों में चौपायों के झुण्ड कैसे इधर-उधर घूम रहे हैं और चरवाहे कैसे तानें लड़ा रहे हैं। नाले झाड़ियों के बीच कैसे बह रहे हैं। टेसू के फूलों से वनस्थली कैसी सुन्दर लग रही है। अमराइयों के बीच झाँकते हुए गाँव में घुसिए, जो मिलें, उनके साथ किसी पेड़ की छाया में बैठकर कुछ बातें कीजिए।

उन्हें अपने देश का समझिए। इससे आपकी आँखों में देश का रूप समा जाएगा। आप उसके स्वरूप से परिचित हो जाएंगे। फिर आपके हृदय में सच्चा देश-प्रेम उत्पन्न हो जाएगा। लेखक का यह मानना है कि आजकल के पढ़े-लिखे लोग देश के स्वरूप से इस प्रकार परिचित होना लज्जा का विषय मान रहे हैं। ऐसे लोग किसी देहात शब्द को कहना या सुनना अपने बाबूपन में बड़ा भारी बट्टा लगना समझ रहे हैं। ऐसे लोगों को यह भी नहीं मालूम कि गेहूँ का पेड़ होता है या आम का।

देश-प्रेम संदर्भ-प्रसंगसहित व्याख्या

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प्रश्न 1.
देश-प्रेम है क्या? प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आलंबन क्या है? सारा देश अर्थात् मनुष्य, पशु-पक्षी, नदी-नाले, वन, पर्वत सहित सारी भूमि। यह प्रेम किस प्रकार का है? यह साहचर्यगत प्रेम है। जिनके बीच हम रहते हैं, जिन्हें बरावर आँखों से देखते हैं, जिनकी बातें बराबर सुनते रहते हैं, जिनका हमारा हर घड़ी का साथ रहता है। सारांश यह है कि जिनके सान्निध्य का हमें अभ्यास पड़ जाता है, उनके प्रति लोभ या राग हो सकता है। देश-प्रेम यदि वास्तव में अन्तःकरण का कोई भाव है तो यही हो सकता है। यदि यह नहीं है तो वह कोरी बकवाद या किसी और भाव के संकेत के लिए गढ़ा हुआ शब्द है।

शब्दार्थ:

  • आलंबन – आधार।
  • सहित – साथ।
  • साहचर्यगत – साथ रहने से सम्बन्धित।
  • घड़ी – समय।
  • सान्निध्य – समीप, पास।
  • राग – प्रेम, लगाव।
  • अन्तःकरण – हृदय।

प्रसंग:
प्रस्तुत गद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक ‘हिन्दी सामान्य भाग-1’ में संकलित तथा सुप्रसिद्ध निबन्धकार आचार्य रामचन्द्र शुक्ल द्वारा लिखित निबन्ध ‘देश-प्रेम’ शीर्षक से है। इसमें लेखक ने देश-प्रेम क्या है, इसे समझाते हुए कहा है कि व्याख्या-अगर हम यह जानना चाहते हैं कि देश-प्रेम किसे कहते हैं, तो इसका यह उत्तर है कि देश-प्रेम एक प्रकार का प्रेम ही तो है। इस प्रेम का आधार पूरा देश होता है। दूसरे शब्दों में देश के सभी मनुष्य, पशु, पक्षी, पेड़-पौधे, नदी-नाले, . मैदान, वन, पर्वत आदि सहित देश की सारी धरती।

इन सबसे प्रेम करना ही देश-प्रेम है। यह प्रेम साथ-साथ रहने से ही प्राप्त होता है। यह प्रेम जिनके साथ हम रहते हैं, जिन्हें हम देखा करते हैं, जिनसे हम अपने भाव-विचार प्रकट करते हैं और जिनके भाव-विचार को हम ग्रहण करते हैं। कहने का भाव यह कि जिनसे हमारा सम्बन्ध हमेशा बना रहता है, उनसे हमारा लगाव हो जाता है। यह लगाव ही देश-प्रेम है। इसलिए देश-प्रेम यदि सचमुच में हृदय से निकला हुआ कोई भाव है तो यही लगाव है। अगर यह नहीं है, तो देश-प्रेम की बात करना बेकार है। यह किसी बनावटी भाव के लिए गढ़ा हुआ कोई शब्द ही होगा।

विशेष :

  1. देश-प्रेम के स्वरूप पर प्रकाश डाला गया है।
  2. भाषा तत्सम शब्दों की है।
  3. शैली वर्णनात्मक है।
  4. भाव सरस और रोचक हैं।
  5. यह अंश भाववर्द्धक और प्रेरक रूप में है।
  6. वाक्य गठन सारगर्भित है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. देश-प्रेम किसका आलंबन है?
  2. देश-प्रेम को साहचर्यगत प्रेम क्यों कहा गया है?
  3. देश-प्रेम किसका भाव है और क्यों?

