MP Board Class 10th Special Hindi सहायक वाचन Solutions Chapter 6 निंदा रस (व्यंग्य निबन्ध, हरिशंकर परसाई)
निंदा रस अभ्यास
व्यंग्य निबन्ध
प्रश्न 1.
लेखक ने निन्दकों को पास में रखने की सलाह क्यों दी है?
उत्तर:
हीनता की भावना ही निन्दा की जन्मदात्री है। निन्दा की प्रवृत्ति आलस्य तथा प्रमाद से उत्पन्न होती है। निठल्ला इन्सान दूसरों को कार्य में जुटा देखकर उनसे अकारण ईर्ष्या करने लगता है। प्रमादी मानव कार्य करने से जी चुराता है। यही अकर्मण्यता व्यक्ति को निन्दक के रूप में परिवर्तित कर देती है। निन्दा से बचने का एकमात्र साधन कर्म में प्रतिपल जुटे रहना है। कर्म से आत्म-सन्तुष्टि मिलती है।
प्रश्न 2.
अपने निन्दकों को उचित उत्तर देने का लेखक ने क्या उपाय सुझाया है?
उत्तर:
लेखक ने निन्दकों को उचित उत्तर देने का सर्वश्रेष्ठ उपाय बताया है कि कठोर श्रम से हम ईर्ष्या,जलन, ढाह आदि बुरी भावनाओं का समूल नाश कर सकते हैं। निन्दकों को उचित उत्तर देने का यही सर्वश्रेष्ठ उपाय है।
प्रश्न 3.
निन्दा की प्रवृत्ति से बचने के लिए क्या करना चाहिए? (2009)
उत्तर;
जो इन्सान निन्दा में प्रवृत रहता है, उसका मन कमजोर तथा अशक्त होता है। उसके मन में हीनता की भावना विद्यमान रहती है। निन्दा के माध्यम से वह दूसरों को अपने से हीन तथा तुच्छ करार देता है। इस प्रकार के कृत्य से वह अपने अहम् को पारितोष देता है। निन्दा से छुटकारा पाने का एकमात्र उपाय काम में जुटे रहना है। कर्म में प्रवृत्त रहने से धीरे-धीरे निन्दा का अवगुण समाप्त हो जाता है। कठिन कर्म ही निन्दा को नष्ट करता है। कार्यरत मानव को दूसरे की निन्दा करने का अवकाश ही नहीं मिलता।
प्रश्न 4.
“छल का धृतराष्ट्र जब आलिंगन करे तो पुतला ही आगे बढ़ाना चाहिए।” कथन का आशय स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
पुतला निर्जीव एवं भावना-शून्य होता है। लेखक की धारणा है कि जब कोई इन्सान छल-कपट की भावना मन-मानस में छिपा कर हमसे मिले तो हमें भी ऐसे इन्सान के साथ मिलने तथा प्रेम-प्रदर्शन की औपचारिकता को ही निभाना चाहिए। इनके साथ हमें इसी भाँति मिलना चाहिए जिस तरह कि कृष्ण ने धृतराष्ट्र के समक्ष भीम की जगह पर भीम का पुतला आगे बढ़ा दिया था। इस कथन का तात्पर्य यह है कि कपटी तथा छली धृतराष्ट्र भी भीम के आलिंगन का इच्छुक न होकर,उसको मौत के घाट उतारना चाहता था।
प्रश्न 5.
“कुछ लोग बड़े निर्दोष मिथ्यावादी होते हैं।” कथन की विवेचना कीजिये। (2009, 14, 16)
उत्तर:
कुछ इन्सान बड़े निर्दोष-मिथ्यावादी स्वभाव वाले होते हैं। वे स्वभाववश झूठ का आश्रय लेते हैं। बिना किसी कारण निष्प्रयास असत्य बोलते हैं। ठीक बात उनके मुख से कभी निकलती ही नहीं है। इस प्रकार के मिथ्यावादियों के लिए लेखक ने निर्दोष शब्द का जो प्रयोग किया है, वह उचित प्रतीत होता है। जो इन्सान इस प्रकार का झूठ बोलता है, वह किसी को नुकसान नहीं पहुँचाता। वे झूठ का सहारा स्वभाववश लेते हैं। दुनिया में अक्सर लोग अपने व्यक्तिगत स्वार्थ हेतु या दूसरों को नुकसान पहुँचाने के लिए झूठ का सहारा लेते हैं, परन्तु निर्दोष मिथ्यावादी अपनी प्रकृति के वशीभूत होकर ही असत्य बोलता है।
प्रश्न 6.