उत्तर:

  1. देश-प्रेम सारे देश का आलंबन है।
  2. देश-प्रेम साहचर्यगत प्रेम है। यह इसलिए कि इसके बिना देश-प्रेम हो ही नहीं सकता।
  3. देश-प्रेम अन्तःकरण का भाव है। यह इसलिए कि इसके बिना देश-प्रेम की बातें करना बिलकुल व्यर्थ और मनगढ़त है।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. सारा देश से क्या अभिप्राय है?
  2. हमें किसका अभ्यास कब पड़ जाता है?
  3. लोभ या राग से लेखक का आशय क्या है?

उत्तर:

  1. सारा देश से अभिप्राय है-देश का सम्पूर्ण स्वरूप अर्थात् सभी प्राणी, वन, पर्वत, नदी, नाले, मैदान, सारी धरती आदि।
  2. हमें अपने परिचितों के साथ रहने वाले का अभ्यास पड़ जाता है।
  3. लोभ या राग से लेखक का आशय है-लगाव या प्रेम। जिनके साथ हम हमेशा रहा करते हैं, उनके प्रति हमारा लोभ या राग हो जाता है।

प्रश्न 2.
यदि किसी को अपने देश से सचमुच प्रेम है तो उसे अपने देश के मनुष्य, पशु-पक्षी, लता, गुल्म, पेड़, पत्ते, वन, पर्वत, नदी, निर्झर आदि सबसे प्रेम होगा; वह सबको चाहभरी दृष्टि से देखेगा; वह सबकी सुध करके विदेश में आँसू बहाएगा। जो यह भी नहीं जानते कि कोयल किस चिड़िया का नाम है, जो यह भी नहीं सुनते कि चातक कहाँ चिल्लाता है, जो यह भी आँख भर नहीं देखते कि आम प्रणय-सौरभपूर्ण मंजरियों से कैसे लदे हुए हैं, जो यह भी नहीं झाँकते कि किसानों के झोंपड़ों के भीतर क्या हो रहा है, वे यदि दस बने-ठने मित्रों के बीच प्रत्येक भारतवासी की औसत आमदनी का परता बताकर देश-प्रेम का दावा करें तो उनसे पूछना चाहिए कि भाइयो! बिना रूप-परिचय का यह प्रेम कैसा? जिनके दुःख-सुख के तुम कभी साथी नहीं हुए, उन्हें तुम सुखी देखना चाहते हो, यह कैसे समझें?

शब्दार्थ:

  • चाहभरी – लगावभरी।
  • सुध – याद।
  • प्रणय सौरभपूर्ण – प्रेम-सुगन्धित।
  • मंजरियों – बोरों।
  • परत-हिसाब।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने देश-प्रेम के लिए आवश्यक तत्त्वों पर प्रकाश डालते हुए नकली देश-प्रेमियों पर तीखा व्यंग्य-प्रहार किया है। इस विषय में लेखक का कहना है कि –

व्याख्या:
यदि कोई व्यक्ति सच्चा देश-प्रेमी है, तो उसकी यही पहचान है कि वह अपने देश के प्रत्येक स्वरूप से परिचित होगा। उससे उसका अधिक लगाव होगा। कहने का भाव यह है कि अपने देश से प्रेम करने वाला अपने देश की सारी धरती, मनुष्य, पशु-पक्षी, नदी, नाले, पर्वत, झरने, हवा, पानी, आसमान और वातावरण से जी भरकर लगाव रखेगा। वह इन सबके प्रति अपना सच्चा भाव और विचार रखेगा। इन सभी को बार-बार याद करता रहेगा। अगर वह अपने देश से दूसरे देश में चला जाएगा, तो वहाँ भी वह इन सबको चाहभरी दृष्टि से देखना चाहेगा! इन सबको याद करेगा। इनके अभाव में वह रोएगा और तड़पेगा। इसके विपरीत जो सच्चा देश-प्रेमी नहीं होगा, वह देश के स्वरूप से बिलकुल नहीं परिचित होगा। वह तो यह भी न जानेगा कि कोयल किसे कहते हैं।