इस पाठ से आपने क्या शिक्षा ग्रहण की और क्या निश्चय किया? स्पष्ट कीजिये।
उत्तर:
हीनता की भावना से निन्दा का जन्म होता है। जिस इन्सान में हीनता की भावना होती है, निन्दक बन जाता है। हीनता की भावना से ग्रसित होकर व्यक्ति अपनी श्रेष्ठता का प्रभाव जमाना चाहता है। अपने अहम् को सन्तुष्ट करने के लिए वह निन्दा करता है। निन्दक की प्रवृत्ति आलस्य तथा प्रमाद से उत्पन्न होती है। प्रमादी मानव कार्य करने से जी चुराता है। निन्दा रस से बचने का एकमात्र साधन कर्म में प्रतिपल जुटे रहना है। कर्म से आत्म-सन्तुष्टि मिलती है। इस पाठ से हमने यह शिक्षा ग्रहण की है कि निन्दा रस से बचने के लिए हमेशा कर्म में जुटे रहना चाहिए जिसके परिणामस्वरूप हमारे भीतर की निन्दा रस रूपी बुराई समूल नष्ट हो जाती है। इस पाठ के अध्ययन के उपरान्त हमने निश्चय किया कि हम प्रतिक्षण अपने कर्म में जुटे रहेंगे तथा निन्दा रस रूपी बुराई अपने हृदय से निकालकर अपना तथा आसपास के वातावरण को खुशहाल बनायेंगे।
निन्दा रस महत्त्वपूर्ण वस्तुनिष्ठ प्रश्न
निन्दा रस बहु-विकल्पीय प्रश्न
प्रश्न 1.
सूरदास जी ने निन्दा के विषय में लिखा है
(क) ‘निन्दा सबद रसाल’
(ख) विशाल निन्द
(ग) रस निन्दा
(घ) इनमें से कोई नहीं।
उत्तर:
(क) ‘निन्दा सबद रसाल’
प्रश्न 2.
निन्दा का उद्गम है
(क) दीनता
(ख) निन्दक
(ग) हीनता और कमजोरी
(घ) कमजोरी।
उत्तर:
(ग) हीनता और कमजोरी
प्रश्न 3.
निन्दा कुछ लोगों की पूँजी होती है, इससे वे फैलाते हैं
(क) बुराई
(ख) प्रतिष्ठा
(ग) पूँजी
(घ) लम्बा चौड़ा व्यापार।
उत्तर:
(घ) लम्बा चौड़ा व्यापार।
रिक्त स्थानों की पूर्ति
- छल का धृतराष्ट्र जब आलिंगन करे, तो ………… ही आगे बढ़ाना चाहिए।
- निंदा रस नामक निबन्ध में ………… तत्त्व की प्रधानता है। (2009)
- मनुष्य अपनी ……………. से दबता है।
उत्तर:
- पुतला
- व्यंग्य
- हीनता।
सत्य/सत्य
- कुछ लोग बड़े निर्दोष मिथ्यावादी होते हैं।
- कठिन कर्म ही ईर्ष्या और द्वेष को जन्म देता है।
- बड़ी लकीर को कुछ मिटाकर छोटी लकीर बनती है।
- निन्दा रस व्यंग्य निबन्ध है। (2010)
- निंदक समाज में सम्मान के पात्र होते हैं। (2015)
उत्तर:
- सत्य
- असत्य
- सत्य
- सत्य
- असत्य
सही जोड़ी मिलाइए
उत्तर:
1. → (ख)
2. → (ग)
3. → (क)
4. → (घ)
एक शब्द/वाक्य में उत्तर
- लेखक ने किसको अपने पास रखने की सलाह दी है?
- कौन-सा रस आनन्ददायक है?
- किस व्यक्ति की स्थिति बड़ी दयनीय होती है?
- निन्दा रस के लेखक कौन हैं? (2017)
उत्तर:
- निन्दकों को
- निन्दा रस
- निन्दक की
- हरिशंकर परिसाई।