चातक क्या है और वह क्या करता है। उसे बाग-खेत के लहलहाने का कुछ भी ज्ञान-ध्यान नहीं होता है। उसे आम के सुगन्धित बौर, खेतों की हरी-भरी फसलें, किसानों के झोपड़ों के भीतर की दीन-दशा आदि का कुछ भी पता नहीं होता है। इस प्रकार के ढोंगी और नकली देश-प्रमियों की देश-ज्ञान की बातें फजूल की होती हैं। ऐसा इसलिए कि उन्हें देश की दशा से कुछ भी लेना-देना नहीं होता है। इसलिए अगर ऐसे लोग अपने को देश-प्रेमी कहते हैं तो उनसे यह जानना चाहिए कि देश के स्वरूप से परिचित हुए बिना वे किस आधार पर अपने को देश-प्रेमी कह रहे हैं। देश के स्वरूप से अनजान रहकर और उसकी आवश्यकताओं को अनदेखा कर भला कोई देश-प्रेमी कैसे कहा जा सकता है। अर्थात् नहीं कहा जा सकता है।

विशेष:

  1. सच्चे देश-प्रमियों की पहचान बतलायी गई है।
  2. भाषा सरल है।
  3. शैली व्यंग्यात्मक है।
  4. ढोंगी देश-प्रेमियों पर व्यंग्य प्रहार है।
  5. यह अंश रोचक और भावप्रद है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. सच्चा देश-प्रेमी कौन होता है?
  2. नकली देश-प्रेमी कौन होता है?
  3. हमें अपने देश के स्वरूप से किस प्रकार परिचित होना चाहिए?

उत्तर:

  1. सच्चा देश-प्रेमी वही होता है, जिसे अपने देश के प्रत्येक स्वरूप से प्रेम होता है।
  2. नकली देश-प्रेमी वह होता है, जिसे अपने देश के स्वरूप से प्रेम-परिचय नहीं होता है। वह देश की दशा का हिसाब-किताब बताकर देश-प्रेमी होने की बड़ी-बड़ी बातें बनाता है।
  3. हमें अपने देश के स्वरूप से भलीभाँति परिचित होना चाहिए। देश के प्रत्येक स्वरूप को चाहभरी दृष्टि से देखना चाहिए। उसकी याद में विदेश में होने पर ऑसू बहाना चाहिए।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. सच्चे देश-प्रेमी और ढोंगी देश-प्रेमी में क्या अन्तर है?
  2. देश-प्रेम की पहली शर्त क्या है?

उत्तर:

1. सच्चा देश-प्रेमी अपने देश के प्रत्येक स्वरूप से परिचित होता है। वह उससे हमेशा प्रेम करता है। अगर वह किसी कारणवश विदेश चला जाता है, तो वह वहाँ अपने देश की हरेक बातों को याद करता है। उसके लिए तरसता है। उसके अभाव में आँसू बहाता है। इसके विपरीत ढोंगी देश-प्रेमी न तो अपने देश के किसी भी स्वरूप से परिचित होता है और न उससे प्रेम करता है। यह भी वह अपने मित्रों के बीच देश की दशा का हिसाब-किताब की बातें करता रहता है।

2. देश-प्रेम की पहली शर्त है-अपने देश के स्वरूप को चाहभरी दृष्टि से देखना और उससे हमेशा प्रेम करना।

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प्रश्न 3.
पशु और बालक भी जिनके साथ अधिक रहते हैं, उनसे परच जाते हैं। यह परचना परिचय ही है। परिचय प्रेम का प्रवर्तक है, बिना परिचय के प्रेम नहीं हो सकता। यदि देश-प्रेम के लिए हृदय में जगह करनी है तो देश के स्वरूप से परिचित और अभ्यस्त हो जाइए। बाहर निकलिए तो आँख खोलकर देखिए कि खेत कैसे लहलहा रहे हैं, नाले झाड़ियों के बीच कैसे बह रहे हैं, टेसू के फूलों से वनस्थली कैसी लाल हो रही है, कछारों में चौपायों के झुण्ड इधर-उधर चरते हैं, चरवाहे तान लड़ा रहे हैं, अमराइयों के बीच गाँव झाँक रहे हैं; उनमें घुसिए, देखिए तो क्या हो रहा है।

जो मिलें उनसे दो-दो बातें कीजिए उनके साथ किसी पेड़ की छाया के नीचे घड़ी-आध-घड़ी बैठ जाइए और समझिए कि ये सब हमारे देश के हैं। इस प्रकार जब देश का रूप आपकी आँखों में समा जाएगा, आप उसके अंग-प्रत्यंग से परिचित हो जाएँगे, तब आपके अन्तःकरण में इस इच्छा का सचमुच उदय होगा कि वह हमसे कभी न छूटे, वह सदा हरा-भरा और फला-फूला रहे, उसके धनधान्य की वृद्धि हो, उसके सब प्राणी सुखी रहें।

शब्दार्थ:

  • परच – परिचित होना।
  • प्रवर्तक – प्रतीक।
  • टेसू – पलाश।
  • कछार – नदी का छोड़ा हुआ स्थान, भाग।
  • तान लड़ाना – गीत गाना।
  • अमराइयों – आमों।
  • अंग-प्रत्यंग – प्रत्येक स्वरूप।
  • अन्तःकरण – हृदय।
  • धनधान्य – धन-वैभव।

प्रसंग:
पूर्ववत्। इसमें लेखक ने देश के स्वरूप से परिचय करने के विषय में कहा है कि व्याख्या-साथ-साथ रहने से परिचय हो जाता है। यह परिचय किसी के लिए भी सम्भव होता है। यह न केवल मनुष्य के लिए सम्भव होता है अपितु पशु-पक्षी के लिए भी सम्भव होता है। इस परिचय से ही प्रेम का प्रर्वतन होता है। इस आधार पर यह कहा जा सकता है कि जब तक परिचय नहीं होगा, तब तक प्रेम नहीं हो सकता है। इसलिए अगर हमें देश-प्रेम करना है या देश-प्रेमी बनना है तो हमें अपने शुद्ध हृदय से देश के एक-एक स्वरूप से परिचित होना है। इसकी आदत डालनी होगी। इसके लिए यह जरूरी है कि जब हम बाहर निकलें तो अपनी आँखें खोलकर देश के एक-एक स्वरूप को देखें। यह देखें कि खेतों में हरी-भरी फसलें कैसे लहलहा रही हैं।

झाड़ियों के कल-कल करते हुए नाले कैसे बह रहे हैं। पलाश के लाल-लाल फूलों से कैसे धरती रंगीन हो रही है। कछारों में पशुओं को चराते हुए चरवाहे एक-से-एक बढ़कर कैसे गाने छेड़ रहे हैं। आमों के बागों के बीच में गाँवों की झलक कैसी दिखाई दे रही है। फिर गाँवों में हम जाएँ। गाँव के लोगों से मिलें। उनका समाचार पूछे। उनके साथ कुछ देर तक रहें। उनसे भाईचारा की भावना से उनमें परस्पर दुःख-सुख की बातें करें। इससे देश के स्वरूप का पूरा ज्ञान हमको हो जाएगा। हम देश के एक-एक रूप से परिचित हो जाएँगे। जब हमारी ऐसी दशा हो जाएगी, तब हमारे हृदय में देश-प्रेम के सच्चे भाव खिल उठेंगे। उन्हें हम कभी नहीं भूलना चाहेंगे। इस प्रकार हम एक सच्चे देश-प्रेमी होकर देश के सुख-शान्ति और उसकी महानता के लिए हमेशा शुभकामना करते रहेंगे।

विशेष:

  1. देश-प्रेम के लिए आवश्यक तथ्यों पर प्रकाश डाला गया है।
  2. देश के स्वरूप को स्पष्ट किया गया है।
  3. भाषा प्रभावशाली है।
  4. शैली वर्णनात्मक है।
  5. देश-प्रेम की प्रेरणा दी गई है।

गद्यांश पर आधारित अर्थ-ग्रहण सम्बन्धी प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. परिचय प्रेम का प्रवर्तक है क्यों?
  2. हृदय से देश-प्रेम करने के लिए क्या आवश्यक है?
  3. हमें किसका अभ्यस्त हो जाना चाहिए?

उत्तर:

  1. परिचय प्रेम का प्रवर्तक है। यह इसलिए कि बिना परिचय के प्रेम नहीं हो सकता है।
  2. हृदय से देश-प्रेम करने के लिए आवश्यक है कि हम देश के अंग-प्रत्यंग से बखूबी परिचित हो जाएं।
  3. हमें देश के प्रत्येक स्वरूप से परिचित और अभ्यस्त हो जाना चाहिए।

गद्यांश पर आधारित बोधात्मक प्रश्नोत्तर
प्रश्न.

  1. लेखक ने सच्चे देश-प्रेम का भाव किसे माना है?
  2. देश-प्रेम की परिपूर्णता कैसे सम्भव है?

उत्तर:

  1. लेखक ने अपने देश के लोक-जीवन के प्रति लगाव और उसके सुख-शान्ति की कामना करते रहना ही सच्चे देश-प्रेम का भाव माना है।
  2. देश-प्रेम की परिपूर्णता अपने देश की प्रकृति के साथ गहरा सम्बन्ध और साहचर्य से ही सम्भव है।

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